RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

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RBSE Class 11 Geography Chapter 6 Notes भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

→ भू-संचलन (EarthMovements):

  • भूपर्पटी गतिशील है। यह क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर दिशाओं में संचरित होती रहती है।
  • धरातल सूर्य से प्राप्त ऊर्जा द्वारा प्रेरित बाह्य बलों से लगातार प्रभावित होता रहता है।
  • पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उठने वाले बल तथा पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होने वाले बल धरातल को लगातार प्रभावित कर उसमें परिवर्तन लाते रहते हैं। 

→ अन्तर्जात एवं बहिर्जात बल (Endogenic and Exogenic Force):

  • अन्तर्जनित बल भू-आकृति निर्माण करने वाले बल हैं। ये धरातल पर पर्वत, पठार, मैदान आदि का निर्माण व विकास करते हैं।
  • धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अन्तर के कम होने को तल संतुलन कहते हैं।
  • बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ समतल स्थापक बल होते हैं। ये बल धरातल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने का प्रयास करते

→ भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes) :

  • पटल विरूपणी शक्तियाँ एवं ज्वालामुखी अन्तर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं और अपक्षय, वृहक्षरण, अपरदन तथा निक्षेपण बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं।
  • प्रकृति के तत्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील होते हैं। प्रवाहित जल, भूमिगत जल, हिमनद, हवा, लहरें, धाराएँ आदि कारक भू-आकृतियों का निर्माण करते हैं। गुरुत्वाकर्षण एवं ढाल प्रवणता गतिशीलता के प्रमुख कारक हैं। 

→ अन्तर्जनित प्रक्रियाएँ (Endogenic Processes) :
पृथ्वी की अन्तर्जनित ऊर्जा भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के लिए प्रमुख बल है। वे सभी प्रक्रियाएँ जो धरातल को संचालित, उत्थापित तथा निर्मित करती हैं, पटल विरूपणी शक्ति के अन्तर्गत आती हैं। इन्हीं प्रक्रियाओं के कारण शैलों का कायांतरण प्रेरित होता है।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 

→ बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ (Exogenic Processes):

  • बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमण्डलीय ऊर्जा एवं अन्तर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं।
  • धरातल के पदार्थ गुरुत्वाकर्षण प्रतिबल के अतिरिक्त आण्विक प्रतिबलों से भी प्रभावित होते हैं। जो कि तापमान में परिवर्तन, क्रिस्टलन एवं पिघलन के द्वारा उत्पन्न होते हैं।
  • धरातल के पदार्थों के पिंड में प्रतिबल का विकास अपक्षय, वृहत क्षरण, संचालन, अपरदन एवं निक्षेपण का मूल कारण सभी बहिर्जनिक प्रक्रियाओं को अनाच्छादन के रूप में जाना जाता है।
  • बहिर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रियाओं में अन्तर जलवायु के दो प्रमुख तत्वों तापमान एवं वर्षण द्वारा नियंत्रित होता है। ये प्रक्रियाएँ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न-भिन्न होती हैं।
  • वनस्पति का घनत्व, प्रकार एवं वितरण प्रमुख रूप से वर्षा एवं तापमान पर निर्भर करते हैं तथा बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं।
  • जलवायवी कारकों के समान होने की स्थिति में बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के कार्यों की गहनता शैलों के प्रकार एवं संरचना पर निर्भर करती है।

→ अपक्षय (Weathering):

  • अपक्षय एक महत्वपूर्ण बहिर्जनिक प्रक्रिया है। अपक्षय के अन्तर्गत वायुमण्डलीय तत्वों के प्रति धरातल के पदार्थों की प्रक्रिया सम्मिलित है।
  • अपक्षय पर जलवायु का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।
  • अपक्षय के तीन मुख्य प्रकार हैं
    • रासायनिक,
    • भौतिक या यांत्रिक,
    • जैविक।
  • रासायनिक प्रक्रियाओं में विलयन, कार्बोनेशन, जलयोजन, ऑक्सीकरण एवं न्यूनीकरण आदि सम्मिलित हैं। अपक्षय की समस्त प्रक्रियाएँ अन्तः सम्बन्धित होती हैं।
  • जलयोजन, कार्बोनेशन एवं ऑक्सीकरण साथ-साथ चलकर अपक्षय प्रक्रिया में गति लाते हैं।
  • भौतिक या यांत्रिक अपक्षय प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों पर निर्भर करती हैं। इन बलों में गुरुत्वाकर्षण बल, विस्तारण
  • बल तथा शुष्क व आर्द्र चक्रों से नियंत्रित जल का दबाव आदि प्रमुख हैं। चट्टानों की दरारों व रंध्रों के बार-बार हिमकरण एवं पिघलन चक्र की अवधि में हिमवृष्टि के कारण तुषार अपक्षय घटित होता है। यह प्रक्रिया मध्य अक्षांशों में ऊँचाई पर सर्वाधिक प्रभावी होती है।
  • शैलों में नमक तापीय क्रिया, जलयोजन एवं क्रिस्टलीकरण के कारण फैलता है।
  • जैविक अपक्षय जात प्रक्रियाओं में जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों एवं मानव को सम्मिलित किया जाता है। 

→ अपक्षय के प्रभाव (Effects of Weathering) :

  • अपक्षय की प्रक्रिया विशालकाय चट्टानों को न केवल तोड़ने तथा आवरण प्रस्तर व मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं बल्कि अपरदन व वृहत संचलन के लिए भी उत्तरदायी हैं।
  • अपक्षय वृहद क्षरण, उच्चावच के लघुकरण व अपरदन में सहायक होता है। 

→ बृहत संचलन (Mass Movement):

  • बृहत संचलन में शैलों का मलवा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानान्तरित होने लगता है।
  • बृहत संचलन में विसर्पण, बहाव, स्खलन व पतन शामिल होता है। बृहत संचलन की सक्रियता के कई कारक होते हैं जिनमें प्राकृतिक एवं कृत्रिम साधनों द्वारा ऊपर के पदार्थों के टिकने के आधार का हटाना, ढालों की प्रवणता एवं ऊँचाई में वृद्धि, पदार्थों का अतिभार, भारी वर्षा, भूकम्प, विस्फोट या मशीनों का कम्पन्न, अत्यधिक प्राकृतिक रिसाव आदि प्रमुख हैं। बृहत संचलन के दो प्रमुख प्रकार होते हैं—मंद संचलन एवं तीव्र संचलन। मंद संचलन में पदार्थों का संचलन इतना मंद होता है कि इसका आभास करना कठिन होता है और दीर्घकालिक पर्यवेक्षण से ही इसका आभास होता है।
  • तीव्र संचलन आई जलवायु प्रदेशों में निम्न से लेकर तीव्र ढालों पर घटित होते हैं।
  • मृदा प्रवाह, कीचड़ प्रवाह व मलवा अवधाव तीव्र संचलन के उदाहरण हैं।
  • भूस्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं दिखाई देने योग्य संचलन हैं। इसमें स्थानान्तरित होने वाले पदार्थ अपेक्षाकृत शुष्क होते हैं।
  • पृथ्वी के पिंड के पश्च-आवर्तन के बिना मलबे का तीव्र लोटन या स्खलन मलबा स्खलन कहलाता है। 

→ अपरदन व निक्षेपण (Erosion and Deposition):

  • अपरदन के अन्तर्गत शैलों के विघटित मलबे एवं उसके परिवहन को सम्मिलित किया जाता है।
  • धरातल के पदार्थों का अपरदन व परिवहन प्रवाही जल, पवन, हिमनद एवं भूमिगत जल आदि द्वारा सम्पन्न होता है।
  • निक्षेपण अपरदन का परिणाम होता है। ढाल की कमी के कारण जल अपरदन के कारकों के वेग में कमी आ जाती है तो अवसादों का निक्षेपण प्रारम्भ हो जाता है। 

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

→ मृदा निर्माण (Soil Formation) :

  • मृदा एक गतिशील माध्यम है जिसमें भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रियाएँ निरन्तर चलती रहती हैं। मृदा पर जलवायु दशाओं, भू-आकृतियों एवं वनस्पतियों का नियन्त्रण होता है।
  • मृदा निर्माण अपक्षय पर निर्भर करता है तथा अपक्षय जलवायु चट्टान निर्माणकारी पदार्थों की विशेषताओं एवं जीवों सहित कई कारकों के समुच्चय पर निर्भर करता है।
  • मृदा निर्माण के पाँच मूल कारक हैं
    • जलवायु,
    • मूल पदार्थ,
    • स्थलाकृति,
    • जैविक क्रियाएँ,
    • कालावधि।

→ भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ (Geomorphic Processes)–धरातल के पदार्थों पर अन्तर्जात एवं बहिर्जात बलों द्वारा भौतिक दबाव एवं रासायनिक क्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ कहते हैं।।

→ पृथ्वी (The Earth)-सौरमंडल का एक सदस्य ग्रह जिस पर जीवन सम्भव है। यह नीले ग्रह के रूप में भी जाना जाता है।

→ पर्पटी (Crust)-पृथ्वी की सबसे ऊपरी परतं। इसका ऊपरी भाग ही स्थलमंडल कहलाता है।

→ प्लेट (Plate)-दृढ़ भूखण्डों को प्लेट कहते हैं। विश्व को सात मुख्य प्लेटों में बाँटा गया है।

→ भूकंप (Earthquake)-पृथ्वी में होने वाली कम्पन की प्रक्रिया।

→ बहिर्जनिक बल (Exogenic Force)-पृथ्वी के धरातल के ऊपर काट-छाँट करने वाली शक्तियों को बहिर्जनिक बल कहते हैं।

→ अन्तर्जनिक बल (Endogenic Force)-पृथ्वी के अन्दर अदृश्य रूप से होने वाली शक्तियों को अन्तर्जनिक बल कहते हैं। इसे विवर्तनिक हलचल भी कहा जाता है।

→ तल सन्तुलन (Gradation)-धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अन्तर के कम होने को तल सन्तुलन कहते हैं।

→ उच्चावच (Relief)-पृथ्वी पटल पर मिलने वाले ऊँचे-नीचे भू-भाग उच्चावच कहलाते हैं।

→ पर्यावरण (Environment)-हमारे चारों ओर फैले आवरण को पर्यावरण कहा जाता है। इसमें जैविक, अजैविक व सांस्कृतिक घटक शामिल होते हैं।

→ पटल विरूपण (Disastrophism)–धरातल की वे समस्त हलचलें तथा विस्थापन जिनके द्वारा पृथ्वी की पपड़ी झुकती, मुड़ती एवं टूट जाती है। जिसके परिणामस्वरूप धरातल पर अनेक विभिन्नताएँ पैदा हो जाती हैं, पटल विरूपण कहलाता है।

→ ज्वालामुखीयता (Volcanism)-पिघली हुई चट्टानों या लावा के भूतल की ओर संचलन एवं अनेक आन्तरिक व बाह्य ज्वालामुखी स्थलों का निर्माण ज्वालामुखीयता कहलाता है।

→ अपक्षय (Weathering)-चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया अपक्षय कहलाती है।

→ वृहत क्षरण (Mass wasting)-अचानक पहाड़ी ढाल से मृदा शैल परत और आधार का तरल अभिकर्ता की क्रिया के स्थान पर गुरुत्व के प्रभाव से नीचे की ओर आना वृहत् क्षरण कहलाता है।

→ अपरदन (Erosion)-पृथ्वी की ऊपरी मृदा सतह का हटकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाना अपरदन कहलाता है।

→ निक्षेपण (Deposition)—सामान्यतया अवसाद का एकत्रण या जमाव होने की प्रक्रिया।

→ ज्वार भाटा (Tide)-समुद्र का जल-स्तर एक-सा नहीं रहता। यह नियमित रूप से दिन में दो बार ऊपर उठता है और नीचे उतरता है। समुद्री जल स्तर में इसी बदलाव की वजह से ज्वार और भाटा की उत्पत्ति होती है। इसमें जल स्तर के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे उतरने को भाटा कहते हैं।

→ वायुदाब (Air pressure)-वायु के प्रति इकाई क्षेत्र पर पड़ने वाले भार को वायुदाब कहते हैं। '

→ घूर्णन (Rotation)-24 घण्टों की अवधि में पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना। इसी से दिन-रात का निर्धारण होता है।

→ पर्वतनी (Orogeny)-पर्वत निर्माण की एक वृहत् प्रक्रिया।

→ महाद्वीप रचना (Eperiogeny)-महाद्वीपों की रचना की एक वृहत् प्रक्रिया।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

→ वलन (Folds)-पर्वतों में घुमाव पड़ने की प्रक्रिया।

→ भ्रंश (Fault)-पृथ्वी के अन्तर्जात बल द्वारा उत्पन्न तनावमूलक संचलन के कारण जब भूपटल में एक तल के सहारे चट्टानों का एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर स्थानान्तरण हो जाता है, जिसके फलस्वरूप उत्पन्न संरचना को भ्रंश कहते

→ कायांतरण (Metamorphism)-शैलों के रूप परिवर्तन की प्रक्रिया।

→ लावा (Lawa)-पृथ्वी के आन्तरिक भाग में मिलने वाले तरल व तप्त पदार्थ का ज्वालामुखी प्रक्रिया के कारण पृथ्वी की ऊपरी सतह पर आना।

→ मैग्मा (Magma)-पृथ्वी में मिलने वाले तरल व तप्त पदार्थ का भूपर्पटी के नीचे ही जम जाना।

→ विभंग (Fracture)-जब अन्तर्जात बलों से उत्पन्न तनावमूलक शक्ति तीव्र होती है तब चट्टानों के स्तरों में होने वाले स्थानान्तरण को विभंग कहते हैं। इसमें चट्टानों का सामान्य स्थानान्तरण ही होता है।

→ प्रतिबल (Stress)-किसी पदार्थ पर अध्यारोपित बल जो उस पदार्थ के आकार या आयतन को परिवर्तित करने का प्रयास करता है। यह बल प्रति इकाई क्षेत्र में लगता है।

→ अपरूपण (Shear)-भूगर्भशास्त्र में कभी-कभी अपकर्षण और अपक्षरण के द्वारा किसी शैल का भ्रंश के निकट नमन और घुमाव शैल का अपरूपण कहलाता है। .

→ विसर्पण (Slippage)-भू-स्खलन अथवा पंक स्खलन का होना विसर्पण कहलाता है, एक भ्रंश भी विसर्पण की क्रिया का परिणाम होता है।

→ अनाच्छादन (Denudation)-शैलों के अपक्षय, अपरदन, परिवहन व निक्षेपण की संयुक्त क्रिया को अनाच्छादन कहा जाता है।

→ जलवायु (Climate)-किसी क्षेत्र विशेष में मौसम सम्बन्धी दशाओं का दीर्घकालिक संदर्भ में अध्ययन करने की प्रक्रिया।

→ वनस्पति (Vegetation)-पृथ्वी पटल पर मिलने वाली घास-झाड़ियों, पेड़-पौधों का सामूहिक स्वरूप।

→ सूर्यताप (Insolation)-सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊष्मा या ऊर्जा ।

→ तुषार (Frost)-कभी-कभी धरातल पर तापमान हिमांक से भी कम हो जाता है, तब वायुमण्डल का जलवाष्प जल बूंदों के रूप में हिमकणों में बदल जाता है, जिन्हें तुषार या पाला कहते हैं। यह फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाता है।

→ अपघटन (De-composition)-इस क्रिया द्वारा चट्टानों की रासायनिक संरचना परिवर्तित हो जाती है तथा बाद में वे टूट-फूट जाती हैं।

→ वायुमंडल (Atmosphere)-हमारे चारों ओर फैला हुआ गैसीय आवरण।

→ घोल/विलयन (Solution)-दो पदार्थों के संयोग से बना समांगी मिश्रण अथवा जब वर्षा का जल चट्टानों पर पड़ता है तो कई चट्टानों को घोल देता है। खनिज के जल में घुलने की क्रिया को ही विलयन कहते हैं। वर्षा होने पर नमक . व चूना-पत्थर इस क्रिया द्वारा जल में घुल जाते हैं।

→ खनिज (Mineral) भूगर्भ के आन्तरिक भाग में मिलने वाले पदार्थ जिनका एक निश्चित रासायनिक संगठन होता है।

→ निक्षालन (Leaching)-वह प्रक्रिया, जिसमें भूमि की सतह पर विद्यमान जल घुलनशील पदार्थों में घुलकर मृदा या शैलों के सरंध्रों में चला जाता है।

→ कार्बोनेशन (Carbonation)-जब जल में घुला हुआ कार्बन चट्टानों पर प्रभाव डालता है तो उसे कार्बोनेशन या कार्बोनेरीकरण कहते हैं। कार्बन जल में घुलकर कार्बोनिक अम्ल का निर्माण करता है। यह अम्ल चूना युक्त चट्टानों को शीघ्र ही घोल डालता है। भूमिगत जल चूना पत्थर के प्रदेशों में बड़े पैमाने पर अपक्षय करता है।

→ जलयोजन (Hydration)-जब हाइड्रोजन गैस जल में मिलकर चट्टानों का अपक्षय करती है तो इसे जलयोजन कहते हैं।

→ अपशल्कन (Exfoliation)-एक प्रकार का अपक्षय, जिसके द्वारा धरातल से शैलों की परतें उखड़ती हैं। यह क्रिया तापीय प्रभाव के कारण होती है। इसे अपदलन भी कहते हैं।

→ टॉर (Tors)—ग्रेनाइट शैलों में तापमान के परिवर्तन एवं विस्तारण की प्रक्रिया से चिकनी सतह के छोटे से लेकर बड़े-बड़े गोलाश्मों का निर्माण होता है, जिन्हें टॉर कहते हैं।

→ ऑक्सीकरण (Oxidation)-ऑक्सीजन गैस द्वारा चट्टानों पर होने वाले प्रभाव को ऑक्सीकरण कहते हैं। इस क्रिया में जल तथा वायु में मिली हुई ऑक्सीजन लौहयुक्त चट्टानों को ऑक्साइडों के रूप में बदल देती है और लोहे पर जंग लग जाता है। इस प्रकार लौह युक्त चट्टानें भुरभुरी होकर नष्ट हो जाती हैं।

→ तुषार वेजिंग (Frost Wedging)-जैसे ही जल जमता है, उसके आयतन में प्रसार होता है, इसके कारण शैल में जो बल उत्पन्न होता है, उसे तुषार वेजिंग कहते हैं।

→ लवण अपक्षय (Salt Weathering)-चट्टानों में वर्षा का जल प्रवेश करता है तथा विवटन प्रारम्भ हो जाता है। जल एवं मिट्टी का घोल साथ-साथ प्रवेश करता है, जल सूख जाता है तथा नमक के रवे बन जाते हैं। इससे उसका आयतन बढ़ जाता है। इससे चट्टानों पर दबाव पड़ता है और वे टूटने लगती हैं। इसे ही लवण अपक्षय कहते हैं।

→ आर्द्रता (Humidity)-वायुमंडल में मिलने वाली नमी की मात्रा।

→ मरुस्थल (Desert)-मृतप्राय स्थल जो ऊपजाऊपन की दृष्टि से शून्य होते हैं। शुष्कता व रेतीली मृदा का विस्तार व वनस्पतिहीनता इनकी मुख्य विशेषता होती है।

→ जैविक अपक्षय (Biological Weathering)-जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों व पादप समुदाय के द्वारा चट्टानों के विखण्डन की प्रक्रिया।

→ भौतिक अपक्षय (Physical Weathering)-भौतिक कारकों (ताप, दाब, वर्षा, हिम, तुषार) से होने वाली चट्टानों के विखण्डन की प्रक्रिया।

→ मृदा सर्पण (Soil Fluction)-जब चट्टान चूर्ण जल से आंशिक रूप में संतृप्त हो जाता है तो धीरे-धीरे उसका स्थानान्तरण होने लगता है, जिसे मृदा सर्पण या भूसर्पण कहते हैं।

→ मृदा विसर्पण (Soil Creep)-भूमि के ढाल के सहारे मृदा अथवा शैल चूर्ण का गुरुत्व शक्ति के प्रभाव के कारण नीचे की ओर खिसकना मृदा सर्पण कहलाता है।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

→ शैल मलबा विसर्पण (Talus Creep)-शैल मलवा के गुरुत्व के प्रभाव से ढाल से नीचे की ओर धीमा गतिशील होने की क्रिया को शैल मलवा विसर्पण कहते हैं।

→ वृहत् संचलन (Mass movement)-पर्वतीय क्षेत्रों में गुरुत्वाकर्षण द्वारा असंगठित चट्टानें ढाल के साथ-साथ लुढ़ककर नीचे आ जाती हैं। इस क्रिया को वृहत् संचलन या वृहत् क्षरण कहते हैं। यह अधिकतर वर्षा या बर्फ में पिघलने से होता है।

→ भूमि प्रवाह (Earth flow)-एक प्रकार की गतिशीलता जो भूमि के ढाल के सहारे तथा शैल चूर्णों की गुरुत्व शक्ति के कारण ऊपर से नीचे की ओर होती है। इस क्रिया में अपक्षय से उत्पन्न चिकनी मिट्टी व चूर्ण का धीरे-धीरे नीचे की ओर स्थानान्तरण होता है।

→ कीचड़ प्रवाह (Mud flow)-जब चट्टान चूर्ण पूर्णतया जल से संतृप्त हो जाता है तो मिट्टियों का तीव्र गति से स्थानान्तरण होने लगता है तब वह पंकवाह या कीचड़ प्रवाह कहलाता है।

→ गिरिपद (पीडमांट) (Peidimant)-शुष्क या अर्द्धशुष्क प्रदेशों में पर्वत श्रेणियों के निचले ढाल पर अनाच्छादन से बनी मंद ढाल वाली शैल सतह, जो एक प्रकार की पतली परत से आच्छादित होती है। इसकी स्थिति निक्षेप द्वारा निर्मित मैदान एवं पर्वत के अग्रभाग के बीच होती है।

→ अवधाव (Avalanche)-गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से ऊँचे भागों से हिम का नीचे आना अवधाव या एवलांश कहलाता है।

→ भूस्खलन/मलबा अवधाव (Land Slide)-शैल के किसी ढेर का गुरुत्व प्रभाव से नीचे की ओर खिसकना भूस्खलन कहलाता है।

→ सर्पण (Slide)-इस प्रकार का स्थानान्तरण जल या हिम के स्नेहक के रूप में होता है। अवसर्पण (Debris slide) पश्च आवर्तन के साथ शैल मलबा को एक या कई इकाइयों के फिसलन को अवसर्पण कहते हैं।

→ मलबा स्खलन (Debris Slide)-एक प्रकार का भूस्खलन, जिसमें शुष्क शैल टुकड़े एवं मिट्टी ढलान से गिरते हैं तथा इनके गिरने की गति धीरे-धीरे बढ़ जाती है। यह सीधे न गिरकर सर्पिलाकार ढंग से गिरता है।

→ शैल स्खलन (Rock Sliding)-एक प्रकार का भूस्खलन, जिसमें ऊँचे पर्वतीय भागों से अपक्षयित शैलों के टुकड़े गुरुत्वीय प्रभाव के कारण नीचे की ओर गिरते हैं।

→ शैल पतन (Rock fall)-एक प्रकार का भूस्खलन जिसमें किसी चट्टानी भृगु या उच्च भूमि से शैलखण्ड नीचे गिरते हैं।

→ अपकर्षण (Abrasion)-घर्षण, रगड़, टूटन या भ्रंशन से किसी शैल के अपक्षयित होने की क्रिया।

→ गतिज ऊर्जा (Kinetic energy)-शरीर की गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा। यह शरीर के कार्यों से स्वयंमेव उत्पन्न होती है। अथवा वह शक्ति जो किसी पिंड में उसके संचरण से आती है।

→ कार्ट (Karst)-चूना-पत्थर के क्षेत्रों के लिए प्रयुक्त नाम।

→ मृदा (Soil) धरातल पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऐसी परत जो मूल चट्टान व वानस्पतिक अंश के संयोग से बनती है, मृदा कहलाती है। मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी अपक्षयित ठोस पपड़ी की परत है जो चट्टानों के टूटने व रासायनिक परिवर्तनों से बने छोटे कणों एवं उस पर रहने तथा उपयोग करने वाले पादप व जन्तु अवशेषों से बनी है।

→ मृदा निर्माण या मृदा जनन (Pedogensis)-मूल पदार्थ से मृदा निर्माण की प्रक्रिया को मृदा जनन कहते हैं।

→ ह्यूमस (Humus) मृदा में पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं तथा पेड़-पौधों के सड़े-गले अंश ह्यूमस या जीवांश कहलाते हैं। ये मृदा के संगठन या रंग को प्रभावित करते हैं। प्रेयरी मृदा जीवांश के कारण ही काली है।

→ मूल पदार्थ (Parent material) मृदा निर्माण की प्रक्रिया में प्रयुक्त अपक्षयित शैल संस्तर, जिस पर जलवायु जैविक गतिविधियों तथा निश्चित समय में मृदा का निर्माण होता है। मूल पदार्थ या जनक पदार्थ जिससे मृदा बनती है। कड़ी चट्टानों पवन व हिमानी द्वारा एक शैल चूर्ण संहति के रूप में जमा किया जाता है।

→ परिश्रवण (Percolation)-मृदा का वह संस्तर जिसके सहारे जल का नीचे की ओर अंत:स्रावण (रिसाव) होता है, उसे परिश्रवण कहते हैं।

→ पीट (Peat)-कोयला निर्माण की प्रारम्भिक अवस्था जो लकड़ी का परिवर्तित रूप ही होता है। इसमें कार्बन की मात्रा कम (20-30 प्रतिशत) तथा जलवाष्प अधिक पायी जाती है। लिग्नाइट इसका परिवर्तित स्वरूप है।

→ मृदा पार्श्विका (Soil Profile)-भू-सतह तथा नीचे स्थित मूल शैलों के ऊपरी भाग के मध्य स्थित समस्त भाग के लम्बवत् संस्तरों को सामूहिक रूप से मृदा पार्श्विका कहते हैं।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 12:22 p.m.
Published Aug. 4, 2022