RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 जलवायु

These comprehensive RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 जलवायु will give a brief overview of all the concepts.

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RBSE Class 11 Geography Chapter 4 Notes जलवायु

→ भारतीय जलवायु (Indian Climate) :

  • विभिन्न ऋतुओं में मौसम की दशाओं में भिन्नता पायी जाती है। यह भिन्नता मौसम के तत्वों; यथा-तापमान, वायुदाब, पवनों की गति व दिशा तथा आर्द्रता व वर्षण आदि में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है।
  • मौसम वायुमंडल की क्षणिक अवस्था है जबकि जलवायु अपेक्षाकृत लंबे समय की मौसम सम्बन्धी दशाओं का योग होती है।
  • भारत की जलवायु उष्ण मानसूनी है जो कि दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में पायी जाती है।
  • मानसून पवनों की व्यवस्था भारत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के मध्य एकता को बल प्रदान करती है।

→ मानसून जलवायु में एकरूपता व विविधता (Similarities and Diversities in Monsoon Climate):

  • जलवायु की प्रादेशिक भिन्नता भारत के विभिन्न प्रदेशों के मौसम व जलवायु को एक-दूसरे से अलग करती है।
  • भारत में एक स्थान से दूसरे स्थान पर एवं एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र के तापमान में ऋतुवत् अन्तर पाया जाता है।
  • भारत में हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में वर्षण मुख्य रूप से हिमपात के रूप में होता है, जबकि देश के अन्य भागों में वर्षण जल की बूँदों के रूप में होता है।
  • पूर्वी भारत अधिक वर्षा जबकि पश्चिमी भारत न्यून वर्षा प्राप्त करता है। 

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 जलवायु 

→ भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting of Indian Climate):

  • भारत की जलवायु को नियन्त्रित करने वाले कारकों को दो भागों में विभाजित किया गया है; जैसे
    • स्थिति तथा उच्चावच सम्बन्धी कारक,
    • वायुदाब तथा पवन सम्बन्धी कारक।
  • स्थिति व उच्चावच सम्बन्धी कारकों में अक्षांश, देशान्तर, पर्वत जल व थल के वितरण समुद्रतल से ऊँचाई व उच्चावच शामिल हैं।
  • वायुदाब व पवन सम्बन्धी कारकों में पवनों के संचरण, जेट प्रवाह, पश्चिमी विक्षोभों व अवदाबों को शामिल किया गया है।

→ शीत ऋतु में मौसम की क्रियाविधि (Weather Condition During Winter Season) :

  • शीत ऋतु में हिमालय के उत्तर में उच्च वायुदाब के केन्द्र स्थापित हो जाते हैं जिससे दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप की ओर निम्न स्तर पर धरातल के साथ-साथ पवनों का प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है।
  • मध्य एशिया के उच्च वायुदाब केन्द्र से बाहर की ओर चलने वाली धरातलीय पवनें भारत में शुष्क महाद्वीपीय पवनों के रूप में पहुँचती हैं। ये हवायें उत्तर-पश्चिमी भारत में महाद्वीपीय पवनों के सम्पर्क में आती हैं। पवनों का यह सम्पर्क क्षेत्र खिसककर कई बार मध्य गंगा घाटी तक आ जाने से पूरा उत्तरी भारत इन शुष्क उत्तरी-पश्चिमी हवाओं के प्रभाव में आ जाता है।
  • धरातल से 9 से 13 किमी. की ऊँचाई पर चलने वाली जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा भी भारत में शीतकालीन मौसमी दशाओं को प्रभावित करती है।
  • पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से भारत में प्रवेश करने वाले पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ, हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात प्रादेशिक स्तर पर शीतकालीन मौसम को प्रभावित करते हैं। 

→ ग्रीष्म ऋतु में मौसम की क्रियाविधि (Weather Condition During Summer Season) :

  • मध्य जुलाई तक अन्त: उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (I.T.C.Z) का न्यून वायुदाब क्षेत्र खिसक कर हिमालय पर्वत श्रेणी के लगभग समानान्तर स्थित हो जाता है तथा विभिन्न दिशाओं से पवनों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
  • दक्षिणी गोलार्द्ध से उष्ण कटिबन्धीय सागरीय वायुराशियाँ भूमध्य रेखा को पार करके इसी न्यून वायुदाब क्षेत्र की ओर दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में प्रवाहित होने लगती हैं। इन्हीं सामुद्रिक हवाओं को दक्षिणी-पश्चिमी मानसून कहा जाता है।
  • जून में प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग पर पूर्वी जेट प्रवाह चलता है, जो उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को भारत में लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

→ भारतीय मानसून की प्रकृति (Nature of Indian Monsoon) :

  • मानसून एक जलवायवी घटक है। मानसून का अध्ययन भूमंडलीय स्तर पर अधिक सार्थक होता है।
  • भारतीय मानसून की प्रकृति को समझने के लिये इसके निम्न पक्षों को समझना आवश्यक है
    • मानसून का आना तथा उसका स्थल की ओर बढ़ना,
    • वर्षावाही तन्त्र तथा मानसूनी वर्षा का वितरण,
    • मानसून में विच्छेद,
    • मानसून का लौटना।
  • पूर्वी जेट प्रवाह को भारत में मानसून के प्रस्फोट के लिए उत्तरदायी माना जाता है।
  • भारत में मानसून का आगमन उष्ण कटिबंधीय अवदाब व दक्षिणी-पश्चिमी मानसून धारा के कारण होता है।
  • किसी क्षेत्र में कई दिनों तक वर्षा होने के बाद एक या दो सप्ताह तक वर्षा न होना मानसून विच्छेद कहलाता है।
  • मानसून का पीछे हटना मानसून निवर्तन कहलाता है। 

→ प्रमुख ऋतुएँ (Major Seasons) :
मौसम वैज्ञानिक भारतीय जलवायवीय दशाओं को उनके वार्षिक ऋतु चक्र के आधार पर निम्न चार ऋतुओं में विभक्त करते हैं

  • शीत ऋतु,
  • ग्रीष्म ऋतु,
  • दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की ऋतु,
  • मानसून के लौटने की ऋतु। 

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 जलवायु

→ शीत ऋतु (Winter Season) :

  • उत्तरी भारत में शीत ऋतु नवम्बर के मध्य से मार्च तक मानी जाती है, जबकि प्रायद्वीपीय भारत में कोई निश्चित शीत ऋतु नहीं होती है।
  • उत्तरी-पश्चिमी उच्च वायुदाब क्षेत्र से हिन्द महासागर में स्थित निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर से मन्द गति से चलने वाली उत्तरी तथा उत्तरी-पश्चिमी हवाएँ भारत के अधिकांश भागों में प्रवाहित होती हैं।।
  • उत्तरी भारत में भूमध्य सागरीय चक्रवातों से तथा तमिलनाडु और समीपवर्ती भागों पर उत्तरी-पूर्वी मानसूनी हवाओं से हल्की वर्षा हो जाती है।

→ ग्रीष्म ऋतु (Summer Season) :

  • उत्तरी भारत में अप्रैल से मध्य जून तक की अवधि ग्रीष्म काल की होती है।
  • उत्तरी-पश्चिमी भारत में ग्रीष्मकालीन तापमान 48° सेल्सियस तक हो जाता है। दक्षिणी भारत में ग्रीष्म ऋतु सागरीय प्रभाव के कारण मृदुल होती है तथा औसत तापमान 26° से 32° सेल्सियस के मध्य रहता है।
  • उत्तरी भारत के अधिकांश भागों में 'लू' नामक गर्म एवं शुष्क हवाएँ चला करती हैं तथा मई में शाम के समय धूल भरी आँधियाँ भी चलती हैं।

→ दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की ऋतु या वर्षा ऋतु (Rainy Season) :

  • जून के पहले सप्ताह में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में प्रवेश करता है तथा जुलाई के प्रथम सप्ताह तक देश के सभी भागों में पहुँच जाता है। 
  • दक्षिणी-पश्चिमी मानसून को प्रायद्वीपीय भारत दो शाखाओं में विभक्त कर देता है
    • अरब सागर की शाखा,
    • बंगाल की खाड़ी की शाखा।
  • उक्त दोनों शाखाएँ भारत के विभिन्न भागों में वर्षा प्रदान करती हैं। 

→ मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Monsoon) :

  • मानसूनी वर्षा उच्चावच द्वारा नियन्त्रित होती है तथा सागर से दूरी बढ़ने पर मानसूनी वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। मानसूनी वर्षा का स्थानिक वितरण असमान व अनिश्चित होता है।
  • ग्रीष्मकालीन वर्षा मूसलाधार होती है, जिससे मृदा अपरदन होता है।
  • भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में मानसून का अहम योगदान होता है।

→ मानसून के लौटने की ऋतु (Season of Monsoon Retreating) :

  • अक्टूबर से नवम्बर के महीनों की अवधि मानसून के लौटने की अवधि होती है।
  • इस ऋतु में आकाश स्वच्छ रहता है, उच्च तापमान तथा आर्द्र दशाओं के कारण मौसम कष्टकारी हो जाता है।
  • इस अवधि में उत्तरी भारत में सूखा रहता है तथा प्रायद्वीप के पूर्वी भाग में वर्षा होती है।

→ भारत की परम्परागत ऋतुएँ (Traditional Seasons in India):

  • भारत को परम्परागत रूप से छः ऋतुओं में बाँटा गया है।
  • बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शग्द, हेमंत, शिशिर भारत की प्रमुख ऋतुएँ हैं। 

→ वर्षा का वितरण तथा वर्षा की परिवर्तिता (Distribution and Changes in Rainfall) :

  • भारत की औसत वार्षिक वर्षा लगभग 125 सेमी. है।
  • पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, उत्तरी-पूर्वी उप-हिमालय क्षेत्र तथा मेघालय पठार पर 200 सेमी. से अधिक वर्षा होती है।
  • उड़ीसा सहित उत्तरी-पूर्वी प्रायद्वीप तथा उप-हिमालय के साथ संलग्न गंगा का उत्तरी मैदान 100 से 200 सेमी. वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है।
  • उत्तरी भारत के मैदानी भागों के उत्तरी-पश्चिमी भागों का अधिकांश भाग तथा दक्कन पठार पर 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है।
  • पश्चिमी राजस्थान तथा प्रायद्वीपीय भारत के कुछ भागों में 50 सेमी. से कम वार्षिक वर्षा होती है।
  • सामान्यतः भारत के जिन भागों में न्यून वार्षिक वर्षा होती है वहाँ वार्षिक वर्षा की परिवर्तिता उतनी ही अधिक मिलती
  • वर्षा की परिवर्तिता वर्षा का विशिष्ट लक्षण है।
  • पश्चिम राजस्थान, जम्मू व कश्मीर सर्वाधिक वर्षा परिवर्तिता वाले क्षेत्र हैं। 

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 जलवायु

→ भारत के जलवायु प्रदेश (Climatic Regions of India):

  • तापमान तथा वर्षण के मासिक मानों के आधार पर कोपेन ने भारत को निम्नलिखित पाँच जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया है
    • उष्ण कटिबन्धीय जलवायु,
    • शुष्क जलवायु,
    • गर्म जलवायु,
    • हिम जलवायु,
    • बर्फीली जलवायु।
  • कोपेन ने अंग्रेजी के बड़े व छोटे अक्षरों का प्रयोग विभिन्न दशाओं को दर्शाने हेतु किया था।

→ मानसून और भारत का आर्थिक जीवन (Monsoon and Economic System of India) :

  • मानसून जनता के भरण-पोषण का आधार है।
  • मानसून से फसलों की स्थिति, सूखे व बाढ़ की दशा, भोजन, आवास निर्धारित होते हैं। 

→ भूमण्डलीय तापन (Global Warming):

  • मानवीय क्रियाओं द्वारा वायुमण्डल में वृहद मात्रा में कार्बन डाई-ऑक्साइड के अलावा मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ओजोन तथा नाइट्रस ऑक्साइड गैसें छोड़ी जा रही हैं। इन सभी गैसों को हरितगृह गैस कहा जाता है।
  • इन गैसों के वायुमण्डल में बढ़ते प्रतिशत से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है जिसे भूमण्डलीय तापन कहा जाता है।
  • एक अनुमान के अनुसार सन् 2100 में भूमण्डलीय तापमान में लगभग 2° सेण्टीग्रेड की वृद्धि हो जाएगी। 
  • तापमान में वृद्धि के कारण हमारे धरातल पर कई परिवर्तन होंगे जिनमें समुद्र के जलस्तर का बढ़ना, प्राकृतिक बाढ़ों की संख्या का बढ़ना, मलेरिया तथा कीटजन्य बीमारियों का बढ़ना, कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन, जनसंख्या एवं पारितन्त्र में परिवर्तन आदि प्रमुख हैं।

→ जलवायु (Climate): किसी विस्तृत क्षेत्र में एक लम्बी अवधि तक पाई जाने वाली औसत या मौसमी अवस्था जलवायु कहलाती है।

→ मौसम (Weather): वायुमण्डलीय दशाओं की क्षणिक अवस्था मौसम कहलाती है।

→ वायुदाब (Air Pressure): भूतल के किसी क्षेत्रीय इकाई पर वायुमण्डल की समस्त वायु परतों के पड़ने वाले दबाव को वायुदाब कहते हैं।

→ आर्द्रता (Humidity): किसी निश्चित तापमान पर वायु में विद्यमान नमी की मात्रा।

→ वर्षण (Precipitation): जब वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प संघनन द्वारा तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होकर धरातल पर गिरती है तो इसे वृष्टि या वर्षण कहते हैं।

→ वायुमंडल (Atmosphere): पृथ्वी के चारों ओर कई सौ किमी. की मोटाई में व्याप्त गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं।

→ मानसून (Monsoon): ऐसी जलवायु जिसमें ऋतु के अनुसार पवनों की दिशा में उत्क्रमण हो जाता है।

→ वर्षा (Rain): एक निश्चित समयावधि में किसी स्थान पर होने वाली वर्षा की मात्रा जिसे वर्षामापी यंत्र से मापा जाता है।

→ मरुस्थल (Desert): वह वीरान क्षेत्र जहाँ नमी के अभाव में वनस्पतियों का विकास नहीं हो पाता है यद्यपि यत्र-तत्र छोटी घासें तथा छोटी-छोटी झाड़ियाँ पायी जा सकती हैं।

→ हिमपात (Icefall): वर्षण की प्रक्रिया के दौरान संघनित जल के ठोस रूप में बदलकर वर्षण होने की प्रक्रिया।

→ डेल्टा (Delta): नदी के मुहाने पर पर्याप्त जलोढ़ के निक्षेप से निर्मित त्रिभुजाकार या पंखाकार निचली भूमि।

→ तूफान (Storm): भयंकर वायुमण्डलीय विक्षोभ जिसमें अत्यधिक वेग वाली प्रबल पवनें चलती हैं।

→ मूसलाधार (Heavy Rain): अल्प समय में तीव्र बौछारों के रूप में अत्यधिक वर्षा का होना।

→ उच्चावच (Relief): पृथ्वी की ऊपरी सतह की भौतिक आकृति जिसमें पर्वत, पठार व मैदानों तथा महाद्वीप व महासागरों के रूप में स्थलाकृतियाँ दृष्टिगत होती हैं।

→ अक्षांश (Latitude): भूमध्य रेखा से उत्तर या दक्षिण भूतल पर स्थित किसी बिन्दु के पृथ्वी के केन्द्र से मापी गयी कोणिक दूरी।

→ देशांतर (Longitude): भूतल के किसी बिन्दु से गुजरने वाली मध्याह्न रेखा तथा प्रधान मध्याह्न रेखा के मध्य की कोणिक दूरी उक्त बिन्दु की देशांतर होती है।

→ शीतोष्ण कटिबंध (Temperate Zone): पृथ्वी पर उष्ण कटिबंध और शीत कटिबंध के मध्य स्थित कटिबंध।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 जलवायु

→ कर्क रेखा (Tropic of Cancer): 23°32' उत्तरी अक्षांश उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की लम्बवत् स्थिति की वह अन्तिम सीमा है जिसके उत्तर में सूर्य की किरणें कभी भी लम्बवत् नहीं पड़ती हैं।

→ उष्ण कटिबंध (Tropical Zone): भूमध्य रेखा के दोनों ओर अयनवृत्तों के मध्य स्थित पृथ्वी का भाग।

→ भूमध्य रेखा (Equator): ग्लोब के मध्य से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा जो ग्लोब को दो समान भागों में विभक्त करती है।

→ तापांतर (Range of Temperature): किसी स्थान के उच्चतम और न्यूनतम तापमानों का अंतर।

→ उपमहाद्वीप (Sub-Continent): किसी महाद्वीप के अन्दर अत्यधिक विविधताओं वाला भू-भाग।

→ महासागर (Ocean): भूमण्डलीय भाग को घेरे हुए उपस्थित लवणीय जल की विशाल जल संहति को महासागर कहते हैं।

→ पवनाभिमुखी ढाल (Windward Slope): प्रचलित पवन के सम्मुख या सामने का भाग अथवा दिशा। इस ढाल के सहारे पवनें पर्वत के ऊपरी भाग की ओर चढ़ती हैं।

→ पवनाविमुखी ढाल (Leeward slope): प्रवाहित पवन के विपरीत या पीछे की ओर पड़ने वाला भू-भाग।

→ जेट प्रवाह (Jet stream): अत्यन्त प्रबल एवं अचर पछुआ पवन जो क्षोभ सीमा के नीचे बहती है जेट प्रवाह कहलाती है।

→ पश्चिमी विक्षोभ (Western disturbances): भूमध्य सागर से उत्पन्न होकर भारतीय उपमहाद्वीप में शीतऋतु में पश्चिम व उत्तर पश्चिम से प्रवेश करने वाले चक्रवात अथवा शीतऋतु में  उत्तर-पश्चिम भारत में होने वाली वर्षा को सम्पन्न करने की मौसमी क्रियाविधि।

→ व्यापार (Trade): एक आर्थिक क्रिया जिसके द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का आदान-प्रदान या हस्तांतरण होता है

→ पवन (Wind): भूतल के ऊपर किसी दिशा में किसी गति से होने वाला वायु का संचार। .

→ क्षोभमंडल (Troposphere): पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल की सबसे निचली परत जिसका विस्तार भूतल से औसत 13 किमी. ऊँचाई तक माना गया है।

→ पछुआ पवनें (Westerlies or West Wind): उत्तरी तथा दक्षिणी दोनों गोलार्डों में उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटी से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी की ओर चलने वाली स्थायी या नियतवाही पवनें जो उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा में और दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है।

→ उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical cyclone): निम्न वायुमण्डलीय दाब का एक मौसमी तन्त्र जिसके आस-पास पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा में घूमती हैं। इसकी उत्पत्ति उष्ण क्षेत्र में स्थल वायु संहति से होती है।

→ चक्रवात (Cyclone): एक निम्न वायुदाब का क्षेत्र जहाँ बाहर से हवाएँ भीतर की ओर चक्कर काटती हुई चलती हैं।

→ भूमध्य सागर (Mediterranean): चारों ओर से स्थल से घिरा हुआ आंतरिक सागर जो जिब्राल्टर जल संयोजक द्वारा अटलांटिक महासागर से जुड़ा हुआ है।

→ खाड़ी (Bay): स्थलीय भाग में भीतर की ओर घुसा हुआ विस्तृत सागरीय भाग अथवा विस्तृत निवेशिका जिसके तीन ओर विस्तृत तटरेखा पायी जाती है।

→ अन्त: उष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (Inter tropical convergence zone): विषुवत् वृत्त पर स्थित निम्न वायुदाब वाला क्षेत्र अन्त: उष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (I.T.C.Z) कहलाता है।

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→ प्रायद्वीप (Peninsula): किसी महाद्वीप या मुख्य स्थल का वह भाग जो जलाशय या सागर की ओर निकला रहता है और तीन या अधिकांश ओर से जल से घिरा होता है।

→ कॉरियोलिस बल (Coriolis force): पृथ्वी के घूर्णन से उत्पन्न होने वाला बल।

→ एलनिनो (EInino): एलनिनो एक जटिल मौसम तन्त्र है जो प्रत्येक पाँच या दस वर्ष के बाद प्रकट होता है।

→ सूखा (Drought): असामान्य मौसम वाली समयावधि जिसमें वर्षा का पूर्ण या लगभग अभाव होता है, जिसमें वनस्पतियाँ सूखने लगती हैं।

→ बाढ़ (Flood): सामान्यत: किसी शुष्क भूमि पर आकस्मिक रूप से अत्यधिक जलराशि के पहुँच जाने से उत्पन्न धरातलीय जल प्रवाह जिससे विस्तृत भूक्षेत्र जलाच्छादित हो जाता है।

→ मानसून का प्रस्फोट (Burst of monsoon): दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की ऋतु में आर्द्रतायुक्त पवनों से जब अचानक प्रचण्ड गर्जन एवं बिजली की कड़क के साथ भारी वर्षा होती है तो उसे मानसून का प्रस्फोट कहते हैं।

→ मानसून विच्छेद (Break in the monsoon); मानसून अवधि में एक-दो या कई सप्ताह तक वर्षा का न होना मानसून विच्छेद कहलाता है।

→ मानसून का निवर्तन (Retreating of monsoon): मानसून के पीछे हटने या लौटने की स्थिति को मानसून का निवर्तन कहते हैं।

→ हिमांक (Freezing Point): वह तापमान जिस पर कोई तरल पदार्थ ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है। (46) पोलिनेशिया (Polynessia)-पूर्वी प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में द्वीपों का एक समूह।

→ मकर रेखा (Tropic of Capricorn): 23°32' दक्षिण अक्षांश वृत्त। जिसके दक्षिण में सूर्य कभी भी लम्बवत् नहीं होता है।

→ मिलीबार (Milibar): वायुदाब के माप की इकाई जो 1 बार के एक हजारवें भाग अथवा 1000 डाइन के बराबर होती है।

→ दाब प्रवणता (Barometric Gradient): भूतल पर दो बिन्दुओं के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं।

→ समदाब रेखा (Isobar): किसी मानचित्र या चार्ट पर दिखाई गयी वह रेखा जो समान वायुमंडलीय दाब वाले स्थानों को मिलाती हुई खींची जाती है।

→ लू (Loo)-ग्रीष्म ऋतु में भारत के उत्तर-पश्चिमी शुष्क भागों में चलने वाली अत्यन्त गर्म व शुष्क हवा लू कहलाती है।

→ आम्र वर्षा (Mango Shower): मानसून के आने से पूर्व केरल तथा पश्चिमी तट पर होने वाली वर्षा आम्र वर्षा कहलाती है।

→ काल वैशाखी (Norwesters): असम और पश्चिम बंगाल में वैशाख के महीने में शाम को चलने वाली भयंकर व विनाशकारी वर्षायुक्त पवनें काल वैशाखी कहलाती हैं।

→ मानचित्र (Map): किसी मापनी से लघुकृत हुए आयामों के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी या उसके किसी भाग का चयनित संकेतात्मक एवं सामान्य प्रदर्शन मानचित्र कहलाता है।

→ जलवायू प्रदेश (Climatic region): धरातल का वह भाग जिसमें जलवायवी दशाओं की समरूपता जो कि जलवायु के कारका के सयुक्त प्रभाव से उत्पन्न होती है जलवायु प्रदेश कहलाता है।

→ सिंबाई (trrigation): शुष्क मौसम में फसलों को उगाने तथा उत्पादन वृद्धि के लिए खेतों पर जल पहुँचाने की कृत्रिम व्यवस्था।

→ मृदा अपरदन (Soil erosion): अपरदन के कारकों द्वारा किसी स्थान से होने वाला मिट्टी का कटाव तथा स्थानांतरण जो यांत्रिक अथवा रासायनिक किसी प्रकार से हो सकता है।

→ भूमण्डलीय तापन (Global warming): कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ओजोन एवं नाइट्रस ऑक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में बढ़ते प्रतिशत से वायु के तापमान में वृद्धि हो रही है जिसे भूमण्डलीय तापन कहा जाता है। 

→ प्रदूषण (Pollution): वायु, जल एवं मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक लक्षणों में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन जो मानव तथा अन्य जीवों को क्षति पहुँचाता है।

→ हरित-गृह प्रभाव (Green House Effect): हरित गृह गैसों के कारण उत्पन्न होने वाली एक दशा।

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→ जीवाश्मी ईंधन (Fossil Fuel): पादपों तथा प्राणियों के जीवाश्मी अवशेषों से निर्मित ज्वलनशील पदार्थ जिसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है; जैसे-कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस।

→ हरितगृह (Green House): शीशे या पारदर्शी प्लास्टिक की दीवारों तथा छत वाला घर जिसके भीतर आवश्यकतानुसार कृत्रिम तापमान निर्धारित किया जाता है।

→ गैस (Gas): द्रव और ठोस के बीच का पदार्थ जो रखे जाने वाले पात्र की पूरी जगह में भर जाता है। इसका आयतन तथा आकृति अनिश्चित होती है और धारक पात्र के अनुसार बदलती रहती है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 11:07 a.m.
Published Aug. 4, 2022