Rajasthan Board RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन परिवर्तन Important Questions and Answers.
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
यदि सागरीय जल कणों में गोलाकार गति न हो तो जो गति सर्वाधिक प्रभावित होगी वह है
(क) धाराएँ
(ख) ज्वार-भाटा
(ग) प्रवाह
(घ) लहरें।
उत्तर:
(घ) लहरें।
प्रश्न 2.
एक तरंग के निम्नतम बिन्दु को कहा जाता है
(क) तरंग शिखर
(ख) तरंग गर्त
(ग) तरंग आयाम
(घ) तरंग काल।
उत्तर:
(ख) तरंग गर्त
प्रश्न 3.
वायु एवं वायुमण्डलीय दाब के कारण सागरीय जल की गति को कहा जाता है
(क) लहर
(ख) महोर्मि
(ग) सीज
(घ) सुनामिस।
उत्तर:
(ख) महोर्मि
प्रश्न 4.
बृहत् ज्वार आते हैं
(क) अमावस्या व अष्टमी को
(ख) पूर्णिमा व अष्टमी को
ग) केवल अमावस्या को
(घ) अमावस्या व पूर्णिमा को।
उत्तर:
(घ) अमावस्या व पूर्णिमा को।
प्रश्न 5.
फाकलैंड धारा किस महासागर से सम्बन्धित है?
(क) हिन्द
(ख) अंध
(ग) प्रशान्त
(घ) आर्कटिक।
उत्तर:
(ख) अंध
प्रश्न 6.
समुद्रों में ज्वार की उत्पत्ति का मुख्य कारण है
(क) चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति
(ख) पृथ्वी का अपकेन्द्रीय बल
(ग) सूर्य की आकर्षण शक्ति
(घ) उक्त तीनों बल।
उत्तर:
(घ) उक्त तीनों बल।
प्रश्न 7.
जो कारक सागरीय धाराओं की उत्पत्ति तथा दिशा दोनों को प्रभावित करता है वह है
(क) तापमान की भिन्नता
(ख) लवणता की भिन्नता
(ग) मौसमी परिवर्तन
(घ) पवनें।
उत्तर:
(घ) पवनें।
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए
1. स्तम्भ अ (नामकरण) |
स्तम्भ ब (जल की स्थिति) |
(i) लहर |
(अ) निश्चित सीमा व निश्चित दिशा में प्रवाहित होने वाली जलराशि। |
(ii) धारा |
(ब) वायु के प्रवाह से जल में हलचल होना किन्तु जल का गतिमान न होना |
(iii) तरंग |
(स) गुरुत्वाकर्षण शक्ति से समुद्री जल का ऊपर उठना। |
(iv) ज्वार |
(द) समुद्री जल का नीचे उतरना। |
(v) भाटा |
(य) सागरीय सतह पर जल का दोलायमान रूप से गति करना। |
उत्तर:
1. स्तम्भ अ (नामकरण) |
स्तम्भ ब (जल की स्थिति) |
(i) लहर |
(य) सागरीय सतह पर जल का दोलायमान रूप से गति करना। |
(ii) धारा |
(अ) निश्चित सीमा व निश्चित दिशा में प्रवाहित होने वाली जलराशि। |
(iii) तरंग |
(ब) वायु के प्रवाह से जल में हलचल होना किन्तु जल का गतिमान न होना |
(iv) ज्वार |
(स) गुरुत्वाकर्षण शक्ति से समुद्री जल का ऊपर उठना। |
(v) भाटा |
(द) समुद्री जल का नीचे उतरना। |
2.
2. स्तम्भ अ (धारा का नाम) |
स्तम्भ ब (प्रवाह क्षेत्र) |
(i) कनारी धारा |
(अ) दक्षिणी अफ्रीका के दक्षिणी-पश्चिमी तट पर |
(ii) ब्राजील धारा |
(ब) साइबेरिया के पूर्वी तट पर |
(iii) पेरू की धारा |
(स) उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर |
(iv) बेंगुएला धारा |
(द) बेफिन की खाड़ी से न्यू फाउण्ड लैंड उभार तक |
(v) पूर्वी ऑस्ट्रेलियन धारा |
(य) दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर |
(vi) क्यूराइल धारा |
(र) ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग में |
(vii) लैब्रोडोर धारा |
(ल) दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर |
(viii) कैलीफोर्निया धारा |
(व) अफ्रीका के उत्तरी-पश्चिमी तट पर |
उत्तर:
2. स्तम्भ अ (धारा का नाम) |
स्तम्भ ब (प्रवाह क्षेत्र) |
(i) कनारी धारा |
(व) अफ्रीका के उत्तरी-पश्चिमी तट पर |
(ii) ब्राजील धारा |
(य) दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर |
(iii) पेरू की धारा |
(ल) दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर |
(iv) बेंगुएला धारा |
(अ) दक्षिणी अफ्रीका के दक्षिणी-पश्चिमी तट पर |
(v) पूर्वी ऑस्ट्रेलियन धारा |
(र) ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग में |
(vi) क्यूराइल धारा |
(ब) साइबेरिया के पूर्वी तट पर |
(vii) लैब्रोडोर धारा |
(द) बेफिन की खाड़ी से न्यू फाउण्ड लैंड उभार तक |
(viii) कैलीफोर्निया धारा |
(स) उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर |
रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न
निम्न वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
सत्य-असत्य कथन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न कथनों में से सत्य-असत्य कथन की पहचान कीजिए
उत्तर:
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
महासागरीय धाराएँ एवं लहरें महासागरीय जल की किस गति से सम्बन्धित हैं ?
उत्तर:
क्षैतिज गति से।
प्रश्न 2.
ज्वार-भाटा महासागरीय जल की किस गति से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
ऊर्ध्वाधर गति से।
प्रश्न 3.
सागरीय जल ऊपर-नीचे क्यों होता है?
उत्तर:
सूर्य व चंद्रमा के आकर्षण के कारण सागरीय जल ऊपर-नीचे होता है।
प्रश्न 4.
तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
तरंगें वास्तव में ऊर्जा है जल नहीं जो कि महासागरीय सतह के आर-पार गति करती हैं।
प्रश्न 5.
तरंग शिखर व तरंग गर्त क्या है?
उत्तर:
तरंग के उच्चतम व निम्नतम बिन्दुओं को क्रमशः तरंग शिखर व गर्त कहा जाता है।
प्रश्न 6.
महासागरीय धाराएँ क्या हैं ?
उत्तर:
महासागरों में जल के एक निश्चित मार्ग एवं दिशा में नियमित प्रवाह को महासागरीय धाराएँ कहते हैं।
प्रश्न 7.
धाराओं एवं तरंगों में एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
धाराओं में जल एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता है जबकि तरंगों में जल गति नहीं करता है।
प्रश्न 8.
उर्मिकाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
वायु सरिता की धारा अथवा समुद्री लहरों द्वारा विशेष रूप से रेत पर बनने वाली मोटी और लगभग समानान्तर कटक को उर्मिकाएँ कहते हैं।
प्रश्न 9.
तरंग के उच्चतम बिन्दु का पता किस प्रकार लगाया जाता है ?
उत्तर:
तरंग के उच्चतम बिन्दु का पता वायु की तीव्रता के द्वारा लगाया जाता है।
प्रश्न 10.
तरंग की ऊँचाई क्या है ?
उत्तर:
एक तरंग के गर्त के अधःस्तल से शिखर के ऊपरी भाग तक की ऊर्ध्वाधर दूरी तरंग की ऊँचाई कहलाती
प्रश्न 11.
तरंग काल क्या है ?
उत्तर:
तरंग काल एक निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो लगातार शिखरों या गर्तों के मध्य का समयान्तराल है।
प्रश्न 12.
तरंग गति क्या है ? इसके मापन की इकाई बताइए।
उत्तर:
जल के माध्यम से तरंग के गति करने की दर को तरंग गति कहते हैं। इसे नॉट में मापा जाता है।
प्रश्न 13.
तरंग आयाम और तरंगदैर्ध्य में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
तरंग की ऊँचाई का आधा तरंग आयाम कहलाता है जबकि लगातार दो शिखरों या गर्तों के मध्य की क्षैतिज दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है।
प्रश्न 14.
महोर्मि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जलवायु सम्बन्धी प्रभावों (वायु एवं वायुमण्डलीय दाब में परिवर्तन) के कारण जल की गति को महोर्मि कहा जाता है।
प्रश्न 15.
विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार-भाटा कहाँ आता है ?
उत्तर:
विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार-भाटा कनाडा के नवास्कोशिया में स्थित फंडी की खाड़ी में आता है।
प्रश्न 16.
ज्वारीय धारा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब ज्वार-भाटा द्वीपों के मध्य से या खाड़ियों तथा ज्वरनद मुखों में से गुजरता है तो उसे ज्वारीय धारा कहते हैं।
प्रश्न 17.
आवृत्ति के आधार पर ज्वार-भाटा के प्रकार बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 18.
सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वार-भाटा के प्रकार बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 19.
उपभू क्या है?
उत्तर:
महीने में एक बार जब चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है तो उस स्थिति को उपभू कहते हैं।
प्रश्न 20.
अपभू क्या है ?
उत्तर:
महीने में एक बार जब चन्द्रमा पृथ्वी से सबसे दूर होता है तो उस स्थिति को अपभू कहते हैं।
प्रश्न 21.
बहाव या बाढ़ क्या है ?
उत्तर:
उच्च ज्वार एवं निम्न ज्वार के मध्य का समय, जब ज्वार ऊपर चढ़ता है तो उसे बहाव या बाढ़ कहते हैं।
प्रश्न 22.
ज्वार का प्रयोग विद्युत शक्ति के रूप में किन-किन देशों में किया जाता है ?
उत्तर:
कनाडा, फ्रांस, रूस एवं चीन में।
प्रश्न 23.
भारत में ज्वारीय ऊर्जा पर आधारित संयंत्र कहाँ लगाया जा रहा है ?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन के दुर्गा दुवानी में।
प्रश्न 24.
महासागरीय धाराएँ किन-किन बलों के द्वारा प्रभावित होती हैं ?
उत्तर:
महासागरीय धाराएँ दो प्रकार के बलों द्वारा प्रभावित होती हैं
प्रश्न 25.
कौन-कौन से प्राथमिक बल धाराओं को प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
धाराओं को प्रभावित करने वाले प्राथमिक बल निम्नलिखित हैं
प्रश्न 26.
गहराई के आधार पर महासागरीय धाराओं के प्रकार बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 27.
तापमान के आधार पर धाराओं को विभाजित कीजिए।
उत्तर;
प्रश्न 28.
हिन्द महासागर की किन्हीं दो धाराओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 29.
अंध महासागर की किन्हीं दो जलधाराओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 30.
प्रशांत महासागर की किन्हीं दो जलधाराओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1 प्रश्न)
प्रश्न 1.
महासागरीय जल में कितने प्रकार की गतियाँ होती हैं ?
उत्तर:
महासागरीय जल में निम्नलिखित दो प्रकार की गतियाँ होती हैं
(1) क्षैतिज गति-महासागरीय धारायें व लहरें महासागरीय जल की क्षैतिज गति से सम्बन्धित होती हैं। महासागरीय धारायें एक निश्चित दिशा में बहुत बड़ी मात्रा में जल का लगातार प्रवाह करती रहती हैं। धाराओं में जल एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता है जबकि लहरों में जल गति नहीं करता है लेकिन लहर के आगे बढ़ने का क्रम जारी रखता है।
(2) ऊर्ध्वाधर गति-सागरीय जल में आने वाले ज्वार-भाटा उसकी ऊर्ध्वाधर गति से सम्बन्धित होते हैं।
प्रश्न 2.
महासागरीय तरंगों/लहरों से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय जल की सतह पर सदैव लहरें उठती व गिरती रहती हैं। रिचर्ड के मतानुसार, "लहरें महासागर की तरल सतह का विक्षोभ हैं।" यह महासागरीय जल की सबसे व्यापक तथा सर्वत्र होने वाली गति है। महासागरीय लहरों की उत्पत्ति के दो मुख्य कारण हैं
(i) पवन का चलना तथा
(ii) भूपटल में गति होने से जल की सतह का तरंगित होना।-लहरें महासागरीय सतह की दोलायमान गति हैं। इसमें सागर के जल का स्तर नीचा या ऊँचा होता रहता है, परन्तु अपने स्थान से बहकर अन्य स्थान पर नहीं जाता। यदि कोई तैरने वाली वस्तु (जैसे-लकड़ी का टुकड़ा) जल स्तर पर फेंक दी जाए तो वह अपने ही स्थान पर ऊपर नीचे या आगे-पीछे होती रहेगी, जबकि तरंगें आगे बहती दिखाई देंगी।
प्रश्न 3.
महासागरीय धाराओं एवं तरंगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं एवं तरंगों में निम्नलिखित अन्तर हैं-
प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा के समय में मिलने वाले अन्तर को स्पष्ट कीजिए। अथवा ज्वार-भाटा के समय में अन्तर क्यों मिलता है?
उत्तर:
प्रत्येक स्थान पर ज्वार 12 घण्टे 26 मिनट के अंतराल के बाद आता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घण्टे में एक चक्कर पूरा करती है। इस प्रकार प्रत्येक स्थान पर 12 घण्टे बाद ज्वार उत्पन्न होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता है। इस अन्तर के लिए प्रमुख उत्तरदायी कारण यह है कि पृथ्वी का एक परिभ्रमण पूर्ण होने पर चन्द्रमा भी अपने पथ पर आगे बढ़ जाता है। चन्द्रमा 28 दिन में पृथ्वी की परिक्रमा पूर्ण करता है। 24 घण्टे या एक दिन में यह वृत्त का 1/28 भाग तय कर लेता है। पृथ्वी का वह स्थान चन्द्रमा के समक्ष पहुँचने में 52 मिनट लगाता है। अतः प्रत्येक स्थान पर 12 घण्टे 26 मिनट बाद दूसरा ज्वार आता है।
प्रश्न 5.
दैनिक एवं अर्द्ध-दैनिक ज्वार में क्या अन्तर है?
उत्तर:
दैनिक एवं अर्द्ध-दैनिक ज्वार में निम्नलिखित अन्तर हैं
प्रश्न 6.
मिश्रित ज्वार क्या हैं ? ये कहाँ आते हैं ?
उत्तर:
ऐसा ज्वार-भाटा जिनकी ऊँचाई में भिन्नता होती है, मिश्रित ज्वार कहलाता है। ये ज्वार-भाटा मुख्यत: उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट एवं प्रशांत महासागर के अनेक द्वीप समूहों पर उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 7.
वृहत् ज्वार-भाटा क्या है ? यह कब आता है ?
उत्तर:
जब पृथ्वी, सूर्य एवं चन्द्रमा तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं तो ज्वारीय उभार अधिकतम होता है। इसे वृहत ज्वार-भाटा कहते हैं। यह पूर्णिमा व अमावस्या को आता है।
प्रश्न 8.
निम्न ज्वार क्या है ?
उत्तर:
जब सूर्य व चन्द्रमा एक-दूसरे के समकोण पर होते हैं तो सूर्य व चन्द्रमा के गुरुत्व बल एक-दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं। ऐसी स्थिति में ज्वारीय उभार निम्नतम होता है, इसे निम्न ज्वार कहते हैं।
प्रश्न 9.
उपभू तथा अपभू की स्थिति में ज्वार-भाटा पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
महीने में एक बार जब चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है, उस स्थिति को उपभू कहा जाता है। इस स्थिति में असामान्य रूप से उच्च ज्वार तथा निम्न ज्वार उत्पन्न होते हैं।
दो सप्ताह बाद अपभू की स्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर स्थित होता है, ऐसी स्थिति में चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल सीमित होता है, जिससे ज्वार-भाटा के क्रम उनकी औसत ऊँचाई से कम होते हैं।
प्रश्न 10.
उपसौर तथा अपसौर की स्थिति में ज्वार-भाटा पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट होती है, यह स्थिति उपसौर कहलाती है। 3 जनवरी के आसपास उच्च व निम्न ज्वारों के क्रम भी असामान्य रूप से अधिक होते हैं।
4 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है, यह स्थिति अपसौर कहलाती है। प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई के आसपास ज्वार के क्रम औसत की अपेक्षा बहुत कम होते हैं!
प्रश्न 11.
समस्त महासागरीय बेसिनों में वृहत् वृत्ताकार धाराएँ क्यों उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर:
कॉरिऑलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में जल की गति की दिशा के दायीं ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर प्रवाहित होता है तथा उनके चारों ओर बहाव को वलय कहा जाता है। इनके कारण समस्त महासागरीय बेसिनों में वृहत् वृत्ताकार धाराएँ उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 12.
कॉरिऑलिस बल धाराओं को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर:
पृथ्वी की परिभ्रमण गति से उत्पन्न कॉरिऑलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में सागरीय जलधाराओं की गति की दिशा में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर परिवर्तन हो जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के कुछ सागरीय भागों में सागरीय धाराएँ पृथ्वी के इसी विक्षेपक बल (कॉरिऑलिस बल) के प्रभाव से एक वृहत् वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हैं, जिससे सागरीय धाराओं का लगभग बन्द क्रम निर्मित होता है जिसे वलय या गाइरे (Gyre) कहा जाता है।
प्रश्न 13.
महासागरीय धाराओं की विशेषताएँ बताइए। उत्तर-महासागरीय धाराओं की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2) प्रश्न)
प्रश्न 1.
गुरुत्वाकर्षण बल किस प्रकार ज्वार-भाटा की उत्पत्ति में सहायक है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न पिण्डों द्वारा वस्तुओं को अपनी ओर खींचने की शक्ति को गुरुत्वाकर्षण बल या अभिकेन्द्रीय बल कहते हैं। इस बल के कारण ब्रह्माण्ड में विभिन्न पिण्डों में सन्तुलन बना हुआ है और वे अपनी जगह स्थित हैं। ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में गुरुत्वाकर्षण बल की निम्न विशेषताएँ हैं
चूँकि पृथ्वी अपनी कीली पर परिभ्रमण करती है और यह अवधि 24 घण्टे की है अतएव सभी स्थान क्रमानुसार नियमित रूप से ज्वार-भाटे की स्थिति में आते रहते हैं।
प्रश्न 2.
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अपकेन्द्रीय बल की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अपकेन्द्रीय बल विभिन्न पिण्डों का वह बल है जिससे विभिन्न वस्तुएँ बाहर की ओर हटने का प्रयास करती हैं। ज्वार की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पृथ्वी के अपकेन्द्रीय बल की निम्नांकित भूमिका होती है
प्रश्न 3.
आवृत्ति के आधार पर ज्वार-भाटा के प्रकार बताइए।
उत्तर:
आवृत्ति के आधार पर ज्वार-भाटा के निम्नलिखित तीन प्रकार होते हैं
प्रश्न 4.
कनाडा की फण्डी खाड़ी में ज्वार-भाटा की क्या स्थिति रहती है ?
उत्तर:
कनाडा के नवास्कोशिया में स्थित फण्डी खाड़ी में विश्व के सबसे ऊँचे ज्वार-भाटा अनुभव किये जाते हैं। यहाँ ज्वारीय उभार की ऊँचाई 15 से 16 मीटर के मध्य रहती है क्योंकि वहाँ पर प्रतिदिन दो उच्च ज्वार तथा दो निम्न ज्वार अनुभव किये जाते हैं। इसी कारण एक दिन (24 घण्टे) में प्रति छह घण्टे पर एक ज्वार अवश्य आता है। अनुमानतः एक घण्टे में लगभग 24 मीटर ऊँचा ज्वारीय उभार आता है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक मिनट में ज्वार 4 सेमी. अधिक ऊपर की ओर उठता है।
प्रश्न 5.
दीर्घ ज्वार व लघु ज्वार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्तर का आधार |
दीर्घ ज्वार |
लघु ज्वार |
1. उत्पन्न होने का समय |
इस प्रकार का ज्वार अमावस्या व पूर्णिमा के दिन उत्पन्न होता है। |
इस प्रकार का ज्वार कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आता है। |
2. उत्पत्ति का कारण |
इस प्रकार के ज्वार सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा के एक सीध में आने से उत्पन्न होते हैं। |
इस प्रकार के ज्वार सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा के समकोण की स्थिति में आने से उत्पन्न होते हैं। |
3. गुरुत्वाकर्षण की स्थिति |
इस प्रकार के ज्वारों के पीछे गुरुत्वाकर्षण का अधिक होना उत्तरदायी है। |
इस प्रकार के ज्वारों में गुरुत्वाकर्षण का कम होना उत्तरदायी होता है। |
4. लहरों की ऊँचाई |
इस प्रकार के ज्वारों में लहरों की ऊँचाई अधिक होती है। |
इस प्रकार के ज्वारों में लहरों की ऊँचाई कम होती है। |
प्रश्न 6.
उपभू व अपभू तथा उपसौर व अपसौर की स्थिति में ज्वार-भाटा पर प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
उपभू व अपभू की स्थिति में ज्वार-भाटा पर प्रभाव–महीने में एक बार जब चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है, उस स्थिति को उपभू कहा जाता है। इस स्थिति में असामान्य रूप से उच्च ज्वार तथा निम्न ज्वार उत्पन्न होते हैं। दो सप्ताह बाद अपभू की स्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर स्थित होता है, ऐसी स्थिति में चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल सीमित होता है, जिससे ज्वार-भाटा के क्रम उनकी औसत ऊँचाई से कम होते हैं। उपसौर व अपसौर की स्थिति में ज्वार भाटा पर प्रभाव-3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट होती है, यह स्थिति उपसौर कहलाती है। 3 जनवरी के आसपास उच्च व निम्न ज्वारों के क्रम भी असामान्य रूप से अधिक होते हैं। 4 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है, यह स्थिति अपसौर कहलाती है। प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई के आसपास ज्वार के क्रम औसत की अपेक्षा बहुत कम होते हैं।
प्रश्न 7.
ज्वार-भाटा के महत्व को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
ज्वार-भाटा का मानव के लिए महत्व निम्न क्षेत्रों में है
प्रश्न 8.
उष्ण एवं शीत धाराओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
गर्म एवं ठण्डी धाराओं की तुलना कीजिए।
उत्तर:
उष्ण एवं शीत धाराओं में निम्न अन्तर पाये जाते हैं
अन्तर का आधार |
उष्ण (गम) धाराएँ |
शीत (ठणडी) धाराएँ |
1. धाराओं का बह्मव |
ये धाराएँ उष्ण क्षेत्रों से ठण्डे क्षेत्रों की ओर चलती हैं। |
इन धाराओं का प्रवाहन शीत क्षेत्रों से गर्म क्षेत्रों की ओर मिलता है। |
2. अक्षांशीय आधार पर प्रवाहन |
ये धाराएँ भूमध्य रेखीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर चलती हैं। |
ये धाराएँ भ्रुवों से भूमध्य रेखीय क्षेत्रों की ओर चलती हैं। |
3. तापमान पर प्रभाव |
ये धाराएँ जिन क्षेत्रों से गुजरती हैं वहाँ का तापमान बढ़ा देती हैं। |
ये धाराएँ जिन क्षेत्रों से गुजरती हैं वहाँ का तापमान घटा देती हैं। |
4. धाराओं के जल का ताप |
इन धागाओं में जल का तापमान अधिक होता है। |
इन धाराओं में जल का तापमान कम पाया जाता है। |
प्रश्न 9.
महासागरीय धाराओं को तापमान के आधार पर वर्गीकृत कीजिए। उत्तर–महासागरीय जल के तापमान के आधार पर महासागरीय धाराओं को निम्नलिखित वर्गों में रखा जाता है-
(1) ठण्डी जल धाराएँ-ये धाराएँ सागर का ठण्डा जल गर्म जल क्षेत्रों में लाती हैं तथा महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर निम्न व मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में प्रवाहित मिलती हैं, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में ये जल धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर प्रवाहित मिलती हैं।
(2) गर्म जल धाराएँ यह धाराएँ सागर के गर्म जल को ठण्डे जल क्षेत्रों में पहँचाती हैं तथा निम्न व मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में ये जल धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती हैं जबकि उत्तरी गोलार्द्ध के उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में यह महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर प्रवाहित मिलती हैं।
प्रश्न 10.
महासागरीय धाराओं के विभिन्न प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं के बहुआयामी प्रभाव हैं, जो निम्न प्रकार हैं
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
तरंग से क्या आशय है ? तरंगों की गति एवं तरंग का आकार व आकृति की स्थितियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तरंग से आशय-वायु के सतत् प्रवाह व अन्य शक्तियों के कारण सागरीय जल में संचलन या गति उत्पन्न होती है। इन शक्तियों के प्रभाव से कभी सागरीय जल आगे बढ़ता है तो कभी पीछे लौटता है। वह नदी के जल की तरह अपना स्थान नहीं छोड़ता वरन् सागरीय जल के आगे बढ़ने तथा पीछे लौटने में सागरीय जल के कण अपने ही स्थान पर वृत्ताकार रूप में संचलन करते हैं। सागरीय जल के क्रमिक रूप से उठाव या गिराव को तरंग कहा जाता है। तरंगों की गति वायु महासागरीय जल को ऊर्जा प्रदान करती है जिसके परिणामस्वरूप तरंगें उत्पन्न होती हैं। वायु प्रवाह के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा तरंगों को प्राप्त ऊर्जा तट रेखा पर विमुक्त हो जाती है। जैसे ही एक तरंग महासागरीय तट पर पहुँचती है, तरंग की गति कम हो जाती है। ऐसा गति कर रहे सागरीय जल के मध्य परस्पर घर्षण के कारण होता है।
सागरीय तट पर तरंग उस समय टूटती है जब जल की गहराई तरंग के तरंगदैर्ध्य के आधे से कम रह जाती है। तरंगें जैसे-जैसे आगे बढ़ती जाती हैं, तो वे बड़ी होती जाती हैं तथा वायु से ऊर्जा का अवशोषण करती जाती हैं। जब दो नॉट या उससे कम गति वाली वायु शान्त जल पर प्रवाहित होती है, तब छोटी-छोटी उर्मिकाओं (Ripples) का निर्माण होता है। वायु की गति बढ़ने पर उर्मिकाओं का आकार उस समय तक बढ़ता जाता है, जब तक इनके टूटने से सफेद बुलबुले नहीं बन जाते। वस्तुतः तरंगें तट के समीप पहुँचने, टूटने तथा सफेद बुलबुलों में सर्फ की भाँति घुलने से पूर्व हजारों किमी. की लम्बी यात्रा तय कर चुकी होती हैं।
तरंग का आकार व आकृति-एक तरंग का आकार व आकृति उसकी उत्पत्ति से सम्बन्धित होती है। युवा तरंगें अपेक्षाकृत अधिक ढाल वाली होती हैं तथा सामान्यतः स्थानीय वायु के कारण निर्मित होती हैं। कम व नियमित गति करने वाली तरंगों की उत्पत्ति दूरस्थ स्थानों पर होती हैं। तरंग के उच्चतम बिन्दु का पता वायु की तीव्रता से लगाया जाता है। तरंगें सागर में हमें चलती हुई दिखायी देती हैं जबकि वास्तव में तरंग में जल कण अपना स्थान स्थायी रूप से नहीं छोड़ते वरन् वह अपनी सामान्य स्थिति से ऊपर व नीचे वृत्ताकार रूप में कम्पन करते रहते हैं।
तरंगों के नीचे जल की गति वृत्ताकार होती है। यह इंगित करता है कि आती हुई तरंग पर वस्तुओं का वहन आगे तथा ऊपर की ओर होता है जबकि लौटती तरंग पर नीचे तथा पीछे की ओर। सागरीय भागों में वायु प्रवाह व दबाव के प्रभाव से सागरीय जल के कण लगातार कम्पन करते रहते हैं जिसके कारण सागरीय भागों में लगातार विक्षोभ उत्पन्न होते रहते हैं। यह विक्षोभ चूँकि वायु द्वारा उत्पन्न होते हैं, अतः इन विक्षोभों को प्रगामी तरंगें या प्रगामी वायु तरंगें कहा जाता है। सागरीय जल में तरंग का जब जन्म होता है तो तरंग का कुछ भाग उठा दिखाई देता है तथा कुछ नीचे दबा रहता है। तरंग का ऊपर उठा भाग शिखर (Crest) तथा नीचे दबा भाग द्रोणी (Trough) कहलाता है।
प्रश्न 2.
ज्वार-भाटा किसे कहते हैं ? ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटा से आशय-चन्द्रमा एवं सूर्य के आकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार सागरीय तल के नियतकालिक उठने व गिरने को ज्वार-भाटा कहा जाता है।
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के कारण-ज्वार-भाटा की उत्पत्ति निम्नलिखित कारणों से मानी जाती है-
(1) गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force)-विभिन्न पिण्डों द्वारा वस्तुओं को अपनी ओर खींचने की शक्ति को गुरुत्वाकर्षण बल या अभिकेन्द्रीय बल कहते हैं। इस बल के कारण ब्रह्माण्ड में विभिन्न पिण्डों में सन्तुलन बना हुआ है और वे अपनी जगह स्थित हैं। ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में गुरुत्वाकर्षण बल की निम्न विशेषताएँ हैं-
(2) अपकेन्द्रीय बल (Centrifugal Force)-अपकेन्द्रीय बल विभिन्न पिण्डों का वह बल है जिससे विभिन्न वस्तुएँ बाहर की ओर हटने का प्रयास करती हैं। ज्वार की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पृथ्वी के अपकेन्द्रीय बल की निम्नांकित भूमिका होती है-
संक्षेप, में गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेन्द्रीय बल में अन्तर के कारण ज्वार की उत्पत्ति होती है।
प्रश्न 3.
आवृत्ति तथा सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति के आधार पर ज्वार-भाटा के प्रकार एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आवृत्ति के आधार पर ज्वार-भाटा के निम्नलिखित तीन प्रकार होते हैं
(1) अर्द्ध-दैनिक ज्वार (Semi-Diurnal Tide)-प्रत्येक स्थान पर दिन में दो बार आने वाले ज्वार को दैनिक ज्वार-भाटा कहा जाता है। दो लगातार उच्च व निम्न ज्वार लगभग समान ऊँचाई के होते हैं।
(2) दैनिक ज्वार (Diurnal Tide)-इसमें प्रतिदिन केवल एक उच्च तथा एक निम्न ज्वार आता है। यह ज्वार प्रतिदिन 52 मिनट की देरी से चन्द्रमा के खिसकाव के कारण आता है। उच्च व निम्न ज्वारों की ऊँचाई समान होती है।
(3) मिश्रित ज्वार (Mixed Tide)-ऐसे ज्वार-भाटा जिनकी ऊँचाई में भिन्नता मिलती है उन्हें मिश्रित ज्वार कहा जाता है। यह ज्वार प्रमुख रूप से उत्तरी अमेरिका के प्रशान्त तट तथा प्रशान्त महासागरीय द्वीप समूहों पर अनुभव किये जाते हैं। सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति के आधार पर ज्वार-भाटा के प्रकार-सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी की सापेक्षिक स्थिति के आधार पर
निम्नलिखित प्रकार के ज्वार-भाटा होते हैं-
(1) दीर्घ या वृहत् ज्वार (Spring Tide)-दीर्घ ज्वार अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन आते हैं। इन दिनों में सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी तीनों एक सरल रेखा में होते हैं। अतः गुरुत्वाकर्षण बल सागरीय भागों पर सर्वाधिक प्रभावशाली रूप में कार्य करता है। इसलिए सागरीय जल में सर्वाधिक ऊपर उठने की प्रवृत्ति होती है। अमावस्या के दिन पृथ्वी, चन्द्रमा एवं सूर्य एक क्रम में होते हैं अर्थात् चन्द्रमा एवं सूर्य की स्थिति पृथ्वी के एक ओर होती है। इस स्थिति को 'युति' कहते हैं। इस स्थिति में सूर्य एवं चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति सम्मिलित रूप से पृथ्वी पर पड़ती है इसलिए उच्च ज्वार का अनुभव किया जाता है। इस ज्वार की ऊँचाई सामान्य ज्वार से 20% प्रतिशत अधिक होती है। इस समय अप्रत्यक्ष ज्वार वाले स्थानों पर भी उच्च ज्वार होता है क्योंकि सूर्य एवं चन्द्रमा के सम्मिलित गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी भी इन ग्रहों की ओर कुछ आकर्षित हो जाती है।
अतः अप्रत्यक्ष ज्वार वाले स्थान पर एवं पृथ्वी के बीच बनी रिक्तता के कारण उच्च ज्वार उत्पन्न होता है। पूर्णमा के दिन पृथ्वी की स्थिति सूर्य एवं चन्द्रमा के बीच हो जाती है। इस स्थिति को "वियुति' कहते हैं। इस समय चन्द्रमा की ओर वाले स्थान पर चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति एवं पृथ्वी की अपकेन्द्रीय शक्ति के कारण उच्च ज्वार आता है। इसके विपरीत दूसरी ओर सूर्य की आकर्षण शक्ति एवं पृथ्वी के अपकेन्द्रीय बल के फलस्वरूप वृहत् ज्वार उत्पन्न होता है।
(2) लघु या निम्न ज्वार (Neap Tide)-प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की सप्तमी एवं अष्टमी को सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा तीनों समकोणिक स्थिति में होते हैं। फलस्वरूप, सूर्य एवं चन्द्रमा के ज्वारोत्पादक बल एक-दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं। जिस कारण सामान्य ज्वार से भी नीचा ज्वार आता है। इसे लघ ज्वार कहा जाता है। इसकी ऊँचाई सामान्य ज्वार की अपेक्षा 20% नीची होती है। इस समय भाटा की निचाई भी सामान्य भाटा से कम होती है। इस समय ज्वार तथा भाटे के जल की ऊँचाई का अन्तर बहुत कम होता है।
ज्वार भाटा का महत्त्व-ज्वार-भाटा का मानव के लिये महत्व निम्न क्षेत्रों में है-
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से ज्वार-भाटा का कारण है
(A) चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल
(B) सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल
(C) अपकेन्द्रीय बल
(D) पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल
दिए गए कूटों से सही उत्तर का चयन कीजिए
(क) A, B व C
(ख) A, B व D
(ग) A, B, C व D
(घ) केवल A व B
उत्तर:
(क) A, B व C
प्रश्न 2.
सूर्य की अपेक्षा चंद्रमा का ज्वार-भाटा उत्पन्न करने का बल लगभग है?
(क) 2.89 गुना
(ख) 3.18 गुना
(ग) 1.65 गुना
(घ) 2.17 गुना
उत्तर:
(घ) 2.17 गुना
प्रश्न 3.
निम्न में से कौनसी ठंडी जलधाराएँ हैं। है?
(A) पेरू धारा
(B) अलनीनो
(C) कैलिफोर्निया धारा
(D) नार्वे धारा
दिए गए कूटों में से सही उत्तर का चयन करें
(क) A व C सही हैं।
(ख) A, B व C सही हैं। (ग) A, B, C व D सही हैं।
(घ) A, C व D सही हैं।
उत्तर:
(क) A व C सही हैं।
प्रश्न 4.
निम्न में से कौनसी महासागरीय धाराएँ मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदलती हैं?
(क) अटलांटिक महासागर की उत्तर एवं दक्षिण विषुवतीय धारा
(ख) हिंद महासागर की उत्तर विषुवतीय धारा
(ग) दक्षिण अटलांटिक महासागर की दक्षिण विषुवतीय धारा
(घ) उत्तरी अटलांटिक प्रवाह।
उत्तर:
(ख) हिंद महासागर की उत्तर विषुवतीय धारा
प्रश्न 5.
निम्न में से कौनसी एक ठंडी महासागरीय धारा नहीं है?-
(क) बेंगुला
(ख) पेरू
(ग) कनारी
(घ) अगुलहास
उत्तर:
(घ) अगुलहास
प्रश्न 6.
जब सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी एक सरल रेखा में हों तो ज्वार होगा?
(क) लघु ज्वार
(ख) दीर्घ ज्वार
(ग) दैनिक ज्वार
(घ) मिश्रित ज्वार
उत्तर:
(ख) दीर्घ ज्वार
प्रश्न 7.
नीचे दो कथन दिए गए हैं, एक को अभिकथन (A) व दूसरे को कारण (R) के रूप में दिया गया है। नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर चुनिए।
अभिकथन (A) : पृथ्वी पर आने वाले ज्वार का अधिकतम प्रतिशत सूर्य की तुलना में चन्द्रमा उत्पन्न करता है।
कारण (R) : चन्द्रमा की तुलना में सूर्य पृथ्वी के ज्यादा समीप है।
कूट :
(क) कूट (A) व (R) दोनों सही हैं व (R), (A) की सही व्याख्या है
(ख) (A) व (R) दोनों सही हैं, परन्तु (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है।
(ग) (A) सही है किन्तु (R) गलत है।
(घ) (A) गलत है किन्तु (R) सही है।
उत्तर:
(ग) (A) सही है किन्तु (R) गलत है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा सभी ज्वारों के सर्वाधिक संचलन के लिए उत्तरदायी है?
(क) महासागर का आकार
(ख) महाद्वीपों की आकृति
(ग) लैब्रोडोर धारा
(घ) महासागर की लवणता।
उत्तर:
(ग) लैब्रोडोर धारा
प्रश्न 9.
पृथ्वी की सतह से दूरी के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रतिशत भूमि-उच्च की अपेक्षा चन्द्रमा की भूमि नीच के लिए सही है?
(क) 2%
(ख) 5%
(ग) 8%
(घ) 12%।
उत्तर:
(क) 2%
प्रश्न 10.
नीचे दो कथन दिए गए हैं, एक को अभिकथन (A) व दूसरे को कारण (R) के रूप में दिया गया है। नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर चुनिए-
अभिकथन (A) : महासागरों के पश्चिमी भाग उनकी पूर्वी सीमाओं की तुलना में हमेशा अधिक गर्म होते हैं।
कारण (R) : प्रमुख महासागरीय धाराओं की गति पश्चिमी सीमाओं में होती है।
कूट :
(क) (A) और (R) दोनों सही हैं और (R), (A) की सही व्याख्या है।
(ख) (A) और (R) दोनों सही हैं, परन्तु (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है।
(ग) (A) सही है परन्तु (R) गलत है।
(घ) (A) गलत है परन्तु (R) सही है।
उत्तर:
(क) (A) और (R) दोनों सही हैं और (R), (A) की सही व्याख्या है।
प्रश्न 11.
जब सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सरल रेखीय दिशा में होते हैं तब ज्वारीय तरंगों को क्या कहा जाता है?
(क) सिजजई (युक्ति-अयुक्ति बिन्दु)
(ख) संयोजक
(ग) क्वाडरेचर
(घ) अपोसीयन।
उत्तर:
(क) सिजजई (युक्ति-अयुक्ति बिन्दु)
प्रश्न 12.
निम्नलिखित समुद्री धाराओं में से गर्म समुद्री धारा कौन-सी है?
(क) कैलीफोर्निया
(ख) लैब्रोडोर
(ग) क्यूरोशियो
(घ) ओयाशियो।
उत्तर:
(ग) क्यूरोशियो
प्रश्न 13.
सारगैसो सागर सर्वोत्तम रूप से विकसित है
(क) हिन्द महासागर में
(ख) उत्तर प्रशान्त महासागर में
(ग) उत्तर अटलांटिक महासागर में
(घ) दक्षिणी प्रशान्त महासागर में।
उत्तर:
(ग) उत्तर अटलांटिक महासागर में
प्रश्न 14.
निम्नलिखित स्थितियों में से किसमें चन्द्रमा की परिधि पृथ्वी के सबसे निकट होती है?
(क) अपभू
(ख) अपसौर
(ग) उपसौर
(घ) उपभू।
उत्तर:
(घ) उपभू।
प्रश्न 15.
प्रगतिशील तरंग सिद्धान्त सम्बन्धित है
(क) महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति से
(ख) ज्वार-भाटा की उत्पत्ति से
(ग) वायुराशियों की उत्पत्ति से
(घ) प्रवाल भित्तियों की उत्पत्ति से।
उत्तर:
(ख) ज्वार-भाटा की उत्पत्ति से
प्रश्न 16.
शीतकाल में जो महासागरीय धारा चलना बंद हो जाती है, वह है
(क) हिन्द महासागर में उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा
(ख) उत्तरी प्रशान्त महासागरीय ड्रिफ्ट
(ग) अगुलहास धारा
(घ) उरी अटलांटिक ड्रिफ्ट।
उत्तर:
(क) हिन्द महासागर में उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा
प्रश्न 17.
निम्नांकित में से कौन-सा सिद्धान्त महासागरीय ज्वार से सम्बन्धित नहीं है?
(क) सन्तुलन सिद्धान्त
(ख) भू-सन्तुलन सिद्धान्त
(ग) प्रगामी तरंग सिद्धान्त
(घ) स्थैतिक तरंग सिद्धान्त
उत्तर:
(ख) भू-सन्तुलन सिद्धान्त
प्रश्न 18.
एक स्थान पर आने में जितना विलम्ब होता है, वह है
(क) it. मिनट
(ख) 52 मिनट
(ग) 1 घण्टा
(घ) 2 घण्टे।
उत्तर:
(क) it. मिनट
प्रश्न 19.
ज्वार भाटा किसे कहते है ?
उत्तर:
सूर्य व चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने व नीचे गिरने को ज्वार-भाटा कहते हैं।
प्रश्न 20.
अगुलहास धारा।
उत्तर:
हिंद महासागर में अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी-पूर्वी तट के सहारे प्रवाहित होने वाली गर्म जलधारा को अगुलहास जलधारा के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 21.
लघु ज्वार।
उत्तर:
प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की सप्तमी एवं अष्टमी को सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा तीनों समकोणिक स्थिति में होते हैं। फलस्वरूप सूर्य एवं चन्द्रमा के ज्वारोत्पादक बल एक-दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं। जिस कारण सामान्य ज्वार से भी नीचा ज्वार आता है। इसे लघु ज्वार कहा जाता है। इसकी ऊँचाई सामान्य ज्वार की अपेक्षा 20% नीची होती है। इस समय भाटा की निचाई भी सामान्य भाटा से कम होती है। इस समय ज्वार तथा भाटे के जल की ऊँचाई का अन्तर बहुत कम होता है।
प्रश्न 22.
कीचड़दार जलधारा
उत्तर:
जब एक नदी अवसाद सहित झील या सागर में प्रवेश करती है तथा उसके अन्दर आन्तरिक जलधारा के रूप में उपर्युक्त अवसाद सहित प्रवाह यथावत रहता है, कीचड़दार जलधारा कहलाती है।
प्रश्न 23.
भँवर बिन्दु।
उत्तर:
आर.ए. हैरिस के ज्वारीय उत्पत्ति सम्बन्धी स्थैतिक तरंग सिद्धान्त के अनुसार चन्द्रमा के ज्वारीय बल एवं पृथ्वी के घूर्णन के कारण सागरों में बनने वाले विशेष जल उभार केन्द्र जिसके चारों ओर जलीय तरंगें घड़ी की सुइयों की दिशा के विपरीत दिशा में चक्कर लगाती रहती हैं, उसे भँवर बिन्दु कहते हैं।
प्रश्न 24.
गल्फ स्ट्रीम यूरोपियन देशों के पर्यावरण व अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम की जलधारा की उष्णता के कारण यूरोप के पश्चिमी तट वर्षभर यातायात के लिए खुले रहते हैं। इस जलधारा के कारण यहाँ मत्स्य व्यवसाय भी पर्याप्त मात्रा में विकसित हुआ है।
प्रश्न 25.
धाराएँ कितने प्रकार की होती हैं ? धाराओं के चलने के कारणों को विस्तार से समझाइए। जलवायु पर धाराओं का प्रभाव बताइए। स्कूल व्याख्याता (भूगोल) परीक्षा
उत्तर:
तापमान, गति एवं प्रवाह क्षेत्र के आधार पर धाराओं के निम्नलिखित कई प्रकार हैं
तापमान के आधार पर धाराओं के प्रकार-
गति एवं प्रवाह क्षेत्र के आधार पर धाराओं के प्रकार-
धाराओं के चलने के कारण-
महासागरों में धाराओं के चलने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(i) पृथ्वी की परिभ्रमण गति-पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर चक्कर लगाती है। इससे पृथ्वी के मध्यवर्ती या भूमध्य रेखीय भाग में तरल जल पूर्व से पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने लगता है।
(ii) वायुदाब एवं सनातनी पवनें-जहाँ पर उच्च वायुदाब की पेटियाँ पायी जाती हैं वहाँ वायुदाब बढ़ने से जलस्तर थोड़ा नीचे हो जाता है। इसके विपरीत क। वायुदाब वाले क्षेत्रों में जल तल ऊँचा हो जाता है जिस कारण उच्च जल तल से निम्न जल तल की ओर जल गतिशील हो जाता है। ऐसा करते समय वायुदाब द्वारा निर्धारित विशेष दिशा में बहने वाली सनातनी पवनें भी इन धाराओं की दिशा में संशोधन करती हैं। .
(ii) तापक्रम में भिन्नता भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में अत्यधिक सूर्यातप के कारण जल का तापक्रम ऊँचा रहता है। फलस्वरूप जल का घनत्व अत्यधिक कम हो जाता है। इस प्रकार भूमध्य रेखा पर जल की पूर्ति के लिए ध्रुवों की ओर से भूमध्य रेखा की ओर अध:प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है।
(iv) लवणता में भिन्नता सागरीय लवणता से सागरीय जल का घनत्व प्रभावित होता है तथा घनत्व में अन्तर के कारण धाराएँ उत्पन्न होती हैं। अधिक लवणता वाले भाग से जल कम लवणता वाले भाग की ओर गतिशील होने लगता है।
(v) वाष्पीकरण एवं वर्षा अयनवृत्तीय क्षेत्रों में वाष्पीकरण अधिक तथा वर्षा कम होती है, अब वहाँ जल की कमी होने लगती है। दूसरी ओर भूमध्य रेखा के निकट निरन्तर पर्याप्त वर्षा होने तथा वाष्पीकरण होने से जल सतह पर अधिक मात्रा में एकत्रित होता हुआ उत्तर दक्षिण के कम पानी के उच्च वृत्तीय क्षेत्रों की ओर गतिशील होता रहता है।
जलवायु पर धाराओं का प्रभाव-
प्रश्न 26.
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति, दीर्घ व लघु ज्वार तथा ज्वार में आने वाले दैनिक समय के अन्तर की सचित्र व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
महासागरों एवं सागरों के जल-तल में चन्द्रमा तथा सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न उतार-चढ़ाव को ज्वार-भाटा कहा जाता है। ज्वार-भाटा की उत्पत्ति-महासागरों में ज्वार के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण सूर्य एवं चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति है। इसमें भी चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति एवं उसका भ्रमण काल विशेष महत्वपूर्ण है। पृथ्वी के सन्दर्भ में सूर्य व चन्द्रमा की स्थिति अपकेन्द्रीय बल की उत्पत्ति भी ज्वारीय लहर को प्रभावित करती है।
गुरुत्वाकर्षण बल-सूर्य और चन्द्रमा मिलकर एक ही सीध से जल को आकर्षित करते हैं तो सबसे ऊँचा या दीर्घ ज्वार की उत्पत्ति होती है। पृथ्वी के समीप होने के कारण चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति का प्रभाव सूर्य से अधिक रहता है। विशाल सूर्य का आकर्षण छोटे से चन्द्रमा के आकर्षण का आधे सेभी कम रहता है, अतः जो स्थान चन्द्रमा के ठीक नीचे आता जाएगा वहाँ के सागरों में ज्वारीय लहर उठेगी। अपकेन्द्रीय बल-किसी भी तट पर प्रतिदिन दो बार ज्वार एवं दो बार भाटा आता है। इसका कारण पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने के कारण विकसित अपकेन्द्रित बल है।
दीर्घ एवं लघु ज्वार-
दीर्घ ज्वार-जब पूर्णिमा एवं अमावस्या को सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी एक ही तल पर सीध में आते हैं तो दानों ही आकाशीय पिण्डों का आकर्षण पृथ्वी के महासागरों को अपनी ओर अधिक खींचता है। अतः उस दिन सागर का जल सबसे अधिक ऊँचाई पर ऊपर उठता है। इस दशा को दीर्घ या वृहत् ज्वार कहा जाता है। लघु ज्वार-पूर्णिमा और अमावस्या के मध्य अष्टमी की रात्रि को सूर्य एवं चन्द्रमा एक-दूसरे से समकोण स्थिति पर होते हैं। इससे आकर्षण शक्ति का प्रभाव दोनों ओर नियन्त्रित हो जाने से कम रहता है। अतः अष्टमी के दिन ज्वार
के कारण ज्वारीय लहर की ऊँचाई कम रहती है। इस स्थिति को लघु ज्वार कहा जाता है। इस प्रकार एक महीने में दो बार अमावस्या एवं पर्णिमा को दीर्घ ज्वार एवं शक्ल पक्ष एवं कष्ण पक्षकी अष्टमी को दो बार लघु ज्वार आता है। दैनिक ज्वार-भाटे का समय एवं चन्द्रमा की स्थिति - किसी भी समुद्र तट पर जहाँ प्रतिदिन दो ज्वार आते हैं, वहाँ उनके आने का समय प्रतिदिन 52 मिनट आगे खिसक जाता है। पृथ्वी जब 24 घण्टे में एक चक्कर पूर्ण कर पुन: चन्द्रमा के नीचे आती है तब तक चन्द्रमा यहाँ से कुछ आगे बढ़ चुका होता है। अतः इस अतिरिक्त दूरी को पार करने में पृथ्वी को 52 मिनट का अतिरिक्त समय लगता है। इसी कारण अगले दिन का चन्द्र ज्वार 24 घण्टे 52 मिनट में एवं विपरीत स्थिति वाले अपकेन्द्रीय बल के कारण अर्द्ध दैनिक ज्वार इसके ठीक पीछे वाले या आधी दूरी वाले भाग पर 12 घण्टे 26 मिनट पश्चात् आता है।
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