These comprehensive RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 Drawing Chapter 4 Notes भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ
→ ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी बाद अनेक शासकों ने मौर्य साम्राज्य में अलग-अलग हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में शुंग, कण्व, कुषाण और गुप्त शासकों ने अपना आधिपत्य जमा लिया तो दक्षिणी तथा पश्चिमी भारत में सातवाहनों, इक्ष्वाकुओं, अभीरों और वाकाटकों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।
→ इस काल में वैष्णव धर्म और शैव धर्म का भी उदय हुआ।
→ इस काल में मूर्तिकला के कुछ उत्कृष्ट उदाहरण विदिशा, भरहुति (मध्यप्रदेश), बोधगया (बिहार), जगय्यपेट (आंध्रप्रदेश), मथुरा (उत्तर प्रदेश), खंडगिरि-उदयगिरि (ओडिशा), भज (पुणे के निकट) और
पावनी (नागपुर के निकट) महाराष्ट्र में पाए गए हैं।
→ भरहुत
- भरहुत में पाई गई मूर्तियाँ मौर्यकालीन यक्ष-यक्षिणियों की प्रतिमाओं की तरह दीर्घाकार (लंबी) हैं।
- प्रतिमाओं के आयतन के निर्माण में कम उभार है लेकिन रेखिकता का ध्यान रखा गया है।
- आकृतियाँ चित्र की सतह से जयादा उभरी हुई नहीं हैं।
- भरहुत में आख्यान फलक अपेक्षाकृत कम पात्रों के साथ दिखाए गए हैं, लेकिन कहानी बढ़ने के साथ ही मुख्य पात्रों के अलावा अन्य पात्र भी प्रकट होने लगते हैं।
- मूर्तिकारों द्वारा उपलब्ध स्थान का अधिकतम उपयोग किया गया है। इसलिए हाथों को जुड़ा हुआ और पैरों को बढ़ा हुआ दिखाया गया है। शरीर ज्यादातर कड़ा तथा तना हुआ और भुजाएँ व पैर शरीर के साथ चिपके हुए दिखाए गए हैं।
- विभिन्न प्रदेशों में ज्यों-ज्यों स्तूपों का निर्माण बढ़ता गया, उनकी शैलियों में भी अंतर आने लगे। जैसे ईसा पूर्व पहली और दूसरी शताब्दियों की सभी पुरुष प्रतिमाओं की केश सज्जा को गुंथे हुए दिखाया गया है।
→ साँची का स्तूप
- मूर्तिकला के विकास के अगले चरण को साँची के स्तूप-1, मथुरा और आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले के वेन्गी स्थान पर पाई जाने वाली मूर्तियों में देखा जा सकता है।
- साँची के स्तूप में दो प्रदशिणा पथ और चार तोरण द्वार हैं जिन पर बुद्ध जीवन की घटनाओं और जातक कथाओं के प्रसंगों को प्रस्तुत किया गया है। आख्यान अधिक विस्तृत कर दिए गए हैं।
- प्रतिमाओं का संयोजन अधिक उभारदार और सम्पूर्ण धरातल भरा हुआ है। मुद्राएँ स्वाभाविक हैं, बाहरी रेखाओं की कठोरता कम हुई हैं, गतिशीलता आई है, तकनीकें अधिक उन्नत हैं। मथुरा में पाई गई प्रतिमाओं में भी ऐसी ही विशेषताएँ पाई जाती हैं।
→ मथुरा, सारनाथ एवं गांधार
- ईसा की पहली शताब्दी और उसके बाद मथुरा और गांधार में बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप को मानव रूप मिल गया।
- गांधार की मूर्तिकला की परंपरा में बैक्ट्रिया, पार्थिया और गांधार की स्थानीय परम्परा का संगम हो गया तथा मथुरा की मूर्तिकला की स्थानीय परंपरा प्रबल होकर उत्तरी भारत के अन्य भागों में फैल गई।
- मथुरा में बुद्ध की प्रतिमाएँ यक्षों की आरंभिक मूर्तियों जैसी बनी हैं, लेकिन गांधार में पाई गई बुद्ध की प्रतिमाओं में यूनानी शैली की विशेषताएँ पाई जाती हैं। मथुरा में जैन तीर्थंकरों, सम्राटों, विष्णु के विभिन्न रूपों की प्रतिमाएँ और शैव प्रतिमाएँ भी पाई गई हैं।
- दूसरी शताब्दी में मथुरा में, प्रतिमाओं में विषयासक्ति केन्द्रिकता आ गई, गोलाई बढ़ गई और वे अधिक मांसल हो गईं।
- चौथी शताब्दी के अंतिम दशकों में विशालता और मांसलता में कमी कर दी गई और मांसलता में अधिक कसाव आ गया। पाँचवीं और छठी सदी में वस्त्रों को प्रतिमाओं के परिमाण/आकार में ही शामिल कर दिया गया। बुद्ध की प्रतिमाओं में वस्त्रों की पारदृश्यता स्पष्टतः दिखाई देती है।
- सारनाथ और कौशाम्बी में पाई जाने वाली बौद्ध प्रतिमाओं में दोनों कंधों को वस्त्र से ढका हुआ दिखाया गया है तथा सिर के चारों ओर आभामंडल है। प्रतिमाएँ छरहरे या पतले रूप में दिखाई गई हैं।
दक्षिण भारतीय बौद्ध स्मारक-आंध्र प्रदेश के वेंगी क्षेत्र में अनेक स्तूप स्थल हैं, जैसे-जगय्यपेट, अमरावती, भट्टीप्रोलेरो, नागार्जुनकोंडा, गोली आदि।
→ अमरावती स्तूप
- अमरावती में एक महाचैत्य है, जिसमें अनेक प्रतिमाएँ थीं।
- अमरावती के स्तूप में भी प्रदक्षिणा पथ है जो वेदिका से ढका हुआ है।
- वेदिका पर अनेक आख्यानात्मक प्रतिमाएँ निरूपित की गई हैं।
- गुम्बदी स्तूप का ढाँचा उभारदार स्तूप प्रतिमाओं के चौकों से ढका हुआ है।
- इसका तोरण गायब हो गया है।
- बुद्ध के जीवन की घटनाएँ और जातक कथाओं के प्रसंग चित्रित हैं।
- अमरावती स्तूप का विकास तीन चरणों में हुआ। प्रथम चरण 200 ई.पू. से 100 ई. तक में अमरावती स्तूप का निर्माण हुआ जिसमें वेदिका के मूलाधार, वेदिका के ऊपरी भाग की यक्ष मूर्तियों और बुद्ध जीवन की घटनाओं का अंकन हुआ। द्वितीय चरण (100-150 ई.) में अनेक अलंकृत रूपों द्वारा शिलाखण्डों को सुसज्जित किया गया। तृतीय चरण (150-200 ई.) चरमोत्कर्ष का काल है। इसमें वेदिका स्तंभ तथा शिलापट्टों पर कलात्मक एवं भावपूर्ण दृश्यों का अंकन हुआ।
→ अमरावती प्रतिमाएँ
- प्रतिमाओं के चेहरों पर तरह-तरह के गंभीर हाव-भाव हैं।
- आकृतियाँ पतली हैं, उनमें गति और शरीर में तीन भंगिमाएँ हैं।
- रेखिकता में लोच है तथा उनकी गतिशीलता निश्चलता को दूर करती है।
- उभारदार प्रतिमाओं में रूप की स्पष्टता पर अधिक ध्यान दिया गया है।
- आख्यानों का चित्रण बहुतायत से किया गया है तथा उन्हें नाना रूपों में चित्रित किया गया है।
→ नागार्जुनकोंडा और गोली की प्रतिमाएँ
- ईसा की तीसरी शताब्दी में नागार्जुनकोंडा और गोली की प्रतिमाओं में आकृतियों की अनुप्राणित गति कम है।
- प्रतिमाओं की काया की उभरी हुई सतहों का प्रभाव उत्पन्न किया गया है।
- यहाँ बुद्ध की प्रतिमाएँ भी पाई गई हैं।
- यहाँ बड़ी संख्या में स्तूपों का निर्माण हुआ।
- वहाँ संरचनात्मक मंदिर, विहार या चैत्य भी बनाए गए थे। साँची का गजपृष्ठीय चैत्य में मंदिर संख्या 18 एक साधारण देवालय है। गुंटापल्वी का संरचनात्मक मंदिर भी उल्लेखनीय है।
- बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ-साथ, जैसे-अवलोकितेश्वर, पद्मपाणि, वज्रपाणि, अमिताभ और मैत्रेय जैसे बोधिसत्वों की प्रतिमाएँ भी बनाई गई हैं। पश्चिम भारतीय गुफाएँ
(अ) चैत्य-पश्चिमी भारत में बहुत-सी बौद्ध गुफाएँ हैं जो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी और उसके बाद की बताई जाती हैं।
इनमें वास्तुकला के मुख्यतः तीन रूप मिलते हैं
- गजपृष्ठीय मेहराबी छत वाले चैत्य कक्ष (जो अजंता, पीतलखेड़ा, भज में पाए जाते हैं)।
- गजपृष्ठीय मेहराबी छत वाले स्तंभहीन कक्ष (जो महाराष्ट्र के थाना-नादसर में मिलते हैं)।
- सपाट छत वाले चतुष्कोणीय कक्ष जिसके पीछे की ओर एक वृत्ताकार छोटा कक्ष होता है (जैसा कि महाराष्ट्र के कोंडिवाइट में पाया गया)। सभी चैत्य गुफाओं में पीछे की ओर स्तूप बनाना आम बात थी।
(ब) विहार-जहाँ तक विहारों का प्रश्न है, वे सभी गुफा स्थलों पर खोदे गए हैं। विहारों की निर्माण योजना में एक बरामदा, बड़ा कक्ष और इस कक्ष की दीवारों के चारों ओर प्रकोष्ठ होते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण विहार गुफाएँ अजंता की गुफा सं. 12, वेदसा की गुफा सं. 11, नासिक की गुफ़ा सं. 3, 10 और 17
- आरंभ की विहार गुफाओं के भीतर से चैत्य के मेहराबों और गुफा के प्रकोष्ठ द्वारों को वेदिका डिजाइनों | से सजाया गया है। बाद में इस तरह की सजावट को छोड़ दिया गया।
- नासिक की विहार गुफाओं में सामने के स्तंभों के घट-आधार और घट-शीर्ष पर मानव आकृतियाँ उकेरी गई हैं।
- जिन्नार की गणेशलेनी गुफा में विहार के कक्ष के पीछे एक स्तूप भी जोड़ा गया है जिससे यह एक चैत्य-विहार हो गया है।
- गुफा स्थलों में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल हैं-अजंता, पीतलखोड़ा, एलोरा, नासिक, भज, जुन्नार, कार्ला, कन्हेरी।
→ अजन्ता
(अ) गुफाएँ-सबसे प्रसिद्ध गुफा स्थल अजंता है। यहाँ कुल 26 गुफाएँ हैं।
- इनमें से चार गुफाएँ चैत्य गुफाएँ हैं जिनका समय ईसा पूर्व दूसरी और पहली शताब्दी (गुफा सं. 10 व 9) और ईसा की पाँचवीं शताब्दी (गुफा सं. 19 व 26) है। इसमें बड़े-बड़े चैत्य विहार हैं और ये प्रतिमाओं तथा चित्रों से अलंकृत हैं।
- गुफा सं. 10, 9, 12 व 13 प्रारंभिक चरण की हैं, गुफा संख्या 11, 15 व 6 ऊपरी तथा निचली और गुफा सं. 7 ईसा की पाँचवीं शताब्दी के उत्तरवर्ती दशकों से पहले की हैं। बाकी सभी गुफाएँ पाँचवीं शताब्दी के परवर्ती दशकों से ईसा की छठी शताब्दी के पूर्ववर्ती दशकों के बीच खोदी गई हैं।
- गुफा सं. 19 और 26 विस्तृत रूप से उत्कीर्ण की गई हैं। उनका मोहरा बुद्ध और बोधिसत्वों की आकृतियों से सजाया गया है।
- अन्य सभी गुफाएँ विहार-चैत्य किस्म की हैं। उनमें खंभों वाला बरामदा, खंभों वाला मंडप और दीवार के साथ-साथ प्रकोष्ठ बने हैं। पीछे की दीवार पर बुद्ध का मुख्य पूजाघर है। पूजा-स्थल की प्रतिमाएँ आकार की दृष्टि से बड़ी और आगे बढ़ने की ऊर्जा के साथ प्रदर्शित की गई हैं।
(ब) चित्र
(1) चित्रों की सामान्य विशेषताएँ
- चित्रों में अनेक शैली/प्रकारगत अंतर पाए जाते हैं।
- ईसा की पाँचवीं शताब्दी के अजंता चित्रों में बाहर की ओर प्रक्षेप दिखलाया गया है।
- रेखाएँ स्पष्ट तथा उनमें पर्याप्त लयबद्धता है।
- शरीर का रंग बाहरी रेखा के साथ मिलने से चित्र का आयतन फैला हुआ प्रतीत होता है, आकृतियाँ | भारी हैं।
- इन चित्रों के विषय बुद्ध जीवन की घटनाएं, जातक और अवदान कथाओं के प्रसंग हैं।
(2) पहले चरण की गुफाओं के चित्र-पहले चरण की गुफा सं. 9 एवं 10 में भी चित्र पाए जाते हैं। ये ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी की हैं।
इनकी विशेषताएँ ये हैं
- चित्रों में रेखाएं पैनी हैं, रंग सीमित हैं।
- आकृतियाँ स्वाभाविक रूप से रंगी हैं।
(3) दूसरे चरण के चित्र-दूसरे चरण के चित्र गुफा सं. 10 तथा 9 की दीवारों व स्तंभ पर बने चित्र हैं।
(4) अगले चरण के चित्र-अगले चरण के चित्र मुख्यतः गुफा सं. 16, 17, 1 और 2 में देखे जा सकते हैं।
- गुफा सं. 16 और 17 के चित्रों में सटीक और शालीन रंगात्मक गुणों का प्रयोग हुआ है।
- भूरे रंग की मोटी रेखाओं से उभार प्रदर्शित किया गया है।
- रेखाएँ जोरदार और शक्तिशाली हैं।
- आकृति संयोजनों में विशिष्ट चमक देने का प्रयास किया गया है।
- गुफा संख्या 1 तथा 2 के चित्र सलीके से बने हुए एवं स्वाभाविक हैं जो गुफा की मूर्तियों से सामञ्जस्य रखते हैं।
→ एलोरा
एलोरा अजन्ता से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ बौद्ध, ब्राह्मण और जैन तीनों तरह की 34 गुफाएँ हैं।
(1) बौद्ध गुफाएँ-यहाँ बाहर बौद्ध गुफाएँ हैं, जहाँ बौद्ध धर्म के वज्रयान सम्प्रदाय की अनेक प्रतिमाएँ प्रस्तुत की गई हैं।
- ये गुफाएँ आकार की दृष्टि से बड़ी हैं और उनमें एक, दो व तीन मंजिलें हैं।
- उनके स्तंभ विशालकाय हैं।
- गुफाओं पर प्लास्टर और रंग-रोगन किया गया था।
- बुद्ध की प्रतिमाएँ आकार में बड़ी हैं और पद्मपाणि तथा वज्रपाणि की प्रतिमाएँ उनके अंगरक्षक के रूप में बनाई गई हैं।
- गुफा सं. 12 एक तिमंजिली बौद्ध गुफा है। उसमें अनेक प्रतिमाएँ उपलब्ध हैं।
(2) ब्राह्मण गुफाएँ-गुफा सं. 13-28 तक ब्राह्मण गुफाएँ हैं। इनमें अनेक प्रतिमाएँ हैं।
- कई गुफाएँ शैव धर्म को समर्पित हैं। महत्वपूर्ण शैव गुफाओं में गुफा सं. 16, 21 और 29 हैं।
- शैव कथा प्रसंगों में कैलाश पर्वत को उठाए हुए रावण, अंधकासुर वध, कल्याण सुन्दर जैसे प्रसंग चित्रित किए गए हैं।
- वैष्णव कथा प्रसंगों में विष्णु के विभिन्न अवतारों को दर्शाया गया है।
(3) एलोरा की प्रतिमाएँ
- एलोरा की प्रतिमाएँ अति विशाल हैं।
- प्रतिमाओं का आयतन बाहर निकला हुआ है जो चित्र की परिधि में गहराई उत्पन्न करता है।
- प्रतिमाएँ भारी हैं तथा उनमें मूर्तिकला का शानदार प्रदर्शन हुआ है।
- मूर्तिकला की शैलियों की दृष्टि से इसे भारत में अनेक शैलियों का संगम-स्थल कहा जा सकता है
→ वाघ
एक अन्य उल्लेखनीय गुफा स्थल वाघ है। यह मध्य प्रदेश के धार जिले से 97 किमी की दूरी पर स्थित है
- ये गुफाएँ चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। इनमें बौद्ध भित्ति चित्र हैं।
- ये प्राचीन सातवाहन काल में बनाई गई थीं।
- वर्तमान में मूल 9 गुफाओं में से केवल पांच बची हैं, जिनमें सभी भिक्षुओं के विहार या चतुष्कोण वाले विश्राम-स्थान हैं।
- इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुफा सं. 4 है जो रंगमहल के नाम से जानी जाती है। जहाँ दीवार और छत पर चित्र अभी भी दिखाई देते हैं।
- अन्य गुफाओं की दीवार तथा छतों पर भी भित्ति चित्रों को देखा जा सकता है।
→ एलिफंटा एवं अन्य स्थान-मुंबई के पास स्थित एलिफैंटा गुफाएँ शैव धर्म से संबंधित हैं। ये एलोरा की समकालीन हैं।
- इनकी प्रतिमाओं में शरीर का पतलापन नितांत गहरे और हल्के प्रभावों के साथ दृष्टिगोचर होता है।
- चट्टानों में काटी गई. गुफाओं की परम्परा महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु में भी पाई जाती है।
→ पूर्वी भारत की गुफा परम्परा
आंध्रप्रदेश के तटीय क्षेत्रों में बौद्ध गुफाओं का निर्माण हुआ।
(अ) गुंटापल्लू
- आंध्रप्रदेश में गुंटापल्वी (एलुरू जिला) में मठों की संरचना के साथ पहाड़ों में| गुफाओं का निर्माण हुआ। यहाँ स्तूप, विहार एवं गुफाओं का एक स्थान पर निर्माण हुआ है।
- यहाँ चैत्य की गुफा गोलाकार है एवं प्रवेशद्वार चैत्य के रूप में बना है।
- ये गुफाएँ छोटी हैं, लेकिन बाहर से चैत्य तोरणों से सजी हैं।
- ये गुफाएँ आयताकार हैं, छतें मेहराबदार हैं, जो एक मंजिली या दो मंजिली हैं।
- इसका निर्माण ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में हुआ था। इसके बाद के काल में कुछ विहार गुफाओं का निर्माण हुआ।
(ब) रामपरेमपल्लम् तथा अनकापल्वी
- रामपरेमपल्लम् में पहाड़ी के ऊपर चट्टान को काटकर एक छोटे स्तूप का निर्माण हुआ।
- अनकापल्वी में चट्टान काटकर देश के सबसे बड़े स्तूप का निर्माण हुआ है तथा इस पहाड़ी के चारों ओर पूरा करने के लिए अनेक स्तूपों का निर्माण किया गया।
(स) ओडिशा में भी चट्टान काटकर गुफा बनाने की परम्परा
- भुवनेश्वर के समीप स्थित खंड गिरि-उदयगिरि में गुफाएँ फैली हुई हैं जिनमें खारवेल जैन राजाओं के अभिलेख पाए जाते हैं।
- ये गुफाएँ जैन मुनियों की थीं। कई मात्र एक कक्ष की हैं। बड़ी गुफाओं में आगे स्तंभों की कड़ी बनाकर बरामदे के पिछले भाग में कक्षों का निर्माण किया गया है।