These comprehensive RBSE Class 11 Business Studies Notes Chapter 3 निजी, सार्वजनिक एवं भमंडलीय उपक्रम will give a brief overview of all the concepts.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Business Studies in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Business Studies Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Business Studies Notes to understand and remember the concepts easily.
→ निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र:
भारत सरकार ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया जिसमें निजी क्षेत्र एवं सरकारी क्षेत्र दोनों क्षेत्रों के उद्यमों के परिचालन की छूट है। इसीलिए हमारी अर्थव्यवस्था को दो क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है
→ निजी क्षेत्र:
निजी क्षेत्र में व्यवसायों के स्वामी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह होते हैं। इसमें संगठन के विभिन्न स्वरूप हैं—एकल स्वामित्व, साझेदारी, संयुक्त हिन्दू परिवार, सहकारी समितियाँ तथा संयुक्त पूँजी कम्पनी।
→ सार्वजनिक क्षेत्र:
→ सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के संगठनों के स्वरूप
एक सार्वजनिक उपक्रम, संगठन के किसी भी स्वरूप को अपना सकता है लेकिन यह उसके कार्यों की प्रकृति एवं सरकार से उसके सम्बन्धों पर निर्भर करता है। संगठन का कौनसा स्वरूप उपयुक्त रहेगा यह उपक्रम की आवश्यकताओं पर निर्भर करेगा। सार्वजनिक उपक्रमों के संगठन के निम्नलिखित स्वरूप हो सकते हैं
1. विभागीय उपक्रम:
इस सबसे पुराने एवं परम्परागत स्वरूप को सरकार के किसी मन्त्रालय के एक विभाग के रूप में स्थापित किया जाता है। यह मन्त्रालय का ही एक भाग या उसका विस्तार माना जाता है। सरकार इन्हीं विभागों के माध्यम से कार्य करती है। रेलवे एवं डाक एवं तार विभाग इनके मुख्य उदाहरण हैं।
विशेषताएँ
लाभ:
सीमाएँ:
2. वैधानिक निगम-वैधानिक निगम वे सार्वजनिक उपक्रम या उद्यम हैं जिनकी स्थापना संसद के विशेष अधिनियम के द्वारा की जाती है। इनके कार्य एवं शक्तियाँ पूर्णतः परिभाषित होती हैं। वित्त मामलों में स्वतन्त्र होते हैं।
इनके पास एक ओर जहाँ सरकारी अधिकार होते हैं वहीं दूसरी ओर निजी उपक्रम के समान परिचालन में पर्याप्त लचीलापन होता है।
विशेषताएँ:
लाभ:
सीमाएँ:
3. सरकारी कम्पनी-भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (45) के अनुसार एक सरकारी कम्पनी वह कम्पनी है जिसकी कम-से-कम 51 प्रतिशत चुकता अंशपूँजी या तो केन्द्र सरकार के पास है, या फिर राज्य सरकारों के पास है या फिर कुछ केन्द्र सरकार के पास और शेष एक या एक से अधिक राज्य सरकारों के पास है तथा उसमें वह कम्पनी भी सम्मिलित है जो किसी सरकारी कम्पनी की सहायक कम्पनी है।
विशेषताएँ:
लाभ:
सीमाएँ:
→ सार्वजनिक क्षेत्र की बदलती भूमिका:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद विकास के प्रारम्भिक दौर में पंचवर्षीय योजनाओं में सार्वजनिक क्षेत्र को काफी महत्त्व दिया गया। 90 के दशक के उत्तरार्द्ध में नई आर्थिक नीतियों ने उदारीकरण, निजीकरण एवं भूमण्डलीकरण पर अधिक जोर दिया। फलतः सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका की पुनः व्याख्या की गई। अब इसकी भूमिका उदासीनता की नहीं होकर सक्रिय रूप से भाग लेने एवं उसी उद्योग की निजी क्षेत्र की कम्पनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में रहने की निश्चित की गई। अब घाटे एवं निवेश पर प्रतिफल के लिए इन्हें उत्तरदायी ठहराया गया है।
सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका निम्नलिखित में महत्त्वपूर्ण रही है
सन् 1991 से सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र सम्बन्धी नीति
विशेषताएँ:
→ संयुक्त उपक्रम:
संयुक्त उपक्रम का अर्थ अलग-अलग हो सकता है जो इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे किस सन्दर्भ में प्रयोग कर रहे हैं। लेकिन व्यापक अर्थों में संयुक्त उपक्रम का अर्थ है दो या दो से अधिक इकाइयों द्वारा एक निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संसाधनों एवं विशेषज्ञता को एक-साथ मिला लेना। व्यवसाय के जोखिमों एवं प्रतिफल को भी परस्पर बाँट लिया जाता है। इनके स्थापित करने के कारणों में व्यवसाय का विस्तार, नये उत्पादों का विकास या फिर नये बाजारों, विशेषकर अन्य देश के बाजारों में कार्य करना सम्मिलित है। संयुक्त उपक्रमों के प्रकार
लाभ:
→ सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.):
सार्वजनिक निजी भागीदारी प्रतिरूप सार्वजनिक तथा निजी भागीदारों के बीच सर्वोत्कृष्ट तरीके से कार्यों, दायित्वों तथा जोखिमों का बँटवारा करता है। इसमें सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी होती है।