RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 5 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ

Rajasthan Board RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 5 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ Important Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 5 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ

बहुचयनात्मक प्रश्न-

निम्नाकित प्रश्नों के सर्वाधिक उचित उत्तर पर (√) चिन्ह लगाइए : 

प्रश्न 1. 
ई-कॉमर्स में शामिल नहीं होता है- 
(क) एक व्यवसाय का उसके पूर्तिकर्ताओं से पारस्परिक सम्पर्क।
(ख) एक व्यवसाय का उसके ग्राहकों से पारस्परिक सम्पर्क। 
(ग) व्यवसाय के विभिन्न विभागों के मध्य पारस्परिक सम्पर्क। 
(घ) (ग) और एक व्यवसाय का अपनी भौगोलिक रूप से फैली हुई इकाइयों के मध्य पारस्परिक सम्पर्क। 
उत्तर:
(ग) व्यवसाय के विभिन्न विभागों के मध्य पारस्परिक सम्पर्क।

प्रश्न 2. 
बाह्यस्रोतीकरण- 
(क) सिर्फ सूचना प्रौद्योगिकी-जन्य सेवाओं के संविदा बाहर प्रदान करने को प्रतिबन्धित करता है। 
(ख) केवल गैर-मुख्य व्यावसायिक प्रक्रियाओं के संविदा बाहर प्रदान करने को प्रतिबन्धित करता है। 
(ग) में उत्पादन और शोध एवं विकास के साथ ही सेवा प्रक्रियाओं-मुख्य और गैर-मुख्य दोनों के संविदा बाहर प्रदान करना शामिल है; परन्तु यह केवल घरेलू क्षेत्र तक सीमित है। 
(घ) (ग) और इसमें देश की भौगोलिक सीमाओं से बाहर बाह्यस्रोतीकरण भी सम्मिलित है। 
उत्तर:
(घ) (ग) और इसमें देश की भौगोलिक सीमाओं से बाहर बाह्यस्रोतीकरण भी सम्मिलित है। 

प्रश्न 3. 
ई-व्यवसाय का प्रारूपिक भुगतान तन्त्र- 
(क) सुपुर्दगी पर नकद 
(ख) चैक 
(ग) क्रेडिट और डेबिट कार्ड
(घ) ई-नकद। 
उत्तर:
(घ) ई-नकद।

प्रश्न 4. 
एक कॉल सेंटर निर्वहन करता है-
(क) केवल अंत-बध स्वर आधारित व्यवसाय 
(ख) (क) और बाह्य-बन्ध स्वर आधारित व्यवसाय 
(ग) दोनों अंत-बंध एवं बाह्य-बंध स्वर आधारित व्यवसाय 
(घ) ग्राहकोन्मुख और पार्श्व, दोनों व्यवसाय। 
उत्तर:
(ग) दोनों अंत-बंध एवं बाह्य-बंध स्वर आधारित व्यवसाय

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प्रश्न 5. 
यह ई-व्यवसाय का अनुप्रयोग नहीं है-
(क) ऑनलाइन बोली 
(ख) ऑनलाइन अधिप्राप्ति
(ग) ऑनलाइन व्यापार 
(घ) संविदा, शोध एवं विकास। 
उत्तर:
(घ) संविदा, शोध एवं विकास। 

प्रश्न 6. 
इन्टरनेट पर क्रय एवं विक्रय कहलाता है-
(क) ई-बैंकिंग 
(ख) ई-कॉमर्स 
(ग) बाह्यस्रोतीकरण 
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 
उत्तर:
(ख) ई-कॉमर्स

प्रश्न 7. 
ई-व्यवसाय के विभिन्न घटकों के बीच अन्तर एवं अन्तः लेन-देनों का संक्षिप्त विवेचन है- 
(क) फर्म से फर्म कॉमर्स 
(ख) फर्म से ग्राहक कॉमर्स 
(ग) अन्तः बी कॉमर्स 
(घ) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 8. 
सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों में प्रयुक्त एक सामान्य शब्द जो विश्वव्यापी वेब (वर्ल्ड वाइड वेब) पर सूचना को निकालना, प्रदर्शित एवं मुद्रित करता है, कहलाता है-
(क) इन्टरनेट 
(ख) ब्राउजर
(ग) ए.टी.एम. 
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 
उत्तर:
(ख) ब्राउजर

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प्रश्न 9. 
ई-व्यवसाय का लाभ है- 
(क) सरल स्थापन 
(ख) शीघ्र 
(ग) विश्वस्तरीय पहुँच 
(घ) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10. 
बाह्यत्रोतीकरण की आवश्यकता का एक कारण है- 
(क) सरल स्थापना
(ख) विश्वस्तरीय पहुँच 
(ग) विशिष्टता प्राप्त करने के लिए। 
(घ) व्यावसायिक लेन-देन करने व समझने में आसान। 
उत्तर:
(ग) विशिष्टता प्राप्त करने के लिए।

प्रश्न 11. 
बाह्यत्रोतीकरण के सरोकार हैं- 
(क) लागत की कमी
(ख) ध्यान केन्द्रित करना 
(ग) गृह-देशों का विरोध
(घ) उत्कृष्टता की खोज। 
उत्तर:
(ग) गृह-देशों का विरोध

प्रश्न 12. 
ब्राह्यस्रोतीकरण में खण्ड सम्मिलित हैं- 
(क) संविदा उत्पादन 
(ख) संविदा विक्रय 
(ग) सूचना विज्ञान 
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी।

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रिक्त स्थानों की पूर्ति वाले प्रश्न 
निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. ई-व्यवसाय .................... से अधिक विस्तृत शब्द है। (ई-कॉमर्स/निजी व्यवसाय) 
2. ..................मुद्रा निकासी को गति प्रदान करता है। (ई.डी.आई./एटीएम) 
3. ऑनलाइन लेन-देनों में .................... सर्वाधिक प्रयुक्त माध्यम है। (क्रेडिट कार्ड/रुपया) 
4. ....................में प्रतिभूति व्यापार, अंशों एवं अन्य वित्तीय प्रपत्रों का ऑनलाईन क्रय एवं विक्रय सम्मिलित होता है। (ई-नीलामी/ई-व्यापार) 
5. ...................वास्तविक मुद्रा को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में प्रस्तुत करने में सक्षम होती है। (क्रेडिट कार्ड/अंकीय (डिजिटल) नकद) 
6. ई-व्यवसाय में .................... की आवश्यकता होती है। (मशीन/वेबसाइट)
उत्तर:
1. ई-कॉमर्स, 
2. एटीएम, 
3. क्रेडिट कार्ड, 
4. ई-व्यापार, 
5. अंकीय (डिजिटल) नकद, 
6. वेबसाइट 

सत्य/असत्य वाले प्रश्न 
निम्न में से सत्य/असत्य कथन बतलाइये-

1. इंटरनेट पर क्रय-विक्रय ई-कॉमर्स कहलाता है। 
2. ई-कॉमर्स ने लोचदार उत्पादन और व्यापक स्तर पर उपभोक्तानुरूप उत्पादन असम्भव बनाया है। 
3. इंटरनेट की अनुपस्थिति में वैश्वीकरण का कार्यक्षेत्र एवं गति काफी हद तक प्रतिबन्धित हो जायेगी। 
4. अल्प मानवीय स्पर्श ई-व्यवसाय की सीमा नहीं है। 
5. क्रेडिट और डेबिट कार्ड प्लास्टिक मुद्रा के रूप में विख्यात हैं। 
6. डाटा प्रसारण के दौरान डाटा अवरुद्ध होने पर क्रिप्टोग्राफी का प्रयोग किया जा सकता है। 
7. सूचना तकनीक क्षेत्र के वैश्विक बाह्यस्रोतीकरण में भारत का हिस्सा 60 प्रतिशत है। 
उत्तर:
1. सत्य, 
2. असत्य, 
3. सत्य, 
4. असत्य, 
5. सत्य, 
6. सत्य, 
7. सत्य 

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मिलान करने वाले प्रश्न 
निम्न को सुमेलित कीजिए-

RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 5 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ 1
उत्तर:
RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 5 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ 2

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ कौन-कौनसी हैं? नाम लिखिए। 
उत्तर:

  • ई-व्यवसाय 
  • बाह्यस्रोतीकरण 
  • अन्तर्राष्ट्रीयकरण और वैश्वीकरण। 

प्रश्न 2. 
ई-व्यवसाय किसे कहते हैं? 
उत्तर:
कम्प्यूटर तथा इन्टरनेट की सहायता से व्यावसायिक संस्था के कार्यों का निपटारा करने को ई-व्यवसाय कहते हैं। 

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प्रश्न 3. 
ई-व्यवसाय के क्षेत्र को संक्षेप में बतलाइए। 
उत्तर:
ई-व्यवसाय न केवल ई-कॉमर्स वरन् व्यवसाय द्वारा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा संचालित किये गये अन्य कार्यों जैसे उत्पादन, स्टॉक प्रबन्ध, उत्पाद विकास, लेखांकन एवं वित्त और मानव संसाधन को भी सम्मिलित करता है। 

प्रश्न 4. 
ई-कॉमर्स क्या है? 
उत्तर:
कम्प्यूटर की सहायता से इन्टरनेट पर वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय करना ई-कॉमर्स कहलाता है। 

प्रश्न 5. 
'नेटस्केप का आगमन' क्या है? 
उत्तर:
यह उपभोगकर्ताओं को इन्टरनेट सर्व करने के लिए एक सरल ब्राउजर और एक सुरक्षित ऑनलाइन लेन-देन तकनीक, जिसे सिक्योर सॉकेट्स लेसर कहा जाता है, उपलब्ध कराता है। 

प्रश्न 6. 
वह कोडिंग प्रणाली जिसका प्रयोग सामान्यतः कम्प्यूटर प्रणालियों में संग्रह और उनके बीच आपसी विनिमय के लिए किया जाता है, क्या कहलाती है? 
उत्तर:
अमेरिकन स्टैंडर्ड कोड फॉर इन्फोर्मेशन इन्टरचेंज (ए.एस.सी.आई.आई.)। 

प्रश्न 7. 
ई-कॉमर्स की उपयोगिता बतलाइए।. 
उत्तर:
यह इलेक्ट्रॉनिक डाटा अन्तर्विनिमय तकनीक का प्रयोग कर व्यावसायिक प्रलेखों जैसे क्रय आदेशों अथवा बीजकों को भेजकर एवं प्राप्त कर फर्म से फर्म लेन-देनों को सुगम बनाता है। 

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प्रश्न 8. 
ई-संचार क्या है? 
उत्तर:
ई-संचार में ऑनलाइन सूची पत्रकों का प्रकाशन जो कि वस्तुओं की छवि प्रदर्शित करते हैं, बैनरों के द्वारा प्रचार, मत सर्वेक्षण और ग्राहक सर्वेक्षण इत्यादि शामिल होते हैं। सभा एवं सम्मेलन भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा की जा सकती है। 

प्रश्न 9. 
ई-व्यापार में क्या सम्मिलित है? 
उत्तर:
ई-व्यापार में प्रतिभूति व्यापार अंशों एवं अन्य वित्तीय प्रपत्रों का ऑनलाइन क्रय एवं विक्रय सम्मिलित होता है। 

प्रश्न 10. 
भारत की किसी एक विशालतम ऑनलाइन व्यापार फर्म का नाम लिखिए। 
उत्तर:
शेरखान डॉट कॉम। 

प्रश्न 11. 
ई-व्यवसाय के कोई दो लाभ बतलाइए। 
उत्तर:

  • सरल स्थापना होना, 
  • विश्वस्तरीय पहुँच का होना। 

प्रश्न 12. 
ई-व्यवसाय की सीमाओं को गिनाइए। 
उत्तर:

  • निजी सम्पर्क की कमी, 
  • आधुनिक तकनीक की जानकारी की आवश्यकता, 
  • जोखिम का होना, 
  • लोगों का विरोध। 

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प्रश्न 13. 
प्रचालन के आधार पर ऑनलाइन लेन-देन की विभिन्न अवस्थाएँ बतलाइए। 
उत्तर:

  • प्रथम, क्रय-विक्रय पूर्व अवस्था। 
  • द्वितीय, क्रय-विक्रय अवस्था। 
  • तृतीय, सुपुर्दगी अवस्था। 

प्रश्न 14. 
बाह्यस्रोतीकरण को परिभाषित कीजिए। 
उत्तर:
ऐसा संविदा जिसके अन्तर्गत व्यवसायी व्यवसाय से सम्बन्धित अन्य गतिविधियाँ उन व्यवसाय या फर्मों के सुपुर्द कर देते हैं, जो उसमें कुशल हैं, बाह्यस्रोतीकरण कहलाता है। 

प्रश्न 15. 
क्रिप्टोग्राफी क्या होती है? 
उत्तर:
क्रिप्टोग्राफी सूचना बचाव की वह कला है जिसमें उसे एक अपठनीय प्रारूप जिसे साइबर उद्धरण (साइबर टैक्स्ट) कहते हैं, बदल दिया जाता है। केवल सही व्यक्ति जिसके पास पासवर्ड होता है, सन्देश को स्पष्ट कर सामान्य उद्धरण (प्लेन टैक्स्ट) में बदल सकता है। 

प्रश्न 16. 
वेबसाइट से क्या आशय है? 
उत्तर:
वर्ल्ड वाइड वेब पर फर्म की स्थिति को वेबसाइट कहते हैं। यह भौतिक स्थिति नहीं है, अपितु यह तो उस विषय-वस्तु का ऑनलाइन दृश्य स्वरूप है, जिसे फर्म दूसरों को उपलब्ध कराना चाहती है। 

प्रश्न 17. 
'शॉपिंग कार्ट' से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
ऑनलाइन लेन-देन में 'शॉपिंग कार्ट' उन सबका ऑनलाइन अभिलेख होता है जिन्हें आपने ऑनलाइन भण्डार (स्टोर) पर करते समय चुना होगा। 

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प्रश्न 18. 
क्रेडिट और डेबिट कार्ड किस दूसरे नाम से विख्यात हैं? 
उत्तर:
क्रेडिट और डेबिट कार्ड 'प्लास्टिक मुद्रा' के रूप में विख्यात हैं।

प्रश्न 19. 
ई-व्यवसाय से सम्बन्धित जोखिमों को गिनाइए। 
उत्तर:

  • लेन-देन जोखिम, 
  • डाटा संग्रहण और प्रसारण जोखिम, 
  • बौद्धिक सम्पदा को खतरे और निजता-जोखिम। 

प्रश्न 20. 
बाह्यस्रोतीकरण में सम्मिलित प्रमुख खण्डों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  • संविदा उत्पादन 
  • संविदा शोध 
  • संविदा विक्रय 
  • सूचना विज्ञान। 

प्रश्न 21. 
अंतः बी-कॉमर्स क्या है? 
उत्तर:
एक ही व्यावसायिक फर्म के भीतर उसके दो या दो से अधिक पक्षों के बीच होने वाले इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन को अंतः बी-कॉमर्स कहते हैं। 

प्रश्न 22. 
बाह्यस्रोतीकरण के दो सरोकार के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  • गोपनीयता, 
  • गृह देशों में विरोध। 

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प्रश्न 23. 
ऑनलाइन खरीददारी से पूर्व आपको क्या करवाना आवश्यक है? 
उत्तर:
ऑनलाइन खरीददारी से पूर्व हमें एक पंजीकरण फॉर्म भरकर ऑनलाइन विक्रेता के पास पंजीकरण करवाना आवश्यक है। 

प्रश्न 24. 
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से व्यवसाय करना क्या कहलाता है? लिखिए। 
उत्तर:
ई-व्यवसाय। 

प्रश्न 25. 
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के कोई दो प्रावधान बतलाइये। 
उत्तर:

  • इलेक्ट्रानिक अभिलेखों को कानूनी मान्यता 
  • अंकीय (डिजिटल) हस्ताक्षरों को कानूनी मान्यता 

प्रश्न 26. 
व्यवसाय से व्यवसाय ई-वाणिज्य को चित्र द्वारा समझाइये। 
उत्तर:
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प्रश्न 27. 
ई-वाणिज्य से ग्राहकों तथा समाज को प्राप्त कोई दो लाभ बतलाइये। 
उत्तर:

  • ग्राहकोनुसार उत्पाद 
  • त्वरित एवं समयानुसार सुपुर्दगी (डिजिटाइज्ड उत्पाद)। 

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प्रश्न 28. 
ई-वाणिज्य से व्यावसायिक संस्था को प्राप्त कोई दो लाभ बतलाइये। 
उत्तर:

  • बाजार स्थान का राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों तक विस्तार 
  • उचित समय प्रबन्धन तथा व्यवसाय प्रक्रिया को बल मिलना। 

प्रश्न 29. 
इंटरनेट के प्रयोग के कोई.दो लाभ बताइये। 
उत्तर:

  • कागजी कार्यवाही को कम करना। 
  • लालफीताशाही पर निर्भरता को कम करना। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
ई-व्यवसाय एवं ई-कॉमर्स में अन्तर बतलाइए।
उत्तर:
ई-व्यवसाय एवं ई-कॉमर्स में अन्तर-ई-व्यवसाय एक विस्तृत शब्द है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किये जाने वाले विभिन्न व्यावसायिक लेन-देन और कार्य एवं लेन-देनों का एक अधिक लोकप्रिय क्षेत्र (ई-कॉमर्स) भी शामिल है। ई-कॉमसे एक संस्था के अपने ग्राहकों और पूर्तिकत्तोओं के साथ इन्टरनेट पर पारस्परिक सम्पके को सम्मिलित करता है। ई-व्यवसाय न केवल ई-कॉमर्स वरन व्यवसाय द्वारा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा संचालित किये गये अन्य कार्यों जैसे-उत्पादन, स्टॉक प्रबन्ध, उत्पाद विकास, लेखांकन एवं वित्त तथा मानव संसाधन को भी सम्मिलित करता है। इस प्रकार ई-व्यवसाय का क्षेत्र विस्तृत होता है, जबकि ई-कॉमर्स का क्षेत्र संकुचित होता है। 

प्रश्न 2. 
ई-व्यवसाय को संक्षेप में समझाइए। 
उत्तर:
ई-व्यवसाय-ई-व्यवसाय को ऐसे उद्योग, व्यापार और वाणिज्य के संचालन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें कम्प्यूटर नेटवर्क का प्रयोग किया जाता है। यह व्यवसाय करने की इलेक्ट्रॉनिक पद्धति है। इसका कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें सभी व्यावसायिक कार्य, यथा-उत्पादन, वित्त, विपणन, कार्मिक प्रबन्धन तथा प्रबन्धकीय गतिविधियाँ एवं विभिन्न लेन-देन में कम्प्यूटर नेटवर्क का प्रयोग किया जाता है। 

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प्रश्न 3. 
'ब्राउजर' के बारे में आप क्या जानते हैं? 
उत्तर:
ब्राउजर-ब्राउजर उन सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों के लिए प्रयुक्त एक सामान्य शब्द है जो विश्वव्यापी वेब (वर्ल्ड वाइड वेब-www) पर सूचना को निकालता, प्रदर्शित एवं मुद्रित करता है। माइक्रोसॉफ्ट इन्टरनेट एक्सप्लोरर, नेटस्केप नेविगेटर और मोजेइक सबसे लोकप्रिय ब्राउजर माने जाते हैं। मोजेइक ही पहला ऐसा ब्राउजर था जिसने ग्राफिक्स प्रारम्भ किया। इससे पहले प्रयोगकर्ता वेब पृष्ठों पर सिर्फ शब्दों को ही देख सकते थे। 

प्रश्न 4. 
सिक्योर सॉकेट लेयर (एस.एस.एल.) के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सिक्योर सॉकेट लेयर (एस.एस.एल.) एस.एस.एल. को नेटस्केप ने इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स में उन लेन-देनों में उपयोग के लिए डिजाइन किया है जिनमें गोपनीय सूचनाएँ जैसे कि क्रेडिट कार्ड संख्याएँ शामिल होती हैं। सिक्योर सॉकेट लेयर एक सार्वजनिक एवं निजी पासवर्ड प्रमाणीकरण प्रणाली का प्रयोग करता है, जो कि अन्य योजनाओं के साथ, इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों की जाँच के लिए संलग्न होती है। इन्टरनेट पर सुरक्षित एवं गोपनीय लेन-देनों को संचालित करने की योग्यता, इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स की सफलता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। सार्वजनिक कुंजी वह कूट शब्द (पासवर्ड) है जिसका भेजने वाला आँकड़ों (डाटा) को कूट-भाषा में बदलने के लिए प्रयोग करता है और निजी कंजी का प्रयोग सन्देश पाने वाला आँकडों (डाटा) को सामान्य भाषा में परिवर्तित करने के लिए करता है। 

प्रश्न 5. 
'वायरस' से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
वायरस-वायरस एक प्रोग्राम है जो कि अपनी पुनरावृत्ति इसकी मुख्य कम्प्यूटर प्रणालियों पर करता रहता है। कम्प्यूटर वायरस का प्रभाव क्षेत्र स्क्रीन प्रदर्शन में मामूली छेड़छाड़ (स्तर-1 वायरस) से लेकर, कार्यप्रणाली में बाधा (स्तर-2) तक, लक्षित डाटा फाइलों की क्षति (स्तर-3 वायरस) तक, सम्पूर्ण प्रणाली को क्षति (स्तर-4 वायरस) तक हो सकता है। 

एंटी-वायरस प्रोग्रामों की स्थापना एवं समय-समय पर उनके नवीनीकरण व फाइलों एवं डिस्को की एंटी वायरस द्वारा जाँच डाटा फाइलों, फोल्डरों और कम्प्यूटर प्रणाली को वायरस के हमले से एवं इससे होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं। 

प्रश्न 6. 
नेट बैंकिंग हस्तान्तरण के बारे में आप क्या जानते हैं? 
उत्तर:
नेट बैंकिंग हस्तान्तरण-वर्तमान में बैंक अपने ग्राहकों को इंटरनेट पर कोषों के इलेक्ट्रॉनिक हस्तान्तरण की सुविधा प्रदान करते हैं। यह सुविधा आई.एम.पी.एस.(IMPS), एन.ई.एफ.टी. (NEFT) और आर.टी.जी.एस.(RTGS) द्वारा प्रदान की जाती है। इस स्थिति में क्रेता लेन-देन की एक निश्चित मूल्य राशि ऑनलाइन विक्रेता के खाते में हस्तान्तरित कर सकता है जो कि इसके पश्चात् वस्तुओं की सुपुर्दगी का प्रबन्ध करता है। 

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प्रश्न 7. 
B2B तथा B2C को परिभाषित कीजिए। 
उत्तर:
(1) B2B-B2B का आशय है-व्यवसाय से व्यवसाय कॉमर्स। जब ई-कॉमर्स के लेन-देनों में शामिल दोनों पक्ष व्यावसायिक फर्मे होती हैं तो इसे व्यवसाय से व्यवसाय अथवा फर्म से फर्म कॉमर्स नाम दिया जाता है। 

(2) B2C-B2C का आशय है-व्यवसाय से ग्राहक कॉमर्स। जब ई-कॉमर्स के लेन-देनों में एक छोर पर व्यावसायिक फर्म तथा दूसरे छोर पर इसके ग्राहक होते हैं तो इसे व्यवसाय से ग्राहक अथवा फर्म से ग्राहक कॉमर्स कहा जाता है। 

प्रश्न 8. 
ऑनलाइन लेन-देन में भगतान की क्रेडिट और डेबिट कार्ड विधि को समझाइए। 
उत्तर:
क्रेडिट और डेबिट कार्ड-प्लास्टिक मुद्रा के रूप में विख्यात यह कार्ड ऑनलाइन लेन-देनों में भुगतान की सबसे अधिक प्रयुक्त की जाने वाली विधि है। यहाँ तक कि ऑनलाइन लेन-देन में 95% भुगतान इनके द्वारा ही होता है। क्रेडिट कार्ड अपने धारक को उधार खरीद की सुविधा प्रदान करते हैं, कार्ड धारक पर बकाया राशि कार्ड जारीकर्ता बैंक अपने ऊपर ले लेता है और बाद में लेन-देन में प्रयुक्त इस राशि को विक्रेता के 'जमा' में हस्तान्तरित कर देता है।

क्रेता का खाता भी इस राशि से 'नाम' कर दिया जाता है जो अक्सर इसे किश्तों में एवं अपनी आवश्यकतानुसार जमा कराने की स्वतन्त्रता का आनन्द उठाता है। डेबिट कार्ड धारक को उस सीमा तक खरीददारी करने की अनुमति प्रदान करता है, जिस राशि तक उसके खाते में धन-राशि उपलब्ध होती है। जिस क्षण कोई लेन-देन किया जाता है, भुगतान के लिए बकाया राशि इलेक्ट्रॉनिक तरीके से इसके कार्ड से घट जाती है। 

क्रेडिट कार्ड को भुगतान के तरीके के रूप में स्वीकार करने के लिए, विक्रेता को पहले उसके ग्राहकों के क्रेडिट कार्ड सम्बन्धित सूचना प्राप्त करने के सुरक्षित साधनों की आवश्यकता होती है। क्रेडिट कार्ड द्वारा भुगतान का प्रसंस्करण या तो हस्तचल या फिर ऑनलाइन प्राधिकृत प्रणाली द्वारा किया जा सकता है। जैसे कि एस.एस.एल. प्रमाण पत्र। 

प्रश्न 9. 
अनिलाइन लेन-देन की अंकीय (डिजीटल.) विधि क्या है? संक्षेप में समझाइए। 
उत्तर:
ऑनलाइन लेन-देन की अंकीय (डिजीटल) विधि-यह इलेक्ट्रॉनिक मुद्रा का एक रूप है जिसका अस्तित्व केवल साइबर स्थान (स्पेस) में ही होता है। इस तरह की मुद्रा के कोई वास्तविक भौतिक गुण नहीं होते हैं, परन्तु यह वास्तविक मुद्रा को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में प्रस्तुत करने में सक्षम होती है। सबसे पहले आपको बैंक में इस राशि का भुगतान (चैक, ड्राफ्ट इत्यादि द्वारा) करना होगा, जो कि उस अंकीय नकद के समतुल्य होगी जिसे आप अपने पक्ष में जारी करवाना चाहते हो। इसके बाद ई-नकद में लेन-देन करने वाला बैंक आपको एक विशेष सॉफ्टवेयर भेजेगा जो कि आपको बैंक में स्थित अपने खाते से अंकीय नकद निकासी की अनुमति प्रदान करेगा। तब आप अंकीय कोषों का प्रयोग वेबसाइट पर क्रय करने में कर सकते हैं। 

प्रश्न 10. 
ई-व्यवसाय के किन्हीं दो अनुप्रयोगों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
ई-व्यवसाय के अनुप्रयोग 
1. ई-संचार/ई-संवर्द्धन-ई-संचार/ई-संवर्द्धन में उन ऑन लाइन सूची पत्रकों का प्रकाशन जो कि वस्तुओं की छवि प्रदर्शित करते हैं, बैनरों के द्वारा प्रचार, मत सर्वेक्षण और ग्राहक सर्वेक्षण इत्यादि शामिल होते हैं। सभाएँ एवं सम्मेलन भी वीडियो कान्फ्रेंसिंग द्वारा किये जा सकते हैं। 

2. ई-सुपुर्दगी-ई-सुपुर्दगी कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर,फोटो, वीडियो, पुस्तकें (ई-पुस्तकें) और पत्रिकाएँ (ई-पत्रिकाएँ)और अन्य मल्टी मीडिया सामग्री को कम्प्यूटर प्रयोगकर्ता को इलेक्ट्रॉनिक सुपुर्दगी भी सम्मिलित होती है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कानूनी, लेखांकन, वित्त एवं अन्य सलाहकारी सेवाएँ भी सम्मिलित होती हैं। इंटरनेट फर्मों को, सूचना प्रौद्योगिकीजन्य सूचना सेवाओं को इनके मेजबान से इन्हें बाह्यस्रोतीकरण करवाने के अवसर भी उपलब्ध करवाता है। 

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प्रश्न 11. 
ई-वाणिज्य के लाभों को गिनाइये। 
उत्तर:
ई-वाणिज्य के लाभ 
I. व्यावसायिक संस्थाओं को प्राप्त लाभ-

  • बाजार स्थान का राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों तक विस्तार, 
  • प्रचालन लागत में धीमी गिरावट, 
  • आपूर्ति श्रृंखला प्रबन्धन में खींच की सुविधा, 
  • प्रतिस्पर्धियों पर प्रतिस्पर्धा लाभ, 
  • उचित समय प्रबन्धन तथा व्यवसाय प्रक्रिया को बल मिलना, 
  • बड़ी फर्मों के साथ-साथ छोटी फों का सह-अस्तित्व। 

II. ग्राहकों तथा समाज को लाभ-

  • प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य/छूट/मूल्य त्यागना, 
  • लोचशीलता, 
  • अन्य विकल्प तथा पसंद, 
  • त्वरित एवं समयानुसार सुपुर्दगी (डिजिटाइज्ड उत्पाद), 
  • ग्राहकोनुसार (उत्पाद), 
  • ई-नीलामी की सुविधा, 
  • रोजगार की सम्भावनाएँ, 
  • दूर तक पहुँच।

प्रश्न 12. 
'बाह्यस्त्रोतीकरण का कार्यक्षेत्र' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
बाह्यस्रोतीकरण का कार्यक्षेत्र-बाह्यस्रोतीकरण में चार प्रमुख खण्ड सम्मिलित हैं-संविदा उत्पादन, संविदा शोध, संविदा विक्रय और सूचना विज्ञान। बाह्यस्त्रोतीकरण' शब्द सूचना प्रौद्योगिकीजन्य सेवाओं अथवा व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्त्रोतीकरण के साथ अधिक लोकप्रिय रूप से संलग्न होता है। कॉल सेण्टर ग्राहक-उन्मुख स्तर आधारित सेवा उपलब्ध करवाते हैं। व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण उद्योग का लगभग 70 प्रतिशत राजस्व कॉल सेंटरों से आता है, 20 प्रतिशत उच्च आयतन, निम्न मूल्य डाटा कार्य से और बाकी 10 प्रतिशत उच्च-मूल्य सूचना कार्य से आता है। 'ग्राहक सेवा' अधिक परिमाण में 'कॉल सेंटर' गतिविधियों का 24 घण्टे × 7 दिन अन्तःबंध (ग्राहक के प्रश्न एवं शिकायतें) और बाह्यबंध (ग्राहक सर्वेक्षण, भुगतान अनुवर्ती और टेलीविपणन गतिविधियाँ) यातायात के साथ निर्वहन करती हैं। 

प्रश्न 13. 
बाह्यत्रोतीकरण से सम्बन्धित मुख्य चिन्ताओं को संक्षेप में बतलाइए। 
उत्तर:
बाह्यस्त्रोतीकरण से सम्बन्धित मुख्य चिन्ताएँ- 
1. गोपनीयता का अभाव-यदि बाह्यस्त्रोतीकरण साझेदार गोपनीयता नहीं बरतता है और उदाहरणस्वरूप वह इसे प्रतिस्पर्धियों को पहुँचा देता है तो यह उस पक्ष के हितों को हानि पहुंचा सकता है जिसने अपनी प्रक्रियाओं का बाह्यस्त्रोतीकरण करवाया है।

2. शोषण-बाह्यस्रोतीकरण प्रक्रिया के अन्तर्गत कारीगरों अथवा मजदूरों को अत्यधिक कम भुगतान किया जाता है। फलस्वरूप उनका शोषण होता है। 

3. विचारणीय सन्दर्भ-पिछड़े तथा विकासशील देशों के लोग कार्य प्राप्त करने के लालच में कम मूल्यों पर भी सेवाएं बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं परिणामस्वरूप उनका शारीरिक व मानसिक शोषण सम्भव है। 

4. गृह-देशों में विरोध-उत्पादन, विपणन, शोध एवं विकास और सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं की . संविदाएँ बाहर देने पर आखिरकार जो भी बाहर जाता है वह होता है रोजगार एवं नौकरियाँ। इसके फलस्वरूप गृह-देश में विरोध पनप सकता है। विशेषकर उस परिस्थिति में जब देश बेरोजगारी की समस्या से त्रस्त हो। 

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प्रश्न 14. 
ई-व्यवसाय की विभिन्न सेवाओं को संक्षेप में समझाइए। 
उत्तर:
ई-व्यवसाय की विभिन्न सेवाएँ- 
1. ई-अधिप्राप्ति-ई-अधिप्राप्ति में व्यावसायिक फर्मों के मध्य इन्टरनेट आधारित विक्रय लेन-देन सम्बद्ध होते हैं, जिसमें विपरीत नीलामी जो कि अकेले क्रेता व्यवसायी और अनेक विक्रेताओं के मध्य, ऑनलाइन व्यापार को सुगम बनाती है और अंकीय बाजार स्थलों, जो कि क्रेताओं एवं विक्रेताओं के मध्य ऑनलाइन व्यापार को सुगम बनाते हैं, भी सम्मिलित होते हैं। 

2. ई-बोली/ई-नीलामी-बहुत-सी खरीददारी वेबसाइटों में अपने आप मूल्य प्रस्तुत करने की सुविधा होती है ताकि आप वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए बोली लगा सकें। इसमें ई-निविदाएँ भी शामिल होती हैं। 

3. ई-संचार/ई-संवर्द्धन-इसमें ऑनलाइन सूची-पत्रकों का प्रकाशन जो कि वस्तुओं की छवि प्रदर्शित करते हैं, बैनरों के प्रचार, मत सर्वेक्षण और ग्राहक सर्वेक्षण इत्यादि शामिल होते हैं। सभाएँ एवं सम्मेलन वीडियो कान्फ्रेंस द्वारा किये जा सकते हैं। 

4. ई-सुपुर्दगी-इसमें कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर, फोटो, वीडियो, पुस्तकें और पत्रिकाएँ (ई-पत्रिकाएँ) और अन्य मल्टीमीडिया सामग्री की कम्प्यूटर प्रयोगकर्ता को इलेक्ट्रॉनिक सुपुर्दगी भी सम्मिलित होती है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कानूनी, लेखांकन, वित्त एवं अन्य सलाहकारी सेवाएँ भी सम्मिलित होती हैं। 

5. ई-व्यापार-इसमें प्रतिभूति व्यापार अंशों एवं अन्य वित्तीय प्रपत्रों का ऑनलाइन क्रय एवं विक्रय, सम्मिलित होता है। 

प्रश्न 15. 
ई-व्यापार के माध्यम से वस्तुओं एवं सेवाओं से घटते वितरण चक्र को एक चित्र की सहायता से समझाइये। 
उत्तर:
ई-व्यापार के माध्यम से वस्तुओं एवं सेवाओं से घटता वितरण चक्र-
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दीर्घउत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
ई-व्यवसाय के क्षेत्र को समझाइए। 
अथवा 
ई-व्यवसाय के क्षेत्र का वर्णन/विवेचन कीजिए। 
उत्तर: 
ई-व्यवसाय का क्षेत्र ई-व्यवसाय के विभिन्न घटकों के बीच अन्तर एवं अन्तः लेन-देनों का संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार से है- 
1. फर्म से फर्म कॉमर्स-यहाँ ई-कॉमर्स लेन-देनों में शामिल दोनों पक्ष व्यावसायिक फर्मे हैं। इसलिए इसे फर्म से फर्म नाम दिया गया है। मूल्य-सुपुर्दगी के लिए किसी व्यवसाय को अनेक व्यावसायिक फर्मों से पारस्परिक संवाद करना होता है, जो कि पूर्तिकर्ता अथवा विविध आगतों के विक्रेता हो सकते हैं अथवा उस माध्यम का हिस्सा हो सकते हैं जिसके द्वारा फर्म अनेक उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुँचाती है। उदाहरण के लिए एक ऑटोमोबाइल उत्पादनकर्ता को ऐसी स्थिति में अधिक संख्या में कल-पुों के संग्रहण की आवश्यकता होगी जब वह कहीं और ऑटोमोबाइल फैक्ट्री के आसपास या फिर विदेश में निर्मित होते हों। 

एक पूर्तिकर्ता पर निर्भरता समाप्त करने के लिए ऑटोमोबाइल फैक्ट्री को अपने प्रत्येक कल-पुर्जे के लिए एक से अधिक विक्रेता खोजने होंगे। कम्प्यूटर नेटवर्क का प्रयोग क्रय आदेश (आर्डर) देने, उत्पादन के निरीक्षण और कलपुर्जी की सुपुर्दगी और भुगतान करने के लिए किया जाता है। इसी प्रकार एक फर्म अपनी वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने और उसमें सुधार लाने के लिए अपने स्टॉक की आवाजाही पर उस समय भी वास्तविक नियन्त्रण रख सकता है जब ऐसा हो रहा हो। साथ ही वह विभिन्न स्थानों पर स्थित मध्यस्थों को भी नियन्त्रित कर सकता है। 

ई-कॉमर्स का प्रयोग सूचना, प्रलेखों के साथ ही मुद्रा हस्तान्तरण की गति में वृद्धि के लिये भी किया जाता है। 

2. फर्म से ग्राहक कॉमर्स-फर्म से ग्राहक (व्यवसाय से ग्राहक) लेन-देन में एक सिरे पर व्यावसायिक फर्म होती है तो दूसरे सिरे पर इसके ग्राहक होते हैं। इस समय जो बात मस्तिष्क में आती है वह है ऑनलाइन खरीददारी, परन्तु यह समझना चाहिए कि विक्रय, विपणन प्रक्रिया का परिणाम है और विपणन की शुरुआत उत्पाद को बेचने के लिए प्रस्तुत करने से बहुत पहले शुरू हो जाती है और उत्पाद की बिक्री के बाद तक चलती रहती है। इस प्रकार फर्म से ग्राहक कॉमर्स में विपणन गतिविधियों जैसे गतिविधियों को पहचानना, संवर्द्धन और कभी-कभी उत्पादों की ऑनलाइन सुपुर्दगी (उदाहरण के लिए संगीत एवं फिल्में) का विस्तृत क्षेत्र सम्मिलित होता है। ई-कॉमर्स इन गतिविधियों को बहुत कम लागत परन्तु तीव्रगति से सुगम बनाता है। उदाहरण के लिए, ए.टी.एम. ने धन की निकासी को तेज बना दिया है। ही चाहते हैं कि उन पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्हें न केवल ऐसी उत्पाद विशेषताएँ चाहिए जो कि उनकी जरूरतों के अनुसार हों वरन् उन्हें सुपुर्दगी की सहूलियत और अपनी इच्छानुसार भुगतान की सुविधा भी चाहिए। ई-कॉमर्स के प्रादुर्भाव से यह सब किया जा सकता है। 

ई-कॉमर्स का फर्म से ग्राहक रूप एक व्यवसाय के लिए हर समय अपने ग्राहकों के सम्पर्क में रहना सम्भव बनाता है । कम्पनियाँ यह जानने के लिए कि कौन क्या खरीदता है और ग्राहक सन्तुष्टि स्तर क्या है, ऑनलाइन सर्वेक्षण करवा सकती हैं। 

3. अन्तः बी कॉमर्स-यहाँ इलेक्ट्रॉनिक लेन-देनों में सम्मिलित पक्ष एक ही व्यावसायिक फर्म के भीतर ही होते हैं। इसलिए इसे अन्तः बी कॉमर्स नाम दिया गया है। वृहद् रूप से अन्तः बी कॉमर्स के प्रयोग के कारण ही यह सम्भव हुआ है कि फमें लचीले उत्पादन की ओर उन्मुख हो सकी हैं। कम्प्यूटर नेटवर्क के प्रयोग ने विपणन विभाग के लिए यह सम्भव बनाया है कि वह उत्पादन विभाग के सतत् सम्पर्क में रहे और प्रत्येक ग्राहक की आवश्यकतानुसार उत्पाद प्राप्त करे। इसी तरह कम्प्यूटर आधारित अन्य विभागों के मध्य नजदीकी पारस्परिक सम्पर्क फर्म के लिए यह सम्भव बनाता है कि वह कुशल माल सूची और नकद प्रबन्ध, मशीनरी एवं संयन्त्र के वृहद् इस्तेमाल, ग्राहक क्रयादेशों के कुशल संचालन और मानव संसाधन के कुशल प्रबन्धन के लाभों को उठाये। 

जिस प्रकार इन्टरकॉम ऑफिस के अन्दर मौखिक सम्प्रेषण को सुगम बनाता है, उसी प्रकार इन्टरनेट, संगठन की विभिन्न इकाइयों के मध्य पूरी जानकारी के आधार पर निर्णय के लिए, मल्टीमीडिया और यहाँ तक कि त्रि-आयामी आलेखीय प्रेषण को सुगम बनाता है। इससे बेहतर समन्वय, तीव्र निर्णय और तीव्र गति से कार्य प्रवाह सम्भव होता है। कम्पनियाँ ई-कॉमर्स द्वारा कर्मचारियों की भर्ती, साक्षात्कार और चयन, प्रशिक्षण, विकास और शिक्षा इत्यादि की ओर उन्मुख हो रही हैं। ग्राहकों से बेहतर पारम्परिक सम्प्रेषण के लिए कर्मचारी इलेक्ट्रॉनिक सूची-पत्रों और आदेश पत्रों का प्रयोग कर सकते हैं एवं माल-सूची की सूचना प्राप्त कर सकते हैं। वे ई-डाक के द्वारा कार्यक्षेत्र रिपोर्ट भेज सकते हैं और प्रबन्धन उन्हें वास्तविक समयाधार पर ग्रहण कर सकता है। 

4. ग्राहक से ग्राहक कॉमर्स-ग्राहक से ग्राहक कॉमर्स उस प्रकार की वस्तुओं के लेन-देनों के लिए अधिक उचित है जिनके लिए कोई स्थायी बाजार तन्त्र नहीं होता है। इन्टरनेट की वृहद् स्थान उपलब्धता एक व्यक्ति को वृहद् स्तर पर भावी खरीददार ढूँढ़ने की अनुमति प्रदान करती है। इसके अलावा ई-कॉमर्स तकनीक ऐसे लेन-देन को बाजार प्रणाली सुरक्षा उपलब्ध कराती है जो कि अन्यथा लुप्त हो गई होती। यदि क्रेताओं और विक्रेताओं को आमने-सामने के लेन-देनों में अनामतापूर्वक सम्पर्क स्थापित करना होता। इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण ई-वे में मिलता है जहाँ उपभोक्ता अपनी वस्तुएँ एवं सेवाएँ दूसरे उपभोक्ताओं को बेचते हैं। ई-वे सभी विक्रेताओं एवं क्रेताओं को एक-दूसरे को आँकने की अनुमति देता है। 

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प्रश्न 2.
ई-व्यवसाय तथा पारम्परिक व्यवसाय में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
ई-व्यवसाय तथा पारम्परिक व्यवसाय में अन्तर 
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प्रश्न 3. 
ई-व्यवसाय किसे कहते हैं? इसके लाभ बताइये। 
अथवा 
ई-व्यवसाय के प्रमुख लाभों की संक्षेप में विवेचना कीजिए। 
उत्तर:
ई-व्यवसाय-ई-व्यवसाय को ऐसे उद्योग, व्यापार और वाणिज्य के संचालन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें कम्प्यूटर नेटवर्क का प्रयोग किया जाता है। यह व्यवसाय करने की इलेक्ट्रॉनिक पद्धति है। इसमें सभी व्यावसायिक कार्य, यथा-उत्पादन, वित्त, विपणन, कार्मिक प्रबन्धन तथा प्रबन्धकीय गतिविधियों एवं विभिन्न लेन-देनों में कम्प्यूटर नेटवर्क का उपयोग किया जाता है। 

ई-व्यवसाय के प्रमुख लाभ 
ई-व्यवसाय के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हो सकते हैं- 
1. निर्माण में आसानी एवं निम्न निवेश आवश्यकताएँ-एक उद्योग की स्थापना के लिए प्रक्रियागत आवश्यकताओं के विपरीत ई-व्यवसाय को प्रारम्भ करना आसान होता है। इन्टरनेट तकनीक का लाभ छोटे अथवा बड़े व्यवसायों को समान रूप से पहुँचता है। यदि आपके पास निवेश (पूँजी) के लिए कुछ अधिक नहीं है परन्तु सम्पर्क सूत्र (नेटवर्क) है तो आप बहुत अच्छा व्यवसाय कर सकते हैं। 

2. सुविधापूर्ण-ई-व्यवसाय सुविधापूर्ण भी रहता है। इन्टरनेट 24 घण्टे, सप्ताह के 7 दिन तथा वर्ष के 365 दिन व्यवसाय की सुविधा प्रदान करता है। यथार्थ में ई-व्यवसाय सही मायने में इलेक्ट्रॉनिकी द्वारा समर्थित एवं सम्बन्धित व्यवसाय है जो किसी भी वस्तु की किसी भी समय और कहीं भी सुलभता के लाभ प्रस्तावित करता है। 

3. गति-वस्तुओं के क्रय-विक्रय में बहुत-सी सूचनाओं का विनिमय शामिल होता है जो कि इण्टरनेट द्वारा सिर्फ 'माउस' के क्लिक करने भर से हो जाती है। यह लाभ/सुविधा सूचना उत्पादों जैसे—सॉफ्टवयेर, फिल्मों, ई पुस्तकों एवं पत्रिकाओं जिनकी ऑनलाइन सुपुर्दगी की जा सकती है, के सन्दर्भ में अधिक आकर्षक हो जाती है। माँग की उत्पत्ति से इसकी पूर्ति तक के चक्र को पूरा होने में लगने वाले समय में व्यवसाय प्रक्रियाओं के अनुक्रमिक से समानान्तर अथवा सहकालिक रूपान्तरण होने पर अभूतपूर्व कमी हो जाती है। यह उल्लेखनीय है कि अंकीयकरण काल में मुद्रा को प्रकाश की गति युक्त धड़कन के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें ई-कॉमर्स की कोष हस्तान्तरण तकनीक का महत्त्वपूर्ण योगदान है। 

4. वैश्विक पहुँच/प्रवेश-इन्टरनेट सही मायने में सीमाविहीन है। यह सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता है। एक ओर यह विक्रेता को बाजार की वैश्विक पहुँच प्रदान करता है तो दूसरी ओर यह क्रेता को संसार के किसी भी हिस्से से उत्पाद चयन करने की स्वतन्त्रता वहन करता है। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इन्टरनेट यदि नहीं हो तो वैश्वीकरण का कार्यक्षेत्र एवं गति काफी सीमा तक प्रतिबन्धित हो जायेगी अर्थात् वैश्वीकरण की अवधारणा असफल हो जायेगी। 

5. कागजरहित समाज की ओर अग्रसर-ई-व्यवसाय का एक प्रमुख लाभ यह कहा जा सकता है कि इन्टरनेट के प्रयोग ने काफी हद तक कागजी कार्यवाही और परिचर लालफीताशाही पर निर्भरता को कम कर दिया है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत में मारुति उद्योग बहुत बड़ी मात्रा में अपने कच्चे माल और कल-पुों की पूर्ति का स्रोतीकरण बिना किसी कागजी कार्यवाही के करता है। यहाँ तक कि कई सरकारी विभाग एवं नियामक प्राधिकरण भी इस दिशा में तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। ई-कॉमर्स औजार उन प्रशासनिक सुधारों को भी प्रभावित कर रहे हैं जिनका उद्देश्य अनुमति, अनुमोदन और लाइसेंस प्रदान करने की प्रक्रिया को गति प्रदान करना है। 

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प्रश्न 4. 
ई-व्यवसाय जोखिम से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकारों की संक्षेप में विवेचना कीजिए। इनको कम करने के उपाय भी बतलाइए। 
उत्तर:
ई-व्यवसाय जोखिम-ई-व्यवसाय अर्थात् ऑनलाइन लेन-देन मौखिक लेन-देनों से जहाँ बिल्कुल भिन्न हैं वहीं इनमें कई जोखिमें विद्यमान रहती हैं। जोखिम से आशय किसी ऐसी अनहोनी होने की सम्भावना से है जो कि एक लेन-देन में सम्मिलित पक्षकारों के लिए वित्तीय प्रतिष्ठात्मक अथवा मानसिक हानि का परिणाम बने। ऑनलाइन लेन-देन जहाँ अत्यधिक आसान होते हैं वहीं इनमें कई जोखिमों के होने की अत्यधिक सम्भावना बनी रहती है। यही कारण है कि वर्तमान समय में ई-व्यवसाय अर्थात् ऑनलाइन लेन-देन में सुरक्षा एवं बचाव के मुद्दे बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण बन गये हैं। 

ई-व्यवसाय की जोखिमें 
ई-व्यवसाय में मुख्य रूप से निम्न प्रकार की जोखिमें विद्यमान रहती हैं-
1. लेन-देन जोखिम-लेन-देन के सम्बन्ध में निम्न प्रकार की जोखिमें हो सकती हैं- 

  • आदेश लेन/देन सम्बन्धी चूक-इसमें विक्रेता इस बात के लिए इनकार कर सकता है कि ग्राहक ने उसे कभी आदेश प्रेषित किया था और ग्राहक यह मना कर सकता है कि उसने कभी विक्रेता को आदेश प्रेषित किया था। 
  • सुपुर्दगी की चूक-वाँछित सुपुर्दगी न हो पाना, वस्तुओं की सुपुर्दगी गलत पते पर हो गई हो, अथवा आदेश से अलग/भिन्न वस्तुओं की सुपुर्दगी हो जाये। इसे सुपुर्दगी की चूक कहा जाता है। 
  • भुगतान सम्बन्धी चूक-विक्रेता पूर्ति की गई वस्तुओं के लिए भुगतान प्राप्त नहीं कर पाया हो जबकि ग्राहक दावा करे कि उसने भुगतान कर दिया है। यह भुगतान सम्बन्धी चूक कहलाती है। 

इस प्रकार क्रेता एवं विक्रेता के लिए आदेश लेन-देन में, सुपुर्दगी में, साथ ही भुगतान में चूक होने के कारण जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं । इस तरह की स्थिति से, पंजीकरण के समय पहचान और स्थायी/पते की जाँच द्वारा और आदेश स्वीकृति एवं भुगतान वसूली के लिए एक प्राधिकार प्राप्त कर बचा जा सकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ग्राहक ने पंजीकरण फार्म में अपना सही विवरण लिख दिया है, विक्रेता इसे 'कूकिज' से सत्यापित करवा सकता है। कूकिज टेलीफोन काल पहचानकर्ता के समान ही होते हैं जो कि टेली-विक्रेता को ग्राहक का नाम, पता और उसके पिछले क्रम में भुगतान के विवरण जैसी जरूरी जानकारी उपलब्ध करवाता है। 'ई-वे' जैसी वेबसाइट, विक्रेता की श्रेणी (रेटिंग) तक उपलब्ध करवाती हैं। ऐसी वेबसाइट ग्राहकों को सुपुर्दगी में चूक के प्रति सुरक्षा प्रदान करती है और कुछ सीमा तक किये गये भुगतान की वापसी भी करवाती है। आजकल ऑनलाइन खरीददारी करने के लिए लगभग 95 प्रतिशत लोग क्रेडिट कार्ड का प्रयोग करते हैं। क्रेडिट कार्ड विवरणों को दुरुपयोग से बचाने के लिए, आजकल खरीददारी मॉल सांकेतिक शब्द तकनीक जैसे नेटस्केप कर रहे हैं। 

2. डाटा संग्रहण एवं प्रसारण जोखिम-डाटा चाहे कम्प्यूटर में संग्रहित हों या फिर मार्ग में हों अनेक जोखिमों से आरक्षित होते हैं। महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ कुछ स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों या सिर्फ मजाक के लिए चोरी अथवा संशोधित कर ली जाती हैं। इसके लिए वायरस व हैकिंग का प्रयोग किया जाता है। वायरस एक प्रोग्राम (आदेश की एक श्रृंखला) है जो कि अपनी पुनरावृत्ति इसकी कम्प्यूटर प्रणालियों पर करता रहता है । कम्प्यूटर वायरस का प्रभाव क्षेत्र स्क्रीन प्रदर्शन में मामूली छेड़छाड़ (स्तर-1, वायरस) से लेकर कार्यप्रणाली में बाधा (स्तर-2, वायरस) तक, लक्षित डाटा फाइलों की क्षति (स्तर-3, वायरस) तक, समूची प्रणाली को क्षति (स्तर-4, वायरस) तक, हो सकता है। एंटी वायरस प्रोग्रामों की स्थापना एवं समय-समय पर उनके नवीनीकरण और फाइलों एवं डिस्को की एंटी वायरस द्वारा जाँच आपकी डाटा फाइलों, फोल्डरों और कम्प्यूटर प्रणाली को वायरस के हमले से बचाती है। प्रसारण के दौरान डाटा अवरुद्ध हो सकते हैं। इसके लिए क्रिप्टोग्रापी (कूटलेखन विधि) का प्रयोग किया जा सकता है। 

3. बौद्धिक सम्पदा एवं निजता पर खतरे की जोखिम-इन्टरनेट सबके लिए एक खुला स्थान होत सूचना जब एक बार इन्टरनेट पर उपलब्ध हो जाती है तो वह निजी क्षेत्र के दायरे से बाहर निकल आती है और तब इसकी नकल कोई भी कर सकता है। ऑनलाइन लेन-देनों के दौरान प्रस्तुत डाटा अन्य लोगों को भी पहुँचाये जा सकते हैं जो कि आपके ई-मेल बॉक्स में बेकार प्रचार एवं संवर्द्धन साहित्य भरना शुरू कर सकते हैं। इस प्रकार प्राप्ति छोर पर, आपके पास बेकार/रद्दी डाक प्राप्त करने के बाद प्राप्त करने के लिए कुछ भी नहीं बचता है। 

प्रश्न 5. 
बाह्यस्रोतीकरण क्या है? इसकी मुख्य बातों की संक्षेप में विवेचना कीजिए। 
उत्तर:
बाह्यस्रोतीकरण का अर्थ-सामान्य अर्थ में. किसी कार्य को स्वयं नहीं करके उन लोगों को जिनकी उसमें विशिष्टता है, सौंपना, बाह्यस्रोतीकरण कहलाता है। दूसरे शब्दों में बाह्यस्रोतीकरण वह दीर्घावधि अनुबन्ध प्रदान करने की प्रक्रिया को कहा जाता है जिसमें सामान्यतः व्यवसाय की द्वितीयक (गैर-मुख्य) और बाद में कुछ मुख्य गतिविधियों को आबद्ध अथवा तृतीय पक्ष विशेषज्ञों को उनके अनुभव, निपुणता, कार्यकुशलता और यहाँ तक कि निवेश से लाभान्वित होने के विचार से किया जाता है। 

बाह्यस्त्रोतीकरण की मुख्य बातें-
1. अनुबन्ध या संविदा बाहर प्रदान करना-बाह्यस्त्रोतीकरण का अर्थ है वह सब बाहर से लाना जो कि अब तक आप अपने आप कर रहे थे। उदाहरण के लिए अधिकतर कम्पनियाँ पहले साफ-सफाई और देखभाल का कार्य स्वयं करती थीं परन्तु बाद में अनेक कम्पनियों ने इन गतिविधियों का बाह्यस्रोतीकरण करना शुरू कर दिया अर्थात् उन्होंने अपने संस्थान की इन गतिविधियों के लिए बाहरी एजेन्सियों को अनुबन्धित कर लिया। 

2. सामान्यतः द्वितीयक (गैर-मुख्य) व्यावसायिक गतिविधियों का ही बाह्यस्रोतीकरण-कुछ गतिविधियाँ ऐसी होती हैं जो कि कम्पनी के मूल व्यावसायिक उद्देश्य के लिए मुख्य एवं महत्त्वपूर्ण होती हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह कम्पनी किस व्यवसाय में है। अन्य गतिविधियाँ मुख्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए द्वितीयक या आनुषांगिक मानी जा सकती हैं। जब संस्थाएँ बाह्यस्रोतीकरण की अवधारणा को अपनाती हैं तो वे प्रारम्भ में सिर्फ गैर-मुख्य गतिविधियों का ही बाह्यस्रोतीकरण करती हैं। परन्तु बाद में, जब वे परस्पर निर्भरता का प्रबन्ध करने में सहज हो जाती हैं। तब वे अपनी मुख्य गतिविधियों को भी बाहरी लोगों से निष्पादित करवाती हैं। उदाहरण के लिए एक विद्यालय का उद्देश्य पाठ्यचारी और सहपाठ्यचारी गतिविधियों के माध्यम से बच्चों का विकास करना है। यह विद्यालय की मुख्य गतिविधि मानी जायेगी। जबकि विद्यालय में केंटीन अथवा पुस्तकों की दुकान चलाना विद्यालय के लिए गैर-मुख्य गतिविधियाँ हैं। विद्यालय ये कार्य बाहरी व्यक्तियों से सम्पन्न करवा सकता है। 

3. प्रक्रियाओं का बाह्यस्रोतीकरण आबद्ध इकाई अथवा तृतीय पक्ष का होना-एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी जो विभिन्न उत्पादों में व्यवहार करती है और उनका विपणन अनेक देशों में करती है। इसकी सहायक कम्पनियाँ जो कि विभिन्न देशों में संचालित हो रही हैं, में अनेक प्रक्रियाएँ जैसे कि भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, अभिलेखन और वेतन पत्रक (मानव संसाधन), लेखांकन एवं वित्त, ग्राहक सहायता/शिकायत निर्वाह/निवारण (विपणन) इत्यादि आम हैं। यदि इन प्रक्रियाओं का केन्द्रीयकरण किया जा सकता है और उस व्यवसाय इकाई, जो कि इसी कार्य के लिए सृजित हुई हो, को भेजा जा सकता तो इसके परिणामस्वरूप संसाधनों के दोहराव से बचा जा सकता है। कार्यकुशलता के दोहन और बड़े पैमाने पर एक ही गतिविधि के एक अथवा कुछ चयनित स्थानों पर निष्पादन से मितव्ययिता हो पाती है जिससे परिणामतः लागत में महत्त्वपूर्ण कमी हो पाती है।

स्पष्ट रूप से, इसीलिए कुछ गतिविधियों का आन्तरिक निष्पादन यदि पर्याप्त रूप से विशाल हो तो फर्म के लिए यह लाभप्रद होगा कि उसका एक आबद्ध सेवा प्रदाता हो अर्थात् ऐसा सेवा प्रदाता जो इस प्रकार की सेवा सिर्फ एक फर्म को उपलब्ध करवाने के लिए ही स्थापित हुआ हो। उदाहरण के लिए जनरल इलेक्ट्रॉनिक्स, भारत में स्थापित एक विशालतम आबद्ध व्यवसाय प्रक्रिया बाह्यस्रोतीकरण इकाई है, जो विशेष प्रकार की सेवाएँ अमेरिका स्थित इसकी अभिभावक कम्पनी के साथ ही संसार के अन्य भागों में स्थित इसकी सहायक कम्पनियों को प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त प्रक्रियाएँ उन सेवा प्रदाताओं को भी भेजी जा सकती हैं, जो स्वतन्त्र रूप में बाजार में प्रचालन कर रहे हों और अन्य फर्मों को सेवाएँ प्रदान करते हैं। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि बाह्यस्त्रोतीकरण तेजी से व्यवसाय की एक उभरती पद्धति बनता जा रहा है। व्यावसायिक संस्थाओं ने अपनी उन एक अथवा दो प्रक्रियाओं का जो कि अन्य द्वारा कुशलतापूर्वक एवं प्रभावपूर्ण तरीके से निष्पादित की जा सकती हैं, तेजी से बाह्यस्रोतीकरण शुरू कर दिया है। बाह्यसोतीकरण की जो स्थिति उसे व्यवसाय की उभरती पद्धति के रूप में माने जाने योग्य बनाती है वह है, मूलभूत व्यवसाय नीति और दर्शन के रूप में इसकी बढ़ती स्वीकार्यता जो कि इससे पहले की 'सभी कुछ स्वयं करने के' दर्शन के ठीक विपरीत है। 

RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 5 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ

प्रश्न 6. 
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के कौन-कौन से प्रावधान व्यवसाय जगत और सरकारी क्षेत्र में कागज रहित लेन-देन को सम्भव बना रहे हैं? 
उत्तर:
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के निम्नलिखित प्रावधान व्यवसाय जगत और सरकारी क्षेत्र में कागज रहित लेन-देन को सम्भव बना रहे हैं- 
1. इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों को कानूनी मान्यता (खण्ड-4)-जहाँ कोई कानून यह व्यवस्था देता है कि सूचना अथवा कोई भी अन्य सामग्री लिखित अथवा टाइप की हुई अथवा मुद्रित रूप में होनी चाहिए, तब ऐसा होते हुए सभी उस कानून में समाविष्ट ऐसी कोई भी अनिवार्यता सन्तुष्ट मानी जायेगी यदि ऐसी सूचना अथवा विषय सामग्री इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रस्तुत की जाती है अथवा उपलब्ध करायी जाती है और बाद में सन्दर्भ हेतु उपयोग के लिए उपलब्ध रहती है। 

2. अंकीय (डिजिटल) हस्ताक्षरों को कानूनी मान्यता (खण्ड 5)- जहाँ कोई कानून यह व्यवस्था देता चना या किसी भी अन्य सामग्री की प्रामाणिकता हस्ताक्षर करने से सिद्ध होगी अथवा कोई प्रपत्र हस्ताक्षरित होना चाहिए अथवा उस पर किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर होने चाहिए, इसलिए ऐसा होते हुए भी उस कानून में समाविष्ट ऐसी कोई भी अनिवार्यता सन्तुष्ट मानी जायेगी यदि ऐसी सूचना या विषय सामग्री अंकीय हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित हो तथा यह हस्ताक्षर उस तरीके से किये गये हों जिस प्रकार से केन्द्र सरकार ने निर्धारित किया हो। 

3. इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों और अंकीय हस्ताक्षरों का सरकार एवं दूसरी एजेन्सियों द्वारा उपयोग (खण्ड 6.1)- जहाँ कोई कानून, किसी फार्म, प्रार्थना पत्र अथवा किसी अन्य प्रपत्र को किसी कार्यालय, प्राधिकरण, किसी सरकारी स्वामित्व अथवा नियन्त्रण वाली एजेन्सी में विशेष प्रकार से जमा कराने में, एक विशेष प्रकार से लाइसेन्स, परमिट, अनुशास्ति अथवा किसी भी नाम से अनुोदन जारी करने अथवा स्वीकृति देने में, एक विशेष प्रकार से धन की प्राप्ति एवं भुगतान करने में, व्यवस्था देता है तो ऐसा होते हुए भी उस समय प्रचलित किसी अन्य कानन में समाविष्ट ऐसी अनिवार्यताएँ सन्तुष्ट मानी जायेंगी. यदि वह जमा कराने, स्वीकति जारी करने. प्राप्ति अथवा भुगतान, जैसा भी मामला हो, में उस इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रभावी होगा जैसा कि सरकार द्वारा निर्धारित है। 

4. इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों का प्रतिधारण (खण्ड 7.1)-जहाँ कानून यह व्यवस्था देता है कि प्रपत्रों, अभिलेखों अथवा सूचनाओं को एक विशिष्ट अवधि तक संभालकर रखा जाये, तब वह अनिवार्यता सन्तुष्ट मानी. जायेगी यदि वह प्रपत्र, अभिलेख अथवा सूचना इलेक्ट्रॉनिक रूप से संभाल कर रखे गये हों। 

RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 5 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ

प्रश्न 7. 
बाह्यस्त्रोतीकरण की संरचना को एक चित्र की सहायता से समझाइये। 
उत्तर:
बाह्यस्त्रोतीकरण की संरचना का चार्ट निम्न प्रकार है- 
RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 5 व्यवसाय की उभरती पद्धतियाँ 8

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Last Updated on July 7, 2022, 3:46 p.m.
Published July 6, 2022