RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

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RBSE Class 11 Biology Chapter 18 Notes शरीर द्रव तथा परिसंचरण

→ रुधिर परिसंचरण तन्त्र-मनुष्य में O2 व CO2 पोषक पदार्थों, उत्सर्जी पदार्थों तथा स्रावी पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पहुँचाने तथा लाने वाले तन्त्र को ही रुधिर परिसंचरण तन्त्र कहते हैं।

→ परिसंचरण तन्त्र दो प्रकार का होता है

  • खुला परिसंचरण तन्त्र—इस प्रकार के परिसंचरण में तरल द्रव कोशिका तथा ऊतकों के मध्य प्रवाहित होता है अर्थात् विशिष्ट बन्द नलिकाओं में नहीं बहता है। जैसे मौलस्का तथा कीटों में।
  • बन्द परिसंचरण तन्त्र-इस परिसंचरण तन्त्र में रुधिर बन्द नलिकाओं में बहता है। जैसे खरगोश एवं मनुष्य में। 

→ मनुष्य में परिसंचरण तन्त्र के अन्तर्गत दो तन्त्र आते हैं- .

  • रुधिर परिसंचरण तन्त्र
  • लसीका तन्त्र। 

→ परिसंचरण के घटक निम्न हैं

  • रुधिर (Blood)
  • हृदय (Heart)
  • रुधिर वाहिनियाँ (Blood Vessels)। 

→ रुधिर (Blood):
यह एक विशेष प्रकार का ऊतक है, जिसमें द्रव्य अधात्री (मैट्रिक्स) प्लाज्मा तथा अन्य संगठित संरचनाएँ पाई जाती हैं।

→ प्लाज्मा (Plasma):
यह एक हल्के पीले रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है जो रक्त के आयतन लगभग 55 प्रतिशत होता है। इसमें 90-92 प्रतिशत जल तथा 6-8 प्रतिशत प्रोटीन पदार्थ होता है। फाइब्रिनोजन, ग्लोबुलिन तथा एल्बुमिन प्लाज्मा में उपस्थित मुख्य प्रोटीन हैं। फाइब्रिनोजन की आवश्यकता रक्त का थक्का बनाने या स्कंदन में होती है। ग्लोबुलिन का उपयोग शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र तथा एल्बुमिन का उपयोग परासरणी सन्तुलन के लिए होता है।

→ संगठित पदार्थ:
रक्त के संगठित पदार्थों के अवयव निम्नलिखित है

  • लाल रुधिर कणिकाएँ (RBC)
  • श्वेत रुधिर कणिकाएँ (WBC)
  • प्लेटलेट्स।

→ बर्न स्टीन (1924) के अनुसार A, B, O रुधिर वर्ग मनुष्य का आनुवंशिक लक्षण है। इसकी वंशागति तीन जीनों पर निर्भर करती है। ये जीन्स हैं—एन्टीजन A के विकास के लिए αa जीन तथा B के लिए αb जीन तथा 0 के लिए α° जीन।

RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण 

→ Rh. तत्व (Factor) की खोज रीसस बन्दर में लैण्डस्टीनर वीनर द्वारा की गई।

→ एरिथोब्लास्टोसिस फीटे लिस (Erythroblastosis Foetalis)- यदि Rh+ पुरुष का विवाह Rh महिला से होता है तो प्रथम संतान Rh+ सामान्य होगी। लेकिन एक के पश्चात् सभी सन्तानों की भ्रूणीय अवस्था में माता के गर्भाशय के अन्दर ही रुधिर का थक्का बनने के कारण मृत्यु हो जायेगी। इस रोग को एरिथोब्लास्टोसिस फीटेलिस कहते हैं।

→ रक्त का थक्का बनना-चोट लगे स्थान पर रुधिर का बहना बन्द हो जाता है, इसे थक्का बनना कहते हैं। इसमें घुलनशील प्रोटीन फाइब्रिनोजन, अघुलनशील प्रोटीन फाइब्रीन में बदल जाती है। रक्त नलिकाओं में हिपेरिन रक्त को नहीं जमने देता है।

→ हृदय (Heart)-वक्ष गुहा में स्थित होता है । इसके चारों ओर पाये जाने वाले आवरण को हृदयावरण (Pericardium) कहते हैं। हृदय में चार कोष्ठ होते हैं । अग्र भाग में दो आलिन्द व पश्च भाग में दो निलय होते हैं । दाहिना आलिन्द तीन महाशिराओं द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों से अशुद्ध रक्त प्राप्त करता है।

→ बायां आलिन्द-फुफ्फुसशिरा द्वारा फुफ्फुसों से शुद्ध रक्त प्राप्त करता है। दाहिने आलिन्द का रक्त दाहिने निलय में व बायें आलिन्द का बायें निलय में आता है। दाहिने आलिन्द व दाहिने निलय के बीच त्रिदल कपाट होता है। इसी प्रकार बायें आलिन्द व बायें निलय के बीच द्विदल कपाट पाया जाता है। इसे मिटल कपाट कहते हैं।

→ दाहिने निलय की अपेक्षा बायां निलय बड़ा व अधिक पेशीय होता है। बायें निलय से पल्मोनरी महाधमनी चाप रक्त प्राप्त करके फुफ्फुसों को देता है । दाहिने निलय से पल्मोनरी महाधमनी चाप रक्त प्राप्त करके फुफ्फुसों को देता है। दाहिने निलय से केरोटिको-सिस्टेमिक महाधमनी चाप रक्त प्राप्त करके धमनियों को देता है।

→ हृदय धड़कन (Heart Beat)-हृदय का क्रमिक स्पन्दन होता है। संकुचन को सिस्टोल व शिथिलन को डाएस्टोल कहते हैं। एक सिस्टोल एवं एक डाएस्टोल को सम्मिलित रूप से हृदय-स्पन्दन (Heart Beat) कहते हैं। मनुष्य का हृदय एक मिनट में लगभग 72 से 80 बार स्पन्दन करता है। मनुष्य का हृदय मायोजेनिक प्रकार का होता है।

→ शिरा आलिन्द पर्व (SAN)-आलिन्द विलय पर्व (AVN) हृदय की स्पन्दन का नियमन करते हैं । शिरा आलिन्द पर्व तक आने वाली त्वरित तन्त्रिकायें धड़कन को तेज करती हैं व निरोधक तन्त्रिकायें धड़कन को कम करती हैं।

→ हृद चक्र (Cardiac Cycle)-एक हृदय की धड़कन पूरी होने के दौरान होने वाले समस्त चक्रीय परिवर्तनों को हृद चक्र या कार्डियक चक्र कहते हैं।

→ इस चक्र की प्रमुख प्रावस्थाएँ निम्न हैं

  • आलिन्दों का अनुशिथिलन,
  • आलिन्दों का प्रकुंचन,
  • निलयों का प्रकुंचन,
  • निलयों का अनुशिथिलन। 

→ हृदय ध्वनियाँ (Heart Sounds):
कार्डियक चक्र के दौरान दो प्रकार की ध्वनियाँ निकलती हैं जिन्हें हृदय ध्वनियाँ कहते हैं। इन ध्वनियों को स्टेथेस्कोप के द्वारा सुना जाता है।

  • प्रथम हृदय ध्वनि-यह ध्वनि (लब) त्रिवलनी तथा द्विवलनी (mitral valve) कपाट के बन्द होने से सम्बन्धित है।
  • द्वितीय हृदय ध्वनि-यह ध्वनि (डब) अर्ध-चन्द्राकार कपाट के बन्द होने से सम्बन्धित है। 

→ रुधिर वाहिनियाँ (Blood Vessels):
ये तीन प्रकार की होती

  • धमनियाँ
  • शिराएँ
  • केशिकाएँ। धमनियाँ रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती हैं तथा शिरायें शरीर के विभिन्न भागों से रक्त को इकट्ठा कर हृदय में लाती हैं।

→ दोहरा परिसंचरण (Double Circulation):
रक्त का एक चक्र में दो बार हृदय से गुजरना-पहली बार शरीर का समस्त अशुद्ध रुधिर हृदय के दाहिने आलिन्द में एकत्रित होकर दाहिने निलय से होते हुए फेफड़ों में जाता है तथा दूसरी बार हृदय के बायें आलिन्द में फेफड़ों से फुफ्फुस शिराओं द्वारा एकत्रित शुद्ध रुधिर महाधमनी द्वारा समस्त शरीर में पम्प किया जाता है। इस प्रकार के रुधिर परि भ्रमण को दोहरा परिसंचरण (Double Circulation) कहते हैं।

→ रक्त दाब (Blood Pressure)-रुधिर बन्द नलियों में बहता है। रक्त द्वारा रक्त नलिकाओं पर डाला जाने वाला दाब रुधिर दाब कहलाता है। स्वस्थ मनुष्य का रुधिर दाब 120/80 mm/ Hg. होता है।

→ निवाहिका तन्त्र रक्त को सीधे हृदय में न ले जाकर अन्य किसी अंग में ले जाता है, फिर वहाँ से हृदय में जाता है। मनुष्य में केवल यकृत निवाहिका तन्त्र होता है।

→ लसीका तन्त्र (Lymphatic System):
यह लसीका, लसीका वाहिनियों तथा लसीका पर्व से मिलकर बना होता है। लसीका रक्त का छना हुआ भाग है जिसमें RBC नहीं होते तथा लिम्फोसाइट अधिक होते हैं । लसीका तन्त्र में सिर्फ शिरायें होती हैं।

→ रुधिर एवं परिसंचरण तन्त्र सम्बन्धी रोग (Diseases related to Blood and Circulatory System) निम्न हैं

  • उच्च रक्त दाब (अति तनाव),
  • हृदय धमनी रोग (CAD),
  • हृदयशूल (एंजाइना),
  • हृदयपात (हार्ट फेल्योर)।

→ हृदय क्रिया का नियमन:
यद्यपि हृदय स्व-उत्तेज्य होता है लेकिन इसकी क्रियाशीलता को तन्त्रिकीय तथा हारमोन की क्रियाओं से नियमित किया जा सकता है।

RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

→ लसीका, रक्त एवं ऊतक द्रव के मध्य एक बिचौलिये (middle | man) की तरह कार्य करता है।

→ सिस्टर्ना काइली (Cisterna chyli) को मनुष्य का द्वितीय हृदय (Second heart) कहते हैं।

→ रुधिर प्लाज्मा, ऊतक द्रव्य तथा लसीका मिलकर शरीर का तरल अन्त:वातावरण बनाते हैं, जिसे बेयर्ड हेस्टिंग्स (Baird Hastings) ने शरीर के भीतर के समुद्र (Sea within the body) की संज्ञा दी।

→ प्लीहा को RBC का कब्रिस्तान (graveyard of RBC) भी कहते हैं।

→ प्लीहा, यकृत एवं वृक्क रुधिर के फिल्टर उपकरण (Filter appratus) की तरह कार्य करते हैं।

→ रुधिर में उपस्थित रक्त कणिकाओं (Blood corpuscles) की गणना हीमोसाइटोमीटर (haemocytometer) द्वारा किया जाता

→ हीमोग्लोबिन की मात्रा को रुधिर में शेली हीमोमीटर (Shalii Haemometer) द्वारा ज्ञात किया जाता है। 

→ जन्तुओं में सबसे बड़ी RBC (75 u) एम्फीयूमा (Amphiuma) की होती है।

→ स्तनधारियों में सबसे बड़ी RBC (9.4 µ) हाथी एवं सबसे छोटी कस्तूरी हिरण (Musk Deer) की होती है। 

→ RBC की सिक्कों (Coins) के समान व्यवस्थित होने की क्रिया रॉलेक्स (Rouleaux) कहलाती है।

→ RBC के निर्माण के लिए विटामिन B12 एवं विटामिन C की आवश्यकता होती है। 

→ रुधिर स्कन्धन में लगने वाला समय लगभग 3 से 8 मिनट का होता है।

→ फाइब्रिनोजन एवं प्रोस्थोम्बिन का निर्माण यकृत में होता है। 

→ प्लीहा को RBC का बूचड़खाना (Slaughter house of RBC) एवं रुधिर बैंक (Blood Bank) भी कहते हैं।

→ मछलियों में वीनस हृदय (Venus heart) होता है तथा इनमें एक परिसंचरणीय तंत्र (single circuit circulation) होता है।

→ सरीसृपों (reptiles) में 31 कक्षीय हृदय पाया जाता है।

→ खाना खाने के बाद हृदय दर बढ़ (↑) जाती है। 

→ QRST तरंग निलय की क्रिया (Ventricular activity) को प्रदर्शित करती है।

→ कभी-कभी जन्म के बाद फोरामेन आवेलिस (Foramen ovalis) शिशुओं के हृदय में पाया जाता है। ऐसे बच्चों को ब्ल्यू बेबी (Blue baby) कहते हैं। हृदय स्पंदन को कम होने को बेडिकार्डिया (Bradycardia) एवं अधिक होने को टेकिकार्डिया (Tachycardia) कहा जाता

→ धमनियों (arteries) के स्पंदन को नाड़ी या नब्ज (pulse) कहते हैं।

→ नब्ज मापने के यंत्र को स्फिग्मोमेनोमीटर (sphygmomanometer) कहते हैं।

→ रुधिरलयन (Haemolysis): लाल रुधिर कणिकाओं का टूटना या अपघटन होना जिसमें हीमोग्लोबिन बाहर निकल आये, रुधिरलयन कहलाता है। इसके कारण मनुष्य में पीलिया हो जाता है।

→ हृदय संकुचन के समय उत्पन्न होने वाले विभव (potential) को नापने को इलेक्ट्रॉकार्डियोग्राम (Electrocardiogram) कहते हैं।

→ ये अपने जीवनकाल में शरीर के लगभग 50,000 चक्कर लगा लेती है।

→ पुरुषों व स्त्रियों के रुधिर का घनत्व क्रमशः 1.057 व 1.053 होता है।।

Prasanna
Last Updated on July 26, 2022, 5:01 p.m.
Published July 26, 2022