Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन Important Questions and Answers.
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I. रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न (Fill in the blanks type questions)
प्रश्न 1.
समुद्रीय मछलियाँ उत्सर्जन के आधार पर ............................. होती हैं।
उत्तर:
यूरियोटेलिक
प्रश्न 2.
कॉकरोच में मैलपीगी नलिकाएँ नाइट्रोजनी अपशिष्टों के उत्सर्जन और ............................. में मदद करती हैं।
उत्तर:
परासरण नियमन
प्रश्न 3.
वृक्काणु (Nephron) में ............................. के आकार का हेनले का लूप (Henle's loop) पाया जाता है।
उत्तर:
'U'
प्रश्न 4.
वृक्कों द्वारा प्रति मिनट औसतन ............................. मिली. रक्त का निस्पंदन किया जाता है।
उत्तर:
1100 - 1200
प्रश्न 5.
हृदय के आलिन्दों में अधिक रुधिर के बहाव से ............................. स्रावित होता है।
उत्तर:
अलिंदीय नेट्रिमेरेटिक कारक (एएनएफ)
प्रश्न 6.
हमारे फेफड़े प्रतिदिन भारी मात्रा में CO2 लगभग ............................. ml/मिनट निष्कासन करते हैं।
उत्तर:
200
प्रश्न 7.
कुछ नाइट्रोजनी अपशिष्टों का निष्कासन ............................. द्वारा भी होता है।
उत्तर:
लार
प्रश्न 8.
वृक्क की क्रियाहीनता को दूर करने का अन्तिम उपाय ............................. है।
उत्तर:
वृक्क प्रत्यारोपण
प्रश्न 9.
विलिरुबिन, विलीविरडिन एवं कोलेस्ट्राल को ............................. के साथ निकाला जाता है।
उत्तर:
मल
प्रश्न 10.
तेल ग्रन्थियाँ ............................. द्वारा कुछ स्टेरोल, हाइड्रोकार्बन एवं मोम जैसे पदार्थों का निष्कासन करती हैं।
उत्तर:
सीबम।
II. सत्य व असत्य प्रकार के प्रश्न (True and False type questions)
प्रश्न 1.
केंचुए के वृक्कक (nephridia) द्रव और आयनों का सन्तुलन बनाए रखने में सहायता करते हैं। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
क्रस्टेशियाई प्राणियों में शृंगिक ग्रन्थियाँ (Antennal glands) उत्सर्जन का कार्य करती हैं। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 3.
वृक्क की पथरी यूरिक अम्ल या ऑक्सेलेट के अवक्षेपण के कारण बनती है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 4.
प्राणियों द्वारा उत्सर्जित होने वाले नाइट्रोजनी अपशिष्टों में मुख्य रूप से अमोनिया, यूरिया और यूरिक अम्ल हैं। इनमें यूरिया सर्वाधिक आविष (टॉक्सिक) है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 5.
अमोनिया को वृक्क द्वारा यूरिया में परिवर्तित किया जाता है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 6.
ऐसे वृक्काणुओं जिनके हेनले के लूप बहुत लम्बे होते हैं तथा मध्यांश में काफी गहराई तक स्थित होते हैं, उन्हें वल्कुटीय वृक्कक कहते हैं। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 7.
वृक्काणु के प्रारम्भिक भाग में जल का पुनरावशोषण निष्क्रिय क्रिया द्वारा होता है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 8.
एंजोयोटेसिन द्वितीय अधिवृक्क वल्कुट (Adrenal cortex) को एल्डोस्टीरोन हार्मोन स्रावण के लिए प्रेरित करता है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 9.
मूत्र में कीटोन काय की उपस्थिति से कीटोन यूरिया नामक रोग हो जाता है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 10.
मरीजों में यूरिया का निष्कासन हीमोडायलिसिस (रक्त अपोहन) द्वारा होता है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य
III. निम्न को सुमेलित कीजिए (Match the following)
स्तम्भ - I में दिये गये पदों का स्तम्भ - II में दिये गये पदों के साथ सही मिलान कीजिए:
प्रश्न 1.
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. नेफ्रीडिया |
(i) कॉकरोच |
B. मैलपीघी नलिकाएँ |
(ii) केचुआ |
C. प्रोटोनेफ्रीडिया |
(iii) मानव |
D. वृक्क |
(iv) प्लैनेरिया |
उत्तर:
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. नेफ्रीडिया |
(ii) केचुआ |
B. मैलपीघी नलिकाएँ |
(i) कॉकरोच |
C. प्रोटोनेफ्रीडिया |
(iv) प्लैनेरिया |
D. वृक्क |
(iii) मानव |
प्रश्न 2.
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. यूरिनिया |
(i) मूत्र में कीटोन कणों की उपस्थिति |
B. कीटोनुरिया |
(ii) मूत्र में यूरिया की उपस्थिति |
C. ग्लाइकोसूरिया |
(iii) मूत्र में पानी की मात्रा बढ़ना |
D. डाइयूरेप्सिस |
(iv) मूत्र में ग्लूकोज की उपस्थिति |
उत्तर:
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. यूरिनिया |
(ii) मूत्र में यूरिया की उपस्थिति |
B. कीटोनुरिया |
(i) मूत्र में कीटोन कणों की उपस्थिति |
C. ग्लाइकोसूरिया |
(iv) मूत्र में ग्लूकोज की उपस्थिति |
D. डाइयूरेप्सिस |
(iii) मूत्र में पानी की मात्रा बढ़ना |
प्रश्न 3.
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. परानिस्पंदन |
(i) हेनले का लूप |
B. मूत्र का सान्द्रण |
(ii) मूत्रवाहिनी (यूरेटर) |
C. मूत्र का परिवहन |
(iii) मूत्राशय |
D. मूत्र का संग्रह |
(iv) माल्पीघियल सम्पुट |
उत्तर:
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. परानिस्पंदन |
(iv) माल्पीघियल सम्पुट |
B. मूत्र का सान्द्रण |
(i) हेनले का लूप |
C. मूत्र का परिवहन |
(ii) मूत्रवाहिनी (यूरेटर) |
D. मूत्र का संग्रह |
(iii) मूत्राशय |
प्रश्न 4.
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. अमोनोटेलिक |
(i) समुद्री मछलियाँ |
B. यूरियोटेलिक |
(ii) अस्थिल मछलियाँ |
C. यूरिकोटेलिक |
(iii) पक्षियों |
|
(iv) सरीसर्प |
उत्तर:
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. अमोनोटेलिक |
(ii) अस्थिल मछलियाँ |
B. यूरियोटेलिक |
(i) समुद्री मछलियाँ |
C. यूरिकोटेलिक |
(iv) सरीसर्प |
प्रश्न 5.
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. वृक्क |
(i) CO2 |
B. फेफड़े |
(ii) मूत्र |
C. यकृत |
(iii) सीबम |
D. त्वचा |
(iv) यूरिया |
उत्तर:
स्तम्भ - I |
स्तम्भ - II |
A. वृक्क |
(ii) मूत्र |
B. फेफड़े |
(i) CO2 |
C. यकृत |
(iv) यूरिया |
D. त्वचा |
(iii) सीबम |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ज्वाला कोशिकाएँ किस संघ के प्राणियों में पाई जाती हैं?
उत्तर:
ज्वाला कोशिकाएँ (Flame cells) प्लेटीहैल्मीन्थीज संघ के प्राणियों में पाई जाती हैं।
प्रश्न 2.
प्राणियों द्वारा उत्सर्जित होने वाले किन्हीं दो नाइट्रोजनी अपशिष्टों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 3.
स्थलीय घोंघे उत्सर्जन के आधार पर किस प्रकार के प्राणी हैं?
उत्तर:
स्थलीय घोंघे उत्सर्जन के आधार पर यूरिकोटेलिक (Uricotelic) प्राणी हैं।
प्रश्न 4.
मनुष्य के वृक्क की आकृति किसके बीज के समान होती है?
उत्तर:
मनुष्य के वृक्क की आकृति सेम (bean) के बीज के समान होती है।
प्रश्न 5.
वृक्क के दो भागों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 6.
उत्सर्जन की सर्वमान्य उचित परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
उपापचयी प्रक्रियाओं के फलस्वरूप निर्मित नाइट्रोजनी अपशिष्टों के जन्तु देह से निष्कासन की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।
प्रश्न 7.
केशिका गुच्छ निस्यन्दन दर किसे कहते हैं?
उत्तर:
दोनों वृक्कों के सभी वृक्काणुओं द्वारा प्रति मिनट निर्मित केशिका गुच्छ निस्यन्द के कुल परिणाम को केशिकागुच्छ निस्यन्दन दर (Glomerulus filtration rate) कहते हैं।
प्रश्न 8.
पिरैमिड (Pyramids) किसे कहते हैं?
उत्तर:
मेड्यूला के उभार जो कार्टेक्स में फंसे होते हैं. पिरमिड कहलाते हैं।
प्रश्न 9.
बोमन सम्मुट तथा केशिका गुच्छ को सम्मिलित रूप से क्या कहते हैं?
उत्तर:
बोमन सम्पुट तथा केशिका गुच्छ को सम्मिलित रूप से मैलपीघीयन काय (Malpighian Body) कहते हैं।
प्रश्न 10.
बर्टिनी के वृक्क स्तम्भ (Renal Columns of Bertani) किसे कहते हैं?
उत्तर:
कार्टेक्स के ये उभार जो मेड्यूला में धैसे होते हैं, उन्हें बर्टिनी के वृक्क स्तम्भ कहते हैं।
प्रश्न 11.
बोमन सम्पुट को रक्त ले जाने वाली रक्त वाहिनी का नाम लिखिए।
उत्तर:
अभिवाही धमनिका (Efferent Arteriole) द्वारा बोमन सम्पुट में रक्त ले जाया जाता है।
प्रश्न 12.
मूत्रवाहिनी का प्रारम्भिक भाग जो कीपनुमा आकृति का होता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
मूत्रवाहिनी का प्रारम्भिक भाग जो कीपनुमा आकृति का होता है उसे पेल्विस (Pelvis) कहते हैं।
प्रश्न 13.
मछलियों में वृक्क के अतिरिक्त कौनसे अंग उत्सर्जन में सहायता करते हैं?
उत्तर:
मछलियों में वृक्क के अतिरिक्त गिल्स (gills) भी उत्सर्जन में सहायता करते हैं।
प्रश्न 14.
बोमन सम्युट की आन्तरिक उपकला में पाई जाने वाली विशिष्ट कोशिकाओं को क्या कहते हैं?
उत्तर:
बोमन सम्पुट की आन्तरिक उपकला में पाई जाने वाली विशिष्ट केशिकाओं को पोडोसाइट (Podocyte) कहते हैं।
प्रश्न 15.
बड़े आकार के नेफ्रॉन जो कार्टेक्स व मेड्यूला के सन्धितल पर पाये जाते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर:
बड़े आकार के नेफ्रॉन जो कार्टेक्स व, मेड्यूला के सन्धितल पर पाये जाते हैं, उन्हें जक्स्टा मेड्यूलरी नेफ्रॉन कहते हैं।
प्रश्न 16.
वासा - रेक्टा (Vassa - Recta) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जक्स्टा मेड्यूलरी नेफ्रॉन के पिन के शीर्ष के समान वाला हैनले के चारों ओर पाई जाने वाली रक्त कोशिकाओं के लूप को वासारेक्टा (Vassa - Recta) कहते हैं।
प्रश्न 17.
वे प्राणी जो यूरिया (Urea) का उत्सर्जन करते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर:
वे प्राणी जो यूरिया (Urea) का उत्सर्जन करते हैं, यूरियोटेलिक प्राणी कहते हैं।
प्रश्न 18.
यूरिकोटेलिक (Uricotelic) से क्या तात्पर्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वे प्राणी जो यूरिक अम्ल (Uric acid) का उत्सर्जन करते हैं, यूरिकोटेलिक प्राणी कहते हैं। उदाहरण- पक्षी, कीट आदि।
प्रश्न 19.
मरीजों में यूरिया का निष्कासन किसके द्वारा किया जाता हैं?
उत्तर:
मरीजों में यूरिया का निष्कासन होमोडायलिसिस (रक्त अपोहन) द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 20.
तैल ग्रन्थियाँ सीबम द्वारा किन पदार्थों का निष्कासन करती हैं?
उत्तर:
तैल ग्रन्थियाँ सीबम द्वारा स्टेरोल, हाइड्रोकार्बन एवं मोम जैसे पदार्थों का निष्कासन करती हैं।
प्रश्न 21.
परिनलिका जाल किसे कहते हैं?
उत्तर:
नेफ्रॉन के कुण्डलित भाग के चारों तरफ पाये जाने वाले रक्त केशिकाओं के जाल को परिनलिका जाल कहते हैं।
प्रश्न 22.
बोमन सम्मुट के बीच पाये जाने वाले रुधिर केशिकाओं के जाल को क्या कहते हैं?
उत्तर:
बोमन सम्पुट के बीच पाये जाने वाले रुधिर केशिकाओं के जाल को केशिका गुच्छ (Glomerulus) कहते हैं।
प्रश्न 23.
हेनले का लूप कहाँ पाया जाता है तथा इसकी आकृति किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
हेनले का लूप वृक्क के मेड्यूला भाग में पाया जाता है। इसकी आकृति 'U' के समान होती है।
प्रश्न 24.
NaCl का परिवहन हेनले लूप की किस भुजा द्वारा होता है?
उत्तर:
NaCl का परिवहन हेनले लूप की आरोही भुजा द्वारा होता है।
प्रश्न 25.
एक प्रभावकारी वाहिका संकीर्णक (वेसोकेंसट्रिक्टर) का नाम लिखिए।
उत्तर:
एजियोटें सिन द्वितीय एक प्रभावकारी संकीर्णक (वेसोकेंसट्रिक्टर) है।
प्रश्न 26.
हृदय के आलिन्दों में अधिक रुधिर के बहाव से कौनसा कारक स्रावित होता है?
उत्तर:
हदय के आलिन्दों में अधिक रुधिर के बहाव से अलिंदीय नेट्रिमेरेटिक कारक स्रावित होता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृक्क प्रत्यारोपण से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त में बताइए।
उत्तर:
वृक्क प्रत्यारोपण (Kidney transplantation): यदि किसी व्यक्ति का वृक्क कार्य करना पूर्णतया बन्द कर दे एवं अन्य सभी उपचार असफल हो जायें तो वृक्क परिवर्तन करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिसे वृक्क प्रत्यारोपण कहते हैं। वृक्क देने वाले व्यक्ति को दाता एवं जिसके वृक्क प्रत्यारोपित किया जाता है उसे ग्राही कहते हैं। ये दोनों व्यक्ति एक - दूसरे के सम्बन्धी हों। वृक्क देने वाला व्यक्ति जीवित अथवा उसकी हाल ही में मृत्यु हुई हो। वृक्क प्राप्त करने वाला एवं दाता के शरीर में संयोज्यता होनी चाहिए क्योंकि प्राप्तकर्ता के ऊतक एवं दाता के ऊतकों में जितनी अधिक समानता होगी, उतने ही हम अवसर ग्राही शरीर द्वारा वृक्क को अस्वीकार करने के होंगे। कभी - कभी वृक्क प्राप्तकर्ता का प्रतिरक्षित तन्त्र प्रत्यारोपित वृक्क को विजातीय मानकर वृक्क पर आक्रमण करने लगता है जिससे बचने के लिए विशेष औषधियों द्वारा प्रतिरक्षी तन्त्र को निष्क्रिय बना दिया जाता है। इससे व्यक्ति द्वारा प्रत्यारोपित वृक्क को स्वीकार करने की सम्भावना बढ़ जाती है।
प्रश्न 2.
मनुष्य के वृक्क के कार्य लिखिए।
उत्तर:
वृक्क के कार्य (Functions of Kidney): वृक्कों का मुख्य कार्य रक्त को छानना तथा छने हुए तरल से शरीर के लिए उपयोगी एवं आवश्यक पदार्थों का पुनः अवशोषण करके मूत्र का निर्माण करना है। मूत्र निर्माण करने के अतिरिक्त यह निम्नलिखित कार्य भी करते है:
प्रश्न 3.
नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों के आधार पर निर्धारित श्रेणियों को उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों के आधार पर निर्धारित श्रेणियाँ:
1. अमोनिया उत्सर्जीकरण (Ammonotelism): ऐसे जन्तु जो अमोनिया का उत्सर्जन करते हैं, उन्हें अमोनोटेलिक जन्तु कहते हैं। अधिकतर जल में रहने वाले जन्तु समूह इस प्रकार के होते हैं, क्योंकि जलीय वातावरण में घुलनशील अमोनिया परिवर्तन के देह से सामान्य विसरण द्वारा जलीय वातावरण में चली जाती है। उत्सर्जन की इस विधि को अमोनिया उत्सर्जीकरण कहते हैं। उदाहरण- अमीबा, पैरामिशियम, अस्थिल मछलियाँ, मेंढक का टेडपोल लारवा आदि।
2. यूरिया उत्सर्जीकरण (Ureotelism): ऐसे जन्तु जो नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का त्याग मुख्यतया यूरिया (Urea) के रूप में करते हैं उन्हें यूरियोटेलिक जन्तु कहते हैं। इन जन्तुओं में प्रोटीन उपापचय के दौरान अमोनिया बनती है। यह अमोनिया CO2 के साथ आर्निथीन चक्र द्वारा यूरिया का निर्माण करती है। यह कार्य यकृत द्वारा पूर्ण होता है। यूरिया घोलने के लिए जल की कुछ मात्रा की आवश्यकता होती है। अत: यूरिया तरल मूत्र के रूप में बाहर निकलता है। यह कम विषैला होता है। उत्सर्जन की इस विधि को यूरिया उत्सजीकरण कहते हैं। उदाहरण- वयस्क उभयचर, स्तनधारी एवं समुद्री मछलियाँ आदि।
3. यूरिको उत्सर्जीकरण (Uricotelism): ऐसे जन्तु जो मुख्यतया नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का त्याग यूरिक अम्ल के रूप में करते हैं, उन्हें यूरिकोटेलिक जन्तु कहते हैं एवं इस विधि को यूरिको उत्सर्जीकरण कहते हैं। यूरिक अम्ल जल में लगभग अघुलनशील होता है। वृक्क नलिकाओं में इसका अवक्षेपण (Precipitation) हो जाता है तथा मूत्र से जल का वृक्क नलिकाओं द्वारा पुनः अवशोषण हो जाता है, अत: इन जन्तुओं में यूरिक अम्ल का एक सफेद से अति गाढ़ी लेई अर्थात् पेस्ट (Paste) के रूप में निष्कासन होता है। इस प्रकार यह जल संरक्षण में सहायक है। उदाहरण- सरीसृप पक्षी, कीट एवं स्थलीय घोंघे आदि।
प्रश्न 4.
उत्सर्जन में यकृत के योगदान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यकृत की कोशिकाएं शरीर में आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्लों के नाइट्रोजनी भाग को अमोनिया में तथा अमोनिया को कम हानिकारक यूरिया में परिवर्तित कर मूत्र के रूप में बाहर त्याग करने में योगदान देती हैं। इसके अतिरिक्त यकृत द्वारा पित्त का निर्माण किया जाता है। पित्त रस से होकर बिलिरुबिन (Bilirubin), बिलिवर्डिन (Biliverdin) व कोलेस्ट्रोल का उत्सर्जन करने में भी योगदान है।
प्रश्न 5.
उत्सर्जन का प्राणियों के जीवन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
उत्सर्जन का प्राणियों के जीवन में महत्त्व:
प्रश्न 6.
कार्टिकल तथा जक्सटामेडुलरी नेफ्रॉन्स में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
कार्टिकल तथा जक्सटामेडुलरी नेफ्रॉन्स में अन्तर:
कार्टिकल नेफ्रॉन्स |
जक्सटामेडुलरी नेफ्रॉन्स |
1. इन नेफ्रॉन्स का आकार छोटा होता है। |
इनका आकार बड़ा होता है। |
2. इनके हेनले लूप बहुत छोटे होते हैं और मेड्यूला में थोड़ी सी गहराई तक ही धंसे होते है। |
इनके हेनले लूप बहुत लम्बे होते हैं और मेड्यूला में काफी गहराई तक धंसे होते हैं। |
3. ये मुख्यतः रीनरल कार्टेक्स में स्थित होते हैं। |
इनको योमैन सम्पुट, रीनल कार्टेक्स में (कार्टे क्स व मेड्यूला की संधि के समीप) स्थित होता है। |
4. ये जल आपूर्ति सामान्य होने पर प्लाज्मा के आयतन का नियंत्रण करते हैं। |
जल आपूर्ति कम होने पर प्लाज्मा के आयतन का नियंत्रण करते हैं। |
5. 80 से 85 प्रतिशत नेफ्रॉन्स इसी प्रकार के होते हैं। |
इस प्रकार के नेफ्रॉन्स 15 से 20 प्रतिशत होते हैं। |
प्रश्न 7.
बोमन सम्पुट में उपस्थित के शिका गुच्छ (Glomerulus) को निकाल दिया जाये तो उत्सर्जन की कार्यिकी क्यों प्रभावित होगी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बोमन सम्पुट में उपस्थित केशिका गुच्छ को निकाल दिया जाये तो सूक्ष्म छनने अथवा परानियंदन की क्रिया नहीं होगी। केशिका गुच्छ के अभाव में रुधिर कणिकाएँ तथा रक्त में घुलित कोलायडी, रुधिर प्रोटीन द्वारा रुधिर में रक्त कोलायडी परासरणी दाब उत्पन्न नहीं कर पायेंगे। इसी प्रकार शुद्ध प्रभावी नियंदन दाब भी कार्य नहीं करेगा जिसके फलस्वरूप तरल प्लाज्मा व उत्सर्जी पदार्थ बोमन सम्पुट की गुहा में नहीं आयेंगे।
प्रश्न 8.
मूत्र की तनुता एवं सान्द्रण को नियन्त्रित करने वाली हार्मोन की कार्य-प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
मूत्र का तनुकरण: जब शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है तो शरीर के आन्तरिक वातावरण की परासरणीयता (300 मिली, आस्मोल प्रति लीटर) से कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप ADH का स्रवण संदमित हो जाता है। इसके कारण जल का अवशोषण कम हो जाता है। इससे मूत्र की अधिक मात्रा का निर्माण होता है व मूत्र की परासरणीयता अत्यधिक कम हो जाती है। मूत्र की मात्रा का बदना बहुमूत्रता या मूत्रलता (Diuresis) कहलाता है। इस प्रकार ADH की कमी से होने वाला रोग बहुमूत्र रोग या डाइबिटिज इन्सीपिडस (Diabetes Insipidus) कहलाता है।
मूत्र का सान्द्रण: ADH हार्मोन की अधिकता से जल का अवशोषण अधिक होता है। मूत्र का सान्द्रण का कार्य मुख्यतया प्रति प्रवाह क्रिया (Counter Current) द्वारा होता है। प्रति प्रवाह क्रिया दो समानान्तर नलिकाओं के बीच विलेय व विलायकों का आदान - प्रदान होता है। इन नलिकाओं में तरल का प्रवाह विपरीत दिशाओं में होता है। प्रति प्रवाह जक्स्टा - मेड्यूलरी नेफ्रोन्स की हेनले लूप व वासा रेक्टा के बीच पाया जाता है। वासा रेक्टा में रक्त की मात्रा कम होती है व इसमें दाब 6mm Hg. तक होता है।
इनके मध्य जल तथा Na+ आयनों के विशेष प्रतिधारा विनिमय के द्वारा वृक्क नलिका में पानी का पुनः अवशोषण सम्भव हो पाता है। ADH के प्रभाव से इन नलिकाओं व संग्रह नलिकाओं द्वारा निस्वंद से अधिकाधिक जल का रुधिर में अवशोषण का मंत्र का सान्द्रण किया जाता है।
प्रश्न 9.
मानव के उत्सर्जन तन्त्र का केवल नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 10.
हीमोडायालिसिस किसे कहते हैं? इसकी प्रक्रिया के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हीमोडायालिसिस (Haemodialysis): वृक्क निष्कार्यता से ग्रसित रोगियों में रुधिर में यूरिया की मात्रा असाधारण (यूरीमिया) रूप से बढ़ जाती है। ऐसे रोगियों में रुधिर में से अतिरिक्त यूरिया को निकालने के लिए एक कृत्रिम वृक्क का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया को रक्त अपोहन अथवा हीमोडायालिसिस कहते हैं। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में की जाती है -
प्रश्न 11.
अभिवाही धमनिका व अपवाही धमनिका में कई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अभिवाही व अपवाही धमनिका में अन्तर (Differences between Afferent Arteriole and Efferent Arteriole)
शीर्षक |
अभिवाही धमनिका (Efferent Arteriole) |
अपवाही धमनिका (Afferent Arteriole) |
1. प्रकृति |
वृक्क धमनी की यह शाखा बोमन सम्पुट में रुधिर ले जाती है। |
वृक्क धमनी की यह शाखा बोमन सम्पुट से रुधिर बाहर ले जाती है। |
2. केशिका गुच्छ |
इनकी महीन शाखायें केशिका गुच्छ बनाती हैं। |
इनकी महीन शाखायें केशिका गुच्छ से निकलकर दूसरी ओर जाती है। |
3. व्यास |
इनका व्यास अधिक होता है। |
इनका व्यास कम होता है। |
4. रुधिर दाब |
रुधिर दाब इनमें रुधिर दाब अधिक होता है। |
इनमें रुधिर दाब कम होता है। |
प्रश्न 12.
निम्न पर टिप्पणियाँ लिखिए -
(i) यूरेमिया
(ii) ग्लाइकोसूरिया
(iii) वृक्क की पथरी।
उत्तर:
(i) यूरेमिया (Uremia): जब रुधिर में यूरिया की सामान्य (10 - 30 मिग्रा. प्रति 100 मिली.) से अधिक (50 मिग्रा. प्रति 100 मिली. से ज्यादा) मात्रा हो जाती है तो यह अवस्था यूरेमिया कहलाती है। रुधिर में अत्यधिक यूरिया के संग्रह से कई बार रोगी की मृत्यु हो जाती है।
(ii) ग्लाइकोसूरिया (Glycosuria): मूत्र द्वारा ग्लूकोस का उत्सर्जन होना। इस रोग को डायबिटीज मेलिटस (Diabetes Mellitus) कहते हैं। यह रोग मुख्यतया इन्सुलिन हार्मोन के कम स्राव से होता है। यह एक आनुवंशिक रोग है।
(iii) वृक्क की पथरी (Kidney Stone): कभी - कभी कैल्सियम के ऑक्सेलेट्स एवं फॉस्फेट लवण एवं यूरिक अम्ल के क्रिस्टल पथरी के रूप में वृक्क श्रोणि (Pelvis) क्षेत्र बन जाते हैं जिसके कारण रोगी को दर्द एवं मूत्र त्यागने में बाधा आती है।
प्रश्न 13.
परिनिस्यंदन तथा चयनात्मक पुनः अवशोषण की मूत्र निर्माण में क्या भूमिका है?
उत्तर:
परिनिस्बंदन के अन्तर्गत ग्लोमेरुलस से छना हुआ रक्त प्लाज्मा ग्लोमेरुलर निस्यद कहलाता है। यह तरल बोमन सम्पुट की गुहा में आ जाता है। ग्लोमेरुलस की रक्त कोशिकाओं से उत्सर्जी तथा उपयोगी पदार्थों का छनकर बोमन कैप्सूल की गुहा में जाने की क्रिया को परानिस्पंदन कहते हैं। अर्थात् परिनिस्यंदन के द्वारा उत्सर्जित पदार्थों को अलग किया जाता है। इसी प्रकार चयनात्मक पुनः अवशोषण द्वारा छनित द्रव में उत्सर्जित पदार्थों के साथ-साथ लाभदायक पदार्थ भी होते हैं, इन लाभदायक पदार्थों का छनित द्रव से अवशोषण को चयनात्मक पुनः अवशोषण कहते हैं, जिसके कारण वृक्क नलिका में उत्सर्जित पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है, जो आगे जाकर मूत्र का निर्माण करते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि परिनिस्यंदन तथा चयनात्मक पुनः अवशोषण की मूत्र निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
प्रश्न 14.
निम्न को परिभाषित कीजिए
(i) वासा रेक्टा
(ii) समस्थापन
(iii) पोडोसाइट
(iv) जक्स्टामेड्यूलरी नेफ्रॉन
उत्तर:
(i) वासा रेक्टा (Vassa - Recta)- जक्स्टा मेड्यूलरी नेफ्रॉन के पिन के शीर्ष के समान संरचना वाले हेनले के चारों ओर पाई जाने वाली रक्त केशिकाओं के लूप को वासा - रेक्टा (Vassa - Recta) कहते हैं।
(ii) समस्थापन (Homeostasis)- शरीर में अपने आन्तरिक रासायनिक वातावरण को समान बनाये रखने की प्रवृत्ति होती है, जिसे समस्थापन या होमियोस्टेसिस कहते हैं।
(iii) पोडोसाइट्स (Podocytes)- बोमन सम्पुट की आन्तरिक उपकला में पाई जाने वाली विशिष्ट कोशिकाओं को पोडोसाइट्स कहते है।
(iv) जक्स्टामेड्यूलरी नेफ्रॉन (Juxtamedullary nephrons)- बड़े आकार के नेफ्रॉन जो कॉर्टिक्स व मेड्यूला के सन्धितल पर पाये जाते हैं उन्हें जक्सटामेड्यूलरी नेफ्रॉन कहते हैं।
प्रश्न 15.
उत्सर्जन किसे कहते हैं? अमोनिया तथा यूरिको उत्सर्जीकरण में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
उत्सर्जन (Excretion): उत्सर्जन अंगों द्वारा नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से त्यागने की क्रिया उत्सर्जन कहलाती है।
अमोनिया तथा यूरिको उत्सर्जीकरण में अन्तर:
अमोनिया उत्सर्जीकरण |
यूरिको उत्सर्जीकरण |
1. नाइट्रोजन अपशिष्ट पदार्थ अमोनिया के रूप में निष्कासित किया जाता है। |
जबकि इसमें यूरिक अम्ल के रूप में निष्कासित किया जाता है। |
2. उत्सर्जी पदार्थ (NH3) अत्यधिक विषैला होता है। |
जबकि यूरिक अम्ल कम विषैला होता है। |
3. शरीर के जल का बड़ा भाग खत्म होता है। |
बहुत कम जल खर्च होता है। |
4. अमोनिया के निर्माण में बहुत कम ऊर्जा का उपयोग होता है। |
यूरिक अम्ल के निर्माण में बहुत ऊर्जा का उपयोग होता है। |
5. उदाहरण : अमीबा, हाइड्रा एवं पैरामिशियम। |
उदाहरण : पक्षी, कीट, सरीसृप। |
प्रश्न 16.
रेनिन (Rennin) व रेनिन (Renin) में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
रेनिन व रेनिन में अन्तर:
रेन्निन (Rennin) |
रेनिन (Renin) |
1. यह आमाशय की जठर ग्रन्थियों की जाइमोगन (Zymogen) कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है। |
यह वृक्क के कार्टेक्स की अभिवाही धमनिकाओं की विशिष्ट कोशिकाओं द्वारा सावित होता है। |
2. इनका स्रावण भोजन द्वारा प्रेरित होता है। |
इनका स्रावण द्रव में Na+ का स्तर घटने से प्रेरित होता है। |
3. यह एक प्रोटियोलाइटिक एंजाइम है। |
यह एक हार्मोन है। यह एंजाइम की तरह कार्य करता है। |
4. यह दुग्ध प्रोटीन 'केसीन' के पाचन में सहायता करता है। |
यह एंजियोटेसिनोजन प्रोटीन को एंजियोटेसिन में परिवर्तित करता है। |
5. यह निष्क्रिय रूप (प्रोरेन्निन) में सावित होता है जो HCl द्वारा सक्रिय (रेन्निन) रूप में बदलता है। |
यह रेनिन के रूप में ही सावित होता है। |
प्रश्न 17.
प्रतिधारा सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वैज्ञानिकों की धारणा है कि हेनले के लूप में अतिपरासरणी मूत्र निर्माण प्रतिधारा सिद्धान्त द्वारा होता है। इसके अन्तर्गत द्रय पदार्थ आरोही भुजा से अवरोही भुजा के शीर्ष भाग में विपरीत दिशाओं में गमन करता है। इन दोनों भुजाओं में जल एवं लवणों के प्रति भिन्न प्रकार की पारगम्यता तथा परासरण दाब रहता है। हेनले के लूप के विभिन्न स्थानों पर यह अलग-अलग होता है। द्रव के प्रतिधारा बहाव के फलस्वरूप दाब किसी भी स्थान पर बढ़ाया जाता है। जब यह लूप के आधार भाग के शीर्ष भाग की ओर बहता है।
प्रश्न 18.
अतिसूक्ष्म निस्यन्दन तथा वरणात्मक पुनः अवशोषण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अतिसूक्ष्म निस्यन्दन तथा वरणात्मक पुनः अवशोषण में अन्तर (Difference between Ultrafiltration and Selective Reabsorption)
अतिसूक्ष्म निस्यन्दन (Ultrafiltration) |
वरणात्मक पुनः अवशोषण (Selective Reabsorption) |
1. अतिसूक्ष्म निस्यन्दन की क्रिया बोमन सम्पुट तथा केशिका गुच्छ के मध्य होती है। |
यह क्रिया वृक्क नलिका की काय तथा इसके ऊपर लिपटी अपवाही धमनिका की केशिकाओं के मध्य सम्पन्न होती है। |
2. यह क्रिया रक्त दाब की भिन्नता के कारण होती है। |
यह क्रिया रुधिर में पानी की कमी के कारण होती है। |
3. इसमें लाभदायक तथा हानिकारक पदार्थ रुधिर दाब के कारण पानी में घुली अवस्था में केशिका गुच्छ से छनकर बोमन सम्पुट में आते है। |
इसमें लाभदायक पदार्थ एवं जल ही वृक्क नलिका की काय से पुनः अवशोषित होकर अपवाही धमनिका की कोशिकाओं में आते हैं। हानिकारक पदार्थों का अवशोषण नहीं होता है तथा रुधिर केशिकाओं से यूरिया व हानिकारक लवण वृक्क नलिका की काय में विसरित हो जाते हैं। |
प्रश्न 19.
अकशेरुक प्राणियों में पाये जाने वाले प्रमुख उत्सर्जी अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. प्रोटोनेफ्रिडिया (Protonepiridia) जिसे ज्वाला कोशिकाएँ कहते हैं। ये प्लेटीहेल्मिंथ (प्लेनेरिया) रॉटीफर, कुछ एनीलीड्स एवं सेफेलोकार्डेटा (एम्फीऑक्सस) में उत्सर्जी अंग के रूप में पाये जाते हैं। प्रोटोनेफ्रिडिया प्राथमिक रूप से आयनों व द्रव आयतननियमन जैसे परासरण नियमन (osmoregulation) से सम्बन्धित है।
2. वृक्कक (Nephridia): केंचुए व अन्य एनीलीड्स में वृक्कक (nephridia) उत्सर्जन अंग के रूप में पाये जाते हैं। केंचुए में तीन प्रकार के वृक्कक पाये जाते हैं-
(i) त्वचीय वृक्कक
(ii) ग्रसनी वृक्कक
(iii) पट्टीय वृक्कक।
ये वृक्कक (nephridia) नाइट्रोजनी अपशिष्टों को उत्सर्जित करने तथा द्रव और आयनों का संतुलन बनाये रखने में सहायता करते हैं।
3. मैलपीधी नलिकाएँ (Malpiehian tubules): इस प्रकार के उत्सर्जी अंग कॉकरोच व अन्य कीटों में पाए जाते हैं। ये नाइट्रोजनी अपशिष्टों के उत्सर्जन और परासरण नियमन में मदद करते हैं।
4. हरित ग्रन्थियाँ (Green glands): इस प्रकार के 3 उत्सर्जी अंग झींगा मछली (prawns) जैसे क्रस्टेशिया वर्ग के प्राणियों में पाई जाते हैं जो उत्सर्जन का कार्य करते हैं।
प्रश्न 20.
नेफ्रॉन का केवल नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
प्रश्न 21.
कॉलम I के उत्सर्जी कार्यों का कॉलम II के उत्सर्जी तंत्रों से मिलान कीजिए और सही उत्तर चुनिए
कॉलम I |
कॉलम II |
(i) परा - निस्यंदन |
(a) हेनले लूप |
(ii) मूत्र का सान्द्रण |
(b) यूरेटर |
(iii) मूत्र का परिवहन |
(c) यूरीनरी ब्लेडर |
(iv) मूत्र का संग्रह |
(d) माल्पीषियन कार्पसल्स |
|
(e) प्रोक्सिमल कोन्चोल्यूटेड ट्यूब्यूल |
उत्तर:
कॉलम I |
कॉलम II |
(i) परा - निस्यंदन |
(d) माल्पीषियन कार्पसल्स |
(ii) मूत्र का सान्द्रण |
(a) हेनले लूप |
(iii) मूत्र का परिवहन |
(b) यूरेटर |
(iv) मूत्र का संग्रह |
(c) यूरीनरी ब्लेडर |
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
नेफ्रॉन में होने वाली घटनाओं का सारांश लिखिए।
उत्तर:
नेफ्रॉन में होने वाली घटनाओं का सारांश
परिवहित पदार्थ |
नेफ्रॉन का भाग |
संबंधित प्रक्रिया |
क्रियाविधि |
1. ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, एल्ब्यूमिन प्रोटीन, विटामिन्स, हॉर्मोन्स, Na+, K+, Mg2+, Ca+2, H2O, HCO3- यूरिया, क्रिएटिनिन, यूरिक अम्ल, कीटोन बॉडीज |
बोमैन्स कैप्सूल |
ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन |
अल्ट्राफिल्ट्रेशन |
2. ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, हॉर्मोन्स, विटामिन्स, Na+, K+, Mg2+, Ca+2 |
समीपस्थ कुण्डलित नलिका (PC.T) |
पुनः अवशोषण |
सक्रिय परिवहन |
3. Cl- |
समीपस्थ कुण्डलित नलिका |
पुनः अवशोषण |
निष्क्रिय परिवहन |
4. जल |
समीपस्थ कुण्डलित नलिका |
पुनः अवशोषण |
परासरण |
5. यूरिया |
समीपस्थ कुण्डलित नलिका |
पुनः अवशोषण |
विसरण |
6. H2O |
हेनले लूप की अवरोही भुजा का संकरा भाग |
पुनः अवशोषण |
परासरण |
7. Na+, K+, Mg+2, Ca+2, Cl- |
हेनले लूप की आरोही भुजा का संकरा भाग |
पुनः अवशोषण |
विसरण |
8. उपर्युक्तानुसार अकार्बनिक आय |
हेनले लूप की आरोही भुजा का चौड़ा भाग |
पुन: अवशोषण |
सक्रिय परिवहन |
9. H2O |
D.C.T, संग्रह नलिकाएँ |
ADH की सहायता से पुनः अवशोषण |
परासरण |
10. Na+ |
D.C.T., संग्रह नलिकाएँ |
एल्डोस्टेरॉन की सहायता से पुन: अवशोषण, स्रावण |
सक्रिय परिवहन |
11. यूरिया |
संग्रह नलिकाओं का अन्तिम भाग |
एल्डोस्टेरॉन की सहायता से पुनः अवशोषण, स्रावण |
विसरण |
12. क्रिएटिनिन, हिप्यूरिक अम्ल, विजातीय पदार्थ |
समीपस्थ कुण्डलित नलिका |
एल्डोस्टेरॉन की सहायता से पुनः अवशोषण, स्रावण |
सक्रिय परिंवहन |
13. K+, H+ |
दूरस्थ कुण्डलित नलिका |
एल्डोस्टेरॉन की सहायता से पुनः अवशोषण, स्रावण |
सक्रिय परिवहन |
14. NH3 |
दूरस्थ कुण्डलित नलिका |
एल्डोस्टेरॉन की सहायता से पुनः अवशोषण, स्रावण |
विसरण |
15. यूरिया |
हेनले लूप की आरोही भुजा (पतले भाग) |
एल्डोस्टेरॉन की सहायता से पुनः अवशोषण, स्रावण |
विसरण |
प्रश्न 2.
मानव के उत्सर्जन तन्त्र का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपापचयी प्रक्रियाओं के फलस्वरूप निर्मित नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट उत्पादों एवं अतिरिक्त लवणों को बाहर त्यागना उत्सर्जन (Excretion) कहलाता है। उत्सर्जन से सम्बन्धित अंगों को उत्सर्जन अंग (Excretion organs) कहते हैं। उत्सर्जन अंगों को सामूहिक रूप में उत्सर्जन तन्त्र (Excretory system) कहते हैं। मनुष्य में निम्न उत्सर्जन अंग पाये जाते हैं-
1. वृक्क (Kidneys): मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं। दोनों वृक्क अन्तिम वक्षीय और तीसरी कटि कशेरुका के समीप उदर गुहा में आन्तरिक पृष्ठ सतह पर स्थित होते हैं। वृक्क गहरे लाल एवं सेम (bean) के बीज की आकृति के होते हैं अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है, जिसके मध्य में एक छोटासा गड्ढा होता है। इस गड्ढे को हाइलम कहते हैं। हाइलम भाग से वृक्क धमनी (Renal artery) प्रवेश करती है किन्तु वृक्क शिरा (Renal Vein) एवं मूत्रवाहिनी (Ureter) बाहर निकलती है। बायां वृक्क दाहिने वृक्क से थोड़ा ऊपर स्थित होता है एवं दाहिने वृक्क से आकार में कुछ बड़ा होता है। वृक्क के ऊपरी छोर पर अधिवृक्क (Adrenal) ग्रन्थि स्थित होती है।
वृक्क की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Kidney): मनुष्य का वृक्क तन्तुमय संयोजी ऊतक के महीन आवरण से ढका होता है जिसे वृक्क सम्पुट (Renal Capsule) कहते हैं। वृक्क के लम्बवत् काट में दो भाग दिखाई देते हैं जिन्हें क्रमश: कार्टेक्स एवं मध्यांश कहते हैं।
(i) कार्टेक्स (Cortex): वृक्क के बाहरी भाग को कार्टेक्स कहते हैं जो गहरे लाल रंग का होता है। यह भाग मैल्पीघी कणिकाओं (Malpighian Corpuscles) की उपस्थिति के कारण कणिकामय (Granular) होता है। इस भाग में मैल्पांगी कणिकाएं, वृक्क नलिकाओं के समीपस्थ तथा दूरस्थ कुण्डलित भाग स्थित होते हैं।
(ii) मध्यांश (Medulla): वृक्क के आन्तरिक भाग को मध्यांश (Medulla) कहते हैं। यह भाग कार्टेक्स की तरफ स्थित त्रिभुजाकार रचनारूपी पिण्डों में बंटा होता है, जिन्हें पिरैमिइस (Pyramids) कहते हैं। मनुष्य में 8 - 12 पिरमिड़ पाये जाते हैं। पिरैमिड का चौड़ा आधारी भाग कार्टेक्स की ओर तथा संकरा भाग वृक्क श्रोणि (Pelvis) में खुलता है। इन पिरैमिडों के मध्य भाग में कार्टेक्स के छोटे-छोटे उभार धंसे होते हैं, जिन्हें बर्टिनी के वृक्क स्तम्भ (Renal Column of Bertani) कहते हैं।
वृक्क के इस भाग में वृक्क नलिकाओं (Nephron) के हेनले के लूप (Henle's loops) व संग्रह नलिकाएँ (Collecting ducts) पाई जाती हैं। मूत्रवाहिनी का अग्न भाग फैला हुआ वृक्क श्रोणि या पैल्विस बनाता है। पैल्विस कई शाखाओं में बंटा होता है जिसे मेजर केलिसेज (major calyces) कहते हैं। मेजर केलिसेज दो या तीन माइनर केलिसेज (minor calyces) में बंटा होता है। प्रत्येक माइनर केलिसेज एक वृक्क अंकुर को घेरे रहता है।
नेफ्रोन की संरचना (Structure of Nephron): प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख महीन लम्बी, कुण्डलित नलिकाएँ पाई जाती हैं। इन नलिकाओं को वृक्क नलिकाएँ (Uriniferous Tubules) या नेफ्रोन (Nephron) कहते हैं। यह वृक्क की संरचनात्मक (Structural) एवं क्रियात्मक (Functional) इकाई होती है।
नेफ्रॉन (Nephron) निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) बल्कुटी या सुपरफिशियल नेफ्रॉन्स (Cortical or Superficial Nephrons): इन नेफ्रॉन्स के बोमन सम्पुट वृक्क की सतह के समीप पाये जाते हैं। इनके हेनले के लूप छोटे होते हैं। वल्कुटी नेफ्रोन्स 15 - 35 प्रतिशत पाये जाते हैं।
(2) जक्स्टा मेड्यूलरी नेफ्रॉन्स (Jaxta Medullary Nephrons): इन नेफ्रॉन्स के बोमन सम्पुट कार्टेक्स एवं मेड्यूला के संगम स्थल पर पाये जाते हैं। इनके हेनले के लूप अधिक गहराई तक मेड्यूला में पाये जाते हैं। कुछ नेफ्रॉन के हेनले के लूप लम्बे होते हैं। यह 65.85 प्रतिशत पाये जाते हैं।
प्रत्येक नेफ्रॉन (nephron) को दो भागों में विभेदित किया गया है-
(1) मैल्पीधी काय (Malpighian body): प्रत्येक वृक्क नलिका प्रारम्भ में एक प्यालेनुमा रचना से निर्मित होती है, जिसे बोमन सम्पुट (Bowman's capsule) कहते हैं। इस प्यालेनुमा संरचना के गड्ढे में महीन रुधिर केशिकाओं (Blood Capillaries) का घना गुच्छा पाया जाता है जिसे के शिका गुच्छ या ग्लोमेरुलस (Glomerulus) कहते हैं । बोमन सम्पुट तथा ग्लोमेरुलस को सम्मिलित रूप से मैल्पीधी काय (malpighian body) कहते हैं। यह कार्टेक्स (cortex) भाग में स्थित होता है।
बोमन सम्पुट के प्यालेनुमा भाग में रुधिर लाने वाली वाहिनी अभिवाही धमनिका (Afferent Arteriole) तथा इस भाग से रुधिर को वापस ले जाने वाली वाहिनी अपवाही धमनिका (Efferent Arteriole) कहलाती है। बोमन सम्पुट की भित्ति में दो स्तर होते हैं। ये शल्की उपकला (Simple Squamous Epitheliam) की बनी
होती है। अन्दर वाले स्तर में विशेष प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें पोडोसाइट्स (Pexdoxytes) कहते हैं। पोडोसाइट्स की सतह पर अंगुलीनुमा प्रवर्ध पाये जाते हैं जो ग्लोमेरुलस की कोशिकाओं को बांधे रखने का कार्य करते हैं। पोडोसाइट्स के प्रवर्ध एवं रक्त केशिकाओं की दीवारें मिलकर महीन ग्लोमेरुल कला (Glomerul membrane) का निर्माण करते हैं। यह कला अत्यधिक पारगम्य (permeable) होती है, क्योंकि इसमें अनेक महीन सूक्ष्म छिद्र होते हैं। यह कला एक छलनी (Filter) का कार्य करती है जिसके फलस्वरूप निस्य॑दक अथवा छनित द्रव वृक्क नलिका के स्रावी भाग में जाता है।
ग्रीवा (Neck): बोमन सम्पुट का पिछला भाग पतला होकर संकरी नलिका का निर्माण करता है, जिसे ग्रीवा कहते हैं। इसकी दीवार रोमाभि उपकला (Ciliated Epithelium) से बनी होती है।
(2) स्रावी नलिका (Secretary Tubule): नेफ्रॉन के मैल्पीघी काय (Malpighian body) के अलावा शेष भाग को स्रावी कला कहते हैं। खावी नलिका
को निम्न तीन भागों में बांटा गया है-
(i) समीपस्थ कुण्डलित भाग (Proximal Convoluted Part): यह नेफ्रॉन का बोमन सम्पुट से निकलने वाला छोटा-मोटा कुण्डलित भाग होता है। समीस्थ कुण्डलित भाग सरल घनाकार कोशिकाओं से आस्तरित होता है। यह मनुष्य में लगभग 14 मिमी. लम्बा होता है तथा इसका व्यास 60 mµ व आन्तरिक व्यास 15 - 20 mµ होता है। यह भाग कार्टेक्स (cortex) में स्थित होता है।
सरल घनाकार कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरे ब्रशनुमा होते हैं, जो पदार्थों के अवशोषण (absorption) में सहायक होते हैं।
(ii) हेनले का लूप (Henle's loop): नेफ्रॉन के मध्य भाग में स्थित पतला एवं 'U' या केश पिन (Hair - pin) के आकार का नलाकार भाग होता है, इसे हेनले का लूप कहते हैं। इसका एक सिरा समीपस्थ कुण्डलित भाग से तथा दूसरा सिरा दूरस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा होता है। हनले के लूप का भाग जो समीपस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा रहता है उसे अवरोही भुजा (descending limb) कहते हैं। हेनले का दूसरा भाग जो दूरस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा रहता है, उसे आरोही भुजा (ascending limb) कहते हैं। दोनों भुजायें एक - दूसरे के समानान्तर होती हैं। यह वृक्क के मेड्यूला (medulla) भाग में स्थित होता है। इसकी लम्बाई 20 मिमी. के लगभग होती है।
मरुस्थल (desert) में पाये जाने वाले जन्तुओं में हेनले का लूप अपेक्षाकृत बड़ा होता है, जिसके कारण ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट से अधिक मात्रा में पानी का अवशोषण कर सके। मछलियों तथा उभयचरों के नेफ्रॉन में हेनले का लूप नहीं पाया जाता है, इसलिए इनका मूत्र अल्प परासरी (Hypotonic) होता है।
(iii) दूरस्थ कुण्डलित भाग (Distal Convoluted Part): यह भाग भी समीपस्थ कुण्डलित भाग के समान कुण्डलित होता है। यह कॉर्टेक्स (cortex) में स्थित होता है। इस भाग का एक सिरा हेनले के लूप की आरोही भुजा (ascending limb) से, दूसरा सिरा संग्रह नलिका (collecting duct) से जुड़ा रहता है। यह घनाकार कोशिकाओं (cuboidal cells) द्वारा आस्तरित होता है। लेकिन इनके स्वतन्त्र सिरों पर सूक्ष्मांकुरों की संख्या अल्प या अनुपस्थित होती है। स्रावी नलिका चारों ओर से रुधिर केशिकाओं के जाल से घिरी होती है जिसे परिनलिकीय केशिका जाल (Peritubular Capillary Network) से घिरी होती है।
संग्रह नलिका (Collecting duct): संग्रह नलिकाएँ मेड्यूला के पिरैमिड्स में स्थित होती हैं। एक संग्रह नलिका में कई वृक्क नलिकाएँ खुलती हैं तथा कई संग्रह नलिकाएँ मिलकर एक मोटी संग्रह नलिका बनाती हैं, जिसे बेलिनाई की नलिका (Duct of Bellini) कहते हैं। सभी बेलिमाई की नलिकाएँ वृक्क अंकुर (Renal papilla) या अंकुर के सिरे पर पेल्विस में खुलती हैं।
संग्रह नलिका को वृक्क (Nephron) का भाग नहीं मानते हैं।
वृक्क के कार्य (Functions of Kidney):
वृक्क की रक्त वाहिनियाँ (Blood Vessels of Kidney): प्रत्येक वृक्क में एक ही वृक्क धमनी (renal artery) जाती है जो पृष्ठ महाधमनी (dorsal arota) से निकलती है। वृक्क धमनी वृक्क में प्रवेश करने के बाद खण्डीय धमनियों (Segmental arteries) में विभाजित हो जाती है। खण्डीय धमनियों से ही अभिवाही धमनिका (afferent arteriole) निकलकर बोमन सम्मुट में जाती है और केशिकाओं में विभाजित हो जाती है। एक बोमन सम्पुट में सभी केशिकाओं के जाल को केशिका गुच्छ या ग्लोमेरुलस (glomerulus) कहते हैं। केशिकाएँ मिलकर अपवाही धमनिका (efferent arteriole) बनाती है, इसका व्यास तथा इसके रक्त में यूरिया की मात्रा अभिवाही धमनिका से कम होती है।
अपवाही धमनिका, बोमन सम्पुट से निकलकर अपनी वृक्क नलिका के चारों ओर पुन: केशिकाओं में बंट जाती है। इसे परिनलिका केशिका जाल (Peritubular Capillary Plexus) कहते हैं। यह जाल हेनले के लप के चारों तरफ भी पाया जाता है, जिसे वासा रेक्टा (Vassa Recta) कहते हैं और शिरिकाएँ मिलकर छोटी - छोटी शिरायें बनाती हैं। अन्त में सभी शिरायें मिलकर वृक्क शिरा (Renal Vein) में खुलती हैं, जो वृक्क के बाहर निकलकर पश्च महाशिरा से जुड़ जाती हैं।
2. मूत्र वाहिनियाँ (Ureters): ये प्रत्येक वृक्क के हाइलम (hilum) भाग से निकलती है। इसकी भित्ति मोटी तथा गुहा संकरी होती है। इसकी भित्ति में क्रमाकुंचन गति (peristalsis movement) होती है, जिसके कारण मूत्र, नलिकाओं में बहता है। प्रत्येक मुत्र वाहिनी पेल्विस (Pelvis) से प्रारम्भ होकर मूत्राशय (Urinary bladder) तक जाती है और इसी में खुलती है।
3. मूत्राशय (Urinary Bladder): यह एक पेशीय भित्ति युक्त थैलेनुमा अंग है जो मूत्र संचय आशय (urine reservoir) का कार्य करता है। पुरुषों में यह मलाशय (Rectum) के आगे तथा स्त्रियों में योनि के ठीक ऊपर स्थित होता है। यह तिकोने आकार का होता है। मूत्राशय में तीन स्तर पाये जाते हैं सबसे भीतरी वलित (folded) श्लेष्मिका (mucosa), मध्य में पेशी स्तर व सबसे बाहर पेरीटोनियम द्वारा निर्मित आवरण पाया जाता है। सभी पेशियाँ अरेखित प्रकार की होती हैं।
मूत्राशय की दीवार प्रत्यास्थ होती है। इसकी वजह से एकत्रित होने के समय मूत्राशय का आयतन बढ़ जाता है। मूत्राशय में लगभग 700 - 800 मिली मूत्र संचित हो सकता है। मूत्राशय नर या मादा मूत्र मार्ग में खुलता है। मूत्र मार्ग के प्रारम्भिक छिद्र के चारों ओर एक अवरोधिनी (Sphincter) नामक विशिष्ट ऐच्छिक पेशी पाई जाती है जो मूत्र निष्कासन (micturition) का नियंत्रण करती है।
4. मूत्र मार्ग (Urethra): मूत्राशय का पश्च छोर संकरा होकर एक पतली नलिका में परिवर्तित हो जाता है जिसे मूत्र मार्ग (Urethra) कहते हैं। पुरुषों में इसकी लम्बाई 15 से 20 सेमी. तक होती है। पुरुष में मूत्र मार्ग शिश्न (Penis) के अग्रस्थ सिरे पर उपस्थित मूत्र जनन छिद्र (Urinogenital aperture) द्वारा बाहर खुलता है। स्त्रियों में यह केवल मूत्र उत्सर्जन का कार्य करता है तथा मूत्र छिद्र (Urethral orifice) जनन छिद्र के ऊपर खुलता है। पुरुषों में मूत्र मार्ग तीन भागों का बना होता है:
प्रश्न 3.
उत्सर्जन किसे कहते हैं? मूत्र निर्माण विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपापचयी प्रक्रियाओं के फलस्वरूप निर्मित नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट उत्पादों एवं अतिरिक्त लवणों को बाहर त्यागना उत्सर्जन (Excretion) कहलाता है। उत्सर्जन से सम्बन्धित अंगों को उत्सर्जन अंग (Excretion organs) कहते हैं। उत्सर्जन अंगों को सामूहिक रूप में उत्सर्जन तन्त्र (Excretory system) कहते हैं। मनुष्य में निम्न उत्सर्जन अंग पाये जाते हैं-
1. वृक्क (Kidneys): मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं। दोनों वृक्क अन्तिम वक्षीय और तीसरी कटि कशेरुका के समीप उदर गुहा में आन्तरिक पृष्ठ सतह पर स्थित होते हैं। वृक्क गहरे लाल एवं सेम (bean) के बीज की आकृति के होते हैं अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है, जिसके मध्य में एक छोटासा गड्ढा होता है। इस गड्ढे को हाइलम कहते हैं। हाइलम भाग से वृक्क धमनी (Renal artery) प्रवेश करती है किन्तु वृक्क शिरा (Renal Vein) एवं मूत्रवाहिनी (Ureter) बाहर निकलती है। बायां वृक्क दाहिने वृक्क से थोड़ा ऊपर स्थित होता है एवं दाहिने वृक्क से आकार में कुछ बड़ा होता है। वृक्क के ऊपरी छोर पर अधिवृक्क (Adrenal) ग्रन्थि स्थित होती है।
वृक्क की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Kidney): मनुष्य का वृक्क तन्तुमय संयोजी ऊतक के महीन आवरण से ढका होता है जिसे वृक्क सम्पुट (Renal Capsule) कहते हैं। वृक्क के लम्बवत् काट में दो भाग दिखाई देते हैं जिन्हें क्रमश: कार्टेक्स एवं मध्यांश कहते हैं।
(i) कार्टेक्स (Cortex): वृक्क के बाहरी भाग को कार्टेक्स कहते हैं जो गहरे लाल रंग का होता है। यह भाग मैल्पीघी कणिकाओं (Malpighian Corpuscles) की उपस्थिति के कारण कणिकामय (Granular) होता है। इस भाग में मैल्पांगी कणिकाएं, वृक्क नलिकाओं के समीपस्थ तथा दूरस्थ कुण्डलित भाग स्थित होते हैं।
(ii) मध्यांश (Medulla): वृक्क के आन्तरिक भाग को मध्यांश (Medulla) कहते हैं। यह भाग कार्टेक्स की तरफ स्थित त्रिभुजाकार रचनारूपी पिण्डों में बंटा होता है, जिन्हें पिरैमिइस (Pyramids) कहते हैं। मनुष्य में 8 - 12 पिरमिड़ पाये जाते हैं। पिरैमिड का चौड़ा आधारी भाग कार्टेक्स की ओर तथा संकरा भाग वृक्क श्रोणि (Pelvis) में खुलता है। इन पिरैमिडों के मध्य भाग में कार्टेक्स के छोटे-छोटे उभार धंसे होते हैं, जिन्हें बर्टिनी के वृक्क स्तम्भ (Renal Column of Bertani) कहते हैं।
वृक्क के इस भाग में वृक्क नलिकाओं (Nephron) के हेनले के लूप (Henle's loops) व संग्रह नलिकाएँ (Collecting ducts) पाई जाती हैं। मूत्रवाहिनी का अग्न भाग फैला हुआ वृक्क श्रोणि या पैल्विस बनाता है। पैल्विस कई शाखाओं में बंटा होता है जिसे मेजर केलिसेज (major calyces) कहते हैं। मेजर केलिसेज दो या तीन माइनर केलिसेज (minor calyces) में बंटा होता है। प्रत्येक माइनर केलिसेज एक वृक्क अंकुर को घेरे रहता है।
नेफ्रोन की संरचना (Structure of Nephron): प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख महीन लम्बी, कुण्डलित नलिकाएँ पाई जाती हैं। इन नलिकाओं को वृक्क नलिकाएँ (Uriniferous Tubules) या नेफ्रोन (Nephron) कहते हैं। यह वृक्क की संरचनात्मक (Structural) एवं क्रियात्मक (Functional) इकाई होती है।
नेफ्रॉन (Nephron) निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) बल्कुटी या सुपरफिशियल नेफ्रॉन्स (Cortical or Superficial Nephrons): इन नेफ्रॉन्स के बोमन सम्पुट वृक्क की सतह के समीप पाये जाते हैं। इनके हेनले के लूप छोटे होते हैं। वल्कुटी नेफ्रोन्स 15 - 35 प्रतिशत पाये जाते हैं।
(2) जक्स्टा मेड्यूलरी नेफ्रॉन्स (Jaxta Medullary Nephrons): इन नेफ्रॉन्स के बोमन सम्पुट कार्टेक्स एवं मेड्यूला के संगम स्थल पर पाये जाते हैं। इनके हेनले के लूप अधिक गहराई तक मेड्यूला में पाये जाते हैं। कुछ नेफ्रॉन के हेनले के लूप लम्बे होते हैं। यह 65.85 प्रतिशत पाये जाते हैं।
प्रत्येक नेफ्रॉन (nephron) को दो भागों में विभेदित किया गया है-
(1) मैल्पीधी काय (Malpighian body): प्रत्येक वृक्क नलिका प्रारम्भ में एक प्यालेनुमा रचना से निर्मित होती है, जिसे बोमन सम्पुट (Bowman's capsule) कहते हैं। इस प्यालेनुमा संरचना के गड्ढे में महीन रुधिर केशिकाओं (Blood Capillaries) का घना गुच्छा पाया जाता है जिसे के शिका गुच्छ या ग्लोमेरुलस (Glomerulus) कहते हैं । बोमन सम्पुट तथा ग्लोमेरुलस को सम्मिलित रूप से मैल्पीधी काय (malpighian body) कहते हैं। यह कार्टेक्स (cortex) भाग में स्थित होता है।
बोमन सम्पुट के प्यालेनुमा भाग में रुधिर लाने वाली वाहिनी अभिवाही धमनिका (Afferent Arteriole) तथा इस भाग से रुधिर को वापस ले जाने वाली वाहिनी अपवाही धमनिका (Efferent Arteriole) कहलाती है। बोमन सम्पुट की भित्ति में दो स्तर होते हैं। ये शल्की उपकला (Simple Squamous Epitheliam) की बनी
होती है। अन्दर वाले स्तर में विशेष प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें पोडोसाइट्स (Pexdoxytes) कहते हैं। पोडोसाइट्स की सतह पर अंगुलीनुमा प्रवर्ध पाये जाते हैं जो ग्लोमेरुलस की कोशिकाओं को बांधे रखने का कार्य करते हैं। पोडोसाइट्स के प्रवर्ध एवं रक्त केशिकाओं की दीवारें मिलकर महीन ग्लोमेरुल कला (Glomerul membrane) का निर्माण करते हैं। यह कला अत्यधिक पारगम्य (permeable) होती है, क्योंकि इसमें अनेक महीन सूक्ष्म छिद्र होते हैं। यह कला एक छलनी (Filter) का कार्य करती है जिसके फलस्वरूप निस्य॑दक अथवा छनित द्रव वृक्क नलिका के स्रावी भाग में जाता है।
ग्रीवा (Neck): बोमन सम्पुट का पिछला भाग पतला होकर संकरी नलिका का निर्माण करता है, जिसे ग्रीवा कहते हैं। इसकी दीवार रोमाभि उपकला (Ciliated Epithelium) से बनी होती है।
(2) स्रावी नलिका (Secretary Tubule): नेफ्रॉन के मैल्पीघी काय (Malpighian body) के अलावा शेष भाग को स्रावी कला कहते हैं। खावी नलिका को निम्न तीन भागों में बांटा गया है-
(i) समीपस्थ कुण्डलित भाग (Proximal Convoluted Part): यह नेफ्रॉन का बोमन सम्पुट से निकलने वाला छोटा-मोटा कुण्डलित भाग होता है। समीस्थ कुण्डलित भाग सरल घनाकार कोशिकाओं से आस्तरित होता है। यह मनुष्य में लगभग 14 मिमी. लम्बा होता है तथा इसका व्यास 60 mµ व आन्तरिक व्यास 15 - 20 mµ होता है। यह भाग कार्टेक्स (cortex) में स्थित होता है।
सरल घनाकार कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरे ब्रशनुमा होते हैं, जो पदार्थों के अवशोषण (absorption) में सहायक होते हैं।
(ii) हेनले का लूप (Henle's loop): नेफ्रॉन के मध्य भाग में स्थित पतला एवं 'U' या केश पिन (Hair - pin) के आकार का नलाकार भाग होता है, इसे हेनले का लूप कहते हैं। इसका एक सिरा समीपस्थ कुण्डलित भाग से तथा दूसरा सिरा दूरस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा होता है। हनले के लूप का भाग जो समीपस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा रहता है उसे अवरोही भुजा (descending limb) कहते हैं। हेनले का दूसरा भाग जो दूरस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा रहता है, उसे आरोही भुजा (ascending limb) कहते हैं। दोनों भुजायें एक - दूसरे के समानान्तर होती हैं। यह वृक्क के मेड्यूला (medulla) भाग में स्थित होता है। इसकी लम्बाई 20 मिमी. के लगभग होती है।
मरुस्थल (desert) में पाये जाने वाले जन्तुओं में हेनले का लूप अपेक्षाकृत बड़ा होता है, जिसके कारण ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट से अधिक मात्रा में पानी का अवशोषण कर सके। मछलियों तथा उभयचरों के नेफ्रॉन में हेनले का लूप नहीं पाया जाता है, इसलिए इनका मूत्र अल्प परासरी (Hypotonic) होता है।
(iii) दूरस्थ कुण्डलित भाग (Distal Convoluted Part): यह भाग भी समीपस्थ कुण्डलित भाग के समान कुण्डलित होता है। यह कॉर्टेक्स (cortex) में स्थित होता है। इस भाग का एक सिरा हेनले के लूप की आरोही भुजा (ascending limb) से, दूसरा सिरा संग्रह नलिका (collecting duct) से जुड़ा रहता है। यह घनाकार कोशिकाओं (cuboidal cells) द्वारा आस्तरित होता है। लेकिन इनके स्वतन्त्र सिरों पर सूक्ष्मांकुरों की संख्या अल्प या अनुपस्थित होती है। स्रावी नलिका चारों ओर से रुधिर केशिकाओं के जाल से घिरी होती है जिसे परिनलिकीय केशिका जाल (Peritubular Capillary Network) से घिरी होती है।
संग्रह नलिका (Collecting duct): संग्रह नलिकाएँ मेड्यूला के पिरैमिड्स में स्थित होती हैं। एक संग्रह नलिका में कई वृक्क नलिकाएँ खुलती हैं तथा कई संग्रह नलिकाएँ मिलकर एक मोटी संग्रह नलिका बनाती हैं, जिसे बेलिनाई की नलिका (Duct of Bellini) कहते हैं। सभी बेलिमाई की नलिकाएँ वृक्क अंकुर (Renal papilla) या अंकुर के सिरे पर पेल्विस में खुलती हैं।
संग्रह नलिका को वृक्क (Nephron) का भाग नहीं मानते हैं।
वृक्क के कार्य (Functions of Kidney):
वृक्क की रक्त वाहिनियाँ (Blood Vessels of Kidney): प्रत्येक वृक्क में एक ही वृक्क धमनी (renal artery) जाती है जो पृष्ठ महाधमनी (dorsal arota) से निकलती है। वृक्क धमनी वृक्क में प्रवेश करने के बाद खण्डीय धमनियों (Segmental arteries) में विभाजित हो जाती है। खण्डीय धमनियों से ही अभिवाही धमनिका (afferent arteriole) निकलकर बोमन सम्मुट में जाती है और केशिकाओं में विभाजित हो जाती है। एक बोमन सम्पुट में सभी केशिकाओं के जाल को केशिका गुच्छ या ग्लोमेरुलस (glomerulus) कहते हैं। केशिकाएँ मिलकर अपवाही धमनिका (efferent arteriole) बनाती है, इसका व्यास तथा इसके रक्त में यूरिया की मात्रा अभिवाही धमनिका से कम होती है।
अपवाही धमनिका, बोमन सम्पुट से निकलकर अपनी वृक्क नलिका के चारों ओर पुन: केशिकाओं में बंट जाती है। इसे परिनलिका केशिका जाल (Peritubular Capillary Plexus) कहते हैं। यह जाल हेनले के लप के चारों तरफ भी पाया जाता है, जिसे वासा रेक्टा (Vassa Recta) कहते हैं और शिरिकाएँ मिलकर छोटी - छोटी शिरायें बनाती हैं। अन्त में सभी शिरायें मिलकर वृक्क शिरा (Renal Vein) में खुलती हैं, जो वृक्क के बाहर निकलकर पश्च महाशिरा से जुड़ जाती हैं।
2. मूत्र वाहिनियाँ (Ureters): ये प्रत्येक वृक्क के हाइलम (hilum) भाग से निकलती है। इसकी भित्ति मोटी तथा गुहा संकरी होती है। इसकी भित्ति में क्रमाकुंचन गति (peristalsis movement) होती है, जिसके कारण मूत्र, नलिकाओं में बहता है। प्रत्येक मुत्र वाहिनी पेल्विस (Pelvis) से प्रारम्भ होकर मूत्राशय (Urinary bladder) तक जाती है और इसी में खुलती है।
3. मूत्राशय (Urinary Bladder): यह एक पेशीय भित्ति युक्त थैलेनुमा अंग है जो मूत्र संचय आशय (urine reservoir) का कार्य करता है। पुरुषों में यह मलाशय (Rectum) के आगे तथा स्त्रियों में योनि के ठीक ऊपर स्थित होता है। यह तिकोने आकार का होता है। मूत्राशय में तीन स्तर पाये जाते हैं सबसे भीतरी वलित (folded) श्लेष्मिका (mucosa), मध्य में पेशी स्तर व सबसे बाहर पेरीटोनियम द्वारा निर्मित आवरण पाया जाता है। सभी पेशियाँ अरेखित प्रकार की होती हैं।
मूत्राशय की दीवार प्रत्यास्थ होती है। इसकी वजह से एकत्रित होने के समय मूत्राशय का आयतन बढ़ जाता है। मूत्राशय में लगभग 700 - 800 मिली मूत्र संचित हो सकता है। मूत्राशय नर या मादा मूत्र मार्ग में खुलता है। मूत्र मार्ग के प्रारम्भिक छिद्र के चारों ओर एक अवरोधिनी (Sphincter) नामक विशिष्ट ऐच्छिक पेशी पाई जाती है जो मूत्र निष्कासन (micturition) का नियंत्रण करती है।
4. मूत्र मार्ग (Urethra): मूत्राशय का पश्च छोर संकरा होकर एक पतली नलिका में परिवर्तित हो जाता है जिसे मूत्र मार्ग (Urethra) कहते हैं। पुरुषों में इसकी लम्बाई 15 से 20 सेमी. तक होती है। पुरुष में मूत्र मार्ग शिश्न (Penis) के अग्रस्थ सिरे पर उपस्थित मूत्र जनन छिद्र (Urinogenital aperture) द्वारा बाहर खुलता है। स्त्रियों में यह केवल मूत्र उत्सर्जन का कार्य करता है तथा मूत्र छिद्र (Urethral orifice) जनन छिद्र के ऊपर खुलता है। पुरुषों में मूत्र मार्ग तीन भागों का बना होता है:
यह उत्सर्जन की भौतिक (Physical) क्रिया है। मूत्र (Urine) का निर्माण वृक्कों में होता है। वृक्कों की वृक्क नलिकाएँ मूत्र निर्माण की पृथक् एवं स्वतंत्र इकाइयाँ होती हैं। जहाँ से मूत्र बनकर संग्रह नलिकाओं के द्वारा पैल्विस में आ जाता है। यहाँ से मूत्र, मूत्रवाहिनी द्वारा मूत्राशय में पहुंचा दिया जाता है। स्तनधारियों में मूत्र निर्माण की क्रियाविधि को सर्वप्रथम कुशनी (Cushny, 1917) ने प्रस्तुत किया था। इनके अनुसार मूत्र का निर्माण निम्न तीन चरणों में सम्पन्न होता है:
1. गुच्छीय निस्यंदन (Glomerular Filtration): ग्लोमेरुलस की रक्त केशिकाओं की भित्ति बहुत महीन और छिद्रित होती है। ये केशिकायें एण्डोथिलियल स्तर से आस्तरित होती हैं।
अभिवाही धमनिका की अपेक्षा अपवाही धमनिका के व्यास के कम होने के कारण एक निश्चित समय में जितना रक्त प्रवेश करता है, उतना ही रक्त उसी समय में नहीं निकल पाता, अतः रक्त पर बहुत अधिक दबाव बढ़ जाता है जिसे हाइड्रोस्टेटिक दाब (Hydrostatic Pressure) कहते हैं। इसका मान +75 mm Hg के लगभग होता है जबकि बोमन सम्पुट पर दबाव केवल 30 mm Hg ही होता है। अत: रुधिर प्लाज्मा का लगभग 1/5 भाग इन पतले स्तरों में से छनकर बोमन सम्पुट की गुहा में पहुंचता है। इस क्रिया को ही अतिसूक्ष्म नियंदन कहते हैं तथा हने हुए को नेफ्रिक या केशिका गुच्छकीय नियंद (Nephric or Glomerular Filtrate) कहते हैं।
वृक्कों द्वारा प्रति मिनट औसतन 1100 - 1200 मिली रक्त का नियंदन किया जाता है। इस नियंद में रक्त कणिकाओं (Blood corpuscles) तथा प्लाज्मा प्रोटीन को छोड़कर रक्त के सभी घटक जरना, अमीनो अम्ल, यूरिक अम्ल, लवण, यूरिया - ग्लूकोज आदि होते हैं। वृक्कों द्वारा प्रति मिनट निस्पंदित की गई मात्रा ग्लोमेरुलर नियंदन दर (Glomerular Filtration Rate) कहलाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति में यह दर 125 मिली. प्रति मिनट अर्थात् 180 लीटर प्रतिदिन है।
2. पुनः अवशोषण (Reabsorption): अति सूक्ष्म नियंदन से प्राप्त नेफ्रिक फिल्ट्रेट क्रमश: समीपस्थ कुण्डलित भाग, हेनले का लूप व दूरस्थ कुण्डलित भाग से होता हुआ संग्रह नलिका में प्रवेश करता है, इस सम्पूर्ण मार्ग से गुजरते हुए नेफ्रिक फिल्ट्रेट के संगठन में अत्यधिक परिवर्तन होता है। इन्हीं परिवर्तनों के कारण अन्तत: नेफ्रिक फिल्ट्रेट से मूत्र का निर्माण होता है।
वृक्क नलिका के स्रावी भाग (Secretary Part) नेफ्रिक फिल्ट्रेट के सभी उच्च देहली पदार्थ जो कि शरीर के लिये अत्यन्त आवश्यक होते हैं, जैसे- एमीनो अम्ल, ग्लूकोस, कीटो अम्ल, विटामिन सी आदि का अवशोषण कर लेती है। जल के अतिरिक्त अन्य सभी लाभदायक पदार्थों का सक्रिय अभिगमन (Active Transport) होता है तथा 80% से भी अधिक भाग अविकल्पी अवशोषण (Obligatory Absorption) होता है। हेनले के लूप की आरोही भुजा पानी तथा विलेय (Solutes) हेतु पारगम्य होती है, किन्तु इसकी आरोही भुजा पानी हेतु अपारगम्य रहती है। अत: इस भाग में Na+ व Cl- का अवशोषण किया जाता है।
अदेहली पदार्थों, जैसे - यूरिया, यूरिक अम्ल, क्रियेटिनिन आदि का अवशोषण नहीं होता है।
3. सावण (Secretion): परिस्यंदन के समय कुछ अपशिष्ट पदार्थ रक्त में ही रह जाते हैं, जिन्हें समीपस्थ व दूरस्थ कुण्डलित भाग की परिनलिका जाल की कोशिकाओं के रक्त से लेकर ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट में डाल देती है। इसके इसी कार्य को स्वावण कहते हैं। जैसे यूरिक अम्ल, K+, H+ क्रिएटीनीन, पेराएमीनो, हिप्यूरिक अम्ल आदि। नलिका के द्वारा स्वावण की क्रिया एक सक्रिय क्रिया (active process) है, जिसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 4.
नेफ्रॉन तथा वासा रेक्टा द्वारा निर्मित प्रतिधारा प्रवाह क्रियाविधि का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शरीर में जल की कमी होने पर वृक्कों द्वारा गाडे मूत्र का उत्सर्जन किया जाता है। इस प्रकार के मूत्र में उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा अधिक एवं जल की मात्रा न्यून होती है। इसकी परासरणीयता 1200 से 1400 मिली. आस्मोल/लीटर जल तक हो जाती है। मूत्र सान्द्रता में वृक्क नलिका की विशेष भूमिका होती है। जक्स्टा - मेड्यूलरी (Juxtamedullary) वृक्क नलिकाओं के हेनरले के लूप अत्यधिक लम्बे होते हैं जो वृक्क श्रोणि तक फैले होते हैं। इनकी अवरोही व आरोही भुजाएँ महीन, लम्बी वासा - रेक्टा नामक रक्त केशिकाओं से घिरी होती हैं। वासा रेक्टा तथा हेनले के लूपों में रक्त व निस्यंद का प्रवाह विपरीत दिशाओं में होता है जिसे प्रतिधारा प्रवाह (Counter current flow) कहते हैं।
यह मुख्यत: Na+ व Cl- से सम्बन्धित होती है। समीपस्थ कुण्डलित नलिका में मूत्र आइसोटोनिक (Isotonic) होता है। हेनले लूप की अवरोही भुजा जल के लिए पारगम्य होती है। इसका परिपार्श्विक ऊतक द्रव हाइपरटॉनिक होता है। इस प्रकार जल बाहर निकलता है और Na+ व Cl- निष्क्रिय परिवहन द्वारा अवरोही भुजा में प्रवेश करते हैं। इस प्रकार अवरोही भुजा में उपस्थित फिल्ट्रेट अंततः हाइपरटॉनिक हो जाता है। हेनले लूप की आरोही भुजा (Ascending limb) जल के लिए अपारगम्य होती है। Na+ व Cl- सक्रिय परिवहन द्वारा बाहर निकाले जाते हैं। अत: फिल्ट्रेट अंततः अल्पपरासरी (Hypotic) हो जाता है।
प्रश्न 5.
नेफ्रॉन के विभिन्न भागों द्वारा प्रमुख पदार्थों का पुनरावशोषण एवं स्रवण, गमन की दिशा को प्रदर्शित करते हुए इनका चित्र बनाइए एवं वृक्क नलिका के विभिन्न भागों के कार्य का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृक्क नलिका के विभिन्न भागों के कार्य निम्नलिखित है-
1. समीपस्थ संवलित नलिका (Proximal Convoluted Tubules): समीपस्थ कुण्डलित नलिका की भित्ति में घनाकार उपकला (Cubodial epithelium) का अस्तर पाया जाता है। इन कोशिकाओं के स्वतन्य सिरे पर अनेक सूक्ष्मांकर (microvilli) पाये जाते हैं जो पुनरावशोषण (Reabsorption) के लिए सतह क्षेत्र को बढ़ाते हैं। अर्थात् इनकी उपस्थिति के कारण अवशोषण की दर 20 गुना बढ़ जाता है। लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्व 70 - 80 प्रतिशत वैद्युत - अपघट्य (electrolytes) और जल का पुनः अवशोषण इसी भाग द्वारा होता है।
समीपस्थ कुण्डलित नलिका शारीरिक तरलों (bodyfluids) के pH एवं आयनी संतुलन (ionic balance) बनाये रखने के लिए H+, अमोनिया और K+ आयनों का निस्यंद में लवण और HCO3- का पुनरावशोषण करती है।
2. हेनले का लूप (Henle's loop): हेनले लूप की अवरोही भुजा (descending limb) दो भागों में बंटी होती है। इसकी भित्ति जल के लिए अत्यधिक पारगम्य होती है लेकिन यूरिया व सोडियम आदि के लिए अल्प पारगम्य होती है। जैसे निस्पंद लूप की गहराई की ओर बढ़ता है। इसमें जल का त्याग होता जाता है व यह उच्च परासरणी द्रव (Hypertonic) में बदल जाता है।
हेनले लूप की आरोही भुजा (Ascending limb) दो भागों में बंटी होती है - आरोही भुजा का पतला खण्ड व मोटा खण्ड। पतले खण्ड की दीवार जल के लिए अपारगम्य व NaCl के लिए पूर्ण पारगम्य होती है। यह भुजा जैसे - जैसे ऊपर की ओर बढ़ती है, इसमें NaCl की कमी होती जाती है। इस भुजा में नियंद आइसोटोनिक (isotonic) हो जाता है। आरोही भुजा के मोटे खण्ड में Na+ व Cl- का अवशोषण होता है। इसमें निस्यंद हाइपोटोनिक (hypotonic) हो जाता है।
3. दूरस्थ संवलित नलिका (Distal Convoluted Tubules): विशिष्ट परिस्थितियों में Na+ और H2O का अवशोषण दूरस्थ संवलित नलिका में होता है। दूरस्थ कुण्डलित नलिका (DCT) रुधिर में सोडियम - पोटेशियम का संतुलन (balance) बनाये रखने के लिए बाइकार्बोनेट्स (Bicarbonates) का पुनरावशोषण एवं हाइड्रोजन आयन (H+), पोटैशियम आयन (K+) और अमोनिया (NH3) का चयनात्मक (Selective) लवण करती है।
4. संग्रह नलिका (Collecting Duct): संग्रह नलिका द्वारा मूत्र (Urine) को आवश्यकतानुसार सान्द्र (concentrated) करने के लिए जल का अधिकांश भाग संग्रह नलिका के द्वारा अवशोषित किया जाता है। यह नलिका मध्यांश की अंतरकाशी (medullary interstitium) की परासरणता (osmolarity) को बनाये रखने के लिए यूरिया (Urea) के कुछ भाग को मेड्यूला (medulla) तक ले जाती है। हाइड्रोजन आयन एवं पोटैशियम आयन का चयनात्मक स्रवण (Selective Secretion) द्वारा pH का नियमन एवं रुधिर में आयनों का संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।
प्रश्न 6.
वृक्क क्रियाओं के नियमन को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
वृक्कों की क्रियाविधि का नियमन निम्न प्रकार से किया जाता है-
1. जक्स्टाग्लोमेरुलर उपकरण द्वारा नियंत्रण/निम्न रक्त दाब से रेनिन - ऐन्जियोटेन्सिन पथ का उत्प्रेरण (Control by Juxtaglomerular apparatus or JGA/Low Blood Pressure Triggers the Reninangiotensin Pathway): JGA एक बहु हार्मोनल रेनिन - एंजियोटेसिन - एल्डोस्टेरॉन तन्त्र (RAAS) को संचालित करता है। JGA ग्लोमेरुलस की अभिवाही धमनिका (Afferent arteriole) में रक्त दाब या रक्त आयतन के कम होने के प्रति अनुक्रिया करता और रक्त प्रवाह में रेनिन एंजाइम को मुक्त करता है। रेनिन रक्त में एंजियोटेसिनोजन (प्लाज्मा प्रोटीन) को एंजियोटेसिन II (एक पेप्टाइड) में बदलता है जो कि एक हार्मोन की भाँति कार्य करता है। एंजियोटेसिन II धमनिकाओं को संकुचित करके रक्त दाब बढ़ाता है। यह दो प्रकार से रक्त आयतन भी बढ़ाता है - प्रथमत: PCT को अधिक NaCl व जल का पुनरावशोषण करने हेतु संकेत देता है और द्वितीय एड्रीनल ग्रन्थि द्वारा एल्डोस्टेरोन (D.C.T. द्वारा Na+ व जल के पुनरावशोषण को बढ़ाने वाला हामोन) के स्रावण हेतु प्रेरित करता है। इससे रक्त दाब व रक्त आयतन में वृद्धि होती है और रेनिन के स्रावण में सहयोग के फीडबेक सर्किट पूरा होता है।
2. पैराथॉर्मोन (Paratharmone): यह हार्मोन पैराथाइरॉइड ग्रन्थि द्वारा उत्पन्न होता है। यह नेफ्रोन से Ca++ के अवशोषण को बढ़ाता है व फॉस्फेट के अवशोषण घटाता है।
3. एन्टीडाइयूरेटिक हार्मोन या वैसोप्रेसिन (Antidiuretic hormone or Vassopresin): यह हार्मोन पीयूष ग्रन्थि के द्वारा सावित हार्मोन है। यह हार्मोन मूत्र में पानी की मात्रा का नियमन करता है। यह नेफ्रोन्स की दूरस्थ कुण्डलित नलिका एवं संग्रह नलिका की जल पारगम्यता को बढ़ाता है। इसके कारण जल का अवशोषण बढ़ता है।
इस हार्मोन की कमी से जल का अवशोषण कम हो जाता है व मूत्र में पानी की मात्रा बढ़ जाती है। इसे पॉली यूरिया या डाइयूरेसिस (Poly urea or diuresis) कहते हैं। इस रोग को डाइबिटिज इन्सिपिडस (diabetes insipidus) कहते हैं।
हृदय के आलिन्दों में अधिक रुधिर के बहाव से आलिन्दीय नेट्रियूरेटिक कारक (Arial Natriuretic Factor - ANF) सावित होता है। एएनएफ से वाहिकाविस्फारण (Vasodilation) अर्थात् रक्त वाहिकाओं में फैलाव होता है जिससे रक्त दाब (blood pressure) कम हो जाता है। इस प्रकार से एएनएफ क्रियाविधि रेनिन - एंजियोटेंसिन क्रियाविधि (renin - angiotensin mechanism) पर नियंत्रक का कार्य करता है।
प्रश्न 7.
हीमोडायालिसिस ( रक्त अपोहन ) किसे कहते हैं? इसकी प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. वृक्क की पथरी (Kidney Stone): यह यूरिक अम्ल या ऑक्सेलेट के अवक्षेपण के कारण बनती है। यह वृक्क नलिकाओं को अवरुद्ध कर देती है। इसके कारण पीठ में तीव्र दर्द (renal colic) होता है, जो जांघों की ओर फैलता है। यह पथरी मूत्रवाहिनी या मूत्राशय में पहुँचकर वृद्धि कर सकती है। मूत्राशय में पथरी होने पर रोगी को बारबार पीड़ायुक्त मूत्र त्याग होता है और मूत्र में रक्त भी आ सकता है। पथरी को निकालकर रोगी को पीड़ामुक्त करने हेतु शल्य क्रिया (Surgery) की आवश्यकता पड़ सकती है।
2. ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (Glomerulonephritis): ग्लोमेरुलाई का शोथ (Inflammation) ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस कहलाता है। यह दशा वृक्कों को चोट लगने, जीवाण्विक टॉक्सिन्स, औषधीय प्रतिक्रियाओं (Drug reactions) आदि के कारण उत्पन्न हो सकती है। इस रोग में RBCS व प्रोटीन्स छनकर ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट में पहुँच जाती हैं।
3. पायलोनेफ्राइटिस (Pyelonephritis): यह रीनल पेल्विस, कैलिसेज व अन्तराली ऊतक का शोथ (Inflammation) है। यह स्थानीय (Local) जीवाण्विक संक्रमण के कारण होता है। यहाँ जीवाणु मूत्र मार्ग व वाहिनी द्वारा पहुँचते हैं। इस संक्रमण को प्रतिप्रवाह अभिक्रिया (Counter current mechanism) पर प्रभाव पड़ता है। और रोगी मूत्र का सान्द्रण नहीं कर पाता है। पीठ में दर्द तथा बार - बार पीड़ादायक मूत्र त्याग होना इस रोग के लक्षण हैं।
4. सिस्टाइटिस (Cystatytis): मूत्राशय का शोथ (inflammation) सिस्टाइटिस कहलाता है। यह जीवाण्विक संक्रमण के कारण होता है। रोगी को बार - बार पीड़ादायक व जलनयुक्त मूत्र त्याग (Frequent painful and burning micturition) होता है।
5. वृक्कावरोध (Kidney Failure): वृक्कों की उत्सर्जन व लवण जल नियामक कार्य करने में आंशिक या पूर्ण असमर्थता वृक्कावरोध कहलाती है। इसके कारण निम्न समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं-
कारण: अनेक कारक वृक्कावरोध (Kidney failure) उत्पन्न कर सकते हैं, जैसे - नलिकीय आघात (Tubular injury), संक्रमण, जीवाण्विक टॉक्सिन्स, ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (ग्लोमेरुलाई का शोथ), धमनीय या शिरायें अवरोध, जल व वैद्युत अपघट्य असंतुलन, कैल्सियम व यूरेटस का आन्तरिक अवक्षेपण, औषधीय प्रतिक्रिया (Drug reaction) तथा रक्त स्राव (Heamorrhage) आदि।
6. यूरेमिया (Uremia): रक्त में यूरिया की अत्यधिक मात्रा का पाया जाना यूरेमिया कहलाता है। किसी जीवाण्विक संक्रमण का यांत्रिक अवरोध के कारण वृक्क नलिकाओं द्वारा यूरिया के हासित उत्सर्जन (Decreased exerction) के कारण यह दशा उत्पन्न होती है। यूरिया की उच्च सान्द्रता कोशिकाओं को विषाक्त कर देती है।
हीमोडायालिसिस (रक्त अपोहन): यूरेमिया रोग से ग्रसित रोगियों के रुधिर से यूरिया को निकालने के लिए कृत्रिम वृक्कीय युक्ति की आवश्यकता पड़ती है, इसे हीमोडायालिसिस (रक्त अपोहन) कहते हैं।
इस प्रक्रिया में रोगी की किसी एक धमनी से रुधिर निकालकर इसे 0°C तक ठण्डा करते हैं। अब इस रुधिर में हिपेरिन (Heparin) नामक प्रतिस्कंदक (Anticoagulant) मिलाते हैं। इसके पश्चात् इस मिश्रण को सेलोफेन झिल्ली द्वारा आवरित बहुत सी नलिकाओं द्वारा निर्मित कृत्रिम वृक्क में डाल दिया जाता है। यह झिल्ली प्रोटीन के बड़े अणुओं के लिए अपारगम्य होती है तथा कुछ विलेय जैसे यूरिक अम्ल, यरिया, क्रियेटिनिन तथा खनिज आयनों के लिए पारगम्य होती है। ये सेलोफेन झिल्लियाँ रुधिर को नलिकाओं के बाहर उपस्थित एवं अपोहनी द्रव से पृथक् किये रहती हैं। सान्द्रता प्रवणता द्वारा रुधिर से हानिकारक नाइट्रोजनी पदार्थ बाहर अपोहनी तरल में आ जाते हैं तथा प्लाज्मा प्रोटीन के अणुओं का ह्रास नहीं होता है। यह क्रिया जिसमें नलिकाओं के अन्दर बहते रुधिर से उत्सर्जी पदार्थ विसरित होकर उपकरण के द्रव में आ जाते हैं व रुधिर उत्सर्जी पदार्थों से मुक्त हो जाता है, डायलिसिस कहलाती है।
इस क्रिया के पश्चात् कृत्रिम वृक्क के रुधिर को निकालकर हल्का गर्म (शारीरिक तापमान पर) कर उसमें एन्टीहिपेरिन मिलाकर रोगी की शिरा में पुनः प्रवेश कराया जाता है। रुधिर अपोहन (Haemodialysis) द्वारा यूरेमिया (Uremia) रोग से ग्रसित व्यक्ति को बचाया जा सकता है।
वक्क प्रत्यारोपण (Kidney Transplantation): वृक्क की क्रियाहीनता (Renal failures) को दूर करने का अन्तिम उपाय वृक्क प्रत्यारोपण है। यदि किसी व्यक्ति का वृक्क कार्य करना पूर्णतया बंद कर दे एवं अन्य सभी उपचार असफल हो जाये तो वृक्क परिवर्तन करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसे वृक्क प्रत्यारोपण (Kidney Transplantation) कहते हैं।
वृक्क देने वाले व्यक्ति को दाता (Donor) एवं जिसके वृक्क प्रत्यारोपित किया जाता है उसे ग्राही (Recipient) कहते हैं। रोगी के लिए वृक्क किसी ऐसे व्यक्ति से प्राप्त किया जा सकता है जो रोगी का सम्बन्धा हो तथा वह जीवित हो या हाल ही में मृत्यु हुई हो। वृक्क प्राप्त करने वाले रोगी व दाता के शरीर में अच्छी संयोज्यता होनी चाहिए क्योंकि प्राप्तकर्ता के ऊतक एवं दाता के ऊतकों में जितनी अधिक समानता होगी, उतने ही कम अवसर रोगी शरीर द्वारा वृक्क को अस्वीकार करने के होंगे।
वृक्क प्राप्तकर्ता का प्रतिरक्षित तन्त्र कई बार प्रत्यारोपित वृक्क को विजातीय मानकर वृक्क पर आक्रमण करने लगता है जिससे बचने के लिए विशेष औषधियों द्वारा प्रतिरक्षी तन्त्र को निष्क्रिय बना दिया जाता है। इससे रोगी व्यक्ति के शरीर द्वारा प्रत्यारोपित वृक्क को स्वीकार किये जाने की सम्भावना काफी बढ़ जाती है।
प्रश्न 8.
निम्न पर टिप्पणियाँ लिखिए
(i) वृक्क की पथरी
(ii) ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस
(iii) वृक्कावरोध (Kidney failure)
(iv) यूरेमिया।
उत्तर:
(i) वृक्क की पथरी (Kidney Stone): यह यूरिक अम्ल या ऑक्सेलेट के अवक्षेपण के कारण बनती है। यह वृक्क नलिकाओं को अवरुद्ध कर देती है। इसके कारण पीठ में तीव्र दर्द (renal colic) होता है, जो जांघों की ओर फैलता है। यह पथरी मूत्रवाहिनी या मूत्राशय में पहुँचकर वृद्धि कर सकती है। मूत्राशय में पथरी होने पर रोगी को बारबार पीड़ायुक्त मूत्र त्याग होता है और मूत्र में रक्त भी आ सकता है। पथरी को निकालकर रोगी को पीड़ामुक्त करने हेतु शल्य क्रिया (Surgery) की आवश्यकता पड़ सकती है।
(ii) ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस: ग्लोमेरुलाई का शोथ (Inflammation) ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस कहलाता है। यह दशा वृक्कों को चोट लगने, जीवाण्विक टॉक्सिन्स, औषधीय प्रतिक्रियाओं (Drug reactions) आदि के कारण उत्पन्न हो सकती है। इस रोग में RBCS व प्रोटीन्स छनकर ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट में पहुँच जाती हैं।
(iii) वृक्कावरोध (Kidney failure): वृक्कों की उत्सर्जन व लवण जल नियामक कार्य करने में आंशिक या पूर्ण असमर्थता वृक्कावरोध कहलाती है। इसके कारण निम्न समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं-
कारण: अनेक कारक वृक्कावरोध (Kidney failure) उत्पन्न कर सकते हैं, जैसे - नलिकीय आघात (Tubular injury), संक्रमण, जीवाण्विक टॉक्सिन्स, ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (ग्लोमेरुलाई का शोथ), धमनीय या शिरायें अवरोध, जल व वैद्युत अपघट्य असंतुलन, कैल्सियम व यूरेटस का आन्तरिक अवक्षेपण, औषधीय प्रतिक्रिया (Drug reaction) तथा रक्त स्राव (Heamorrhage) आदि।
(iv) यूरेमिया: रक्त में यूरिया की अत्यधिक मात्रा का पाया जाना यूरेमिया कहलाता है। किसी जीवाण्विक संक्रमण का यांत्रिक अवरोध के कारण वृक्क नलिकाओं द्वारा यूरिया के हासित उत्सर्जन (Decreased exerction) के कारण यह दशा उत्पन्न होती है। यूरिया की उच्च सान्द्रता कोशिकाओं को विषाक्त कर देती है।
प्रश्न 9.
उत्सर्जन किसे कहते हैं? उत्सर्जन के आधार पर जन्तुओं -को प्रमुखतः कितनी श्रेणियों में बांटा गया है? प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जन्तुओं में मेटाबॉलिज्म (metabolism) के अन्तर्गत असंख्य रासायनिक क्रियाएँ होती हैं तथा फलस्वरूप पोषक पदार्थों का विघटन आदि होता है। इन जैविक क्रियाओं के फलस्वरूप अनुपयुक्त एवं हानिकारक अन्तिम उत्पाद (end products) बनते हैं जिनका शरीर से बाहर निकालना अतिआवश्यक होता है। इन्हीं हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी पदार्थ (Excretory products) कहते हैं तथा इन्हें शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन (Excretion) कहते हैं। मेटाबॉलिज्म अर्थात् उपापचय के प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ CO2, जल तथा नाइट्रोजन युक्त पदार्थ होते हैं। हानिकारक CO2 श्वसन द्वारा देह से बाहर निकाली जाती है। अतिरिक्त जल का निष्कासन एक से अधिक विधियों द्वारा होता है। प्रोटीन के नाइट्रोजनी उत्पादों का विशिष्ट उत्सर्जन क्रिया द्वारा देह से निष्कासन किया जाता है। अत: सामान्य तौर पर नाइट्रोजनी अन्तिम उत्पादों को देह से बाहर निकालने की क्रिया को ही उत्सर्जन (Excretion) की संज्ञा दी जाती है।
जन्तुओं में तीन प्रकार के प्रमुख अन्तिम उत्पाद बनते हैंअमोनिया (ammonia), यूरिया (urea) तथा यूरिक अम्ल (uric acid)। नाइट्रोजनी अन्त:-उत्पादकों के आधार पर जन्तुओं को तीन श्रेणियों में प्रायः बाँटा जाता है, जो निम्नलिखित हैं-
1. अमोनोटेलिक जन्तु (Ammonotelic animals): जिन जन्तुओं में उत्सर्जी उत्पाद अमोनिया गैस के रूप में होता है, उन्हें अमोनोटेलिक कहते हैं। अधिकांश जलीय जन्तु (aquatic animals) अमोनोटेलिक होते हैं। अमोनिया अत्यधिक विषाक्त तथा जल में अत्यधिक विलेय होती है। अत: इसके इसी रूप में उत्सर्जन हेतु पानी की बड़ी मात्रा आवश्यक होती है। इस कारण अधिकांश जलीय आर्थोपोड्स, अस्थिल तथा स्वच्छ जलीय मछलियाँ, उभयचरों के टेडपोल, कछए आदि अमोनिया उत्सर्जित करते हैं। इस उत्सर्जन को अमोनोटेलिक उत्सर्जन या अमोनोटेलिज्म कहते हैं।
2. यूरियोटेलिक जन्तु (Ureotelic animals): ऐसे जन्तु जो नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का त्याग मुख्यतया यूरिया (Urea) के रूप में करते हैं उन्हें यूरियोटेलिक जन्तु कहते हैं। इन जन्तुओं में प्रोटीन उपापचय के दौरान अमोनिया बनती है। यह अमोनिया CO2 के साथ आर्निथीन चक्र द्वारा यूरिया का निर्माण करते हैं। यह कार्य यकृत द्वारा पूर्ण होता है। यूरिया को घोलने के लिए जल की कुछ मात्रा की आवश्यकता होती है। अत: यूरिया तरल मूत्र के रूप में बाहर निकलता है। यह कम विषैला होता है। उत्सर्जन की इस विधि को यूरिया उत्सर्जीकरण या यूरियोटलिज्म कहते हैं।
स्तनधारी कई उभयचर एवं समुद्री मछलियाँ आदि इसके उदाहरण हैं।
3. यूरिकोटेलिक जन्तु (Uricotelic animals): ऐसे जन्तु जो मुख्यतया नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का त्याग यूरिक अम्ल के रूप में करते हैं, उन्हें यूरिकोटेलिक जन्तु कहते हैं एवं इस विधि को यूरिको उत्सर्जीकरण अथवा यूरिकोटेलिज्म कहते हैं। यूरिक अम्ल जल में लगभग अघुलनशील होता है। वृक्क नलिकाओं में इसका अवक्षेपण (Precipitation) हो जाता है तथा मूत्र से जल का वृक्क नलिकाओं द्वारा पुनः अवशोषण हो जाता है, अत: इन जन्तुओं में यूरिक अम्ल का एक सफेद से अति गाढ़ी लेई अर्थात् पेस्ट (Paste) के रूप में निष्कासन होता है। इस प्रकार यह जल संरक्षण में सहायक है।
शुष्क दशाओं में रहने वाले जन्तुओं जैसे स्थलीय घोंघे, अधिकांश कीट, स्थलीय सरीसर्प (सांप व छिपकलियाँ), पक्षी, कंगारू आदि इसके उदाहरण हैं।
अकशेरुकी प्राणियों के उत्सर्जन अंग (Excretory Organs of Invertebrates): अकशेरुकी प्राणियों में पाये जाने वाले उत्सर्जन अंग निम्नलिखित हैं-
1. प्रोटोजोन्स: अमीबा व पैरामिशियम जैसे प्रोटोजोन्स में कार्बन डाइऑक्साइड व अमोनिया का उत्सर्जन शरीर की सामान्य सतह से विसरण द्वारा होता है। यह माना जाता है कि उत्सर्जी पदार्थों के निष्कासन में संकुचनशील रिक्तिकाओं (Contractile Vacuoles) की भी कुछ भूमिका होती है।
2. स्पंज (Sponges): स्पंजों में अमोनिया (नाइट्रोजनी वयं पदार्थ) का उत्सर्जन विसरण द्वारा शरीर से बाहर (बाहर जाते हुए जल में) किया जाता है। अधिकांश स्पंज समुद्री होते हैं और उनकी कोशिकाओं में आधिक्य जल की समस्या नहीं होती। कुछ स्पंज, स्वच्छ जल (हाइपोटॉनिक) में पाए जाते हैं और उनकी अधिकांश कोशिकाओं में संकुचनशील रिक्तिकाएँ उपस्थित होती हैं।
3. सीलेण्ट्रेट्स: हाइड्रा में विशिष्ट उत्सर्जी अंगों का अभाव होता है। अमोनिया जैसे नाइट्रोजनी वर्च्य पदार्थ शरीर की सामान्य सतह से विसरण द्वारा उत्सर्जित किये जाते हैं, कुछ नाइट्रोजनी वयं पदार्थ मुख द्वारा अपचित पदार्थों के साथ भी निष्कासित किए जाते हैं।
4. प्लेटीहेल्मिन्धीज: प्लेनेरिया, लिवर फ्लूक तथा फीताकृमि में असंख्य उत्सर्जी कोशिकाएँ (ज्वाला कोशिकाएँ/सोलेनोसाइट्स) या प्रोटोनेफ्रीडिया तथा लम्बी उत्सर्जी वाहिनियाँ (Canal of Vessels) पाई जाती हैं। ज्वाला कोशिकाएँ (Flame Cells) वाहि निकाओं (ductules) में खुलती हैं जो उत्सर्जी वाहिनियों (Excretory ducts) में खलती हैं।
5. निमेटोडा: गोलकृमि (जैसे एस्केरिस) H - आकृति वाले उत्सर्जन तन्त्र से युक्त होते हैं। यह एकल रेनेट कोशिका (Single renette cell) का बना होता है, जो सम्पूर्ण शरीर की लम्बाई में उपस्थित होती है। इसमें दो लम्बवत् (Longitudinal) उत्सर्जी नलिकाएँ पाई जाती हैं जो अग्र सिरे पर अनुप्रस्थ नलिकाओं के नाल द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं। एक छोटी टर्मिनल वाहिनी (Terminal duct) उत्सर्जी छिद्र द्वारा बाहर खुलती है। एस्केरिस अमोनिया व यूरिया दोनों का उत्सर्जन करता है।
6. एनीलिडा (कें चुआ): केंचुए में उत्सर्जी तन्त्र को नेफ्रीडियल तन्त्र के नाम से भी जानते हैं। इसमें तीन प्रकार के नेफ्रीडिया पाये जाते हैं। फेरिंजियल, सेप्टल तथा त्वचीय नेफ्रीडिया। सभी नेफ्रोडिया को सामान्य रूप से माइक्रोनेफ्रीडिया कहते हैं। केंचुए में 40% यूरिया, 20% अमोनिया, 40% अमीनो अम्ल उत्सर्जित होते हैं। इसके अतिरिक्त द्रव और आयनों का सन्तुलन बनाये रखने में सहायता करते हैं। केंचुआ मुख्य रूप से यूरियोटेलिक होता है। क्लोरोगोगन कोशिकाएँ गुहीय द्रव में पाई जाती हैं। ये भी प्रकृति में उत्सर्जी होती हैं। केंचुए में रुधिर ग्रन्थियाँ 4, 5, 6 खण्डों में पाई जाती हैं। ये उत्सर्जन, रुधिर कणिकाओं का निर्माण तथा हीमोग्लोबिन के निर्माण का कार्य करती हैं।
7. आधीपाडा: वयस्क प्रान (क्रस्टशियन) का उत्सर्जन तन्त्र एक जोड़ी ग्रीन ग्लैण्ड्स (Green glands), एक जोड़ी पायवीय वाहिनियाँ (Lateral ducts), एक रीनल कोष (Renal Suc) से निर्मित होता है।
कीटों (कॉकरोच) सेन्टीपीड्स व मिलीपीड्स और एरंक्तिड्स जैसे बिच्छू तथा मकड़ी में प्रमुख उत्सर्जी अंगों के रूप में मैल्पीघियन नलिकाएँ पाई जाती हैं। मैलपीची नलिकाओं में पोटैशियम व सोडियम के बाइकार्बोनेटस जल व यूरिक अम्ल का निर्माण होता है। पोटैशियम व सोडियम के बाइकार्बोनेट्स तथा जल की अधिक मात्रा को, मैल्पीथी नलिकाओं की कोशिकाएँ पुनः अवशोषित करके रक्त (हीमोलिम्फ) में पहुँचा देती हैं। यूरिक अम्ल को आहारनाल में पहुँचा दिया जाता है और अन्ततः गुदा (Anus) द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। मकड़ियों व बिच्छुओं में उत्सर्जन हेतु मैल्पीषियन नलिकाएँ और कॉक्सल ग्रन्धियाँ अथवा दोनों उपस्थित रहती हैं।
8. मॉलस्क्स: इनमें एक या दो जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं या बोजेनस के अंग तथा केबर के अंग यूनियों में उत्सर्जन के लिए होते हैं।
9.इकाइनोडर्स: इकाइनोडर्स (जैसे - तारा मछली) में विशिष्ट उत्सर्जी अंग अनुपस्थित होते हैं। उत्सर्जी पदार्थ (मुख्यत: अमोनिया, यूरिया, कियेटेनिन) डर्मल बैंको, प्रिमिटिव गिल्स (Primitive gills) वल्यूब कीट द्वारा विसरित करके बाहर निकाले जाते हैं। अमीबॉइंड सोलोमोसाइट भी उत्सर्जी अंग होते हैं।
प्रश्न 10.
नेफ्रॉन का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपापचयी प्रक्रियाओं के फलस्वरूप निर्मित नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट उत्पादों एवं अतिरिक्त लवणों को बाहर त्यागना उत्सर्जन (Excretion) कहलाता है। उत्सर्जन से सम्बन्धित अंगों को उत्सर्जन अंग (Excretion organs) कहते हैं। उत्सर्जन अंगों को सामूहिक रूप में उत्सर्जन तन्त्र (Excretory system) कहते हैं। मनुष्य में निम्न उत्सर्जन अंग पाये जाते हैं-
1. वृक्क (Kidneys): मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं। दोनों वृक्क अन्तिम वक्षीय और तीसरी कटि कशेरुका के समीप उदर गुहा में आन्तरिक पृष्ठ सतह पर स्थित होते हैं। वृक्क गहरे लाल एवं सेम (bean) के बीज की आकृति के होते हैं अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है, जिसके मध्य में एक छोटासा गड्ढा होता है। इस गड्ढे को हाइलम कहते हैं। हाइलम भाग से वृक्क धमनी (Renal artery) प्रवेश करती है किन्तु वृक्क शिरा (Renal Vein) एवं मूत्रवाहिनी (Ureter) बाहर निकलती है। बायां वृक्क दाहिने वृक्क से थोड़ा ऊपर स्थित होता है एवं दाहिने वृक्क से आकार में कुछ बड़ा होता है। वृक्क के ऊपरी छोर पर अधिवृक्क (Adrenal) ग्रन्थि स्थित होती है।
वृक्क की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Kidney): मनुष्य का वृक्क तन्तुमय संयोजी ऊतक के महीन आवरण से ढका होता है जिसे वृक्क सम्पुट (Renal Capsule) कहते हैं। वृक्क के लम्बवत् काट में दो भाग दिखाई देते हैं जिन्हें क्रमश: कार्टेक्स एवं मध्यांश कहते हैं।
(i) कार्टेक्स (Cortex): वृक्क के बाहरी भाग को कार्टेक्स कहते हैं जो गहरे लाल रंग का होता है। यह भाग मैल्पीघी कणिकाओं (Malpighian Corpuscles) की उपस्थिति के कारण कणिकामय (Granular) होता है। इस भाग में मैल्पांगी कणिकाएं, वृक्क नलिकाओं के समीपस्थ तथा दूरस्थ कुण्डलित भाग स्थित होते हैं।
(ii) मध्यांश (Medulla): वृक्क के आन्तरिक भाग को मध्यांश (Medulla) कहते हैं। यह भाग कार्टेक्स की तरफ स्थित त्रिभुजाकार रचनारूपी पिण्डों में बंटा होता है, जिन्हें पिरैमिइस (Pyramids) कहते हैं। मनुष्य में 8 - 12 पिरमिड़ पाये जाते हैं। पिरैमिड का चौड़ा आधारी भाग कार्टेक्स की ओर तथा संकरा भाग वृक्क श्रोणि (Pelvis) में खुलता है। इन पिरैमिडों के मध्य भाग में कार्टेक्स के छोटे-छोटे उभार धंसे होते हैं, जिन्हें बर्टिनी के वृक्क स्तम्भ (Renal Column of Bertani) कहते हैं।
वृक्क के इस भाग में वृक्क नलिकाओं (Nephron) के हेनले के लूप (Henle's loops) व संग्रह नलिकाएँ (Collecting ducts) पाई जाती हैं। मूत्रवाहिनी का अग्न भाग फैला हुआ वृक्क श्रोणि या पैल्विस बनाता है। पैल्विस कई शाखाओं में बंटा होता है जिसे मेजर केलिसेज (major calyces) कहते हैं। मेजर केलिसेज दो या तीन माइनर केलिसेज (minor calyces) में बंटा होता है। प्रत्येक माइनर केलिसेज एक वृक्क अंकुर को घेरे रहता है।
नेफ्रोन की संरचना (Structure of Nephron): प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख महीन लम्बी, कुण्डलित नलिकाएँ पाई जाती हैं। इन नलिकाओं को वृक्क नलिकाएँ (Uriniferous Tubules) या नेफ्रोन (Nephron) कहते हैं। यह वृक्क की संरचनात्मक (Structural) एवं क्रियात्मक (Functional) इकाई होती है।
नेफ्रॉन (Nephron) निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(1) बल्कुटी या सुपरफिशियल नेफ्रॉन्स (Cortical or Superficial Nephrons): इन नेफ्रॉन्स के बोमन सम्पुट वृक्क की सतह के समीप पाये जाते हैं। इनके हेनले के लूप छोटे होते हैं। वल्कुटी नेफ्रोन्स 15 - 35 प्रतिशत पाये जाते हैं।
(2) जक्स्टा मेड्यूलरी नेफ्रॉन्स (Jaxta Medullary Nephrons): इन नेफ्रॉन्स के बोमन सम्पुट कार्टेक्स एवं मेड्यूला के संगम स्थल पर पाये जाते हैं। इनके हेनले के लूप अधिक गहराई तक मेड्यूला में पाये जाते हैं। कुछ नेफ्रॉन के हेनले के लूप लम्बे होते हैं। यह 65.85 प्रतिशत पाये जाते हैं।
प्रत्येक नेफ्रॉन (nephron) को दो भागों में विभेदित किया गया है-
(1) मैल्पीधी काय (Malpighian body): प्रत्येक वृक्क नलिका प्रारम्भ में एक प्यालेनुमा रचना से निर्मित होती है, जिसे बोमन सम्पुट (Bowman's capsule) कहते हैं। इस प्यालेनुमा संरचना के गड्ढे में महीन रुधिर केशिकाओं (Blood Capillaries) का घना गुच्छा पाया जाता है जिसे के शिका गुच्छ या ग्लोमेरुलस (Glomerulus) कहते हैं । बोमन सम्पुट तथा ग्लोमेरुलस को सम्मिलित रूप से मैल्पीधी काय (malpighian body) कहते हैं। यह कार्टेक्स (cortex) भाग में स्थित होता है।
बोमन सम्पुट के प्यालेनुमा भाग में रुधिर लाने वाली वाहिनी अभिवाही धमनिका (Afferent Arteriole) तथा इस भाग से रुधिर को वापस ले जाने वाली वाहिनी अपवाही धमनिका (Efferent Arteriole) कहलाती है। बोमन सम्पुट की भित्ति में दो स्तर होते हैं। ये शल्की उपकला (Simple Squamous Epitheliam) की बनी
होती है। अन्दर वाले स्तर में विशेष प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें पोडोसाइट्स (Pexdoxytes) कहते हैं। पोडोसाइट्स की सतह पर अंगुलीनुमा प्रवर्ध पाये जाते हैं जो ग्लोमेरुलस की कोशिकाओं को बांधे रखने का कार्य करते हैं। पोडोसाइट्स के प्रवर्ध एवं रक्त केशिकाओं की दीवारें मिलकर महीन ग्लोमेरुल कला (Glomerul membrane) का निर्माण करते हैं। यह कला अत्यधिक पारगम्य (permeable) होती है, क्योंकि इसमें अनेक महीन सूक्ष्म छिद्र होते हैं। यह कला एक छलनी (Filter) का कार्य करती है जिसके फलस्वरूप निस्य॑दक अथवा छनित द्रव वृक्क नलिका के स्रावी भाग में जाता है।
ग्रीवा (Neck): बोमन सम्पुट का पिछला भाग पतला होकर संकरी नलिका का निर्माण करता है, जिसे ग्रीवा कहते हैं। इसकी दीवार रोमाभि उपकला (Ciliated Epithelium) से बनी होती है।
(2) स्रावी नलिका (Secretary Tubule): नेफ्रॉन के मैल्पीघी काय (Malpighian body) के अलावा शेष भाग को स्रावी कला कहते हैं। खावी नलिका को निम्न तीन भागों में बांटा गया है-
(i) समीपस्थ कुण्डलित भाग (Proximal Convoluted Part): यह नेफ्रॉन का बोमन सम्पुट से निकलने वाला छोटा-मोटा कुण्डलित भाग होता है। समीस्थ कुण्डलित भाग सरल घनाकार कोशिकाओं से आस्तरित होता है। यह मनुष्य में लगभग 14 मिमी. लम्बा होता है तथा इसका व्यास 60 mµ व आन्तरिक व्यास 15 - 20 mµ होता है। यह भाग कार्टेक्स (cortex) में स्थित होता है।
सरल घनाकार कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरे ब्रशनुमा होते हैं, जो पदार्थों के अवशोषण (absorption) में सहायक होते हैं।
(ii) हेनले का लूप (Henle's loop): नेफ्रॉन के मध्य भाग में स्थित पतला एवं 'U' या केश पिन (Hair - pin) के आकार का नलाकार भाग होता है, इसे हेनले का लूप कहते हैं। इसका एक सिरा समीपस्थ कुण्डलित भाग से तथा दूसरा सिरा दूरस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा होता है। हनले के लूप का भाग जो समीपस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा रहता है उसे अवरोही भुजा (descending limb) कहते हैं। हेनले का दूसरा भाग जो दूरस्थ कुण्डलित भाग से जुड़ा रहता है, उसे आरोही भुजा (ascending limb) कहते हैं। दोनों भुजायें एक - दूसरे के समानान्तर होती हैं। यह वृक्क के मेड्यूला (medulla) भाग में स्थित होता है। इसकी लम्बाई 20 मिमी. के लगभग होती है।
मरुस्थल (desert) में पाये जाने वाले जन्तुओं में हेनले का लूप अपेक्षाकृत बड़ा होता है, जिसके कारण ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट से अधिक मात्रा में पानी का अवशोषण कर सके। मछलियों तथा उभयचरों के नेफ्रॉन में हेनले का लूप नहीं पाया जाता है, इसलिए इनका मूत्र अल्प परासरी (Hypotonic) होता है।
(iii) दूरस्थ कुण्डलित भाग (Distal Convoluted Part): यह भाग भी समीपस्थ कुण्डलित भाग के समान कुण्डलित होता है। यह कॉर्टेक्स (cortex) में स्थित होता है। इस भाग का एक सिरा हेनले के लूप की आरोही भुजा (ascending limb) से, दूसरा सिरा संग्रह नलिका (collecting duct) से जुड़ा रहता है। यह घनाकार कोशिकाओं (cuboidal cells) द्वारा आस्तरित होता है। लेकिन इनके स्वतन्त्र सिरों पर सूक्ष्मांकुरों की संख्या अल्प या अनुपस्थित होती है। स्रावी नलिका चारों ओर से रुधिर केशिकाओं के जाल से घिरी होती है जिसे परिनलिकीय केशिका जाल (Peritubular Capillary Network) से घिरी होती है।
संग्रह नलिका (Collecting duct): संग्रह नलिकाएँ मेड्यूला के पिरैमिड्स में स्थित होती हैं। एक संग्रह नलिका में कई वृक्क नलिकाएँ खुलती हैं तथा कई संग्रह नलिकाएँ मिलकर एक मोटी संग्रह नलिका बनाती हैं, जिसे बेलिनाई की नलिका (Duct of Bellini) कहते हैं। सभी बेलिमाई की नलिकाएँ वृक्क अंकुर (Renal papilla) या अंकुर के सिरे पर पेल्विस में खुलती हैं।
संग्रह नलिका को वृक्क (Nephron) का भाग नहीं मानते हैं।
वृक्क के कार्य (Functions of Kidney):
वृक्क की रक्त वाहिनियाँ (Blood Vessels of Kidney): प्रत्येक वृक्क में एक ही वृक्क धमनी (renal artery) जाती है जो पृष्ठ महाधमनी (dorsal arota) से निकलती है। वृक्क धमनी वृक्क में प्रवेश करने के बाद खण्डीय धमनियों (Segmental arteries) में विभाजित हो जाती है। खण्डीय धमनियों से ही अभिवाही धमनिका (afferent arteriole) निकलकर बोमन सम्मुट में जाती है और केशिकाओं में विभाजित हो जाती है। एक बोमन सम्पुट में सभी केशिकाओं के जाल को केशिका गुच्छ या ग्लोमेरुलस (glomerulus) कहते हैं। केशिकाएँ मिलकर अपवाही धमनिका (efferent arteriole) बनाती है, इसका व्यास तथा इसके रक्त में यूरिया की मात्रा अभिवाही धमनिका से कम होती है।
अपवाही धमनिका, बोमन सम्पुट से निकलकर अपनी वृक्क नलिका के चारों ओर पुन: केशिकाओं में बंट जाती है। इसे परिनलिका केशिका जाल (Peritubular Capillary Plexus) कहते हैं। यह जाल हेनले के लप के चारों तरफ भी पाया जाता है, जिसे वासा रेक्टा (Vassa Recta) कहते हैं और शिरिकाएँ मिलकर छोटी - छोटी शिरायें बनाती हैं। अन्त में सभी शिरायें मिलकर वृक्क शिरा (Renal Vein) में खुलती हैं, जो वृक्क के बाहर निकलकर पश्च महाशिरा से जुड़ जाती हैं।
2. मूत्र वाहिनियाँ (Ureters): ये प्रत्येक वृक्क के हाइलम (hilum) भाग से निकलती है। इसकी भित्ति मोटी तथा गुहा संकरी होती है। इसकी भित्ति में क्रमाकुंचन गति (peristalsis movement) होती है, जिसके कारण मूत्र, नलिकाओं में बहता है। प्रत्येक मुत्र वाहिनी पेल्विस (Pelvis) से प्रारम्भ होकर मूत्राशय (Urinary bladder) तक जाती है और इसी में खुलती है।
3. मूत्राशय (Urinary Bladder): यह एक पेशीय भित्ति युक्त थैलेनुमा अंग है जो मूत्र संचय आशय (urine reservoir) का कार्य करता है। पुरुषों में यह मलाशय (Rectum) के आगे तथा स्त्रियों में योनि के ठीक ऊपर स्थित होता है। यह तिकोने आकार का होता है। मूत्राशय में तीन स्तर पाये जाते हैं सबसे भीतरी वलित (folded) श्लेष्मिका (mucosa), मध्य में पेशी स्तर व सबसे बाहर पेरीटोनियम द्वारा निर्मित आवरण पाया जाता है। सभी पेशियाँ अरेखित प्रकार की होती हैं।
मूत्राशय की दीवार प्रत्यास्थ होती है। इसकी वजह से एकत्रित होने के समय मूत्राशय का आयतन बढ़ जाता है। मूत्राशय में लगभग 700 - 800 मिली मूत्र संचित हो सकता है। मूत्राशय नर या मादा मूत्र मार्ग में खुलता है। मूत्र मार्ग के प्रारम्भिक छिद्र के चारों ओर एक अवरोधिनी (Sphincter) नामक विशिष्ट ऐच्छिक पेशी पाई जाती है जो मूत्र निष्कासन (micturition) का नियंत्रण करती है।
4. मूत्र मार्ग (Urethra): मूत्राशय का पश्च छोर संकरा होकर एक पतली नलिका में परिवर्तित हो जाता है जिसे मूत्र मार्ग (Urethra) कहते हैं। पुरुषों में इसकी लम्बाई 15 से 20 सेमी. तक होती है। पुरुष में मूत्र मार्ग शिश्न (Penis) के अग्रस्थ सिरे पर उपस्थित मूत्र जनन छिद्र (Urinogenital aperture) द्वारा बाहर खुलता है। स्त्रियों में यह केवल मूत्र उत्सर्जन का कार्य करता है तथा मूत्र छिद्र (Urethral orifice) जनन छिद्र के ऊपर खुलता है। पुरुषों में मूत्र मार्ग तीन भागों का बना होता है:
प्रश्न 11.
अकशेरुकियों में पाये जाने वाले उत्सर्जन अंगों के नाम, कार्य एवं उदाहरण देते हुए संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अकशेरुकियों में पाये जाने वाले उत्सर्जन अंगों के नाम, कार्य एवं उदाहरण
संघ |
उत्सजी/ऑस्मोरेग्युलेटरी अंग तथा कार्य प्रमुख N2 - वर्च पदार्थ |
कार्य |
उदाहरण |
1. प्रोटोजोआ |
संकुचनशील रिक्तिका, अमोनिया |
अमोनोटेलिक, परासरण नियंत्रक |
अमीया, पैरामीशियम |
2. पोरीफेरा |
कोई नहीं (शरीर की सामान्य सतह) |
अमोनोटेलिक |
साइकन, ल्यूकॉन |
3. सीलेण्ट्रेटा |
शरीर की सामान्य सतह, अमोनिया |
अमोनोटेलिक |
हाइड्रा |
4. प्लेटीहेल्मिंथीज |
प्रोटोनेफ्रीडियल तंत्र की ज्वाला कोशिकाएँ या सोलेनोसाइट |
अमोनोटेलिक |
टीनिया, फैसियोला |
5. निमेटोडा |
H-आकृति के उत्सर्जी अंग, रेनेट कोशिकाएँ |
अमोनोटेलिक |
एस्केरिस |
6. एनीलिडा |
नेफ्रीडियल तंत्र (मेटामेरिक) विभिन्न प्रकार के |
अमोनोटेलिक |
फेरीटिमा |
7. अमोनोटेलिक |
|
|
|
(a) वर्ग - इन्सेक्टा |
माल्पीषियन नलिकाएँ, नेफ्रोसाइट, यूरिकोस ग्रन्थि (यूरिक अम्ल) |
यूरिकोटेलिक |
पेरिप्लेनेटा |
(b) वर्ग - क्रस्टेशिया |
एण्टीनरी (ग्रीन) ग्रंथि, हिपेटोपेन्क्रियास, यूरिक अम्ल |
यूरिकोटेलिक |
पैलीमॉन |
(c) वर्ग - एरेक्निडा |
कॉक्सल ग्रंथियाँ, माल्पीघियन नलिकाएँ, हिपेटोपैंक्रियाज, नेफ्रोसाइट्स |
यूरिकोटेलिक |
मकड़ी |
8. मोलस्का |
(a) वृक्क (बोजेनस का अंग) (b) केवर का अंग (c) वृक्कीय अंग (d) वृक्कीय कोष जलीय अवस्था में अमोनिया उत्सर्जित करते हैं। स्थलीय अवस्था में यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करते हैं। |
ग्वानिन ग्वानिन अमीनोटेलिक जलीय यूरोकोटेलिक स्थलीय ग्वानिन अमीनोटेलिक यूरीकोटेलिक |
पाइला पाइला पाइला, लाइमैक्स सीपिया |
9. इकाइनोडर्मेटा |
डर्मल बँकी (प्रीमिटिव गिल्स), ट्यूब फीट, शरीर की सामान्य सतह (अमोनिया), सीलोमोसाइटस |
मुख्यत: अमोनोटेलिक |
कुकुमेरिया एस्टेरियास |
10. हेमीकॉडेंटा |
ग्लोमेरुलस या प्रोवोसिस ग्रन्थि |
अमीनोटेलिक |
बेलेनोग्लोसस, सेकोग्लॉसस |
11. यूरोकॉर्डेटा |
न्यूरल ग्रन्थि, नेफ्रोसाइट |
जेन्थिन, यूरिक अम्ल (यूरीकोटेलिक) |
- |
12. सिफेलोकॉडेंटा |
(a) प्रोटोनेफ्रीडिया (b) सोलेनोसाइट्स (c) ब्राउन फनल (d) रीनल पेपीला (e) हेट्सचेक नेफ्रीडिया |
अमीनोटेलिक |
एम्फिऑक्सस |
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये प्रश्न
प्रश्न 1.
स्तनियों की कौनसी रक्त वाहिनी में सामान्यत: यूरिया की अधिकतम मात्रा परिवहित होती है-
(a) यकृत निवाहिका शिरा
(b) यकृत शिरा
(c) वृक्क धमनी
(d) यकृत धमनी
उत्तर:
(b) यकृत शिरा
प्रश्न 2.
कॉकरोच की शरीर - कोशिकाएँ अपने नाइट्रोजनी अपशिष्ट को हीमोलिम्फ में मुख्य रूप से इस रूप में डाल देती हैं-
(a) पोटैशियम यूरैट
(b) यूरिया
(c) कैल्सियम कार्बोनेट
(d) अमोनिया
उत्तर:
(a) पोटैशियम यूरैट
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से वह कौनसा एक लक्षण है जो मानवों तथा वयस्क मेंढकों, दोनों में समान पाया जाता है-
(a) चार - कक्षीय हदय
(b) आन्तरिक निषेचन
(c) केन्द्रकित लाल रक्त कोशिकाएँ
(d) यूरिया उत्सर्गी विधि का उत्सर्जन
उत्तर:
(d) यूरिया उत्सर्गी विधि का उत्सर्जन
प्रश्न 4.
मूत्र है-
(a) रक्त से अल्पपरासरी व मेड्यूलरी द्रव्य से समपरासरी
(b) रक्त से अतिपरासरी व मेड्यूलरी द्रव्य से समपरासरी
(c) रक्त से समपरासरी व मेड्यूलरी द्रव्य से अल्पपरासरी
(d) रक्त से समपरासरी व मेड्यूलरी द्रव्य से अतिपरासरी
उत्तर:
(b) रक्त से अतिपरासरी व मेड्यूलरी द्रव्य से समपरासरी
प्रश्न 5.
कौनसे जन्तु यूरिकोटेलिक हैं-
(a) रोहू और मेंढक
(b) छिपकरनी और कौआ
(c) ऊँट और मेंढक
(d) केंचुआ और बाज
उत्तर:
(b) छिपकरनी और कौआ
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किस एक विकल्प में छः प्राणियों को उनके अपने - अपने प्रकार के निकाले जाने वाले नाइट्रोजनी अपशिष्ट (A, B,C) के अनुसार सही - सही श्रेणी में रखा गया है-
A - अमोनिया उत्सर्जी |
B - यूरिया उत्सर्जी |
C - यूरिक अम्ल उत्सर्जी |
(a) कबूतर, मानव |
जलीय एम्फीबिया, छिपकलियाँ |
कॉकरोच, मेंढक |
(b) मेंढक,छिपकलियाँ |
जलीय एम्फीबिया, मानव |
कॉकरोच, कबूतर |
(c) जलीय एम्फीबिया |
मेंढक, मानव |
कबूतर, छिपकलियाँ, कॉकरोच |
(d) जलीय एम्फीबिया |
कॉकरोच, मानव |
मेंढक, कबूतर, छिपकलियाँ |
उत्तर:
(c) जलीय एम्फीबिया |
मेंढक, मानव |
कबूतर, छिपकलियाँ, कॉकरोच |
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से किस एक में, मानव नेफ्रान के एक विशिष्ट भाग का कार्य सही बताया गया है-
(a) अभिवाही धमनिका: रक्त को ग्लोमेरुलस से दूर वृक्क शिरा की ओर ले जाती है
(b) पोडोसाइट्स: सूक्ष्म अवकाश (रेखा - छिद्र) बनाते हैं ताकि रक्त का निस्यंदन होकर वह बोमैन कैप्सूल में जा सके
(c) हेनले लूप: ग्लोमेरुलर छनन में से मुख्य पदार्थों का अधिकांश पुनः अवशोषण होता है
(d) दूरस्थ संवलित नलिका: K+ आयनों का परिवर्ती रक्त केशिकाओं में पुनः अवशोषण
उत्तर:
(b) पोडोसाइट्स: सूक्ष्म अवकाश (रेखा - छिद्र) बनाते हैं ताकि रक्त का निस्यंदन होकर वह बोमैन कैप्सूल में जा सके
प्रश्न 8.
मानवों में प्रधान नाइट्रोजनी उत्सर्जी यौगिक का संश्लेषण
(a) यकृत में होता है तथा उसका अधिकांश उत्सर्जन वृक्कों द्वारा होता है
(b) वृक्कों में होता है तथा अधिकांशतः उत्सर्जन यकृत में होता है
(c) संश्लेषण एवं परित्याग दोनों कार्य वृक्कों द्वारा होते हैं
(d) यकृत में होता है एवं परित्याग भी इसी के द्वारा पित्त के माध्यम से होता है
उत्तर:
(a) यकृत में होता है तथा उसका अधिकांश उत्सर्जन वृक्कों द्वारा होता है
प्रश्न 9.
नीचे दिये गये मनुष्य के उत्सर्जी तंत्र के चित्र में विभिन्न भागों को अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों द्वारा इंगित किया गया है। कौनसे विकल्प में विभिन्न भागों का अक्षरों से सही सम्बन्ध दिया गया है-
(a) A = वृक्क, B = उदरीय एओंटा, C = यूरेटर, D = मूत्राशय, E= यूरेधा, F= वृक्कीय पेल्विस
(b) A = वृक्क, B = उदरीय एओंटा, C = यूरेश्रा, D = मूत्राशय, E= यूरेटर, F = वृक्कीय पेल्विस
(c) A = वृक्क, B = वृक्कीय पेल्विस, C = यूरे श्रा, D = मूत्राशय, E = यूरेटर, F= उदरीय एओंटा
(d) A = वृक्क, B = उदरीय एओंटा, C = यूरेथा, D = मूत्राशय, E= वृक्कीय पेल्विस, F = यूरेटर
उत्तर:
(a) A = वृक्क, B = उदरीय एओंटा, C = यूरेटर, D = मूत्राशय, E= यूरेधा, F= वृक्कीय पेल्विस
प्रश्न 10.
वृक्क की दूरस्थ खावी नलिका में जल का पुनः अवशोषण नियंत्रित किया जाता है-
(a) सोमेटोट्रोफिक हॉर्मोन (STH) द्वारा
(b) थायरॉइड उद्दीपन (TSH) हॉर्मोन द्वारा
(c) एन्टीडायूरेटिक हॉर्मोन (ADH) द्वारा
(d) मेलेनोफोर स्टीमुलेटिंग हॉर्मोन (MSH) द्वारा
उत्तर:
(c) एन्टीडायूरेटिक हॉर्मोन (ADH) द्वारा
प्रश्न 11.
रीनलट्युब्यूल का कौनसा भाग जल के लिए पारगम्य होता है परन्तु लवण के लिए अपारगम्य होता है-
(a) समीपस्थ कुण्डलित नलिका
(b) हेनले लूप की अवरोही भुजा
(c) हेनले लूप की आरोही भुजा
(d) दूरस्थ कुण्डलित नलिका
उत्तर:
(b) हेनले लूप की अवरोही भुजा
प्रश्न 12.
मानव मूत्र सामान्यतः अम्लीय होता है क्योंकि-
(a) उत्सर्जित प्लाज्मा प्रोटीने अम्लीय होती हैं
(b) पोटैशियम और सोडियम विनिमय से अम्लता उत्पन्न हो जाती है
(c) हाइड्रोजन आयन सक्रिय रूप से निस्यंद में स्त्रावित हो जाते हैं
(d) परिनलिकाकार केशिकाओं में, सोडियम ट्रांसपोर्टर प्रत्येक सोडियम आयन का विनिमय एक हाइड्रोजन आयन से कर देता है
उत्तर:
(c) हाइड्रोजन आयन सक्रिय रूप से निस्यंद में स्त्रावित हो जाते हैं
प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से कौन अधिक मात्रा में तनु मूत्र बनने का समर्थन नहीं करता है-
(a) कैफीन
(b) रेनिन
(c) परिकोष्ठी नैट्रियूरेटिक कारक
(d) एल्कोहॉल
उत्तर:
(b) रेनिन
प्रश्न 14.
कॉलम - I को कॉलम - II से सुमेलित कर सही विकल्प का चयन कीजिए:
कॉलम - I |
कॉलम - II |
A. यूरीमिया |
1. मूत्र में अधिक मात्रा में प्रोटीन की उपस्थिति |
B. हीमेचुरिया |
2. मूत्र में कीटोन कणों की उपस्थिति |
C. कीटोनुरिया |
3. मूत्र में रक्त कणों की उपस्थिति |
D. ग्लाइकोसुरिया |
4. मूत्र में ग्लूकोज की उपस्थिति |
E. प्रोटीन्युरिया |
5. मूत्र में यूरिया की उपस्थिति |
(a) A - 5, B - 3, C - 2, D - 4, E - 1
(b) A - 4, B - 5, C - 3, D - 2, E - 1
(c) A - 5, B - 3, C - 4, D - 2, E - 1
(d) A - 3, B - 5, C - 2, D - 1, E - 4
(e) A - 2, B - 1, C - 3, D - 4, E - 5
उत्तर:
(a) A - 5, B - 3, C - 2, D - 4, E - 1
प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से किसके द्वारा दूरस्थ कुण्डलित नलिका में सोडियम का पुन:अवशोषण बढ़ जाता है-
(a) एल्डोस्टीरोन के स्तर के घटने से
(b) एंटीडाइयूरेटिक हॉर्मोन के स्तर के घटने से
(c) एल्डोस्टीरोन के स्तर के बढ़ने से
(d) एंटीडाइयूरेटिक हॉर्मोन के स्तर के बढ़ने से
उत्तर:
(c) एल्डोस्टीरोन के स्तर के बढ़ने से
प्रश्न 16.
गुच्छीय निस्पंदन दर (GFR) में गिरावट आने पर किसका सक्रियकरण होता है-
(a) गुच्छीय आसन्न कोशिकाओं का ताकि उनसे रेनिन निकले
(b) एड्रीनल कॉर्टेक्स (अधिवृक्क वल्कुट) का ताकि उससे एल्डोस्टेरोन निकले
(c) एड्रीनल मेडुला (अधिवृक्क मध्यांश) का ताकि उससे एडीनेलोन निकले
(d) पश्च पिट्यूटरी (पीयूष) का ताकि उससे वैसोप्रेसिन निकले
उत्तर:
(a) गुच्छीय आसन्न कोशिकाओं का ताकि उनसे रेनिन निकले
प्रश्न 17.
कॉलम - I के उत्सर्जी कार्यों का कॉलम - II के उत्सर्जी तंत्रों से मिलान कीजिए और सही उत्तर चुनिए-
कॉलम - I |
कॉलम - II |
(i) परा - निस्पंदन |
(a) हेनले लूप |
(ii) मूत्र का सान्द्रण |
(b) यूरेटर |
(iii) मूत्र का परिवहन |
(c) यूरीनरी ब्लेडर |
(iv) मूत्र का संग्रह |
(d) माल्पीषियन कार्पल्स |
|
(e) प्रोक्सिमल कॉन्व्यूलेटेड |
(a) (i) - (d), (ii) - (a), (iii) - (b), (iv) - (c)
(b) (i) - (d), (ii) - (c), (iii) - (b), (iv) - (a)
(c) (i) - (e), (ii) - (d), (iii) - (a), (iv) - (c)
(d) (i) - (e), (ii) - (d), (iii) - (a), (iv) - (b)
(e) (i) - (d), (ii) - (a), (iii) - (c), (iv) - (b)
उत्तर:
(a) (i) - (d), (ii) - (a), (iii) - (b), (iv) - (c)
प्रश्न 18.
मनुष्यों में चलन के सन्दर्भ में सही कथन चुनिए
(a) समीपवर्ती कशेरुकों के बीच की संधि रेशेदार संधि होती है
(b) प्रोजेस्टेरॉन के कम स्तर के कारण वृद्ध व्यक्तियों में ऑस्टियोपोरेसिस (अस्थि - सुषिरता) हो जाती है।
(c) यूरिक अम्ल के क्रिस्टलों के जोड़ पर एकत्रित हो जाने पर वे सूज जाते हैं
(d) कशेरुक दंड में 10 वक्षीय कशेरुक होते हैं
उत्तर:
(c) यूरिक अम्ल के क्रिस्टलों के जोड़ पर एकत्रित हो जाने पर वे सूज जाते हैं
प्रश्न 19.
नेफ्रॉन का वह कौनसा भाग है जिसमें गुच्छीय नियंदन में से वैद्युत अपघट्यों तथा जल की अधिकतम मात्रा (70 - 80 प्रतिशत) का पुनः अवशोषण होता है
(a) निकटस्थ कन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल में
(b) हेनले के लूप में
(c) दूरस्थ कन्योल्यूटेड ट्यूब्यूल में
(d) कलेक्टिंग डक्ट (संग्राहक नलिका में)
उत्तर:
(a) निकटस्थ कन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल में
प्रश्न 20.
निम्नलिखित में से कौनसी एक संरचना वृक्कीय पिरामिड का भाग नहीं है-
(a) हेनले के पाश
(b) परिनलिकाकार केशिकाएँ
(c) कुण्डलित नलिकाएँ
(d) संग्राहक वाहिनियाँ
उत्तर:
(c) कुण्डलित नलिकाएँ
प्रश्न 21.
वृक्क (गुदों) के कार्य के नियमन के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौनसा एक कथन सही है
(a) गर्मियों में जब वाष्पन के द्वारा शरीर से बहुत सा जल बाहर निकल जाता है, तब ADH का विमोचन घट जाता है
(b) जब कभी कोई बहुत ज्यादा पानी पीता है, तब ADH का विमोचन घट जाता है
(c) शरीर को अधिक ठण्ड लगने पर ADH का विमोचन उत्तेजित होता है
(d) ग्लोमेरुलर रक्त प्रवाह में बढ़ोतरी होने से ऐंजियोटेंसिन II का बनना उत्तेजित होता है
उत्तर:
(b) जब कभी कोई बहुत ज्यादा पानी पीता है, तब ADH का विमोचन घट जाता है
प्रश्न 22.
नेफ्रॉन का वह भाग, जो सोडियम के सक्रिय पुनः अवशोषण का कार्य करता है, है-
(a) हेनले पाश कुण्डली का अवरोही पाद
(b) दूरस्थ संवलित नलिका
(c) निकटस्थ संवलित नलिका
(d) बोमैन सम्पुट
उत्तर:
(c) निकटस्थ संवलित नलिका
प्रश्न 23.
निम्न में कौनसा कथन उचित है-
(a) हेनले पाश की आरोही भुजा जल के लिए अपारगम्य है
(b) हेनले पाश की अवरोही भुजा जल के लिए अपारगम्य है
(c) हेनले पाश की आरोही भुजा जल के लिए पारगम्य है
(d) हेनले पाश को अवरोही भुजा विद्युत अपघट्यों के लिए पारगम्य है
उत्तर:
(a) हेनले पाश की आरोही भुजा जल के लिए अपारगम्य है
प्रश्न 24.
कॉलम A में दी गई असामान्य स्थितियों को कॉलम B में दी गई उनकी व्याख्याओं से सुमेलित कर सही विकल्प का चयन कीजिए:
कॉलम A |
कॉलम B |
A. ग्लायकोसूरिया |
(i) जोड़ों में यूरिक अम्ल का एकत्रण |
B. रीनल कैल्कुली |
(ii) ग्लोमेरुरली में प्रदाह |
C. ग्लोमेरुलर नेफ्राइटिस |
(iii) वृक्क में क्रिस्टलीकृत लवणों का समूह |
D. गाँउट |
(iv) यूरिन में ग्लूकोज की उपस्थिति |
विकल्प:
(a) A - (i), B - (iii), C - (ii), D - (iv)
(b) A - (iii), B - (ii), C - (iv), D - (i)
(c) A - (iv), B - (iii), C - (ii), D - (i)
(d) A - (iv), B - (ii), C - (iii), D - (i)
उत्तर:
(c) A - (iv), B - (iii), C - (ii), D - (i)
प्रश्न 25.
नेफ्रॉन (वक्काणु) से समीपस्थ संवलित नलिका को काटकर निकाल देने का परिणाम होगा
(a) मूत्र ज्यादा तनु हो जायेगा
(b) मूत्र का निर्माण नहीं होगा
(c) मूत्र के लक्षणों व मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होगा
(d) मूत्र ज्यादा सान्द्र हो जायेगा
उत्तर:
(a) मूत्र ज्यादा तनु हो जायेगा