RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय

Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय Important Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Biology Chapter 17 Important Questions श्वसन और गैसों का विनिमय


I. रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न (Fill in the blanks type questions)

प्रश्न 1. 
कोशिकाएँ अपापचयी क्रियाओं के लिए ........................ का उपयोग करती हैं। 
उत्तर:
ऑक्सीजन

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प्रश्न 2. 
ऑक्सीजन का मुख्य रूप से ......................... के रूप में परिकक्ष होता है। 
उत्तर:
ऑक्सी होमोग्लोबिन

प्रश्न 3. 
जलीय आर्थोपोडा में श्वसन विशेष संवहनीय संरचना ....................... द्वारा होता है। 
उत्तर:
क्लोम (गिल)

प्रश्न 4. 
ग्रसनी आहार और वायु दोनों के लिए ....................... मार्ग है।
उत्तर:
उभयनिष्ठ

प्रश्न 5. 
गैसों के मिश्रण में किसी विशेष गैस की दाब में भागीदारी को ........................... कहते है। 
उत्तर:
आंशिक दाब

प्रश्न 6. 
विसरण झिल्ली मुख्य रूप से ............................ स्तरों से मिलकर बनी होती है। 
उत्तर:
तीन

प्रश्न 7. 
ऑक्सीजन और कार्बनडाइऑक्साइड के परिवहन का माध्यम ........................... होता है। 
उत्तर:
रक्त

प्रश्न 8. 
प्रत्येक हीमोग्लोबिन अणु अधिकतम ........................ को वहन कर सकते हैं। 
उत्तर:
चार ऑक्सीजन अणु

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प्रश्न 9.
मस्तिष्क के पास क्षेत्र में एक अन्य केन्द्र स्थित होता है जिसे .......................... कहते हैं।
उत्तर:
श्वास प्रभावी (Pneumotaxic) केन्द्र

प्रश्न 10.
पत्थर की पिसाई - पिसाई वाले कारखानों के श्रमिकों ........................... का प्रयोग करना चाहिए।
उत्तर:
मुखवरण। 
     
II. सत्य व असत्य प्रकार के प्रश्न (True and False type questions)

प्रश्न 1. 
चपटे कृमि O2 और CO2 का आदान - प्रदान अपने सारे शरीर को सतह से सरल विसरण द्वारा करते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 2. 
वायुमण्डलीय CO और कोशिकाओं में उत्पन्न CO2 के आदानप्रदान (विनिमय) की इस क्रिया को श्वसन कहते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3. 
ध्वनि पेटिका (Larynx) ध्वनि उत्पादन में सहायता करती है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 4. 
सरीसृप (Reptilia) वर्ग के प्राणी फेफड़ों के द्वारा श्वसन क्रिया करते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5. 
अन्तः श्वसन तभी हो सकता है जब वायुमण्डलीय दाब से फेफड़ों की वायु का दाब (आंतर फुफ्फुसी दाब) कम हो अर्थात् फेफड़ों का दाब वायुमण्डलीय दाब के सापेक्ष कम होता हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 6. 
थर्मामीटर फुफ्फुसी कार्यकलापों का नैदानिक मूल्यांकन करने में सहायक होता है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 7. 
लगभग 20 - 25 प्रतिशत CO2 का परिवहन RBC द्वारा होता हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8. 
धूम्रपान वातस्फीति रोग का मुख्य कारक है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 9. 
प्रत्येक 100 मिली. ऑक्सीजनित रक्त सामान्य शरीर क्रियात्मक स्थितियों में ऊतकों को लगभग 15 मिली. O2 प्रदान करता है। (सत्य/असरय) 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 10. 
केंचुए अपनी आई क्यूटिकल को श्वसन के लिए उपयोग करते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

III. निम्न को सुमेलित कीजिए (Match the following)

स्तम्भ - I में दिये गये पदों का स्तम्भ - II में दिये गये पदों के साथ सही मिलान कीजिए 

प्रश्न 1. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. चपटे कृमि

(i) फेफड़े

B. मछलियाँ

(ii) श्वसन नलिकाएँ

C. पक्षी

(iii) शरीर की सतह

D. कॉकरोच

(iv) क्लोम


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. चपटे कृमि

(iii) शरीर की सतह

B. मछलियाँ

(iv) क्लोम

C. पक्षी

(i) फेफड़े

D. कॉकरोच

(ii) श्वसन नलिकाएँ


प्रश्न 2. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. वातस्फीति

(i) रेशीय ऊतकों की प्रचुरता

B. व्यावसायिक श्वसन रोग

(ii) कूपिता की भित्ति क्षतिग्रस्त

C. दमा

(iii) श्वसनी में सूजन व जलन

D. श्वसनी शोथ

(iv) श्वसन के समय घरघराहट


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. वातस्फीति

(ii) कूपिता की भित्ति क्षतिग्रस्त

B. व्यावसायिक श्वसन रोग

(i) रेशीय ऊतकों की प्रचुरता

C. दमा

(iv) श्वसन के समय घरघराहट

D. श्वसनी शोथ

(iii) श्वसनी में सूजन व जलन


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प्रश्न 3. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. श्वासनली

(i) डोम की आकृति

B. ध्वनिपेटिका

(ii) उपास्थि से निर्मित 'C' आकार के छल्ले

C. फुफ्फुस

(iii) लेरिंक्स (कंठ)

D. डायफ्राम

(iv) प्ल्यूरा


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. श्वासनली

(ii) उपास्थि से निर्मित 'C' आकार के छल्ले

B. ध्वनिपेटिका

(iii) लेरिंक्स (कंठ)

C. फुफ्फुस

(iii) लेरिंक्स (कंठ)

D. डायफ्राम

(i) डोम की आकृति


प्रश्न 4.

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. ज्वारीय आयतन

(i) 2500 - 3000 ml वायु

B. निवासित आरक्षित आयतन

(ii) 1000 ml वायु

C. उचडावसित आरक्षित आयतन

(iii) 500 ml वायु

D. अवशेषी आयतन

(iv) 3400 - 4800 ml वायु

E. जैविक क्षमता

(v) 1200 ml वायु


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. ज्वारीय आयतन

(iii) 500 ml वायु

B. निवासित आरक्षित आयतन

(i) 2500 - 3000 ml वायु

C. उचडावसित आरक्षित आयतन

(ii) 1000 ml वायु

D. अवशेषी आयतन

(v) 1200 ml वायु

E. जैविक क्षमता

(iv) 3400 - 4800 ml वायु


प्रश्न 5. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. कशेरुक दण्ड

(i) वृक्ष गुहा के अधर भाग

B. उरोस्थि

(ii) वृक्ष गुहा के पृष्ठ भाग

C. पसलियाँ

(iii) नीचे की तरफ

D. तनुपट

(iv) वक्ष भाग के पार्श्व


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. कशेरुक दण्ड

(ii) वृक्ष गुहा के पृष्ठ भाग

B. उरोस्थि

(i) वृक्ष गुहा के अधर भाग

C. पसलियाँ

(iv) वक्ष भाग के पार्श्व

D. तनुपट

(iii) नीचे की तरफ

 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
उन दो गैसों के नाम लिखिए जिनका श्वसन के दौरान विनिमय होता है।
उत्तर:

  1. ऑक्सीजन 
  2. कार्बन डाइऑक्साइड। 

प्रश्न 2. 
श्वसन सतह किसे कहते हैं?
उत्तर:
शरीर का वह भाग जहाँ गैसीय विनिमय सम्पन्न होता है, उसे श्वसन सतह कहते हैं।

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प्रश्न 3. 
एपीग्लोटिस का कार्य लिखिए।
उत्तर:
यह कण्ठद्वार (Glottis) को भोजन निगलते समय बंद करने का कार्य करता है।

प्रश्न 4. 
उस उपकरण का नाम लिखिए जो फुप्फुसों की जैव क्षमता मापने के लिए प्रयोग में लिया जाता है।
उत्तर:
फुफ्फुसों की जैव क्षमता मापने के लिए प्रयोग में लिए जाने वाले उपकरण को स्पाइरोमीटर (Spirometer) कहते हैं।

प्रश्न 5. 
फेफड़ों की सबसे छोटी क्रियात्मक इकाई (Smallest functional unit) को क्या कहते हैं?
उत्तर:
फेफड़ों की सबसे छोटी क्रियात्मक इकाई को वायुकोष्ठक या कूपिकायें (Alveoli) कहते हैं।

प्रश्न 6. 
ज्वारीय आयतन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामान्यावस्था में वायु की जो मात्रा निःश्वसन (Inspiration) के समय अन्दर जाती है अथवा उच्छ्व सन (Expiration) के समय बाहर निकलती है उसे ज्वारीय आयतन (Tidal Volume) कहते हैं।

प्रश्न 7. 
रुधिर में CO2 की मात्रा बढ़ने पर श्वसन की दर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
रुधिर में CO2 की माश बढ़ने पर श्वसर की दर बढ़ जायेगी।

प्रश्न 8. 
एस्फाइक्सीया (Asphyxia) किसे कहते हैं?
उत्तर:
O2 की कमी या CO2 की अधिकता से दम घुटने (Suffication) की स्थिति को एक्सफाइक्सीया कहते हैं।

प्रश्न 9. 
यदि मनुष्य के डायाफ्राम में छिद्र कर दिया जाये तो श्वसन क्रिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
मनुष्य के डायाफ्राम में छिद्र करने पर श्वास लेने की क्रिया बंद हो जायेगी।

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प्रश्न 10. 
कोशिकीय श्वसन किसे कहते हैं?
उत्तर:
कोशिका के अन्दर ऑक्सीजन की उपस्थिति से खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण की क्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं।

प्रश्न 11. 
रक्त में कार्बोनिक अम्ल की अधिकांश मात्रा हाइड्रोजन (H+) तथा बाइकार्बोनेट (HCO3-) के आयनों में टूट जाती है। इस विखण्डन क्रिया को किस एन्जाइम द्वारा उत्प्रेरित किया जाता है?
उत्तर:
उक्त विखण्डन क्रिया को लाल रक्त कणिकाओं में उपस्थित कार्बोनिक एनहाइड्रेज (Carbonic anhydrase) नामक एन्जाइम द्वारा उत्प्रेरित किया जाता है।

प्रश्न 12. 
मनुष्य के पोन्स में स्थित कौनसा केन्द्र निःश्वसन को धीमा करने के लिए उत्तरदायी है?
उत्तर:
मनुष्य के पोन्स में स्थित न्यूमोटेक्सिक केन्द्र (Pneumotaxic Centre) निःश्वसन को धीमा करने के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 13. 
मनुष्य के दाहिने फेफड़े में पिण्डों की कितनी संख्या होती है?
उत्तर:
मनुष्य के दाहिने फेफड़े में पिण्डों की संख्या तीन होती है। 

प्रश्न 14. 
अवशिष्ट आयतन किसे कहते हैं?
उत्तर:
बलपूर्वक बहिः श्वसन (Forced Expiration) के पश्चात् फेफड़ों में बची हुई वायु की मात्रा को अवशिष्ट आयतन या अवशेषी आयतन (Residual Volume) कहते हैं।

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प्रश्न 15. 
श्वसन (Respiration) किसे कहते हैं?

उत्तर:
वायुमण्डलीय O2 और कोशिकाओं में उत्पन्न CO2 के आदान - प्रदान (विनिमय) की इस प्रक्रिया को श्वसन (Respiration) कहते हैं।

प्रश्न 16. 
चपटे कृमि (Flat - worm) में O2 और CO2 का आदानप्रदान किस अंग की सहायता से होता है?
उत्तर:
चपटे कृमि (Flat worm) में O2 और CO2 का आदानप्रदान शरीर की सतह (Body surface) से होता है।

प्रश्न 17. 
श्वास नली वक्षगुहा के मध्य तक कौनसी वश्चीय कशेरुकी तक जाकर दो प्राथमिक श्वसनियों में विभाजित हो जाती है?
उत्तर:
श्वास नली वक्षगुहा के मध्य तक 5 वीं वक्षीय कशेरुकी तक जाकर दो प्राथमिक श्वसनियों में विभाजित हो जाती है।

प्रश्न 18. 
मनुष्य के फेफड़े किस आवरण से ढके होते हैं? 
उत्तर:
मनुष्य के फेफड़े फुफ्फुसावरण (Pleura) द्वारा ढके होते है।

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प्रश्न 19. 
श्वसन में कौनसे दो चरण सम्मिलित हैं? नाम लिखिए। 
उत्तर:

  • अंतःश्वसन 
  • निःश्वसन।

प्रश्न 20. 
फुफ्फुसी कार्यकलापों का किस मूल्यांकन करने में सहायक होता है?
उत्तर:
फुफ्फुसी कार्यकलापों का नैदानिक मूल्यांकन करने में सहायक होता है।

प्रश्न 21.
O2 और CO2 का परिवहन किस माध्यम के द्वारा होता है?
उत्तर:
O2 और CO2 का परिवहन का माध्यम रुधिर (Blood) होता है।

प्रश्न 22. 
सिग्माय वक्र (Sigmoid Curve) को और किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
सिग्माय वक्र को वियोजन वक्र (Dissociation) कहते हैं।

प्रश्न 23. 
पत्थर की घिसाई - पिसाई या तोड़ने के फलस्वरूप होने वाले रोग का नाम लिखिए।
उत्तर:
पत्थर की घिसाई - पिसाई या तोड़ने के फलस्वरूप होने वाला रोग व्यावसायिक श्वसन रोग (Occupational lung disease) कहलाता है।

प्रश्न 24. 
फेफड़ों में स्वयं फूलने व पिचकने की क्षमता क्यों नहीं पाई जाती है? समझाइये।
उत्तर:
फेफड़ों में स्वयं फूलने व पिचकने की क्षमता नहीं होती है क्योंकि इनमें पेशियों का अभाव होता है। यह क्रियाविधि पूर्ण वक्षगुहा के आयतन के घटने एवं बढ़ने से पूरी होती है। इस कार्य को पसलियाँ एवं डायाफ्राम करते हैं।

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प्रश्न 25. 
स्वचीय श्वसन क्या है? एक ऐसे प्राणी का नाम लिखिए जिसमें त्वचीय श्वसन होता है।
उत्तर:
त्वचा द्वारा होने वाला श्वसन त्वचीय श्वसन कहलाता है। मेंढक में त्वचीय श्वसन होता है।

प्रश्न 26.
अन्तरापर्युक पेशियाँ (Intercostal muscles) कहाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
अन्तरापशुक पेशियाँ पसलियों के बीच एक X के रूप में पाई जाती हैं। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
श्वसन को परिभाषित कीजिए। श्वसन में कौन - कौनसे चरण सम्मिलित हैं?
उत्तर:
श्वसन: वायुमण्डलीय O2 और कोशिकाओं में उत्पन्न CO2 के आदान-प्रदान (विनिमय) की इस प्रक्रिया को श्वसन (Breathing) या श्वसन (Respiration) कहते हैं।
श्वसन के चरण निम्नलिखित हैं -

  1. श्वसन या फुफ्फुसी संवातन जिससे वायुमण्डलीय वायु अन्दर खींची जाती है और CO2 से भरपूर कूपिका की वायु को बाहर मुक्त किया जाता है।
  2. कूपिका झिल्ली के आर - पार गैसों (O2 और CO2) का विसरण।
  3. रुधिर द्वारा गैसों का परिवहन (अभिगमन)। 
  4. रुधिर और ऊतकों के बीच O2 और CO2 का विसरण।
  5. अपचयी क्रियाओं के लिए कोशिकाओं द्वारा O2 का उपयोग और उसके फलस्वरूप CO2 का उत्पन्न होना।

प्रश्न 2. 
आंशिक दाब किसे कहते हैं?
उत्तर:
आंशिक दाब: गैस द्वारा उत्पन्न दाब उसका आंशिक दाब कहलाता है। किसी गैस का आंशिक दाब वायु में उपस्थित उसकी प्रतिशतता के समानुपाती होता है, जैसे वायु में ऑक्सीजन का प्रतिशत तथा वायुमण्डलीय दाब 76 मिमी. Hg के बराबर है तो ऑक्सीजन के आंशिक दाब (pO2) का मान 21/100 x 760 = 159.6 मिमी.  Hg होगा।

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प्रश्न 3. 
व्यावसायिक श्वसन रोग क्या है? समझाइए।
उत्तर:
व्यावसायिक श्वसन रोग: कुछ उद्योगों में विशेषकर जहाँ पत्थर की घिसाई - पिसाई या तोड़ने का कार्य होता है, वहाँ इतने धूल कण निकलते हैं कि शरीर की सुरक्षा प्रणाली उन्हें पूरी तरह निष्प्रभाव नहीं कर पाती। दीर्घकालीन प्रभावन शोध उत्पन्न कर सकता है जिनसे रेशामयता (रेशीय ऊतकों की प्रचुरता) होती है जिसके फलस्वरूप फेफड़ों को गंभीर नुकसान हो सकता है। इन उद्योगों के श्रमिकों को मुखावरण का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 4. 
श्वास नलिकाओं (Trachioles) तथा श्वसनिकाओं (Bronchioles) में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
श्वास नलिकाओं (Trachioles) तथा श्वसनिकाओं (Bronchioles) में अन्तर-

श्वास नलिकाएँ (Trachinles)

श्वसनिकाएँ (Bronchioles)

1. ये कीटों के श्वसन अंग हैं।

जबकि ये स्तनधारी जनाओं में पाये जाते हैं तथा इनके श्वसन अंग हैं।

2. ये छोटी श्वासनलियों के शाखित भाग हैं।

ये तृतीयक श्वसनी के शाखित भाग हैं।

3. इनकी दीवारों पर क्यूटिकल होती है।

जबकि इनकी दीवारों पर क्यूटिकल का अभाव होता है।

4. ये अंधरूप में समाप्त होती हैं।

ये कूपिकायें बनाती हैं।

5. इनमें द्रव्य भरा होता है।

इनमें द्रव्य नहीं भरा होता है।


प्रश्न 5. 
ऑक्सीजनीकरण को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
हीमोग्लोबिन अणुओं में चार फेरस आयन होते हैं। अत: एक अणु हीमोग्लोबिन के साथ चार अणु ऑक्सीजन के जुड़ सकते हैं। लोहा अपने फेरस रूप में ही बना रहता है। इसलिए इस संयोजन को ऑक्सीजनीकरण (Oxygenation) कहते हैं।

प्रश्न 6.
एक मनुष्य के मस्तिष्क के मेड्यूला ऑब्लांगेटा में स्थित श्वसन केन्द्र क्षतिग्रस्त हो गया। इससे संवातन क्रिया का नियंत्रण किस प्रकार प्रभावित होगा? समझाइये।
उत्तर:
संवातन के नियंत्रण हेतु मनुष्य के मेड्यूला ऑब्लांगेटा में श्वसन केन्द्र नामक एक विशिष्ट क्षेत्र होता है। इसके द्वारा श्वासोच्छवास का नियंत्रण किया जाता है। मनुष्य के मस्तिष्क के मेड्यूला ऑब्लांगेटा में स्थित श्वसन केन्द्र के क्षतिग्रस्त हो जाने से नि:श्वसन नहीं हो पायेगा। पसलियों की अन्तरापर्शक पेशियों का संकुचन व डायफ्राम की अरीय पेशियों का शिथिलन रुक जायेगा। परिणामस्वरूप फेफड़ों में भरी वायु बाहर निकल पायेगी और कुछ समय पश्चात मनुष्य की मृत्यु हो जायेगी।

प्रश्न 7. 
अन्तः श्वसन (Inspiration) व उच्छ वसन (Expiration) क्रियाविधि का तुलनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अन्तः श्वसन (Inspiration) व उच्छ्व सन (Expiration) क्रियाविधि का तलनात्मक वर्णन -

अन्तःश्वसन (Inspiration)

उच्छ्व सन (Expiration)

1. अरीय पेशियों के संकुचन से तनुपट चपटा हो जाता है।

अरीय पेशियों के शिथिलन से तनुपट गुंबदाकार हो जाता है।

2. बाह्य अन्तरापथुक पेशियों के संकुचन से पसलियाँ बाहर खिंच जाती हैं।

अन्त:अन्तरापर्शक पेशियों के संकुचन से पसलियाँ भीतर खींच ली जाती हैं।

3. उरोस्थि (stermum) अधर की ओर खिसक जाती है।

उरोस्थि (sternum) पुनः अपनी स्थिति में लौट जाती है।

4. उपर्युक्त परिवर्तनों से वसीय गुहा का आयतन बढ़ जाता है।

उपर्युक्त परिवर्तनों से वक्षीय गुहा का आयतन घट जाता है।

5. फेफड़ों में वायु दाब कम हो जाता है।

फेफड़ों में वायु दाब बढ़ जाता है।

6. इसके कारण वायु बाहर से भीतर की ओर चली जाती है, इसे अन्तःश्वसन (Inspiration) कहते हैं।

इसके कारण वायु भीतर से बाहर निकाल दी जाती है। इसे उच्छ्वासन (Expiration) कहते है।


प्रश्न 8. 
यदि फेफड़ों की दीवार मोटी कर दी जाए तो क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
फेफड़ों की पतली लचीली दीवार द्वारा ही वायु फेफड़ों में भीतर आती है व बाहर निकलती रहती है। मोटी दीवार हो जाने पर फेफड़े लचीले नहीं रहेंगे तथा वायु के भीतर आने व बाहर जाने की सामर्थ्य बहुत कम हो जायेगी। फेफड़ों की पतली दीवार में स्थित रुधिर कोशिकाओं द्वारा गैसीय विनिमय होता है जिससे ऑक्सीजन रुधिर में पहुँचती है तथा CO2 बाहर निकलती है। अत: फेफड़ों की मोटी दीवार से श्वसन सुचारू रूप से न हो पाएगा। 

प्रश्न 9. 
अपचयित Hb की तुलना में HbO2 से H+ कम क्यों जुड़ते हैं?
उत्तर:
pCO2 में वृद्धि के कारण HbO2 से O2 की मुक्ति सुगमता से होती है तथा O2 - Hb वियोजन चक्र दायीं ओर विस्थापित हो जाता है। इसे बोहर का प्रभाव कहते हैं। O2 परिवहन में यह महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है। इस प्रभाव का कारण कार्बनिक अम्ल से प्राप्त न होते हैं। CO2 जल के साथ घुलकर H2CO3 बनाती है। यह अम्ल वियोजित होकर H+ उत्पन्न करता है।

प्रश्न 10. 
श्वसन सम्बन्धी रोग कौन - कौनसे हैं? किन्हीं तीन रोगों का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्वसन सम्बन्धी रोग निम्न हैं- 

  • अस्थमा या दमा (Asthma) 
  • श्वसनी शोथ (Bronchitis) 
  • वातस्फीति (Emphysema) 
  • व्यावसायिक श्वसन रोग (Occupational Respiratory Diseases)
  1. अस्थमा या दमा (Asthma) में श्वसनी और श्वसनिकाओं की शोध के कारण श्वसन के समय घरघराहट होती है तथा श्वास लेने में कठिनाई होती है।
  2. श्वसनी शोथ (Bronchitis): यह श्वसनी की शोथ है जिसके विशेष लक्षण श्वसनी में सूजन तथा जलन होना है जिससे लगातार खाँसी होती है।
  3. वातस्फीति या एम्फाइ सिमा (Emphysema): एक चिरकालिक रोग है जिसमें कृषिका भित्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है जिससे गैस विनिमय सतह घट जाती है। धूम्रपान इसके मुख्य कारकों में से एक है।

प्रश्न 11. 
एक फुफ्फुसीय वाहिका की एक वायुकूपिका का अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय 1

प्रश्न 12. 
जैव क्षमता किसे कहते हैं? वातावरण की तुलना में विसरण में सम्मिलित विभिन्न भागों पर O2 एवं CO2 का आंशिक दबाव बताइये (mm Hg में)।
उत्तर:
जैव क्षमता (Vital Capacity):
बलपूर्वक अन्तःश्वसन के बाद वायु की अधिकतम मात्रा (आयतन) जो एक व्यक्ति अंत:श्वासित कर सकता है। इसमें ERV, TV और IRV सम्मिलित है अथवा वायु की वह अधिकतम मात्रा जो एक व्यक्ति बलपूर्वक अंतःश्वसन के बाद नि: श्वासित कर सकता है।
वातावरण की तुलना से विसरण में सम्मिलित विभिन्न भागों पर O2 एवं CO2 का आंशिक दबाव (mm Hg में) निम्नलिखित है-

श्वसन

वातावरणीय वायु

वायु कूपिका

अनॉक्सीकृत रक्त

ऑक्सीकृत रक्त

ऊतक

O2

159

104

40

95

40

CO2

0.3

40

45

40

45


RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय

प्रश्न 13. 
कॉलम I का कॉलम II से मिलान कीजिए।

कॉलम I

कॉलम II

(A) कार्बोनिक एनहाइड्रेज

(i) व्यावसायिक फुफ्फुस रोग

(B) एनाटोमिकल डेड स्पेस

(ii) सिगरेट पीने वालों में सामान्य फुफ्फुस रोग

(C) एस्बेस्टोसिस

(iii) 21 ml/mt/mm Hg

(D) एम्फासीमा

(iv) मेड्यूला ऑब्लांगेटा में स्थित

(E) ऑक्सीजन की विसरण क्षमता

(v) RRC में पाया जाता है

(F) न्यूमोटेक्सिक केन्द्र

(vi) 150 ml.

(G) श्वसन केन्द्र

(vii) ऑक्सीजन के प्रति सीधे संवेदनशीलता नहीं


उत्तर:

कॉलम I

कॉलम II

(A) कार्बोनिक एनहाइड्रेज

(v) RRC में पाया जाता है

(B) एनाटोमिकल डेड स्पेस

(vi) 150 ml.

(C) एस्बेस्टोसिस

(ii) सिगरेट पीने वालों में सामान्य फुफ्फुस रोग

(D) एम्फासीमा

(i) व्यावसायिक फुफ्फुस रोग

(E) ऑक्सीजन की विसरण क्षमता

(iii) 21 ml/mt/mm Hg

(F) न्यूमोटेक्सिक केन्द्र

(vii) ऑक्सीजन के प्रति सीधे संवेदनशीलता नहीं

(G) श्वसन केन्द्र

(iv) मेड्यूला ऑब्लांगेटा में स्थित

 

प्रश्न 14.
यदि किसी व्यक्ति की नाक बन्द रहे और वह मुँह से ही साँस लेता रहे तो क्या कुप्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सामान्य श्वसन के लिए वायु नाक द्वारा ही श्वास मार्ग से होकर फेफड़ो में पहुंचती है। नासामार्ग का भीतरी स्तर म्यूकस का लावण करता है, जिसकी कीटनाशक प्रवृत्ति होती है। नासामार्ग में लगे रोम छोटे कीटों व धूल के कणों को भीतर जाने से रोकते हैं। मुंह द्वारा साँस लेते समय ठण्डी, सूखी वायु धूल के कणों के साथ गुहिका से होकर फेफड़ों में जाएगी। ऐसी वायु मुखगुहिका व गले में हानि पहुँचाकर घाव कर सकती है। टॉसिल्स बढ़ जाते हैं तथा ब्रोंकाइटिस की सम्भावना बढ़ जाती है। मसूड़े व दाँत क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। यूस्टैकियन नलिका में भी हानि हो सकती है जिससे सुनने में कठिनाई होने लगे। कई प्रकार के रोगों के परजीवी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।

प्रश्न 15. 
श्वसन अंगों की कोई पाँच विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
श्वसन अंगों की पाँच विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. श्वसनांगों की सतह का अत्यधिक पतला (thin) होना ताकि गैसें सुगमता से विनिमय कर सकें।
  2. श्वसन सतह का सदैव नम (moist) बना रहता है।
  3. श्वसन सतह का अत्यन्त विस्तृत होना एवं गैसीय विनिमय में सहायता करना।
  4. श्वसन सतह पर सघन रक्त कोशिकाओं का जाल बिछा होना।
  5. श्वसन सतह तक शुद्ध वायु (ऑक्सीजन युक्त) को ले जाने तथा अशुद्ध वायु (CO2 युक्त) को वापस लाने के लिए निश्चित मार्ग का उपस्थित होना।
  6. गैसीय विनिमय हेतु श्वसन मार्ग का होना तथा उसमें O2 के वाहक के कार्य हेतु वाहक पदार्थ के रूप में श्वसन वर्णक (respiratory pigment) या हीमोग्लोबिन का पाया जाना।

प्रश्न 16. 
श्वासोच्छवास तथा श्वसन में कोई चार विभेद लिखिए।
उत्तर:
श्वासोच्छ्वास तथा श्वसन में विभेद:

श्वासोच्छावास

श्वसन

1. यह क्रिया कोशिकाओं के बाहर होती है।

यह क्रिया कोशिकाओं के भीतर होती है।

2. इसमें एन्जाइमों की आवश्यकता नहीं होती है।

इसमें एन्जाइमों की आवश्यकता होती है।

3. इसके दौरान ऊर्जा उत्पन्न नहीं होती है।

श्वसन के दौरान ऊर्जा उत्पन्न होती है।

4. यह केवल एक भौतिक क्रिया है जिसमें शरीर ऑक्सीजन का अन्तर्ग्रहण तथा कार्बन डाइऑक्साइड का बहिःक्षेपण करता है।

बह जैव रासायनिक क्रिया है जिसमें ग्लूकोज का ऑक्सीकरण होता है जिसके फलस्वरूप CO2 तथा ऊर्जा उत्पन्न होते हैं।


प्रश्न 17. 
सर्दी में यदि एक बन्द कमरे में जलती हुई अंगीठी व्यक्ति अपने पास रख सो जाए तो क्या हानि हो सकती है?
उत्तर:
पत्थर के कोयले जलती हुई अंगीठी से कार्बन मोनोऑक्साइड गैस निकलती है। हीमोग्लोबिन से कार्बन मोनोक्साइड के मिलन की क्षमता ऑक्सीजन की क्षमता से लगभग 250 गुना अधिक होती है। कार्बन मोनोक्साइड हीमोग्लोबिन से संयुक्त होकर स्थिर यौगिक बना लेती है तथा हीमोग्लोबिन का यह भाग श्वसन के लिए बेकार हो जाता है। अतः मनुष्य को दम घुटने की अवस्था महसूस होती है और मृत्यु भी हो सकती है। 

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
श्वसन अंग किसे कहते हैं? प्राणियों में गैसों के आदानप्रदान के लिए निम्न संरचनाओं का वर्णन कीजिए
(i) शरीर की सामान्य सतह (Body Surface) 
(ii) श्वास नली (Trachea) 
(iii) क्लोम (Gills)
उत्तर:
शरीर में श्वसन से सम्बन्धित अंग, जो गैसों के विनिमय के लिए आवश्यक होते हैं, उन्हें श्वसन अंग कहते हैं। विभिन्न श्वसनांग (Respiratory Organs) मिलकर श्वसन तंत्र (Resppiratory System) बनाते हैं।
प्राणियों में गैसों के आदान-प्रदान के लिए निम्न चार संरचनाएँ पाई जाती हैं-

(i) शरीर की सामान्य सतह (General Body Surface):
अनेक जलीय प्राणियों, अर्द्धजलीय तथा नम वातावरण में रहने वाले प्राणियों में गैसों का आदान - प्रदान शरीर की सामान्य सतह द्वारा होता है। इनमें निश्चित श्वसनांगों (Respiratory Organs) का अभाव होता है। अमीबा में प्लाज्मा झिल्ली (Plasma Membrane) से गैसीय विनिमय होता है। स्पंजों (Sponges), सीलेन्टरेटा (Coelenterata), चपटे कृमि एवं कोमल शरीर वाले सखण्ड जलीय कृमियों में शरीर की सम्पूर्ण सतह की उपकला कोशिकाओं के द्वारा गैसीय विनिमय होता है। केंचुए में शरीर को नम क्यूटिकल द्वारा गैसों का विसरण होता है। इस प्राणी के रुधिर परिसंचरण तंत्र (Circulatory System) एवं श्वसन रंजक श्वसनीय गैसों के विसरण एवं परिवहन में सहायक होते हैं। मेंढक की नम त्वचा द्वारा भी इसी प्रकार गैसीय विनिमय होता है।

(ii) श्वासनली (Trachea):
कीटों, शतपाद (Centipede), सहस्रपाद (Millipede) एवं कुछ मकड़ियों (Spiders) में गैसीय विनिमय के लिए शरीर के अन्दर पतली नलिकाएं होती हैं। ये नलिकाएँ शाखित (Branched) होती हैं तथा शरीर सतह से सभी ऊतकों तक फैली रहती हैं। इन नलिकाओं को ट्रेकिया (Trachea) कहते हैं। ये एक तंत्र के रूप में व्यवस्थित रहती हैं जिसे ट्रेकियल तंत्र (Tracheal System) कहते हैं। इस तंत्र की नलिकाओं द्वारा वायुमण्डल से ऑक्सीजन सीधे ऊतकों तक तथा कार्बन डाइऑक्साइड सीधे वायुमण्डल में आ-जा सकती है। गैसीय परिवहन के लिए रुधिर की आवश्यकता नहीं होती है। वायु के आने-जाने के लिए शरीर सतह पर इस तंत्र से जुड़े कुछ छिद्र होते हैं, जिन्हें श्वास रन्ध्र (Spiracles) कहते हैं।

(iii) क्लोम (Gills):
कलोम गैसीय विनिमय के विशिष्ट अंग होते हैं। गिल द्वारा प्राणियों में जलीय श्वसन होता है। अनेक आर्थोपोडा (Arthropoda) एवं मोलस्का (Mollusca) के सदस्यों तथा मछलियों में श्वसन के लिए क्लोम (Gills) पाये जाते हैं। गिल का निर्माण अनेक गिल तन्तुओं (Gill filaments) द्वारा होता है। ये उपकला द्वारा ढके रहते हैं तथा अत्यधिक संवहनीय होते हैं। O2 एवं CO2 का आदानप्रदान आस-पास के जल एवं गिल के अन्दर उपस्थित रक्त के मध्य होता है। मछली में क्लोम, ग्रसनी (Pharynx) की पावं भित्ति में उपस्थित गिल दरारों (Clefts) में स्थित रहते हैं। मछली द्वारा मुखगुहा में भरा बाहर भेजा जाता है। क्लोमों में गैसीय आदान - प्रदान को अधिक प्रभावी बनाने के लिए जल का प्रवाह, गिलों में प्रवाहित रुधिर की दिशा से विपरीत होता है। इस प्रक्रिया को प्रतिधारा विनिमय (Counter Current Exchange) कहते हैं।

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प्रश्न 2. 
मनुष्य के श्वसन तंत्र का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव श्वसन तंत्र (Human Respiratory System)
मनुष्य के श्वसन तंत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है:

  1. श्वसन मार्ग (Respiratory Passage) 
  2. फेफड़े (Lungs)।

1. श्वसन मार्ग (Respiratory Passage):
श्वसन मार्ग में गैसों का आवागमन होता है। इसमें नासिका, नासिका मार्ग, ग्रसनी, कण्ठ, श्वासनली एवं श्वसनियाँ आदि का अध्ययन किया जाता है। नासिका एवं नासिका मार्ग: नासिका में एक जोड़ी नासाद्वार (Nostril) उपस्थित होते हैं। ये छिद्र नासा गुहाओं में खुलते हैं। नासाद्वार एवं आन्तरिक नासा छिद्रों के बीच लम्बी नासा गुहिकाएँ विकसित हो जाती हैं। प्रत्येक नासागुहा का अग्रभाग नासा कोष्ठ तथा पश्च लम्बा भाग नासामार्ग (Nasal passage) कहलाता है। दोनों नासागुहाओं के बीच एक उदग्र पट पाया जाता है जिसे नासा पट (Nasal septum) या मेसेथमाइड कहते हैं। ये गुहाएँ तालु द्वारा मुखगुहा से अलग रहती हैं। यह गुहाएँ श्लेष्मल झिल्ली द्वारा आस्तरित होती हैं जो कि पक्ष्माभिकायमय उपकला एवं श्लेष्या कोशिका युक्त, होती हैं। नासा गुहाओं के अग्र भागों की श्लेष्मल झिल्ली में तंत्रिका तंतुओं के अनेक स्वतंत्र सिरे उपस्थित होते हैं जो गंध के बारे में ज्ञान प्राप्त करवाते हैं।

नासाग्रहाओं के कार्य (Functions of Nasal Cavity):

  • टेढ़ी - मेढ़ी टरबाइनल अस्थियाँ नासा मार्ग का क्षेत्रफल बढ़ा देती हैं। चक्करदार मार्ग से गुजरते समय वायु का ताप शरीर के ताप के समान हो जाता है।
  • लगातार श्लेष्म स्रावण के कारण नासा मार्ग, नम व लसदार बने रहते हैं, जो फेफड़ों तक जाने वाली वायु को नम बना देते हैं।
  • वायु के साथ आये हानिकारक वायरस, जीवाणु, धूल आदि के कण आदि श्लेष्मा के साथ चिपक जाते हैं। इस प्रकार वायु का फिल्टरेशन होता है।

ग्रसनी (Pharynx) - नासा गुहिका (Nasal Cavity) आन्तरिक नासाद्वार ग्रसनी में खुलती है। ग्रसनी के अधर क्षेत्र में उपस्थित ग्लोटिस 

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के माध्यम से फेरिंक्स लेरिक्स (Larynx) में खुलती है। भोजन को निगलते समय ग्लोटिस (Glottis) एपिग्लॉटिस (Epiglattis) द्वारा ढक दिया जाता है।
कंठ (Larynx): इसे स्वरयंत्र भी कहते हैं। यह चार उपास्थियों द्वारा घिरा होता जिन्हें क्रमश: थायराइड (Thyroid) उपास्थि, क्रिकायड (Cricoid) एवं एरीटिनायड (Arytenoids) कहते हैं। एरीटिनायड संख्या में दो होती हैं। इसमें स्वर रज्जु (Vocal Cords) भी उपस्थित होते हैं जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं। कंठ (Larynx) की गुहा को कण्ठकोष (Laryngeal Chamber) कहते हैं। कंठ के छिद्र को घांटी (Glottis) कहते हैं। घांटी को ढकने वाली रचना को एपीग्लोटिस (Epiglottis) कहते हैं।

श्वास नली (Trachea):
श्वास नली लगभग 12 सेमी. लम्बी पतली नलिका के समान संरचना होती है जो कण्ठ (Larynx) से प्रारम्भ होती है तथा गर्दन से होती हुई डायाफ्राम (Diaphragm) को भेद कर वक्षगुहा तक फैली रहती है। श्वास नली की दीवार में हायलिन (Hyline) उपास्थि के 'C' आकृति के छल्ले होते हैं जो पृष्ठ तल पर अपूर्ण होते हैं। ये श्वासनली को पिचकने से रोकते हैं ताकि इनमें वायु स्वतंत्रतापूर्वक आ - जा सके। श्वास नली की भीतरी श्लेष्मा कला (Mucous Membrane) श्लेष्म स्रावित करती रहती है, यह दीवार के भीतरी स्तर को नम व लसदार बनाये रखती है जो धूल कण व रोगाणुओं को रोकता है।

श्वसनी (Bronchus):
श्वास नली वक्षगुहा में दो भागों में बँट जाती है। प्रत्येक शाखा को क्रमश: दायीं व बायीं श्वसनी (Bronchus) कहते हैं। प्रत्येक श्वसनी अपनी ओर फेफड़ों में प्रवेश करती है।

(ii) फेफड़े (Lungs):
फेफड़े कोमल स्पंजी तथा गुलाबी रंग के होते हैं। फेफड़ों पर सीलोमिक एपीथीलियम का आवरण होता है जिसे प्लूरा (Pleura) कहते हैं। प्लूरा दोहरे आवरण का होता है। बाहर वाले आवरण को पैराइटल (Parietal) प्लूरा व अन्दर वाले आवरण को विसरल (Visceral) कहते हैं। इसमें वायु अनुपस्थित होती है। इसलिए इसका दाब ऋणात्मक होता है। यदि किसी दुर्घटना के कारण इसमें चली जाये तो फेफड़े पिचक जाते हैं। पैराइटल एवं विसरल प्लूरा के बीच की गुहा को प्लूरल गुहा (Pleural Cavity) कहते हैं, जिसमें प्लूरल तरल (Pleural Fluid) भरा होता है।

दायां फेफड़ा तीन पिण्डों तथा बायां फेफड़ा दो पिण्डों का बना होता है। दाहिने फेफड़े के तीन पिण्ड क्रमशः अग्रपिण्ड (Anterior Lobe), मध्य पिण्ड (Middle Lobe) एवं पश्च पिण्ड (Posterior Lobe) कहलाते हैं। इसी प्रकार बायें फेफड़े के दो पिण्ड क्रमश: बायां अन पिण्ड (Left Anterior Lobe) एवं बायां पश्च पिण्ड (Left Posterior Lobe) कहलाता है।

फेफड़ों में श्वसनी (Bronchus) का प्रवेश करने के बाद यह पतली - पतली शाखाओं में बंट जाती है। इन शाखाओं को श्वसनिकायें (Bronchioles) कहते हैं। प्रत्येक श्वसनिका से श्वसन श्वसनिकाएँ (Respiratory Bronchioles) नामक पतली शाखाएँ उत्पन्न होती हैं। श्वसन श्वसनिकाएँ और भी पतली शाखाओं में विभक्त हो जाती हैं, जिन्हें कूपिका वाहिनी (Alveolar duct) कहते हैं। अन्त में प्रत्येक कूपिकाबाहिनी एक थैलीनुमा रचना में खुलती है जिसे वायु कोष (Air sac) कहते हैं। वायुकोष अथवा कूपिकायें (Alveoali) ही वे स्थान हैं जहाँ गैसों का आदान - प्रदान होता है।

प्रत्येक वायु कोष का व्यास लगभग 0.2 मिमी. होता है। इसकी अत्यन्त पतली भित्ति में रुधिर कोशिकाओं का जाल होता है जिसमें रुधिर एक सतत स्तर के रूप में बहता है । वायु कोष द्वारा गैसीय विनिमय के लिए बनी श्वसन झिल्ली या सतह अत्यन्त महीन लगभग 0.2 pm होती है। इसका निर्माण कूपिका की उपकला कोशिका की अन्तःकला एवं मध्य में उपस्थित आधारी कला द्वारा होता है। वायु कोष की भित्ति शल्की उपकला द्वारा निर्मित होती है। श्वसनी एवं श्वसनिकाएँ पक्ष्माभी उपकला द्वारा आस्तरित होती हैं।

श्वसन में निम्नलिखित चरण सम्मिलित होते हैं (Respiration involves the following steps) -

  1. श्वसन या फुफ्फुसीय संवातन (Pulmonary ventilation) जिससे वायुमण्डलीय वायु अन्दर खींची जाती है और CO2 से भरपूर कूपिका की वायु को बाहर निकाला जाता है।
  2. कूपिका झिल्ली (Alveolar membrane) के आर - पार गैसों (O2 और CO2) का विसरण।
  3. रुधिर द्वारा गैसों का परिवहन। 
  4. रुधिर और ऊतकों के बीच O2 और CO2 का विसरण।
  5. अपचयी क्रियाओं (Catabolic reactions) के लिए कोशिकाओं द्वारा O2 का उपयोग और उसके फलस्वरूप CO2 का उत्पन्न होना।

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प्रश्न 3. 
संवातन किसे कहते हैं? श्वसन की क्रियाविधि को चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संवातन: वायुमण्डल से शुद्ध वायु को फेफड़ों तक पहुंचाने एवं अशुस वायु को फेफड़ों से बाहर निकालने की क्रिया संवातन या श्वासोच्छावास (Breathing) कहते हैं।

फेफड़े वक्षीय गुहा में स्थित होते हैं। उपर्युक्त दोनों क्रियायें वक्षीय गहा के आयतन पर निर्भर करती हैं। वक्षीय गुहा एक पिंजरे के समान होती है। इसके आगे की तरफ गर्दैन, पीछे की तरफ डायफ्राम, पृष्ठ तल पर कशेरुक दण्ड, अधर तल पर स्टनम तथा पाश्वों में पसलियाँ होती हैं। डायफ्राम गुम्बदनुमा होता है। इसमें अरीय पेशियाँ पाई जाती हैं। मनुष्य में 12 जोडी पसलियाँ होती हैं जो पृष्ठ तल पर कशेरुक दण्ड से तथा अधर तल पर स्टर्नम से जुड़ी रहती हैं। प्रत्येक दो पसलियों के बीच दो प्रकार की अन्तरापर्शक पेशियाँ क्रॉस के रूप में स्थित होती हैं -

  • अन्तः अन्तरापथुक पेशियाँ (Internal Intercoastal Muscles)
  • बाह्य अन्तरापर्युक पेशियाँ (External Intercoastal Muscles)

संवालन की क्रिया दो चरणों में होती है -
1. अन्तःश्वसन (Inspiration):
फेफड़ों में बाह्य वातावरण से वायु भरने की क्रिया अन्तःश्वसन कहलाती है। अन्त:श्वसन के दौरान बाह्य अन्तरापर्शक पेशियों के संकुचन के फलस्वरूप पसलियाँ आगे व बाहर की ओर खिंचती हैं। पसलियों की इस गति के कारण स्टनम नीचे की ओर झुक जाता है। अब पसलियों के खिंचने से डायफ्राम की रेडियल पेशियों में भी संकुचन उत्पन्न होता है। जिससे इसका गुम्बद के समान आकार चपटे रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिससे वक्षीय गुहा के आयतन में वृद्धि होती है। वक्षीय गुहा के आयतन के बढ़ने के साथ - साथ फेफड़ों का आयतन भी बढ़ जाता है, जिससे इसके भीतर वायु का दबाव कम हो जाने से चूषणार्थ (Suctorial) बल उत्पन्न होता है। फलस्वरूप वायुमण्डलीय वायु श्वसन पथ से होती हुई फेफड़ों में भीतर प्रवेश कर जाती है। अन्तःश्वसन एक सक्रिय क्रिया (Active Process) है।

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वायुमार्ग निम्न हैं- नासाद्वार → नासागुहा → आन्तरिक नासाछिद्र → ग्रसनी → घांटी → श्वासनली → श्वसनियाँ → श्वसनिकाएँ → वायुकूपिका वाहिनी → वायुकूपिका कोश → वायु कूपिकाएँ।

(ii) उच्छ्व सन (Expiration):
फेफड़ों से अशुद्ध वायु को बाहर निकालने की क्रिया को उच्छ्वसन कहते हैं। सामान्य दशाओं में तो उच्छ्वसन बिना किसी पेशी संकुचन के ही होता रहता है। केवल बाहर अन्तरापर्शक पेशियों तथा डायफ्राम में शिथिलन से ही पसलियाँ, स्टनम तथा डायफ्राम अपनी पूर्व स्थिति (सामान्य दशा) में लौट आते हैं जिससे वक्षीय गुहा के आयतन पर दबाव पड़ता है, परिणामस्वरूप फेफड़ों की वायु बाहर निकल जाती है। इस प्रकार के उच्छ्वसन को निष्क्रिय श्वसन (Passive Expiration) कहते हैं।

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निष्क्रिय उच्छ्वसन के विपरीत मनुष्य परिश्रम करता है, दौड़ता है अथवा लम्बी साँस भरता है तब अन्त:श्वसन (Inspiration) की गति बढ़ जाती है, उस समय सक्रिय उचड्वसन (Active expiration) होता है। सक्रिय उच्छ्वसन के अन्तर्गत अन्त:अन्तरापर्युक पेशियों के संकुचन से पसलियाँ पीछे तथा स्टनम ऊपर की ओर खिसक कर अपनी पूर्व स्थिति में आ जाते हैं। इस दशा में वक्षीय गुहा का आयतन कम होकर उतना ही रह जाता है जितना कि अन्तःश्वसन के पहले था। इसी समय डायफ्राम की सिकुड़ी हुई पेशियों में शिथिलन होता है जिसके कारण वह अधिक चपट न रहकर गुम्बज के आकार का हो जाता है। इस प्रकार डायफ्राम तथा पसलियों के सामूहिक प्रयास से वक्षीय गुहा का आयतन घट जाता है जिससे फेफड़ों पर दबाव पड़ता है जिससे ये पिचक जाते हैं और CO2 युक्त वायु बाह्य नासा छिद्र से बाहर निकल जाती है।

प्रश्न 4. 
फेफड़ों में उपस्थित वायु के श्रेणीकरण को समझाइये।
अथवा 
मनुष्य में फुफ्फुसीय जैव क्षमता पर विस्तार से लिखिये।
उत्तर:
श्वसन सम्बन्धी आयतन और क्षमताएँ (Respiratory Volumes and Capacities) 
फेफड़ों के व्यावहारिक कार्यों को निर्धारित करने के लिए उनके आयतन तथा क्षमताएँ मापी जाती है। इन्हें मापने के लिए स्पाईरोमीटर (Spirometer) काम में लिया जाता है।

फेफड़ों का माप चार आयतनों एवं चार क्षमताओं के रूप में वर्णन किया गया है-

  1. ज्वारीय आयतन (Tidal Volume): सामान्यावस्था में वायु की जो मात्रा अन्तः श्वसन (Inspiration) के समय अन्दर जाती है तथा उच्छ्व सन (Expiration) के समय बाहर निकलती है उसे ज्वारीय आयतन (Tidal Volume) कहते हैं। ज्वारीय निःश्वसन या ज्वारीय उच्छ्व सन का माप 500 मिली. होता है।
  2. अन्तःश्वसन आरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume): बलपूर्वक अन्तःश्वसन (Forced Inspiration) के दौरान ली गई वायु की मात्रा को अन्तःश्वसन संचयी आयतन कहते हैं। इसका मापं औसतन 2500 मिली. से 3000 मिली. होता है।
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  3. उच्छ्व सन आरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume): बलपूर्वक बहि:श्वसन के दौरान बाहर निकाली गई वायु की मात्रा को सम्पूरक वायु अथवा बहि:श्वसन संचयी आयतन कहते हैं। इसका माप औसतन 1000 मिली. से 1100 मिली. होता है।
  4. अवशिष्ट आयतन या अवशेषी आयतन (Residual Volume): बलपूर्वक बहि:श्वसन (Forced Expiration) के पश्चात् फेफड़ों में बची हुई वायु की मात्रा को अवशेषी आयतन कहते हैं। इसका माप औसतन 1100 मिली. से 1200 मिली. होता है।

फेफड़ों की क्षमताएँ: उपरोक्त आयतनों में दो या अधिक के योग को फेफड़ों की क्षमता कहते हैं। ये निम्न प्रकार की होती हैं-

  1. जैव क्षमता (Vital Capacity, VC): ज्वारीय आयतन, अन्त:श्वसन संचयी आयतन एवं बहिःश्वसन संचयी आयतन के योग को अत्यावश्यक आयतन तथा जैव क्षमता (Vital Capacity) कहते हैं।
    (V.C.) जैवधारिता = IRV + ERV + T.V.
    यह फेफड़ों में अधिकतम भरी गई तथा अधिकतम निकाली गई वायु होती है। इसका माप लगभग 4600 मिली. होता है।
  2. कुल जैवधारिता अथवा कुल फुफ्फुस क्षमता (Total Lung Capacity): जैवधारिता एवं अवशेषी आयतन के योग से फेफड़ों की कुल धारिता अथवा कुल फुफ्फुस क्षमता प्राप्त होती है।
    कुल फुफ्फुस क्षमता - जैवधारिता + अवशेषी आयतन
  3. अन्तःश्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity):  यह TV + IRV के योग के बराबर होती है। वायु की अधिकतम मात्रा जो एक निःश्वसन में ग्रहण की जाती है। इसका माप 3500 मिली. होता है।
  4. कार्यात्मक अवशिष्ट क्षमता (Functional Residual Capacity : FRC): सामान्य उच्छ्व सन के बाद जो वायु की मात्रा फेफड़ों में बचती है यह ERV + RV के बराबर होती है। इसका माप 2300 मिली. होता है।

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प्रश्न 5. 
मनुष्य में गैसीय परिवहन की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड दोनों ही गैसों के परिवहन का माध्यम रुधिर (Blood) होता है। लगभग 9790, का परिवहन रुधिर में उपस्थित लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) द्वारा होता है। शेष 3 प्रतिशत O2 का प्लाज्मा (Plasma) द्वारा पुलित अवस्था में होता है। लगभग 20 से 25 प्रतिशत CO2 का परिवहन लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) द्वारा है जबकि 70 प्रतिशत का बाईकार्बोनेट (Bicarbonate) के रूप में परिवहन होता है। लगभग सात प्रतिशत CO2 प्लाज्मा द्वारा घुलित अवस्था में होता है। 

ऑक्सीजन का परिवहन (Transport of Oxygen)
केवल तीन प्रतिशत ऑक्सीजन कोशिकाओं एवं प्लाज्मा के जल में घुलित रूप में परिवहन होता है। प्लाज्मा में घुलने वाली O2 की मात्रा रुधिर के PO2 के समानुपाती होती है। चूंकि O2 की जल में घुलनशीलता कम होती है। इसलिए O2 की बहुत कम माश घुलित रूप में परिवहित हो पाती है। रुधिर द्वारा परिवहित O2 का लागभग 97% भाग हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) के साथ संयुक्त होकर ही फेफड़ों से ऊतकों में परिवहित होता है। जब फुफ्फुस कोशिकाओं में PO2 अधिक होता है तब O2 हीमोग्लोबिन के साथ उत्क्रमणीय रूप से जुड़कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है। यह एक अस्थायी न्यौगिक होता है। हीमोग्लोबिन अणु के हीम समूह में उपस्थित फेरस आयरन के साथ ऑक्सीजन अणु जुड़ता है। हीमोग्लोबिन अणुओं में चार फेरस आयन होते हैं अत: एक अणु हीमोग्लोबिन के साथ चार अणु ऑक्सीजन के जुड़ सकते हैं। लौह अपने फेरस रूप में रूप में ही बना रहता है। इसलिए इस संयोजन को ऑक्सीकरण (Oxidation) नहीं कहते बल्कि ऑक्सीजनीकरण (Oxygenation) कहते हैं। हीमोग्लोबिन के साथ O2 की बंधुता pH, तापमान एवं डाइफॉस्फोग्लिसरेट पर निर्भर करती है। जबकि ऑक्सीजनित रुधिर ऊतकों में पहुंचता तब वहाँ PO2 कम होने के कारण ऑक्सौहीमोग्लोबिन से O2 मुक्त हो जाती है। मुक्त हुई O2 कतकों में विसरित हो जाती है। ऑक्सीजन रहित हीमोग्लोबिन को अपचयित या ऑक्सीजन रहित हीमोग्लोबिन कहते हैं।

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हीमोग्लोबिन के साथ संयुक्त होने वाली माश PO2 पर निर्भर करती है। PO2 जितना अधिक होगा हीमोग्लोबिन का ऑक्सीजन द्वारा संतृप्तिकरण उतना ही अधिक होगा। जैसे - जैसे रुधिर में PO2 बढ़ता है, O2 बंधित हीमोग्लोबिन की प्रतिशतता (हीमोग्लोबिन संतृप्तिकरण प्रतिशतता) भी बढ़ती जाती है। हीमोग्लोबिन संतृप्तिकरण प्रतिशतता एवं PO2 के मध्य सम्बन्ध को एक वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। जिसकी आकृति S के समान होती है। इस वक्र को सिग्माइड (Sigmoid) वक्र कहते हैं। इसे ऑक्सीजनहीमोग्लोबिन वियोजन बक्र (Dissociation curve) कहते हैं।

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यह वक्र प्रदर्शित करता है कि PO2 कम होते ही HbO2 का वियोजन बढ़ जाता है। इस वक्र के अनुसार जब PO2 95 मिमी Hg होता है तब 97 प्रतिशत हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन द्वारा संतृप्त हो जाती है। PO2 40 मिमी Hg पर 75 प्रतिशत हीमोग्लोबिन का संतृप्तिकरण, जबकि PO2 30 मिमी. Hg पर हीमोग्लोबिन संतृप्तिकरण प्रतिशतता केवल 50 प्रतिशत रह जाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि PO2 में मामूली गिरावट से ही हीमोग्लोबिन संतृप्तिकरण प्रतिशतता में बहुत अधिक कमी हो जाती है। यह वक्र PCO2, तापमान, pH एवं डाईफास्फोग्लिसरेट से भी प्रभावित होता है। PCO2 में वृद्धि के कारण HbO2 से O2 की मुक्ति सुगमित होती है तथा O2 - Hb वियोजन वक्र दायीं ओर विस्थापित हो जाता है। इसे बोर प्रभाव (Bohr effect) कहते है। O2 परिवहन में यह महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। इस प्रभाव का कारण कार्बनिक अम्ल से प्राप्त होते हैं।

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CO2 जल के साथ घुलकर H2CO3 बनाती है। यह अम्ल वियोजित होकर H+ उत्पन्न करता है। 
H2O + CO2 ⇌ H2CO2 ⇌ H+ + HCO3-

ये H+ शीघ्र ही Hb से संयोजन करते हैं। इस कारण Hb की O2 ग्रहण करने की समता कम हो जाती है। अतः कम दाब पर O2 को मुक्त करता है और इस तरह दाब प्रवणता (Pressure graclient) के ही कारण ऑक्सीजन मुक्त होकर रका से बाहर निकलकर विभिन्न ऊतकों में प्रवेश कर जाती है।
कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन (Transport of Carbon Diodide):
कोशिकीय श्वसन के पश्चात् अन्त में CO2 तथा H2O के अणुओं का निर्माण होता है। इस CO2 का परिवहन कोशिकाओं से फेफड़ों तक भी रुधिर के द्वारा अधिक आसानी से होता है, क्योंकि यह जल में O2 की अपेक्षा 20 गुणा अधिक घुलनशील है। रुधिर, आयतन के अनुसार 50 से 60 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड को ले जाने की क्षमता रखता है, लेकिन मनुष्य में 100 मिली, रुधिर सिर्फ 4 मिली. CO2 का परिवहन करता है। कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन रुधिर द्वारा कोशिकाओं से फेफड़ों के श्वसन तल तक निम्न प्रकार से किया जाता है -

1. कार्बेमीनो यौगिक (Carbamino Compounds) के रूप में अथवा हीमोग्लोबिन के साथ संयुक्त रूप में:
CO2 का लगभग 2366 भाग का परिवहन हीमोग्लोबिन के NH2 समूह के संयोजन के फलस्वरूप कार्बमीनो हीमोग्लोबिन (Carbamino haemoglobin) के रूप में अथवा प्लाज्मा प्रोटीन के संयोजन के परिणामस्वरूप कार्वेमीनो प्रोटीन के रूप में सम्पन्न होता है (क्योंकि प्रोटीन्स ऑक्सीकरण के फलस्वरूप - NH2 एमीनो समूह तथा -COOH कार्याक्सिल ग्रुप बनाता है)।
R - NH2 + CO2 → R- NHCOOH (Carbamino Protein Group) 
HbNH2 + CO2 → HbNHCOOH (Carbamino haemoglobin) 

2. बाइकार्बोनेट के रूप में (As bicarbonate):
शरीर में CO2 के 70% भाग का परिवहन बाइकार्बोनेट के रूप में होता है। अधिकांश CO2 प्लाज्मा से लाल रक्ताओं से विसरित हो जाती है और लाल रक्त कणिकाओं के कोशिका द्रव्य के जल से संयुक्त होकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है। लाल रक्त कणिकाओं में एन्जाइम कार्बोनिक एन्हाइड्रेज (Carbonic anhydrase) की उपस्थिति के कारण, यह कार्बोनिक अम्ल के निर्माण की दर, प्लाज्मा की अपेक्षा 5000 गुणा बढ़ जाती है। इस वजह से रुधिर की 70% CO2 लाल रक्त कणिकाओं में प्रवेश करके कार्बोनिक अम्ल बनाती है। यह अम्ल शीघ्र ही बाइकार्बोनेट तथा हाइड्रोजन आयनों में टूट जाता है।
CO2 + H2O ⇌ H2CO3 (कार्बोनिक अम्ल)
H2CO3 → H+ + HCO3-

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अधिकांश H+ हीमोग्लोबिन से संयुग्मित हो जाते हैं, इससे रुधिर का pH 7.4 स्थिर रहता है क्योंकि हीमोग्लोबिन एक प्रभावशाली अम्लक्षार मध्यक (Acid - base buffer) होता है तथा बाइकार्कनेट आयन (HCO3- ) अत्यधिक विसरणशील होने की वजह से लाल रक्त कणिकाओं से विसरित होकर प्लाज्मा में आ जाते हैं।

इस समय रुधिर का सामान्य pH तथा विधुत तटस्थता बनाये रखना आवश्यक होता है, इसलिए जितने बाइकार्बोनेट आयन्स लाल रुधिराणु से प्लाज्मा में आते हैं। उनकी पूर्ति करने के लिए उतने ही क्लोराइड्स (Cl-) लाल रुधिराणु के कोशिका द्रव्य में पहुंच जाते हैं। इस क्रिया को हेमबर्गर प्रक्रिया (Hamburger's Phenomenon) या क्लोराइड शिफ्ट (Chloride Shift) कहते हैं। बाइकार्बोनेट आयन्स रुधिर प्लाज्मा में उपस्थित सोडियम तथा पोटैशियम आयनों से मिलकर क्रमशः सोडियम एवं पोटैशियम बाइकार्योनेट का निर्माण करते हैं।
Na+ + HCO3- →NaHCO3
K+ + HCO3- →KHCO3
ये बाइकार्बोनेट श्वसन तल तक रक्त प्लाज्मा द्वारा पहुँच जाते हैं तथा वहाँ पर विपरीत दिशा में प्रतिक्रियाएँ होती हैं जिससे CO2 मुक्त होकर फेफड़ों में चली जाती है।

3. प्लाज्मा में घुली अवस्था में (Dissolved in Plasma) अथवा भौतिक विलयन के रूप में:
CO2 प्लाज्मा में ऑक्सीजन की अपेक्षा 20 गुणा अधिक घुलनशील होती है। रुधिर प्लाज्मा के जल से क्रिया करके CO2 कार्बोनिक अम्ल बनाती है। इस अवस्था में CO2 का सिर्फ 7% भाग ही संवहन होता है।
CO2 + H2O → H2CO3 (कार्बोनिक अम्ल)

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प्रश्न 6. 
वायु कृषिकाओं का नामांकित चित्र बनाइए। श्वसन की क्रियाविधि को समझाइये।
उत्तर:
संवातन: वायुमण्डल से शुद्ध वायु को फेफड़ों तक पहुंचाने एवं अशुस वायु को फेफड़ों से बाहर निकालने की क्रिया संवातन या श्वासोच्छावास (Breathing) कहते हैं।
फेफड़े वक्षीय गुहा में स्थित होते हैं। उपर्युक्त दोनों क्रियायें वक्षीय गहा के आयतन पर निर्भर करती हैं। वक्षीय गुहा एक पिंजरे के समान होती है। इसके आगे की तरफ गर्दैन, पीछे की तरफ डायफ्राम, पृष्ठ तल पर कशेरुक दण्ड, अधर तल पर स्टनम तथा पाश्वों में पसलियाँ होती हैं। डायफ्राम गुम्बदनुमा होता है। इसमें अरीय पेशियाँ पाई जाती हैं। मनुष्य में 12 जोडी पसलियाँ होती हैं जो पृष्ठ तल पर कशेरुक दण्ड से तथा अधर तल पर स्टर्नम से जुड़ी रहती हैं। प्रत्येक दो पसलियों के बीच दो प्रकार की अन्तरापर्शक पेशियाँ क्रॉस के रूप में स्थित होती हैं -

  • अन्तः अन्तरापथुक पेशियाँ (Internal Intercoastal Muscles)
  • बाह्य अन्तरापर्युक पेशियाँ (External Intercoastal Muscles)

संवालन की क्रिया दो चरणों में होती है -

1. अन्तःश्वसन (Inspiration):
फेफड़ों में बाह्य वातावरण से वायु भरने की क्रिया अन्तःश्वसन कहलाती है। अन्त:श्वसन के दौरान बाह्य अन्तरापर्शक पेशियों के संकुचन के फलस्वरूप पसलियाँ आगे व बाहर की ओर खिंचती हैं। पसलियों की इस गति के कारण स्टनम नीचे की ओर झुक जाता है। अब पसलियों के खिंचने से डायफ्राम की रेडियल पेशियों में भी संकुचन उत्पन्न होता है। जिससे इसका गुम्बद के समान आकार चपटे रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिससे वक्षीय गुहा के आयतन में वृद्धि होती है। वक्षीय गुहा के आयतन के बढ़ने के साथ - साथ फेफड़ों का आयतन भी बढ़ जाता है, जिससे इसके भीतर वायु का दबाव कम हो जाने से चूषणार्थ (Suctorial) बल उत्पन्न होता है। फलस्वरूप वायुमण्डलीय वायु श्वसन पथ से होती हुई फेफड़ों में भीतर प्रवेश कर जाती है। अन्तःश्वसन एक सक्रिय क्रिया (Active Process) है।

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वायुमार्ग निम्न हैं- नासाद्वार → नासागुहा → आन्तरिक नासाछिद्र → ग्रसनी → घांटी → श्वासनली → श्वसनियाँ → श्वसनिकाएँ → वायुकूपिका वाहिनी → वायुकूपिका कोश → वायु कूपिकाएँ।

2. उच्छ्व सन (Expiration):
फेफड़ों से अशुद्ध वायु को बाहर निकालने की क्रिया को उच्छ्वसन कहते हैं। सामान्य दशाओं में तो उच्छ्वसन बिना किसी पेशी संकुचन के ही होता रहता है। केवल बाहर अन्तरापर्शक पेशियों तथा डायफ्राम में शिथिलन से ही पसलियाँ, स्टनम तथा डायफ्राम अपनी पूर्व स्थिति (सामान्य दशा) में लौट आते हैं जिससे वक्षीय गुहा के आयतन पर दबाव पड़ता है, परिणामस्वरूप फेफड़ों की वायु बाहर निकल जाती है। इस प्रकार के उच्छ्वसन को निष्क्रिय श्वसन (Passive Expiration) कहते हैं।

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निष्क्रिय उच्छ्वसन के विपरीत मनुष्य परिश्रम करता है, दौड़ता है अथवा लम्बी साँस भरता है तब अन्त:श्वसन (Inspiration) की गति बढ़ जाती है, उस समय सक्रिय उचड्वसन (Active expiration) होता है। सक्रिय उच्छ्वसन के अन्तर्गत अन्त:अन्तरापर्युक पेशियों के संकुचन से पसलियाँ पीछे तथा स्टनम ऊपर की ओर खिसक कर अपनी पूर्व स्थिति में आ जाते हैं। इस दशा में वक्षीय गुहा का आयतन कम होकर उतना ही रह जाता है जितना कि अन्तःश्वसन के पहले था। इसी समय डायफ्राम की सिकुड़ी हुई पेशियों में शिथिलन होता है जिसके कारण वह अधिक चपट न रहकर गुम्बज के आकार का हो जाता है। इस प्रकार डायफ्राम तथा पसलियों के सामूहिक प्रयास से वक्षीय गुहा का आयतन घट जाता है जिससे फेफड़ों पर दबाव पड़ता है जिससे ये पिचक जाते हैं और CO2 युक्त वायु बाह्य नासा छिद्र से बाहर निकल जाती है।

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प्रश्न 7. 
गैसों के विनिमय पर विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
गैसों का आदान - प्रदान फेफड़ों की कृपिकाओं एवं ऊतकों में होता है। वायु कूपिका की वायु और फुफ्फुसीय कोशिकाओं के रुधिर के मध्य कूपिका की श्वसन झिल्ली में से विसरण द्वारा O2 व. CO2 का आदानप्रदान होता है। ऑक्सीजन का विसरण कूपिका से रुधिर में तथा CO2 का विपरीत दिशा में होता है। विसरण की दर गैस के दाब के समानुपाती होती है। गैसों द्वारा उत्पन्न दाब उसका आंशिक दाब कहलाता है। किसी गैस का आंशिक दाब वायु में उपस्थित उसकी प्रतिशतता के समानुपाती होता है, जैसे वायु में ऑक्सीजन 21 प्रतिशत तथा वायुमण्डलीय दाब 760 मिमी. Hg के बराबर है तो ऑक्सीजन के आंशिक दाब (PO2) का मान 21/100 x 760 = 159.6 मिमी. Hg होगा।

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कूषिकाओं की कोशिकाओं में आने वाला रक्त अनाक्सीजनित होता है क्योंकि वह ऊतकों से आता है। इसके अन्दर PCO2 अधिक होता है। इसमें PCO2 का मान 46 मिमी. Hg तथा PO2 का मान 40 मिमी, Hg के बराबर होता है। कूपिकाओं में आने वाली वायु में PO2 का मान अधिक तथा PCO2 का मान कम होता है। कृपिका में PO2 का मान 105 मिमी. Hg तथा PCO2 का मान 40 मिमी. Hg के बराबर होता है। श्वसन झिल्ली के दोनों ओर उपस्थित गैसों के आंशिक दाब में अन्तर होने के कारण श्वसनीय कला के पार गैसों का विसरण हो जाता है। कूपिका (PO2 = 105 मिमी. Hg) से O2 का विसरण (PO2 = 40 मिमी. Hg) तथा रुधिर (PCO2 = 46 मिमी. Hg) ले CO2 का विसरण कूपिका (PCO2 = 40 मिमी, Hg) में हो जाता है। इस प्रकार फेफड़ों से ऊतकों में जाने वाले रुधिर में PO2 105 मिमी. Hg तथा PCO2 40 मिमी. Hg के स्तर का होता है।

ऊतकों में लगातार O2 का उपयोग और CO2 का उत्पादन होता रहता है। इसलिए ऊतकों में आने वाले ऑक्सीजनित रुधिर की तुलना में कोशिकाओं एवं ऊतकों के अन्दर PO2 कम तथा PCO2 अधिक होता है। फलस्वरूप O2 का विसरण रुधिर से कोशिकाओं तथा CO2 का विसरण कोशिकाओं से रुधिर में हो जाता है। इस प्रकार जैसे - जैसे रुधिर ऊतकों की कोशिकाओं में बहता है उसमें PO2 कम होता जाता है तथा PCO2 बढ़ता जाता है। यह अनॉक्सीजनित रुधिर पुनः फेफड़ों में लाया जाता है तथा ऑक्सीजनित किया जाता है।

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प्रश्न 8. 
श्वसन के नियमन पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संवातन या श्वास क्रिया एक अनैच्छिक क्रिया है जो तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित होती है। इसका नियंत्रण मेडुला, ऑब्लांगेटा एवं पोन्स में स्थित तंत्रिका कोशिकाओं के कुछ समूहों द्वारा होता है। ये समूह श्वसन केन्द्र (Respiratory Centres) कहलाते हैं।
मनुष्य के मस्तिष्क में तीन प्रमुख श्वसन केन्द्र होते हैं-

1. पृष्ठ श्वसन केन्द्र (Dorsal Respiratory Centre):
यह केन्द्र मेड्यूला के पृष्ठ भाग में स्थित होता है। यह केन्द्र सामान्य विश्राम की अवस्था को नियंत्रित करता है। यह केन्द्र सामान्य श्वास क्रिया के समय पेशियों को पुनरावृत्ति अन्तःश्वसन संकेत भेजता है। अब अन्तःश्वसन पेशियों को लगभग दो सेकण्ड के लिए आने वाला एक तंत्रिकीय संकेत अन्तःश्वसन को उद्दीप्त करता है। इसके पश्चात् यह लगभग तीन सेकण्ड के लिए रुक जाता है। जिसके कारण अन्तःश्वसन पेशियों का उद्दीपन भी रुक जाता है। अब पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं। प्रत्यास्थ प्रक्षेप के कारण उच्छ्वसन हो जाता है। इसके लिए विशेष उद्दीपन की आवश्यकता नहीं होती है। यह श्वसनलय कहलाता है जो जीवनपर्यन्त बना रहता है।

यह श्वसनलय अनेक उद्दीपनों जैसे CO2 एवं H+ आयनों द्वारा भी रूपान्तरित होता है। जब CO2 का सान्द्रण बढ़ता है तब कैरोटिड एवं एओरटिक कार्यों में उपस्थित रसायनग्राही (Chemoreceptors) उद्दीप्त हो जाते हैं। ये अन्तःश्वसन केन्द्र को तंत्रिकीय आवेश प्रेक्षित करते हैं। अन्तःश्वसन केन्द्र से उच्च दर पर संकुचन के लिए संकेत निःश्वसन पेशियों को सम्प्रेषित होता है। इससे अन्तःश्वसन की दर बढ़ जाती है एवं H+ आयन सान्द्रण वृद्धि से भी रासोग्राही उद्दीप्त होते हैं और श्वसन दर बढ़ जाती है। उच्छ्वसन केन्द्र को स्फीति फेफड़े स्फीतिग्राही वेगस तंत्रिका द्वारा संकेत भेजते हैं। उच्छ्वसन के पश्चात् स्फोतिग्राहियों का उद्दीपन समाप्त हो जाता है जिसके फलस्वरूप उच्छ्वसन केन्द्र निष्क्रिय हो जाते हैं।

2. न्यूमोटेक्सिक केन्द्र (Pneumotaxic Centre):
यह पोन्स में स्थित होता है। यह अन्त:श्वसन को रोकता है तथा उच्छ्वसन को उद्दीपित करता है। इस केन्द्र से संकेत अन्तःश्वसन केन्द्र को भेजे जाते हैं। जब न्यूमोटेक्सिक केन्द्र से संकेत अन्तःश्वसन केन्द्र में आते हैं तो अन्तःश्वसन केन्द्र के संकेत रुक जाते हैं। जब न्यूमोटेक्सिक केन्द्र के संकेत शक्तिशाली होते हैं तब बहुत अल्प अवधि (लगभग 0.5 सेकण्ड) तक ही अन्तःश्वसन होता है। अतः फेफड़े आंशिक रूप से ही भर पाते हैं। जब संकेत कमजोर होते हैं तब अन्तःश्वसन 5 सेकण्ड या अधिक अवधि तक जारी रहता है, अतः फेफड़े पूर्ण रूप से भर जाते हैं। इस प्रकार न्यूमोटेक्सिक केन्द्र अन्तःश्वसन की अवधि एवं फेफड़ों के भराव का नियंत्रण करता है। इसके शक्तिशाली संकेत श्वसनदर को बढ़ा देते हैं।

3. अधर श्वसन केन्द्र (Venteral Respiratory Centre):
यह केन्द्र भी मेड्यूला में स्थित होता है। सामान्य शान्त श्वसन के समय निष्क्रिय यह केन्द्र व्यायाम आदि के समय फुफ्फुस संवातन की बढ़ी हुई आवश्यकताओं का नियंत्रण अन्तःश्वसन एवं उच्छ्वसन क्रियाओं को प्रभावित करके करता है।

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प्रश्न 9. 
श्वसन से सम्बन्धित विकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. अस्थमा या दमा (Asthma):
यह एलर्जी से होने वाला रोग है तथा पराग, धूलकण, खाद्य पदार्थ, ठण्ड, धुआं, धूम्रपान आदि से हो सकता है। श्वास लेने में कठिनाई (विशेष रूप से उच्छ्व सन में) तथा खाँसी इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। अस्थमा का दौरा पड़ने पर उच्छ्वसन के समय सीटी बजने के समान आवाज निकलती है अर्थात् घरघराहट होती है। अति संकुचन से श्वसनियों का संकरा हो जाना, इनमें अधिक श्लेष्मा बनना तथा कभी-कभी सूजन आ जाना, श्वास लेने में कठिनाई पैदा करते हैं। एलर्जी उत्पन्न करने वाले कारक से दूर रहना ही दमा से बचने का सर्वोत्तम उपाय है। कुछ दवायें जैसे सूजन कम करने वाले ब्रोंकोडाईंलेटर तथा एन्टीबायोटिक दवा ली जा सकती है।

2. श्वसनी शोथ (Bronchitis):
सनी की आन्तरिक सतह पर सूजन आ जाने के कारण लगातार खाँसी तथा अत्यधिक श्लेष्मा व हरा-पीला कफ आना तथा श्वास लेने में कठिनाई इस रोग के लक्षण हैं। इस रोग का प्रमुख कारण सिगरेट आदि का धूम्रपान है। सिगरेट के धुएँ में उपस्थित रसायनों के कारण अधिक मात्रा में श्लेष्मा बनता है। श्वसनी में सूजन आ जाती है तथा सीलिया नष्ट हो जाते हैं। धूम्रपान से दूर रहकर इस रोग से बचा जा सकता है।

3. व्यावसायिक श्वसन रोग (Occupational Respiratory Diseases):
इस रोग को सिलिकोसिस एवं एसबेस्टोसिस (Silicosis and Aeshestosis) भी कहते हैं। ऐसे श्रमिक जो सिलिका एवं एसबेस्टयंस की खानों या पत्थर की घिसाई - पिसाई या पत्थर तोड़ने वाले कारखानों में कार्य करते हैं। उनमें रोग होने की सम्भावना होती है। श्वास के साथ इन पदार्थों के कण फेफड़ों में चले जाते हैं तथा फेफड़ों के ऊपरी भाग में रेशामयता या फाइब्रोसिस (रेशीय ऊतकों में वृद्धि) तथा सूजन पैदा करते हैं। इन श्रमिकों को रोग से बचने हेतु मुखाबरण का प्रयोग करना चाहिए।

4. न्यूमोनिया (Pneumonia):
स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी, जीवाणु द्वारा फेफड़ों के संक्रमण से यह रोग फैलता है। संक्रमण से कृषिकाएं मृत कोशिकाओं (WBC) एवं तरल से भर जाती हैं तथा सूजन आ जाती है इससे साँस लेने में कठिनाई होती है। यह रोग वृद्धों और बच्चों में हो जाता है। उपचार के लिए एंटीबायोटिक्स तथा ब्रोकोडाइलेटर दवाएं लाभकारी हैं।

5. फेफड़ों का कैन्सर (Lungs Cancer):
इसका मुख्य कारण धूम्रपान है। सिगरेट के धुएं में उपस्थित रसायन कैंसर जनक होते हैं। धुएँ से श्वसनियों की उपकला में उत्तेजना से अनियंत्रित कोशिका विभाजन (Cell division) प्रारम्भ हो जाता है तथा धीरे - धीरे पूरे फेफड़े में कैन्सर हो जाता है।

6. वातस्फीति या एम्फाइसिस (Emphysema):
एम्फीसीमा या शाब्दिक अर्थ है फेफड़ों में अतिरिक्त वायु होना। सिगरेट आदि का धूम्रपान करने से यह रोग हो जाता है। धूम्रपान से फेफड़ों में लगातार उत्तेजना पैदा होती रहती है जिससे कृषिका भित्तियों धीरे - धीरे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। गैस विनिमय सतह घट जाती है। फेफड़ों की प्रत्यास्थता भी कम हो जाती है फलस्वरूप उच्छ्वसन बहुत कठिन हो जाता है। उच्छवसन के बाद भी काफी वायु फेफड़ों में भरी रहती है। सूजन, श्वसनिकाओं का संकरा होना तथा अत्यधिक कफ, श्वास लेने में कठिनाई बढ़ा देते हैं। धूम्रपान से दूर रहकर रोग से बचा जा सकता है। कुछ एन्टीबायोटिक व ब्रोंकोडाइलेटर दवाएँ आंशिक लाभ दिला सकती हैं।

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प्रश्न 10. 
सामान्य श्वसन विकारों के कारण, लक्षण एवं रोकथाम को तालिका के माध्यम से संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तालिका - सामान्य श्वसन विकार, कारण, लक्षण एवं रोकथाम:

रोग

कारण

रोग लक्षण

रोकथाम

1. ब्रोकियल दमा

यह एक एलर्जी प्रकार का रोग है, जो वायु में कुछ विजातीय पदार्थ के कारण उत्पा होता है।

इसमें सांस लेने और खांसने में परेशानी होती है, क्योंकि अत्यधिक श्लेष्मा के कारण श्वसनिकाएँ (bronchioles) संकीर्ण (रुंध) हो जाती हैं।

विजातीय पदार्थ के प्रभाव में आने से यथासंभव बचें। यही इस रोग से बचने का सबसे अच्छा उपाय है।

2. ब्रोंकाइटिस

संक्रमण के कारण श्वानिकाओं (Bronchioles) पर सूजन आ जाती है। यह धूम्रपान से भी हो सकता है और वायु - प्रदूषण के कारण भी हो सकता है।

लगातार खाँसी आना और हरे से रंग के साथ नीला कफ निकलता है।

धुएँ और धूल के प्रभाव में आने से इस रोग से बचाया जा सकता है।

3. निमोनिया

डिप्लोकॉकस नामक जीवाणु के संक्रमण से फेफड़ों की कूपिकाओं में सूजन आ जाती है।

इससे ज्वर हो जाता है, पीड़ा हो जाती है और तेज खाँसीहोती है। फेफड़े के अधिकांश वायु अवकाश में तरल और मृत श्वेताणु मर जाते हैं।

उन स्थानों पर जाने से बचें जहाँ संक्रमण फैला हुआ हो।

4. क्षय रोग

यह एक जीवाणुजन्य रोग है जो रोगियों के मुँह - नाक से निकली बुदिकाओं से फैलता है।

यह अन्य अनेक अंगों में भी हो सकता है, लेकिन फेफड़ों का क्षय रोग सबसे अधिक सामान्य है। वजन में कमी आना और खाँसी आना सबसे सामान्य लक्षण है। इसके साथ इस रोग में हल्का ज्वर भी बना रहता है। गंभीर मामलों में खाँसी के साथ खून भी आने लगता है।

BGC (बेसीलस कारमेटी ग्यूरिन) के टीके से क्षयरोग की रोकथाम की जा सकती है। हवादार घरों और प्रोटीन - प्रचुर खुराक भी क्षयरोगियों के लिए जरूरी है।

5. फेफड़े के व्यवसाय परक विकार

वातावरण में मौजूद, जहाँ कोई व्यक्ति कार्य स्थल के हानिकारक पदार्थ, जैसे सिलिका, ऐस्बेस्टस, धूल आदि से प्रभावित होने के कारण उत्पन्न होते हैं।

यह रोग 10-15 वर्षों तक प्रभावित होने के बाद अभिव्यक्त होता है। इसके कारण फेफड़ों में रेशामयता हो जाती है।

सुरक्षात्मक मुखावरण और वस्य पहनने के प्रभाव में कम-से-कम आने से इन रोगों से बचा जा सकता है। नियम से डॉक्टरी अंच भी होते हैं। जरूरी है।


विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये प्रश्न

प्रश्न 1. 
चित्र में मानव श्वसन तंत्र का एक आरेखी दृश्य दर्शाया गया है जिसमें चार नामांकन A, B, C और D दिए गए हैं। अंग की सही पहचान के साथ - साथ उसके प्रमुख कार्य और अथवा विशिष्टता के विकल्प को चुनिए -

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(a) D - फेफड़ों का निचला सिरा - अन्तःश्वसन के दौरान डायाफ्राम इसे नीचे की तरफ खींच लेता है। 
(b) A - श्वासनली सांस के साथ भीतर ली जाने वाली वायु के लिए एक लम्बी नली जो चारों तरफ से उपास्थिल वलयों से घिरी हुई होती है 
(c) B - फुफ्फुस झिल्ली - पसलियों को दोनों तरफ से घेरने वाली झिल्ली ताकि रगड़ से बचाने के लिए गद्दी प्रदान कर सके
(d) C - कूपिकाएँ - गैसों के विनिमय के लिए पतली भित्ति वाली संवहनी संरचनाएँ 
उत्तर:
(d) C - कूपिकाएँ - गैसों के विनिमय के लिए पतली भित्ति वाली संवहनी संरचनाएँ 

प्रश्न 2. 
निम्नलिखित को बढ़ते हुए आयतन के क्रम में व्यवस्थित कीजिए
(1) टाइडल आयतन 
(2) अवशेषी आयतन
(3) नि: श्वसन आरक्षित आयतन 
(4) जैव धारिता
(a) 1 < 2 < 3 < 4 
(b) 1 < 3 < 2 < 4 
(c) 1 < 4 < 3 < 2
(d) 1 < 4 < 2 < 3 
उत्तर:
(a) 1 < 2 < 3 < 4 

प्रश्न 3. 
मानव में श्वसन के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौनसा एक कथन सत्य है?
(a) मस्तिष्क के पोन्स क्षेत्र में स्थित श्वासनियमन केन्द्र से निकले तन्विकीय संकेतों से प्रश्वसन की अवधि बढ़ सकती है। 
(b) पत्थर को तोड़ने और घिसने के उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों को फेफड़ा रेशामयता का रोग हो सकता है। 
(c) लगभग 90% कार्बन डाइऑक्साइड का वहन हीमोग्लोबिन द्वारा कार्बेमानी हीमोग्लोबिन के रूप में होता है। 
(d) सिगरेटों के धूम्रपान से श्वसनिकाओं में शोथ पैदा हो सकता है।
उत्तर:
(b) पत्थर को तोड़ने और घिसने के उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों को फेफड़ा रेशामयता का रोग हो सकता है।

प्रश्न 4. 
कॉलम - I व कॉलम - II को मिलाइये तथा सही विकल्प चुनिए -

कॉलम - I

कॉलम - II

A. ज्वारीय आयतन

1. 2500 - 3000 ml वायु

B. निश्वासित आरक्षित आयतन

2. 1000 ml वायु

C. उच्छ्वासित आरक्षित आयतन

3. 500 ml वायु

D. अवशेषी आयतन

4. 3400 - 4800 ml वायु

E. जैविक क्षमता

5. 1200 ml वायु


(a) A - 3, B - 4, C - 2, D - 1, E - 5
(b) A - 3, B - 1, C - 2, D - 5, E - 4 
(c) A - 3, B - 1, C - 4, D - 5, E - 4
(d) A - 5, B - 4, C - 2, D - 1, E - 2
(e) A - 4, B - 3, C - 2, D - 1, E - 5 
उत्तर:
(b) A - 3, B - 1, C - 2, D - 5, E - 4

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प्रश्न 5. 
नीचे दिए जा रहे आंकड़ों में एक सामान्य वयस्क मानव की चार श्वसन क्षमताएँ (A - D) तथा गड़बड़ किये हुए चार श्वसन आयतन दिये गये हैं

श्वसन क्षमताएँ

श्वसन आयतन

(A) अवशेषी आयतन

2500 mL

(B) जैव धारिता

3500 mL

(C) नि:श्वासित आरक्षित आयतन

1200 mL

(D) नि:श्वसन क्षमता

4500 mL


निम्नलिखित में से किस एक में दो क्षमताओं तथा आयतनों को सही मिलाया गया है-
(a) (A) 4500 mL, (B) 3500 mL
(b) (B) 2500 mL, (C) 4500 mL
(c) (C) 1200 mL, (D) 2500 mL
(d) (D) 3500 mL, (A) 1200 mL
उत्तर:
(d) (D) 3500 mL, (A) 1200 mL

प्रश्न 6. 
कोशिकीय श्वसन के दौरान उत्पन्न CO2 की अधिकतम मात्रा किस रूप में रक्त के द्वारा फेफड़ों में परिवहित की जाती है
अथवा 
रक्त द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड के लगभग 70% भाग का फेफड़ों तक परिवहन कैसे होता है
(a) हीमोग्लोबिन से संयोग करके 
(b) मुका CO2 के रूप में 
(c) कार्बोनिक अम्ल या H2CO2 के रूप में
(d) बाइकार्बोनेट आयन के रूप में 
उत्तर:
(d) बाइकार्बोनेट आयन के रूप में 

प्रश्न 7. 
सांस लेने के सन्दर्भ में यदि जान - बूझकर प्रयास किया जाये तो हम में से अधिकतर के लिए निम्नलिखित में से किस एक के होने की सम्भावना हो सकती है
(a) कोई चाहे तो जान - बूझकर पसलियों को जरा भी चलाये बिना केवल डायाफ्राम (मध्यपट) को चलाकर, सांस को भीतर खींच सकता है और बाहर निकाल सकता है। 
(b) बलपूर्वक सांस को बाहर छोड़ते हुए फेफड़ों को पूरी तरह हवा से खाली कर दिया जा सकता है। 
(c) कोई चाहे तो पूरी तरह ऑक्सीजन - रहित वायु को सांस से साथ बाहर निकाल सकता है 
(d) नाक और मुँह दोनों को पूरी तरह बन्द करके सांस की वायु को यूस्टेशियन नलियों द्वारा बाहर छोड़ा जा सकता है
उत्तर:
(d) नाक और मुँह दोनों को पूरी तरह बन्द करके सांस की वायु को यूस्टेशियन नलियों द्वारा बाहर छोड़ा जा सकता है

प्रश्न 8. 
शरीर के ऊतकों से निकली अधिकांश कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) रक्त के भीतर किस रूप में उपस्थित होती है
(a) 70% कार्येमीनो - हीमोग्लोबिन तथा 30% बाइकार्बोनेटों केूप में 
(b) RBCs में कार्येमीनो - हीमोग्लोबिन के रूप में 
(c) रक्त प्लाज्मा तथा RBCs में बाइकार्बोनेटों के रूप में
(d) रक्त प्लाज्मा में मुक्त CO2 के रूप में 
उत्तर:
(c) रक्त प्लाज्मा तथा RBCs में बाइकार्बोनेटों के रूप में

प्रश्न 9. 
दिये जा रहे चित्र में मानव फेफड़े का एक छोटा सा भाग दिखाया गया है जिसमें गैसों का विनिमय होता है। दिये गये विकल्पों में से किस एक में एक भाग A, B, C या D को सही पहचाना गया एवं उसके मुख्य कार्य को सही मिलाया गया है

RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय 14

विकल्प: 
(a) B: लाल रक्त कोशिका - मुख्यतः CO2 का परिवहन 
(b) C: धमनीय कोशिका - ऑक्सीजन को ऊतकों में पहुँचाना 
(c) A: कूपिकीय गुहा - श्वसन गैसों के विनिमय का मुख्य
(d) D: केशिका भित्ति - इसमें से O2 तथा CO2 का विनिमय होता है 
उत्तर:
(c) A: कूपिकीय गुहा - श्वसन गैसों के विनिमय का मुख्य

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प्रश्न 10. 
रुधिर के pH में होने वाली कमी के कारण
(a) हृदय स्पंदन की दर कम हो जायेगी 
(b) मस्तिष्क का रुधिर संभरण कम हो जायेगा 
(c) ऑक्सीजन के साथ हीमोग्लोबिन की बंधुता घट जायेगी 
(d) यकृत द्वारा बाइकार्बोनेट का निष्कासन होने लगेगा 
उत्तर:
(c) ऑक्सीजन के साथ हीमोग्लोबिन की बंधुता घट जायेगी 

प्रश्न 11. 
जब आप अपनी साँस रोकते हैं, तब रुधिर में निम्नलिखित में से कौनसा गैस विनिमय आपको फिर से साँस लेने के लिए प्रेरित करता है-
(a) CO2 सान्द्रता का बढ़ जाना 
(b) CO2 सान्द्रता में गिरावट 
(c) CO2 सान्द्रता का बढ़ना और O2 सान्द्रता में गिरावट
(d) O2 सान्द्रता में गिरावट 
उत्तर:
(a) CO2 सान्द्रता का बढ़ जाना 

प्रश्न 12. 
मानवों में शरीर के ऊतकों द्वारा ग्रहण कर लिए जाने के बाद भी ऑक्सीजन का एक बड़ा अंश बिना उपयोग हुए रक्त में बचा रह जाता है। यह ऑक्सीजन -
(a) एपिथीलियम ऊतकों में और अधिक O2 छोड़ने में सहायता करती है 
(b) पेशीय कार्य में एक सुरक्षित भण्डार के रूप में कार्य करती है 
(c) रक्त के PCO2 को बढ़ाकर 75 mm Hg कर देती है 
(d) ऑक्सीहीमोग्लोबिन संतृप्तता को 96% पर बनाए रखने के लिए काफी होती है 
उत्तर:
(b) पेशीय कार्य में एक सुरक्षित भण्डार के रूप में कार्य करती है 

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प्रश्न 13. 
साँस लेने के बीच फेफड़े चिपक नहीं जाते और थोड़ी बहुत हवा फेफड़ों में सदा बनी रहती है जिसे बाहर निकाला नहीं जा सकता, क्योंकि -
(a) फेफड़ों के भीतर का दाब, वायुमण्डल के दाब से अधिक होता है 
(b) फेफड़ों के बीच ऋणात्मक दाब होता है 
(c) ऋणात्मक अंत:फुफ्फुसी दाब होता है जो फेफड़ों की भित्तियों को एक - दूसरे से दूर खींचता रहता है। 
(d) धनात्मक अंत:फुप्फुसी दाब होता है। 
उत्तर:
(c) ऋणात्मक अंत:फुफ्फुसी दाब होता है जो फेफड़ों की भित्तियों को एक - दूसरे से दूर खींचता रहता है। 

प्रश्न 14. 
फेफड़ों को कूपिकाओं में ऑक्सीजन का आंशिक दाव होता है
(a) कार्बन डाइऑक्साइड के आंशिक दाब से कम 
(b) रुधिर में ऑक्सीजन के आंशिक दाब के बराबर 
(c) रुधिर में ऑक्सीजन के आंशिक दाब से अधिक
(d) रुधिर में ऑक्सीजन के आंशिक दाब से कम 
उत्तर:
(c) रुधिर में ऑक्सीजन के आंशिक दाब से अधिक

प्रश्न 15. 
मेंढक के परिसंचरण तंत्र में सबसे अधिक ऑक्सीजनित रक्त ले जाने वाली वाहिनी कौनसी है-
(a) पल्मोक्युटेनियस धमनी 
(b) पल्मोक्युटेनियस शिरा 
(c) पल्मोनरी धमनी
(d) प्रीकावल शिरा 
उत्तर:
(b) पल्मोक्युटेनियस शिरा

प्रश्न 16. 
कुछ विशेष मौसमों में अस्थमा के दौरों में वृद्धि का क्या कारण
(a) गर्म और नमीदार वातावरण 
(b) डिब्बा बन्द संरक्षित फलों के खाने से 
(c) मौसमी परागकणों के नि:श्वसन से
(d) कम तापमान के कारण 
उत्तर:
(c) मौसमी परागकणों के नि:श्वसन से

प्रश्न 17. 
उस फुफ्फुसी रोग का नाम बताइए जिसमें कृपिकीय भित्तियों के क्षय हो जाने के कारण गैस - विनिमय में शामिल कूपिकीय सतही क्षेत्र बहुत अधिक कम हो जाता है-
(a) ओंकाइटिस
(b) अस्थमा 
(c) न्यूमोनिया
(d) एम्फाइसीमा 
उत्तर:
(d) एम्फाइसीमा 

प्रश्न 18. 
निम्नलिखित में से व्यावसायिक श्वसन विकार का उदाहरण क्या
(a) ऐन्धेसिस
(b) सिलिकामयता 
(c) बॉटुलिज्म
(d) वातस्फीति 
उत्तर:
(b) सिलिकामयता 

प्रश्न 19. 
मानवों में श्वसन के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौनसा एक कथन सत्य है-
(a) सिगरेटों के धूम्रपान से श्वसनिकाओं में शोथ पैदा हो सकता
(b) मस्तिष्क के पॉन्स क्षेत्र में स्थित श्वासनियमन केन्द्र से निकले तंत्रिकीय संकेतों से प्रश्वसन की अवधि बढ़ सकती है 
(c) पत्थर को तोड़ने और घिसने के उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों को फेफड़ा रेशामयता का रोग हो सकता है 
(d) लगभग 90% कार्बन डाइऑक्साइड का वहन हीमोग्लोबिन द्वारा कार्बेमीना - हीमोग्लोबिन के रूप में होता है 
उत्तर:
(a) सिगरेटों के धूम्रपान से श्वसनिकाओं में शोथ पैदा हो सकता

प्रश्न 20. 
जब कभी मैदानों में रहने वाले लोग ऊंचे पर्वतों (3500 मीटर या ज्यादा) पर रहने चले जाते हैं तो उनमें निम्नलिखित चार परिवर्तनों (A - D) में से कौनसे दो परिवर्तन आने की प्रवृत्ति होती है
(A) लाल रक्त कोशिकाओं का आकार बड़ा हो जाना 
(B) लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होना 
(C) सांस की दर बढ़ जाना 
(D) थ्रोम्बोसाइट्स की संख्या बढ़ जाना 
होने वाले परिवर्तन हैं-
(a) (A) एवं (B)
(b) (B) एवं (C)
(c) (C) एवं (D)
(d) (A) एवं (D) 
उत्तर:
(b) (B) एवं (C)

प्रश्न 21. 
धूम्रपान करने के कारण प्रधानतः उत्पन्न होने वाले दीर्घकाली श्वसन - विकार का नाम बताइए-
(a) वातस्फीति
(b) अस्थमा 
(c) श्वसन अम्लरक्तता 
(d) श्वसन क्षारमयता 
उत्तर:
(a) वातस्फीति

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प्रश्न 22.
अस्थमा का कारण क्या होता है
(a) फेफड़ों का जीवाणु द्वारा संक्रमण 
(b) फेफड़ों में मास्ट कोशिकाओं की एलर्जी अभिक्रिया 
(c) श्वासनली की शोथ
(d) फेफड़ों के भीतर पानी एकत्रित हो जाना 
उत्तर:
(b) फेफड़ों में मास्ट कोशिकाओं की एलर्जी अभिक्रिया 

प्रश्न 23. 
निम्नलिखित में से कौनसा विकल्प क्रमश: दमा और वातस्फीति में फेफड़ों की दशा को उचित रूप में दर्शाता है
(a) श्वसनिका में शोथ, श्वसनी सतह में कमी 
(b) श्वसनिका की संख्या में अधिकता, श्वसनी सतह में अधिकता 
(c) श्वसनी सतह में अधिकता, श्वसनिका में शोथ 
(d) श्वसनी सतह में कमी, श्वसनिका में शोथ
उत्तर:
(a) श्वसनिका में शोथ, श्वसनी सतह में कमी 

Bhagya
Last Updated on Aug. 22, 2022, 9:31 a.m.
Published Aug. 20, 2022