RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 1 लेखांकन-एक परिचय

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RBSE Class 11 Accountancy Chapter 1 Notes लेखांकन-एक परिचय

→ लेखांकन का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी सभ्यता। भारत में कौटिल्य के समय में लेखांकन विकसित अवस्था में था। सदियों से लेखांकन लेखापाल के वित्त संबंधी हिसाब-किताब रखने तक सीमित रहा है। आधुनिक परिवर्तनशील युग में व्यावसायिक वातावरण ने लेखापाल को संगठन एवं समाज, दोनों में अपनी भूमिका एवं कार्यों के पुनः मूल्यांकन के लिए बाध्य कर दिया है। यही कारण है कि आज के युग में आर्थिक व्यवहारों का लेखापस्तकों या बहियों में लिखना व्यापारिक संस्थाओं, गैर-व्यापारिक संस्थाओं अथवा व्यक्तियों के लिए अति आवश्यक 

→ लेखांकन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Accounting)
लेखांकन व्यावसायिक लेन-देनों एवं घटनाओं को लिखने एवं वर्गीकृत करने की कला एवं विज्ञान है। यह उल्लेखनीय है कि लेखांकन उन्हीं लेन-देनों का किया जा सकता है, जो वित्तीय प्रकृति के होते हैं तथा जिन्हें प्रायः मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है। लेखांकन में सारांश लेखन, विश्लेषण एवं निर्वचन भी सम्मिलित है तथा यह परिमाणात्मक सूचनायें प्रदान करता है। 

→ अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक एकाउन्टेन्ट्स के मतानुसार, "लेखांकन का सम्बन्ध उन लेनदेनों एवं घटनाओं को, जो पूर्णरूप से या आंशिक रूप से वित्तीय प्रकृति के होते हैं, मुद्रा के रूप में प्रभावशाली ढंग से लिखने, वर्गीकृत करने, संक्षेप में व्यक्त करने एवं उनके परिणामों की विश्लेषणात्मक व्याख्या करने की कला से है।" इस प्रकार लेखांकन संगठन की आर्थिक घटनाओं को पहचानने, मापने और लिखकर रखने की ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से सूचनाओं से सम्बन्धित आँकड़ों को उपयोगकर्ताओं तक संप्रेषित किया जा सके।

RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 1 लेखांकन-एक परिचय 

→ लेखांकन की प्रकृति (Nature of Accounting)
उक्त परिभाषा के आधार पर लेखांकन की प्रकृति से | संबंधित महत्त्वपूर्ण पहलू निम्न प्रकार हैं

  • आर्थिक घटनाएँ,
  • पहचान, मापन, अभिलेखन एवं संप्रेषण,
  • संगठन, एवं
  • सूचना से संबंधित उपयोगकर्ता।

→ सूचना के इच्छुक उपयोगकर्ता (Willing Users of Information)
(अ) आन्तरिक उपयोगकर्ता :

  • मुख्य कार्यकारी,
  • वित्तीय प्राधिकारी,
  • उप-प्रधान,
  • व्यावसायिक इकाई प्रबन्धक,
  • संयंत्र प्रबन्धक,
  • स्टोर प्रबन्धक,
  • लाइन पर्यवेक्षक आदि।

(ब) बाह्य उपयोगकर्ता :

  • वर्तमान एवं भावी निवेशक (शेयर धारक),
  • लेनदार (बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थान, ऋणपत्र धारक एवं अन्य ऋणदाता),
  • कर अधिकारी,
  • नियमन एजेन्सी (कम्पनी मामलों का विभाग, कम्पनी रजिस्ट्रार, भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड, स्टॉक एक्सचेंज, श्रम संगठन, व्यापारिक संघ आदि),
  • ग्राहक एवं साधारण जनता आदि।

→ लेखांकन के उपक्षेत्र या शाखायें (Sub-fields or Branches of Accounting)
लेखांकन का क्षेत्र व्यापक होने के कारण उसकी विभिन्न शाखायें या उपक्षेत्र विकसित हुए हैं, जिनमें प्रमुख निम्न प्रकार हैं

  • वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting)
  • लागत लेखांकन (Cost Accounting)
  • प्रबन्ध लेखांकन (Management Accounting)।

→ लेखांकन की गुणात्मक विशेषताएँ (Qualitative Features of Accounting)
गुणात्मक विशेषताएँ उस लेखांकन सूचना का परिणाम हैं जो इसकी बोधगम्यता एवं उपयोगिता को बढ़ाती हैं। लेखांकन सूचना का निर्णय लेने में उपयोगिता के मूल्यांकन के लिए इसमें विश्वसनीयता, प्रासंगिकता, बोधगम्यता तथा तुलनात्मकता का गुण होना आवश्यक है। मुख्यतः लेखांकन की गुणात्मक विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

  • विश्वसनीयता
  • प्रासंगिकता
  • बोधगम्यता
  • तुलनीयता।

→ लेखांकन के उद्देश्य (Objects of Accounting)

  • व्यावसायिक लेन-देन का हिसाब रखना,
  • लाभ अथवा हानि की गणना,
  • वित्तीय स्थिति को प्रदर्शित करना,
  • उपयोगकर्ताओं को सूचनाएँ उपलब्ध करवाना,
  • व्यवसाय पर प्रभावी नियन्त्रण करना,
  • कर सम्बन्धी विवरणी तैयार करना,
  • वित्तीय संस्थाओं को आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराना।

→ लेखांकन की भूमिका लेखांकन विवरणों एवं प्रतिवेदनों के रूप में संगठन की वित्तीय स्थिति एवं संचालन परिणामों को प्रदर्शित करता है। अतः इसे व्यवसाय की भाषा भी कहा जाता है। यह उपयोगकर्ताओं को सेवा भी प्रदान करता है।

→ लेखांकन के आधारभूत पारिभाषिक शब्द (Basic Terms in Accounting)
इकाई (Entity): यहाँ इकाई से अभिप्राय एक ऐसी वस्तु से है जिनका एक निश्चित अस्तित्व है। एक लेखांकन प्रणाली को सदा विशिष्ट व्यावसायिक अस्तित्व के लिए तैयार किया जाता है, जिसे लेखांकन इकाई भी कहते हैं। 

→ लेन-देन (Transaction): दो या दो से अधिक इकाइयों के बीच कोई घटना जिसका कुछ मूल्य होता है, लेन-देन कहलाता है। यह एक नकद अथवा उधार सौदा हो सकता है।

RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 1 लेखांकन-एक परिचय

→ परिसम्पत्तियाँ (Assets): किसी उद्यम के ऐसे आर्थिक स्रोत, जिन्हें मुद्रा के रूप में उपयोगी ढंग से प्रकट किया जा सके तथा जिनका व्यवसाय के परिचालन में उपयोग किया जाता हो। उदाहरणार्थ, भूमि, भवन, मशीनरी, फर्नीचर आदि। 

→ देयताएँ (Payables/Debts): ऐसी देनदारियाँ या ऋण, जिनका भुगतान व्यावसायिक इकाई द्वारा भविष्य में किया जाना है, देय ऋण अथवा देयताएँ कहलाता है। उदाहरणार्थ, ऋणपत्र, देय बिल, लेनदार, बैंक अधिविकर्ष, बैंक ऋण आदि।

→ पूँजी (Capital): किसी व्यावसायिक संस्था के स्वामी द्वारा व्यवसाय संचालन के लिए किया गया निवेश (Investment) पूँजी कहलाता है।

→ विक्रय (Sales): विक्रय वस्तुओं की बिक्री या सेवाओं की बिक्री या उपयोगकर्ताओं को प्रदान की गई | सेवाओं से प्राप्त कुल आगम है। विक्रय नकद भी हो सकता है और उधार भी।

→ आगम (Revenue): आगम से आशय रोकड़, प्राप्य रकमों या अन्य परिणामों के ऐसे सकल अन्तर्वाह से है जो उपक्रम की सामान्य प्रक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, विक्रय आमदनी, कमीशन, ब्याज, लाभांश, रॉयल्टी, किराया प्राप्त आदि।

→ व्यय (Expenses): यह व्यवसाय में आगम अर्जित करने की प्रक्रिया में आने वाली लागत है। उदाहरणार्थ, मूल्य ह्रास, मजदूरी, किराया, ब्याज, वेतन, पानी, बिजली, टेलीफोन व्यय आदि।

→ खर्च (Expenditure): किसी लाभ, सेवा अथवा सम्पत्ति को प्राप्त करने पर राशि व्यय करना या देनदारी उत्पन्न करना खर्च की श्रेणी में आता है। यदि इस खर्च का लाभ एक वर्ष के भीतर मिलता है तो इसे व्यय (आगम व्यय) कहेंगे तथा एक वर्ष से अधिक समय तक लाभ मिलने पर इसे पूँजीगत व्यय कहते हैं। 

→ लाभ (Profit): लाभ एक लेखांकन वर्ष में व्ययों पर आमदनी का आधिक्य है। इसमें स्वामी की पूँजी में वृद्धि होती है।

→ अभिवृद्धि (Earning/Increase): व्यवसाय में लेन-देनों से होने वाले लाभ अथवा सम्पत्तियों के मूल्य में होने वाली वृद्धि को अभिवृद्धि कहते हैं।

→ हानि (Loss): किसी व्यावसायिक अवधि की संबंधित आगम से व्यय का आधिक्य, हानि कहलाता हैं।

→ बट्टा (Discount): किसी व्यवसाय में विक्रय मूल्य में की गई कटौती को बट्टा कहते हैं। 

→ प्रमाणक (Voucher): किसी व्यावसायिक लेन-देन के समर्थन में जो प्रपत्र प्राप्त होता है उसे प्रमाणक कहते हैं। उदाहरणार्थ, कैश मीमो, बीजक, रसीद आदि।

→ माल (Goods): व्यवसायी, जिन उत्पादों का क्रय एवं विक्रय करता है अथवा उत्पादन एवं विक्रय करता है, उन उत्पादों को माल कहते हैं।

→ क्रय (Purchases): किसी व्यवसाय द्वारा नकद या उधार प्राप्त ऐसी वस्तुओं का कुल मूल्य, जिन्हें विक्रय करने के लिए प्राप्त किया गया है, क्रय कहलाता है।

RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 1 लेखांकन-एक परिचय

→ आहरण (Drawings): किसी व्यवसाय में उसके स्वामी द्वारा अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए निकाली गई नकद धनराशि या वस्तुओं का मूल्य, आहरण कहलाता है।

→ स्टॉक (Stock): वर्ष के प्रारम्भ में अथवा वर्ष के अन्त में, व्यवसाय में जो वस्तुएँ, अतिरिक्त पुर्जे व अन्य सामग्री हाथ में होती हैं उन्हें स्टॉक अथवा रहतिया कहते हैं।

→ देनदार (Debtors): किसी व्यावसायिक संस्था को, जिन व्यक्तियों या इकाइयों से उन्हें वस्तुएँ या सेवाएँ उधार उपलब्ध करवाने के बदले, कुछ धनराशि प्राप्त करनी है, उन्हें देनदार कहते हैं। 

→ लेनदार (Creditors): किसी व्यावसायिक संस्था को, जिन व्यक्तियों या इकाइयों को, उनसे वस्तुएँ या सेवाएँ उधार प्राप्त करने के बदले, कुछ धनराशि का भुगतान करना है, उन्हें लेनदार कहते हैं।

Prasanna
Last Updated on Oct. 12, 2022, 5:02 p.m.
Published Aug. 30, 2022