These comprehensive RBSE Class 10 Social Science Notes History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया will give a brief overview of all the concepts.
→ मुद्रण की तकनीक - मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई। चीनी राजतन्त्र मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक था।
→ जापान में मुद्रण-जापान में सर्वप्रथम बौद्ध प्रचारक 768-770 ई. के आसपास छपाई की तकनीक लाये थे। 868 ई. में 'डायमंड सूत्र' नामक पुस्तक छपी। यह जापान की छपने वाली सबसे प्राचीन पुस्तक है।
→ यूरोप में मुद्रण का आना-इटली का साहसी खोजी यात्री मार्कोपोलो चीन से वुड ब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक लेकर इटली लौटा । इटली में भी तख्ती की छपाई से पुस्तकें निकलने लगीं। जर्मनी के निवासी योहान गुटेनबर्ग ने आधुनिक छापेखाने का आविष्कार किया। उसने 1448 तक अपना यह यन्त्र पूरा कर लिया था। उसने बाइबिल नामक पहली पुस्तक छापी। 1450-1550 ई. के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में छापेखाने बन गये थे।
→ मुद्रण क्रान्ति - प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के बाद बड़ी संख्या में पुस्तकें छपने लगीं। पुस्तक उत्पादन के नए तरीकों ने लोगों का जीवन बदल दिया। इसके फलस्वरूप सूचना और ज्ञान में संस्था और सत्ता से उनका सम्बन्ध ही बदल गया। इससे लोक चेतना बदल गई।
→ पढ़ने का जुनून सत्रहवीं तथा अठारहवीं सदी के दौरान यूरोप के अधिकांश देशों में साक्षरता में वृद्धि हुई। यूरोपीय देशों में साक्षरता तथा स्कूलों के प्रसार के साथ लोगों में पढ़ने का जुनून पैदा हो गया। नये पाठकों की रुचि का ध्यान रखते हुए विभिन्न प्रकार का साहित्य छपने लगा। अनेक पुस्तकें पंचांग, लोकगाथाओं और लोकगीतों की हुआ करती थीं। चैपबुक (गुटका) का भी प्रचलन था। अठारहवीं सदी के आरम्भ से पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ।
→ मुद्रण संस्कृति और फ्रांसीसी क्रान्ति - कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मुद्रण संस्कृति ने 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
→ नए तकनीकी परिष्कार-19वीं सदी के अन्त तक आफसेट प्रेस आ गया था, जिससे एक साथ 6 रंग की छपाई सम्भव थी। बीसवीं सदी के शुरू से ही, बिजली से चलने वाले प्रेस के बल पर छपाई का काम बड़ी तेजी से होने लगा था। मुद्रकों तथा प्रकाशकों ने अपने उत्पाद बेचने के नए गुर अपनाए।
→ भारत में मुद्रण युग से पहले की पाण्डुलिपियाँ भारत में संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में हस्तलिखित पांडुलिपियों की पुरानी परम्परा थी। पाण्डुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थीं। ये पांडुलिपियाँ नाजुक तथा काफी महंगी होती थीं।
→ भारत में मुद्रण का आना-भारत में प्रिंटिंग प्रेस सर्वप्रथम सोलहवीं सदी में गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारकों के साथ आया। 1674 ई. तक कोंकणी और कन्नड़ भाषाओं में लगभग 50 पुस्तकें छप चुकी थीं। कैथोलिक पादरियों ने 1579 में पहली तमिल पुस्तक छापी। 1713 में पहली मलयालम पुस्तक छापी गई।
→ धार्मिक सुधार और सार्वजनिक वाद-विवाद-19वीं शताब्दी में समाज तथा धर्म सुधारकों और हिन्दू रूढ़िवादियों के बीच सामाजिक कुरीतियों को लेकर तीव्र वाद-विवाद हो रहा था। राजा राममोहन राय ने 1821 से 'संवाद कौमुदी' नामक समाचार-पत्र प्रकाशित किया और इसके माध्यम से सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। दूसरी ओर रूढ़िवादियों ने राजा राममोहन राय के विचारों का खण्डन करने के लिए 'समाचार चन्द्रिका' नामक समाचार-पत्र का प्रकाशन किया। दो फारसी अखबार—'जाम-ए-जहाँनामा' तथा 'शम्सुल अखबार' भी 1882 में प्रकाशित हुए। तुलसीदास की सोलहवीं सदी की पुस्तक 'रामचरितमानस' का प्रथम मुद्रित संस्करण 1810 में कोलकाता में प्रकाशित हुआ।
→ प्रकाशन के नये रूप-उपन्यास, गीत, कहानियाँ, सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं पर लेख आदि पाठकों की दुनिया का हिस्सा बन गये। अब छवियों की कई नकलें या प्रतियाँ बड़ी सरलता से बनाई जा सकती थीं। चित्रकार राजा रवि वर्मा ने अनेक चित्र बनाए। 1870 के दशक तक पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करते हुए कैरिकेचर और कार्टून छपने लगे थे।
→ प्रिन्ट और प्रतिबन्ध कोलकाता सर्वोच्च न्यायालय ने 1820 के दशक तक प्रेस की आजादी को नियंत्रित करने वाले कुछ कानून पास किए। 1878 में लार्ड लिटन ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू कर भारतीय समाचार-पत्रों पर | कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए।