RBSE Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन

These comprehensive RBSE Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन will give a brief overview of all the concepts.

RBSE Class 10 Social Science Notes Geography Chapter 2 वन और वन्य जीव संसाधन

→ वन - वन पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादक हैं जिन पर दूसरे सभी जीव निर्भर करते हैं।
पौधे और प्राणियों की जातियाँ

  • सामान्य जातियाँ - जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है। यथा-पशु, साल आदि।
  • संकटग्रस्त जातियाँ - ये वे जातियाँ हैं जिनके लुप्त होने का खतरा है। यथा-काला हिरण, भारतीय जंगली गधा, शेर-पूँछ वाला बन्दर आदि।
  • सुभेद्य जातियाँ - ये वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या घट रही है। यथा-नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा नदी की डॉल्फिन आदि। .
  • दुर्लभ जातियाँ - इन जातियों की संख्या बहुत कम या सुभेद्य है।
  • स्थानिक जातियाँ - प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियाँ स्थानिक जातियाँ कहलाती हैं । यथा अण्डमानी टील (teal), निकोबारी कबूतर आदि।
  • लुप्त जातियाँ - ये वे जातियाँ हैं जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पाई गई हैं। यथा - एशियाई चीता और गुलाबी सिर वाली बतख आदि।

→ पेड़ - पौधों तथा प्राणियों के कम होने के कारण - इसका सबसे बड़ा कारण वनों को नुकसान पहुँचना तथा वन क्षेत्रों का कम होना है। भारत में वनों को सबसे बड़ा नुकसान उपनिवेश काल में रेल लाइन, कृषि, व्यवसाय, वाणिज्य, वानिकी और खनन क्रियाओं में वृद्धि से हुआ।

→ बड़ी विकास परियोजनाओं का वनों पर प्रभाव - देश में 1952 से नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5000 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन क्षेत्रों को साफ करना पड़ा है।

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→ खनन का वनों पर प्रभाव - पश्चिमी बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व डोलोमाइट के खनन के कारण गंभीर खतरे | में है। इसने अनेक प्रजातियों के प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुँचाया है।

→ हिमालयन यव का संकटग्रस्त होना - हिमालयन यव से बनाई गई दवाई विश्व में सबसे अधिक बिकने वाली कैंसर औषधि है। विगत दशक में हिमालय प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में यव के हजारों पेड़ सूख गये हैं।

→ भारत में जैव विविधता को कम करने वाले कारक-भारत में जैव विविधता को कम करने वाले कारकों में वन्य जीवों के आवास का विनाश, जंगली जानवरों को मारना व आखेटन, पर्यावरणीय प्रदूषण व विषाक्तिकरण और दावानल आदि शामिल हैं।

→ भारत में वनों तथा वन्य जीवन का संरक्षण - संरक्षण से पारिस्थितिकी विविधता बनी रहती है तथा व्यक्ति के जीवन साध्य संसाधन यथा जल, वायु और मृदा बने रहते हैं।

→ भारतीय वन्य जीव (सुरक्षा) अधिनियम - भारत में भारतीय वन्य जीवन (रक्षण) अधिनियम 1972 में लागू किया गया जिसमें वन्य जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे।

→ बाघ परियोजना - प्रोजेक्ट टाइगर विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है। इसकी शुरुआत सन् 1973 में हुई।

→ कीटों को संरक्षण प्रदान करना - वन्य जीव अधिनियम, 1980 और 1986 के तहत सैकड़ों तितलियों, पतंगों, भंगों और ड्रैगन फ्लाई को भी संरक्षित जातियों में शामिल किया गया है।

→ वन और वन्य जीव संसाधनों के प्रकार और वितरण-भारत में अधिकतर वन और वन्य जीवन या तो प्रत्यक्ष रूप में सरकार के अधिकार क्षेत्र में है या वन विभाग अथवा अन्य विभागों के जरिये सरकार के प्रबंधन में है। ये तीन प्रकार के हैं, यथा - आरक्षित वन, रक्षित वन तथा अवर्गीकृत वन।

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→ देश के राज्यों में वनों के अन्तर्गत क्षेत्र देश में मध्यप्रदेश में स्थायी वनों के अन्तर्गत सबसे अधिक क्षेत्र हैं जो कि प्रदेश के कुल वन क्षेत्र का 75 प्रतिशत है।
समुदाय और वन संरक्षण-वन देश में कुछ मानव प्रजातियों के आवास हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में तो स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर अपने आवास स्थलों के संरक्षण में जुटे हैं।

→ संयुक्त वन प्रबंधन - देश में सन् 1988 में उड़ीसा राज्य ने संयुक्त वन प्रबंधन का प्रथम प्रस्ताव पास किया। वन विभाग के अन्तर्गत संयुक्त वन प्रबंधन क्षरित वनों के बचाव के लिए कार्य करता है और इसमें गाँव के स्तर पर संस्थाएँ बनाई जाती हैं जिसमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप में कार्य करते हैं।

Prasanna
Last Updated on May 7, 2022, 4:34 p.m.
Published May 6, 2022