These comprehensive RBSE Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन
→ सत्ताधारी स्वच्छन्द नहीं हैं। वे अपने ऊपर पड़ने वाले प्रभाव और दबाव से मुक्त नहीं रह सकते। उन्हें परस्पर विरोधी माँगों और दबावों में सन्तुलन बैठाना पड़ता है।
→ लोकतन्त्र में प्रायः हितों और नजरियों के द्वन्द्व की अभिव्यक्ति संगठित तरीके से होती है। नेपाल में लोकतन्त्र का आन्दोलन और बोलिविया का जलयुद्ध इसके उदाहरण हैं।
→ लोकतन्त्र और जनसंघर्ष - इन उदाहरणों से जो निष्कर्ष निकलते हैं, वे ये है
- लोकतन्त्र का जन-संघर्ष के जरिए विकास होता है।
- लोकतान्त्रिक संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक लामबंदी के जरिए होता है।
- ऐसे संघर्ष और लामबंदियों का आधार राजनीतिक संगठन होते हैं। संगठित राजनीति के माध्यमों में राजनीतिक दल, दबाव-समूह और आन्दोलनकारी समूह शामिल हैं।
→ लामबंदी और संगठन - लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राजनीतिक संगठन दो तरह से अपनी भूमिका निभाते हैं
- राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी करके - इसमें जनता और राजनीतिक दल आते हैं।
- संगठन बनाकर अपने हितों को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों द्वारा अप्रत्यक्ष भागीदारी करके इसमें हित-समूह या दबाव समूह और जन-आन्दोलन आते हैं।
→ दबाव समूह
- जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होकर संगठन बनाते हैं और सरकारी नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, उसे हम दबाव समूह या हित समूह कहते हैं।
- दबाव समूह वर्ग विशेषी होते हैं क्योंकि ये समाज के किसी खास समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे| मजदूर संघ, व्यवसायी संघ आदि।
- कुछ संगठन सर्वमान्य हितों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, उन्हें जनसामान्य के हित-समूह 'या लोककल्याणकारी समूह कहते हैं, जैसे मानवाधिकार के संगठन।।
- कुछ मामलों में जनसामान्य का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह ऐसे उद्देश्य को साधने के लिए आगे आते हैं जिससे बाकियों के साथ-साथ उन्हें भी लाभ होता है, जैसे--बामसेफ (BAMCEF)।
→ जन-आन्दोलन
- जन-आन्दोलनों का संगठन ढीला-ढाला होता है। इसमें फैसले अनौपचारिक ढंग से लिये जाते हैं तथा ये | लचीले होते हैं। ये स्वतःस्फूर्त जनता की भागीदारी पर निर्भर करते हैं।
- जन-आन्दोलन में कई तरह के समूह शामिल होते हैं।
- अधिकतर आन्दोलन किसी खास मुद्दे पर ही केन्द्रित होते हैं, जो एक सीमित समय-सीमा के भीतर किसी एक लक्ष्य को पाना चाहते हैं। इनमें नेतृत्व स्पष्ट होता है। ये थोड़े समय तक ही सक्रिय रह पाते हैं। जैसेनेपाल का लोकतन्त्र आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन।
- कुछ आन्दोलन अधिक सार्वभौम प्रकृति के होते हैं और एक व्यापक लक्ष्य को बड़ी समयावधि में पाना चाहते हैं। इनमें एक से ज्यादा मुद्दे होते हैं तथा ये लम्बे समय तक चलते हैं। जैसे पर्यावरण के आन्दोलन तथा महिला आन्दोलन। कभी-कभी ऐसे व्यापक आन्दोलनों का एक ढीला-ढाला-सा सर्व-समावेशी संगठन होता है जैसे-नेशनल अलायन्स फॉर पीपल्स मूवमेंट।
→ दबाव समूह और जन - आन्दोलनों की राजनीति पर प्रभाव डालने की युक्तियाँ - मीडिया को प्रभावित करना, हड़ताल करना, सरकार के काम-काज में बाधा डालना, पेशेवर लॉबिस्ट नियुक्त करना या महँगे विज्ञापन देना | राजनीतिक दल बनाना, राजनीतिक दलों द्वारा अपने मुद्दे उठवाना आदि।। दबाव समूह और आन्दोलनों के सकारात्मक प्रभाव
- इनके कारण लोकतन्त्र की जड़ें मजबूत हुई हैं।
- विभिन्न दबाव-समूहों के सक्रिय रहने से कोई एक समूह समाज के ऊपर प्रभुत्व कायम नहीं कर सकता। इनसे सरकार को परस्पर विरोधी हितों के बीच सामञ्जस्य बैठाना और शक्ति सन्तुलन करना सम्भव होता है।