RBSE Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

RBSE Class 9 Social Science नात्सीवाद और हिटलर का उदय InText Questions and Answers

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स्रोत क और ख को पढ़ें-

प्रश्न 1.
इनसे हिटलर के साम्राज्यवादी मंसूबों के बारे में आपको क्या पता चलता है? 
उत्तर:

  • प्रस्तुत स्रोत से पता चलता है कि हिटलर एक बहुत भयानक साम्राज्यवादी लक्ष्य को लेकर चल रहा था। इसके लिए वह युद्ध भी कर सकता था। 
  • वह अपने देश की सीमा को एक अनिश्चित सीमा तक विस्तार देना चाहता था। 
  • हिटलर का मानना था कि एक ताकतवर राष्ट्र अपनी जनसंख्या के आकार के अनुसार नये क्षेत्र के अधिग्रहण का रास्ता स्वयं ही ढूंढ़ लेता है। 
  • हिटलर की इच्छा जर्मनी को एक विश्वशक्ति के रूप में स्थापित करने की थी तथा इसीलिए वह असंतुष्ट था कि उसके देश का भौगोलिक क्षेत्रफल बहुत कम था जबकि कई दूसरे राष्ट्रों का क्षेत्रफल महाद्वीपों के बराबर था। 

प्रश्न 2.
आपकी राय में इन विचारों पर महात्मा गांधी हिटलर से क्या कहते? 
उत्तर:
महात्मा गांधी हिटलर को साम्राज्यवादी मंसूबों से बचने की सलाह देते तथा युद्ध न करने की सलाह देते, क्योंकि उनका मानना था कि हिंसा से मानवता का कोई भला नहीं होता है। 

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प्रश्न 1.
आपके लिए नागरिकता का क्या मतलब है? अध्याय 1 एवं 3 को देखें और 200 शब्दों में बताएँ कि फ्रांसीसी क्रांति और नात्सीवाद ने नागरिकता को किस तरह परिभाषित किया? 
उत्तर:
नागरिकता-नागरिकता से हमारा आशय किसी विशेष देश में रहने के अधिकार से है। सामान्यतः यह जन्म से सम्बन्धित होता है किन्तु अन्य वैध उपायों द्वारा भी किसी देश की नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। राज्य अपने समस्त नागरिकों का संरक्षक होता है। फ्रांसीसी क्रांति तथा नाजीवाद दोनों ने अलग-अलग तरीकों तथा दृष्टिकोणों से नागरिकता को परिभाषित किया। 

फ्रांसीसी क्रांति के अनुसार नागरिकता-फ्रांसीसी क्रांति का यह विचार था कि सभी मानव, जन्म से समान एवं स्वतंत्र हैं तथा उनके अधिकार भी समान हैं। स्वतंत्रता, संपत्ति, सुरक्षा तथा दमन का विरोध, ये नागरिक के प्राथमिक अधिकार हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने विचार व्यक्त करने तथा अपने इच्छित जगह पर बस जाने के लिए स्वतंत्र है। किसी प्रजातांत्रिक तथा समाजवादी समाज में कानून का शासन होना चाहिये, जिसके ऊपर कोई नहीं होता। 

फ्रांस में मनुष्य के जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार और कानूनी बराबरी के अधिकार को 'नैसर्गिक एवं अहरणीय' अधिकार के रूप में मान्यता दी गई अर्थात् ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जन्मजात प्राप्त थे तथा इन अधिकारों को छीना नहीं जा सकता था। राज्य का यह कर्त्तव्य माना गया था कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करे। 

नात्सीवाद के अनुसार नागरिकता-नात्सियों ने नागरिकता को खासकर नस्लीय विभेद के दृष्टिकोण से परिभाषित किया। यही कारण है कि उन्होंने यहूदियों तथा आबादी के अन्य हिस्सों को जर्मन नागरिक मानने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, उनके साथ बहुत कठोर व्यवहार करते हुए उन्हें जर्मनी से बाहर निकाल दिया। कालांतर में उन्हें भागकर जर्मनी से बाहर पोलैंड तथा पूर्वी यूरोप में बसना पड़ा। उन्होंने नागरिकों में भेदभाव किया। 

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प्रश्न 2.
नात्सी जर्मनी में अवांछितों' के लिए न्यूरेम्बर्ग कानूनों का क्या मतलब था? उन्हें इस बात का एहसास कराने के लिए कि वह 'अवांछित' हैं अन्य कौन-कौनसे काननी कदम उठाए गए? 
उत्तर:
न्यूरेम्बर्ग नियम के अनुसार नागरिक के रूप में रह रहे शुद्ध आर्य रक्त जर्मनों के बीच अयोग्यों को रहने का कोई अधिकार नहीं है। 1935 ई. में निर्मित नागरिकता संबंधी न्यूरेम्बर्ग नियम निम्नलिखित थे- 

  • केवल जर्मन अथवा उससे संबंधित रक्त वाले व्यक्ति ही आगे से जर्मन नागरिक होंगे, जिन्हें जर्मन साम्राज्य की सुरक्षा प्राप्त होगी। 
  • यहूदियों और जर्मनों के बीच विवाह संबंध पर प्रतिबंध लगाया गया। 
  • जर्मनों तथा यहूदियों के बीच विवाहेतर संबंधों को कानूनन अपराध घोषित किया गया। 
  • यहूदियों को राष्ट्रध्वज फहराने से प्रतिबंधित किया गया। 

अन्य कानूनी कदमों में निम्न उपाय शामिल थे-

  • यहूदी व्यवसायों का बहिष्कार। 
  • यहूदियों का सरकारी नौकरियों से निष्कासन। 
  • यहूदियों की सम्पत्ति की जब्ती और बिक्री। 

पृष्ठ 69

प्रश्न 1.
अगर आप 

  • यहूदी औरत या 
  • गैर यहूदी जर्मन औरत 

होती तो हिटलर के विचारों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देतीं? 
उत्तर:
(1) यहूदी औरत-यदि मैं यहूदी औरत होती तो जनता के बीच हिटलर के विचारों का विरोध करती। मैं उसके नस्लीय विचारों का पुरजोर विरोध करती तथा सभी लोगों के लिए समान मानव अधिकारों की माँग करती। 

(2) गैर-यहूदी जर्मन औरत-यदि मैं गैर-यहूदी जर्मन औरत होती तब भी हिटलर के नस्लीय विचारों की आलोचना करती। साथ ही उसके उन विचारों का भी विरोध करती जिनके अनुसार वह महिला तथा पुरुषों में भेद करता था। 

प्रश्न 2.
आपके विचार से पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 69 पर दिये गये पोस्टर में क्या दिखाने की कोशिश की जा रही है ? 
उत्तर:
प्रस्तुत पोस्टर नात्सियों द्वारा यहूदियों के विरुद्ध किये गये कुप्रचार को दर्शाता है। इस पोस्टर द्वारा नात्सी यहूदियों के विरुद्ध जर्मन लोगों की भावनाओं को भड़का रहे हैं। इस पोस्टर में नात्सियों द्वारा एक यहूदी व्यक्ति की धनलोलुपता के बारे में बताया जा रहा है कि उसके लिए पैसा ही सब कुछ है। वह धन प्राप्त करने के लिए भयानक से भयानक अपराध करता है। वह तब तक चैन से नहीं बैठता जब तक कि नोटों से भरे बोरे पर न बैठ जाये अर्थात बहत अधिक धन प्राप्त न कर ले। 

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जर्मन किसान 

तुम सिर्फ हिटलर के हो! 

क्यों! 

आज 

जर्मन किसान दो भयानक पाटों के 

बीच पिस रहा है : 

एक खतरा अमेरिकी अर्थव्यवस्था 

यानी बड़े पूँजीवाद का है 

दूसरा खतरा बोल्शेविज्म की मार्क्सवादी 

अर्थव्यवस्था का है 

बड़ा पूँजीवाद और बोल्शेविज्म, दोनों 

हाथ मिला कर काम करते हैं : 

ये दोनों ही यहूदी विचारों से जन्मे हैं 

और विश्व यहूदीवाद की महायोजना 

को लागू कर रहे हैं। 

किसान को इन खतरों से कौन 

बचा सकता है? 

केवल 

राष्ट्रीय समाजवाद 

1932 में छपे एक नात्सी पर्चे से

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उपर्युक्त चित्रों को देखें और निम्नलिखित का उत्तर दें- 
प्रश्न 1.
इनसे नात्सी प्रचार के बारे में हमें क्या पता चलता है? आबादी के विभिन्न हिस्सों को गोलबंद करने के लिए नात्सी क्या प्रयास कर रहे हैं? 
उत्तर:
उपर्युक्त एक चित्र जर्मनी में चुनावों में किसानों तथा मजदूरों को संबोधित नाजी पोस्टर है। इन पोस्टरों के माध्यम से नाजी किसान तथा मजदूर वर्गों का समर्थन प्राप्त करना चाह रहे हैं। आबादी के विभिन्न हिस्सों को गोलबन्द करने के लिए वे उनकी भावनाओं को भड़का रहे हैं। ये पोस्टर बताते हैं कि ऐसा प्रचार किसी लोमड़ी की तरह चालाक तथा क्रूर व्यक्ति के दिमाग की उपज हो सकता है। इन पोस्टरों के द्वारा नात्सी इन वर्गों को बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर उनका समर्थन प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरा चित्र-बीस के दशक का एक नाजी पोस्टर है। इसमें हिटलर को अग्रिम मोर्चे पर युद्धरत सिपाही बताकर उसे वोट देने का आह्वान किया जा रहा है। 

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प्रश्न 2.
एर्ना क्रॉत्स ने ये क्यों कहा-'कम से कम मुझे तो यही लगता था'? आप उनकी राय को किस तरह देखते है?
उत्तर:
एर्ना क्रॉत्स 1930 के दशक में एक किशोरी थी जो अब दादी बन चुकी है। तत्कालीन परिस्थितियों के बारे में उनसे पूछने पर उन्होंने 'कम से कम मुझे तो यही लगता था' कहा। ऐसा उसने इसलिए कहा क्योंकि उनके अनुसार उस समय नात्सियों ने सभी जर्मनों के लिए उम्मीद की एक किरण जगाई थी। लोगों को रोजगार मिलने लगे थे, तनख्वाहें बढ़ रही थीं और जर्मनी को अपना पुनः उद्देश्य मिल गया था। अतः कम से कम उन्हें तो वह दौर अच्छा लगता था। हम इस राय को उनकी व्यक्तिगत राय मानते हैं । क्योंकि वे 1930 के जर्मनी को आर्थिक पुनर्स्थापना संबंधी अपने व्यक्तिगत अनुभवों के बारे में बता रही थीं। वह न तो उस समय की सामान्य परिस्थितियों के बारे में सुनिश्चित थीं और न ही समाज पर पड़ने वाले तत्कालीन प्रभावों के बारे में। 

पृष्ठ 74 

प्रश्न 1. 
एक पन्ने में जर्मनी का इतिहास लिखें-
(1) नात्सी जर्मनी के एक स्कूली बच्चे की नजर से। 
(2) यातना गृह से जिंदा बच निकले एक यहूदी की नजर से। 
(3) नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से। 
उत्तर:
(1) नात्सी जर्मनी के एक स्कूली बच्चे की नजर से जर्मनी का इतिहास-नात्सी जर्मनी की परिस्थितियाँ खासतौर पर स्कूली बच्चों तथा आमतौर पर सामान्य लोगों के लिए बहुत ही कष्टकर थीं। बच्चों को स्कूली अवस्था से ही नात्सी विचारधाराओं की शिक्षा की शुरुआत कर दी जाती थी। 

स्कूलों में शुद्धिकरण की मुहिम चलाई गई। पाठ्यपुस्तकें नये सिरे से लिखी गईं। नात्सी विचारधारा वाले शिक्षकों को ही नौकरी पर रखा गया। 

जर्मन बच्चों को तथा यहूदी बच्चों को अलग-अलग बिठाया जाता था। उन्हें ऐसी किताबें पढ़ाई जाती थीं जो नात्सी विचारों के प्रसार के लिए तैयार की गई थीं। बच्चों को खेल के रूप में बॉक्सिंग का चुनाव करने के लिए बाध्य किया जाता था क्योंकि हिटलर का मानना था कि बॉक्सिंग से बच्चे फौलादी दिल वाले, ताकतवर और मर्दाना बनते हैं। 

उन्हें उस आयु में एक छोटा-सा झंडा लहराना पड़ता था जब उसके बारे में उनकी कोई सोच भी विकसित नहीं हुई होती थी। 10 वर्ष की आयु होने पर उन्हें युंगकोफ में भेजा जाता था, उसके बाद हिटलर यूथ में तथा बाद में नात्सी सेना में। इस तरह उनकी पूरी जिंदगी ही थोपे गये विकृत विचारों के अनुसार गुजरती थी। 

(2) यातना गृह से जिन्दा बच निकले एक यहूदी की नजर से जर्मनी का इतिहास- नात्सियों द्वारा यहूदियों पर किये गये अत्याचार के लिए जर्मन इतिहास का एक काला अध्याय है। यहूदियों को पकड़कर यातना गृहों में डाल दिया जाता था जहाँ उन्हें घोर यातनाएँ दी जाती थीं। बहुत दिनों तक विभिन्न तरह के अत्याचार करने के बाद यहूदियों को गैस चैंबर्स में मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। यातना गृहों से बाहर के यहूदियों की स्थिति भी दयनीय थी। उन्हें समाज में घोर अपमान सहना पड़ता था। अपनी पहचान प्रदर्शित करने के लिए उन्हें डेविड का तमगा युक्त वस्त्र पहनना पड़ता था तथा उनके घरों पर विशेष चिह्न अंकित किसी भी तरह के संदेह की स्थिति अथवा कानून के मामूली उल्लंघन पर उन्हें यातना गृहों में भेज दिया जाता था, नया दौर शुरू होता था जिसकी अंतिम परिणति उसकी मौत में होती थी। जर्मनी में हजारों-लाखों यहूदियों को गैस चैंबरों में दम घोंट कर मारा गया। 

नात्सियों द्वारा यातना गृहों में यहूदियों पर किया जाने वाला अत्याचार अकथनीय तथा अवर्णनीय है। यह मानवता के नाम पर एक कलंक है। यहाँ तक कि स्कूली बच्चों तथा महिलाओं पर भी कोई रहम नहीं किया जाता था। 

(3) नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से जर्मनी का इतिहास-जर्मनी में नात्सीवाद का जन्म न केवल जर्मनी के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अभिशाप सिद्ध हुआ। इसने जर्मन इतिहास को कलंकित कर दिया। 

नात्सी शासन प्रचार के खोखले तथा कमजोर पैरों पर टिका हुआ था। युद्ध द्वारा नये क्षेत्रों के अधिग्रहण की नीति से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं था। यह कभी भी देश में एक लंबी शांति तथा समृद्धि का दौर नहीं ला सकता था। नात्सी लोग राष्ट्रवाद का जो अर्थ लगाते थे तथा जिन साधनों तथा नीतियों के उपयोग द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते थे, उससे कतई भी सहमत नहीं हुआ जा सकता है। 

जर्मन राष्ट्रवाद की प्राप्ति के लिए पहले से अल्प धन की मात्रा को सेना या सैन्य उपकरणों पर खर्च करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं था। महिलाओं तथा बच्चों के प्रति नात्सियों की नीति पूर्णतः असंगत तथा अतार्किक थी। जर्मन बच्चों को उनके नैसर्गिक व्यक्तित्व के विकास से दूर हटाकर उनमें कट्टरपंथी विचारधारा को स्कूली पाठ पाठ्यक्रम के अनुसार भरना, उनके साथ घोर अन्याय था। 

महिलाओं के ऊपर अव्यावहारिक आचार संहिताओं का थोपा जाना उनकी स्वतंत्रता को खत्म करने जैसा था। एक तरह से नात्सी लोगों ने असभ्यता के सभी लक्षणों के प्रचार द्वारा जर्मन जनता को भ्रष्ट करने का असफल प्रयास किया जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। 

नात्सियों ने तथाकथित अवांछितों पर, जिनमें यहूदी, जिप्सी, विकलांग आदि शामिल किये जाते थे, बर्बर जुल्म किये। उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी तथा मौत के घाट उतारा। नात्सी लोग मानवता के दुश्मन थे। उन्होंने अपने कार्यों से सम्पूर्ण जर्मन इतिहास को कलंकित कर दिया। 

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प्रश्न 2. 
कल्पना कीजिए कि आपहेलमुट हैं। स्कूल में आपके बहुत सारे यहूदी दोस्त हैं। आपका मानना है कि यहूदी खराब नहीं होते। ऐसे में आप अपने पिता से क्या कहेंगे इस बारे में एक पैराग्राफ लिखें। 
उत्तर:
मैं हेलमुट हूँ। मेरे पिता नात्सी हैं तथा हिटलर के कट्टर समर्थक हैं। वे यहूदियों के दमन का समर्थन करते हैं। अतः मैं अपने पिता से कहूँगा कि पिताजी, नात्सियों को समर्थन देना बन्द कीजिये। आखिर यहूदियों ने कौन-सा ऐसा पाप किया है जिसके लिए निर्दयतापूर्वक उनकी हत्या की जा रही है? यदि हममें से कोई हत्यारा है तथा नात्सी शासन का समर्थक है तो उनको लेकर मैं लज्जित हूँ। वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों उन्हें गैर-कानूनी रूप से मारा जा रहा है। स्कूलों में मेरे यहूदी दोस्तों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है। उन्हें हमसे अलग बैठाया जाता है, उन्हें स्कूलों से निकाला जा रहा है। क्या वे हमारी तरह इंसान नहीं हैं? क्या उनमें वही सारी भावनाएँ नहीं हैं जो हममें हैं? आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि मुझे कोई गैस चैंबर में मरने के लिए छोड़ दे तो आप पर क्या गुजरेगी। क्या यहूदी माता-पिता को इतना ही कष्ट नहीं हुआ होगा? . उनकी सिर्फ यही गलती है कि वे यहूदी हैं, तो क्या यहूदी होना गुनाह है? यदि हाँ, तो जो ईसाई कर रहे हैं उस गुनाह की क्या सजा होनी चाहिए? कभी हमने इसके बारे में सोचा है? नात्सियों के द्वारा किया जा रहा यह अत्याचार वास्तव में मानवता के विरुद्ध अपराध है जिसे प्रभु यीशु भी माफ नहीं करेंगे। 

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प्रश्न 1. 
वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थीं? 
उत्तर:
वाइमर गणराज्य की समस्याएँ-वाइमर गणराज्य का जन्म प्रथम विश्वयुद्ध में पराजित जर्मन साम्राज्य के ध्वंसावशेष पर हुआ। वाइमर गणराज्य द्वारा कई समस्याओं का सामना किया गया-
(1) प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वाइमर गणतन्त्र तथा मित्र-राष्ट्रों के बीच हुई वर्साय की शांति संधि जर्मन जनता के लिए बहुत कठोर तथा अपमानजनक थी। वर्साय में हुए अपमान के लिए जर्मन जनता ने वाइमर गणराज्य को ही दोषी ठहराया। 

(2) वर्साय की अपमानजनक संधि से मित्र राष्ट्रों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में भारी धन-राशि देनी पड़ी। 

(3) जर्मनी ने पहला विश्वयुद्ध मोटे तौर पर कर्ज लेकर लड़ा था और युद्ध के बाद तो उसे स्वर्ण मुद्रा में हर्जाना भी भरना पड़ा। इस दोहरे बोझ से जर्मनी के स्वर्ण भंडार लगभग समाप्त होने की स्थिति में पहुँच गए थे। जर्मनी ने इसके कागजी मुद्रा छापना आरम्भ कर दिया। कागजी मुद्रा के अत्यधिक प्रसार के कारण जर्मन माके का मूल्य बहुत कम हो गया। इसलिए जर्मनी मुद्रा स्फीति तथा आर्थिक मंदी के कुचक्र में फंस गया। 

(4) 1929 की आर्थिक मंदी के कारण अमेरिका ने अपनी मदद वापस ले ली, जबकि जर्मनी की अर्थव्यवस्था अमेरिका पर आश्रित थी। फलतः जर्मनी का औद्योगिक उत्पादन 1929 के मुकाबले 40 प्रतिशत रह गया। इससे वहाँ बेरोजगारी बढ़ गई तथा उद्योग व व्यापार पिछड़ गये। 

(5) वाइमर गणतंत्र के काल में जर्मनी में शासन अस्थिरता के दौर से गुजरता रहा। अपने छोटे जीवन काल में वाइमर गणतंत्र में बीस विभिन्न मंत्रिमंडलों का गठन हुआ। इससे लोगों का लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास खत्म होने लगा। 

(6) मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को कमजोर करने के लिए उसकी सेना को भंग कर दिया था तथा युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने उसे युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ-साथ मित्र राष्ट्रों को हुए नुकसान के लिए भी उत्तरदायी ठहराया। 

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प्रश्न 2. 
इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी? 
उत्तर:
1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता मिलने के निम्न कारण थे- 
(1) वर्साय की कठोर सन्धि-वर्साय की संधि ने जर्मनी पर बहुत अपमानजनक शर्ते थोप दीं, जैसे-विजेताओं को युद्ध का भारी मुआवजा देना पड़ा, उन्हें जर्मन क्षेत्रों का बहुत बड़ा भाग देना पड़ा तथा जर्मनी सेना को विघटित करना वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के कारण लोगों ने वाइमर गणराज्य को राष्ट पर कलंक तथा जर्मनी के लोगों के साथ छल के रूप में देखा। 

हिटलर ने वर्साय सन्धि को निरस्त कराने तथा जर्मनी के गौरव को पुनः प्राप्त करने का आश्वासन दिया जिससे हजारों व्यक्ति नाजी दल के समर्थक बन गये। 

(2) जर्मनी की खराब आर्थिक दशा तथा विश्व आर्थिक मंदी-बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, मूल्य-वृद्धि, जर्मनी के व्यापार तथा उद्योगों की तबाही तथा सामान्य विश्व मंदी से जर्मनी में निकृष्टतम अवस्था की आर्थिक आपदा पैदा हुई। हिटलर ने लोगों की दशा के लिए लोकतांत्रिक सरकार को दोषी ठहराया। हिटलर ने लोगों को आर्थिक क्षेत्र में सहायता देने का वायदा किया तथा उसने लोगों का विश्वास जीता। 

(3) साम्यवाद का खतरा-जर्मनी में साम्यवादियों ने 1917 ई. की रूसी क्रांति के अनुरूप क्रांति करने का प्रयास किया। इसलिए जर्मन पूँजीवादियों ने हिटलर की नात्सी पार्टी को पूरा समर्थन दिया क्योंकि नात्सी पार्टी साम्यवाद का विरोध करती थी। 

(4) वाइमर गणतन्त्र की अलोकप्रियता-वाइमर गणतन्त्र जर्मनी की आर्थिक और अन्य समस्याएं सुलझाने में असमर्थ रहा। पराजित और अपमानित जर्मन जाति वाइमर गणतन्त्र के नेताओं की शान्तिपूर्ण और दब्बू नीति से क्रोधित होने लगी क्योंकि मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को द्वितीय श्रेणी का राष्ट्र मानना जारी रखा। ऐसी स्थिति में नाजी दल के आकर्षक कार्यक्रम के प्रति जर्मन जनता का झकना स्वाभाविक था। 

(5) हिटलर का प्रभावशाली व्यक्तित्व-हिटलर एक कुशल वक्ता था। वह जोशीला भाषण देता था। उसका जोश एवं उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे। जर्मन जनता उसके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई।

(6) यहूदियों के विरुद्ध जर्मन भावनाएँ-नात्सियों ने जर्मन लोगों की भावनाओं को उभार कर उसका फायदा उठाया। जर्मनी में यहूदी प्रभावशाली स्थान रखते थे। अतः जर्मनी में यहूदी विरोधी भावनाएँ पहले से ही पर्याप्त मात्रा में विद्यमान थीं। नात्सियों ने इस स्थिति का लाभ उठाकर यहूदियों के विरुद्ध विषैला प्रचार किया। उन्होंने यह वायदा किया कि सत्ता में आने पर वे यहूदियों को देश की नागरिकता से वंचित कर देंगे तथा देश के बाहर खदेड़ देंगे। 

(7) हिटलर का आकर्षक कार्यक्रम-हिटलर ने जर्मन जनता के सामने ऐसा कार्यकम प्रस्तुत किया जो जर्मनी के सभी वर्ग के लोगों के लिए रुचिकर था। हिटलर ने वर्साय की अपमानजनक संधि का विरोध किया। उसने गणतन्त्रीय व्यवस्था की आलोचना की और एक सुदृढ़ सरकार की स्थापना पर बल दिया। उसने बेरोजगारों को रोजगार तथा नौजवानों को सुरक्षित भविष्य देने का वायदा किया। उसने देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराने तथा तमाम विदेशी साजिशों का मुँहतोड़ जवाब देने का आश्वासन भी दिया। इस प्रकार हिटलर के विचार जर्मन जाति की परम्परा तथा आकांक्षाओं के अनुकूल थे। अतः हिटलर को लाखों जर्मन लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ। 

प्रश्न 3. 
नात्सी सोच के खास पहलू कौन से थे? 
उत्तर:
नात्सी सोच के खास पहलू अथवा विशेषताएँ निम्न प्रकार थीं-

  • नात्सी विचारधारा हिटलर के विश्व दृष्टिकोण का पर्यायवाची थी। 
  • नात्सीवाद का अर्थ आध्यात्मिक, बौद्धिक, सामाजिक और राजनीतिक अराजकता है।
  • नात्सी सोच में सभी समाजों को बराबरी का हक नहीं था, वे नस्ली आधार पर या तो बेहतर थे या कमतर 
  • नात्सी सोच में ब्लॉन्ड, नीली आँखों वाले नार्डिक जर्मन आर्य सबसे श्रेष्ठ थे तथा यहूदी सबसे निकृष्ट थे। 
  • नात्सी सोच के अनुसार जो नस्ल सबसे ताकतवर है वह जिंदा रहेगी तथा कमजोर नस्लें खत्म हो जाएंगी। आर्य नस्ल सर्वश्रेष्ठ है। उसे अपनी शुद्धता बनाये रखनी है, ताकत हासिल करनी है तथा दुनिया पर वर्चस्व कायम करना 
  • नात्सी अपने लोगों को बसाने के लिए ज्यादा से ज्यादा इलाकों पर कब्जा करना जरूरी मानते थे। अर्थात् वे साम्राज्यवाद के पक्षधर थे। अत: नात्सीवाद अपने साम्राज्य में वृद्धि करना चाहता था। 
  • नात्सी सोच के अनुसार औरतों को बुनियादी तौर पर पुरुषों से भिन्न माना जाता था। हिटलर के अनुसार जर्मन औरतों का कर्त्तव्य नस्ल की शुद्धता को बनाये रखना, यहूदियों से दूर रहना, घर संभालना तथा बच्चों को नात्सी मूल्यों की शिक्षा देना था। 
  • नात्सीवाद एक व्यक्ति तथा एक दल की तानाशाही में विश्वास करता था। 
  • नात्सीवाद उदारवाद, समाजवाद एवं साम्यवाद का विरोधी था। 

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प्रश्न 4. 
नात्सियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा? 
उत्तर:
नासियों का प्रोपेगैंडा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में निम्न प्रकार असरदार रहा-
(1) यहूदियों के विरुद्ध जर्मन भावनाएँ-जर्मनी के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर यहूदियों का बहुत प्रभाव था। व्यापार का बहुत बड़ा भाग उनके हाथों में था। अतः जर्मनी में पहले से ही यहूदी विरोधी भावनायें पर्याप्त मात्रा में विद्यमान थीं। नाजी दल ने इस स्थिति का लाभ उठाकर यहूदियों के विरुद्ध विषैला प्रचार किया और यह वायदा किया कि सत्ता में आने पर वे उनका समस्त प्रभाव ही नष्ट नहीं कर देंगे, वरन् उन्हें देश की नागरिकता से भी वंचित कर देंगे तथा देश के बाहर खदेड़ देंगे। 

(2) मीडिया का सोच-समझ कर इस्तेमाल-नात्सियों ने यहूदियों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए मीडिया का बहुत सोच-समझ कर इस्तेमाल किया। नात्सी विचारों को फैलाने के लिए तस्वीरों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों, आकर्षक नारों और इश्तहारी पर्यों का खूब सहारा लिया जाता था। पोस्टरों में यहूदियों की रटी-रटाई छवियाँ दिखाई जाती थीं, उनका मजाक उड़ाया जाता था, उन्हें अपमानित किया जाता था, उन्हें शैतान के रूप में पेश किया जाता था। 

प्रचार फिल्मों में यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने पर जोर दिया जाता था। 'द एटर्नल ज्यू' (अक्षय यहूदी) इस सूची की सबसे कुख्यात फिल्म थी। 

परंपराप्रिय यहूदियों को खास तरह की छवियों में पेश किया जाता था। उन्हें दाढ़ी बढ़ाए और काफ़्तान (चोगा) पहने दिखाया जाता था। उन्हें केंचुआ, चूहा और कीड़ा जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता था। उनकी चाल-ढाल की तुलना कुतरने वाले छछूदरी जीवों से की जाती थी। इस प्रकार के प्रचार से लोगों की भावनाओं को भड़काया गया। 

(3) स्कूली स्तर पर प्रचार-नात्सी लोगों ने यहूदियों के विरुद्ध अपना प्रचार स्कूली स्तर पर आरम्भ किया। सभी यहूदी अध्यापकों को स्कूल से निकाल दिया गया। नात्सी की नस्ली विचारधारा को तर्कसंगत सिद्ध करने के लिए स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को फिर से लिखा गया। 

(4) सांकेतिक भाषा का प्रयोग-विश्व की प्रतिक्रिया से सरकार को बचाने के लिए सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया जाता था। जैसे-सामूहिक हत्याओं के लिए 'विशेष व्यवहार' तथा 'अन्तिम समाधान' शब्द का प्रयोग किया जाता था। उन्हें मारने के लिए बनाये गये गैस चैम्बरों को 'संक्रमण मुक्ति क्षेत्र' कहते थे। 

इस प्रकार नात्सी प्रचार कला में निपुण थे इसीलिए यहूदियों के विरुद्ध किया गया उनका प्रचार इतना असरदार रहा। 

प्रश्न 5. 
नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रांति के बारे में जानने के लिए अध्याय 1 देखें। फ्रांसीसी क्रांति और नात्सी शासन में औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था? एक पैराग्राफ में बतायें। 
उत्तर:
नात्सी समाज में औरतों की भूमिका-नात्सी समाज में औरतों की भूमिका बहुत सीमित थी। उन्हें आर्य संस्कृति और नस्ल की ध्वजवाहक माना जाता था। नस्ल की शुद्धता बनाये रखना, यहूदियों से दूर रहना, घर संभालना तथा बच्चों को नात्सी मूल्य-मान्यताओं की शिक्षा देना ही उनका दायित्व था। 

फ्रांसीसी क्रांति तथा नात्सी शासन में औरतों की भूमिका में अन्तर- 
(1) फ्रांस की क्रांति में महिलाओं ने प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने अपने देश के सामाजिक तथा राजनैतिक विकास में समान रूप से भाग लिया था, जबकि नात्सी समाज महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के विरुद्ध था। उनका विचार था कि महिलाओं का अपने अधिकारों की माँग करना गलत है तथा उनको दिए गए अधिकार अथवा महिलाओं का लोकतांत्रिक संघर्ष समाज का नाश कर सकता है। 

(2) फ्रांस में अधिकतर महिलाओं को आजीविका के लिए पुरुषों के साथ मिलकर काम करना पड़ता था, जबकि नात्सी समाज में महिलाओं को पुरुषों के साथ मिलकर काम करने की आज्ञा नहीं थी। 

(3) फ्रांस में अपने हितों की आवाज उठाने के लिए महिलाओं के अपने राजनैतिक क्लब तथा समाचार पत्र होते थे, जबकि नात्सी जर्मनी में किसी भी राजनैतिक क्लब अथवा संस्था को काम करने की आज्ञा नहीं थी। 

(4) फ्रांस में महिलाओं तथा पुरुषों दोनों को बराबर समझा जाता था, जबकि नात्सी समाज में महिलाओं को अलग प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। उन्हें आर्य संस्कृति तथा नस्ल का ध्वजवाहक समझा जाता था। 

(5) फ्रांस की महिलाएँ अपना साथी बदलने के लिए स्वतंत्र थीं, जबकि नात्सी समाज में महिलाओं के लिए एक आचार संहिता थी। उन्हें यहूदियों के साथ सम्बन्ध बनाने का अधिकार नहीं था। 

RBSE Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

प्रश्न 6. 
नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए कौन-कौनसे तरीके अपनाए ? 
उत्तर:
नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए निम्न तरीके अपनाए- 
(1) लोकतांत्रिक शासन से मुंह मोड़ना-हिटलर ने जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए तानाशाही का सहारा लिया। उसने लोकतांत्रिक शासन की संरचना तथा संस्थानों को भंग करना शुरू कर दिया। 28 फरवरी, 1933 को जारी फायर डिक्री के द्वारा उसने अभिव्यक्ति, प्रेस एवं सभा करने जैसे नागरिक अधिकारों को निलम्बित कर दिया। इसके बाद उसने अपने राजनीतिक विरोधियों का दमन करना शुरू कर दिया। नात्सी शासन ने कुछ 52 किस्म के लोगों को अपने दमन का निशाना बनाया था। 

(2) तानाशाही स्थापित करना-3 मार्च, 1933 को हिटलर ने इनेबलिंग एक्ट पारित करके कानून के जरिये बाकायदा तानाशाही स्थापित कर दी। नात्सी पार्टी तथा उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों पर पाबंदी लगा दी गई। अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना तथा न्यायपालिका पर राज्य का पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया। 

(3) विशेष सुरक्षा सेनाओं का गठन-जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा सेनाओं का गठन किया गया ताकि नात्सियों की इच्छानुसार समाज पर नियंत्रण रखा जा सके। पहले से काम कर रहे हरी वर्दीधारी पुलिस तथा स्टॉर्म ट्रपर्स (एस ए) के अतिरिक्त इनमें गेस्तापो (गुप्तचर राज्य पुलिस), एस.एस. (अपराध नियंत्रण पुलिस) तथा सुरक्षा सेवा (एस डी) का गठन किया गया। इन नई गठित संस्थाओं को प्रदान की गई अत्यधिक असंवैधानिक शक्तियों के कारण ही नात्सी राज्य को सबसे अधिक खूखार आपराधिक राज्य का नाम दिया गया। 

नये दस्ते किसी को भी यातना गृहों में भेज सकते थे, किसी को भी बिना कानूनी कार्रवाई के देश-निकाला दिया जा सकता था या गिरफ्तार किया जा सकता था। 

(4) नस्लवादी राज्य की स्थापना-एक बार सत्ता में आने पर नात्सियों ने, अपने शासन में अवांछितों को निष्कासित करके शुद्ध जर्मनवासियों के जातीय समुदाय के निर्माण के अपने सपने को जल्दी लागू करना आरम्भ किया। नाजी केवल शुद्ध तथा स्वस्थ नॉर्डिक आर्यों का समाज चाहते थे। वे ही केवल वांछनीय समझे जाते थे। केवल उन्हें ही फलने-फूलने का अधिकार था। 

(5) शिक्षा तथा स्कूलों पर नियंत्रण-नात्सीवाद का प्रचार करने के लिए पूरी शिक्षा प्रणाली को राज्य के नियंत्रण में कर दिया गया। स्कूल की पाठ्यपुस्तकें फिर से लिखी गईं। नस्ल के विचारों को सिद्ध करने के लिए नस्ली विज्ञान आरम्भ किया गया। यहूदी बच्चों तथा अध्यापकों को स्कूल से बाहर निकाल दिया गया। 

(6) महिलाओं पर नियंत्रण-नात्सियों ने महिलाओं पर भी नियंत्रण स्थापित किया। उनके लिए एक आचार संहिता निर्धारित की गई। जो औरतें उस निर्धारित आचारसंहिता के अनुसार चलती थीं उन्हें इनाम दिया जाता था तथा इसका उल्लंघन करने वाली महिलाओं को कड़ा दण्ड दिया जाता था अर्थात् अनुपयुक्त बच्चे की माँ को दंडित किया जाता था और बच्चे के शुद्ध आर्य प्रजाति के होने पर महिला को सम्मानित किया जाता था। 

(7) धुआँधार प्रचार-नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण स्थापित करने के लिए सुनियोजित धुआँधार प्रचार का भी सहारा लिया। 

(8) स्कूली बच्चों, युवाओं तथा लड़कियों का विचार परिवर्तन-बाल्यावस्था से ही नात्सी सरकार ने बच्चों के मन-मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया। जैसे-जैसे वे बड़े होते गये उन्हें वैचारिक प्रशिक्षण द्वारा नात्सीवाद की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया।

लड़कियों को शिक्षा दी गई कि उन्हें शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों की माँ बनना है। बच्चों तथा युवकों को यहूदियों से घृणा करने तथा हिटलर की पूजा करने को कहा जाता था। 
इस प्रकार मुख्यतः दमनात्मक तरीकों द्वारा नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण स्थापित किया। 

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Last Updated on May 18, 2022, 5:15 p.m.
Published May 18, 2022