RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
Rajasthan Board RBSE Class 8 Sanskrit Chapter 4 वीराङ्गना हाडीरानी
RBSE Class 8 Sanskrit वीराङ्गना हाडीरानी पाठ्यपुस्तकस्य प्रश्नोत्तराणि
RBSE Class 8 Sanskrit वीराङ्गना हाडीरानी मौखिकप्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां शब्दानाम् उच्चारणं कुरुत
(नीचे लिखे हुए शब्दों का उच्चारण कीजिए-)
अवरङ्गजेबः, ग्रहीतुम्, परिणीतवान्, युद्धार्थं, मुक्तिप्राप्तये, महाराज्ञी, गृह्णातु, वाष्पकुलेक्षणः विस्मरिष्यन्ति।
नोट:
छात्र स्वयं ही उच्चारण करें।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि वदत
(नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर बताइये-)
(क) रावतरत्नसिंहः कस्य सन्देश प्राप्तवान् ?
(रावरत्नसिंह ने किसका समाचार प्राप्त किया ?)
(ख) राज्ञी कस्य आरार्तिकम् अवतारितवती ?
(रानी ने किसकी आरती उतारी ?)
(ग) रावतरत्नसिंहः शिरसि किं धारयति ?
(रावतरत्नसिंह सिर पर क्या धारण करता है)
(घ) कस्मात् कारणात् रावरतत्नसिंहः सम्यक् युद्धं न करिष्यति ?
(किस कारण रावतरत्नसिंह अच्छी प्रकार युद्ध नहीं करेगा ?)
(ङ) रावतरत्नसिंहः सेवकं किम् आनेतुं प्रेषितवान् ?
(रावतरत्नसिंह ने सेवक को क्या लाने के लिए भेजा ?)
उत्तराणि:
(क) रावतरत्नसिंहः महाराणाराजसिंहस्य सन्देशं प्राप्तवान्।
(रावतरत्नसिंह ने महाराणा राजसिंह का समाचार प्राप्त किया।)
(ख) राज्ञी रावतरत्नसिंहस्य आरार्तिकम् अवतारितवती।
(रानी ने रावतरत्नसिंह की आरती उतारी।).
(ग) रावतरत्नसिंहः शिरसि उष्णीषं धारयति।
(रावरत्नसिंह सिर पर पगड़ी धारण करता है।)
(घ) पत्न्याः मोहपाशात् कारणात् रावतरत्नसिंहः सम्यक् युद्धं न करिष्यति।
(पत्नी के मोहपाश के कारण रावतरत्नसिंह अच्छी तरह युद्ध नहीं करेगा।)
(ङ) रावतरत्नसिंहः सेवकं अभिज्ञानचिहनम् आनेतुं प्रेषितवान्।
(रावत रत्नसिंह ने सेवक को निशानी लाने के लिए भेजा।)
RBSE Class 8 Sanskrit वीराङ्गना हाडीरानी लिखितप्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तराणि एकपदेन लिखत
(नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर एकपद में लिखिए-)
(क) रावतरत्नसिंहस्य विवाहः कया सह अभवत् ?
(रावत रत्नसिंह का विवाह किसके साथ हुआ ?)
(ख) हाडीरानी प्रति कः अनुरक्तः आसीत् ?
(हाडीरानी के प्रति कौन अनुरक्त था ?)
(ग) सेवकं प्रति रत्नसिंहः किं प्राह ?
(सेवक से रत्नसिंह ने क्या कहा ?)
(घ) “सेवक! स्थालीमानीय” इति का कथयति ?
(“सेवक ! थाली लाओ” ऐसा कौन कहती है ?)
(ङ) राज्ञी निर्निमेषं कम अवलोकितवती?
(रानी ने अपलक किसे देखा है ?)
उत्तराणि:
(क) हाडावती राजकुमार्या सह।
(ख) रावतरत्नसिंहः।
(ग) अभिज्ञान चिह्न आनय।
(घ) महाराज्ञी।
(ङ) रावतरत्नसिंहम्।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तराणि एकवाक्येन लिखत
(नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए-)
(क) रावतरलसिंहः कं पालयन् युद्धायः निश्चयः कृतः ?
(रावतरत्नसिंह ने क्या पालन करते हुए युद्ध के लिए निश्चय किया ?)
(ख) रावतरत्नसिंहस्य युद्धार्थं गमनकाले किम् अवतारितवती ?
(रावतरत्नसिंह के युद्ध के लिए जाते समय क्या उतारी ?)
(ग) राज्ञी मनसि किं चिन्तितवती ?
(रानी ने मन में क्या चिन्ता की ?)
(घ) मोहपाशे कः आबद्धः आसीत् ?
(मोहपाश में कौन बँधा हुआ था ?)
(ङ) कीदृशः रावतरत्नसिंहः युद्धं कृतवान् ?
(किस प्रकार से रावतरत्नसिंह ने युद्ध किया ?)
उत्तराणि:
(क) रावतरत्नसिंहः क्षत्रियधर्मं पालयन् युद्धाय निश्चयः कृतः।
(रावतरत्नसिंह ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए युद्ध के लिए निश्चय किया।)
(ख) रावतरत्नसिंहस्य युद्धार्थं गमनकाले आरार्तिकम् अवतारितवती।
(रावतरत्नसिंह के युद्ध करने के लिए जाते समय आरती उतारी गई।)
(ग) राज्ञी मनसि अचिन्तयत् यत् चुण्डावतस्य रत्नसिंहस्य मनः मयि अनुरक्तः अस्ति।
(रानी ने मन में सोचा कि चुण्डावत रत्नसिंह का मन मुझमें अनुरक्त है।)
(घ) मोहपाशे रत्नसिंहः आबद्धः आसीत्।
(मोहपाश में रावतरत्नसिंह बँधा था।)
(ङ) रावतरत्नसिंहः मुण्डस्य शिरस्थकचान् भागद्वयं विधाय निजगले धृत्वा युद्धं कृतवान्।
(रावतरत्नसिंह ने मुण्ड के सिर के बालों को दो भाग करके अपने गले में धारण करके युद्ध किया।)
प्रश्न 3.
मञ्जूषातः उचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(मञ्जूषा से सही पद चुनकर रिक्त स्थानों को पूरा कीजिए)
रत्नसिंहः, निर्निमेषं, राज्ञी, मोहग्रस्तं, महाकाल इव, स्कन्धे।
(क) एकतः ……………. प्रति अनुरक्तिः
(ख) रावतरत्नसिंहः ……. शस्त्राणि धारयित्वा प्राचलत्।
(ग) राज्ञी अपि ………… तम् अवलोकितवती। ………. मां सम्यक्तया बोधितवती।
(ङ) साक्षात् …………. शत्रूणां कदनं करिष्यामि।
उत्तराणि:
(क) राजी
(ख) स्कन्धे
(ग) निर्निमेषं
(घ) मोहग्रस्तं
(ङ) महाकाल इव।
प्रश्न 4.
रिक्तस्थानानि पूरयत:
(रिक्त स्थानों को पूरा कीजिए)
उत्तराणि:
प्रश्न 5.
निम्नलिखितपदेषु उपसर्गान् पृथक् कुरुत
(नीचे लिखे हुए पदों में उपसर्गों को अलग कीजिए)
यथाप्रेषयति = प्र + ईषयति
(क) आगच्छ = आ + गच्छ।
(ख) परित्रायस्व = परि + त्रायस्व।
(ग) अनुरक्तः = अनु + रक्तः।
(घ) महारावतः = महा + रावतः।
(ङ) प्रबलः = प्र + बलः।
(च) विस्मरिष्यन्ति = वि + स्मरिष्यन्ति।
RBSE Class 8 Sanskrit वीराङ्गना हाडीरानी अन्य महत्वपूर्णः प्रश्नाः
RBSE Class 8 Sanskrit वीराङ्गना हाडीरानी वस्तुनिष्ठप्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1.
रावतरत्नसिंहस्य विवाहः अभवत्
(क) रत्नावल्या सह
(ख) शकुन्तलया सह
(ग) हाडावती राजकुमार्या सह
(घ) दुर्गावत्या सह।
उत्तराणि:
(ग) हाडावती राजकुमार्या सह
प्रश्न 2.
विवाहस्य द्वितीये तृतीये वा दिवसे कस्य सन्देशः आगतः?
(क) राज्ञः
(ख) महाराणा राजसिंहस्य
(ग) महाराणा प्रतापस्य
(घ) शिववीरस्य।
उत्तराणि:
(ख) महाराणा राजसिंहस्य
प्रश्न 3.
स्वपतिं का तिलकं करोति?
(क) हाडावती राजकुमारी
(ख) शकुन्तला
(ग) पद्मावती
(घ) भानुमती।
उत्तराणि:
(क) हाडावती राजकुमारी
प्रश्न 4.
कस्य सेना हाहाकारं कुर्वन् पलायनम् अकरोत्?
(क) दुर्योधनस्य
(ख) युधिष्ठिरस्य
(ग) शिववीरस्य
(घ) अवरङ्गजेबस्य।
उत्तराणि:
(घ) अवरङ्गजेबस्य।
RBSE Class 8 Sanskrit वीराङ्गना हाडीरानी अतिलघूत्तरीयाः प्रश्नाः
प्रश्न: 1.
केन सह युद्धं करणीयम् ?
उत्तरम्:
अवरङ्गजेबेन सह युद्धं करणीयम्।
प्रश्न 2.
रावतरत्नसिंहः युद्धार्थं गमनकाले शिरसि किं धारयति ?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंह: युद्धार्थं गमनकाले शिरसि उष्णीषं धारयति।
प्रश्न: 3.
पत्न्याः मोहपाशे कः आबद्धः आसीत् ?
उत्तरम्:
पत्याः मोहपाशे रावतरत्नसिंहः आबद्धः आसीत्।
प्रश्न: 4.
नृपं दृष्ट्वा राज्ञी मनसि कीदृशी आसीत् ?
उत्तरम्:
नृपं दृष्ट्वा राज्ञी मनसि व्याकुला आसीत्।
प्रश्न: 5.
‘स्वमनसि’ इत्यत्र ‘मनसि’ पदे का विभक्तिः प्रयुक्ता?
उत्तरम्:
‘स्वमनसि’ इत्यत्र ‘मनसि’ पदे सप्तमी विभक्तिः प्रयुक्ता।
RBSE Class 8 Sanskrit वीराङ्गना हाडीरानी लघूत्तरीयाः प्रश्नाः
प्रश्न: 1.
रावतरत्नसिंहः निजगले किं धृत्वा युद्धम् अकरोत्?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंहः स्वपत्न्याः मुण्डस्य शिरस्थकचान् भागद्वयं विधाय निजगले धृत्वा युद्धम् अकरोत्।
प्रश्न: 2.
कः स्कन्धे कानि धारयित्वा प्राचलत् ?
उत्तरम:
रावतरत्नसिंहः स्कन्धे शस्त्राणि धारयित्वा प्राचलत्।
प्रश्न: 3.
रत्नसिंहः रणक्षेत्रं प्रति गच्छन् कां पश्यति स्म?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंहः युद्धक्षेत्रं प्रति गच्छन् वारं वारं राजप्रासादे अट्टालिकायां स्थितां राज्ञी पश्यति स्म।
सुमेलनं कुरुत
(क) चूण्डावत सर्वदार – सेवकः
(ख) महाराज्ञी राजसिंह
(ग) महाराणा – रावत रत्नसिंह
(घ) मोहपाशे आबद्ध – हाडावती
(ङ) स्थालीमानय – चूण्डावत सर्वदारः
उत्तरम्:
(क) रावत रत्नसिंह
(ख) हाडावती
(ग) राजसिंह
(घ) चूण्डावत सर्वदारः
(ङ) सेवक!
RBSE Class 8 Sanskrit वीराङ्गना हाडीरानी निबन्धात्मकं प्रश्नोत्तरम्
प्रश्न: 1.
‘वीराङ्गना हाडीरानी’ अस्य पाठस्य सारं हिन्दी भाषायां लिखत
उत्तरम्:
चूण्डावत सरदार रावतरत्नसिंह की शादी हाडावती राजकुमारी के साथ हुई। शादी के दूसरे या तीसरे दिन महाराणा राजसिंह का समाचार औरंगजेब के साथ युद्ध करने के लिए मिला। मन हिलोरें लेने लगा। लेकिन क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए उसने युद्ध का निश्चय किया। रानी ने भी तिलक करके आरती उतारी। वह राजा युद्ध के लिए चल पड़ा। रानी के प्रति अनुरक्ति होने के कारण वह बार-बार अटारी पर बैठी हुई रानी की ओर देखता जा रहा था। ऐसी स्थिति में राजा को देखकर रानी भी व्याकुल थी। मोहपाश में बंधे हुए राजा ने सेवक से रानी की निशानी लाने के लिए कहा।
रानी ने विचार किया कि राजा का मन मुझ में अनुरक्त है। यदि अच्छी तरह युद्ध नहीं कर सका तो हार जायेगा। यह सुअवसर है। इसलिए सेवक को थाली लाने के लिए आदेश दिया। हाडारानी ने तलवार से अपना सिर काटकर थाली के बीच गिरा दिया। सेवक उसे ढककर रत्नसिंह के पास पहुँचा। रत्नसिंह उसे देखकर आश्चर्यचकित होकर कहने लगा कि हे रानी तुमनेः यह क्या किया। इससे तुमने मुझ मोहग्रस्त को ज्ञान करा दिया। अब मैं महाकाल के समान शत्रुओं का संहार कर दूंगा। इन्हें भी अपनी दुष्टता का फल मिल जायेगा। उसके बाद रावतरत्नसिंह ने अपनी पत्नी का मुण्डमाल गले में डालकर युद्ध किया। इस प्रकार के युद्ध करते हुए रत्नसिंह को महाकाल मानकर हाहाकार करती हुई सेना भाग गई।
योग्यता – विस्तारः
इसी प्रकार विभिन्न वीराङ्गनाओं जैसे पद्मिनी, कर्मवती, करुणावती, दुर्गावती, लक्ष्मीबाई आदि का चित्र संग्रह करके उनका विवरण संग्रह करें।
सेव – धातु लट्लकार (वर्तमान काल)
सेव् (सेवा करना) धातु लृट् लकार (भविष्यत् काल)
महत्वपूर्णानां शब्दार्थानां सूची
पाठ-परिचय:
हमारी मातृभूमि भारतभूमि वीरों की भूमि कही जाती है। यहाँ अनेक वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों को देकर भारतभूमि की सेवा की है। उनमें से ही ऐसी वीरांगना हाडीरानी गिनी जाती है। इस पाठ में चूण्डावत सरदार रावतरत्नसिंह और हाडावती राजकुमारी का वर्णन है।
मूल अंश, शब्दार्थ, अनुवाद एवं प्रश्नोत्तर
(1) चूण्डावतसर्वदारस्य रावतरत्नसिंहस्य विवाहः हाडावती राजकुमार्या सह अभवत्। तस्य विवाहस्य द्वितीये ततीये वा दिवसे महाराणाराजसिंहस्य सन्देशः आगतः यत् शीघ्रमेव अवरङ्गजेबेन सह युद्धं करणीयम्। इति विज्ञाय रावतरत्नसिंहस्य मनः दोलायमानम् अभवत्। एकतः राम प्रति अनुरक्तिः अपरतश्च क्षत्रियधर्मः। अन्ततः क्षत्रियधर्म पालयन् युद्धाय निश्चयः कृतः। राज्ञी अपि स्वपतिं तिलकं कृत्वा रक्षासूत्रं बद्धवा आरार्तिकम् अवतारयत्।।
शब्दार्थः
सर्वदारस्य = सरदार का। राजकुमार्या सह = राजकुमारी के साथ। सन्देशः = समाचार। आगतः = आया। अवरङ्गजेबेन सह औरंगजेब के साथ। विज्ञाय = जानकर।। दोलायमानम् = हिलने, विचलित। राज्ञी प्रति = रानी के प्रति। अपरतः = दूसरी ओर। पालयन् = पालन करता हुआ। तिलकं कृत्वा = तिलक करके। आरार्तिकम् = आरती। अवतारयत् = उतारी। अभवत् = हुआ। तस्य विवाहस्य = उसके विवाह के। दिवसे = दिन में। यत् = कि। शीघ्रमेव = शीघ्र ही। करणीयम् = करना है, करना चाहिए। अनुरक्तिः = प्रेम, अनुराग। अन्ततः = अन्त में। कृतः = किया। रक्षासूत्रं बद्ध्वा = रक्षा सूत्र बाँधकर।
अनुवादः
चूण्डावत सरदार रावत रत्न सिंह का विवाह हाडावती राजकुमारी के साथ हुआ था। उस विवाह के दूसरे या तीसरे दिन महाराणा राजसिंह का समाचार आया कि शीघ्र ही औरंगजेब के साथ युद्ध करना है। ऐसा जानकर रावत रत्नसिंह का मन विचलित हो गया। एक ओर तो रानी के प्रति अनुराग और दूसरी ओर क्षत्रियधर्म का पालन। अन्त में क्षत्रियधर्म का पालन करते हुए युद्ध करने का निश्चय किया। रानी ने भी अपने पति का तिलक करके रक्षा-सूत्र बाँधकर आरती उतारी।
(क) चूण्डावतसर्वदारस्य किं नाम आसीत?
उत्तरम्:
चूण्डावतसर्वदारस्य रावतरत्नसिंहः नाम आसीत्।
(ख) ‘मनः दोलायमानम् अभवत्’ इत्यत्र ‘अभवत्’ पदे कः लकारः अस्ति?
उत्तरम्:
‘मनः दोलायमानम् अभवत्’ इत्यत्र अभवत् पदे लङ्लकारः अस्ति।
(ग) विवाहस्य द्वितीये तृतीये वा दिवसे कस्य सन्देश: आगतः?
उत्तरम्:
विवाहस्य द्वितीये तृतीये वा दिवसे महाराजा राजसिंहस्य सन्देशः आगतः।
(घ) शीघ्रमेव केन सह युद्धं करणीयम् ?
उत्तरम्:
शीघ्रमेव अवरङ्गजेबेन सह युद्धं करणीयम्।
(ङ) रावतरत्नसिंहः कांप्रति अनुरक्तः आसीत् ?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंहः राजी प्रति अनुरक्तः आसीत्।
(च) प्रस्तुत गद्यांशे प्रत्ययान्तपदानि चित्वा लिखत।
उत्तरम्:
प्रस्तुत गद्यांशे विज्ञाय, कृत्वा, बद्धवा च प्रत्ययान्तपदानि सन्ति।
(छ) रावतरत्नसिंहस्य विवाहः कया सह अभवत्?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंहस्य विवाह हाडावती राजकुमार्या सह अभवत्।
(2) शिरसि उष्णीषं परिधाय शस्त्राणि गृहीत्वा अश्वमारुह्य रावतरत्नसिंहः युद्धाय प्रयाणम् अकरोत्, किन्तु तस्य मनः प्रियायामेव अनुरक्तः आसीत्। रणक्षेत्रं प्रति गच्छन् सः वारं वारं राजप्रासादे अट्टालिकायां स्थितां राजी पश्यति स्म। राज्ञी अपि निर्निमेषं तम् अवलोकितवती। किङ्कर्तव्यविमूढं नृपं दृष्ट्वा सा अपि मनसि व्याकुला आसीत्।
शब्दार्थाः
शिरसि = सिर पर। उष्णीषं = पगड़ी। परिधाय = धारण करके (पहनकर)। शस्त्राणि = हथियारों को। गृहीत्वा = लेकर। अश्वम् = घोड़े पर। आरुह्य = चढ़कर। युद्धाय = युद्ध के लिए। प्रयाणम् = प्रस्थान। अट्टालिकायां = अटारी पर। पश्यति स्म = देखता रहा। निर्निमेषं = अपलक। अवलोकितवती = देखती रही। मनसि = मन में। व्याकुला = परेशान।
अनुवादः
सिर पर पगड़ी पहनकर (धारण करके) हथियारों को लेकर घोड़े पर चढ़कर रावतरत्नसिंह ने युद्ध के लिए प्रस्थान किया लेकिन उसका मन प्रिया (रानी) में ही अनुरक्त था। युद्ध क्षेत्र की ओर जाता हुआ वह बार-बार राजमहल की अटारी में विराजमान रानी को देखता रहा। रानी भी अपलक उसे देखती रही। किंकर्तव्यविमूढ़ राजा को देखकर वह भी मन में दुःखी थी।
(क) युद्धाय कः प्रयाणम् अकरोत् ?
उत्तरम्:
युद्धाय रावतरत्नसिंहः प्रयाणम् अकरोत्।
(ख) रावतरत्नसिंहः शिरसि काम् अधारयत् ?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंह शिरसि उष्णीषम् अधारयत्।
(ग) रावतरत्नसिंहकानि गृहीत्वा युद्धाय प्रयाणम् अकरोत्?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंहः शस्त्राणि गृहीत्वा युद्धाय प्रयाणम् अकरोत्।
(घ) कस्य मनः प्रियायामेव अनुरक्तः आसीत् ?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंहस्य मनः प्रियायामेव अनुरक्तः आसीत्।
(ङ) ‘राजप्रासादे’ इत्यत्र का विभक्तिः प्रयुक्ता?
उत्तरम्:
‘राजप्रासादे’ इत्यत्र सप्तमीविभक्तिः प्रयुक्ता।
(च) ‘अश्वमारुहय’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदं कुरुत।
उत्तरम्:
अश्वम् + आरुह्य।
(छ) ‘दृष्ट्वा’ इत्यस्मिन पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
उत्तर:
‘दृष्ट्वा’ इत्यस्मिन पदे ‘क्त्वा’ प्रत्ययः अस्ति।
(3) मोहपाशे आबद्धः सः सेवकम् आहूय प्राह – “प्रासाद गत्वा महाराी कथय यत् भवती किमपि अभिज्ञानचिह्नददातु। यं धारयित्वा युद्धे त्वां समीपं मत्वा आनन्देन युद्धं करिष्यामीति” सेवक: महाराी सन्देशं श्रावितवान्।
शब्दार्थः
आहूय = बुलाकर। प्राह = कहा। प्रासादं गत्वा = महल में जाकर। मोहपाशे = मोह के पाश में। आबद्धः = बंधे हुए, बँधा हुआ था। सेवकम् = सेवक को। महारानी = महारानी से। भवती = आप। किमपि = कोई भी। यं = जिसे। धारयित्वा = धारण करके। युद्धे = युद्ध में। त्वां = तुमको। समीपं = पास, निकट। मत्वा = मानकर। कथय = कहो। अभिज्ञान चिह्न = निशानी। ददातु = देवें। धारयित्वा = धारण करके। युद्धे युद्ध में। आनन्देन = प्रसन्नतापूर्वक। करिष्यामि = करूँगा। श्रावितवान् = सुनाया।
अनुवाद:
मोह के बन्धन में बँधे हुए उसने (रत्नसिंह) सेवक को बुलाकर कहा ‘महल में जाकर महारानी से कहो कि आप कुछ भी निशानी दे दें। जिसे धारण करके युद्ध में तुमको पास में मानकर प्रसन्नतापूर्वक युद्ध करूँगा’, सेवक ने महारानी को समाचार सुनाया।
(क) रावतरत्नसिंहः कस्मिन् आबद्धः आसीत् ?
उत्तरम:
रावतरत्नसिंह: मोहपाशे आबद्धः आसीत्।
(ख) रावतरत्नसिंह कम् आहूय प्राह ?
उत्तरम:
रावतरत्नसिंहः सेवकम् आहूय प्राह।
(ग) कः महाराज्ञीं सन्देशं श्रावितवान् ?
उत्तरम्:
सेवकः महाराजी सन्देशं श्रावितवान्।
(घ) अभिज्ञानचिह्न कः याचितवान्?
उत्तर:
अभिज्ञानचिह्न रावतरत्नसिंहः याचितवान्।
(ङ) ‘धारयित्वा’ इत्यत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
उत्तरम्:
धारयित्वा’ इत्यत्र ‘क्त्वा’ प्रत्ययः प्रयुक्तः।
(च) करिष्यामि’ इत्यत्र कः लकारः अस्ति?
उत्तरम्:
‘करिष्यामि’ इति पदे लट्लकारः अस्ति।
(छ) ‘करिष्यामीति’ इति पदस्य सन्धि-विच्छेदं कुरुत।
उत्तरम्:
करिष्यामि + इति सन्धि-विच्छेदम् अस्ति।।
(4) महाराज्ञी स्वमनसि अचिन्तयत् यत् चुण्डावतस्य मनः मयि अनुरक्तः अस्ति। मोहवशात् सः सम्यक् युद्धं न करिष्यति तर्हि कथं जेष्यति ? यदि अहं जीविता न भविष्यामि तर्हि सः सुखेन युद्धं करिष्यति। वीराङ्गनायाः कृते अनुकूलः अवसरः सौभाग्यश्च। इति विचार्य सा सेवकम् आह “सेवक! स्थालीमानय। अपि च अभिज्ञानचिह्न नय।” इति उक्त्वा सा खड्गमादाय स्वशिरच्छेदं कृत्वा स्थालीमध्ये अपातयत्। हतप्रभः सेवकः तां स्थाली वस्त्रावृत्तं कृत्वा रत्नसिंह प्रति नीतवान्।” गृह्णातु महाराज! इदम् ‘अभिज्ञानचिह्नम्’ इति उक्त्वा वाष्पकुलेक्षणः सेवकः रोदितुं प्रारभत्।।
शब्दार्थः
स्वमनसि = अपने मन में। अचिन्तयत् = सोचा। मयि = मुझमें। जेष्यति = जीतेगा। सुखेन = सुखपूर्वक। विचार्य = विचार करके। स्थालीमानय = धाली को लाओ। इति उक्त्वा = ऐसा कहकर। खड्गमादाय = तलवार लेकर। अपातयत् = गिरा दिया। हतप्रभः = आश्चर्यचकित। नीतवान् = ले गया। गृह्णातु = ग्रहण करें। वाष्पकुलेक्षणः = अश्रुपूरित नेत्र से। रोदितुम् = रोना । प्रारभत् = शुरू किया।
अनुवाद:
महारानी ने अपने मन में सोचा कि चुण्डावत का मन मुझमें अनुरक्त है। मोह बन्धन के कारण वह अच्छी प्रकार से युद्ध नहीं करेगा तो कैसे जीतेगा ? यदि मैं जीवित न रहूँगी तो वह सुखपूर्वक युद्ध करेगा। वीरांगना के लिए यह अनुकूल अवसर और सौभाग्य है। ऐसा विचारकर उसने सेवक से कहा है-सेवक ! थाली लाओ। और निशानी ले जाओ। ऐसा कहकर उसने तलवार लेकर अपना सिर काट करके थाली के बीच में गिरा दिया। आश्चर्यचकित सेवक उस थाली को कपड़े से ढककर रत्नसिंह के पास ले गया। “महाराज ! इस निशानी को ग्रहण करो।” ऐसा कहकर अश्रुपूरित नेत्रों से रोना प्रारम्भ कर दिया।
(क) कः सम्यक् युद्धं न करिष्यति?
उत्तरम्:
रत्नसिंहः सम्यक् युद्धं न करिष्यति।
(ख) कस्याः कृते एषः अनुकूल: अवसरः आसीत् ?
उत्तरम्:
वीराङ्गनायाः कृते एषः अनुकूलः अवसरः आसीत्।
(ग) खड्गमादाय का स्वशिरच्छेदम् अकरोत्?
उत्तरम्:
खड्गमादाय हाडावती राजकुमारिः स्वशिरच्छेदम् अकरोत्।
(घ) कः रोदितुम् प्रारभत् ?
उत्तरम्:
सेवक: रोदितुम् प्रारभत्।
(ङ) ‘रोदितुम्’ इत्यस्मिन् पदे कः प्रत्ययः ?
उत्तरम्:
‘रोदितुम् इत्यस्मिन् पदे तुमुन् प्रत्ययः।
(च) ‘स्थालीमानय’ इति पदस्य सन्धि विच्छेद कुरुत।
उत्तर:
स्थालीम् + आनय’ इति सन्धि-विच्छेदः अस्ति।
(छ) ‘रत्नसिंहम्’ इत्यत्र कारकम् कथयत।
उत्तरम्:
रत्नसिंहम्’ इत्यस्मिन पदे कर्मकारकः अस्ति।
(5) वस्त्रम् अपावृत्य तं दृष्ट्वा आश्चर्यचकितः रत्नसिंह:”हा ! हाडी ! त्वया किं कृतम्। मोहग्रस्तं मां सम्यक्तया बोधितवती। अहं मुण्डमाली भूत्वा साक्षात् महाकाल इव शत्रूणां कदनं करिष्यामि। आततायिनः एतादृशं बोधं कारयिष्यामि यत् ते सप्तजन्मनि अपि न विस्मरिष्यन्ति। लप्स्यन्ते ते धूर्ततायाः फलम्।” ततः रावतरत्नसिंहः स्वपत्नयाः मुण्डस्य शिरस्थकचान् भागद्वयं विधाय निजगले धृत्वा युद्धं कृतवान्। अवरङ्गजेबस्य सेना ईदृशं युद्धं कुर्वन्तं रावतरत्नसिंहं दृष्ट्वा साक्षात् महाकालं मत्वा हाहाकारं कुर्वन् पलायनम् अकरोत्।
शब्दार्थ:-
अपावृत्य = उठाकर। त्वया किं कृतम् = तुम्हारे द्वारा क्या किया गया। सम्यक्तया = उचित प्रकार से। बोधितवती = बोध कराया। शत्रूणां कदनं = शत्रुओं का संहार। कारयिष्यामि = कराऊँगा। सप्तजन्मनि% सात जन्म में। न विस्मरिष्यन्ति = नहीं भूलेंगे। लप्स्यन्ते = प्राप्त करेंगे। शिरस्थकचान् = सिर के बालों को। भागद्वयं विधाय = दो भाग करके। निजगले = अपने गले में। धृत्वा = धारण करके। कृतवान् = किया। कुर्वन्तं = करते हुए। पलायनम् अकरोत् = पलायन कर गये।
अनुवाद:
कपड़े को हटाकर उसे देखकर आश्चर्ययुक्त रत्नसिंह- “हा ! हाडी ! तुम्हारे द्वारा क्या किया गया। मोह ग्रस्त मुझको अच्छी प्रकार से बोध कराया। मैं मुण्ड की माला पहनकर साक्षात् महाकाल के समान होकर शत्रुओं का संहार करूँगा। आततायियों को ऐसा बोध कराऊँगा जिसे वे सात जन्म में भी नहीं भूलेंगे। वे अपनी दुष्टता का फल प्राप्त करेंगे।” उसके बाद रात्रतरत्नसिंह ने अपनी पत्नी के मुण्ड के सिर के बालों को दो भाग में करके अपने गले में धारण करके युद्ध किया। औरंगजेब की सेना ऐसा युद्ध करते हुए रावतरत्नसिंह को देखकर साक्षात् महाकाल मानकर हाहाकार करते हुए पलायन कर गई।
(क) ‘हा ! हाडी ! त्वया किं कृतम्’ इति केन कथितम् ?
उत्तरम्:
हा ! हाडी ! त्वया किं कृतम् ? इति रावतरत्नसिंहेन कथितम्।
(ख) रत्नसिंहः किं दृष्ट्वा आश्यर्चचकितः वभूव ?
उत्तरम्:
रत्नसिंहः वस्त्रम् अपावृत्य मुण्डं दृष्ट्वा आश्चर्यचकितः वभूव।
(ग) शत्रूणां कदनं कः करोति?
उत्तरम्:
शत्रूणां कदनं रत्नसिंहः करोति।
(घ) रावतरत्नसिंहः निजगले किं धृत्वा युद्धं कृतवान् ?
उत्तरम्:
रावतरत्नसिंहः निजगले स्वपल्याः मुण्डं धृत्वां युद्धं कृतवान्।
(ङ) सप्तजन्मनि’ इति पदे का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
उत्तरम्:
‘सप्तजन्मनि’ इति पदे सप्तमी विभक्तिः प्रयुक्ता।
(च) ‘लप्स्यन्ते’ इति पदे कः लकारः अस्ति ?
उत्तरम्:
‘लप्स्यन्ते’ इति पदे लट्लकारः अस्ति।
(छ) कस्यसेना हााकारं कुर्वन् पलायनम् अकरोत् ?
उत्तरम्:
अवरङ्गजेबस्य सेना हाहाकारं कुर्वन् पलायनम् अकरोत्।