RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit
Rajasthan Board RBSE Class 8 Sanskrit Chapter 1 वन्दना
RBSE Class 8 Sanskrit वन्दना पाठ्यपुस्तकस्य प्रश्नोत्तराणि
RBSE Class 8 Sanskrit वन्दना मौखिकप्रश्नाः
1. अधोलिखितानां शब्दानाम् उच्चारणं कुरुत-
कुन्देन्दुः, शुभ्रवस्त्रावृता, पद्मासना, ब्रह्मा, शङ्करप्रभृतिभिः निःशेषजाड्यापहा, आद्याम्, अन्धकारापहाम्, स्फाटिक- मालिकाम् संस्थिताम्।
नोट: छात्रगण स्वयं उच्चारण करें।
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन वदत-
नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर एक पद में बताइये
(क) कुन्देन्दुतुषारहारधवला का ?
(कुन्दपुष्प, चन्द्रमा और बर्फ के समान सफेद हार वाली कौन है ?)
उत्तर:
सरस्वती
(ख) सरस्वती कुत्र आसीना ?
(सरस्वती कहाँ विराजमान हैं ?)
उत्तर:
पद्मासने
(ग) सरस्वती हस्ते किं विदधति ?
(सरस्वती हाथ में क्या धारण करती है ?
उत्तर:
स्फाटिकमालिकां
(घ) कीदृशीं शारदां वन्दे ?
(कैसी सरस्वती की वन्दना करता है ?)
उत्तर:
बुद्धिप्रदाम्।
RBSE Class 8 Sanskrit वन्दना लिखितप्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर एक पद में लिखिए-)
(क) सरस्वती केन वस्त्रेण आवृता ?
(सरस्वती किस वस्त्र से ढकी हुई है ?)
उत्तर:
शुभ्रवस्त्रेण
(स्वच्छ वस्त्र से)
(ख) सरस्वती कैः देवैः वन्दिता ?
(सरस्वती की किन देवताओं द्वारा वन्दना की गई है ?)
उत्तर:
ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः
(ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवों द्वारा)
(ग) शारदा कस्य अपहा ?
(शारदा किसको हरने वाली है?)
उत्तर:
जाड्यं
(अज्ञानता को)
(घ) सरस्वत्याः हस्तयोः किंधारितम् ?
(सरस्वती के द्वारा हाथों में क्या धारण किया गया है ?)
उत्तर:
वीणापुस्तक स्फाटिकमालिकाम्
(वीणा, पुस्तक और स्फटिक नामक मोतियों की माला को)
(ङ) का जगद्व्यापिनी ?
(सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त रहने वाली कौन है ?)
उत्तर:
शारदा
(सरस्वती)
प्रश्न 2.
रिक्तस्थानं पूरयत
(खाली जगह को पूरा कीजिए-)
(क) या ……………. वरदण्डमण्डितकरा।
(ख) देवैः ……………. वन्दिता।
(ग) वन्दे तां …………….. भगवतीम्।
(घ) ……………. धारिणीमभयदाम्।
(ङ) बुद्धिप्रदां ……………..।
उत्तर:
(क) वीणा
(ख) सदा
(ग) परमेश्वरी
(घ) वीणापुस्तक
(ङ) शारदाम्।
प्रश्न 3.
मञ्जूषातः पर्यायपदं चित्वा लिखत
(मञ्जूषा से पर्याय पद चुनकर लिखिए)
रक्षतु, सम्पूर्णः, इत्यादिभिः, शशिः, तमः
(क) इन्दुः
(ख) प्रभृतिभिः
(ग) अन्धकारः
(घ) पातु
(ङ) नि:शेषः
उत्तर:
(क) इन्दुः – शशिः
(ख) प्रभृतिभिः – इत्यादिभिः
(ग) अन्धकारः – तमः
(घ) पातु – रक्षतु
(ङ) नि:शेषः – सम्पूर्णः
प्रश्न 4.
सन्धिविच्छेदं कुरुत-(सन्धि विच्छेद कीजिए-)
(क) ब्रह्माच्युतः
(ख) कुन्देदुः
(ग) पद्मासना
(घ) परमामाद्या
(ङ) जाड्यान्धकारापहाम्
उत्तर:
(क) ब्रह्मा + अच्युतः
(ख) कुन्द + इन्दुः
(ग) पद्म + आसना
(घ) परमाम् + आद्या
(ङ) जाड्य + अन्धकार + अपहाम्
RBSE Class 8 Sanskrit वन्दना अन्य महत्वपूर्णः प्रश्नाः
RBSE Class 8 Sanskrit वन्दना वस्तुनिष्ठप्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1.
अत्र कविः कां वन्दयति ?
(क) महेशं
(ख) सरस्वतीम्
(ग) अच्युतं
(घ) गणेशं।
उत्तर:
(ख) सरस्वतीम्
प्रश्न 2.
शुभ्रवस्त्रावृता का ?
(क) लक्ष्मी
(ख) पार्वती
(ग) सरस्वती
(घ) पद्मावती।
उत्तर:
(ग) सरस्वती
प्रश्न 3.
‘सा मां पातु’ अत्र इदं कस्य कथनम् अस्ति ?
(क) कवेः
(ख) महेशस्य
(ग) ब्रह्मणः
(घ) विष्णोः।
उत्तर:
(क) कवेः
प्रश्न 4.
पद्मासने का संस्थिता ?
(क) माता
(ख) पार्वती
(ग) सरस्वती
(घ) लक्ष्मी।
उत्तर:
(ग) सरस्वती
प्रश्न 5.
‘प्रभृतिभिर्देवैः’ इत्यत्र ‘देवैः’ पदे का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
(क) प्रथमा
(ख) सप्तमी
(ग) पञ्चमी
(घ) तृतीया।
उत्तर:
(घ) तृतीया।
RBSE Class 8 Sanskrit वन्दना अतिलघूत्तरीया प्रश्नाः
प्रश्न 1.
प्रथमस्य पाठस्य प्रथमे श्लोके कस्याः वन्दना कृता ?
उत्तर:
प्रथमस्य पाठस्य प्रथमे श्लोके सरस्वत्याः वन्दना कृता।
प्रश्न 2.
सरस्वती कीदृशी अस्ति ?
उत्तर:
सरस्वती बुद्धिप्रदा अस्ति।
प्रश्न 3.
कस्याः हस्तयोः वीणापुस्तकमालिकाश्च सन्ति?
उत्तर:
सरस्वत्याः हस्तयो: वीणापुस्तकमालिकाश्च सन्ति।
प्रश्न 4.
‘सामांपातु’ अत्र ‘पातु’ इति पदेकः लकारः अस्ति?
उत्तर:
‘सा मां पातु’ इत्यत्र ‘पातु’ पदे लोट्लकारः अस्ति।
RBSE Class 8 Sanskrit वन्दना लघूत्तरीयाः प्रश्नाः
प्रश्न 1.
कविः कां वन्दयति ?
उत्तर:
कविः ब्रह्माच्युतशंकरादिभिर्देवैः वन्दितां सरस्वती वन्दयति।
प्रश्न 2.
हस्तयोः किम् धारयन्ती सरस्वती कुत्र संस्थिता?
उत्तर:
हस्तयोः वीणापुस्तकस्फाटिकमालिकां धारयन्ती सरस्वती पद्मासने संस्थिता।
सुमेलनं कुरुत-
उत्तर:
(क) सरस्वती भगवती,
(ख) हारधवला,
(ग) धारिणीम्,
(घ) भगवती बुद्धिप्रदां शारदाम्,
(ङ) परमामाद्यां जगद व्यापिनीम्।
योग्यता विस्तारः
ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
(संसार में मिल-जुलकर कार्य करने का सन्देश देते हुए प्रस्तुत मन्त्र में कहा गया है कि हे परमात्मा ! हम दोनों की साथ-साथ रक्षा करे। हम दोनों का साथ-साथ पालन करें। हम दोनों पराक्रम से कार्य करें। हम दोनों का अध्ययन तेज युक्त हो और हम द्वेष न करें।)
भावार्थः
वह ईश्वर हम दोनों गुरु-शिष्यों की एक ही प्रकार से रक्षा करे, हम दोनों साथ-साथ पराक्रम करें, हम दोनों का पढ़ा हुआ ज्ञान तेजस्वी होवे, हम दोनों आपस में द्वेष न करें। सब जगह शान्ति होवे, शान्ति होवे, शान्ति होवे।।
(क) भाव-विस्तार:-भारतीय ज्ञान परम्परा में सरस्वती विद्या की देवता रूप में प्रतिष्ठित है। हमारी साहित्य परम्परा में ग्रन्थ की निर्विघ्न/बाधा रहित समाप्ति के लिए ईश्वर से की गई प्रार्थना मंगलाचरण कहलाती है।
अधोलिखिता सरस्वतीवन्दना अपि स्मरणीया:
जय जय हे भगवति सुरभारति ! तव चरणौ प्रणमामः ।
नादब्रह्ममयि जय वागीश्वरि ! शरणं ते गच्छामः ॥ जय…. ।
त्वमसि शरण्या त्रिभुवनधन्या, सुरमुनि-वन्दित चरणा।
नवरसमधुरा कवितामुखरा, स्मित-रुचि-रुचिराभरणा ॥ जय….॥
आसीना भव मानसहंसे, कुन्द-तुहिन-शशि-धवले।
हर जडतां कुरु बोधिविकास, सित-पङ्कज-तनु-विमले ॥ जय… ॥
ललितकलामयि ज्ञानविभामयि, वीणा-पुस्तक-धारिणी।
मतिरास्तां नो तव पदकमले, अयि कुण्ठाविष-हारिणी ॥ जय… ॥
(ख) भाषाविस्तार:
पा धातुः लोट्लकारः (आज्ञार्थक-काल:)
महत्वपूर्ण राब्दयानों सूची
पाठ-परिचय:
किसी भी कार्य के निर्विघ्न समापन के लिए अपने इष्ट की आराधना की जाती है। प्रेरकशक्ति की प्रेरणा पाकर भक्तजन कामना करते हैं। वह शक्ति विभिन्न रूपों वाली होती है। इस पाठ में कवि बुद्धि देने वाली भगवती सरस्वती की वन्दना कर रहा है।
मूल अंश, अन्वय, शब्दार्थ, अनुवाद, भावार्थ
(1) या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
अन्वयः
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला, या शुभ्रवस्त्रावृत्ता, या वीणावरदण्डमण्डितकरा, या श्वेतपद्मासना, या ब्रह्माच्युतशंकर प्रभृतिभिः देवैः सदा वन्दिता, निःशेषजाड्यापहा सा भगवती सरस्वती मां पातु।
शब्दार्थः
या = जो (सरस्वती)। कुन्दम् = कुन्द पुष्प। इन्दुः = चन्द्रमा। तुषारः = बर्फ। धवला= सफेद। शुभम् = स्वच्छ। वस्त्रावृता = वस्त्र से ढकी हुई। पद्मासना = कमल पर बैठी हुई। अच्युतः = भगवान् विष्णु। प्रभृतिभिः = इत्यादि से। पातु = रक्षा करे। निःशेषः = सम्पूर्ण। जाड्यापहा = अज्ञान को हरने वाली।
अनुवादः
जो (सरस्वती) कुन्द पुष्प के समान, चन्द्रमा के समान, बर्फ जैसे स्वच्छ हार वाली है, जो स्वच्छ वस्त्र से ढकी हुई है, जिसके हाथ में श्रेष्ठ दण्ड से सुशोभित वीणा है, जो सफेद कमल पर बैठी हुई है, जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवों द्वारा हमेशा पूजी जाती है, जो सम्पूर्ण अज्ञानता को हरने वाली है, वह सरस्वती मेरी रक्षा करें।
भावार्थ:
जो सरस्वती कुन्दपुष्प के समान, चन्द्रमा के समान और बर्फ के समान सफेद हार को धारण करती है। जो सफेद वस्त्रों से ढकी हुई है। जिसके हाथ में वीणा शोभायमान है। जो सरस्वती श्वेत कमल पर विराजमान है। जिसकी अर्चना ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवता भी करते हैं। सम्पूर्ण जड़ता अथवा अज्ञानता को विनष्ट करने में समर्थ है, वह सरस्वती मेरी रक्षा करे।
(2) शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद् व्यापिनीम्,
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधर्ती पद्मासने संस्थिताम्,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवर्ती बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
अन्वयः
शुक्ला, ब्रह्मविचारसारपरमाम्, आद्यां, जगद्व्यापिनीम्, वीणापुस्तकधारिणीम्, अभयदां, जाड्यान्धकारापहाम्, हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम, बुद्धिप्रदां तां परमेश्वरी भगवती शारदां (अहं) वन्दे।
शब्दार्थः
शुक्लां = सुन्दर। ब्रह्मविचारसार = ब्रह्मविद्या की सार स्वरूप। परमाम = श्रेष्ठ। आद्याम् = आदिशक्ति को। जगद्व्यापिनीम् = सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त रहने वाली को। अभयदाम् = अभय देने वाली को। जाड्यम् = अज्ञानता को। अपहाम् = हरने वाले को। स्फाटिकमालिकाम् = स्फटिक नामक मोतियों की माला को। विदधतीं = धारण करती हुई। संस्थिताम् = विराजमान। बुद्धिप्रदाम् = बुद्धि प्रदान करने वाली को। तां = उस (सरस्वती) को। वन्दे = वन्दना करता हूँ।
अनुवाद:
जो सुन्दर, ब्रह्मविद्या की सार स्वरूपा श्रेष्ठ आदि शक्ति सम्पूर्ण संसार में व्याप्त रहने वाली है, जो वीणा और पुस्तक को धारण करने वाली है, जो अभय देने वाली है, जो अज्ञानतारूपी अन्धकार को हरने वाली है, हाथों में स्फटिक नामक मोतियों की माला को धारण करती हुई, पद्मासन पर विराजमान, बुद्धि प्रदान करने वाली उस श्रेष्ठ भगवती शारदा की (मैं) वन्दना करता हूँ।
भावार्थ:
जो ब्रह्म विद्या की सार रूप, आद्य शक्ति सम्पूर्ण – संसार में विराजमान स्वच्छ वर्ण वाली, समस्त अज्ञानता को = नष्ट करने वाली, हाथों में वीणा और पुस्तक, स्फटिक – मोतियों की माला को धारण करती है। जो कमल के आसन पर विराजमान है, उस बुद्धि देने वाली भगवती सरस्वती को मैं वन्दन करता हूँ।