RBSE Solutions for Class 7 Social Science Civics Chapter 4 लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 7 Social Science Civics Chapter 4 लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 7 Social Science Solutions Civics Chapter 4 लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना

RBSE Class 7 Social Science लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 45

प्रश्न 1. 
आपके बड़े होने के अनुभव, समोआ के बच्चों और किशोरों के अनुभव से किस प्रकार भिन्न हैं? इन अनुभवों में वर्णित क्या कोई ऐसी बात है, जिसे आप अपने बड़े होने के अनुभव में शामिल करना चाहेंगे? 
उत्तर:
समोआ के बच्चे-

  • समोआ के बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। 
  • वे बड़े बच्चों और वयस्कों से बहुत सी बातें सीखते थे, जैसे छोटे बच्चों की देखभाल या घर का काम कैसे करना; आदि। लड़के और लड़कियाँ दोनों अपने छोटे भाई-बहिनों की देखभाल करते थे। 
  • 9 वर्ष का होने पर लड़का बड़े लड़कों के समूह में सम्मिलित हो जाता था और बाहर के काम सीखता था, जैसे मछली पकड़ना, नारियल के पेड़ लगाना आदि। 
  • लड़कियाँ 13-14 साल तक छोटे बच्चों की देखभाल और बड़े लोगों के छोटे-मोटे कार्य करती थीं। 14 वर्ष की उम्र के बाद वे भी मछली पकड़ने जाती थीं, बागानों में काम करतीं और डालियाँ बुनना सीखती थीं। 
  • खाना पकाने का काम, अलग से बनाए गए रसोईघर में होता था, जहाँ लड़के ही अधिकांश काम करते थे। 

भारतीय बच्चे-

  • अधिकांश बच्चे स्कूल जाते हैं और वे बहुत सी बातें स्कूल में सीखते हैं। 
  • मध्य और उच्च वर्ग के परिवारों के बच्चों को परिवार बिना किसी लिंग-भेदभाव के सभी सुविधाएँ प्रदान करते हैं। 
  • लेकिन गरीब परिवारों के बच्चों को कम सुविधाएँ मिलती हैं, क्योंकि उन्हें घर के काम-काज में हाथ-बंटाना होता है। विशेषकर लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं। 
  • खेल और खिलौने भी लिंग के आधार पर विभाजित होते हैं।
  • लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा अपने कैरियर के चुनाव तथा मित्र के साथ घर से बाहर जाने आदि में कम स्वतंत्रता मिलती है। 

हाँ, इन अनुभवों में कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें मैं अपने बड़े होने के अनुभव में शामिल करना चाहूँगा। यथा-मैं मछली पकड़ने के लिए सुदूर यात्राओं पर जाना चाहूँगा, पेड़ लगाने का कार्य करना चाहूँगा और डालियाँ बुनना सीखना चाहूँगा। 

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प्रश्न 1. 
आपके द्वारा बनाए गए चित्र में क्या उतनी ही लड़कियाँ हैं, जितने लड़के? संभव है आपने लड़कियों की संख्या कम बनाई होगी। क्या आप वे कारण बता सकते हैं जिनकी वजह से आपके पड़ोस में, सड़क पर, पार्कों या बाजारों में देर शाम या रात के समय स्त्रियाँ या लड़कियाँ कम दिखाई देती हैं? 
उत्तर:
(i) नहीं, लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम है।

(ii) हमारे पड़ौस में, सड़क पर, पार्कों या बाजारों में देर शाम या रात्रि के समय लड़कियाँ कम दिखाई देती हैं क्योंकि यह समय उनकी सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं माना जाता और यह माना जाता है कि वे अपनी स्वयं की रक्षा करने में शारीरिक रूप से कमजोर हैं। 

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प्रश्न 2. 
क्या लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग कामों में लगे हैं? क्या आप विचार करके इसका कारण बता सकते हैं? यदि आप लड़के और लड़कियों का स्थान परस्पर बदल देंगे, अर्थात् लड़कियों के स्थान पर लड़कों और लड़कों के स्थान पर लड़कियों को रखेंगे, तो क्या होगा? 
उत्तर:
हाँ, लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग कामों में लगे हैं। इसका कारण प्रकृति ने उन्हें भिन्न बनाया है। यदि हम लड़के और लड़कियों का स्थान परस्पर बदल देंगे तो भूमि का स्वरूप व वातावरण पूरी तरह से परिवर्तित हो जाएगा। 

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प्रश्न 1. 
क्या हरमीत और सोनाली का यह कहना सही था कि हरमीत की माँ काम नहीं करती?
उत्तर:
नहीं, हरमीत और सोनाली का यह कहना सही नहीं था कि हरमीत की माँ काम नहीं करती क्योंकि उसकी माँ समस्त घर के कार्य करती है और घर को उचित ढंग से रखती है। उनके घरेलू काम का समय प्रत्येक दिन सुबह पाँच बजे से शुरू होकर देर रात तक चलता रहता है। वह सुबह बच्चों को तैयार करना, नाश्ता बनाना, बच्चों को स्कूल तक छोड़ना, चाय बनाना, कपड़े धोना, दोपहर एवं रात्रि का खाना बनाना आदि सभी कार्य करती है। जब हरमीत की माँ ने काम करना बंद कर दिया तो पूरा परिवार अस्त-व्यस्त हो गया। उसकी माँग स्वयं काम करके न केवल काफी धन खर्च होने से बचाती है, बल्कि घर को भी व्यवस्थित रखती है, साथ ही भोजन बनाने, कपड़े धोने, घर को साफ करने में होने वाले वेस्टेज को भी रोकती है। 

प्रश्न 2. 
आप क्या सोचते हैं, अगर आपकी माँ या वे लोग, जो घर के काम में लगे हैं, एक दिन की हड़ताल पर चले जाएँ, तो क्या होगा? 
उत्तर:
यदि मेरी माँ एक दिन हड़ताल पर चली जाए तो यह मेरे और मेरे परिवार के लिए पूरे घर को व्यवस्थित रखना कठिन हो जायेगा। इसके परिणाम में अशान्ति एवं समस्यायें आएँगी क्योंकि मैं व घर के अन्य लोग, व्यवस्थित रूप में प्रतिदिन के घरेलू कार्य करने के अभ्यस्त नहीं हैं और न ही इन कार्यों के पूरी तरह जानकार हैं। 

प्रश्न 3. 
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि सामान्यतया पुरुष या लड़के घर का काम नहीं करते? आपके विचार में क्या उन्हें घर का काम करना चाहिए? 
उत्तर:
सामान्यतया पुरुष या लड़के घर का काम नहीं करते क्योंकि हमारे समाज ने उनके लिए एक भिन्न प्रकार के कार्य निर्धारित किये हुए हैं। लड़कों को हमेशा घर के बाहर का कार्य करने के लिए कहा जाता है और घर के अन्दर कार्य करने को उन्हें कभी भी प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। घर के अन्दर के कार्य करने के लिए स्त्रियों या लड़कियों को ही करने को कहा जाता है। 

मेरे विचार में पुरुषों या लड़कों को भी घर का काम करना चाहिए क्योंकि लिंग के आधार पर कार्यों के विभाजन विशेषीकरण नहीं किया गया है। भारत में पुरुष प्रभुत्व समाज है। इस कारण पुरुषों को घर के अन्दर के कार्यों को करने के लिए नहीं कहा जाता है। 

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प्रश्न-इस तालिका का अध्ययन करें तथा निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दें-
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प्रश्न 1. 
हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में स्त्रियाँ प्रति सप्ताह कुल कितने घंटे कार्य करती हैं?
उत्तर:

  • हरियाणा 53 घंटे तथा 
  • तमिलनाडु में 54 घंटे स्त्रियाँ प्रति सप्ताह कार्य करती हैं। 

प्रश्न 2. 
इस सम्बन्ध में स्त्रियों और पुरुषों में कितना फर्क दिखाई देता है? 
उत्तर:

  • स्त्रियाँ प्रति सप्ताह पुरुषों की अपेक्षा अधिक घंटे कार्य करती हैं। 
  • पुरुष अधिकांश कार्य घर से बाहर सवैतनिक करते हैं और घरेलू काम के उनके घंटे बहुत कम हैं जबकि स्त्रियों के घरेलू कार्य के घंटे अधिक हैं, लेकिन उनके वैतनिक कार्य के घंटे उतने कम नहीं हैं जितने पुरुषों के घरेलू कार्य के कम हैं।

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प्रश्न 1. 
साथ में दिए गए कुछ कथनों पर विचार कीजिए और बताइए कि वे सत्य हैं या असत्य? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण भी दीजिए। 
(क) कभी समुदाय और समाजों में लड़कों और लड़कियों की भूमिकाओं के बारे में एक जैसे विचार नहीं पाए जाते। 
(ख) हमारा समाज बढ़ते हुए लड़कों और लड़कियों में कोई भेद नहीं करता। 
(ग) वे महिलाएँ जो घर पर रहती हैं, कोई काम नहीं करतीं। 
(घ) महिलाओं के काम, पुरुषों के काम की तुलना में कम मूल्यवान समझे जाते हैं।
उत्तर:
(क) सत्य-उदाहरण के लिए समोआ द्वीप में लड़के और लड़कियाँ समान कार्य करते हैं जबकि भारतीय समाज में लड़के और लड़कियों के कार्य अलग-अलग हैं। 
(ख) असत्य-क्योंकि हमारे समाज में बढ़ते हुए बच्चों के खिलौने तथा उनके खेल अलग-अलग होते हैं। स्पष्ट है कि उनमें भेद किया जाता है। 
(ग) असत्य-क्योंकि घर का कार्य एक निरन्तर किये जाने वाला, कठिन तथा शारीरिक कार्य है जिसमें कई घंटों तक खड़े रहना, झुकना और उठना पड़ता है। 
(घ) सत्य-क्योंकि महिलाएँ अधिकांश काम घर के अन्दर का करती हैं, जिसका कोई वेतन देय नहीं होता। 

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प्रश्न 2. 
घर का काम अदृश्य होता है और इसका कोई मूल्य नहीं चुकाया जाता। 
घर के काम शारीरिक रूप से थकाने वाले होते हैं। घर के कामों में बहुत समय खप जाता है। 
अपने शब्दों में लिखिए कि 'अदृश्य होने', 'शारीरिक रूप से थकाने' और 'समय खप जाने' जैसे वाक्यांशों से आप क्या समझते हैं? अपने घर की महिलाओं के काम के आधार पर एक उदाहरण से समझाइए। 
उत्तर:
(1) 'अदृश्य होने' का आशय है कि महिलाओं के द्वारा घर पर किया जाने वाला बहुत सा काम कार्य के रूप में दिखाई नहीं देता, जैसे-बिस्तर उठाना, पानी पिलाना, पानी भरना आदि। इसलिए इन्हें 'अदृश्य' कहा गया है। 

(2) 'शारीरिक रूप से थकाने वाले'-इस वाक्यांश का आशय यह है कि महिलाओं द्वारा किये जाने वाले बहुत से काम अत्यधिक श्रम-साध्य होते हैं। इनको करने से महिलाएँ प्रायः शारीरिक रूप से थक जाती हैं, जैसे-घर की सफाई, खाना बनाना, परोसना, कपड़े धोना, सुखाना तथा उन्हें उठाना व उन पर प्रेस करना आदि। 

(3) 'समय खप जाना'-इस वाक्यांश का आशय यह है कि घर में छोटे-छोटे इतने काम होते हैं जिनको पूरा करतेकरते उनका पूरे दिन का समय व्यतीत हो जाता है। प्रायः औरतें खाली समय में भी कार्य करती हैं, जैसे-कपड़ों के काज-बटन ठीक करना, उधड़े हुए कपड़ों की सिलाई करना, स्वेटर बुनना आदि। 

प्रश्न 3. 
ऐसे विशेष खिलौनों की सूची बनाइए, जिनसे लड़के खेलते हैं और ऐसे विशेष खिलौनों की भी सूची बनाइए, जिनसे केवल लड़कियाँ खेलती हैं। यदि दोनों सूचियों में अन्तर है, तो सोचिए और बताइए कि ऐसा क्यों है? 
सोचिए कि क्या इसका कुछ संबंध इस बात से है कि आगे चलकर वयस्क के रूप में बच्चों को क्या भूमिका निभानी होगी?

लड़के

लड़की

कार

गुड़िया 

हवाईजहाज

छोटे-छोटे बर्तन

सुपर मैन

खाना बनाने वाला सेट

स्पाइडर मैन

टेड्डीज

गेंद

नरम मुलायम खिलौने

क्रिकेट

 

बंदूक

 

ट्रेन, बस

 

इन दोनों सूचियों में अन्तर होने का मुख्य कारण यह है कि लड़कियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे चारदीवारी के अन्दर रहें। वे संयमी, सहनशील, मृदुभाषी हों जिससे वे ससुराल में भलीभांति रह सकें।

दूसरी तरफ लड़कों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह घर की चारदीवारी के बाहर कार्य करे, बहादुर बने तथा बड़े होकर समाज में अपनी भूमिका भलीभांति निभाए। लड़कों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी शारीरिक शक्ति और स्टेमिना बढ़ाये और बढ़ती उम्र में नेतृत्व की क्षमता का विकास करे। 

यद्यपि वर्तमान में शहरी क्षेत्र में यह विभेद काफी हद तक कम हुआ है। अब लड़कियों को भी लड़कों के समान -खिलौने मिलने लगे हैं और उनसे यह अपेक्षा की जाने लगी है कि वे पुरुषों की भाँति घर की चारदीवारी के बाहर सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करें। 

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प्रश्न 4. 
अगर आपके घर में या आस-पास, घर के कामों में मदद करने वाली कोई महिला है तो उनसे बात कीजिए और उनके बारे में थोड़ा और जानने की कोशिश कीजिए कि उनके घर में कौन-कौन हैं? वे क्या करते हैं? उनका घर कहाँ है? वे रोज कितने घंटे तक काम करती हैं? वे कितना कमा लेती हैं? इन सारे विवरणों को शामिल कर एक छोटी सी कहानी लिखिए। 
उत्तर:
हमारे पड़ोस में एक महिला घर के कामों में मदद करने के लिए आती है। उसका नाम उर्मिला है। उसके दो बच्चे हैं। बड़ा लड़का 25 वर्ष का है तथा छोटी लड़की 23 वर्ष की है। उसके पति का नाम महेन्द्र है। वह नाई की दुकान चलाता है। बड़ा लड़का आटो रिक्शा चलाता है, लेकिन वह शराब में अपनी कमाई खर्च कर देता है। इस कारण उर्मिला की बहू (लड़के की पत्नी) घर छोड़कर अपने मायके चली गई है। पति की कमाई से घर का खर्च नहीं चल पाता है। इसलिए उर्मिला को दूसरों के घर में काम करने के लिए जाना पड़ता है। वह पास की झोंपड़पट्टी कॉलोनी में रहती है। इस काम से उसे महीने भर में 6500 रुपये मिलते हैं। इतने रुपयों के लिए उसे प्रतिदिन लगभग 13 घण्टे काम करना पड़ता है।

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Last Updated on June 15, 2022, 2:31 p.m.
Published June 15, 2022