Rajasthan Board RBSE Class 7 Social Science Chapter 21 लोक संस्कृति
RBSE Solutions for Class 7 Social Science
RBSE Class 7 Social Science लोक संस्कृति Intext Questions and Answers
गतिविधि
पृष्ठ संख्या – 185
प्रश्न 1.
राजस्थान के अन्य महत्त्वपूर्ण लोक शक्ति पीठों से सम्बन्धित कथानक, प्रसंगों और चित्रों का संकलन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के अन्य महत्त्वपूर्ण लोक शक्ति पीठ राजस्थान के अन्य महत्त्वपूर्ण लोक शक्ति पीठ निम्नलिखित –
1. बड़ली माता – बड़ली माता का मन्दिर चित्तौड़गढ़ जिले में छीपों के अंकोला में स्थित है। इस स्थान के सम्बन्ध में मान्यता है कि जो व्यक्ति यहाँ माता की तांती बाँधता है, उसकी बीमारी समाप्त हो जाती है।
2. हर्षत माता – हर्षत माता का मंन्दिर बांदीकुई से लगभग चार मील की दूरी पर आभानेरी नामक स्थान पर स्थित है। यह मन्दिर प्राचीनकाल में शक्ति सम्प्रदाय का गढ़ माना जाता था। प्राचीन मन्दिर के स्थान पर यहां एक नये मन्दिर की स्थापना की गई है।
3. अम्बिका माता – अम्बिका माता का मन्दिर उदयपुर से लगभग 27 मील की दूरी पर जगत नामक गाँव में स्थित है। इस मन्दिर में वराह की एक मूर्ति है जिनके हाथ में मछली है।
4. कालिका देवी – यह मन्दिर चन्द्रावती (झालरापाटन) में स्थित है। इस मन्दिर में कालिका देवी की 8 भुजा वाली एक 511, फीट की काली मूर्ति स्थापित है।
5. आई माता – आई माता का मन्दिर बिलाड़ा में स्थित है। यह सिखी जमेतिव क्षत्रियों की कुलदेवी है। इस मन्दिर |के दीपक की ज्योत से केसर टपकती है।
पृष्ठ संख्या – 188
प्रश्न 2.
आपके अंचल में प्रचलित और कौन-कौन से लोक वाद्य हैं। इनके चित्रों सहित इन वाद्यों की जानकारी संकलित कीजिए।
उत्तर:
लोक वाद्य राजस्थान में अनेक लोक वाद्य प्रचलित हैं। इनमें मोरचंग, चिकारा, तुरही, खड़ताल, मंजीरा, झांझ, कांसी की थाली, बांकिया, भूगल, मषक, ताशा, नौबत, ढोलक, डैरूँ आदि उल्लेखनीय हैं। ये वाद्य राजस्थान के जनजीवन में इस प्रकार रच-बस गए हैं कि इनका प्रत्येक स्वर यहाँ की माटी और संस्कृति की गंध लिए हुए होता है।
पृष्ठ संख्या – 191
प्रश्न 3.
आपके क्षेत्र में किए जाने वाले लोक नृत्य और नृत्य के दौरान गाए जाने वाले गीतों की सचित्र जानकारी संकलित कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में लोक – नृत्यों की परम्परा सदियों से चली आ रही है। राजस्थान का घूमर नृत्य देश में सर्वाधिक लोकप्रिय है। इस नृत्य का प्रसिद्ध गीत है “म्हारी घूमर छे नखराली ए माय, घूमर रमवा म्हें जास्यां
ओ रजरी घूमर रमवा म्हें जास्यां।”
कंजरों के लोक – नृत्यों के गीतों में यह गीत अत्यन्त प्रसिद्ध है –
गाय चरावती ने गोरबंध
गंथियो भैस्या चरावती मैं पोयो पोयो राज
म्हारो गोरबन्द बूंबालो।
RBSE Class 7 Social Science लोक संस्कृति Text Book Questions and Answers
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
भाग ‘अ’ को भाग ‘ब’ से सुमेलित करें –
उत्तर:
प्रश्न 2.
‘तरतई’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘तरतई’ शब्द ‘त्रितयी’ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है – “त्रित्व (तीन) से युक्त।”.
प्रश्न 3.
कैलादेवी के मेले में कौनसा विशेष नृत्य किया जाता है?
उत्तर:
कैलादेवी के मेले में ‘लांगुरिया नृत्य’ नामक विशेष नृत्य किया जाता है।
प्रश्न 4.
शहनाई वाद्य यन्त्र किससे बनाया जाता है?
उत्तर:
शहनाई वाद्य यन्त्र शीशम या सागवान की लकड़ी से बनाया जाता है। इसके ऊपरी सिरे पर तूंती लगाई जाती है जो ताड़ के पत्तों की बनी होती है।
प्रश्न 5.
राजस्थान में प्रचलित लोक वाद्य यन्त्रों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में प्रचलित लोक वाद्य यन्त्रों का वर्गीकरण राजस्थान में प्रचलित लोक वाद्यों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है –
1. अवनद्य (चमड़े से युक्त) – इसमें निम्न लोक वाद्य सम्मिलित हैं –
- चंग
- भपंग
- मादल
- नगाड़ा
- इकतारा।
2. घन (धातु से बने हुए) – इसमें निम्नलिखित लोक वाद्य सम्मिलित हैं –
- मंजीरा
- खड़ताल
- ताशा
3. तत् (तार लगे हुए) – इसमें निम्नलिखित लोक वाद्य सम्मिलित हैं –
- सारंगी
- तंदूरा
- जन्तर
- रावणहत्था।
4. सुषिर (फूंक से बजने वाले) – इसमें अग्रलिखित लोक वाद्य सम्मिलित हैं –
- अलगोजा
- शहनाई
- पूंगी
- तुरही
प्रश्न 6.
राजस्थान में लोक संस्कृति के संरक्षक संस्थान कौन – कौन से हैं?
उत्तर:
राजस्थान में लोक संस्कृति के संरक्षक संस्थानराजस्थान में लोक संस्कृति के संरक्षक संस्थान अग्रलिखित हैं –
- राजस्थान संगीत संस्थान, जयपुर
- राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर
- कत्थक केन्द्र, जयपुर
- भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर
- रवीन्द्र मंच, जयपुर
- पश्चिमी सांस्कृतिक केन्द्र (शिल्पग्राम), उदयपुर
- जवाहर कला केन्द्र, जयपुर
- राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर।
प्रश्न 7.
राजस्थान की प्रमुख शक्तिपीठों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
राजस्थान की प्रमुख शक्ति पीठ राजस्थान में अनेक लोक आस्था केन्द्र हैं। सदियों से ये आस्था स्थल मानव मन की अपूरित मनोकामनाओं को पूरा करते आए हैं। राजस्थान के प्रमुख शक्तिपीठ अग्रलिखित हैं –
1. कैला देवी:
कैला देवी करौली से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। त्रिकुट पर्वत की सुरम्य घाटी में बना कैला देवी का भव्य मन्दिर अपने शिल्प और स्थापत्य के कारण दर्शनीय है। कैला देवी महालक्ष्मी के अवतार के रूप में मानी जाती है। मन्दिर में महालक्ष्मी तथा चामुण्डा माता की प्रतिमाएँ स्थित हैं। यह मन्दिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है। कैलादेवी के सामने हनुमान मन्दिर है जिसे स्थानीय लोग लांगुरिया कहते हैं। चैत्र मास के नवरात्र के दौरान कैला देवी का मन्दिर सजीव हो उठता है।
इन दिनों हजारों की संख्या में सुहागिन स्त्रियाँ अपनी पारम्परिक वेशभूषा में माँ कैला देवी की पूजा-अर्चना करने और अपने सुहाग की मंगलकामना के लिए आती हैं। इस मेले का एक और प्रमुख आकर्षण है – लांगुरिया नृत्य। अलगोजों की धुनों पर लांगुरिया गीत गाते युवक-युवतियों की टोलियाँ मेले के वातावरण को और भी भक्तिमय कर देती हैं। कैला देवी के चमत्कारों के बारे में आज भी अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं।
2. जमवाय माता:
जमवाय माता का प्रसिद्ध शक्तिपीठ जयपुर से लगभग 33 किमी. पूर्व में जमवा रामगढ़ बाँध के निकट अरावली की पर्वतमाला के बीच एक पहाड़ी नाके पर स्थित है। जमवाय माता का पौराणिक नाम जामवंती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जमवाय माता के मन्दिर की यात्रा व परिक्रमा अत्यन्त पुण्यफलदायक होती है।
कहा जाता है कि कछवाहा शासक दूलहराय ने जमवाय माता के आशीर्वाद से अपने शत्रु-पक्ष पर विजय प्राप्त की। विजय प्राप्ति के बाद दूलहराय ने कुलदेवी जमवाय माता का मन्दिर बनाया, जो अभी तक विद्यमान है। जमवाय माता श्रद्धालुओं की मनौती और मनोकामनाओं को पूरा कर उन्हें सुख, शान्ति, समृद्धि और वंश वृद्धि का आशीर्वाद देती है। जमवायमाता के चमत्कारों के बारे में कई जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं।
3. करणीमाता:
बीकानेर से लगभग 30 किमी. दूर देशनोक में माँ करणी माता का मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर में हजारों की संख्या में चूहे बिना डर के इधर-उधर घूमते रहते हैं। इन चूहों को स्थानीय लोग ‘काबा’ कहते हैं। यह करणी माता का चमत्कार माना जाता है कि हजारों की संख्या में चूहे होने पर भी यहाँ एक बार भी प्लेग नहीं फैला है।
करणी माता का मन्दिर सफेद संगमरमर का बना हुआ है। करणी माता की मूर्ति के सिर पर मुकुट है और – गले में माला है। इस मन्दिर में चैत्र माह की नवरात्रि तथा आश्विन माह की नवरात्रि में दो बार मेला लगता है, जहाँ सजाव आल इन वन हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। करणी माता के चमत्कारों के बारे में अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं।
4. जीण माता:
जीण माता का प्रसिद्ध शक्तिपीठ अरावली पर्वत के बीच सीकर जिले से लगभग 32 किमी. दूर रेवासा में स्थित है। जीण माता को माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है। इनका वास्तविक और पूरा नाम जयंतीमाला है जिसका अपभ्रंश कालान्तर में जीण हो गया। जीण माता अष्टभुजा देवी है। मन्दिर में देवी की सफेद संगमरमर की सुन्दर और भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। इस देवी का उल्लेख भागवत पुराण के नवें स्कन्ध में भी आया है। यह शक्तिपीठ हजारों वर्ष पुराना है तथा मन्दिर का कई बार जीर्णोद्धार तथा पुनर्निर्माण हुआ है।
मन्दिर का सभामण्डप संगमरमर के 24 स्तम्भों पर आधारित है। कहा जाता है कि चूरू जिले के धांधू गाँव की एक चौहान राजकन्या ने अपनी भावज के व्यंग्य वाणों और प्रताड़ना से व्यथित होकर सांसारिक जीवन छोड़कर आजीवन अविवाहित रहकर इस स्थान पर कठोर तपस्या की। उसके भाई हर्ष ने भी अपनी रूठी हुई बहिन से घर वापस जाने के लिए बहुत अनुनय-विनय की, पर वह नहीं मानी। तब हर्ष ने भी कठोर तपस्या करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे जीण माँ दुर्गा के रूप में प्रसिद्ध हुई और हर्ष भैरव के अवतार के रूप में प्रसिद्ध हुए।
जीण माता अष्टभुजा वाली महिषासुर मर्दिनी के रूप में भी जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जीण माता का मन्दिर हस्तिनापुर से निर्वासन के बाद पाण्डवों द्वारा यहाँ बनवाया गया। इस शक्तिपीठ पर चैत्र और आश्विन दोनों नवरात्राओं में हजारों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। देवी के चमत्कार की अनेक लोक कथाएँ जनमानस में प्रचलित हैं।
5. त्रिपुरा सुन्दरी – माँ त्रिपुरा सुन्दरी का मन्दिर बांसवाड़ा से लगभग 19 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस शक्ति पीठ की लोक में बहुत मान्यता है। बांसवाड़ा का शक्तिपीठ त्रिपुरा-सुन्दरी के नाम से प्रसिद्ध है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर क्षेत्र में यह देवी तीर्थ ‘तरतई माता’ के नाम से जाना जाता है। ‘तरतई’ शब्द ‘त्रितयी’ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है – “त्रित्व (तीन) से युक्त।” त्रिपुरा सुन्दरी के वर्तमान मन्दिर का जीर्णोद्धार सर्वप्रथम 12वीं शताब्दी में होने के उल्लेख मिलते हैं।
मन्दिर को वर्तमान भव्य स्वरूप देने का कार्य 1977 ई. में प्रारम्भ, किया गया। इससे पूर्व यह देवी तीर्थ उमंराई गाँव के पास बीहड़ वन्य प्रदेश में झोंपड़ीनुमा मंदिर के रूप में अवस्थित था। वर्तमान मन्दिर में गर्भगृह में काले पत्थर की माँ त्रिपुरा की अष्टादश भुजाओं वाली भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। सिंहवाहिनी राजराजेश्वरी त्रिपुरा की 18 भुजाओं में दिव्य आयुध हैं। प्रतिमा के पृष्ठ-भाग के प्रभामण्डल में 9 छोटी-छोटी देवी मूर्तियाँ हैं। माँ के पृष्ठ भाग में योगिनियों की बहुत ही सुन्दर मूर्तियाँ अंकित हैं। मूर्ति के नीचे पेढ़ी पर श्रीचक्र अंकित है। माँ त्रिपुरा की उपासना श्रीचक्र पर की जाती है।
शाक्त ग्रन्थों में श्री महात्रिपुरा सुन्दरी को जगत् का बीज और परम शिव का दर्पण कहा गया है। ‘कालिका पुराण’ के अनुसार त्रिपुर शिव की पत्नी होने से इन्हें त्रिपुरा कहा जाता है। त्रिपुरा रहस्य आदि ग्रंथों के अनुसार, एक बार मण्डासुर के उत्पात से जब जगत् त्रस्त हो गया, तब देवताओं के आग्रह पर भगवती आद्या शक्ति त्रिपुरा सुन्दरी के रूप में प्रकट हुई। समस्त आसुरी शक्तियों के साथ युद्ध करने आए मण्ड दैत्य के साथ भयंकर युद्ध हुआ और अन्त में भगवती त्रिपुरेश्वरी ने उसे भस्म कर दिया। पंचाल समाज माँ त्रिपुरा की. कुल देवी के रूप में उपासना करता है।
प्रश्न 8.
राजस्थान के प्रमुख वाद्य यन्त्रों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
राजस्थान के प्रमुख वाद्य यन्त्र लोकजीवन को सरस बनाने और उसे नई ऊर्जा प्रदान करने में वाद्य यंत्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। राजस्थान में पाये जाने वाले प्रमुख लोक वाद्य यन्त्र निम्नलिखित हैं –
1. इकतारा – यह प्राचीन वाद्य है। गोल तूंबेबे में एक बांस फंसा दिया जाता है। तूंबे का ऊपरी हिस्सा काटकर उस पर चमड़ा मढ़ दिया जाता है। बांस में छेद कर उसमें खूटी लगाकर उससे एक तार कस दिया जाता है। इस तार को अंगुली से बजाया जाता है।
2. भपंग – यह वाद्य कटे हुए तूंबे से बना होता है, जिसके एक सिरे पर चमड़ा मढ़ा होता है। चमड़े में एक छेद निकाल कर उसमें जानवर की आंत का तार या प्लास्टिक की डोरी डाल कर उसके सिरे पर लकड़ी का एक टुकड़ा बाँध दिया जाता है। वादक इसको कांख में दबाकर एक हाथ से उस डोरी या तांत को खींचकर या ढीला छोड़कर उस पर दूसरे हाथ से लकड़ी के टुकड़े से प्रहार करता है। अलवर क्षेत्र में यह काफी प्रचलित है।
3. सारंगी – मिरासी, लंगा, जोगी, मांगणियार आदि कलाकार सारंगी के साथ ही गाते हैं। सारंगी सागवान, कैर तथा रोहिड़ा की लकड़ी से बनाई जाती है। सारंगी के तार बकरे की आंत के बने होते हैं तथा गज में घोड़े की पूँछ के बाल बंधे होते हैं।
4. तंदूरा – यह पूरा लकड़ी का बना होता है। कामड़ जाति के लोग तंदूरा ही बजाते हैं। यह तानपुरे से मिलता जुलता वाद्य है। इसमें चार तार होते हैं।
5. जंतर – यह वाद्य वीणा की तरह होता है। वादक इसको गले में डालकर खड़ा – खड़ा ही बजाता है। इसमें दो तूंबे होते हैं तथा बीच में बांस की नली लगी होती है। इसमें कुल चार तार होते हैं। यह गूजर भोपों का प्रचलित वाद्य है।
6. रावणहत्था – रावणहत्था भोपों का मुख्य वाद्य है। इसे बनाने के लिए नारियल की कटोरी पर खाल मढ़ी जाती है जो बांस के साथ लगी होती है। यह वायलिन की तरह गज से बजाया जाता है। बांस में जगह-जगह खंटियां लगा दी जाती हैं, जिनमें तार बंधे होते हैं।
7. शहनाई – चिलम की आकृति का यह वाद्य शीशम या सागवान की लकड़ी से बनाया जाता है। वाद्य के ऊपरी सिरे पर ताड़ के पत्ते की तूती बनाकर लगाई जाती है। फूंक देने पर इसमें से मधुर स्वर निकलता है।
8. अलगोजा – यह बांसुरी की तरह होता है। वादक दो अलगोजे मुंह में रखकर एक साथ बजाता है। एक अलगोजे पर स्वर कायम किया जाता है तथा दूसरे पर स्वर बजाए जाते हैं।
9. पूँगी – यह वाद्य एक विशेष प्रकार के तूंबे से बनता है। कालबेलियों का यह प्रमुख वाद्य है।
10. नगाड़ा – यह दो प्रकार का होता है – एक छोटा और दूसरा बड़ा। इसे लोक नाट्यों में शहनाई के साथ बजाया जाता है। लोक नृत्यों में नगाड़े की संगत के बिना रंगत ही नहीं आती है। यह धातु की लगभग चार – पाँच फुट गहरी अर्द्ध अंडाकार कुंडी को भैंसे की खाल से मंढ़कर चमड़े की डोरियों से कसा जाता है। इसे लकड़ी के डंडों से बजाया जाता है।
11. ढोल – यह लोहे या लकड़ी के गोल घेरे पर दोनों तरफ चमड़ा मंढकर बनाया जाता है। वादक इसे गले में डालकर लकड़ी के डंडों से बजाता है।
12. मांदल – मिट्टी से बनी मांदल का आकार ढोलक जैसा होता है। इस पर हिरण या बकरे की खाल मंढी होती
13. चंग – यह ताल वाद्य लकड़ी के गोल घेरे से बना होता है। इसके एक तरफ बकरे की खाल मंढी जाती है जिसे दोनों हाथ से बजाया जाता है।
14. खंजरी – यह ढप का लघु आकार है। इस पर चमड़ा मंढा होता है। इसे कामड़, भील, कालबेलिया आदि बजाते हैं।
प्रश्न 9.
राजस्थान के प्रमुख लोक – नृत्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के प्रमुख लोक नृत्य राजस्थान में लोक-नृत्यों की परम्परा रही है। नये लोक-नृत्य किसी नियम में बंधे हुए नहीं होते हैं और न ही इनमें मुद्राएँ निर्धारित होती हैं। राजस्थान एक भौगोलिक विविधता वाला प्रदेश है। इस विविधता ने नृत्यों को भी विविधता प्रदान की है और अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नृत्य विकसित हुए हैं। राजस्थान के प्रमुख लोक-नृत्य निम्नलिखित हैं –
1. गैर – नृत्य-होली के दिनों में मेवाड़ और बाड़मेर में गैर नृत्य की धूम मची रहती है। यह केवल पुरुषों का नृत्य है। इसकी संरचना गोल धेरे में होती है। इसकी सारी प्रक्रियायें और पद संचालन तलवार युद्ध और पट्टेबाजी जैसी लगती है।
2. गींदड़ नृत्य – यह शेखावाटी का लोकप्रिय नृत्य है। नगाड़ा इस नृत्य का मुख्य वाद्य यन्त्र होता है। इसमें नर्तक अपने हाथ में छोटे डंडे लिए हुए होते हैं। नगाड़े की ताल के साथ इन डंडों को टकराकर नर्तक नाचने लगते हैं। इसमें अनेक प्रकार के स्वांग भी निकाले जाते हैं।
3. चंग नृत्य – यह पुरुषों का नृत्य है। इस नृत्य में प्रत्येक पुरुष के साथ चंग होता है और वह चंग बजाता हुआ गोल घेरे में नृत्य करता है। नृत्य करते हुए लय के साथ चंग बजाते हुए नर्तक अपने स्थान पर चक्कर लगाता है। इसमें चंग के साथ बांसुरी का भी प्रयोग होता है।
4. डांडिया नृत्य – यह मारवाड़ का लोकप्रिय वृत्ताकार नृत्य है। इस नृत्य में पुरुषों की टोली हाथ में लम्बी छड़ियाँ लेकर नाचती है। इसमें शहनाई और नगाड़ा बजाया जाता है।
5. ढोल नृत्य – यह जालौर का प्रसिद्ध नृत्य है। इसमें एक साथ चार या पाँच ढोल बजाए जाते हैं। इसमें पहले मुखिया ढोल बजाता है। फिर अन्य नर्तक, कोई मुँह में तलवार लेकर, कोई हाथों में डण्डे लेकर कोई रूमाल लटकाकर नृत्य करते हैं।
6. अग्नि नृत्य – धधकते हुए अंगारों पर किया जाने वाला यह नृत्य जसनाथी सम्प्रदाय के लोग करते हैं। यह नृत्य रात्रि में आयोजित होता है। इस नृत्य में नर्तक कई बार अंगारों के ढेर को नाचते हुए पार करता है। साथ ही नर्तक अंगारों से फूलों की तरह खेलते हुए नृत्य करता है।
7. बमरसिया नृत्य – यह अलवर और भरतपुर क्षेत्र का नृत्य है। इसमें दो आदमी एक बड़े नगाड़े को बड़े डंडों की सहायता से बजाते हैं और नर्तक फूंदों तथा पंखों से बंधी लकड़ी को हाथों में लिए उसे हवा में उछालते हुए नाचते हैं। नृत्य के साथ होली के गीत और रसिया गाया जाता है।
8. घूमर नृत्य – यह सम्पूर्ण राजस्थान का लोकप्रिय नृत्य है। यह महिलाओं का नृत्य है। इसमें लहंगा पहने स्त्रियाँ चक्कर लेकर गोल घेरे में नृत्य करती हैं जिसमें उनके लहंगे का घेर और हाथों का लचकदार संचालन दर्शनीय होता है।
9. तेरहताली नृत्य – यह कामड़ जाति का नृत्य है। यह नृत्य बैठकर किया जाता है। इसमें स्त्रियाँ अपने हाथ-पैरों में मंजीरे बांध लेती हैं और फिर दोनों हाथों से डोरी से बंधे मंजीरों को तीव्र गति की ताल और लय से शरीर पर बंधे मंजीरों पर प्रहार करती हुई विविध प्रकार की भाव-भंगिमाएँ प्रदर्शित करती हैं। पुरुष तंदूरे की तान पर मुख्यतया रामदेवजी के भजन गाते हैं।
10. भवाई नृत्य – यह नृत्य अपनी चमत्कारिता के लिए अधिक प्रसिद्ध है। इस नृत्य में विभिन्न शारीरिक करतब दिखाने पर अधिक बल दिया जाता है। तेज लय में सिर पर सात-आठ मटके रखकर नृत्य करना, जमीन पर पड़े रूमाल को मुँह से उठाना, गिलासों पर नांचना, थाली के किनारों पर नृत्य करना, तलवार की धार पर, कांच के टुकड़ों पर और नुकीली कीलों पर नृत्य करना इस नृत्य को रोमांचक बनाता है।
11. गवरी नृत्य – यह मेवाड़ में भीलों द्वारा किया जाने वाला प्रसिद्ध नृत्य है। यह नृत्य केवल पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। मांदल और थाली की थाप पर गवरी नृत्य में कई स्वांगों का प्रदर्शन होता है। भाद्रपद की एकम से लेकर
12. कालबेलिया नृत्य – राजस्थान में सपेरा जाति का यह एक प्रसिद्ध नृत्य है। इस नृत्य में शरीर की लोच और लय, ताल पर गति का मंत्रमुग्ध करने वाला तालमेल देखने को मिलता है। अधिकतर इसमें दो बालाएँ बड़े घेरे वाला घाघरा और धुंघरू पहन कर नृत्य प्रस्तुति देती हैं नृत्य में पुरुषों द्वारा पुंगी और चंग बजाई जाती है। दूसरी महिलाएं गीत गाकर संगत देती हैं। यूनेस्को ने भी इस नृत्य को सूचीबद्ध किया है।
RBSE Class 7 Social Science लोक संस्कृति Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
Question 1.
त्रिपुरा सुन्दरी का शक्ति पीठ स्थित है ……………….
(अ) बाड़मेर में
(ब) जैसलमेर में
(स) जयपुर में
(द) बांसवाड़ा में
उत्तर:
(द) बांसवाड़ा में
Question 2.
जीण माता का मन्दिर स्थित है ……………….
(अ) अलवर में
(ब) सीकर में
(स) जोधपुर में
(द) उदयपुर में
उत्तर:
(ब) सीकर में
Question 3.
लांगुरिया नृत्य किसका लोकप्रिय नृत्य है ……………….
(अ) जमवायमाता का
(ब) जीण माता का
(स) कैलादेवी का
(द) करणी माता का
उत्तर:
(स) कैलादेवी का
Question 4.
रावणहत्था किनका मुख्य वाध है ……………….
(अ) गुर्जरों का
(ब) भोपों का
(स) भीलों का
(द) कालबेलियों का
उत्तर:
(ब) भोपों का
Question 5.
डांडिया नृत्य कहाँ का लोकप्रिय नृत्य है ……………….
(अ) अलवर का
(ब) भरतपुर का
(स) मारवाड़ का
(द) मेवाड़ का
उत्तर:
(स) मारवाड़ का
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- कैला देवी से लगभग 25 किमी ………………… की दूरी पर स्थित है।
- जमवाय माता का पौराणिक नाम ………………… है।
- ………………… के मन्दिर में हजारों की संख्या में चूहे बिना डर के घूमते रहते हैं।
- मन्दिर में त्रिपुरा सुन्दरी की …………………. भुजाओं वाली भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
- मिट्टी से बनी मांदल का आकार ………………… जैसा होता है।
उत्तर:
- करौली
- जामवंती
- करणी माता
- अष्टादश
- ढोलक
निम्नलिखित प्रश्नों में सत्य अथवा असत्य कथन बताइये
- डांडिया नृत्य मेवाड़ का लोकप्रिय नृत्य है।
- धधकते अंगारों पर जसनाथी सम्प्रदाय के लोग नृत्य करते हैं।
- बमरसिया नृत्य राजस्थान का लोकप्रिय नृत्य है।
- गीदड़ नृत्य अलवर और भरतपुर का लोकप्रिय नृत्य है।
- करणी माता का मन्दिर बीकानेर से लगभग 30 किमी. की दूरी पर देशनोक में स्थित है।
उत्तर:
- असत्य
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- सत्य
स्तम्भ ‘अ’ को स्तम्भ ‘ब’ से सुमेलित करें
उत्तर:
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कैला देवी के मेले का मुख्य आकर्षण क्या है?
उत्तर:
लांगुरिया नृत्य कैला देवी के मेले का मुख्य आकर्षण है।
प्रश्न 2.
कैलादेवी किसके अवतार के रूप में मानी जाती है?
उत्तर:
महालक्ष्मी के अवतार के रूप में।
प्रश्न 3.
त्रिपुरा सुन्दरी का मन्दिर कहाँ स्थित है?
उत्तर:
त्रिपुरा सुन्दरी का मन्दिर बांसवाड़ा से लगभग 19 किमी. की दूरी पर स्थित है।
प्रश्न 4.
अलवर क्षेत्र में विशेषकर मेव लोगों में कौनसा वाद्य यन्त्र काफी प्रचलित है?
उत्तर:
अलवर क्षेत्र में, विशेषकर मेव लोगों में भपंग नामक वाद्य यन्त्र काफी प्रचलित है।
प्रश्न 5.
पूंगी किसका प्रमुख वाद्य यंत्र है?
उत्तर:
पूंगी कालबेलियों का प्रमुख वाद्य यंत्र है।
प्रश्न 6.
राजस्थान के चार लोक वाद्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- इकतारा
- भपंग
- सारंगी
- शहनाई
प्रश्न 7.
राजस्थान के चार लोक-नृत्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- गैर नृत्य
- गींदड़ नृत्य
- चंग नृत्य
- डांडिया नृत्य
प्रश्न 8.
किस सम्प्रदाय के लोग धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं?
उत्तर:
जसनाथी सम्प्रदाय के लोग।
प्रश्न 9.
यूनेस्को ने किस लोक-नृत्य को सूचीबद्ध किया है?
उत्तर:
यूनेस्को ने कालबेलिया नृत्य को सूचीबद्ध किया है।
प्रश्न 10.
मेवाड़ में भीलों द्वारा किया जाने वाला प्रसिद्ध नृत्य कौनसा है?
उत्तर:
गवरी नृत्य।
प्रश्न 11.
ढोल नृत्य किस क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है?
उत्तर:
ढोल नृत्य जालोर का प्रसिद्ध नृत्य है।
प्रश्न 12.
जीणमाता का शक्ति पीठ कहाँ स्थित है?
उत्तर:
जीणमाता का शक्ति पीठ सीकर जिले से लगभग 32 किमी. दूर रेवासा में स्थित है।
प्रश्न 13.
करणीमाता का मन्दिर कहाँ स्थित है?
उत्तर:
करणीमाता का मन्दिर बीकानेर से लगभग 30 किमी. दूर देशनोक में स्थित है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कैलादेवी के शक्तिपीठ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
उत्तर:
कैलादेवी का शक्तिपीठ करौली से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मन्दिर में महालक्ष्मी तथा चामुण्डा माता की प्रतिमाएँ स्थित हैं। यह मन्दिर सफेद संगमरमर का बना हुआ है। कैलादेवी. के सामने हनुमान मन्दिर है जिसे लोग लांगुरिया कहते हैं। कैलादेवी करौली के यदुवंशी राजपरिवार की कुलदेवी है। चैत्र मास के नवरात्र के दौरान यहाँ हजारों की संख्या में सुहागिन स्त्रियाँ अपनी पारम्परिक वेशभूषा में कैलादेवी की पूजा-अर्चना करने और अपने सुहाग की मंगलकामना के लिए आती हैं। लांगुरिया नृत्य इस मेले का एक अन्य प्रमुख आकर्षण है।
प्रश्न 2.
त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माँ त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ बांसवाड़ा से लगभग 19 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस शक्ति पीठ की लोक में बहुत मान्यता है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर क्षेत्र में यह देवी तीर्थ ‘तरतई माता’ के नाम से जाना जाता है। वर्तमान मन्दिर के गर्भगृह में काले पत्थर की माँ त्रिपुरा की अष्टादश भुजाओं वाली भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। सिंहवाहिनी राजराजेश्वरी त्रिपुरा की 18 भुजाओं में दिव्य आयुध हैं। प्रतिमा के पृष्ठ-भाग के प्रभामण्डल में नौ छोटी-छोटी देवी मूर्तियाँ हैं। माँ के पृष्ठ भाग में योगिनियों की बहुत ही सुन्दर मूर्तियाँ अंकित हैं। पंचाल समाज माँ त्रिपुरा की कुलदेवी के रूप में उपासना करता है।
प्रश्न 3.
जीणमाता शक्तिपीठ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
जीण माता शक्तिपीठ अरावली पर्वत के बीच सीकर जिले से लगभग 32 किमी. दूर रेवासा में स्थित है। जीण |माता को माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है और इनका असली नाम जयंतीमाला है। जीण माता अष्टभुजा देवी है। मन्दिर में देवी की सफेद संगमरमर की सुन्दर और भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। मन्दिर का सभामण्डप संगमरमर के 24 स्तम्भों पर आधारित है। जीण माता अष्टभुजा वाली महिषासुर मर्दिनी के रूप में भी जानी जाती है। इस शक्तिपीठ पर चैत्र और आश्विन दोनों नवरात्राओं में देश-विदेश के श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। देवी के चमत्कार की अनेक लोक-कथाएँ जनमानस में प्रचलित हैं।
प्रश्न 4.
‘पूंगी’ नामक वाद्य यन्त्र पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पूंगी:
पूंगी एक विशेष प्रकार के तूंबे से बनता है। तूंबे का ऊपरी हिस्सा लम्बा और पतला तथा नीचे का हिस्सा गोल होता है। तूंबे के निचले गोल हिस्से में छेद कर दो नलियाँ लगाई जाती हैं। इन नलियों में स्वरों के छेद होते हैं। अलगोजे के समान ही एक नली में स्वर कायम किया जाता है और दूसरी से स्वर निकाले जाते हैं। कालबेलियों का यह प्रमुख वाद्य है।
प्रश्न 5.
घूमर लोक-नृत्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
घूमर – घूमर नृत्य समूचे राजस्थान का लोकप्रिय नृत्य है। यह नृत्य मांगलिक अवसरों तथा पर्वोत्सवों पर आयोजित होता है। यह महिलाओं का नृत्य है। इसमें लहंगा पहने – ‘स्त्रियाँ जब चक्कर लेकर गोल घेरे में नृत्य करती हैं तो उनके लहंगे का घेर और हाथों का लचकदार संचालन दर्शनीय होता है।
प्रश्न 6.
कालबेलिया नृत्य के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
कालबेलिया – राजस्थान में कालबेलिया नृत्य सपेरा जाति का एक प्रसिद्ध नृत्य है। इस नृत्य में शरीर की लोच और लय, ताल पर गति का मंत्रमुग्ध कर देने वाला तालमेल देखने को मिलता है। अधिकतर इसमें दो बालाएँ महिलाएँ बड़े घेरे वाला घाघरा और धुंघरु पहनकर नृत्य प्रस्तुत करती हैं। नृत्यांगना काले रंग की कशीदाकारी की गई पोशाक पहनती हैं, जिस पर काँच, मोती, कोड़ियाँ, कपड़े की रंगीन झालर आदि लगे होते हैं। नृत्य में पुरुषों द्वारा पूंगी और चंग बजाई जाती है। दूसरी महिला गीत |गांकर रंगत देती है। यह नृत्य मारवाड़ अंचल में काफी लोकप्रिय है। हाल ही में इस नृत्य को यूनेस्को द्वारा – सूचीबद्ध किया गया है।