RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Psychology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Psychology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Psychology Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 12 Psychology Solutions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व 

प्रश्न 1. 
आत्म क्या है ? आत्म की भारतीय अवधारणा पाश्चात्य अवधारणा से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर-
आत्म का तात्पर्य अपने संदर्भ में व्यक्ति के सचेतन अनुभवों, विचारों, चिंतन एवं भावनाओं की समग्रता से है। भारतीय सांस्कृतिक संदर्भ में आत्म का विश्लेषण अनेक महत्त्वपूर्ण पक्षों को स्पष्ट करता है जो पाश्चात्य सांस्कृतिक संदर्भ में पाए जाने वाले पक्षों से भिन्न होते हैं। भारतीय और पाश्चात्य अवधारणाओं के मध्य एक महत्त्वपूर्ण अंतर इस तथ्य को लेकर है कि आत्म और दसरे अन्य के बीच किस प्रकार सीमा रेखा निर्धारित की गई है। पाश्चात्य अवधारणा में यह सीमा रेखा अपेक्षाकृत स्थिर और दृढ़ प्रतीत होती है। 

दूसरी तरफ, भारतीय अवधारणा में आत्म और अन्य के मध्य सीमा रेखा स्थिर न होकर परिवर्तनीय प्रकृति की बताई गई है। इस प्रकार एक समय में व्यक्ति का आत्म अन्य सब कुछ को अपने में अंतर्निहित करता हुआ समूचे ब्रह्मांड में विलीन हाता हुआ प्रतीत होता है किंतु दूसरे समय में आत्म अन्य सबसे पूर्णतया विनिवर्तित होकर व्यक्तिगत आत्म (उदाहरणार्थ, हमारी व्यक्तिगत आवश्यकताएँ एवं लक्ष्य) पर केंद्रित होता हुआ प्रतीत होता है। पाश्चात्य अवधारणा आत्म और अन्य मनुष्य और प्रकृति तथा आत्मनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ के मध्य स्पष्ट द्विभाजन करती हुई प्रतीत होती है। 

भारतीय अवधारणा इस प्रकार का कोई स्पष्ट द्विभाजन नहीं करती पाश्चात्य संस्कृति में आत्म और समूह को स्पष्ट रूप से परिभाषित सीमा रेखाओं के साथ दो भिन्न इकाइयों के रूप में स्वीकार किया गया है। व्यक्ति समूह का सदस्य होते हुए भी अपनी वैयक्तिकता बनाए रखता है। भारतीय संस्कृति में आत्म को व्यक्ति के अपने समूह से पृथक नहीं किया जाता है; बल्कि दोनों सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ बने रहते हैं। दूसरी तरफ, पाश्चात्य संस्कृति में दोनों के बीच एक दूरी बनी रहती है। यही कारण है कि अनेक पाश्चात्य संस्कृतियों का व्यक्तिवादी और अनेक एशियाई संस्कृतियों का सामूहिकतावादी संस्कृति के रूप में विशेषीकरण किया जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 2. 
परितोषण के विलंब से क्या तात्पर्य है ? इसे क्यों वयस्कों के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण समझा जाता है?
अथवा 
आत्म नियमन पर संक्षेप में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
आत्म-नियमन का तात्पर्य हमारे अपने व्यवहार को संगठित और परिवीक्षण या मॉनीटर करने की योग्यता से है। जिन लोगों में बाह्य पर्यावरण की मांगों के अनुसार अपने व्यवहार को परिवर्तित करने की क्षमता होती है, वे आत्म-परिवीक्षण में उच्च होते हैं। जीवन की कई स्थितियों में स्थितिपरक दबावों के प्रति प्रतिरोध और स्वयं पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। यह संभव होता है उस चीज के द्वारा जिसे हम सामान्यतया 'संकल्प शक्ति' के रूप में जानते हैं। मनुष्य रूप में हम जिस तरह भी चाहें अपने व्यवहार को नियंत्रित कर सकते हैं। 

हम प्रायः अपनी कुछ आवश्यकताओं की संतुष्टि को विलंबित अथवा आस्थगित कर देते हैं। आवश्यकताओं के परितोषण को विलंबित अथवा आस्थगित करने के व्यवहार को सीखना ही आत्म-नियंत्रण कहा जाता है। दीर्घावधि लक्ष्यों की संप्राप्ति में आत्म-नियंत्रण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय सांस्कृतिक परंपराएँ हमें कुछ ऐसे प्रभावी उपाय प्रदान करती हैं जिससे आत्म-नियंत्रण का विकास होता है। (उदाहरणार्थ, व्रत अथवा रोजा में उपवास करना और सांसारिक वस्तुओं के प्रति अनासक्ति का भाव रखना)। आत्म-नियंत्रण के लिए अनेक मनोवैज्ञानिक तकनीकें सुझाई | गई हैं। अपने व्यवहार का प्रेक्षण एक तकनीक है जिसके द्वारा

आत्म के विभिन्न पक्षों को परिवर्तित, परिमार्जित अथवा सशक्त करने के लिए आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। आत्म-अनुदेश एक अन्य महत्त्वपूर्ण तकनीक है। हम प्रायः अपने आपको कुछ करने तथा मनोवांछित तरीके से व्यवहार करने के लिए अनुदेश देते हैं। ऐसे अनुदेश आत्म-नियमन में प्रभावी होते हैं। आत्म-प्रबलन एक तीसरी तकनीक है। इसके अंतर्गत ऐसे व्यवहार पुरस्कृत होते हैं जिनके परिणाम सुखद होते हैं। उदाहरणार्थ, यदि हमने अपनी परीक्षा में अच्छा निष्पादन किया है तो हम अपने मित्रों के साथ फिल्म देखने जा सकते हैं। ये तकनीकें लोगों द्वारा उपयोग में लाई जाती हैं और आत्म-नियमन और आत्म-नियंत्रण के संदर्भ में अत्यन्त प्रभावी मानी गई हैं।

प्रश्न 3. 
व्यक्तित्व को आप किस प्रकार परिभाषित करते हैं ? व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम कौन-से हैं ?
उत्तर-
व्यक्तित्व का तात्पर्य सामान्यतया व्यक्ति के शारीरिक एवं बाह्य रूप से होता है। मनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा व्यक्तियों और स्थितियों के प्रति अनुक्रिया की जाती है। लोग सरलता से इस बात का वर्णन कर सकते हैं कि वे किस तरीके से विभिन्न स्थितियों के प्रति अनुक्रिया करते हैं।

कुछ सूचक शब्दों (जैसे-शर्मीला, संवेदनशील, शांत, गंभीर, स्फूर्त आदि) का उपयोग प्रायः व्यक्तित्व का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ये शब्द व्यक्तित्व के विभिन्न घटकों को इंगित करते हैं। इस अर्थ में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन अनन्य एवं सापेक्ष रूप से स्थिर गुणों से है जो एक समयावधि में विभिन्न स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार की विशिष्टता प्रदान करते हैं। व्यक्तित्व व्यक्तियों की उन विशेषताओं को भी कहते हैं जो अधिकांश परिस्थितियों में प्रकट होती हैं।

व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम निम्नलिखित हैं : 
(i) प्रारूप उपागम। 
(ii) विशेषक उपागम। 
(iii) अंत:क्रियात्मक उपागम।

RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 4. 
व्यक्तित्व का विशेषक उपासक क्या है ? यह कैसे प्ररुप उपागम से भिन्न है ?
उत्तर-
ये सिद्धांत मुख्यतः व्यक्तित्व के आधारभूत घटकों के वर्णन अथवा विशेषीकरण से संबंधित होते हैं। ये सिद्धांत व्यक्तित्व का निर्माण करने वाले मूल तत्त्वों की खोज करते हैं। मनुष्य व्यापक रूप से मनोवैज्ञानिक गुणों में भिन्नताओं का प्रदर्शन करते हैं, फिर भी उनको व्यक्तित्व विशेषकों के लघु समूह में सम्मिलित किया जा सकता है। विशेषक उपागम हमारे दैनिक जीवन के सामान्य अनुभव के बहुत समान है।

उदाहरण के लिए जब हम यह जान लेते हैं कि कोई व्यक्ति सामाजिक है तो वह व्यक्ति न केवल सहयोग, मित्रता और सहायता करने वाला होगा बल्कि वह अन्य सामाजिक घटकों से युक्त व्यवहार प्रदर्शित करने में भी प्रवृत्त होगा। इस प्रकार, विशेषक उपागम लोगों की प्राथमिक विशेषताओं की पहचान करने का प्रयास करता है। एक विशेषक अपेक्षाकृत एक स्थिर और स्थायी गुण माना जाता है जिस पर एक व्यक्ति दूसरों से भिन्न होता है। इसमें संभव व्यवहारों की एक श्रृंखला अंतर्निहित होती है जिसको स्थिति की माँगों के द्वारा सक्रियता प्राप्त होती है।

विशेषक उपागम प्रारूप उपागम से भिन्न है। व्यक्तित्व के प्रारूप समानताओं पर आधारित प्रत्याशित व्यवहारों के एक समुच्चय का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्राचीन काल से ही लोगों को व्यक्तित्व के प्ररुपों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया है। हिप्पोक्रेटस ने एक व्यक्तित्व का प्ररुप विज्ञान प्रस्तावित किया जो फ्लूइड अथवा ह्यूमस पर आधारित है। उन्होंने लोगों को चार प्रारूपों में वर्गीकृत किया है जैसे-उत्साही, श्लैष्मिक, विवादी और कोपशील। प्रत्येक प्रारूप विशिष्ट व्यवहारपरक विशेषताओं वाला होता है।

प्रश्न 5. 
फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना की व्याख्या कैसे की है ?
उत्तर-
फ्रायड के सिद्धांत के अनुसार व्यक्तित्व के प्राथमिक संरचनात्मक तत्व तीन हैं-इदम् या इड, अहं और पराहम्। ये तत्त्व अचेतन में ऊर्जा के रूप में होते हैं और इनके बारे में लोगों द्वारा किए गए व्यवहार के तरीकों से अनुमान लगाया जा सकता है। इड, अहं और परामहम् संप्रत्यय हैं न कि वास्तविक भौतिक संरचनाएँ।

इड-यह व्यक्ति की मूल प्रवृत्तिक ऊर्जा का स्रोत होता है। इसका संबंध व्यक्ति की आदिम आवश्यकताओं, कामेच्छाओं और आक्रामक आवेगों की तात्कालिक तुष्टि से होता है। यह सुखेप्सा-सिद्धांत पर कार्य करता है जिसका यह अभिग्रह होता है कि लोग सुख की तलाश करते हैं और कष्ट का परिहार करते हैं। फ्रायड के अनुसार मनुष्य की अधिकांश मूलप्रवृत्तिक ऊर्जा कामुक होती है और शेष ऊर्जा आक्रामक होती है। इड को नैतिक मूल्यों, समाज और दूसरे लोगों की कोई परवाह नहीं होती है।

अहं-इसका विकास इड से होता है और यह व्यक्ति की मूलप्रवृत्तिक आवश्यकताओं को संतुष्टि वास्तविकता के धरातल पर करता है। व्यक्तित्व की यह संरचना वास्तविकता सिद्धांत से संचालित होती है और प्रायः इड को व्यवहार करने के उपयुक्त तरीकों की तरफ निर्दिष्ट करता है। उदाहरण के लिए एक बालक का इड जो आइसक्रीम खाना चाहता है उससे कहता है कि आइसक्रीम झटक कर खा ले। उसका अहं उससे कहता है कि दुकानदार से पूछे बिना यदि आइसक्रीम लेकर वह खा लेता है तो | वह दंड का भागी हो सकता है। वास्तविकता सिद्धांत पर कार्य

करते हुए बालक जानता है कि अनुमति लेने के बाद ही आइसक्रीम खाने की इच्छा को संतुष्ट करना सर्वाधिक उपयुक्त होगा। इस प्रकार इड की माँग अवास्तविक और सुखेप्सा सिद्धांत से संचालित होती है. अहं धैर्यवान, तर्कसंगत तथा वास्तविकता सिद्धांत से संचालित होता है। · पराहम्-पराहम् को समझने का और इसकी विशेषता बताने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसको मानसिक प्रकार्यों की नैतिक शाखा के रूप में जाना जाए।

पराहम् इड और अहं को बताता है कि किसी विशिष्ट अवसर पर इच्छा विशेष की संतुष्टि नैतिक है अथवा नहीं। समाजीकरण की प्रक्रिया में पैतृक प्राधिकार के आंतरिकीकरण द्वारा पराहम् इड को नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बालक आइसक्रीम देखकर उसे खाना चाहता है, तो वह इसके लिए अपनी माँ से पूछता है। उसका पराहम् संकेत देता है कि उसका यह व्यवहार नैतिक दृष्टि से सही है। इस तरह के व्यवहार के माध्यम से आइसक्रीम को प्राप्त करने पर बालक में कोई अपराध-बोध, भय अथवा दुश्चिता नहीं होगी।

इस प्रकार व्यक्ति के प्रकार्यों के रूप में फ्रायड का विचार था कि मनुष्य का अचेतन तीन प्रतिस्पर्धी शक्तियों अथवा ऊर्जाओं से निर्मित हुआ है। कुछ लोगों में इड पराहम् से अधिक प्रबल होता है तो कुछ अन्य लोगों में पराहम् इड से अधिक प्रबल होता है। इड, अहं और पराहम् की सापेक्ष शक्ति प्रत्येक व्यक्ति की स्थिरता का निर्धारण करती है।

RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

फ्रायड के अनुसार इड को दो प्रकार की मूलप्रवृत्तिक शक्तियों से ऊर्जा प्राप्त होती है जिन्हें जीवन-प्रवृत्ति एवं मुमूर्षा या मृत्यु-प्रवृत्ति के नाम से जाना जाता है। उन्होंने मृत्यु-प्रवृत्ति के स्थान पर जीवन-प्रवृत्ति (अथवा काम) को केंद्र में रखते हुए अधिक महत्त्व दिया है। मूलप्रवृत्तिक जीवन-शक्ति जो इड को ऊर्जा प्रदान करती है कामशक्ति या लिबिडो कहलाती है। लिबिडो सुखेप्सा-सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है और तात्कालिक संतुष्टि चाहता है।
RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व 1

प्रश्न 6. 
हार्नी की अवसाद की व्याख्या अल्फ्रेड एडलर की व्याख्या से किस प्रकार भिन्न है ?
अथवा 
कैरेन हानी के आशावाद और एडलर के व्यष्टि मनोविज्ञान सिद्धांत की तुलना कीजिए।
उत्तर-
हार्नी की अवसाद की व्याख्या अल्फ्रेड एडलर की व्याख्या से भिन्न है। एडलर के सिद्धांत को व्यष्टि या वैयक्तिक मनोविज्ञान के रूप में जाना जाता है। उनका आधारभूत अभिग्रह यह है कि व्यक्ति का व्यवहार उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्योन्मुख होता है। हममें से प्रत्येक में चयन करने एवं सर्जन करने की क्षमता होती है। हमारे व्यक्तिगत लक्ष्य ही हमारी अभिप्रेरणा के स्रोत होते हैं।

जो लक्ष्य हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं और हमारी अपर्याप्तता की भावना पर विजय प्राप्त करने में हमारी सहायता करते हैं, वे हमारे व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एडलर के विचार से प्रत्येक व्यक्ति अपर्याप्तता और अपराध की भावनाओं से ग्रसित होता है। इसे हम हीनता मनोग्रंथि के नाम से जानते हैं जो बाल्यावस्था में उत्पन्न होती है। इस मनोग्रंथि पर विजय प्राप्त करना इष्टतम व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है।

हार्नी ने मानव संवृद्धि और आत्मसिद्धि पर बल देते हुए मानव जीवन के एक आशावादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। हार्नी ने फ्रायड के इस विचार को कि महिलाएँ हीन होती हैं. चुनौती दी है। उनके अनुसार, प्रत्येक लिंग के व्यक्तियों में गुण होते हैं जिसकी प्रशंसा विपरीत लिंग के व्यक्तियों को करनी चाहिए तथा किसी भी लिंग के व्यक्तियों को श्रेष्ठ अथवा हीन नहीं समझा जाना चाहिए। प्रतिरोध स्वरूप उनका यह विचार था कि महिलाएँ जैविक कारकों की तुलना में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों से अधिक प्रभावित होती हैं। 

उन्होंने यह तर्क प्रस्तुत किया कि मनोवैज्ञानिक विकार बाल्यावस्था की अवधि में विक्षुब्ध अंतर्वैयक्तिक संबंधों के कारण उत्पन्न होते हैं। यदि माता-पिता का अपने बच्चे के प्रति व्यवहार उदासीन, हतोत्साहित करने वाला और अनियमित होता है तो बच्चा असुरक्षित महसूस करता है जिसके परिणामस्वरूप एक ऐसी भावना जिसे मूल दुश्चिता कहते हैं, उत्पन्न होती है। इस दुश्चिता के कारण माता-पिता के प्रति बच्चे में एक गहन अमर्ष और मूल आक्रामकता घटित होती है। अत्यधिक प्रभुत्व अथवा उदासीनता का प्रदर्शन कर एवं अत्यधिक अथवा अत्यंत कम अनुमोदन प्रदान कर माता-पिता बच्चों में एकाकीपन और असहायता की भावनाएँ उत्पन्न करते हैं जो उनके स्वास्थ्य विकास में बाधक होते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 7. 
व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम की प्रमुख प्रतिज्ञप्ति क्या है ? आत्मसिद्धि से मैस्लो का क्या तात्पर्य था?
उत्तर-
मानवतावादी सिद्धांत मुख्यतः फ्रायड के सिद्धांत के प्रत्युत्तर में विकसित हुए। व्यक्तित्व के संदर्भ में मानवतावादी परिप्रेक्ष्य के विकास में कार्ल रोजर्स और अब्राहम मैस्लो ने विशेष रूप से योगदान किया है। रोजर्स द्वारा प्रस्तावित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विचार एक पूर्णत: प्रकार्यशील व्यक्ति का है। उनका विश्वास है कि व्यक्तित्व के विकास के लिए संतुष्टि अभिप्ररेक शक्ति है। लोग अपनी क्षमताओं, संभाव्यताओं और प्रतिभाओं को संभव सर्वोत्कृष्ट तरीके से अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं।

व्यक्तियों में एक सहज प्रवृत्ति होती है जो उन्हें अपने वंशागत प्रकृति की सिद्धि या प्राप्ति के लिए निर्दिष्ट करती है। मानव व्यवहार के बारे में रोजर्स ने दो आधारभूत अभिग्रह निर्मित किए हैं। एक यह कि व्यवहार लक्ष्योन्मुख और सार्थक होता है और दूसरा यह कि लोग (जो सहज रूप से अच्छे होते हैं) सदैव अनुकूली तथा आत्मसिद्धि वाले व्यवहार का चयन करेंगे।

रोजर्स का सिद्धांत उनके निदानशाला में रोगियों को सुनते हुए प्राप्त अनुभवों से विकसित हुआ है। उन्होंने यह ध्यान दिया कि उनके सेवार्थियों के अनुभव में आत्म एक महत्त्वपूर्ण तत्व था। इस प्रकार, उनका सिद्धांत आत्म के संप्रत्यय के चतुर्दिक संरचित है। उनके सिद्धांत का अभिग्रह है कि लोग सतत अपने वास्तविक आत्म की सिद्धि या प्राप्ति की प्रक्रिया में लगे रहते हैं। रोजर्स ने सुझाव दिया है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास आदर्श अहं या आत्म का एक संप्रत्यय होता है। एक आदर्श आत्म वह आत्म होता है जो कि एक व्यक्ति बनना अथवा होना चाहता है।

जब वास्तविक आत्म और आदर्श आत्म के बीच समरूपता होती है तो व्यक्ति सामान्यतया प्रसन्न रहता है किंतु दोनों प्रकार के आत्म के बीच विसंगति के कारण प्रायः अप्रसन्नता और असंतोष की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। रोजर्स का एक आधारभूत सिद्धांत है कि लोगों में आत्मसिद्धि के माध्यम से आत्म-संप्रत्यय को अधिकतम सीमा तक विकसित करने की प्रवृत्ति होती है। इस प्रक्रिया में आत्म विकसित, विस्तारित और अधिक सामाजिक हो जाता है। 

रोजर्स व्यक्तित्व-विकास को एक सतत् प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। इसमें अपने आपका मूल्यांकन करने का अधिगम और आत्मसिद्धि की प्रक्रिया में प्रवीणता सन्निहित होती है। आत्म-संप्रत्यय के विकास में सामाजिक प्रभावों की भूमिका को उन्होंने स्वीकार किया है। जब सामाजिक दशाएँ अनुकूल होती हैं, तब आत्म-संप्रत्यय और आत्म-सम्मान उच्च होता है। इसके विपरीत, जब सामाजिक दशाएँ प्रतिकूल होती हैं, तब आत्म-संप्रत्यय और आत्म-सम्मान निम्न होता है। उच्च आत्म-संप्रत्यय और उच्च आत्म-सम्मान रखने वाले लोग सामान्यता नम्य एवं नए अनुभवों के प्रति मुक्त भाव से ग्रहणशील होते हैं ताकि वे अपने सतत् विकास और आत्मसिद्धि में लगे रह सकें।

मैस्लो ने आत्मसिद्धि की लब्धि या प्राप्ति के रूप में मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ लोगों की एक विस्तृत व्याख्या दी है। आत्मसिद्धि वह अवस्था होती है जिसमें लोग अपनी संपूर्ण संभाव्यताओं को विकसित कर चुके होते हैं। मैस्लो ने मनुष्यों का एक आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया है जिसके अंतर्गत मानव में प्रेम, हर्ष और सर्जनात्मक कार्यों को करने की संभाव्यता होती है।

मनुष्य अपने जीवन को स्वरूप देने में और आत्मसिद्धि को प्राप्त करने में स्वतंत्र माने गए हैं। अभिप्रेरणाओं, जो हमारे जीवन को नियमित करती हैं, के विश्लेषण के द्वारा आत्मसिद्धि को संभव बनाया जा सकता है। हम जानते हैं कि जैविक, सुरक्षा और आत्मीयता की आवश्यकताएँ (उत्तरजीविता आवश्यकताएँ) पशुओं और मनुष्यों दोनों में पाई जाती हैं। अतएव किसी व्यक्ति का मात्र इन आवश्यकताओं की संतुष्टि में संलग्न होना उसे पशुओं के स्तर पर ले आता है। मानव जीवन की वास्तविक यात्रा आत्म-सम्मान और आत्मसिद्धि जैसी आवश्यकताओं के अनुसरण से आरंभ होती है। मानवतावादी उपागम जीवन के सकारात्मक पक्षों के महत्त्व पर बल देता है।

प्रश्न 8.
व्यक्तित्व मूल्यांकन में प्रयुक्त की जाने वाली प्रमुख प्रेक्षण विधियों का विवेचन करें। इन विधियों के उपयोग में हमें किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
अथवा 
व्यवहारपरक प्रेक्षण से आपका क्या तात्पर्य है ? प्रेक्षण और साक्षात्कार विधियों में पाई जाने वाली सीमाओं को भी लिखिए।
उत्तर-
व्यवहारपरक प्रेक्षण एक अन्य विधि है जिसका व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए बहुत अधिक उपयोग किया जाता है। यद्यपि हम लोगों को ध्यानपूर्वक देखते हैं और उनके व्यक्तित्व के प्रति छवि निर्माण करते हैं तथापि व्यक्तित्व मूल्यांकन के लिए प्रेक्षण विधि का उपयोग एक अत्यंत परिष्कृत प्रक्रिया है जिसको अप्रशिक्षित लोगों के द्वारा उपयोग में नहीं लाया जा सकता है।

इसमें प्रेक्षक का विशिष्ट प्रशिक्षण और किसी व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए व्यवहारों के विश्लेषण के बारे में विस्तृत मार्गदर्शी सिद्धांत भी अपेक्षित होते हैं। उदाहरण के लिए, एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक अपने सेवार्थी की उसके परिवार के सदस्यों और गृहवीक्षकों या अतिथियों के साथ होने वाली अंतःक्रियाओं का प्रेक्षण कर सकता है। सावधानी से अभिकल्पित प्रेक्षण के साथ एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक अपने सेवार्थी के व्यक्तित्व के बारे में पर्याप्त अंतर्दृष्टि विकसित कर सकता है।

बारंबार और व्यापक उपयोग के बाजवूद भी प्रेक्षण और साक्षात्कार विधियों में निम्नलिखित सीमाएँ पाई जाती हैं :
(i) इन विधियों द्वारा उपयोगी प्रदत्त के संग्रह के लिए अपेक्षित व्यावसायिक प्रशिक्षण कठिन और समयसाध्य होता है।
(ii) इन तकनीकों द्वारा वैध प्रदत्त प्राप्त करने के लिए मनावैज्ञानिक में भी परिपक्वता आवश्यक होती है।
(iii) प्रेक्षक की उपस्थिति मात्र परिणामों को दूषित कर सकती है। एक अपरिचित के रूप में प्रेक्षक प्रेक्षण किए जाने वाले व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है जिसके कारण प्राप्त प्रदत्त अनुपयोगी हो सकते हैं। 

RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 9. 
संरचित व्यक्तित्व परीक्षणों से क्या तात्पर्य है? व्यापक रूप से उपयोग किए गए दो संरचित व्यक्तित्व परीक्षण कौन से हैं ?
उत्तर-
संरचित व्यक्तित्व परीक्षणों से तात्पर्य आत्म-प्रतिवेदन मापों से है। ये माप उचित रूप से संरचित होते हैं और प्रायः ऐसे सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं जिनमें प्रयोज्यों को किसी प्रकार की निर्धारण मापणी पर शाब्दिक अनुक्रियाएँ देनी होती है। व्यापक रूप से उपयोग दिए गए दो संरचित व्यक्तित्व परीक्षण हैं :
(i) मिनेसोटा बहुपक्षीय व्यक्तित्व सूची (एम.एम.पी.आई.)। 
(ii) सोलह व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली (16 पी.एफ.)।

प्रश्न 10. 
व्याख्या कीजिए कि प्रक्षेपी तकनीक किस प्रकार व्यक्तित्व का मूल्यांकन करती है ? कौन-से व्यक्तित्व के प्रक्षेपी परीक्षण मनोवैज्ञानिकों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग में लाए गए हैं ?
उत्तर-
प्रक्षेपी तकनीकों का विकास अचेतन अभिप्रेरणाओं और भावनाओं का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। ये तकनीकें इस अभिग्रह पर आधारित हैं कि कम संरचित अथवा असंचरित उद्दीपक अथवा स्थिति व्यक्तियों को अपनी भावनाओं, इच्छाओं और आवश्यकताओं को उस स्थिति पर प्रक्षेपन करने का अवसर प्रदान करता है। विभिन्न प्रकार की प्रक्षेपी तकनीकें विकसित की गई हैं जिनमें व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए विभिन्न प्रकार की उद्दीपक सामग्रियों और स्थितियों का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ तकनीकों में उद्दीपकों के साथ प्रयोज्य को अपने साहचर्यों को बताने की आवश्यकता होती है, कुछ में चित्रों को देखकर कहानी लिखनी होती है. कुछ में वाक्यों को पूरा करने की आवश्यकता होती है, कुछ में आरेखों द्वारा

RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व 2

अभिव्यक्ति अपेक्षित होती है और कुछ में उद्दीपकों के एक वृहत् समुच्चय में से उद्दीपकों का वरण करने के लिए कहा जाता है। रोर्शा मसिलक्ष्म परीक्षण को मनोवैज्ञानिकों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग में लाया गया है। रोर्शा परीक्षण में 10 मसिलक्ष्म या स्याही-धब्बे होते हैं। उनमें से पाँच काले और सफेद रंगों के हैं, दो कुछ लाल स्याही के साथ हैं और बाकी तीन पेस्टल रंगों के हैं। धब्बे एक विशिष्ट आकृति या आकार रूप में दिए गए हैं। प्रत्येक धब्बा 7" x 10" के आकार के एक सफेद कार्ड बोर्ड के केंद्र में मुद्रित (छपा हुआ) है। ये धब्बे मूलतः एक कागज के पन्ने पर स्याही गिराकर फिर उसे आधे पर से मोड़कर बनाए गए थे (इसलिए इन्हें मसिलक्ष्म परीक्षण कहा जाता है)। 

इन काडौँ को व्यक्तिगत रूप से प्रयोज्यों को दो चरणों में दिखाया जाता है। पहले चरण को निष्पादन मुख्य अथवा उपयुक्त कहते हैं जिसमें प्रयोज्यों को कार्ड दिखाए जाते हैं और उनसे पूछा जाता है कि प्रत्येक कार्ड में वे क्या देख रहे हैं। दूसरे चरण को पूछताछ कहा जाता है जिसमें प्रयोज्य से यह पूछकर कि कहाँ, केसे और किस आधार पर कोई विशिष्ट अनुक्रिया उनके द्वारा की गई है, इस आधार पर उनकी अनुक्रियाओं का एक विस्तृत विवरण तैयार किया जाता है। प्रयोज्य की अनुक्रियाओं को एक सार्थक संदर्भ में रखने के लिए बिल्कुल ठीक या सटीक निर्णय आवश्यक है। इस परीक्षण के उपयोग और व्याख्या के लिए विस्तृत प्रशिक्षण आवश्यक होता है। प्रदत्तों की व्याख्या के लिए कंप्यूटर तकनीकों को भी विकसित किया गया है।

प्रश्न 11. 
अरिहन्त एक गायक बनना चाहता है, इसके बावजूद कि वह चिकित्सकों के एक परिवार से संबंध रखता है। यद्यपि उसके परिवार के सदस्य दावा करते हैं कि वे उसको प्रेम करते हैं किंतु वे उसकी जीवनवृत्ति को दृढ़ता से अस्वीकार कर देते हैं। कार्ल रोजर्स की शब्दावली का उपयोग करते हुए अरिहन्त के परिवार द्वारा प्रदर्शित अभिवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अरिहन्त के परिवार द्वारा प्रदर्शित अभिवृत्तियाँ अरिहन्त के लिए उचित नहीं है। अरिहन्त की इच्छा के खिलाफ उसके परिवार वाले उसे डॉक्टर बनाना चाहते हैं जो कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उसके लिए ठीक नहीं है। यहाँ कार्ल रोजर्स द्वारा प्रस्तावित मानवतावादी सिद्धांत को समझना आवश्यक है। रोजर्स द्वारा प्रस्तावित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विचार एक पूर्णतः प्रकार्यशील व्यक्ति का है। उनका विश्वास है कि व्यक्तित्व के विकास के लिए संतुष्टि अभिप्रेरक शक्ति है। लोग अपनी क्षमताओं, संभाव्यताओं और प्रतिभावों को संभव सर्वोत्कृष्ट तरीके से अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं। व्यक्तियों में सहज प्रवृत्ति होती है जो उन्हें अपनी वंशागत प्रकृति की सिद्धि या प्राप्ति के लिए निर्दिष्ट करती है। 

मानव व्यवहार के बारे में रोजर्स ने दो आधारभूत अभिग्रह निर्मित किए हैं। एक यह है कि व्यवहार लक्ष्योन्मुख और सार्थक होता है और दूसरा यह है कि लोग सदैव अनुकूली तथा आत्मसिद्धि वाले व्यवहार का चयन करेंगे। रोजर्स ने सुझाव दिया है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास आदर्श अहं या आत्म का एक संप्रत्यय होता है। एक आदर्श आत्म वह होता है कि जो कि एक व्यक्ति बनना अथवा होना चाहता है। जब वास्तविक आत्म और आदर्श आत्म के बीच समष्ठता होती है तो व्यक्ति सामान्यतया प्रसन्न रहता है। किंतु दोनों प्रकार के आत्म के बीच विसंगति के कारण प्रायः

अप्रसन्नता और असंतोष की भावनाएँ उत्पन्न होती है। रोजर्स का आधारभूत सिद्धांत है कि लोगों में आत्मसिद्धि के माध्यम से आत्म-संप्रत्यय को अधिकतम सीमा तक विकसित करने की प्रवृति होती है। इस प्रक्रिया में आत्म विकसित, विस्तारित और अधिक सामाजिक हो जाता है। रोजर्स व्यक्तित्व विकास को एक सतत् प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। इसमें अपने आपका मूल्यांकन करने का अधिगम और आत्मसिद्धि की प्रक्रिया में प्रवीगता सन्निहित होती है। आत्म-संप्रत्यय के विकास में सामाजिक प्रभावों की भूमिका को उन्होंने स्वीकार किया है। 

RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

जबकि सामाजिक दशाएँ अनुकूल होती है, तब आत्म-संप्रत्यय और आत्म-सम्मान उच्च होता है। इसके विपरीत, जब सामाजिक दशाएँ प्रतिकूल होती है, तब आत्म संप्रत्यय और आत्म सम्मान निम्न होता है। उच्च आत्म संप्रत्यय और उच्च आत्म-सम्मान रखने वाले लोग सामान्यतया नम्य एवं नए अनुभवों के प्रति मुक्त भाव से ग्रहणशील होते हैं ताकि वे अपने सतत विकास और आत्मसिद्धि में लगे रह सकें।

Bhagya
Last Updated on Sept. 27, 2022, 5:26 p.m.
Published Sept. 27, 2022