RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

RBSE Class 12 History उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन InText Questions and Answers

(पृष्ठ सं. 262)

प्रश्न 1. 
साथ दिए गए पाठ को सावधानीपूर्वक पढ़िए और तीर के निशानों के साथ-साथ उपयुक्त स्थलों पर ये शब्द भरिए-लगान, राजस्व, ब्याज, उधार (ऋण), उपज।
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उत्तर:
(1) लगान-रैयत, 
(2) राजस्व-कम्पनी राज,
(3) ब्याज-रैयत, 
(4) उधार-रैयत तथा 
(5) उपज-रैयत ।

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(पृष्ठ सं. 265) 

प्रश्न 2. 
आपने जमींदारों के बारे में अभी जो कुछ पढ़ा है उसकी तुलना अध्याय-8 में दिए गए विवरण से कीजिए।
उत्तर:
यहाँ जमींदारों में अत्यधिक भिन्नता है। इस अध्याय में वर्णित जींदार औपनिवेशिक प्रवृत्ति के हैं, जबकि अध्याय-8 में वर्णित जमींदार प्रजातान्त्रिक प्रवृत्ति के थे।

(पृष्ठ सं. 267) 

प्रश्न 3. 
देखिए और यह पता लगाइए कि होजेज ने राजमहल की पहाड़ियों को किसलिए रमणीय माना था?
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उत्तर:
होजेज चित्रकार तथा प्रकृति-प्रेमी था। यहाँ दिखाया गया चित्र प्रकृति के अत्यधिक समीप है। यहाँ प्रकृति का अत्यधिक रमणीय चित्र बनाया गया है क्योंकि राजमहल की पहाड़ियाँ उसे प्रकृति के अत्यधिक समीप लगी।

(पृष्ठ सं. 268) 

प्रश्न 4. 
देखिए। इन चित्रों द्वारा जनजातीय मनुष्य और प्रकृति के बीच के सम्बन्धों को किस प्रकार दर्शाया गया है? वर्णन कीजिए।
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उत्तर:
पाठ्यपुस्तक में दिखाए गए दोनों चित्रों को.देखने से यह प्रतीत होता है कि जनजातियों का जीवन जंगलों से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। जनजातीय लोग दुर्गम स्थानों पर निवास करते थे तथा उनका पूरा जीवन ही जंगल से प्राप्त होने वाले पदार्थों पर निर्भर था। इन चित्रों के माध्यम से जनजातियों एवं प्रकृति के मध्य सुन्दर सामंजस्य को दर्शाया गया है। - 

(पृष्ठ सं. 270) 

प्रश्न 5. 
इस संथाल गांव के चित्र की तुलना कीजिए।
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उत्तर:
कृपया नीचे दिए गये चित्र  को देखिये। 
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अत्यधिक सुन्दर तथा रमणीय है। जहाँ प्रकृति को संथालों के अत्यधिक समीप देखा जा सकता है, जबकि  संथालों की अत्यधिक भयावह तस्वीर दिखाई गयी है।

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(पृष्ठ सं. 273) 

प्रश्न 6. 
कल्पना कीजिए कि आप 'इलस्ट्रेटेड लंडन न्यूज' के पाठक हैं। चित्रित दृश्यों के प्रति आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी ? इन चित्रों से आपके मन में संथालों की क्या-क्या छवि बनती है?
उत्तर:
(1) संथालों को लड़ते हुए दिखाया गया है जिसमें अनेक संथाल घायल अवस्था में तथा मरे हुए दिखाई देते हैं जो स्पष्ट करते हैं कि ब्रिटिश सरकार ने इन भोले-भाले संथालों से बर्बरतापूर्वक युद्ध किया। 
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(2)संथालों को अपने क्षेत्र से पलायन करते हुए दिखाया गया है जो कि ब्रिटिश सरकार की बर्बरता का परिणाम था।
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(3) संथालों की अत्यन्त भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है जिसमें संथालों को बंधक बनाकर ले जाया जा रहा है।
पाठ्यपुस्तक में दिए गए तीनों चित्रों को देखने के पश्चात् ब्रिटिश समाचार-पत्र इलस्ट्रेटेड लन्दन न्यूज के पाठक होने के नाते हमारे मन में यह विचार उत्पन्न होंगे कि संथाल लोग बर्बर एवं असभ्य हैं। जिस ब्रिटिश सरकार ने उन्हें विभिन्न सुविधाएँ प्रदान कर बसाया है उन्होंने उनके विरुद्ध ही विद्रोह कर दिया जो कि अनुचित है। इसलिए विद्रोह को दबाने में सरकार द्वारा की गयी कार्यवाही उचित एवं न्यायपूर्ण प्रतीत होती है।
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(पृष्ठ सं. 280) 

प्रश्न 7. 
तीन भाग हैं जिनमें कपास ढोने के भिन्न-भिन्न साधन दर्शाये गये हैं। चित्र में कपास के बोझ से दबे जा रहे बैलों, सड़क पर पड़े शिलाखण्डों और नौका पर लदी गाँठों के विशाल ढेर को देखिये। कलाकार इन तस्वीरों के जरिए क्या दर्शाना चाहता है ?
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उत्तर:
(1) चित्र में कपास का परिवहन दो प्रकार से, यथा-सड़क मार्ग से तथा नदी मार्ग से दिखाया गया है। 
(2) चित्र बताते हैं कि ब्रिटिश, मानवों पर ही नहीं अपितु जानवरों पर भी जुल्म करते थे। 
(3) उनकी नीतियों के कारण बलपूर्वक कपास देश के कोने-कोने से प्राप्त किया जाने लगा तथा जिसका निर्यात पूर्णरूप से ब्रिटेन को होता था।

(पृष्ठ सं. 282) 

प्रश्न 8. 
रैयत अपनी अर्जी में क्या शिकायत कर रहे हैं ? ऋणदाता द्वारा किसान से ले जाई जाने वाली फसल उसके खाते में क्यों नहीं चढ़ाई जाती? किसानों को कोई रसीद क्यों नहीं दी जाती? यदि आप ऋणदाता होते तो इन व्यवहारों के लिये आप क्या-क्या कारण देते ? 
उत्तर:
1. रैयत अपनी अर्जी में साहूकारों के अपने प्रति अत्याचारों का वर्णन कर रहे हैं। 
2. साहूकार बेईमान प्रवृत्ति के हैं अतः किसानों को न तो कोई रसीद देते हैं और न ही उसे अपने लेखों में स्थान देते हैं। 
3. यदि हम ऋणदाता होते तो यही कहते कि हम रैयत को सही कीमत पर सामान आदि देते हैं और उसकी रसीद भी देते हैं। जब हम अपना उधार वापस माँगते हैं तो किसान आनाकानी करते हैं एवं हमारी झूठी शिकायत कर देते हैं।

(पृष्ठ सं. 283) 

प्रश्न 9. 
उन सभी वचनबद्धताओं की सूची बनाइए जी किसान इस दस्तावेज में दे रहा है। ऐसा कोई दस्तावेज हमें किसान और ऋणदाता के बीच के सम्बन्धों के बारे में क्या बताता है? इससे किसान और बैलों (जो पहले उसी के थे) के बीच के सम्बन्धों में क्या अन्तर आएगा?
उत्तर:
किसान स्रोत-8 में निम्नलिखित वचनबद्धताओं की सूची दे रहा है

  1. अपनी जमीन, 
  2. अपनी गाड़ियाँ, 
  3. अपना पशुधन।

यह दस्तावेज हमें बताता है कि ऋणदाता पूर्णरूप से किसानों का शोषण कर रहे थे। अब बैल किसान के अपने नहीं बल्कि साहूकार के हो गये थे।

(पृष्ठ सं. 284) 

प्रश्न 10.
ब्याज की उस मद का हिसाब लगाइये जो रैयत इन वर्षों में दे रहा था? 
उत्तर:
रैयत 13 से 19 प्रतिशत मासिक की दर से ब्याज दे रहा था।

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RBSE Class 12 History उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1. 
ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों था ?
अथवा 
अठारहवीं शताब्दी के अन्त में ग्रामीण बंगाल के बहुत-से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों थे? दो कारण दीजिए।
उत्तर:
18वीं शताब्दी तक बंगाल (विशेषकर उत्तरी बंगाल) में धनी जमींदारों का उदय हो भी चुका था। इन जोतदारों के पास कई हजार एकड़ भूमि होती थी। इनका स्थानीय व्यापार तथा साहूकारों के कारोबार पर नियंत्रण था। जमीन का बड़ा भाग बटाईदारों द्वारा जोता जाता था जो उपज का आधा भाग जोतदारों को देते थे। गाँवों में जोतदार की शक्ति, जमींदार की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी।

जमींदार शहरी क्षेत्रों में रहते थे, इसके विपरीत जोतदार गाँवों में ही रहते थे तथा निर्धन ग्रामवासियों के काफी बड़े वर्ग पर सीधे अपने नियन्त्रण का प्रयोग करते थे। उत्तरी बंगाल में जोतदार सबसे अधिक शक्तिशाली थे, हालाँकि धनी किसान तथा गाँव के मुखिया लोग भी बंगाल के अन्य भागों के देहाती क्षेत्रों में प्रभावशाली बनकर उभर रहे थे। कुछ जगहों पर उन्हें 'हवलदार' कहा जाता था तथा कुछ अन्य स्थानों पर वे 'गाँटीदार' अथवा 'मंडल' कहलाते थे। उनके उदय से जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना अवश्यम्भावी था।

प्रश्न 2. 
जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर किस प्रकार नियन्त्रण बनाये रखते थे ?
उत्तर:
ब्रिटिश शासनकाल में जमींदार अपनी जमींदारी पर नियन्त्रण बनाये रखने के लिये अनेक उपाय करते थे, जैसेफर्जी बिक्री। बद्रवान जिले के राजा ने अपनी जमींदारी बचाने के लिए पहले तो अपनी जमींदारी का कुछ भाग अपनी माँ को दे दिया क्योंकि कम्पनी ने यह निर्णय ले रखा था कि महिलाओं की सम्पत्ति को नहीं छीना जायेगा। इसके उपरान्त एजेण्टों ने नीलामी रा था?

की प्रक्रिया में जोड़-तोड़ किया। कम्पनी की राजस्व माँग को जान-बूझकर रोक लिया गया, भुगतान नहीं की गयी राशि बढ़ती गयी। जब भू-सम्पदा का कुछ भाग नीलाम किया गया तो जमींदार के आदमियों ने अन्यों के मुकाबले ऊँची-ऊँची बोलियाँ लगाकर सम्पत्ति को खरीद लिया। आगे चलकर खरीद की राशि अदा करने से मना कर दिया। अतः भू-सम्पदा को पुन: बेचना पड़ा। यही प्रक्रिया पुनः पुनः दोहराई जाती रही। अन्त में सम्पदा को नीची कीमत पर जमींदार को ही बेचना पड़ा। जब कोई बाहरी व्यक्ति नीलामी में कोई जमीन खरीद लेता तो उसे उसका कब्जा नहीं मिलता था। कभी-कभी तो पुराने जमींदारों के लठैत बाहरी व्यक्तियों को मार-मार कर भगा देते थे।

प्रश्न 3. 
पहाड़िया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शाई ?
उत्तर:
पहाड़िया लोग विशेषकर कम्पनी के व्यक्तियों को अधिक शंका की दृष्टि से देखते थे। अतः वे उनसे बात करने से बचते थे। एक अंग्रेज चिकित्सक तथा अधिकारी फ्रांसिस बुकानन राजमहल की पहाड़ी पर गया वहाँ उसने स्थानीय निवासियों के व्यवहार को अपने प्रति शत्रुतापूर्ण पाया। पहाड़िया बराबर उन मैदानों पर आक्रमण करते रहते थे, जहाँ कृषक एक स्थान पर बसकर अपनी कृषि करते थे।

पहाड़िया व्यक्तियों द्वारा ये आक्रमण ज्यादातर अपने आपको विशेष रूप से अभाव अथवा अकाल के वर्षों में जीवित रखने के लिये किये जाते थे। इसके साथ ये हमले मैदानों में बसे हुए समुदायों पर अपनी ताकत दिखाने का एक माध्यम भी थे। मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले जमींदारों को प्रायः पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देकर शान्ति खरीदनी पड़ती थी। इसी प्रकार व्यापारी लोग भी इन पहाड़ी व्यक्तियों द्वारा नियन्त्रित मार्गों का प्रयोग करने के लिये उन्हें कुछ पथकर दिया करते थे। 

प्रश्न 4.
संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?
अथवा 
18वीं शताब्दी के दौरान संथालों ने अंग्रेजों का प्रतिरोध क्यों किया? तीन कारण लिखिए। 
अथवा 
संथालों ने जमींदारों और औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया? दो कारण दीजिए। 
उत्तर:
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने संथालों को स्थायी कृषि के लिए राजमहल की पहाड़ियों में दामिन-ए-कोह के नाम से भूमि दी थी। संथाल जनजाति ने जिस भूमि को कृषि योग्य बनाया उस पर कृषि करना आरम्भ कर दिया, परन्तु उस पर ब्रिटिश सरकार भारी कर लगा रही थी। बाहरी व्यक्ति अथवा साहूकार, जिसे संथाल दिकू कहा करते थे, संथालों को अत्यधिक ऊँची दर पर कर्ज दिया करते थे। कर्ज न चुका पाने की स्थिति में वे अपनी जमीन से हाथ धो बैठते थे। संथाल लोग, 1850 के दशक तक यह महसूस करने लगे कि अपने लिये एक आदर्श संसार का निर्माण करने के लिए, जहाँ उनका अपना शासन हो, वहीं जमींदार, साहूकार तथा औपनिवेशिक राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने का समय अब आ गया है। इस प्रकार 1855-56 ई. में सीदी तथा कान्हू के नेतृत्व में संथालों ने अपना जबरदस्त विद्रोह कर दिया। . 

प्रश्न 5. 
दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध क्यों थे ?
अथवा 
उन परिस्थितियों की परख कीजिए, जिन्होंने दक्कन के रैयतों को ऋणदाताओं के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया। 
अथवा
"रैयत ऋणदाताओं को कुटिल और धोखेबाज समझने लगे थे।" 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में भारत में रैयतवाड़ी प्रथा के सन्दर्भ में इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए।
उत्तर:
दक्कन के रैयत निम्नलिखित कारणों से ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध थे (अथवा उन्हें कुटिल और धोखेबाज समझने लगे थे)

  1. ऋणदाताओं ने किसानों को ऋण देने से मना कर दिया था। 
  2. किसानों को लगता था कि ऋणदाता संवेदनहीन हो गये हैं तथा उनकी स्थिति पर उन्हें तरस नहीं आता है। 
  3. ऋणदाता देहात के परम्परागत मानकों तथा रिवाजों का पूर्ण रूप से उल्लंघन कर रहे थे, जैसे-ब्याज की राशि मूलधन से अधिक नहीं हो सकती थी, किन्तु ऋणदाता इस मानक की धज्जियाँ उड़ा रहे थे। 
  4. प्रायः बिना चुकाई गयी ब्याज की राशि को नए बंधपत्रों में सम्मिलित कर लिया जाता था जिससे ऋणदाता कानून के शिकंजे से बचा रहे तथा उसकी धनराशि भी नहीं डूबे। 
  5. किसानों को ऋण भुगतान करते समय कोई रसीद नहीं दी जाती थी। 
  6. ऋणदाता बंधपत्रों में जाली आँकड़े भर लेते थे। वे किसानों की फसल को नीची कीमतों पर खरीदते थे तथा अन्ततः उनकी धन-सम्पत्ति पर अधिकार कर लेते थे।

प्रश्न 6. 
इस्तमरारी बन्दोबस्त के बाद बहुत-सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गयीं?
अथवा 
"अठारहवीं सदी के अन्त तक, बंगाल के इस्तमरारी बन्दोबस्त के बाद भी, जमींदार राजस्व की माँग को पूरा करने में निरन्तर असफल रहे।" इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा 
"इस्तमरारी बन्दोबस्त के बाद, प्रारम्भ के दशकों में जमींदार राजस्व की माँग को अदा करने में बराबर असफल रहे।" इस कथन के सन्दर्भ में कारणों की जाँच विस्तार से कीजिए।
उत्तर: 
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में शुरू हुआ। बंगाल के गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस ने 1793 ई. में इस्तमरारी अथवा स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था लागू की। इस्तमरारी बन्दोबस्त-इस्तमरारी बन्दोबस्त के अन्तर्गत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को देनी होती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी भू-सम्पदाएँ नीलाम कर दी जाती थीं।

जब भू-सम्पदाएँ नीलाम की जाती थीं तो कम्पनी सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को यह भू-सम्पदा या जमींदारी बेच देती थी। इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू किए जाने के पश्चात् समय पर भू-राजस्व की रकम अदा न किए जाने के परिणामस्वरूप 75 प्रतिशत से अधिक जमींदारियाँ नीलाम की गयीं। जमींदारी नीलाम होने के कारण-जमींदारों द्वारा राजस्व जमा न र पाने एवं उनकी जमींदारी नीलाम होने के पीछे कई कारण थे

(i) अत्यधिक ऊँचा राजस्व निर्धारण-राजस्व की प्रारंभिक ांग बहुत ऊँची थी क्योंकि ऐसा महसूस किया गया था कि यदि माँग को आने वाले सम्पूर्ण समय के लिए निर्धारित किया जा रहा है तो आगे चलकर कीमतों में वृद्धि होने और खेती का विस्तार होने से आय में वृद्धि हो जाने पर भी कम्पनी उस वृद्धि में अपने हिस्से का दावा कभी नहीं कर सकेगी। इस प्रत्याशित हानि को न्यूनतम स्तर पर रखने के लिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने राजस्व माँग को ऊँचे स्तर पर रखा और इसके लिए तर्क दिया कि जैसे-जैसे कृषि के उत्पादन में वृद्धि होती जायेगी और कीमतें बढ़ती जायेंगी वैसे-वैसे ही जमींदारों का बोझ कम होता जायेगा।

(ii) उपज की निम्न कीमतें राजस्व की यह ऊँची माँग 1790 के दशक में लागू की गई थी जब कृषि की उपज की कीमतें नीची थीं, जिससे कृषकों के लिए जमींदारों को देय राशियाँ चुका पाना बहुत कठिन था। जब जींदार स्वयं किसानों से राजस्व इकट्ठा नहीं कर सकता था तो वह आगे कम्पनी को अपनी निर्धारित राजस्व राशि कैसे जमा करा सकता था।

(iii) प्राकृतिक विपत्तियाँ-प्राकृतिक विपत्तियों के कारण कृषकों की फसल अच्छी हो या खराब राजस्व का ठीक समय पर जमींदारों द्वारा भुगतान जरूरी था। वस्तुतः सूर्यास्त विधि (कानून) के अनुसार, यदि निश्चित तारीख को सूर्य अस्त होने तक भुगतान नहीं आता था तो जमींदारी को नीलाम किया जा सकता था।

(iv) जमींदारों की शक्ति का सीमित होना-इस्तमरारी बन्दोबस्त ने प्रारम्भ से ही जमींदारों की शक्ति को कृषि से राजस्व इकट्ठा करने एवं अपनी जमींदारी का प्रबन्ध करने तक ही सीमित कर दिया था। किसानों से राजस्व एकत्रित करने के लिए जमींदार का एक अधिकारी (अमला) गाँव में आता था लेकिन राजस्व संग्रहण में गम्भीर समस्याएँ थीं, कई बार फसल खराब हो जाने पर अथवा नीची कीमतों के कारण किसानों के लिए जमींदार को देय राशि का भुगतान करना कठिन हो जाता था। कभी-कभी कृषक जान-बूझकर भी भुगतान में देरी कर देते थे क्योंकि उन्हें जमींदार का कोई डर नहीं था। राजस्व न देने वालों पर जमींदार केवल मुकदमा चला सकता था मगर न्यायिक प्रक्रिया बहुत लम्बी चलती थी।

(v) जोतदारों का उदय-अठारहवीं शताब्दी के अन्त में जोतदारों अर्थात् धनी किसानों के वर्ग का उदय हुआ जो गाँव में रहता था तथा कृषकों पर अपना नियन्त्रण रखता था। यह वर्ग जानबूझकर कृषकों को राजस्व का भुगतान न करने हेतु प्रोत्साहित करता था क्योंकि जब समय पर राजस्व जमा नहीं होता था तो सम्पदा नीलाम कर दी जाती थी तथा यह जोतदार ही उस सम्पदा को खरीदकर स्वयं ही जमींदार बन जाते थे। 

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प्रश्न 7. 
पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप में भिन्न थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से निम्न प्रकार से भिन्न थी
(i) पहाड़िया लोगों की आजीविका जंगलों पर आधारित थी। कुछ पहाड़िया लोग जंगल में शिकार करके अपना जीवनयापन करते थे तो कुछ लोग जंगलों से खाने के लिए महुआ के फूल इकट्ठा करते थे। बेचने के लिए रेशम के कोया, राल एवं काठ कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ एकत्रित करते थे, जबकि संथाल लोग स्थायी कृषि करके अपना जीवनयापन करते थे। वे चावल, कपास, सरसों एवं तम्बाकू जैसी नकदी फसलें भी उगाते थे।

(ii) पहाड़िया लोग झूम कृषि करते थे। वे भूमि के एक टुकड़े को साफ करके उस पर सीमित समय के लिए कृषि कार्य करते थे। राख की पोटाश से उपजाऊ बनी जमीन पर ये लोग खाने के लिए तरह-तरह की दालें एवं ज्वार-बाजरा उगा लेते थे। जब भूमि की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती थी तो ये भूमि का कोई और टुकड़ा साफ करके खेती करने लगते थे, जबकि संथाल लोगों ने खानाबदोश जीवन को त्यागकर स्थायी कृषि करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने जंगलों को साफ करके स्थायी कृषि की तथा जमीन के एक बड़े क्षेत्र को दामिन-ए-कोह के रूप में सीमांकित कर दिया। वे जमीन को जोतकर कृषि करते थे।

(iii) पहाड़िया लोग खेती के लिए कुदाल का उपयोग करते थे जबकि संथाल लोग खेती के लिए हल का प्रयोग करते थे।

(iv) अधिकांश पहाड़िया लोग अपने खाने के लिए दालें एवं ज्वार-बाजरा आदि उगाते थे, जबकि संथाल लोग कपास एवं चावल जैसी व्यापारिक फसलें उगाते थे।

(v) पहाड़िया लोगों के पशुओं के लिए परती जमीन पर उगी हुई घास आदि चरागाह का कार्य करती थी, जबकि संथाल लोगों ने चरागाहों को चावल के खेतों में बदलकर वाणिज्यिक खेती करना प्रारम्भ कर दिया।
(vi) पहाड़िया लोग खानाबदोश जीवन जीते थे। तथा मैदानी क्षेत्रों से किसानों के पशुओं व अनाज को लूटकर ले जाते थे, जबकि संथाल लोग दामिन-ए-कोह क्षेत्र में स्थायी रूप से बसकर गाँवों में रहते एवं स्थायी कृषि करते थे।

(vii) पहाड़िया लोग सम्पूर्ण प्रदेश को अपनी निजी भूमि गनते थे जो उनकी पहचान एवं जीवन का आधार थी। वे बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे। उनके मुखिया एकता बनाए रखते थे तथा आपसी लड़ाई-झगड़े निपटाते थे एवं अन्य जनजातियों व मैदानी लोगों के साथ झगड़ा होने पर अपनी जाति का नेतृत्व करते थे, जबकि जिस भूमि पर संथालों ने अधिकार कर लिया वे स्थायी कृषि करने वाले तथा अपनी स्वायत्तता स्वयं स्थापित करने वाले आदिवासियों के रूप में उभरते चले गये।

(viii) पहाड़िया लोग व्यापार के लिए जंगलों से रेशम के कोया, राल एवं काठ कोयला बनाने के लिए लकड़ी एकत्रित करते थे, जबकि संथाल लोगों ने अपनी खानाबदोश जिन्दगी को छोड़ दिया था और वे एक स्थान पर स्थायी रूप से रहने लगे थे तथा व्यापारियों व साहूकारों के साथ लेन-देन भी करने लगे। 

प्रश्न 8. 
अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
अथवा 
दक्कन के देहाती इलाकों में रैयतों के जीवन पर अमेरिकी गृहयुद्ध के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
अमेरिकी गृहयुद्ध का भारत के रैयत समुदाय पर प्रभाव-1860 के दशक से पहले ब्रिटेन में कच्चे माल के रूप में आयात की जाने वाली कपास का तीन-चौथाई भाग संयुक्त राज्य अमेरिका से आता था। ब्रिटेन के सूती वस्त्र निर्माता एक लम्बे समय से अमेरिकी कपास पर अपनी निर्भरता के कारण काफी परेशान थे तथा सोचते थे कि यदि अमेरिका से आयात बन्द हो गया तो हमारे व्यापार का क्या होगा। अतः ब्रिटेन ने भारत को एक ऐसा देश माना जो अमेरिका से कपास की आपूर्ति बन्द होने की दशा में उन्हें कपास उपलब्ध करा सके। 1861 ई. में अमेरिका में गृहयुद्ध छिड़ गया जिससे ब्रिटेन के कपास क्षेत्र में तहलका मच गया। अमेरिका से आने वाली अच्छी कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई जिसके फलस्वरूप भारत से ब्रिटेन को कपास का निर्यात किया जाने लगा। इसका भारत के रैयत समुदाय पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा

(i) भारत में कपास उत्पादन को प्रोत्साहन-ब्रिटेन द्वारा भारत से कपास आयात करने के फैसले से बम्बई सरकार को कपास उत्पादन को प्रोत्साहन प्रदान करने को कहा गया। बम्बई में कपास के सौदागरों ने कपास की आपूर्ति का आकलन करने एवं कपास की खेती को अधिकाधिक प्रोत्साहन देने के लिए कपास पैदा करने वाले जिलों का दौरा किया।

(ii) किसानों को ऋणदाताओं द्वारा अग्रिम ऋण प्रदान करना-ग्रामीण ऋणदाताओं ने किसानों को अधिकाधिक कपास उगाने हेतु अग्रिम राशि देना प्रारम्भ कर दिया क्योंकि कपास की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही थी। इस बात का दक्कन के ग्रामीण क्षेत्रों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। दक्कन के ग्रामीण क्षेत्रों के रैयतों (किसानों) को अचानक असीमित ऋण उपलब्ध होने लगा। उन्हें कपास उगाने वाली प्रत्येक एकड़ भूमि के लिए 100 रु. अग्रिम राशि दी जाने लगी। साहूकार लम्बी अवधि के लिए भी ऋण देने को तैयार थे।

(ii) कपास के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि–जब तक संयुक्त राज्य अमेरिका में गृहयुद्ध की स्थिति बनी रही तब तक बम्बई दक्कन में कपास का उत्पादन बढ़ता रहा। 1860 से 1864 ई. के दौरान कपास उगाने वाले क्षेत्रों की संख्या दो गुनी हो गयी। 1862 ई. तक स्थिति यह हो गयी कि ब्रिटेन के कुल कपास आयात का लगभग 90 प्रतिशत भाग अकेले भारत से जाता था।

(iv) धनी कृषकों को लाभ–अमेरिकी गृहयुद्ध के कारण कपास उत्पादन में आयी तेजी से समस्त कृषकों को लाभ प्राप्त नहीं हुआ केवल धनी कृषक ही इसका लाभ प्राप्त कर सके। अधिकांश कृषक ऋण के बोझ से और अधिक दब गये।

(v) भारत से कपास निर्यात में कमी एवं रैयत समुदाय की कठिनाइयों में वृद्धि होना-1865 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका में गृहयुद्ध समाप्त हो गया तथा वहाँ कपास का उत्पादन पुनः प्रारम्भ हो गया जिसके फलस्वरूप ब्रिटेन को भारतीय कपास के निर्यात में कमी आती चली गयी। इस स्थिति में कपास व्यापारी एवं साहूकारों ने कपास की गिरती हुई कीमतों को देखते हुए किसानों को ऋण देने से मना कर दिया और अपने बकाया ऋणों की वसूली करने का निर्णय किया। किसानों के लिए एक तो ऋण का स्रोत समाप्त हो गया, वहीं दूसरी ओर राजस्व जमा कराना मुश्किल हो गया जिसके फलस्वरूप किसानों की मुसीबतें बढ़ती चली गयीं। ऋण चुकाने के लिए किसानों को अपनी जमीन व बैलगाड़ी आदि भी बेचनी पड़ी। इस प्रकार अमेरिकी गृहयुद्ध का भारतीय रैयत पर विपरीत प्रभाव पड़ा। केवल धनी रैयतों को छोड़कर सभी की हालत खराब हो गयी थी।

प्रश्न 9. 
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं ?
उत्तर:
वस्तुतः विविध सरकारी स्रोत सरकार के कार्यों से सम्बन्धित होते हैं। किसानों के विषय में इससे विस्तृत तथा सटीक सूचनायें प्राप्त नहीं होती हैं। किसानों से सम्बन्धित इतिहास लिखने के कई स्रोत हैं जिनमें सरकार द्वारा रखे गये राजस्व अभिलेख, सरकार द्वारा नियुक्त सर्वेक्षणकर्ताओं के द्वारा दी गयी रिपोर्ट व पत्रिकाएँ जिन्हें हम सरकार की पक्षधर कह सकते हैं। सरकार द्वारा नियुक्त जाँच आयोग की रिपोर्ट अथवा सरकार के हित में पूर्वाग्रह रखने वाले अंग्रेज यात्रियों के विवरण एवं रिपोर्ट आदि सम्मिलित हैं। सरकारी स्रोतों में वर्णित विवरण सरकार के पक्ष में होते हैं जिनमें सरकार की आलोचना नहीं की जाती। सरकारी स्रोतों में घटनाओं के विषय में सरकारी सरोकार तथा अर्थ दिखाई देते हैं, जैसेदक्कन दंगा आयोग से यह जाँच करने के लिये कहा गया था कि क्या सरकारी राजस्व की माँग का स्वर विद्रोह का मुख्य कारण था। 

सम्पूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करने के पश्चात् आयोग ने यह सूचित किया कि सरकारी माँग किसानों के गुस्से का मुख्य कारण नहीं था। इसमें सारा दोष ऋणदाताओं अथवा साहूकारों का ही था। इस प्रकार यह बात स्पष्ट होती है कि औपनिवेशिक सरकार यह मानने को जरा भी तैयार नहीं थी कि जनसामान्य में असन्तोष सरकारी गतिविधियों के कारण उत्पन्न हुआ था। सरकारी राजस्व की माँग स्थायी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी तथा महालवाड़ी सभी प्रकार की व्यवस्थाओं में अत्यधिक ऊँची थी। यही कारण था कि रैयतों को साहूकारों से ऋण लेना पड़ा इससे वे अधिक से अधिक शोषण के जाल में फंसते चले गये। सरकारी रिपोर्ट इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए बहुमूल्य स्रोत सिद्ध होती है लेकिन इनका सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाना चाहिए और समाचार-पत्रों, गैर-सरकारी वृत्तान्तों, विधिक अभिलेखों एवं यथासम्भव मौखिक स्रोतों से उनका मिलान करके उनकी विश्वसनीयता की जाँच की जानी चाहिए। मानचित्र कार्य

प्रश्न 10. 
भारतीय उपमहाद्वीप के बाह्यरेखा मानचित्र (खाक) में इस अध्याय में वर्णित क्षेत्रों को अंकित कीजिए। यह भी पता लगाइए कि क्या ऐसे भी इलाके थे जहाँ इस्तमरारी तथा रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू थी? ऐसे इलाकों को मानचित्र में भी अंकित कीजिए। 
अथवा 
भारत के रेखा-मानचित्र में निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों को अंकित कीजिए
कलकत्ता
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात सरकारी अभिलेखों का अध्ययन 12

परियोजना कार्य (कोई एक)

RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन  

प्रश्न 11. 
फ्रांसिस बुकानन ने पूर्वी भारत के अनेक जिलों के बारे में अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उनमें से एक रिपोर्ट पढ़िए और इस अध्याय में चर्चित विषयों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उस रिपोर्ट में ग्रामीण समाज के बारे में उपलब्ध जानकारी को संकलित कीजिए। यह भी बताइए कि इतिहासकार लोग ऐसी रिपोर्टों का किस प्रकार उपयोग कर सकते
उत्तर-विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 12. 
आप जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहाँ के ग्रामीण समुदाय के वृद्धजनों से चर्चा कीजिए और उन खेतों में जाइए जिन्हें वे अब जोतते हैं । यह पता लगाइए कि वे क्या पैदा करते हैं, वे अपनी रोजी-रोटी कैसे कमाते हैं, उनके माता-पिता क्या करते थे, उनके बेटे-बेटियाँ अब क्या करते हैं और पिछले 75 वर्षों में उनके जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आये हैं? अपने निष्कर्षों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

Prasanna
Last Updated on Jan. 6, 2024, 9:26 a.m.
Published Jan. 6, 2024