RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Hindi Solutions Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

RBSE Class 12 Hindi कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Textbook Questions and Answers

कविता के साथ - 

Class 12 Hindi Chapter 3 Question Answer प्रश्न 1. 
इस कविता के बहाने बताएँ कि 'सब घर एक कर देने के माने क्या हैं? 
उत्तर : 
'सब घर एक कर देने' का आशय है कि आपसी भेदभाव, अलगाव-बोध तथा आस-पड़ोस के अन्तर को समाप्त करके सभी के प्रति अपनत्व की भावना रखना और वैसा ही आचरण करना। इस तरह का व्यवहार खासकर बच्चे करते हैं। बच्चे खेल में अपने-पराये का भेद भूल जाते हैं, सभी घरों को अपना घर.जैसा मानते हैं। उसी तरह कवि अपनी कविता में सारे मानव-समाज को समान मानकर अपनी बात कहता है। कविता में शब्दों के खेल के साथ मानवीय भावना जुड़ी होती है, जिसमें सभी प्रकार की सीमाएँ स्वयं टूट जाती हैं। 

Kavita Ke Bahane Question Answer प्रश्न 2. 
'उड़ने' और 'खिलने' का कविता से क्या सम्बन्ध बनता है? 
उत्तर : 
तितलियाँ उड़ती हैं और फूल खिलते हैं। इसी प्रकार कवि भी कविता-रचना में कल्पनाओं-भावनाओं की उड़ान भरता है। उसकी काल्पनिक उड़ान से कविता फूलों की तरह खिलती एवं विकसित होती है। अतः 'उड़ने' और 'खिलने' से कविता का मनोगत उल्लास से अनुभूतिमय सम्बन्ध है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

कविता के बहाने प्रश्न उत्तर प्रश्न 3. 
कविता और बच्चे को समानान्तर रखने के क्या कारण हो सकते हैं? 
उत्तर : 
बच्चों के खेल में कौतुक की कोई सीमा नहीं रहती है। कविता में भी स्वच्छन्द शाब्दी-क्रीड़ा रहती है। बच्चे आनन्द-प्राप्ति के लिए खेलते हैं, वे खेल में अपने-पराये का भेदभाव भूल जाते हैं तथा खेल-खेल में उनका संसार विशाल हो जाता है। कवि भी कविता-रचना करते समय सांसारिक सीमा को त्यागकर आनन्द भरता है तथा कविता के बहाने सबको खुशी देना चाहता है। इसी कारण कविता और बच्चों को समानान्तर रखा गया है। 

Class 12 Hindi Chapter 3 Vyakhya प्रश्न 4. 
कविता के सन्दर्भ में 'बिना मुरझाये महकने के माने क्या होते हैं? 
उत्तर : 
फूल तो खिलकर कुछ समय बाद मुरझा जाते हैं, परन्तु कविता कभी नहीं मुरझाती है, वह सदा खिली रहती है तथा अपनी भावगत सुगन्ध को बिखेरती रहती है। वस्तुतः कविता अनन्त काल तक जीवित रहकर आनन्द का प्रसार कर सकती है, इस कारण उसकी सुगन्ध सदा बनी रहती है। 

बात सीधी थी पर कविता के प्रश्न उत्तर प्रश्न 5. 
'भाषा को सहूलियत से बरतने से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर : 
इसका अभिप्राय है. भाषा का सरलता, सादगी, सहजता एवं भावानुरूपता से प्रयोग करना । कविता में या लेखन में शब्दों का प्रयोग भावों के अनुरूप होना चाहिए, भाषा पूर्णतया सुबोध एवं सम्प्रेष्य होनी चाहिए। 

कक्षा 12 हिंदी आरोह अध्याय 3 प्रश्न उत्तर प्रश्न 6. 
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किन्तु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। कैसे? 
उत्तर : 
बात और भाषा का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। मानव द्वारा मन में उत्पन्न विचारों और भावों को भाषा या शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जाता है। व्यक्ति जैसा सोचता एवं अनुभव करता है, वह उसे उसी रूप में सहजता से कह देता है। परन्तु कभी-कभी व्यक्ति अपनी बात को कलात्मक ढंग से, अलंकृत शब्दावली के द्वारा तथा सजा-सँवार कर कहना चाहता है। 

तब वह भाषा के मोह में पड़ जाता है और ऐसे शब्द प्रयुक्त करने लगता है, जो कृत्रिम हो, भावानुकूल न हो तथा क्लिष्ट भी हो। इस तरह के चक्कर में पड़कर सीधी-सरल बात भी टेढ़ी हो जाती है जिससे उसकी सरल सहज अभिव्यक्ति तथा सम्प्रेष्यता बाधित होती है। ऐसी भाषा कठिन शब्द-चमत्कार बनकर रह जाती है। रचना-कर्म में इसे दोष ही मानते हैं। 

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Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 Question Answer प्रश्न 7. 
बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिम्बों/मुहावरों से मिलान करें -
RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर 1
उत्तर : 
RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर 2

कविता के आसपास - 

प्रश्न : 
बात से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं। कुछ मुहावरों का प्रयोग करते हुए लिखें। 
उत्तर : 

  1. बात का धनी-सुरेन्द्र बात का धनी है, इसलिए मैं उसका विश्वास करता हूँ। 
  2. बात गाँठ में बाँधना-बेटा, तुम मेरी बात गाँठ में बाँध लोगे, तो जिन्दगी भर खुश रहोगे। 
  3. बातें बनाना-कुछ बातूनी लोग बातें बनाने में चालाक होते हैं। 
  4. बात बिगड़ जाना-तुम्हारे गुस्से के कारण आज बात बिगड़ गई। 
  5. बातों ही बातों में-बातों ही बातों में लुटेरों ने उसका सामान पार कर लिया। 

व्याख्या करें - 

प्रश्न :
जोर जबरदस्ती से 
बात की चूड़ी मर गई 
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी। 
उत्तर : 
काव्यांश का भावार्थ-भाग देखिए। 

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चर्चा कीजिए - 

कक्षा 12 हिंदी अनिवार्य पाठ 3 प्रश्न उत्तर प्रश्न 1. 
आधुनिक युग में कविता की सम्भावनाओं पर चर्चा कीजिए। 
उत्तर : 
आधुनिक युग में कविता का स्वरूप काफी प्रभावशाली बन गया है। आज कविता की विषय-वस्तु काफी व्यापक हो गई है। उसमें भावगत तथा शिल्पगत काफी परिवर्तन आने लगे हैं। जीवन के यथार्थ से जुड़ी कविताओं में अभिव्यक्ति की सहजता एवं प्रखरता बढ़ रही है। इसलिए आधुनिक युग में कविता की अनेक सम्भावनाएँ दिखाई दे रही हैं तथा इसके विकास की गति बढ़ रही है। 

Kavita Ke Bahane Class 12 Question Answer प्रश्न 2. 
चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त उपमानों के माध्यम से कवि ने कंथ्य की अमूर्तता को साकार किया है। भाषा को समृद्ध एवं सम्प्रेषणीय बनाने में, बिंबों और उपमानों के महत्त्व पर परिसंवाद आयोजित करें। 
उत्तर : 
(i) चूड़ी, कील, पेंच आदि उपमानों के प्रयोग से कथ्य कुछ कठिन हो गया है। कवियों को ऐसी उपमान योजना नहीं अपनानी चाहिए। 
(ii) कविता-रचना में भाषा को समृद्ध एवं सम्प्रेष्य होना ही चाहिए, परन्तु इसके लिए सरल-सुबोध बिम्बों और उपमानों का प्रयोग करना उचित रहता है। इसलिए ऐसे बिम्बों और उपमानों को कविता में स्थान देना चाहिए, जो क्लिष्ट कल्पना एवं शब्दगत चमत्कार से रहित हों, तभी कविता आकर्षक बन सकती है। 

आपसदारी - 

Class 12 Aroh Chapter 3 Question Answer प्रश्न 1. 
सुंदर है सुमन, विहग सुंदर 
मानव तुम सबसे सुंदरतम। 
पंत की इस कविता में प्रकृति की तुलना में मनुष्य को अधिक सुन्दर और समर्थ बताया गया है। कविता के बहाने' कविता में से इस आशय को अभिव्यक्त करने वाले बिन्दुओं की तलाश करें। 
उत्तर : 
'कविता के बहाने' कविता में चिड़िया और फूल की अपेक्षा कविता को अधिक समर्थ और प्रभावी बताया गया है। यथा - 
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने! 
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने! 

RBSE Class 12 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Important Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्न - 

Kavita Ke Bahane Extra Question Answer प्रश्न 1.
"कविता एक खेल है बच्चों के बहाने''कविता के बहाने' पाठ में कविता और बच्चे मानव-समाज को क्या संदेश देते हैं? 
उत्तर : 
आज के युग में यान्त्रिकता बढ़ गई है। कविता हमें यान्त्रिकता के दबाव से निकालने तथा उल्लास के साथ आगे बढ़ने का सन्देश देती है। बच्चों के सपने एवं खेल सदा आनन्ददायी होते हैं जो हमें भी सुनहरे भविष्य का सन्देश देते हैं उसी प्रकार कविता का भी यही कार्य है। 

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Class 12 Kavita Ke Bahane Question Answer प्रश्न 2. 
'कविता के बहाने' शीर्षक कविता का कथ्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
कविता चिड़िया की उड़ान और फूलों के विकास से भी अधिक काल्पनिक उड़ान और भावात्मक सुगन्ध वाली होती है। कविता बच्चों के खेल जैसी आनन्ददायी होती है, लेकिन आज के युग में यान्त्रिकता के दबाव में कविता के अस्तित्व पर संकट आ रहा है। 

Class 12 Hindi Chapter 3 Kavita Ke Bahane Question Answer प्रश्न 3. 
'कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने'-इसका आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
कविता और चिड़िया दोनों की उड़ान काफी ऊँची होती है, परन्तु चिड़िया की उड़ान सीमित होती है, जबकि कविता की कल्पनानभतियों की उडान असीमित होती है। अतः चिड़िया कविता की उड़ान का अर्थ नहीं समझ सकती है।

Class 12th Hindi Aroh Chapter 3 Question Answer प्रश्न 4. 
'कविता एक खिलना है फूलों के बहाने' इसका अभिप्राय क्या है? 
उत्तर :
जिस प्रकार फूल खिलकर अपनी सुन्दरता, सुगन्ध एवं पराग को फैलाकर सभी को आनन्दित-उल्लसित करते हैं, उसी प्रकार कविता भी कल्पनाओं एवं कोमल अनुभूतियों से सभी को आनन्दित कर सन्देश रूपी सुगन्ध फैलाती है। 

Chapter 3 Hindi Class 12 Question Answer प्रश्न 5. 
'कविता के बहाने' शीर्षक कविता में बच्चों और कविता की क्या समानता बतायी गई है? 
उत्तर : 
बच्चों में भेदभाव की भावना नहीं होती है। वे अपने-पराये का अन्तर भूलकर खेल खेलते हैं तथा स्वयं आनन्दित होकर दूसरों को भी प्रसन्न करते हैं। इसी प्रकार कविता भी अपना-पराया भूलकर, मानवीय भावों की अभिव्यक्ति से सभी को आनन्द देती है।

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Class 12th Hindi Chapter 3 Question Answer प्रश्न 6. 
'कविता एक खेल है बच्चों के बहाने'-इसका आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
बच्चों को खेल से आनन्द मिलता है, वे अपने-पराये का भेदभाव भूलकर खेल खेलते हैं। कवि भी खेल के समान आनन्ददायी होती है। उसमें काल्पनिक भाव-सौन्दर्य का चित्रण भेदभावरहित और अतीव आनन्ददायी होता है। 

Class 12 Hindi Ch 3 Question Answer प्रश्न 7. 
'सब घर एक कर देने के माने'-इससे कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है? 
उत्तर : 
कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि बच्चे खेल में अपने-पराये घर का भेद नहीं करते हैं, वे सभी घरों में जाकर साथियों के साथ खेलकर आनन्दित होते हैं। उसी प्रकार कविता भी समानता का व्यवहार कर सभी को आनन्दित करती है। 
उत्तर : 
कविता में भाषा की सहजता-सरलता पर ध्यान देना चाहिए। सीधी-सी बात को तोड़-मरोड़ कर कहने से उसका सौन्दर्य व अर्थ नष्ट हो जाता है। वह सही ढंग से अभिव्यक्त नहीं हो पाती है, उसमें जटिलता आ जाती है। 

Class 12 Hindi Chapter Kavita Ke Bahane Question Answer प्रश्न 9. 
अच्छी बात कहने या अच्छी कविता-रचना के लिए क्या जरूरी बताया गया है? 
उत्तर :
इसके लिए यह जरूरी है कि सही शब्दों और सरल भाषा का प्रयोग किया जाये। चमत्कार के लिए शब्दों को जटिल एवं क्लिष्ट न बनाया जावे और कथ्य को सहजता से सरल भाषा में व्यक्त किया जावे। 

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Kavita Ke Bahane Question Answer Class 12 Hindi प्रश्न 10. 
'जरा टेढ़ी फँस गई'-सीधी बात कहाँ पर फँस गई? 
उत्तर : 
कवि बताता है कि बात सीधी-सरल थी, परन्तु उसे व्यक्त करने के लिए जो भाषा या शब्दावली प्रयुक्त की गई, वह जटिल और चमत्कारपर्ण थी। इस तरह भाषा को प्रभावी बनाने के चक्कर में सीधी बात उसमें फंस गई। 

Class 12 Hindi Chapter 3 प्रश्न 11. 
'भाषा को उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा'-कवि ने ऐसा क्यों किया? 
उत्तर : 
भाषा को प्रभावी एवं क्लिष्ट बनाने के चक्कर में कंथ्य स्पष्ट नहीं हुआ तो कवि ने अपनी बात को समझाने के लिए शब्दों का उलट-फेर किया तथा उसे प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का प्रयास किया। परन्तु इससे कथ्य और पेचीदा हो गया। " 

Class 12 Chapter 3 Hindi Question Answer प्रश्न 12. 
'बात और भी पेचीदा होती चली गई'-इसका आशय बताइये। 
उत्तर : 
कवि ने अपनी सीधी-सरल बात को प्रभावी बनाने के लिए भाषा को सँवारने का प्रयास किया। इस हेतु शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा तथा उनमें घुमाव-फिराव किया। लेकिन इससे वह बात सरल ढंग से प्रकट न होकर जटिल हो गई। 

Class 12 Hindi Ch 3 Vyakhya प्रश्न 13. 
'पेंच को खोलने के बजाय उसे बेतरह कसने' का क्या परिणाम रहा? बताइये। 
उत्तर : 
प्रभावी अभिव्यक्ति हेतु कवि भाषा रूपी पेंच को खोलने अर्थात् भाषा को सरल बनाने के बजाय उसे सता रहा। इस प्रयास में पेंच की चूडी मरने के समान भाषा भी बेकार हो गई और बात सही ढंग से व्यक्त नहीं हो सकी। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

प्रश्न 14. 
'बात को कील की तरह ठोंक देना' का क्या परिणाम रहा? 
उत्तर : 
चूड़ी मर जाने पर यदि पेंच को कील की तरह ठोक दिया जावे, तो मजबूत नहीं हो पाती है। इसी प्रकार सरल बात को भाषा के कसावट के चक्कर में उलट-पलटकर कहने से अभिव्यक्ति में ढीलापन आ जाता है। 

प्रश्न 15. 
'एक शरारती बच्चे की तरह खेल रही थी। इसमें बात को शरारती बच्चा कहने का क्या अभिप्राय है? 
उत्तर : 
कवि सीधी बात को कहने के लिए शब्दों की अदला-बदली कर रहा था। शरारती बच्चे को काबू में लाने की तरह वह भाषा में चमत्कार लाना चाहता था और बात को नये ढंग से कहना चाहता था, परन्तु कह नहीं पा रहा था। 

प्रश्न 16. 
"आखिरकार वहीं हुआ, जिसका मुझे डर था।"-कवि को क्या डर था? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
कवि को यह डर था कि भाषा में चमत्कार लाने हेतु वह जितने भी प्रयत्न कर रहा था वे सब निरर्थक हो गए। इस चक्कर में भाषा का सरल अर्थ चूड़ी के पेंच की तरह मर गया। 

प्रश्न 17. 
"तमाशबीनों की शाबाशी और वाह-वाह" का क्या दुष्परिणाम रहता है? 
उत्तर : 
तमाशबीन लोग जब सही-गलत किसी भी कार्य के लिए शाबाशी देते हैं, तो इससे व्यक्ति गलत काम को भी सही मानने लगता है और अपने लक्ष्य से भटककर वह सीधा-सरल काम भी सही ढंग से नहीं कर पाता है। 

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प्रश्न 18. 
"क्या तुमने भाषा को सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?" इस पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
इसमें व्यंग्य यह है कि चमत्कार-प्रदर्शन के लोभ में कविता की सम्प्रेषणीयता एवं सहजता नष्ट हो जाती है। भाषा को तोड़ना-मरोड़ना उसके सीधे-सरल अर्थ को नष्ट करना है जिससे कविता के भाव-सौन्दर्य की हानि होती है। ऐसा आचरण उसकी नासमझी मानी जाती है।

प्रश्न 19. 
"मुझे पसीना पोंछते देखकर"- कवि को किस कारण पसीना आ गया? 
उत्तर : 
सीधी-सरल बात को सहज अभिव्यक्ति न दे पाने से, भावों को क्लिष्ट से सरलता की ओर लाने का प्रयास करने से कवि को पसीना आ गया। काफी परिश्रम-प्रयास करने पर भी वांछित कार्य न हो पाने से पसीना आना स्वाभाविक ही लगता है। 

निबन्धात्मक प्रश्न -

प्रश्न 1. 
कविता के बहाने' कवि कुँवर नारायण क्या कहना चाहते हैं? 
उत्तर : 
'कविता के बहाने' कविता में कवि ने एक यात्रा का वर्णन किया है। जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। एक ओर प्रकृति का विशाल साम्राज्य है तथा दूसरी ओर भविष्य की तरफ कदम बढ़ाता बच्चा है। कवि ने चिड़िया के उड़ान के माध्यम से उसके उड़ने की सीमा बताई है कि एक सीमा तक ही वह अपनी उड़ान भर सकती है। उसी तरह फूलों के खिलने, सुगन्ध देने तथा मुरझाने की भी एक सीमा है। समयानुसार फूल खिलता है, रंग और खुशबू बिखेरता है और फिर मुरझा जाता है। लेकिन बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा या बंधन नहीं होता है। 

उसी प्रकार कविता भी तो शब्दों का खेल ही है और इस खेल में जड़, चेतन, अतीत और वर्तमान-भविष्य सभी उसके उपकरण मात्र हैं। कविता की कल्पना अनन्त है। शब्दों का जाल अनन्त है। इसलिए जहाँ भी रचनात्मक क्रिया की बात आती है, वहाँ सीमाओं के बंधन स्वतः ही टूट जाते हैं। वह चाहे घर की सीमा हो, भाषा की हो या फिर समय की हो। इन्हीं भावों से संचित कविता कवि की राय को प्रस्तुत करती है। 

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प्रश्न 2. 
'कविता के बहाने' कविता में कवि ने कविता रचना को किसके समकक्ष बताया है और कैसे? 
उत्तर :  
कविता के बहाने' कविता में कवि ने कविता-रचना को बच्चों के खेल के समान बताया है। कवि बच्चों की खेल-क्रीडा को देख कर शब्द-क्रीडा करता है। आशय है कि बच्चे विभिन्न उनके खेलों का संसार असीमित एवं व्यापक है। उसी प्रकार कवि भी शब्दों के द्वारा नये-नये भावों एवं मनोरम कल्पनाओं के खेल खेलता है।

जिस प्रकार बच्चे खेल खेलते हुए सभी के घरों में समान रूप से खेल खेलते हैं और अपने-पराये का भेदभाव नहीं रखते उसी प्रकार कविता में भी शब्दों का खेल होता है। कवि शब्दों द्वारा आन्तरिक बाह्य भाव विचारों को, अपने-पराये सभी लागों के मनोभावों को कलात्मक अभिव्यक्ति देता है। वह सभी को समान मानकर सार्वकालिकं भावों को वाणी देता है। 

प्रश्न 3. 
'बात सीधी थी पर' कविता में कवि ने किस विषय पर ध्यान आकर्षित किया है? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
'बात सीधी थी पर' कविता में कवि ने भाषा की सहजता पर बात की है। कवि का कहना है कि हमें सीधी-सरल बात को बिना जटिल बनाये आसान शब्दों में कहने का प्रयास करना चाहिए। भ फेर में बात स्पष्ट नहीं हो पाती है तथा अभिव्यक्ति की सरलता में उलझाव आ जाता है। व्यक्ति जैसा सोचता व अनुभव करता है उसे उसी रूप में सहजता से व्यक्त कर देना चाहिए। लेकिन कभी-कभी वाह-वाही पाने के लोभ में अपनी बात को सजा-सँवारकर, कलात्मक ढंग से अलंकृत शैली का प्रयोग करने लगता है। जिसके चक्कर में सीधी-सरल बात भी टेढ़ी हो जाती है। रचना-कर्म में इसे एक दोष माना जाता है। 

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न - 

प्रश्न 1.
कवि कुँवर नारायण के रचनात्मक योगदान को बताते हुए उनके जीवन-चरित्र पर भी संक्षिप्त में प्रकाश डालिए। 
उत्तर : 
'तीसरा सप्तक' के प्रमख कवियों में अपना नाम दर्ज कराने वाले कवि कँवर नारायण का जन्म 19 सितम्बर, सन् 1927 को फैजाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। अंग्रेजी में एम.ए. करने के पश्चात् इन्होंने कई देशों की यात्राएँ की। भाषा और विषय की विविधता इनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। इनकी रचनाओं में यथार्थ का खुरदरापन भी मिलता है और सहज सौंदर्य भी। 

'चक्रव्यूह', 'परिवेश', 'हम तुम', 'अपने सामने', 'कोई दूसरा नहीं', 'इन दिनों' (काव्य-संग्रह); 'आत्मजयी' (प्रबंध काव्य); 'आकारों के आस-पास' (कहानी-संग्रह); 'आज और आज से पहले' (समीक्षा); 'मेरे साक्षात्कार.' (सामान्य) आदि। व्यास सम्मान, लोहिया सम्मान, प्रेमचंद तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा कबीर सम्मान जैसे अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित कवि का जीवन सदैव सृजन-कर्म में लगा रहा। 

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कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Summary in Hindi

कुँवर नारायण :

कवि परिचय - आधुनिक हिन्दी कविता में नागर संवेदना को अभिव्यक्ति देने वालों में कुँवर नारायण का विशिष्ट स्थान है। इनका जन्म सन् 1927 में फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया। यायावरी प्रवृत्ति के कारण इन्होंने पोलैण्ड, रूस, चीन आदि देशों की यात्रा कर अनेक अनुभव प्राप्त किये। सन् 1950 ई. के आसपास इन्होंने काव्य-लेखन प्रारम्भ किया तथा लम्बे समय तक 'युग चेतना' पत्रिका से जुड़े रहे। 

कुँवर नारायण के चार काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए हैं-चक्रव्यूह, परिवेश : हम तुम, अपने सामने कोई दूसरा नहीं और इन दिनों। नचिकेता की पौराणिक कथा पर इन्होंने 'आत्मजयी प्रबन्ध-काव्य की रचना की। 'आकारों के आसपास' इनका कहानी-संग्रह तथा 'आज और आज से पहले इनका समीक्षा-ग्रन्थ है। 

कुँवर नारायण की कविता में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुन्ध के बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है। भाषा और विषय की विविधता इनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। इनमें यथार्थ का खुरदरापन तथा भावगत सहज सौन्दर्य भी विद्यमान है। इस कारण इनकी रचनाएँ बहुआयामी हैं, विचार-पक्ष से समन्वित हैं। इनका शिल्प-सौन्दर्य बिम्ब, प्रतीक, अलंकार आदि से मण्डित है। 

कविता-परिचय - पाठ में कुँवर नारायण की दो कविताएँ संकलित हैं। 'इन दिनों' काव्य-संग्रह से संकलित कविता 'कविता के बहाने' में बताया गया है कि आज यान्त्रिकता के दबाव के कारण कविता का अस्तित्व मिट सकता है। ऐसे में प्रस्तुत कविता कविता-लेखन की अपार सम्भावनाओं को समझने का अवसर देती है। कवि का मानना है कि यह ऐसी यात्रा का वर्णन है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की यात्रा है। 

ये तीनों अपने-आप में सुन्दर होते हुए सीमाबद्ध हैं जबकि कविता का क्षेत्र असीम है। रचनात्मक ऊर्जा होने से कविता में सीमाओं के बन्धन स्वयं टूट जाते हैं। अतः कविता का क्षेत्र अतीव व्यापक है। दूसरी कविता 'बात सीधी थी पर' शीर्षक से संकलित है। इस कविता में कथ्य और माध्यम के द्वन्द्व को उकेरते हुए शब्दों में कहने का प्रयास करना चाहिए। भाषा के फेर में पड़ने से बात स्पष्ट नहीं हो पाती है, कविता में जटिलता बढ़ जाती है तथा अभिव्यक्ति में उलझाव आ जाता है। अतएव अच्छी बात अथवा अच्छी कविता के लिए शब्दों का चयन या भाषागत प्रयोग सहज होना नितान्त अपेक्षित है। तभी हम कविता के द्वारा सीधी बात कह सकते हैं। 

सप्रसंग व्याख्याएँ -

1. कविता के बहाने -

1. कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने 
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने 
बाहर भीतर
इस घर, उस घर 
कविता के पंख लगा उड़ने के माने 
चिड़िया क्या जाने? 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'इन दिनों' की कविता 'कविता के बहाने' से लिया गया है। चिड़िया को माध्यम बना कर कवि ने कविता के अस्तित्व पर अपनी बात रखी है। 

व्याख्या - कवि बताता है कि कविता कल्पना की मोहक उड़ान होती है, वह चिड़िया की उड़ान के समान नयी नयी कल्पनाएँ प्रस्तुत करती है। उसमें नये-नये भाव एवं विचार आते हैं। कविता की उड़ान असीमित होती है। चिड़िया की उड़ान की एक सीमा होती है। चिड़िया बाहर, भीतर, इस घर से उस घर तक उड़कर आती-जाती रहती है, जबकि कविता को कल्पनाओं के ऐसे पंख लगे रहते हैं कि वह घर से बाहर सब जगह - सारी सृष्टि में उड़ान भर लेती है। चिड़िया अपनी सीमा में बँधी होने के कारण कविता की काल्पनिक उड़ान को नहीं जान पाती है। आशय यह है कि पक्षी की उड़ान सीमित है, परन्तु कविता का क्षेत्र अतीव व्यापक एवं असीमित है। 

विशेष : 

1. कवि ने चिड़िया की उड़ान के बहाने कविता के असीमित क्षेत्र की व्याख्या की है। 
2. भाषा सरल-सहज व अर्थपूर्ण है। प्रतीकात्मक एवं सांकेतिक शब्दावली प्रस्तुत है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

2. कविता एक खिलना है फूलों के बहाने 
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने! 
बाहर भीतर 
इस घर, उस घर 
बिना मुरझाए महकने के माने 
फूल क्या जाने? 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'इन दिनों की कविता 'कविता के बहाने' से लिया गया है। इसमें कवि कविता की यात्रा पर प्रकाश डाल रहे हैं जो चिड़िया से लेकर फूलों तक है। 

व्याख्या - कवि बताते हैं कि कविता भी खिलती है अपने भाव-सौन्दर्य को लेकर, जिस प्रकार फल अपने रूप रंग व खुशबू को लेकर खिलते हैं । फूलों का खिलना, उसका वातावरण को सुगन्धित करना फिर तय समय पर मुरझा जाना, फूलों की प्रकृति व अवस्था को बताता है। लेकिन कविता फूलों की तरह खिलती तो है पर उसकी तरह मुरझाती - नहीं है। कविता अपने भावों के कारण, संदेश व प्रेरणा के कारण तथा अस्तित्व के कारण सदैव खिली रहती है और अपनी विशेषताओं की सुगन्ध फैलाती रहती है। फूल कविता के खिलने का अर्थ नहीं जानता है। फूल से कविता में रंग भाव आदि आते हैं लेकिन दोनों का खिलना अलग-अलग है। 

विशेष : 

1. कविता व फूल की तुलना प्रस्तुत की गई है। 
2. शांत रस व मुक्त छन्द का प्रयोग है। सरल-सहज खड़ी बोली में अनुप्रास व प्रश्न अलंकार हैं। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

3. कविता एक खेल है बच्चों के बहाने 
बाहर-भीतर 
यह घर, वह घर 
सब घर एक कर देने के माने 
बच्चा ही जाने। 

कठिन शब्दार्थ :

माने = अर्थ। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'इन दिनों' की कविता 'कविता के बहाने' से लिया गया है। इसमें कवि ने कविता को बच्चों के खेल के समान असीमित व कल्पनाओं की उड़ान बताया है। 

व्याख्या - कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानते हैं। जिस प्रकार बच्चे अपना खेल घर-बाहर कहीं भी खेल लेते हैं; इस घर, उस घर सभी घरों में खेलते हैं। उनके लिए अपने-पराये, छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं होता है। उसी तरह कविता भी बच्चों के खेल के समान अपने शब्दों से बाहरी व आंतरिक संसार को मनोभाव देती है। वह शब्दों के खेल द्वारा कहीं भी प्रकट हो जाती है। उसके लिए भी किसी तरह का कोई बंधन नहीं है। बच्चों की भावना के अनुरूप ही कविता की भावना भी सबके लिए एक समान है। 

विशेष : 

1. कविता की रचनात्मक व्यापकता को बच्चों के खेल व वृत्ति के बहाने प्रकट किया गया है। बच्चा व कवि एक समान हैं, को बताया गया है। 
2. साहित्यिक खड़ी बोली, अनुप्रास अलंकार व मुक्त छंद की प्रस्तुति सरल व सहज शब्दों द्वारा व्यक्त हुई है। 

2. बात सीधी थी पर 

1. बात सीधी थी पर एक बार 
भाषा के चक्कर में 
जरा टेढ़ी फँस गई। 
उसे पाने की कोशिश में। 
भाषा को उलटा पलटा 
तोड़ा मरोड़ा 
घुमाया फिराया 
कि बात या तो बने 
या फिर भाषा से बाहर आए - 
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ 
बात और भी पेचीदा होती चली गई। 

कठिन-शब्दार्थ : 

चक्कर = प्रभाव, प्रसंग।
पेचीदा = जटिल, कठिन। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' की कविता 'बात सीधी थी पर' से लिया गया है। इसमें कवि ने भाषा की सहजता की बात कही है। 

व्याख्या - कवि कहता है कि मेरे मन में एक सीधी-सरल-सी बात थी जिसे मैं कहना चाहता था, परन्तु उचित भाषा का प्रयोग करने से अर्थात् भाषायी प्रभाव दिखाने के प्रयास से उसकी सरलता समाप्त हो गई। आशय यह है कि शब्द-जाल में सरल बात भी जटिल हो गई। कवि कहता है कि तब उस बात को कहने के लिए मैंने भाषा को अर्थात् शब्दों को बदलने का प्रयास किया, भाषा को उल्टा-पलटा, शब्दों को काट-छाँटकर आगे-पीछे किया ताकि सीधी बात. सरलता से व्यक्त हो सके। 

कोशिश की या तो मेरे मन की बात.सहजता से व्यक्त हो जाए, या फिर भाषा के जंजाल से छूटकर बाहर आ जाए। इस प्रयास में स्थिति खराब होती गई, भाषा और अधिक जटिल हो गई और मेरी बात उसके जाल में उलझकर रह गई। इस तरह भाषा का चमत्कार दिखाने के चक्कर में सीधी बात और भी जटिल हो गई। 

विशेष : 

1. कवि ने बताया है कि कथ्य को कहने के लिए शब्दों को तोड़ना-मरोड़ना नहीं चाहिए। सरल भावों एवं सुन्दर अभिव्यक्ति द्वारा व्यक्त करना चाहिए। 
2. काव्यांश में उल्टा-पुल्टा, घुमाया-फिराया आदि शब्द युग्मों का सार्थक प्रयोग हुआ है। 

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2. सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना 
मैं पेंच को खोलने के बजाय 
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था 
क्योंकि इस करतब पर मुझे 
साफ़ सुनाई दे रही थी। 
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' की कविता 'बात सीधी थी पर' से लिया गया है। कवि ने इसमें उन कवियों पर व्यंग्य किया है कि वाह-वाही पाने के चक्कर में लोग भाषा के सीधे-सरल रूप को छोड़ पांडित्य दिखाने में फँस जाते हैं। 

व्याख्या - कवि कहता है कि भाषा के चक्कर में फँसी सीधी बात को धैर्यपूर्वक सुलझाने की कोशिश करने पर वह और अधिक उलझ गई। जिस प्रकार पेंच ठीक से न लगे, तो उसे खोलकर बार-बार कसने से उसकी चूड़ियाँ मर जाती है। उसी प्रकार बेवजह भाषा का पेंच कसने से बात सहज और स्पष्ट होने के स्थान पर और भी क्लिष्ट व अर्थहीन हो जाती है। कवि कह रहे हैं कि इस तरह भाषा को सुलझाने के चक्कर में इसके उलझने को काव्य-चमत्कार समझ लोग वाह-वाह करने लगेंगे। जो कि मेरी उलझन को ज्यादा बढ़ाने वाली बात है। साथ ही उन लागों पर व्यंग्य है जो तमाशा देखने वालों की तरह अर्थ समझे बिना अनर्थ पर भी अपनी वाह-वाही की प्रतिक्रिया देने लगते हैं। 

विशेष : 

1. कवि ने व्यंग्य करते हुए बताया कि भाषा की जटिलता लोगों की वाह-वाही का कारण बनती है जो कि सही नहीं है। 
2. उर्दू-मिश्रित शब्दों का प्रयोग है। पेंच, करतब, बेतरह, तमाशबीन आदि शब्द प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर रहे हैं। 

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3. आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था 
जोर जबरदस्ती से 
बात की चूड़ी मर गई 
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी! 
हार कर मैंने उसे कील की तरह 
उसी जगह ठोंक दिया। 

कठिन-शब्दार्थ : 

चूड़ी मर गई = पेंच कसने से चूड़ी नष्ट हो गई, प्रयास विफल रहना। 
कसाव = कसावट। 
सहूलियत = सरलता, आसानी।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' की कविता 'बात सीधी थी पर' से लिया गया है। कविता में भाषा की सहजता की बात पर जोर दिया गया है। 

व्याख्या - कवि बताते हैं कि बात कहने के लिए उसे चमत्कारी स्वरूप देने के चक्कर में बनावटी भाषा का प्रयोग किया। आखिरकार परिणाम वही निकला जिसका कवि को डर था। जिस प्रकार पेंच के साथ जबरदस्ती करने, उसे ज्यादा घुमाने से उसकी चूड़ी खत्म हो जाती है, उसी प्रकार भाषा पर अत्यधिक कसाव देने व प्रयोग करने से बात का प्रभाव व अर्थ दोनों खत्म हो गया। जिस तरह चूड़ी खत्म होने पर पेंच को उसी तरह ठोक दिया जाता है कि अब परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं, उसी प्रकार कवि ने भी भाषा को उसी बनावटीपन के साथ वहीं छोड़ दिया जो व्यर्थ, बिना प्रभाव के अस्तित्वहीन भाषा बन कर रह गई। 

विशेष : 

1. कवि ने कविताओं की आडम्बरपूर्ण भाषा पर व्यंग्य किया है। 
2. 'कील की तरह' में उपमा अलंकार तथा 'जोर-जबरदस्ती' में अनुप्रास अलंकार प्रस्तुत है। 
3. खड़ी बोली व मुक्त छंद का प्रयोग है। 

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4. ऊपर से ठीक-ठाक 
पर अंदर से 
न तो उसमें कसाव था 
न ताकत! 
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह 
मुझसे खेल रही थी, 
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा -
"क्या तुमने भाषा को 
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?" 

कठिन शब्दार्थ :

कसाव = कसावट। 
सहूलियत = सरलता, आसानी। 

प्रसंग - प्रस्तुत काव्यांश कवि कुँवर नारायण द्वारा लिखित काव्य-संग्रह 'कोई दूसरा नहीं' की कविता 'बात सीधी थी पर' से लिया गया है। कविता में भाषा की सहजता व सरलता के प्रयोग पर बल दिया गया है। 

व्याख्या - कवि कहते हैं कि भाषा की चूड़ी (अर्थ) मरने के पश्चात् उसे उसी अवस्था में (कील) ठोक दिया जाता है तब उस भाषा में ऊपर से तो सब ठीक-ठाक सुन्दर प्रतीत होता है लेकिन अन्दर से भाषा की अर्थपूर्ण कसावट तथा ताकत दोनों खत्म हो जाती हैं। जो बात कवि भाषा के माध्यम से कहना चाहते थे वह बात कवि को परिश्रम से आए पसीने को पौंछते देख एक शरारती बच्चे की तरह पूछती है कि तुमने भाषा को सरलता से, सहजता से उसके साथ व्यवहार करना नहीं सीखा?

यहाँ पर कवि व्यंग्य कर रहे हैं कि जिन्होंने भी भाषा की अर्थवत्ता व सरलता-सहजता को खोकर (नष्ट) बनावटीपन एवं कृत्रिमता का प्रयोग किया है उससे अर्थ तो अनर्थ होता ही है स्वयं भाषा भी उससे कभी खुश नहीं रहती है। 

विशेष :

1. कवी ने व्यंग्य की दष्टि से भाषा की सरलता व सहजता को बनाये रखने पर जोर दिया है ताकि वह अर्थपूर्ण व सरल अभिव्यक्ति प्रदान करे। 
2. भाषा सरल-सहज, खड़ी बोली युक्त, अलंकारों का समुचित प्रयोग एवं मुक्त छन्द की लयता से बद्ध कविता है।

Prasanna
Last Updated on Dec. 15, 2023, 10:19 a.m.
Published Nov. 15, 2023