RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

RBSE Class 12 Economics राष्ट्रीय आय का लेखांकन Textbook Questions and Answers


प्रश्न 1. 
उत्पादन के चार कारक कौन-कौन से हैं और इनमें से प्रत्येक के पारिश्रमिक को क्या कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के चार कारक भूमि, श्रम, पूँजी एवं उद्यमी हैं जिन्हें पारिश्रमिक के रूप में क्रमश: लगान, मजदूरी, ब्याज एवं लाभ प्राप्त होता है।

RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 

प्रश्न 2. 
किसी अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में समस्त उत्पादन अथवा निर्गत से प्राप्त राजस्व को उत्पादन के साधनों में लगान, लाभ, ब्याज एवं मजदूरी के रूप में वितरित कर दिया जाता है तथा उत्पादन के साधन अपने पारिश्रमिक को पुनः अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उपयोग पर व्यय कर देते हैं। अर्थव्यवस्था में सामान्यत: यह स्थिति पाई जाती है।
\(\sum_{\mathrm{i}=1}^{\mathrm{N}} \mathrm{GVA}_{\mathrm{i}} \equiv \mathrm{C}+1+\mathrm{G}+\mathrm{X}-\mathrm{M}\)
= W + P + In + R
अर्थात् उत्पादन विधि से प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद, व्यय विधि से प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद तथा आय विधि से प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद सदैव समान होता है अतः किसी अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर होता है।

प्रश्न 3. 
स्टॉक एवं प्रवाह में भेद स्पष्ट कीजिए। निवल निवेश और पूँजी में कौन स्टॉक है और कौन प्रवाह? हौज में पानी के प्रवाह से निवल निवेश और पूँजी की तुलना कीजिए।
उत्तर:
स्टॉक एवं प्रवाह में अन्तर: स्टॉक वह चर होता है जिसकी माप किसी समय बिन्दु अथवा निर्दिष्ट समय पर की जाती है, यह एक स्थिर अवधारणा होती है। जबकि इसके विपरीत प्रवाह चर वह चर होता है जिसकी माप एक निश्चित समय अवधि में की जाती है, यह एक गत्यात्मक अवधारणा है। पूँजी, बचत, मुद्रा की मात्रा आदि स्टॉक के उदाहरण हैं जबकि आय, व्यय, ब्याज आदि प्रवाह के उदाहरण हैं। अतः स्टॉक का समयकाल नहीं होता है जबकि प्रवाह का समयकाल होता है।

निवल निवेश तथा निवल पूंजी में से निवल निवेश प्रवाह है तथा निवल पूँजी स्टॉक है; क्योंकि निवल निवेश का सम्बन्ध एक निश्चित समय अवधि से है जबकि निवल पूँजी का सम्बन्ध एक निश्चित समय बिन्दु से है। प्रवाह तथा स्टॉक की अवधारणा को हौज में पानी के प्रवाह से समझा जा सकता है।

यदि कोई नल किसी हौज में पानी भरता है, नल एक घण्टे में जितना पानी भरता है वह प्रवाह कहलाएगा तथा किसी निश्चित समय पर हौज में पानी की कितनी मात्रा है वह स्टॉक कहलाएगा। अत: निवल निवेश हौज में नल द्वारा एक घण्टे में भरे गए पानी के समान प्रवाह है तथा निवल पूँजी किसी निश्चित समय पर हौज में एकत्र पानी की मात्रा में समान स्टॉक है।

प्रश्न 4. 
नियोजित और अनियोजित माल सूची संचय में क्या अन्तर है? किसी फर्म की माल सूची तथा मूल्यवर्धित के बीच सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
नियोजित और अनियोजित माल सूची संचय में अन्तर अर्थशास्त्र में अबिक्रित निर्मित वस्तुओं अथवा अर्द्धनिर्मित वस्तुओं अथवा कच्चे मालों का स्टॉक जो कोई फर्म एक वर्ष से अगले वर्ष तक रखती है, उसे माल सूची कहते हैं। माल सूची एक स्टॉक परिवर्त है। यदि वर्ष के आरम्भ में इसका मूल्य कम है तथा वर्ष के अन्त में इसका मूल्य उच्च है, तो इस स्थिति को माल सूची में वृद्धि अथवा संचय कहते हैं। इसके विपरीत यदि वर्ष के आरम्भ में माल सूची का मूल्य अधिक हो तथा वर्ष के अन्त में कम हो तो इसे माल सूची में ह्रास अथवा अपसंचय कहते हैं।

माल सूची में संचय नियोजित अथवा अनियोजित हो सकता है। जब फर्म द्वारा वर्ष के प्रारम्भ में माल सूची का मूल्य कम हो तथा यदि फर्म वर्ष के अन्त में अधिक मूल्य रखने का नियोजन करे तथा यदि वर्ष के अन्त में फर्म के नियोजन के अनुरूप माल सूची के मूल्य में वृद्धि हो जाए तो यह नियोजित संचय कहलाएगा। इसके विपरीत यदि अप्रत्याशित रूप से किसी कारण से फर्म का वर्ष के अन्त में माल सूची का मूल्य बढ़ जाए जिसकी फर्म को उम्मीद नहीं हो तो यह अनियोजित संचय कहलाएगा।

फर्म की माल सूची एवं मूल्यवर्धित के बीच सम्बन्ध:
फर्म के मूल्यवर्धित से अभिप्राय फर्म द्वारा मध्यवर्ती वस्तु के मूल्य में की जाने वाली वृद्धि से है अर्थात् एक फर्म द्वारा मध्यवर्ती वस्तु को उपयोग में लाकर उसे निर्मित माल में परिवर्तित किया जाता है, जिससे उस वस्तु के मूल्य में वृद्धि हो जाती है, इसे मूल्यवर्धित कहते हैं। मूल्यवर्धित की गणना करते समय फर्म के उत्पाद का मूल्य लिया जाता है जिसमें से मध्यवर्ती वस्तु की लागत को घटा दिया जाता है।

अर्थशास्त्र में, अबिक्रित निर्मित वस्तुओं अथवा अर्द्धनिर्मित वस्तुओं अथवा कच्चे मालों का स्टॉक जो कोई फर्म एक वर्ष से अगले वर्ष तक रखती है, उसे माल सूची कहते हैं। मूल्यवर्धित तथा माल सूची में सम्बन्ध पाया जाता है। मूल्यवर्धित की गणना करते समय फर्म के उत्पादन का मूल्य लिया जाता है। यदि फर्म वर्ष के दौरान अपने उत्पाद की कम मात्रा विक्रय कर पाती है तो फर्म की माल सूची का मूल्य बढ़ जाता है, इसके विपरीत यदि किसी कारण से फर्म वर्ष के दौरान अपने उत्पाद का अधिकांश भाग बेच देती है तो फर्म की माल सूची का मूल्य कम हो जाता है।

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प्रश्न 5. 
तीनों विधियों से किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद की गणना करने की किन्हीं तीन निष्पत्तियाँ लिखिए। संक्षेप में यह भी बताइए कि प्रत्येक विधि से सकल घरेलू उत्पाद का एक - सा मूल्य क्या आना चाहिए?
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद की गणना करने की तीन प्रमुख विधियाँ हैं-उत्पाद अथवा मूल्यवर्धित विधि, व्यय विधि तथा आय विधि। सकल घरेलू उत्पाद की गणना करने की तीनों विधियों के तरीके भिन्ना हैं किन्तु तीनों विधियों के फलस्वरूप प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद की माप सदैव समान होती है अर्थात्
\(\sum_{\mathrm{i}=1}^{\mathrm{N}} \mathrm{GVA}_{\mathrm{i}} \equiv \mathrm{C}+\mathrm{I}+\mathrm{G}+\mathrm{X}-\mathrm{M}\)

= W + P + In + R
अर्थात् अर्थव्यवस्था में जो भी उत्पाद होता है उसको बाजार में बेचकर प्राप्त राजस्व को उत्पाद के सभी साधनों में विभाजित कर दिया जाता है तथा उत्पाद के साधन इसे पुनः अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उपभोग पर व्यय कर देते हैं, अतः उत्पादन = आय = व्यय होता है। अत: प्रत्येक विधि से सकल घरेलू उत्पाद का मूल्य समान ही आता है।

प्रश्न 6. 
बजटीय घाटा और व्यापार घाटा को परिभाषित कीजिए। किसी विशेष वर्ष में किसी देश की कुल बचत के ऊपर निजी निवेश का आधिक्य 2000 करोड़ रु. था। बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रु. थी। उस देश में बजटीय घाटे का परिमाण क्या था?
उत्तर:
बजटीय घाटा: यदि सरकारी व्यय में सरकार द्वारा अर्जित कर राजस्व से अधिक वृद्धि होती है।
अर्थात् G > T की स्थिति होती है तो इसे बजटीय घाटा कहते हैं।

व्यापार घाटा: यदि किसी देश में निर्यातों से अर्जित राजस्व की तुलना में आयातों पर व्यय अधिक होता है अर्थात् M > x की स्थिति होती है तो इसे व्यापार घाटा कहते हैं।

बजटीय घाटे की राशि: यदि किसी विशेष वर्ष में किसी देश की कुल बचत के ऊपर निजी निवेश का आधिक्य 2000 करोड़ रुपये था तथा बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रु. थी। उस देश में बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रुपये ही रहेगी क्योंकि निजी निवेश के आधिक्य का बजटीय घाटे की राशि से कोई सम्बन्ध नहीं है। बजटीय घाटे का तात्पर्य सरकारी व्यय का सरकारी कर राजस्व से अधिक होना है। 

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प्रश्न 7. 
मान लीजिए कि किसी विशेष वर्ष में किसी देश का सकल घरेलू उत्पाद बाजार कीमत पर 1100 करोड़ रु. था। विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय 100 करोड़ रु. था। अप्रत्यक्ष कर मूल्य - उपदान का मूल्य 150 करोड़ रु. और राष्ट्रीय आय 850 करोड़ रुपये है, तो मूल्यह्रास के समस्त मूल्य की गणना कीजिए। 
उत्तर:
बाजार मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद = 1100 करोड़ रुपये 
जोड़ें (+) विदेशों से शुद्ध साधन आय = 100 करोड़ रुपये 
बाजार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय आय = 1200 करोड़ रुपये 
घटाएँ (-) अप्रत्यक्ष कर मूल्य - उपदान = 150 करोड़ रुपये 
कारक अथवा साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय आय = 1050 करोड़ रुपये 
मूल्यह्रास = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद - राष्ट्रीय आय
अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद 
= 1050 करोड़ रु.- 850 करोड़ रु. 
= 200 करोड़ रु.

प्रश्न 8. 
किसी देश विशेष में एक वर्ष में कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद 1900 करोड़ रु. है। फर्मों / सरकार के द्वारा परिवार को अथवा परिवार के द्वारा सरकार / फर्मों को किसी भी प्रकार का ब्याज अदायगी नहीं की जाती है, परिवारों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय 1200 करोड़ रु. है। उनके द्वारा अदा किया गया वैयक्तिक आयकर 600 करोड़ रु. है और फर्मे तथा सरकार द्वारा अर्जित आय का मूल्य 200 करोड़ रु. है। सरकार और फर्म द्वारा परिवार को की गई अंतरण अदायगी का मूल्य क्या है? 
उत्तर:
प्रश्नानुसार,
राष्ट्रीय आय अथवा कारक लागत पर
निवल राष्ट्रीय उत्पाद = 1900 करोड़ रु.
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 1200 करोड़ रु.
वैयक्तिक आयकर = 600 करोड़ रु.
फर्म तथा सरकार द्वारा
अर्जित आय = 200 करोड़ रु.

सूत्र:
वैयक्तिक प्रयोज्य आय= साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद
- फर्म तथा सरकार द्वारा अर्जित आय - वैयक्तिक आयकर + हस्तान्तरण भुगतान
1200 = 1900 - 200 - 600 + हस्तान्तरण भुगतान
1200 = 1100 + हस्तान्तरण भुगतान
हस्तान्तरण भुगतान = 1200 - 1100
 = 100 करोड़ रु

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प्रश्न 9. 
निम्नलिखित आँकड़ों से वैयक्तिक आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना कीजिए। 
(करोड़ रु. में.) 
(a) कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद 8000 
(b) विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय 200 
(c) अवितरित लाभ 1000 
(d) निगम कर 500 
(e) परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज 1500 
(f) परिवारों द्वारा भुगतान किया गया ब्याज 1200 
(g) अंतरण आय 
(h) वैयक्तिक कर
उत्तर:
वैयक्तिक आय ज्ञात करने का सूत्र:
वैयक्तिक आय = कारक लागत पर निक्ल घरेलू उत्पाद + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय – अवितरित लाभ - निगम कर + परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज - परिवारों द्वारा
भुगतान दिया गया ब्याज + अंतरण आय -
= 8000 + 200 - 1000 - 500 + 1500-1200 + 300
= 7300 करोड़ रु.
वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात करने का सूत्रवैयक्तिक प्रयोज्यं आय
- वैयक्तिक आय - वैयक्तिक कर = 7300 - 500
= 6800 करोड़ रुपये। 

प्रश्न 10. 
हजाम राजू एक दिन में बाल काटने के लिए 500 रु. का संग्रह करता है। इस दिन उसके उपकरण में 50 रु. का मूल्यह्रास होता है। इस 450 रुपये में से राजू 30 रु. बिक्री कर अदा करता है। 200 रु. घर ले जाता है और 220 रु. उन्नति और नए उपकरणों का क्रय करने के लिए रखता है। वह अपनी आय में से 20 रु. आय कर के रूप में अदा करता है। इन पूरी सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित में राज का योगदान ज्ञात कीजिए। (a) सकल घरेलू उत्पाद (b) बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (c) कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (d) वैयक्तिक आय (e)
वैयक्तिक प्रयोज्य आय। 
उत्तर:
(a) सकल घरेलू उत्पाद में राजू का योगदान: राजू हजाम का सकल घरेलू उत्पाद में 500 रुपये का योगदान होगा।
(b) बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान: राजू हजाम द्वारा निवल राष्ट्रीय उत्पाद में 450 रुपये (सकल घरेलू उत्पाद 500 रुपये - 50 रुपये मूल्यह्रास) का योगदान दिया जाएगा। कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान - कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद में राजू का योगदान 420 रुपये (बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद 450 - 30 रुपये अप्रत्यक्ष कर) का होगा।
(d) वैयक्तिक आय में योगदान: राजू का वैयक्तिक आय में योगदान 200 (राष्ट्रीय आय 420 रुपये - अवितरित लाभ 220 रुपये) का होगा।
(e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय में योगदानवैयक्तिक प्रयोज्य आय में राजू का योगदान 180 रुपये (वैयक्तिक आय 200 रुपये - आयकर 20 रुपये) होगा।

RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 11. 
किसी वर्ष एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य 2500 करोड़ रु. था। उसी वर्ष, उस देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य किसी आधार वर्ष की कीमत पर 3000 करोड़ रु. था। प्रतिशत के रूप में वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक के मूल्य की गणना कीजिए। क्या आधार वर्ष और उल्लेखनीय वर्ष के बीच कीमत स्तर में वृद्धि हुई?
उत्तर:
सकल घरेलू अवस्फीतिक के मूल्य की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी
GNP deflator = 
RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 1
\(=\frac{2500}{3000} \times 100\)
= 83.33%
अतः यहाँ स्पष्ट है आधार वर्ष की तुलना में उल्लेखनीय वर्ष में कीमत स्तर में कमी आई है।

प्रश्न 12. 
किसी देश के कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की कुछ सीमाओं को लिखो।
उत्तर:
कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पादन की सीमाएँ:
 कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की कुछ सीमाएँ हैं, जो निम्न प्रकार हैं।

1. सकल घरेलू उत्पाद का वितरण-देश का कल्याण इस बात पर निर्भर करेगा कि देश में सकल घरेलू उत्पाद का वितरण कितना समरूप है? यदि देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हो रही, तो कल्याण में ' उसके अनुसार वृद्धि नहीं हो सकती है। इस स्थिति में सम्पूर्ण देश के कल्याण में वृद्धि नहीं हो सकती। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि वर्ष 2000 में किसी काल्पनिक देश में 100 व्यक्ति थे, जिनमें प्रत्येक की आय 10 रुपये थी। अतः देश का सकल घरेलू उत्पाद 1000 रुपये था (आय विधि से)। मान लीजिए 2001 में उसी देश में 90 व्यक्तियों में प्रत्येक व्यक्ति की आय १ रुपये थी और शेष 10 व्यक्तियों की प्रति व्यक्ति आय 20 रुपये थी।

यह मान लिया जाता है कि वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में इन दोनों अवधियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वर्ष 2001 में देश की सकल घरेलू उत्पाद - 90 x (9 रुपये) + 10 x (20 रुपये) - 810 रुपये + 200 रुपये 1010 रुपये। अवलोकन कीजिए कि 2000 की तुलना में 2001 में देश की सकल घरेलू उत्पाद 10 रुपये अधिक था। किन्तु यह तब हुआ, जब 90 प्रतिशत लोगों की आय में 10 प्रतिशत की कमी (10 रुपये से 9रुपये) आयी।

जबकि केवल 10 प्रतिशत लोगों को अपनी आय में 100 प्रतिशत (10 रुपये से बढ़कर 20 रुपये) वृद्धि का लाभ मिला। 90 प्रतिशत लोगों की आर्थिक स्थिति देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के उपरान्त दयनीय हो गई। यदि हम देश के कल्याण में उन्नति समृद्ध लोगों के प्रतिशत से करें, तो निश्चित रूप से सकल घरेलू उत्पाद कल्याण अच्छा सूचकांक नहीं है।

2. गैर - मौद्रिक विनिमय: अर्थव्यवस्था के अनेक कार्यकलापों का मूल्यांकन मौद्रिक रूप में नहीं होता। उदाहरणार्थ, महिलाएं जो अपने घरों में घरेलू सेवाओं का निष्पादन करती हैं, उसके लिए उन्हें कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता। मुद्रा की सहायता के बिना अनौपचारिक क्षेत्रक में जो विनिमय होते हैं, उसे वस्तु विनिमय कहते हैं। वस्तु विनिमय में वस्तुओं व सेवाओं का एक - दूसरे के बदले प्रत्यक्ष रूप से विनिमय होता है, लेकिन चूंकि मुद्रा का यहाँ प्रयोग नहीं होता है, इसलिए विनिमय दरों को आर्थिक कार्यकलाप का हिस्सा नहीं माना जाता है।

विकासशील देशों में जहाँ अनेक सुदूर क्षेत्र अल्प - विकसित हैं, इस प्रकार के वस्तु विनिमय होते हैं। लेकिन इनकी गणना प्रायः देश के घरेलू उत्पादों में नहीं होती। इस स्थिति में सकल घरेलू उत्पाद का अल्प - मूल्यांकन होता है, अत: सकल घरेलू उत्पाद का मूल्यांकन मानक तरीके से करने पर हमें उत्पादक कार्यकलाप और किसी देश के कल्याण का स्पष्ट संगत नहीं मिलता है।

3. बाह्य कारण: बाह्य कारणों से तात्पर्य किसी फर्म या व्यक्ति के लाभ (हानि) से है, जिससे दूसरा पक्ष प्रभावित होता है जिसे भुगतान नहीं किया जाता है । बाह्य कारणों का कोई बाजार नहीं होता है, जिसमें उनको खरीदा या बेचा जा सके । उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक तेल शोधक संयंत्र है, जिसमें कच्चे पेट्रोलियम का परिशोधन होता है और उसे बाजार में बेचा जाता है। तेल शोधक यंत्र का निर्गत इसके द्वारा परिशोधित तेल की मात्रा है।

हम तेल शोधक संयंत्र की मध्यवर्ती के मूल्य (इस स्थिति में कच्चा तेल) को इसके निर्गत से घटाकर मूल्यवर्धित का आकलन कर सकते हैं। तेल शोधक संयंत्र के मूल्यवर्धित की अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में गणना की जाती है। किन्तु उत्पादन के संचालन में तेल शोधक संयंत्र तटवर्ती नदियों को भी प्रदूषित कर सकता है । इससे उन लोगों को हानि पहुँच सकती है, जो नदी जल का उपयोग करते हैं ।

अतः उनकी उपयोगिता में कमी होगी। प्रदूषण से मछली अथवा नदी के अन्य जीवों के जीवन को भी खतरा होगा। इससे नदी का नाविक अपनी आय और उपयोगिता से वंचित होगा। इनके हानिकारक प्रभाव हैं । नाविक को नदी में मछली पकड़ने वालों की आय से वंचित होना पड़ सकता है। तेल शोधक संयंत्रों द्वारा दूसरों पर डाले गए हानिकारक प्रभावों जिनकी उन्हें कोई लागत नहीं अदा करनी होती है, बाह्य कारण कहे जाते हैं।

इस स्थिति में सकल घरेलू उत्पाद को इन बाहरी कारणों में शामिल नहीं किया गया है। अत: यदि हम सकल घरेलू उत्पाद को अर्थव्यवस्था के कल्याण की माप के रूप में लें, तो हमें वास्तविक कल्याण का अति मूल्यांकन प्राप्त होगा। यह ऋणात्मक बाह्यकरण का उदाहरण था। यह धनात्मक बाह्यकरण की स्थितियाँ भी हो सकती हैं। ऐसी स्थितियों में सकल घरेलू उत्पाद से अर्थव्यवस्था के वास्तविक कल्याण का अल्प - मूल्यांकन होगा।

Prasanna
Last Updated on Jan. 20, 2024, 9:32 a.m.
Published Jan. 19, 2024