RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 राष्ट्रवाद

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 राष्ट्रवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Political Science Solutions Chapter 7 राष्ट्रवाद

RBSE Class 11 Political Science राष्ट्रवाद InText Questions and Answers

प्रश्न 1. 
अपनी भाषा में देशभक्ति के किसी गीत की खोज करो। इस गीत में राष्ट्र को किस तरह दिखाया गया है?
अपनी भाषा में देशभक्ति की किसी फिल्म की खोज करो और उसे देखो। इस फिल्म में देशभक्ति को किस तरह दिखाया गया है और इसकी जटिलताओं को किस तरह हल किया है ?
उत्तर:
अपनी भाषा हिन्दी में देशभक्ति के कई गीत प्रचलित हैं। इसी प्रकार का एक गीत 'पूरब-पश्चिम' फिल्म का है। गीत के बोल हैं "है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहाँ के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ।" इस गीत को ध्यान से सुनने पर हम पाते हैं कि इसमें हमारे राष्ट्र (भारत) की ऐतिहासिक गरिमा का वर्णन किया गया है। इस गीत में भारत की सभ्यता और संस्कृति के अद्वितीय लक्षणों को बड़े ही अच्छे ढंग से काव्य रूप में प्रस्तुत किया गया है। गीत की शुरूआत में भारत द्वारा दुनिया में जो योगदान किया गया (जैसे-शून्य '0' दुनिया को भारत की देन है) उसके बारे में बताया गया है। कुल मिलाकर शुरुआती पंक्तियों सहित पूरा गीत भारत के राष्ट्रीय गौरव को पूरी दुनिया में सिद्ध करने वाली भावनाओं से प्रेरित है। इस गीत में भारत को सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान इत्यादि की दृष्टि से एक सम्पन्न राष्ट्र के रूप में दिखाया गया है। अपनी भाषा में देशभक्ति की एक फिल्म के रूप में भी हम 'पूरब-पश्चिम' फिल्म का उल्लेख कर सकते हैं। 

इस फिल्म में देशभक्ति को बहुत ही व्यापक रूप में दिखाया गया है। फिल्म का नायक अपने सगे-सम्बन्धियों की तलाश में इंग्लैण्ड जाता है। वह पाश्चात्य कपड़े भी पहनने लगता है। लेकिन वह वहाँ रहकर. भी भारत की बुराई को सहन नहीं कर पाता। वह हर बार मौका आने पर अपने भारत का गुणगान करता है। अन्त में वह विदेश में रह रहे उन भारतीयों के दिल में भी भारत के प्रति प्रेम और सम्मान जगा देता है, जो परदेश जाकर उसी रंग में रंग गये थे और अपने ही देश का मजाक बनाते थे। - यह फिल्म संदेश देती है कि हम दुनिया में कहीं रहें, कुछ भी करें, लेकिन देशभक्ति और अपने वतन की यादें हमेशा हमारे साथ ही रहती हैं। इस फिल्म में देशभक्ति की जटिलता को व्यापक और उदार नजरिया अपनाकर हल किया गया है। फिल्म यह संदेश देती है कि देशभक्ति या राष्ट्रवाद को लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। यह ऐसी भावना है जो स्वतः उत्पन्न होनी चाहिए। इसका उद्देश्य मानवता की रक्षा होना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 राष्ट्रवाद  

प्रश्न 2. 
बास्क में आत्म-निर्णय की माँग
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय ....................................जिसका समाधान हो चुका है।
(i) क्या आपके विचार में बास्क राष्ट्रवादियों की अलग राष्ट्र की माँग जायज है ? क्या बास्क एक राष्ट्र है ? इस सवाल का उत्तर देने के पहले आप और किन बातों की जानकारी चाहेंगे ?
(ii) क्या आप दुनिया के दूसरे भागों के ऐसे उदाहरणों के बारे में विचार कर सकते हैं ? क्या आप अपने देश के ऐसे क्षेत्रों और समूहों के बारे में विचार कर सकते हैं, जहाँ इस तरह की माँग की जा रही है ?
उत्तर:
(i) दिये गये विवरण के अनुसार हमारे विचार में बास्क राष्ट्रवादियों की अलग राष्ट्र की माँग वर्तमान परिस्थितियों में उतनी जायज प्रतीत नहीं होती जितनी कि स्पेनी तानाशाह फ्रेंको के शासन के समय थी। फिर भी इस मांग को पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता। बास्क के लोगों का भय अपनी जगह सही है। दिये गये विवरण के अनुसार 'बास्क' को एक राष्ट्र नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह जानकारी दी गयी है कि बास्क के मात्र 1/3 लोग ही आज अपनी मूल भाषा को समझ पाते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि बास्क को एक स्वायत्त क्षेत्र का दर्जा प्राप्त है। अतः ‘बास्क' राष्ट्र है या नहीं यह निश्चित रूप से तभी. कहा जा सकता है कि जब हमें निम्न जानकारियाँ प्राप्त हों
(क) बास्क के लोगों की निष्ठा बास्क के प्रति है या नहीं। 
(ख) बास्क का अपना अलग इतिहास है कि नहीं। 
(ग) बास्क का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र रहा है या नहीं। 
(घ) बास्क में सामाजिक-राजनीतिक स्थितियाँ क्या हैं ?

(ii) हाँ, हम दुनिया के दूसरे भागों के ऐसे उदाहरणों के बारे में भी विचार कर सकते हैं। इस तरह का एक महत्वपूर्ण उदाहरण 'सोवियत संघ' के विघटन के रूप में हमने देखा है। सोवियत संघ का निर्माण कई राष्ट्रों से मिलकर हुआ था। परन्तु लम्बे समय तक उपेक्षा सहने के बाद इन राष्ट्रों ने अलग अस्तित्व की माँग बुलन्द की। फलस्वरूप 25 दिसम्बर 1991 ई. में सोवियत संघ का 15 राष्ट्रों के रूप में विघटन हो गया। इससे लिथुआनिया, रूस, यूक्रेन, आर्मेनिया, अजरबेजान, बेलारूस, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान इत्यादि नये स्वतन्त्र राष्ट्रों का उदय हुआ। हमारे देश में भी आजादी के पहले ही इसी तरह की माँग उठ चुकी है। तभी 'पाकिस्तान' के रूप में नये राष्ट्र का उदय हुआ था। इसी प्रकार 1970-80 के दशक में पंजाब में पृथक 'खालिस्तान' की माँग ने भी काफी जोर पकड़ा था।

प्रश्न 3. 
भारत और भारत से बाहर आत्म-निर्णय के अधिकार की मांग कर रहे विभिन्न समूहों से सम्बन्धित समाचार-पत्र-पत्रिकाओं की कतरनों को इकट्ठा करो। निम्न मामलों पर अपनी राय बनाओ-

  1. इन माँगों के पीछे क्या कारण हैं ?
  2. इनके संघर्ष की प्रकृति क्या है ?
  3. क्या उनकी माँग जायज है ? 
  4. आप क्या सोचते हैं ? सम्भव समाधान क्या हो सकता है ? 

उत्तर:
(i) इन मांगों के पीछे कई कारण हैं
(क) विकास की प्रक्रिया में उपेक्षा का शिकार होना।
(ख) अपनी भाषा व संस्कृति पर लोगों को खतरा महसूस होना। 
(ग) अपने क्षेत्र को सर्वोपरि मानने व सिद्ध करने की भावना इत्यादि।
(घ) कुछ राजनेताओं की सत्ता प्राप्त करने की लालसा आदि। 

(ii) आत्म-निर्णय के अधिकार की माँगों से जुड़े संघर्षों की प्रकृति की बात की जाए तो ये आमतौर पर अहिंसक होने का दिखावा तो करते हैं, लेकिन व्यावहारिकता में ये संघर्ष हिंसक प्रवृत्ति के हैं। अपनी बात मनवाने के लिए इन संघर्षों में भारी हिंसा व रक्त-पात से परहेज नहीं किया जाता है।

(iii) इन संघर्षों में लोगों की माँग जायज है या नहीं, यह एक जटिल प्रश्न है। कुछ मामलों में यह जायज होती है और अधिकांश मामलों में यह माँग जायज प्रतीत नहीं होती है।

(iv) हमारे विचार से इन माँगों व संघर्षों के समाधान के लिए निम्न उपाय किये जा सकते है
(क) सभी क्षेत्रों का समान विकास निश्चित किया जाए। 
(ख) देश में सभी संस्कृतियों, भाषाओं तथा धर्मों के साथ समान व्यवहार किया जाए। 
(ग) सभी क्षेत्र के लोगों को अपनी-अपनी संस्कृति की रक्षा व प्रचार-प्रसार का अधिकार दिया जाए। 
(घ) समाज में देशभक्ति की भावना स्वाभाविक तौर पर उत्पन्न करने वाली जागरूकता व शिक्षा का प्रसार किया जाए। 

RBSE Class 11 Political Science राष्ट्रवाद Textbook Questions and Answers

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 राष्ट्रवाद

प्रश्न 1. 
राष्ट्र किस प्रकार से बाकी सामूहिक संबद्धताओं से अलग है ?
उत्तर:
राष्ट्र का बाकी सामूहिक संबद्धताओं (संस्थाओं, समुदायों) से अलग होना–समाज में कई संस्थाएँ व समुदाय पाए जाते हैं, जैसे-परिवार, धार्मिक समुदाय आदि। राष्ट्र इन सबसे कई प्रकार से अलग होता है। राष्ट्र के अन्य सामाजिक संगठनों, संस्थाओं आदि से अलग होने के सन्दर्भ में हम निम्नलिखित आधारों का उल्लेख कर सकते हैं

(i) प्रत्यक्ष सम्बन्ध-प्रत्यक्ष सम्बन्धों के आधार पर देखें तो हम पाते हैं कि समाज में पाए जाने वाले विभिन्न समूह व समुदाय प्रत्यक्ष सम्बन्धों पर आधारित होते हैं, जैसे-'परिवार'। परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे को भली प्रकार जानते व समझते हैं। परन्तु राष्ट्र ऐसा समुदाय होता है जिसमें अधिकांश सदस्यों के मध्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध ही नहीं होते। अपने ही राष्ट्र के सदस्य दूसरे लोगों को न तो जान पाते हैं न मिल पाते हैं। अतः राष्ट्र इस मामले में भिन्न है।

(ii) विवाह व वंश परम्परा समाज के विभिन्न समुदायों में विवाह, वंश परम्परा इत्यादि पाये जाते हैं जबकि राष्ट्र के निर्माण में इन बातों का कोई महत्व नहीं होता है। इस आधार पर भी राष्ट्र को अन्य सामाजिक समुदायों, संस्थाओं से अलग माना जा सकता है।

(ii) राष्ट्र का काल्पनिक समुदाय होना-समाज के विभिन्न समुदाय जहाँ वास्तविक सम्बन्धों पर आधारित होते हैं वहीं राष्ट्र काल्पनिक सम्बन्धों पर आधारित एक काल्पनिक समुदाय होता है। राष्ट्र का निर्माण अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास, आकांक्षाओं और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बंधा होता है। अतः इस आधार पर भी राष्ट्र अन्य सामाजिक समुदायों की तुलना में भिन्न प्रतीत होता है।

अतः उपर्युक्त आधारों पर हम कह सकते हैं कि राष्ट्र अन्य सभी सामाजिक समुदायों, संस्थाओं इत्यादि से अलग एक व्यापक एवं काल्पनिक समुदाय है। राष्ट्र कुछ खास मान्यताओं पर आधारित होता है जिन्हें लोग सम्पूर्ण समाज की भलाई के लिए विकसित करते हैं, जिससे वे अपनी पहचान कायम करते हैं।

प्रश्न 2. 
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार से आप क्या समझते हैं ? किस प्रकार यह विचार राष्ट्र-राज्यों के निर्माण और उनको मिल रही चुनौती में परिणत होता है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय का अधिकार राष्ट्रों द्वारा अपने शासन व प्रशासन की व्यवस्था स्वयं करने एवं अपना भविष्य तय करने के लिए माँगा जाने वाला अधिकार ही 'राष्ट्रीय आत्म-निर्णय' का अधिकार कहलाता है। राष्ट्र इस अधिकार के तहत अपनी सीमा में शासन व प्रशासन को स्वयं संभालते हैं। सीमाओं की सुरक्षा करते हैं और अन्य राष्ट्रों के दखल को भी रोकते हैं। राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार की माँग का उदाहरण हमें पराधीन राष्ट्रों द्वारा की जाने वाली स्वतन्त्रता की माँग में दिखाई पड़ता है, जैसे-भारत द्वारा ब्रिटिश पराधीनता के खिलाफ 'आत्म-निर्णय' के अधिकार की माँग उठाई गई थी। आत्म-निर्णय का अधिकार राष्ट्र-राज्यों के निर्माण के रूप में 19वीं-20वीं सदी में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय का अधिकार साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी ताकतों के खिलाफ एक मजबूत हथियार बन गया था।

इस माँग पर सभी लोगों के एकमत होने से राष्ट्र-राज्यों का निर्माण होना प्रारम्भ हुआ। अनेक छोटे-छोटे राज्य इस आधार पर राष्ट्र-राज्य के सदस्य बनने लगे कि इसमें उनकी स्वतन्त्रता भी बनी रहेगी और पराधीनता से सुरक्षा भी प्राप्त होगी। इस प्रकार आत्म-निर्णय के अधिकार ने राष्ट्र-राज्यों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आत्म-निर्णय का अधिकार राष्ट्र-राज्यों के समक्ष चुनौती के रूप में 19वीं-20वीं सदी में विदेशी ताकतों के खिलाफ शक्तिशाली राष्ट्रीय-राज्यों का निर्माण करने में महत्वपूर्ण रहा 'राष्ट्रीय आत्म-निर्णय का अधिकार' ही आज एक चुनौती बन चुका है। अब इन राष्ट्रों में अपनी ही सरकारों से अलग स्वतन्त्र अस्तित्व की माँगें की जाने लगी हैं। इसी कारण सोवियत संघ जैसा विशाल व ताकतवर राष्ट्र-राज्य कई देशों में विभक्त हो गया। भारत का भी पाकिस्तान के रूप में विभाजन हो गया। अतः राष्ट्रीय आत्म-निर्णय का अधिकार आज राष्ट्र-राज्यों के सामने एक चुनौती बनता जा रहा है। 

प्रश्न 3. 
हम देख चुके हैं कि राष्ट्रवाद लोगों को जोड़ भी सकता है और तोड़ भी सकता है। उन्हें मुक्त कर सकता है और उनमें कटुता और संघर्ष भी पैदा कर सकता है। उदाहरणों के साथ उत्तर दीजिए।
उत्तर:
19वीं-20वीं सदी में राष्ट्रवाद एक सर्वाधिक प्रभावी राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उभरा। इसने एक ओर लोगों में निष्ठा का संचार किया तो दूसरी ओर लोगों में आपसी विद्वेष को भी बढ़ाया। राष्ट्रवाद ने अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाने में मदद की है तो दूसरी ओर इसने राष्ट्रों के बीच कटुता और युद्धों को बढ़ावा भी दिया है। उदाहरण-राष्ट्रवाद ही वह ताकत थी जिसने एशिया और अफ्रीका के अधिकांश पराधीन राष्ट्रों को स्वतंत्रता की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया। आज इनमें से अधिकांश राष्ट्र स्वतन्त्र हो चुके हैं और कुछ शेष राष्ट्र भी स्वतंत्रता की कगार पर खड़े हैं। 'भारत' भी इसी प्रकार का एक राष्ट्र है जिसकी स्वतन्त्रता में 'राष्ट्रवाद' ही सबसे बड़ी ताकत बना था।

वहीं दूसरी तरफ हमने दो-दो विश्वयुद्धों का सामना भी किया है। इन विश्वयुद्धों का प्रमुख कारण उग्र-राष्ट्रवाद ही था। अपने इस रूप में राष्ट्रवाद ने लोगों में घृणा व नफरत को बढ़ाने में योगदान दिया। वास्तव में राष्ट्रवादी संघर्षों ने राष्ट्रों और साम्राज्यों की सीमाओं के निर्धारण और पुनः निर्धारण में योगदान किया है। आज भी दुनिया का एक बड़ा भाग विभिन्न राष्ट्र-राज्यों में बंटा हुआ है। राष्ट्रवाद अब तक कई चरणों से गुजर चुका है। उदाहरण के लिए 19वीं सदी के यूरोप में राष्ट्रवाद ने कई छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से बड़े-बड़े राष्ट्र-राज्यों की स्थापना का मार्ग दिखाया।

आज के जर्मनी और इटली का गठन इसी एकीकरण का परिणाम है। - राष्ट्रवाद बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन का भी कारण बना है। यूरोप में 20वीं सदी के प्रारम्भ में ऑस्ट्रियाई, हंगोरियाई, और रूसी साम्राज्यों के विघटन का मूल कारण राष्ट्रवाद ही था। इस प्रकार राष्ट्रवाद के दो पहलू रहे हैं। एक तरफ राष्ट्रवाद ने लोगों को जोड़ा है, उन्हें दासता से मुक्त कराया है तो दूसरी तरफ इसने लोगों में कटुता को पैदा करके उन्हें तोड़ने का भी कार्य किया है।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 राष्ट्रवाद

प्रश्न 4. 
वंश, भाषा, धर्म या नस्ल में से कोई भी पूरे विश्व में राष्ट्रवाद के लिए साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकता। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
आमतौर पर यह मान्यता है कि राष्ट्रों का निर्माण ऐसे समूहों द्वारा किया जाता है जो कुल (वंश), भाषा, धर्म या नस्ल जैसे कुछ एक निश्चित पहचान के आधार पर सहभागी होते हैं। वास्तव में देखा जाए तो ऐसे निश्चित एवं विशिष्ट गुण वास्तव में राष्ट्रवाद में होते ही नहीं हैं। जिनके आधार पर यह कहा जा सके कि सभी निवासी उस आधार पर स्वाभाविक तौर पर सहभागी हैं। कई ऐसे राष्ट्र राज्य हैं जिनकी अपनी कोई साझी भाषा तक नहीं है। उदाहरण के लिए हम ‘कनाडा' को देख सकते हैं। कनाडा में अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या अधिक है।

हमारे देश भारत में भी अनेक भाषाएँ बोलने व समझने वाले लोग अलग-अलग क्षेत्रों में रहते हैं। इसी प्रकार कुछ राष्ट्रों में उनको जोड़ने वाला कोई सामान्य धर्म भी नहीं है। नस्ल, रंग या वंश के विषय में भी हमें यही स्थिति दिखाई पड़ती है। वास्तव में राष्ट्र एक 'काल्पनिक' समुदाय है। यह अपने सदस्यों के काल्पनिक विश्वास, आस्था आदि से बँधा होता है। इस प्रकार हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि वंश, भाषा, धर्म या नस्ल में से कोई भी पूरे विश्व में राष्ट्रवाद के निर्माण का साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकता है।

प्रश्न 5. 
राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारकों पर सोदाहरण रोशनी डालिए।
उत्तर:
राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाले कारक राष्ट्रवाद की भावना को कई कारकों से बढ़ावा मिलता है। इनमें से कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं
(i) साझे विश्वास-राष्ट्रवाद की भावना को प्रेरित करने वाला एक प्रमुख कारक उसमें रहने वाले लोगों का सामूहिक विश्वास है। किसी निश्चित स्थान पर रहने वाला समूह अपनी सामूहिक पहचान बनाने एवं राजनीतिक अस्तित्व को कायम करने के विश्वास से प्रेरित होने पर ही राष्ट्र के निर्माण व विकास के बारे में सोचता है। उदाहरण के लिए हम क्रिकेट टीम को देख सकते हैं। सभी खिलाड़ी अपनी एक पहचान बनाने के लिए सामूहिक तौर पर मिलकर खेलते हैं। यदि वे अलग हो जाएँ तो टीम बिखर जाएगी और उनकी पहचान तथा हैसियत समाप्त हो जाएगी। इसी प्रकार एक राष्ट्र का अस्तित्व तभी कायम रहता है जब उसके सदस्यों को यह विश्वास हो कि वे एक-दूसरे के साथ हैं।

(ii) इतिहास-राष्ट्रवाद की भावना को इतिहास भी प्रेरणा प्रदान करता है। जो लोग अपने को एक राष्ट्र मानते हैं उनके भीतर अपने बारे में अधिकांश तौर पर एक स्थायी ऐतिहासिक पहचान की भावना होती है। इस प्रकार राष्ट्र स्वयं को इस रूप में देखते हैं जैसे वे बीते अतीत (इतिहास) के साथ-साथ आने वाले भविष्य को समेटे हुए हों।

(iii) भू-क्षेत्र-एक निश्चित भू-क्षेत्र पर लम्बे समय तक साथ-साथ रहना और उससे जुड़ी साझे अतीत की यादें लोगों को एक सामूहिक पहचान का बोध देती हैं। इस प्रकार भू-क्षेत्र भी राष्ट्रवादी भावना को प्रेरित करने वाला प्रमुख कारक है।

(iv) साझे राजनीतिक आदर्श किसी भी राष्ट्र के सदस्यों की इस बारे में एक साझा दृष्टि होती है कि वे किस तरह का राज्य बनाना चाहते हैं। बाकी बातों के अलावा वे लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और उदारवाद जैसे मूल्यों व सिद्धान्तों को स्वीकार करते हैं। यही सिद्धान्त साझे राजनीतिक आदर्श कहलाते हैं। इस प्रकार साझे राजनीतिक आदर्श भी राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरणा प्रदान करने वाला एक प्रमुख कारक है।

(v) साझी राजनीतिक पहचान-राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रेरित करने वाला यह एक महत्वपूर्ण कारक है। राष्ट्र की कल्पना राजनीतिक शब्दावली में की जानी चाहिए अर्थात लोकतंत्र में किसी विशेष धर्म, नस्ल या भाषा से संबद्धता की जगह एक मूल्य समूह के प्रति निष्ठा की जरूरत होती है। इस मूल्य समूह को देश के संविधान में भी दर्ज किया जा सकता है।

प्रश्न 6. 
संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोकतंत्र अधिक समर्थ होता है। कैसे ?
उत्तर:
अब तक विश्व में राष्ट्रवादी भावनाओं और कल्पनाओं को साकार करने के लिए अनेक संघर्ष हो चुके हैं। इन संघर्षों की प्रकृति, कारणों और परिणामों का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि ऐसे संघर्षों में लोकतंत्र तानाशाही की तुलना में ज्यादा समर्थ व उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसके समर्थन में निम्नलिखित तथ्यों का उल्लेख किया जा सकता है
(i) विचारों का आदान-प्रदान होना-लोकतंत्र में विचारों का आदान-प्रदान आसान होता है। इसमें संघर्षशील लोग अपनी बात व्यवस्था के सामने खुलकर रख सकते हैं। इस प्रकार एक बातचीत का माहौल बनता है और समस्या का स्थायी समाधान खोजा जा सकता है।

(ii) धैर्य एवं सहनशीलता-लोकतांत्रिक व्यवस्था की विशेषता होती है कि इसमें सदैव धैर्य और सहनशीलता के साथ प्रतिक्रिया की जाती है। इससे कई बार हमारे विरोधी भी हमारे समर्थक बन जाते हैं। उदाहरण के लिए स्पेन में बास्क के लोग पूरी स्वायत्तता के साथ शान्तिपूर्वक रह रहे थे। पृथक राष्ट्र की माँग दुर्बल थी। परन्तु तानाशाह फ्रेंको की आतुरता और प्रतिक्रियावादी नीतियों के परिणामस्वरूप आज 'बास्क' का राष्ट्रवादी संघर्ष उग्र रूप धारण कर चुका है।

(ii) लोकतंत्र में परस्पर विरोधी मतों में सामंजस्य बिठाने का प्रयास किया जाता है-लोकतंत्र में एक ही मुद्दे पर प्रचलित समर्थक व विरोधी दोनों मतों को समान महत्व प्रदान किया जाता है। लोकतंत्र में निरन्तर यह प्रयास किया जाता है कि परस्पर विरोधी मतों में सामंजस्य बैठाकर कोई बीच का रास्ता निकाल लिया जाए। उदाहरण के लिए स्पेन में 'बास्क' का राष्ट्रवादी संघर्ष उठा तो लोकतांत्रिक सरकार ने बास्क को पूर्ण स्वायत्त राज्य का दर्जा देकर बीच का रास्ता निकाल लिया और 'बास्क' का राष्ट्रवादी संघर्ष शिथिल पड़ गया। वहीं तानाशाही शासन में 'बास्क' की स्वायत्तता को समाप्त कर अन्य राज्यों के समान बना दिया गया। इससे वहाँ फिर से राष्ट्रवादी संघर्ष चरम पर पहुँच गया है। इस प्रकार उपर्युक्त आधारों पर स्पष्ट है कि संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोकतंत्र अधिक समर्थ होता है।

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प्रश्न 7. 
आपकी राय में राष्ट्रवाद की सीमाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
राष्ट्रवाद की सीमाएँ-हमारी राय में राष्ट्रवाद एक उपयोगी धारणा तो है परन्तु तभी तक, जब तक यह अपनी सीमाओं में रहे। हमारी राय में राष्ट्रवाद की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-
(i) मानवता की रक्षा-राष्ट्रवाद की एक प्रमुख सीमा मानवता की रक्षा है। राष्ट्रवाद को वहीं तक सही ठहराया जा सकता है जहाँ तक यह मानवता के हित में हो। यदि राष्ट्रवाद के नाम पर मानवता को भुला दिया जाए तो यह गलत होगा, जैसे-जर्मनी, इटली इत्यादि देशों में तानाशाहों द्वारा कोरे राष्ट्रवाद के नाम पर हजारों लोगों का नरसंहार कराया गया। यह पूर्णतः गलत है और हम राष्ट्रवाद को इस रूप में स्वीकार नहीं कर सकते।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व शान्ति राष्ट्रवाद की एक अन्य सीमा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व शान्ति भी है। राष्ट्रवाद जब भी इस सीमा का उल्लंघन करता है तो हमें भयानक हानि उठानी पड़ती है और इसके औचित्य पर प्रश्न चिह्न लग जाता है। उदाहरण के लिए हमें सन् 1914-18 तथा सन् 1939-45 में दो बार विश्वयुद्धों का सामना करना पड़ा। यह इस सीमा के उल्लंघन का ही परिणाम था।

(iii) लोकतांत्रिक मूल्य–लोकतांत्रिक मूल्य, जैसे-स्वतन्त्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता इत्यादि भी राष्ट्रवाद की सीमा के रूप में कार्य करते हैं। हम कोरे राष्ट्रवाद के नाम पर व्यक्तियों की स्वतन्त्रता, समानता को छीन नहीं सकते। जिस व्यवस्था में ऐसा किया जाता है, उसे भयानक विद्रोहों व उथल-पुथल का सामना करना पड़ता है।

(iv) औचित्य-राष्ट्रवाद पर औचित्य की भी सीमा होती है। राष्ट्र का निर्माण लोग अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के लिए करते हैं। अतः राष्ट्रवाद का औचित्य होता है कि एक राष्ट्र में सदस्यों की पहचान की रक्षा की जाए। परन्तु यदि राष्ट्रवाद के नाम पर सदस्यों की पहचान को कुर्बान कर दिया जाए तो यह राष्ट्रवाद के औचित्य को समाप्त करने वाला कार्य होगा। उदाहरण के लिए भारत में एक राष्ट्र के अन्तर्गत विविध राज्य शामिल हैं। इनकी अपनी पहचान और अधिकार हैं। राष्ट्रवाद के नाम पर इन राज्यों को समाप्त करके केवल 'भारत' के रूप में एक राष्ट्र बनाया जाए तो यह शीघ्र ही बिखर जाएगा। 

Prasanna
Last Updated on Sept. 1, 2022, 10:06 a.m.
Published Aug. 30, 2022