RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class11 Political Science Solutions Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व

RBSE Class 11 Political Science चुनाव और प्रतिनिधित्व InText Questions and Answers

प्रश्न 1. 
क्या बिना चुनाव के लोकतंत्र कायम रह सकता है ?
उत्तर:
नहीं, बिना चुनाव के लोकतंत्र कायम नहीं रह सकता, क्योंकि वर्तमान लोकतंत्र का स्वरूप प्रतिनिध्यात्मक है जो जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा संचालित होता है। 

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व  

प्रश्न 2. 
क्या बिना लोकतंत्र के चुनाव हो सकता है ?
उत्तर;
गैर लोकतांत्रिक शासक स्वयं को लोकतांत्रिक साबित करने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं। इसके लिए वे चुनावों को ऐसे ढंग से कराते हैं कि उनके शासन को कोई खतरा न हो। बिना लोकतंत्र के निष्पक्ष व स्वतंत्र चुनाव नहीं हो सकते। लेकिन अनेक गैर-लोकतांत्रिक देशों में भी चुनाव होते हैं।

प्रश्न 3. 
कहा जाता है कि चुनाव लोकतंत्र का त्यौहार है लेकिन दिए गए कार्टून में उसे एक आफत के रूप में दिखाया गया है । क्या यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है?
उत्तर:
नि:संदेह वर्तमान में प्रायः प्रत्येक देश में ही अप्रत्यक्ष लोकतंत्र है। चुनाव उनका त्यौहार है। चुनाव प्रायः शांतिपूर्ण ढंग से ही सम्पन्न होते हैं, लेकिन उपर्युक्त कार्टून में चुनाव को एक आफत के रूप में दिखाया गया है। यह लोकतंत्र के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। चुनाव निडर, निष्पक्ष, शांतिपूर्ण एवं गुप्त ढंग से मतदान द्वारा ही होना चाहिए।

प्रश्न 4. 
50 प्रतिशत से भी कम वोट और 80 प्रतिशत से अधिक सीटें ! क्या यह ठीक है ? हमारे संविधान निर्माताओं ने ऐसी गड़बड़ व्यवस्था को कैसे स्वीकार किया ?
उत्तर:
सन् 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 50 प्रतिशत से भी कम वोट मिले, लेकिन 80 प्रतिशत से अधिक सीटें मिलीं, अर्थात् यहाँ पार्टी को प्राप्त मतों के अनुपात में ज्यादा सीटें मिलीं, क्योंकि अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में जहाँ उसके प्रत्याशी जीते 50 प्रतिशत से कम वोट मिले। उदाहरणस्वरूप यदि चुनाव मैदान में कई प्रत्याशी हों तो जीतने वाले प्रत्याशी को प्रायः 50 प्रतिशत से कम वोट मिलते हैं। सभी हारने वाले प्रत्याशियों के वोट बेकार चले जाते हैं, क्योंकि इन वोटों के आधारों पर उन प्रत्याशियों या दलों को कोई सीट नहीं मिलती। 

संविधान निर्माताओं द्वारा हमारे देश में चुनाव की एक विशेष व्यवस्था की गई है, जिसके अन्तर्गत जिस प्रत्याशी को अन्य सभी प्रत्याशियों से अधिक वोट मिल जाते हैं, उसे ही निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। विजयी प्रत्याशी के लिये यह जरूरी नहीं कि उसे कुल मतों का बहुमत मिले। इस विधि को जो सबसे आगे वही जीते' प्रणाली (फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिस्टम) कहते हैं। चुनावी दौड़ में जो प्रत्याशी अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले सबसे आगे निकल जाता है, वही विजयी होता है। हमारे दृष्टिकोण से यही व्यवस्था व्यावहारिक प्रतीत होती है। यदि संविधान निर्माता इस व्यवस्था को स्वीकार न करते तो इस विशाल देश में काफी संघर्ष होते और देश की शान्ति भंग हो जाती।

प्रश्न 5. 
यह तो बड़ा भ्रम पैदा करने वाला है। इस व्यवस्था (समानुपातिक प्रतिनिधित्व) में हमें कैसे पता चलेगा कि हमारा सांसद या विधायक कौन है ? यदि मुझे कोई काम कराना है, तो मैं किसके पास जाऊँगा? (पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 57)
उत्तर:
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत पूरे देश को एक निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है और प्रत्येक पार्टी को राष्ट्रीय चुनावों में प्राप्त वोटों के अनुपात में सीटे दे दी जाती हैं, जिस अ त में उन्हें वोटों में हिस्सा मिलता है। अतः किसी निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि वास्तव में राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि होते हैं, उन्हीं प्रतिनिधि में से पार्टी एक निर्वाचन क्षेत्र के लिए सांसद या विधायक नियुक्त कर देती है। उन्हीं के पास जाकर हम अपना काम करवा सकते हैं।

प्रश्न 6. 
इस कार्टून में भीमकाय कांग्रेस के आगे विपक्ष एक बौने के रूप में दिखाया गया है। क्या यह हमारी निर्वाचन प्रणाली का परिणाम था?
उत्तर:
लोकतंत्र सत्ताधारी और विपक्षी दल से मिलकर बनता है। यदि सदन में लगभग 95 प्रतिशत स्थान या उससे अधिक स्थान सत्ताधारी दल के पास है एवं विरोधी दल का आकार नाममात्र का बहुत ही छोटा 1 या 5 प्रतिशत है, तो ऐसे छोटे विरोधी दल की आवाज सत्ताधारी दल नहीं सुनेगा और वह मजबूती के साथ विरोध नहीं करेगा। लोकतंत्र सत्ताधारी दल की मनमानी का उपकरण बन जाएगा। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ऐसा नहीं होना चाहिए। यह ठीक नहीं है।

प्रश्न 7. 
मैं इतनी समझ रखती हूँ कि भविष्य में अपने कैरियर को चुन सकूँ और इतनी उम्रदराज हूँ कि ड्राइविंग लाइसेंस बनवा सकूँ, तो क्या मैं इतनी बड़ी नहीं कि वोट डाल सकूँ ? यदि ये कानून मुझ पर लागू होते हैं, तो मैं इन कानून को बनाने वाले के बारे में फैसला क्यों नहीं ले सकती ?
उत्तर:
मुन्नी इतनी उम्रदराज है कि वह अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवा सकती है और अपना कैरियर चुन सकती है। इसका आशय है कि वह 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुकी है एवं वयस्क की श्रेणी में आती है। सन् 1989 में संविधान में संशोधन किया गया, जिसके द्वारा 18 वर्ष की आयु प्राप्त कोई भी व्यक्ति वयस्क की श्रेणी में आता है एवं उसे मत देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसलिए यहाँ पर मुन्नी अपने मत का प्रयोग करके चुनाव में खड़े व्यक्तियों में से किसी एक को मत देकर कानून को बनाने वाले के बारे में फैसला ले सकती है।

प्रश्न 8. 
भारत की आबादी में मुसलमान 14.2 प्रतिशत हैं। लेकिन लोकसभा में मुसलमान सांसदों की संख्या सामान्यतः 6 प्रतिशत से थोड़ा कम रही है जो जनसंख्या के अनुपात में आधे से भी कम है। यही स्थिति अधिकतर राज्य विधानसभाओं में भी है। तीन छात्रों ने इन तथ्यों से तीन अलग-अलग निष्कर्ष निकाले, आप बताएँ कि आप उनसे सहमत हैं या असहमत और हिलाल-यह सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली के अन्याय को दिखाता है। हमें समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनानी चाहिए थी। क्यों? आरिफ-यह अनुसूचित जातियों और जनजातियों को आरक्षण देने के औचित्य को बताता है। आवश्यकता इस बात की है कि मुसलमानों को भी उसी तरह का आरक्षण दिया जाए, जैसा अनुसूचित जातियों और जनजातियों को दिया गया। सबा-सभी मुसलमानों को एक जैसा मानकर बात करने का कोई मतलब नहीं है। मुसलमान महिलाओं को इसमें कुछ भी नहीं मिलेगा। हमें मुसलमान महिलाओं के लिए अलग आरक्षण चाहिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में धर्म आधारित आरक्षण का निषेध किया गया है, लेकिन किसी भी धर्म के पिछड़े हुए लोगों को समुचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण देने की व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। मुस्लिम महिलाएँ अधिक पिछड़ी हुई अवस्था में हैं, इसलिए मुस्लिम महिला वर्ग को पिछड़ा वर्ग मानते हुए मुस्लिम महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस दृष्टि से मैं सबा के मत से सहमत हूँ।

प्रश्न 9. 
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को हाथी के रूप में क्यों दिखाया गया है। क्या यह संभालने योग्य नहीं है? या यह उस कहानी की तरह है जिसमें कई अंधे हाथी के अलग-अलग अंगों के आधार पर उसे बताने की कोशिश करते हैं?
उत्तर:
नि:संदेह बहुत ही व्यापक और विशाल आकार के वयस्क मताधिकार की व्यवस्था करना सरल नहीं होता, लेकिन भारत के चुनाव आयोग की तरह इसे विभिन्न चरणों में आयोजित किया जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावों का भारतीय चुनाव आयोग बहुत ही ईमानदारी और निष्पक्षता से प्रबंधन कर रहा है। यह वस्तुतः उसी कहानी की भाँति है, जो पूरे हाथी का वर्णन उसके हिस्सों से ही वर्णित करता है।

प्रश्न 10. 
क्या अब यह व्यवस्था स्थायी हो गई है या सरकार एक सदस्यीय निर्वाचन आयोग को दुबारा कायम कर सकती है ? क्या संविधान इस खेल की आज्ञा देता है ?
उत्तर:
बहु-सदस्यीय आयोग की व्यवस्था वर्तमान में स्थायी है, परन्तु सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह बहु-सदस्यीय आयोग रखे या एक-सदस्यीय। एक सदस्यीय आयोग दुबारा तभी कायम हो सकता है जब सरकार इस तरह का कानून बनाकर संसद के दोनों सदनों में पारित करवा ले। हमारे संविधान में संविधान संशोधन का प्रावधान है इसलिए संविधान इस खेल की इजाजत देता है।

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प्रश्न 11.
नेताजी चुनाव आयोग से डर गये हैं, वे कह रहे हैं कि हमें निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की चुनौती झेलनी है। नेता चुनाव आयोग से डरते क्यों है? क्या यह स्थिति लोकतंत्र के लिए अच्छी है?
उत्तर:
आज मीडिया एंक प्रबल तथा लाभकारी लोकतंत्रीय स्तंभ है। नामांकन दाखिल करने के पश्चात चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को कैमरे के सामने आना पड़ेगा। उम्मीदवार को अपनी नीतियाँ, भावी कार्यक्रम एवं प्राथमिकताएँ बतानी होंगी, ताकि जो लोग उसे चुनने वाले हैं, वे उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 12. 
निर्वाचन आयोग को इन शक्तियों और विशेषाधिकारों को देने के बारे में आप क्या सोचते हैं ? यदि ऐसा नहीं. किया जाता तो क्या होता ?

  1. निर्वाचन आयोग चुनाव सम्बन्धी कार्यों में लगाये गये सरकारी कर्मचारियों को आदेश दे सकता है। 
  2. सरकार मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटा नहीं सकती। 
  3. आयोग उस चुनाव को रद्द कर सकता है जो उसे निष्पक्ष न लगे। उत्तर-निर्वाचन आयोग को विशेष शक्तियाँ और विशेषाधिकार देने के बारे में हम निम्न तरह से सोचते हैं

(1) निर्वाचन आयोग चुनाव सम्बन्धी कार्यों में लगाये गये सरकारी कर्मचारियों को आदेश दे सकता है-यदि ऐसा नहीं किया जाता तो सरकारी कर्मचारी अपनी मनमानी करते। वे किसी एक विशेष दल को या सरकार को समर्थन करते एवं आयोग को चुनाव सम्पन्न कराने हेतु अपने लिए कर्मचारी नियुक्त करने पड़ते।

(2) सरकार मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटा नहीं सकती-यदि ऐसा नहीं किया जाता तो सरकार अपनी मनमर्जी का मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करती, जो उसकी तरफदारी करे एवं चुनाव प्रक्रिया में उसका सहयोग करे।

(3) आयोग उस चुनाव को रद्द कर सकता है जो उसे निष्पक्ष न लगे-यदि ऐसा नहीं किया जाता तो सरकार एक विशेष क्षेत्र में अपने अनुकूल माहौल तैयार करवाकर अपने तरीके से चुनाव सम्पन्न करवाती, जो कि एक निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को गहरा आघात होता और आयोग की स्वतन्त्रता पर भी एक प्रश्न चिन्ह होता।

प्रश्न 13. 
क्या कानून में परिवर्तन करके चुनावों में धन और बल के प्रयोग को रोका जा सकता है ? क्या केवल कानून बदलने से कोई चीज वास्तव में बदलती है ?
उत्तर:
कानून में परिवर्तन करके चुनावों में धन और बल के प्रयोग को रोका जा सकता है। सरकार को चाहिए कि वह एक कानून बनाये जिससे कि एक विशेष निधि से चुनावी खर्चों का भुगतान हो सके। इसी तरह सरकार को कानून बनाना चाहिए तथा कानून बनाकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो भी चुनावी प्रक्रिया के दौरान धन और बल का प्रयोग करता पाया जायेगा, वह कठोर दंड का भागी होगा। कानून बदलने से कोई चीज वास्तव में नहीं बदलती, जब तक कि सरकार उनको लागू करने के लिए कोई ठोस कदम न उठाये। इस हेतु सरकार की दृढ इच्छा शक्ति जरूरी है। ऐसा न होने पर कानून संविधान में लिखी 'अच्छी बातों' के समान बनकर रह जाते हैं। 

प्रश्न 14. 
क्या गंभीर अपराधों में संलिप्त अपराधी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए ?
उत्तर:
गंभीर अपराधों में संलिप्त अपराधी के चुनाव लड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो चुनाव जीतने पर वह समाज के लिए और भी ज्यादा खतरनाक बन जाएगा। ऐसे व्यक्ति से जनता का कभी भी हित नहीं होगा।

RBSE Class 11 Political Science चुनाव और प्रतिनिधित्व Textbook Questions and Answer

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन प्रत्यक्ष लोकतन्त्र के सबसे नजदीक बैठता है ? 
(क) परिवार की बैठक में होने वाली चर्चा,
(ख) कक्षा संचालक (क्लास-मॉनीटर) का चुनाव, 
(ग) किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने उम्मीदवार का चयन, 
(घ) मीडिया द्वारा करवाए गए जनमत संग्रह। 

प्रश्न 2. 
इनमें कौन-सा कार्य चुनाव आयोग नहीं करता ? 
(क) मतदाता सूची तैयार करना,
(ख) उम्मीदवारों का नामांकन, 
(ग) मतदान केन्द्रों की स्थापना,
(घ) आचार-संहिता लागू करना, 
(ङ) पंचायत के चुनावों का पर्यवेक्षण। 

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सी बात राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों के चुनाव की प्रणाली में समान है ? 
(क) 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र का हर नागरिक मतदान करने के योग्य है, 
(ख) विभिन्न प्रत्याशियों के बारे में मतदाता अपनी पसन्द को वरीयता क्रम में रख सकता है, 
(ग) प्रत्येक मत का समान मूल्य होता है, 
(घ) विजयी उम्मीदवार को आधे से अधिक मत प्राप्त होने चाहिए। 

प्रश्न 4. 
फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली में वही प्रत्याशी विजेता घोषित किया जाता है जो
(क) सर्वाधिक संख्या में मत अर्जित करता है, 
(ख) देश में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दल का सदस्य हो, 
(ग) चुनाव-क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है, 
(घ) 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करके प्रथम स्थान पर आता है। उत्तर-1. (क), 2. (ङ), 3. (ग), 4. (ग)।

प्रश्न 5.
पृथक निर्वाचन मण्डल और आरक्षित चुनाव क्षेत्र के बीच क्या अन्तर है ? संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन मण्डल को क्यों स्वीकार नहीं किया ?
उत्तर:
पृथक निर्वाचन मण्डल के अन्तर्गत किसी समुदाय के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी समुदाय के लोग वोट डालते हैं, जबकि आरक्षित चुनाव क्षेत्र के अंतर्गत पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित होती हैं। संविधान निर्माताओं ने पृथक अनुसूचित निर्वाचन मण्डल को इसलिए स्वीकार नहीं किया, क्योंकि यह साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली है। पृथक निर्वाचन मण्डल प्रणाली साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है। इसमें उम्मीदवार केवल अपने समुदाय या वर्ग का हित ही सोच पाता है चुनाव और प्रतिनिधित्व ) इससे समाज की एकता नष्ट होती है। पृथक निर्वाचन मंडल प्रणाली में मतदाता देशहित के स्थान पर अपने समुदाय के हित को महत्व देते हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 3 चुनाव और प्रतिनिधित्व  

प्रश्न 6. 
निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत है ? इसकी पहचान करें और किसी एक शब्द अथवा पद को बदलकर, जोड़कर अथवा नए क्रम में सजाकर इसे सही करें।
(क) फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (सर्वाधिक मत से जीत वाली) प्रणाली का पालन भारत के हर चुनाव में होता है। 
(ख) चुनाव आयोग पंचायत और नगरपालिका के चुनावों का पर्यवेक्षण नहीं करता। 
(ग) भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को नहीं हटा सकता। 
(घ) चुनाव आयोग में एक से ज्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है।
उत्तर:
फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (सर्वाधिक मत से जीत वाली) प्रणाली का पालन लोकसभा, विधानसभाओं और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं (पंचायत, नगरपालिका, नगर परिषद, नगर निगम) के चुनाव में किया जाता है।

प्रश्न 7. 
भारत की चुनाव प्रणाली का लक्ष्य समाज के कमजोर तबके की नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना है। लेकिन अभी तक हमारी विधायिका में महिला सदस्यों की संख्या केवल 12 प्रतिशत तक पहुँची है। इसी स्थिति में सुधार के लिए आप क्या उपाय सुझायेंगे ?
उत्तर:
सुधार के उपाय-अभी तक हमारी विधायिका में महिला सदस्यों की संख्या 12 प्रतिशत तक पहुँची है। इस स्थिति में सुधार के लिए हम निम्नलिखित उपाय सुझाएँगे

  1. विधायिकाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होनी चाहिए। 
  2. महिलाओं के साथ परिवार में समानता का व्यवहार होना चाहिए। 
  3. परिवार में लड़के और लड़कियों के मध्य भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। 
  4. समाज में भ्रूण हत्या बिल्कुल समाप्त होनी चाहिए। 
  5. परिवारजनों द्वारा महिलाओं को राजनीति में प्रवेश हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए। 
  6. महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर निकालकर राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए।

प्रश्न 8. 
एक नए देश के संविधान के बारे में आयोजित किसी संगोष्ठी में वक्ताओं ने निम्नलिखित आशाएँ जतायीं। प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि उनके लिए 'फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट' (सर्वाधिक मत से जीत वाली) प्रणाली उचित होगी या समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली ?
(क) लोगों को इस बात की साफ-साफ जानकारी होनी चाहिए कि उनका प्रतिनिधि कौन है ताकि वे उसे निजी तौर पर जिम्मेदार ठहरा सकें।।
(ख) हमारे देश में भाषाई रूप से अल्पसंख्यक छोटे-छोटे समुदाय हैं और देशभर में फैले हैं, हमें इनकी ठीक-ठाक नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना चाहिए।
(ग) विभिन्न दलों के बीच सीट और वोट को लेकर कोई विसंगति नहीं रखनी चाहिए। 
(घ) लोग किसी अच्छे प्रत्याशी को चुनने में समर्थ होने चाहिए, भले ही वे उसके राजनीतिक दल को पसन्द न करते हों। 
उत्तर:
(क) फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (सर्वाधिक मत से जीत वाली) प्रणाली। 
(ख) समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली। 
(ग) समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली। 
(घ) फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (सर्वाधिक मत से जीत वाली) प्रणाली।

प्रश्न 9. 
एक भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक राजनीतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ा। इस मसले पर कई विचार सामने आए। एक विचार यह था कि भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एक स्वतन्त्र नागरिक है, उसे किसी राजनीतिक दल में होने और चुनाव लड़ने का अधिकार है। दूसरे विचार के अनुसार, ऐसे विकल्प की सम्भावना कायम रखने से चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रभावित होगी। इस कारण, भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आप इसमें किस पक्ष से सहमत हैं और क्यों ?
उत्तर:
उक्त दोनों कथनों में से हम दूसरे कथन से सहमत हैं। भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को निम्नलिखित आधार पर चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए
(1) मुख्य चुनाव आयुक्त को किसी राजनैतिक दल का सदस्य बनकर चुनाव लड़ने का विकल्प देंगे, तो मुख्य चुनाव आयुक्त का राजनीति में आने की ओर रुझान होने की स्थिति में विभिन्न राजनैतिक दल उसके सेवाकाल के दौरान उसे प्रभावित करने का प्रयास करेंगे। ऐसी स्थिति में मुख्य चुनाव आयुक्त निर्वाचन के दौरान अपनी रुचि के राजनैतिक दल के हित के लिए निर्वाचन कार्य को प्रभावित कर सकता है।

(2) मुख्य चुनाव आयुक्त का पद पूर्णतया राजनीतिक दबाव से मुक्त एवं स्वतन्त्र होता है। वे देश में सम्पन्न होने वाले चुनावों की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्षता को कायम रखने हेतु प्रशंसनीय कार्य करते हैं। यदि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त राजनीति के छल-कपट, द्वन्द्व एवं कूटनीति चालों में फँसेंगे तो उनके सामाजिक सम्मान में कमी होगी और लोग उनकी कथनी एवं करनी का उपहास उड़ायेंगे।

(3) सेवा-निवृत्त होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त की जीविका की समुचित व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है। ऐसी स्थिति में उन्हें किसी राजनीतिक दल की सदस्यता लेकर चुनाव लड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 10. 
भारत का लोकतन्त्र अब अनगढ़ 'फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट' प्रणाली को छोड़कर समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार हो चुका है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? इस कथन के पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
हम उक्त कथन से सहमत नहीं हैं। वर्तमान परिस्थितियों में भारत जैसे विशाल उपमहाद्वीप में समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को न अपनाने के लिए हमारे तर्क निम्नलिखित हैं- 
(1) जटिल प्रणाली-समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली के काफी जटिल होने की वजह से जन-साधारण इसे समझ नहीं पाता है। जहाँ बड़ी संख्या में अशिक्षित मतदाता इसके नियम समझने में असुविधा महसूस करते हैं वहीं इसकी मतगणना की भी जटिल प्रक्रिया है।

(2) जनता एवं प्रतिनिधियों में परस्पर सम्पर्क नहीं-इस प्रणाली में बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र आवश्यक होते हैं, जिसके फलस्वरूप जनता एवं उसके प्रतिनिधियों में प्रत्यक्ष तथा निजी सम्पर्क नहीं रहता। यह सम्पर्क का अभाव लोकतन्त्र के मूल उद्देश्य को नष्ट करने में सहायक है

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(3) उपचुनावों का प्रावधान नहीं-इस प्रणाली में उपचुनावों के लिए कोई व्यवस्था सम्भव नहीं है, जबकि उपचुनाव लोकमत का दर्पण है।

(4) वर्गीय हितों को प्रोत्साहन-इस प्रणाली के आधार पर गठित विधायिका राष्ट्रीय एकता का साधन न होकर विभिन्न क्षेत्रीय एवं वर्गीय हितों का संघर्ष-स्थल बन जाती है। 

(5) मिश्रित मन्त्रिमण्डलों के फलस्वरूप अस्थायी शासन-राजनीतिक दलों की अधिकता होने की स्थिति में सामान्यतया कोई एक राजनीतिक दल अपने बलबूते स्वयं सरकार गठित करने की स्थिति में नहीं होता है। ऐसी परिस्थिति में मिले-जुले मन्त्रिमण्डलों का गठन किया जाता है। हमारे देश भारत में अभी तक लिए गए ऐसे अनुभवों से हम कह सकते हैं कि इस प्रकार बने मन्त्रिमण्डल पूर्णतः अस्थायी होते हैं तथा प्रशासकीय एकता एवं उत्तरदायित्व को नष्ट कर देते हैं।

(6) विभिन्न राजनीतिक दलों तथा गुटों का उदय-समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली द्वारा जब प्रत्येक वर्ग अथवा हित को अलग प्रतिनिधित्व का भरोसा मिल जाता है तो राजनीतिक दलों तथा गुटों की संख्या में अभिवृद्धि हो जाती है। यह राजनीतिक जीवन के लिए लाभदायक नहीं होता है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 29, 2022, 3:36 p.m.
Published Aug. 27, 2022