RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 16 वित्तीय प्रबन्धन एवं योजना

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 16 वित्तीय प्रबन्धन एवं योजना Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Home Science Solutions Chapter 16 वित्तीय प्रबन्धन एवं योजना

RBSE Class 11 Home Science वित्तीय प्रबन्धन एवं योजना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
बताइए कि निम्नलिखित कथन 'सही' हैं अथवा 'गलत'। 
(i) बजट धन प्रबंधन के अंतर्गत प्रथम चरण है। 
(ii) धन वस्तुओं के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में कार्य करता है। 
(iii) कारोबार तथा उपहार से प्राप्त लाभ आय के रूप हैं।
(iv) व्यक्ति को पहले लागत का आकलन करना चाहिए तत्पश्चात् बजट बनाते समय आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की सूची बनानी चाहिए।
(v) आर्थिक संदर्भ में भौतिक परिसम्पत्तियों में बचतें उत्पादक होती हैं। 
(vi) कारोबार चक्र में प्रवृत्ति, सुरक्षा के सिद्धान्त के अन्तर्गत एक महत्वपूर्ण विचार है। 
(vii) किसी निवेश पर विचार करने एवं निर्णय लेते समय समयावधि का ध्यान नहीं रखा जाना चाहिए। 
(viii) क्रेडिट के चार सी चरित्र, क्षमता, पूँजी एवं संपार्श्विक हैं। 
(ix) उद्यम की प्रकृति महत्वपूर्ण सुरक्षा विचार नहीं है।
उत्तर:
(i) सही 
(ii) सही 
(iii) सही 
(iv) गलत 
(v) गलत 
(vi) सही 
(vii) गलत 
(viii) सही 
(ix) गलत

प्रश्न 2. 
'वित्त प्रबंधन' से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वित्त प्रबंधन का अर्थ है: धन का व्यवस्थापन करना। धन परिवार की सभी स्रोतों से प्राप्त आय है, जिसका आयोजन, नियंत्रण और मूल्यांकन द्वारा परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।

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प्रश्न 3. 
विभिन्न प्रकार की आय पर चर्चा करें।
उत्तर:
पारिवारिक आय को मुख्य रूप से तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है-

  1. मौद्रिक आय
  2. वास्तविक आय और
  3. मानसिक आय।

यथा

1. मौद्रिक आय:
मौद्रिक आय रुपयों तथा पैसों अर्थात् मुद्रा के रूप में क्रय शक्ति है जो एक निश्चित अवधि में पारिवारिक कोष में जाती है। वह परिवार को मजदरी, वेतन, बोनस, कमीशन, किराया, लाभांश, व्याज, सेवानिवृत्ति आय, रॉयल्टियाँ और भत्ते के रूप में प्राप्त होती हैं। यह आय दैनिक जीवन के लिए वस्तुओं तथा आवश्यक सेवाओं में खर्च होती है तथा उसका एक भाग प्रायः भविष्य में इस्तेमाल के लिए अथवा निवेश उद्देश्यों हेतु बचत के रूप में रख लिया जाता है।
एक कृषक की यह आय जहाँ अनियमित होती है, वहीं एक नौकरी पेशा व्यक्ति की यह आय नियमित होती

2. वास्तविक आय:
वास्तविक आय वस्तुओं एवं सेवाओं का वह प्रवाह है जो एक निश्चित अवधि में पारिवारिक जरूरतों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपलब्ध होता है।
वास्तविक आय दो प्रकार की होती है

  • प्रत्यक्ष आय: यह वह आय है जो परिवार के सदस्यों को बिना धन व्यय किए वस्तुएँ तथा सेवाएं प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए परिवार के सदस्यों, विशेषकर महिलाओं द्वारा प्रदान की गई सेवाएँ, जैसे- भोजन पकाना, कपड़े धुलना, सिलाई करना तथा सामुदायिक सेवाएँ, जैसे-उद्यान, सड़कें, पुस्तकालय आदि।
  • अप्रत्यक्ष आय: इसमें वे वस्तुएँ तथा सेवाएँ शामिल हैं जो धन व्यय करके ही प्राप्त की जाती हैं, जैसेअच्छी किस्म की सब्जी खरीदने के लिए धन का इस्तेमाल करना, लेकिन इसके चयन में व्यक्ति की जो योग्यता व कौशल निहित होता है, वह उसकी अप्रत्यक्ष वास्तविक आय है।
  • मानसिक आय: मानसिक आय वह संतोष है जो सेवाओं तथा वस्तुओं के स्वामित्व एवं उपयोग के फलस्वरूप प्राप्त होता है। यह परिवार के सदस्यों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रयोग की गई आय है। यह अगोचर एवं वस्तुपरक होती है तथा जीवन की गुणवत्ता के संदर्भ में बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 4. 
बजट बनाने में सम्मिलित चरणों की चर्चा करें। 
उत्तर:
बजट निर्माण के चरण बजट बनाने के मुख्यतया पाँच चरण हैं, जो अनलिखित हैं

1. आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की सूची तैयार करना: प्रस्तावित बजट योजना के दौरान परिवार के सदस्यों के लिए आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की सूची तैयार की जाती है। संबंधित वस्तुओं तथा सेवाओं को समूह में वर्गीकृत किया जाता है। जैसे

  • भोजन तथा संबंधित लागत, 
  • आवास 
  • घरेलू कार्य-ईंधन, उपयोगी वस्तुएँ 
  • शिक्षा 
  • परिवहन 
  • वस्त्र 
  • आयकर 
  • चिकित्सा 
  • व्यक्तिगत भत्ते 
  • विविधमनोरंजन, घर की साज-सज्जा 
  • भविष्य के लिए प्रावधान-बचत, विनियोग आदि।

2. मदों की लागत का अनुमान:
प्रत्येक वर्गीकरण एवं समग्र रूप से बजट का योग करते हुए वांछित मदों की लागत का पूर्व आकलन करके अनुमान लगाया जाता है। अनुमान लगाते समय सामान्य बाजार प्रवृत्तियों को ध्यान में रखा जाता है। उदाहरण के लिए यदि कीमतों में वृद्धि हो रही है, तो ऐसी वृद्धि को ध्यान में रखकर पर्याप्त गुंजाइश रखी जाती है।

3. कुल संभावित आय का अनुमान:
तीसरे चरण में कुल संभावित आय का अनुमान लगाया जाता है। सामान्यतः आय को दो शीर्षकों-सुनिश्चित तथा संभावित के अंतर्गत रखा जाता है। बजट द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि सुनिश्चित आय द्वारा आवश्यक आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है और अच्छी किंतु आवश्यक नहीं' मदों को संभावित आय से प्राप्त किया जा सकता है।

4. संभावित आय तथा व्यय के मध्य संतुलन: 
बजट के चतुर्थ चरण में संभावित आय तथा व्यय के बीच संतुलन रखने का प्रयास किया जाता है। कभी-कभी व्यय आय से अधिक होता है। उसे संतुलित करने के लिए दो तरीके हैं-एक, आय में वृद्धि के द्वारा (जैसे अतिरिक्त कार्य करके), दूसरे, व्यय में कटौती द्वारा (जैसे उत्सवों पर या यात्रा पर व्यय कम करके)।

5. योजनाओं की जाँच:
बजट निर्माण का अंतिम चरण है-योजनाओं की जाँच करना। योजनाओं की जाँच निम्नलिखित कारकों के मद्देनजर की जाती है

  • परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो गई है। 
  • आपातकालीन अवधि के लिए अलग से एक संयुक्त निधि रखी गई है। 
  • समाशोधन की सुनिश्चितता हो। समाशोधन, जैसे कि बिल या ऋण के देय होने पर उनका भुगतान कर देना। 
  • राष्ट्रीय तथा विश्वव्यापी दशाओं पर विचार किया जाता है, जैसे-वैश्विक आर्थिक मंदी। 
  • परिवार के दीर्घकालीन लक्ष्यों की पहचान की जाए। 

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प्रश्न 5. 
वे कौन से नियंत्रण हैं जिनका उपयोग धन प्रबंधन में किया जा सकता है? 
उत्तर:
धन प्रबंधन में नियंत्रण 

नियोजन अर्थात् बजट निर्माण के बाद धन प्रबंधन में नियंत्रण दूसरा कदम है।

सामान्यतया वित्त प्रबंधन में नियंत्रण दो प्रकार का होता है-

  1. यह देखने के लिए जाँच करना कि योजना कितने अच्छे ढंग से आगे बढ़ रही है तथा
  2. जहाँ कहीं आवश्यक हो, उसका समायोजन करना।

यथा

1. जाँच करना: जाँच करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें यह पता चलता है कि योजना कैसे आगे बढ़ रही है तथा समायोजन की कहाँ आवश्यकता है। जाँच दो तरह की हो सकती है

(i) मानसिक एवं यांत्रिकीय जाँच: मानसिक जाँच आवंटनों को इकाइयों में विभाजित करके की जाती है, जो वास्तविक व्यय से संबंधित हो सकती है। मानसिक रूप से सोच-विचार करके व्यक्ति उन मदों के बारे में जान सकता है जिनके लिए एक विशेष धन राशि की आवश्यकता पड़ेगी। उदाहरण के लिए परिवार के विद्यार्थी सदस्य के लिए 1000 रुपए की राशि आवंटित की गई है। लेकिन विचार करने पर देखा कि उसके लिए एक जोड़ी जूते, उत्सव के लिए नयी पोशाक तथा कुछ पुस्तकें खरीदनी हैं, तो यह आवंटित राशि कम दिखाई देती है। इस प्रकार मानसिक रूप से विचार कर आवंटित राशि का चयन किया जा सकता है।

यांत्रिकीय जाँच: यांत्रिकीय जाँच में किसी विशेष मद के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नकद धन राशि को अलग से निकाल लिया जाता है। उदाहरण के लिए, कई गृहिणियों ने एक अलग पर्स बनाया होता है जिसमें माह में भोजन पर खर्च की जाने वाली राशि रखी जाती है। भोजन सम्बन्धी सभी व्यय इस लिफाफे (पर्स) की राशि से किए जाते हैं। धन के अचानक समाप्त हो जाने से पता चलता है कि धन कितनी तेजी से खर्च हो रहा है।

(ii) अभिलेख एवं खाते: अभिलेख एवं खातों में व्यय किए जाने के बाद धन का वितरण दर्शाया जाता है। परिवार के लिए अभिलेख का उद्देश्य धन के उस वितरण को दर्शाना है जिसे व्यय किया गया है तथा विशेष समूह के लिए आवंटित मदों की राशि के साथ खर्च की गई राशि की तुलना करना है। यथा

(अ) मासिक व्यय की तुलना खर्च योजना से की जा सकती है। इससे ज्ञात होता है कि अतिरिक्त व्यय से बचने के लिए समायोजन कहाँ किए जाने चाहिए।
(ब) इससे उन श्रेणियों अथवा उपश्रेणियों की पहचान करने में मदद मिलती है जहाँ व्यय बहुत ज्यादा है या बहुत कम है। इससे हम बेहतर भावी बजट तैयार कर सकते हैं।
(स) रिकार्ड रखने के कुछ तरीकों के लिए बिल तथा रसीदें रखने की आवश्यकता पड़ती है। इससे भुगतान का प्रमाण हमारे पास होता है। वस्तु या सेवा खराब होने पर इसके विषय में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।

एकल पत्रक विधि रिकार्ड रखने की एक सरल लचीली विधि है। व्यय के रिकॉर्ड एकल पत्रक में रखे जाते हैं।

2. समायोजन: योजना को सही दिशा में रखने के लिए योजना का समायोजन करना बहुत महत्वपूर्ण है। परिवार के बाहरी कारकों, जैसे-आपातकाल, परिवार को बिना योजना के खरीदारी अथवा अपर्याप्त जाँच प्रक्रिया जिससे योजना तथा इसके निष्पादन का सही अंतर पता न चल सके, के कारण यदि मूल योजना खराब हो तो समायोजन की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 6. 
विवेकपूर्ण निवेशों के अन्तर्निहित सिद्धान्तों पर चर्चा करें। 
उत्तर:
विवेकपूर्ण निवेशों के अन्तर्निहित सिद्धान्त 

परिवार को अपनी बचतों का निवेश बुद्धिमतापूर्ण करना चाहिए ताकि परिवार को इसकी अच्छी वापसी प्राप्त हो सके तथा यह सुनिश्चित हो सके कि धन सुरक्षित है और आवश्यकता पड़ने पर वह उसे उपलब्ध हो सकेगा। ऐसे विवेकपूर्ण निवेशों के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

1. मूल धनराशि की सुरक्षा: मूलधन पर यदि लाभांश या ब्याज अर्जित करना है तो इसका सुरक्षित होना जरूरी है। निम्नलिखित के द्वारा मूलधन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है

  • राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र, लोक भविष्य निधि, किसान विकास पत्र, बैंकों में सावधि जमा जैसे सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में प्रतिभूतियों में धन लगाकर।
  • विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों की कंपनियों में निवेश करके। 
  • विभिन्न कंपनियों में शेयरों एवं बंध पत्रों में धन का निवेश करके। 
  • प्रतिभूतियों के मुद्दों की बाजार-प्रवृत्तियों का अध्ययन करके। 
  • क्रय की गई प्रतिभूतियों की किस्म में अंतर करना-कृषि भूमि, भू-संपदा, स्टॉक्स, बंधपत्र, सावधि जमा आदि। 
  • व्यवसाय चक्र के मौजूदा चरण को समझना।

2. प्रतिलाभ की तर्कसंगत दर: सामान्य तौर पर किसी निवेश पर प्रतिलाभ की दर जितनी अधिक होगी जोखिम उतना अधिक होगा। अत: धन को निवेश करने से पहले व्यक्ति को विभिन्न योजनाओं एवं विकल्पों के अन्तर्गत ब्याज की दर तथा संबंधित खतरे की तुलना करनी चाहिए।

3. तरलता: यह मूल्य के साथ समझौता किए बिना प्रतिभूतियों को नकदी में परिवर्तित करने की योग्यता है। कोई निवेश जितना अधिक तरल होगा उसकी कीमत उतनी अधिक होगी अर्थात् निवेशक को मिलने वाली आय उतनी ही कम होगी, इसलिए आय और तरलता में सन्तुलन होना चाहिए।

4. वैश्विक स्थितियों के प्रभाव की मान्यता: दीर्घकालीन कारोबार प्रवृत्तियों पर विचार करके परिवार को सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर अपनी बचत के प्रभाव को स्वीकार करना चाहिए। चक्र में विभिन्न चरणों पर कारोबार उद्यम में निवेश करने की इच्छा अथवा अनिच्छा चक्र की चरम सीमा को कम करने में प्रभावी होगी।

5. सुलभ पहुँच तथा सुविधा: पारिवारिक निधि के लिए निवेश का चयन करते समय व्यक्ति को इसकी सफलता के लिए अपेक्षित जानकारी पर अवश्य विचार करना चाहिए।

6. आवश्यक वस्तुओं में निवेश: धन का निवेश करते समय परिवार को लम्बी अवधि वाली प्रतिभूतियाँ खरीदनी चाहिए ताकि वे सुविचारित आवश्यकता अथवा आवश्यकताओं के समय परिपक्व हो सकें। उदाहरण के लिए, बच्चे की उच्च शिक्षा के लिए।

7. कर कुशलता: निवेश उन योजनाओं में किया जाना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप कर में बचत होती है। करों की बचत के लिए आयकर अधिनियम में उपलब्ध अनेक उपबंधों का इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे-बीमा पॉलिसियाँ, कर्मचारी भविष्य निधि, पी.पी.एफ, आदि। इनमें निवेश विशिष्ट सीमा सहित कम में छूट का प्रावधान होता है।

8. निवेश उपरांत सेवा: निवेश का चयन करते समय ग्राहक सेवा निर्णायक कारक होना चाहिए। अच्छी ग्राहक सेवा में प्रतिभूतियों का आसान नकदीकरण, अच्छा संचार नेटवर्क, व्याज अथवा लाभांश वारंटों का समय से प्रेषण, निवेश अवधि के पूरा होने के उपरांत राशि का समय पर वितरण, पॉलिसियों, ब्याज दर आदि में परिवर्तनों के बारे में ग्राहक को अवगत कराते रहना शामिल है। ग्राहक हितैषी कंपनी जरूरत पड़ने पर निवेशक को आवश्यक समर्थन एवं संरक्षण प्रदान करती है।

9. समयावधि: वह अवधि, जिसमें धन एक निश्चित अवधि के बाद ही निकाला जा सकता है, एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर किसी निवेश पर निर्णय लेने के पहले विचार किया जाना चाहिए। निवेश की अवधि जितनी लम्बी होगी, वापसी की राशि उतनी अधिक होगी। इस प्रकार निवेश को उच्च आय हेतु लम्बी अवधि अथवा परिवार की आवश्यकता एवं अपेक्षा के आधार पर अल्पावधि की कम आय के मध्य चयन करना चाहिए।

10. क्षमता: व्यक्ति को अपनी क्षमता से अधिक निवेश नहीं करना चाहिए ताकि निवेश अनावश्यक कठिनाइयों से मुक्त रह सके। इस हेतु वर्तमान आवश्यकताओं का भावी आवश्यकताओं एवं सुरक्षा के साथ संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

Raju
Last Updated on Aug. 11, 2022, 2:56 p.m.
Published Aug. 11, 2022