RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 History Solutions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई

RBSE Class 11 History इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई InText Questions and Answers

प्रश्न 1. 
खिलाफ़त की बदलती हुई राजधानियों की पहचान कीजिए। आपके अनुसार सापेक्षिक तौर पर इनमें से कौन-सी केन्द्र में स्थित थी ?
उत्तर:
632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद के देहान्त के पश्चात् कोई भी व्यक्ति वैध रूप से इस्लाम का अगला पैगम्बर होने का दावा नहीं कर सकता था। बाद में खिलाफ़त नामक संस्था का निर्माण किया गया जिसका नेता खलीफ़ा कहलाया। प्रथम तीन खलीफाओं क्रमश. अबू वकर, उमर व उथमान ने मदीना को अपनी राजधानी बनाया। चौथे खलीफ़ा अली ने अपनी राजधानी कुफा नगर में स्थापित की। अली के पश्चात् उमय्यद वंश के शासक बने। पहले उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया। अब्बासी वंश के खलीफाओं ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाया। दूसरी अब्बासी राजधानी समारा थी। शिया फातिमी वंश के खलीफाओं ने फातिमा खिलाफत की स्थापना करके अपनी राजधानी काहिरा में स्थापित की। राजधानी बगदाद सापेक्षिक तौर पर केन्द्र में स्थित थी। 

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प्रश्न 2. 
बसरा में सुबह के एक दृश्य का वर्णन करो।
उत्तर:
इराक स्थित बसरा शहर के केन्द्र में दो भवन समूह थे, जहाँ से आर्थिक एवं सांस्कृतिक शक्ति का प्रसारण होता था। उनमें से एक मस्जिद थी, जहाँ सामूहिक रूप से नमाज अदा की जाती थी। दूसरा भवन केन्द्रीय मंडी था, जहाँ अनेक दुकानें निर्मित थीं तथा व्यापारियों के आवास व सर्राफ़ का कार्यालय था। प्रात:काल से ही बसरा में रहने वाले लोगों की गतिविधियाँ प्रारम्भ हो गयी थीं। यहाँ के मुस्लिम धर्मावलम्बी मस्जिदों में नमाज पढ़ रहे हैं। व्यापारी लोग नावों से आने-जाने लगे हैं। देहातों से लाई जाने वाली हरी सब्जियाँ और फलों के बाजार में काफी चहल-पहल है। शहर के बाहरी इलाके में काफिले ठहरे हुए हैं तथा चमड़ा साफ करने तथा चमड़ा रँगने की दुकानों पर कामगार अपना काम कर रहे हैं। साथ ही इसी क्षेत्र में कसाई की दुकानें भी खुली हुई हैं।

प्रश्न 3. 
दिए गए उद्धरण पर टिप्पणी कीजिए। क्या आज के विद्यार्थी के लिए यह प्रासंगिक होगा?
उत्तर:
बारहवीं शताब्दी के बगदाद में कानून और चिकित्सा के विद्वान अब्द अल-लतीफ ने अपने आदर्श विद्यार्थी को उपदेश देते हुए कहा है कि उसे प्रत्येक विषय के ज्ञान के लिए पुस्तकों का सहारा लेने की अपेक्षा अपने शिक्षकों का सहयोग लेना चाहिए। उसे अपने शिक्षकों का आदर करना चाहिए। उसे पुस्तक के अर्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए और उसको पूर्णरूपेण कंठस्थ कर लें क्योंकि यदि पुस्तक खो जाए तो कंठस्थ होने से आपका अधिक नुकसान नहीं होगा। उसे इतिहास की पुस्तकें पढ़नी चाहिए। उसे पैगम्बर मुहम्मद की जीवनी को पढ़ना चाहिए और उनके पदचिह्नों पर चलना चाहिए। उसे अध्ययन, चिंतन और मनन को पूर्ण करने के पश्चात अल्लाह के नाम का स्मरण करना चाहिए और उनका गुणगान करना चाहिए। यदि यह संसार आपकी ओर से पीठ मोड़ ले तो शिकायत न करें। यह जान लो कि ज्ञान कभी भी समाप्त नहीं होता। अब्द अल-लतीफ ने ज्ञान अर्जित करने के सम्बन्ध में कई महत्वपूर्ण और सारगर्भित बातें बतायी हैं जो कि आज के विद्यार्थी के लिए प्रासंगिक हैं। जैसे

  1. ज्ञान प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी का खोजी नजरिया होना चाहिए। यह ज्ञान-प्राप्त करने की जिज्ञासा ही ज्ञान प्राप्त करा सकती है।
  2. ज्ञान जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। उसका व्यक्ति की आयु के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। व्यक्ति चाहे तो निरन्तर और जीवन भर विद्यार्थी बने रह सकता है। आज दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम द्वारा किसी भी उम्र में शिक्षा लेना इसी तरह की एक प्रक्रिया है।
  3. विद्यार्थी को अध्यापकों को सम्मान करना, इतिहास, जीवनियों और राष्ट्र के अनुभवों का अध्ययन करना, ईश्वर द्वारा बताये गये मार्ग पर चलना आदि बातें भी विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण व प्रासंगिक हैं।

RBSE Class 11 History  इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570-1200 ई Textbook Questions and Answers 

संक्षेप में उत्तर दीजिए 

प्रश्न 1. 
सातवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में बेदुइओं के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं ? उत्तर-सातवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में बेदुइओं (बदुइओं) के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. ये लोग अपने भोजन एवं ऊँटों के लिए चारे की तलाश में मरुस्थल के शुष्क क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों की ओर जाते रहते थे।
  2. शहरों में रहने वाले बदू कृषि एवं व्यापार का कार्य करते थे।
  3. खलीफा की सेना में अधिकांश सैनिक बदू ही थे जो कि मरुस्थलों के किनारों पर बसे शिविर शहरों जैसे समारा व कुफा आदि में रहते थे।
  4. ये लोग अपने देवी-देवताओं की पूजा बुतों के रूप में मस्जिदों में करते थे।

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प्रश्न 2.
अब्बासी क्रांति' से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
अब्बासी क्रांति-अब्बासी लोग पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अब्बास के वंशज थे। 661 ई. में इस्लामी राज्य पर मुआवियों का कब्जा हो गया और उन्होंने उमय्यद वंश की स्थापना कर अपना शासन स्थापित कर लिया। उन्होंने दमिश्क को राजधानी बनाया। वहीं अब्बासियों ने उमय्यद शासन को दुष्ट बताया और यह आश्वासन दिया कि पैगम्बर मुहम्मद के मूल इस्लाम की पुनर्स्थापना करेंगे। उमय्यद शासन के विरुद्ध अब्बासियों का विद्रोह खुरासान (पूर्वी ईरान) के बहुत दूर स्थित क्षेत्र में प्रारम्भ हुआ था। खुरासान में अरब सैनिक अधिकांशतः इराक से आए थे और वे सीरियाई लोगों के प्रभुत्व से नाराज थे।

वहीं खुरासान के अरब नागरिक भी उन्हें करों में रियायतें एवं विशेषाधिकार न देने से उमय्यद शासन से नाराज थे। इसी का लाभ उठाकर अब्बासियों ने विद्रोही लोगों का समर्थन प्राप्त कर लिया और दवा नामक एक सुनियोजित आन्दोलन के माध्यम से अन्तिम उमय्यद खलीफ़ा को पराजित कर 750 ई. में अब्बासी वंश का शासन स्थापित किया। इसे ही 'अब्बासी क्रांति' कहा जाता है। इस क्रांति से न केवल वंश का ही परिवर्तन हुआ, बल्कि इस्लाम के राजनीतिक ढाँचे तथा उसकी संस्कृति में भी परिवर्तन हुए।

प्रश्न 3. 
अरबों, ईरानियों व तुर्कों द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृतियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अरबों द्वारा स्थापित राज्य में मुसलमान, ईसाई, यहूदी, ईरानी एवं तुर्क आदि संस्कृतियों के लोग रहते थे। ईरानी साम्राज्य में भी अरब, ईरानी आदि संस्कृतियों का विकास हुआ। अब्बासी शासनकाल में अरबों के प्रभाव में ह्रास होता गया और ईरानी संस्कृति का प्रभाव काफी हद तक बढ़ गया। अब्बासी शासकों ने खिलाफत की धार्मिक स्थिति तथा कार्यों को मजबूत बनाया और इस्लामी संस्थाओं एवं विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। उन्होंने उमय्यदों की उत्कृष्ट शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परम्परा को बनाए रखा। दूर स्थित प्रांतों पर बगदाद का नियंत्रण कम होने से नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य कमजोर हो गया। इस कमजोरी का एक प्रमुख कारण अरब समर्थकों और ईरान समर्थकों की आपसी विचारधारा में बदलाव आना था। इस्लामी समाज सन् 950 में 1200 के मध्य किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था और संस्कृति की एकल भाषा (अरबी) से एकजुट नहीं रहा, बल्कि सामान्य आर्थिक व सांस्कृतिक प्रतिरूपों के द्वारा उनमें एकजुटता बनी रही।

फारसी का विकास इस्लामी संस्कृति की उच्च भाषा के रूप में किया गया। इस एकता के निर्माण में बौद्धिक परम्पराओं के मध्य संवाद की परिपक्वता ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। विद्वान, कलाकार और व्यापारी वर्ग इस्लामी देशों में स्वतंत्र रूप से भ्रमण कर सकते थे तथा विचारों और तौर-तरीकों का प्रसार सुनिश्चित कहते थे। इनमें से कुछ धर्मांतरण के कारण गाँवों के स्तर तक नीचे पहुँच गये थे।10वीं व 11वीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत के उदय के परिणामस्वरूप अरबी व ईरानियों के साथ तीसरा प्रजातीय समूह तुर्की लोगों का भी जुड़ाव हुआ। तुर्की तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के क्षेत्रों के खानाबदोश कबीलाई थे और इन लोगों ने धीरे-धीरे इस्लाम धर्म कबूल कर लिया। ये कुशल घुड़सवार व योद्धा थे और गुलामों व सैनिकों के रूप में अब्बासी, सुमानी व बुवाही प्रशासनों में सम्मिलित हो गए। इस प्रकार वर्तमान समाज का बहुसांस्कृतिक स्वरूप उभरकर सामने आया जो अरबों, ईरानियों व तुर्कों द्वारा सिंचित हुआ था।

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प्रश्न 4. 
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्धों का प्रभाव-1095 से 1291 ई. के मध्य पूर्वी भूमध्यसागर के तटवर्ती मैदानों में मुस्लिमों के विरुद्ध ईसाइयों के द्वारा लड़े गए धर्मयुद्धों का यूरोप व एशिया पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा

  1. ईसाई यद्यपि मुसलमानों को पराजित न कर सके किन्तु उनका यूरोप में आगे बढ़ना रुक गया। इससे ईसाई धैर्यवान व उत्साही बने।
  2. मुस्लिम राज्यों ने अपनी ईसाई प्रजा के प्रति कठोर नीति अपनायी। दीर्घकालीन युद्धों की कटुतापूर्ण यादों एवं मिश्रित जनसंख्या वाले क्षेत्रों में सुरक्षा की आवश्यकता के फलस्वरूप मुस्लिम राज्यों की नीति में परिवर्तन आया और उन्होंने ईसाई प्रजाजनों के प्रति कठोरतापूर्ण व्यवहार किया। 
  3. मुस्लिम शासन की स्थापना के पश्चात् भी पूर्व और पश्चिम के मध्य व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों का प्रभाव बढ़ गया जिनमें पीसा, जेनोआ व वेनिस आदि प्रमुख हैं।
  4. धीरे-धीरे यूरोप की इस्लाम में सैनिक रुचि समाप्त हो गयी तथा उसका ध्यान अपने आंतरिक राजनैतिक एवं सांस्कृतिक विकास की ओर केन्द्रित हो गया।
  5. पश्चिमी सभ्यता का पूर्वी सभ्यता, संस्कृति और विलासितापूर्ण जीवन से परिचय हुआ।
  6. पश्चिम और पूर्व में आपसी व्यापार में वृद्धि व नवीन पदार्थों का ज्ञान हुआ। यूरोपवासियों ने कपास, चीनी, शीशे के बर्तनों, रेशम, गरम मसालों व दवाओं आदि से परिचय प्राप्त किया। 
  7. यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ। अरबों के साथ मिलने से ज्ञान का बहुत विस्तार हुआ। नवीन भौगोलिक खोजें हुईं। 
  8. युद्धों के कारण लाखों लोग मारे गये और दास बना लिये गये। इससे पोप में उनकी श्रद्धा कम हुई और राज्यों की शक्तियाँ बढ़ती चली गईं। संक्षेप में निबन्ध लिखिए

प्रश्न 5. 
रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूपों से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप कैसे भिन्न थे ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूप-रोमन साम्राज्य की वास्तुकला अत्यन्त दक्षतापूर्ण थी। रोमन लोगों ने ही सर्वप्रथम कंक्रीट का प्रयोग किया। वे पत्थरों एवं ईंटों को मजबूती के साथ जोड़ने की क्षमता रखते थे। वास्तुकला में डाट व गुम्बद का आविष्कार रोमन लोगों ने ही किया था। तोरण, मेहराब, स्तम्भ, गुम्बद व डाट आदि रोमन वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ थीं। रोमन साम्राज्य में इमारतें दो या तीन मंजिल की बनायी जाती थीं। इनमें डाट गोल एवं ठीक एक के ऊपर एक बनायी जाती थीं। वहाँ के वास्तुकारों द्वारा डाटों का प्रयोग नगर द्वार, पुलों, विशाल इमारतों एवं विजय स्मारकों आदि को बनाने में किया जाता था। रोम में डाटों का प्रयोग कोलोसियम बनाने में भी किया गया था। इसका निर्माण 79 ई. में किया गया था। यहाँ तलवार चलाने में निपुण योद्धा. जंगली जानवरों का मुकाबला करते थे।

यहाँ एक साथ 60 हजार दर्शक बैठ सकते थे। प्रथम सदी ई. में नाइम्स के पास पान दु गार्ड, फ्रांस में रोम के इंजीनियरों ने तीन महाद्वीपों के पार पानी ले जाने के लिए विशाल जलसेतुओं का निर्माण किया। इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप-रोमन साम्राज्य के समान ही इस्लामी दुनिया में भी धार्मिक इमारतों का निर्माण करने का प्रयास किया गया। धार्मिक इमारतें इस्लामी विश्व की सबसे बड़ी बाहरी प्रतीक थीं। स्पेन से मध्य एशिया तक फैली हुई मस्जिदें, इबादतगाह एवं मकबरों का मूल डिजाइन एक समान था। मेहराबें, गुम्बदें, मीनारें व खुले सहन (प्रांगण) आदि मुस्लिम धर्मावलम्बियों की आध्यात्मिकता और व्यावहारिक आवश्यकताओं को अभिव्यक्त करती थीं। इस्लाम की प्रथम सदी में मस्जिद ने एक विशिष्ट वास्तु-शिल्पीय रूप (खम्भों के सहारे वाली छत) प्राप्त कर लिया था।

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मस्जिद में एक खुला प्रांगण होता था, जहाँ पर एक जलाशय या फव्वारा बनाया जाता था। इस प्रांगण का दरवाजा एक बड़े कमरे की ओर खुलता था जिसमें प्रार्थना करने वाले लोगों की लम्बी-लम्बी पंक्तियों एवं नमाज का नेतृत्व करने वाले इमाम के लिए पर्याप्त स्थान होता था। इसी स्थान से शुक्रवार की दोपहर को होने वाली नमाज के समय प्रवचन दिया जाता था। इस केन्द्रीय प्रांगण के चारों ओर निर्मित इमारतों के निर्माण का वही स्वरूप मस्जिदों एवं मकबरों के अतिरिक्त सरायों, महलों एवं अस्पतालों में भी पाया जाता है। समारा में अलमुतव्वकिल नामक मस्जिद का निर्माण किया गया। इसकी ईंट से निर्मित मीनार 50 मीटर ऊँची थी। यह तत्कालीन वास्तुकला का एक श्रेष्ठ नमूना है। उमय्यद वंश के शासकों द्वारा नखलिस्तानों में बनाये गये मरुस्थली महल भी वास्तुकला का एक श्रेष्ठ नमूना हैं। 

प्रश्न 6. 
रास्ते में पड़ने वाले नगरों का उल्लेख करते हुए समरकंद से दमिश्क तक की यात्रा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समरकंद (उज़बेकिस्तान) से दमिश्क (सीरिया) तक की यात्रा में रास्ते में पड़ने वाले नगर-इस्लामी राज्य के अन्तर्गत समरकंद और दमिश्क दो प्रसिद्ध नगर थे। समरकंद से दमिश्क तक की यात्रा. में यात्री को मर्व, खुरसाम, निशापुर, दायलाम, इसफाहन, समारा, बगदाद, कुफा, कुसायुर अमरा, जेरूसलम व खिरबात अल मफज़ार आदि नगरों से गुजरना पड़ता था। दूसरी अब्बासी राजधानी समारा में अल-मुतव्वकिल की महान मस्जिद बनी हुई थी। 850 ई. में इस्लाम का उदय और विस्तार लगभग-570-1200 ई.123) निर्मित यह कई शताब्दियों तक दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनी रही। इसकी ईंटों की बनी हुई मीनार 50 मीटर ऊँची थी।

निशापुर (नेशाबूर) शिक्षा का एक महत्वपूर्ण फारसी-इस्लामी केन्द्र था। यह फ़ारसी साहित्यकार उमर खय्याम का - जन्मस्थान था। बगदाद अब्बासी खलीफ़ाओं की राजधानी थी। यह इस्लामी विद्या, साहित्य, चिकित्सा आदि का प्रसिद्ध केन्द्र था। 9 वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में यह अपने चरमोत्कर्ष पर था। उस समय यहाँ प्रबुद्ध खलीफा की छत्रछाया में धनी व्यापारी एवं विद्वान लोग फले-फूले। जेरूसलम प्राचीन यहूदी राज्य का केन्द्र व राजधानी रहा है। यह शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है। यहीं से पैगम्बर मुहम्मद की स्वर्ग की ओर की रात्रि यात्रा (मिराज) प्रारम्भ हुई थी। जेरूसलम स्थित पथरीले टीले के ऊपर अब्द अल-मलिक द्वारा निर्मित चट्टान का गुम्बद इस्लामी वास्तुकला का प्रथम बड़ा नमूना है। जेरूसलम नगर की मुस्लिम संस्कृति के प्रतीक रूप में इस स्मारक का निर्माण कराया गया।

Prasanna
Last Updated on July 26, 2022, 11:47 a.m.
Published July 25, 2022