RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Biology Solutions Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन

RBSE Class 11 Biology प्राणियों में संरचनात्मक संगठन Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1. 
एक शब्द या एक पंक्ति में उत्तर दीजिए: 
(i) पेरिप्लेनेटा अमेरिकाना का सामान्य नाम लिखिए। 
(ii) केंचाए में कितनी शुक्राणुधानियाँ पाई जाती है? 
(iii) तिलचट्टे में अण्डाशय की स्थिति क्या है? 
(iv) तिलचट्टे के उदर में कितने खण्ड होते है? 
(v) मैलपीगी नलिकाएँ कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
(i) पेरिसेनेटा अमेरिकान का सामन्च नाम तिलचट्टा या कॉकरोच (cockroach) है।
(ii) केंचुरा में चार जोड़ी गुफापानियाँ पदं जाती हैं।
(iii) तिलचट्टे में अण्डाशय उदर के दो से छठे खण्ड के पात्र में स्थित होते हैं।
(iv) तिलचट्टे के उदर में दस खण्ड होते हैं।
(v) कॉकरोच को आहारनाल के मध्यान्न एवं पश्चान्त्र के संधिस्थल पर पाई जाती हैं।

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प्रश्न 2. 
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 
(i) वृक्कक क्या कार्य है?
(ii) अपनी स्थिति के अनुसार केंचुए में कितने प्रकार के वृक्कक पाए जाते?
उत्तर:
(i) उत्सर्जन एवं जल सन्तुलन।
(ii) केंचुरा में स्थिति के अनुसार वृक्कक (nephridia) तीन प्रकार के पाए जाते हैं:
(i) पटीय वृक्कक (Septal nephridia) 
(ii) अध्यावरणी वृक्कक (Integumentary nephridia)
(iii) प्रसनीय वृक्कक (Pharyngeal nephndia)

प्रश्न 3. 
केंचुए के जननांगों का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 4. 
तिलचट्टे की आहारनाल का नामांकित चित्र बनाइए। 
उत्तर:
तिलचट्टे की आहारनाल
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प्रश्न 5. 
निम्न में विभेद करें
(अ) पुरोमुख एवं परितुण्ड 
(ब) पीय (septal) वृक्कक और प्रसनीव वृक्कक।
उत्तर:
(अ) पुरोमुख एवं परितुण्ड में विभेद (Differences between Prostomium and Peristomium)

पुरोमुख (Prostomium)

परितण्ड (Peristomium)

1. परितुष्ट का ऊपरी भाग आगे की ओर प्रवर्ष के रूप में निकला रहत है जिसे पुरीमुख कहते हैं।

केंचुए के प्रथम खण्ड को परिखण्ड कहते हैं।

2. पुरोमुख मुख के आगे स्थित होता है।

इसके अधर पर मुख पाया जाता है।

3. पुरोमुख को खण्ड नहीं मानते हैं।

जबकि इसे खण्ड मानते हैं।

4. पुरोमुण्डारा केंचुए को अंधेरे व उजाले का आभास होता है।

परितुण्ड द्वारा केंचुए को अंधेरे एवं उजाले का आभास नहीं होता है।


(ब) पटीय (Septal) वृक्कक और ग्रसनीय वृक्कक में विभेद (Differences between Septal Nepluridica and Pharyngeal Nepluidia)

पटीय वृक्कक (Septal Nephridia)

ग्रसनीय वृक्कक (Plaryngeal Nephridia)

1. पटीय वृत केंचुएं के 15वें खण्ड के पश्चात् पटों के दोनें सराह पर एक - एक पंकित में स्थित होते हैं।

1. ये केंचुए के ग्रसनीय प्रदेश अर्थात् 4,546 खण्ड में ग्रसनी व प्रसिका के दोने और युग्मित गुच्छों के रूप में स्थित होते हैं।

2. प्रत्येक खण्ड में इनकी संख्या 80 से 100 तक होती है।

2. प्रत्येक गुष्ठे में इनकी संख्या 100 तक होती है।

3. पटीय पृषक में नेफ्रोस्टोम पाया जाता है।

3. जबकि इनमें नेफ्रोस्टम का अभाव होता है।


प्रश्न 6. 
रुधिर के कणीच अवयव क्या हैं? 
उत्तर:
कविर के कणीय अवयव निम्न प्रकार से है:

  • लाल रकमाणु या एरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) 
  • श्वेताणु या ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes) 
  • प्रोम्बोसाइट्स (Threambocytes)

प्रश्न 7. 
निम्न क्या है तथा प्राणियों के शरीर में कहाँ मिलते हैं?
(अ) उपास्थि - अणु ( कोंडोसाइट)
(ब) तन्त्रिकाक्ष (ऐक्सान)
(स) पक्ष्माभ उपकला।
उत्तर:
(अ) उपास्थि - अणु/कोंड्रोसाइट (Chondrocytes): उपास्थि के मैट्रियस (matrix) में पाई जाने वाली कोशिकाएं कोन्ड्रोसाइट ichondrocriciकहलाती । कोशिकाएं सैकनी (Lacanae) अश्वन गर्तिकाओं में स्थित होती हैं। प्रत्येक गतिका में एक-दो अथवा चार कोन्ड्रोसाइट्स होते हैं। कोन्ड्रोसाइट्स की संख्या में वृद्धि के साथसश्य उपास्थि में वृद्धि होती है। कोन्ट्रोसाइट्स द्वारा ही उपास्थि के मैटिक्स का सावण होता है।
उपास्थियाँ प्रायः अस्थियों के सन्धि स्थल पर पायी जाती है।

(ब) तनिकाक्ष या ऐक्सॉन (Axon): प्रत्येक न्यूरोन के तीन भाग होते हैं, जिन्हें क्रमशः साइटॉन (Cyton), डेन्डॉन्स (Dendrons) एवं एक्सॉन (Avan) कहते हैं। साइटान से निकले प्रवों में से एक प्रवर्ष अपेक्षाकृत लम्बा, मोटा एवं बेलनाकार होता है। इसे एक्सॉन कहते हैं। एक्सॉन पर निश्चिा दूरी पर कुछ गर्ने पायी जाती हैं, जिन्हें नोड ऑफ रेनवियर (Nodes of Ranvier) कहते हैं। दो नोड के बीच के भाग इन्चरगोड कहलाते हैं। एकसान के चारों ओर श्वान कोशिकाओं का आवरण पाया जाता है। इन कोशिकाओं द्वारा मालिग आवरण (myelin sheath) का निर्माण होता है।

(स) पक्ष्याभ उपकल्ला (Cilnated epithelium): ये कोशिकाएँ बनाकार अथवा स्तम्भकार होती हैं। स्वाव सिरों पर छोटे - छोटे रोम (cilia) होते हैं। सिलिया को गति की सहायता से श्लेष्म व अन्य पदार्थ आगे की ओर धकेले जते हैं। श्वास नलिका, मूत्रवाहिनी, अण्डवाहिनी का भीतरी स्तर इन्हीं कोशिकाओं का बना होता है।

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प्रश्न 8. 
रेखांकित चित्र की सहायता से विभिन्न उपकला ऊतकों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
उपकलाऊतकों को मुख्यत: दो प्रकारों में बांटा गया है:

  • साधारण उपकला (Simple Epithelium) 
  • संयुक्त उपकला (CompoundEpithelium)

1. साधारण उपकला (Simple Epithelium): उपकला में यदि कोशिकाओं की एक परत पाई जाए तो उसे साधारण उपकला कहते हैं। ये काक सदैव नम सतहों पर होते हैं। कोशिकाओं के कार्यों व आकार के अनुसार ये निम्न प्रकार के होते हैं:
(i) शल्की उपकला (Savamous Epithelium): यह तक चौड़ी एवं चपटी कोशिकाओं से मिलकर बनी होती है। इसको प्रत्येक कोशिका मेंया चाटा केन्द्रक पाया जाता है। इस तक में कोशिकाएं यादव के समान दिखती हैं। कोशिकाओं को इस तरह की आकृति के कारण इसे पेवमेर उपकला (Pavement epithelium) भी कहते हैं।
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यह त्वया की बाहरी सतह मुखमुहा, देहगुहा, रुविर वाहिनियों व भीतरी सतह पर पाई जाती है। यह फेफड़ों की वायु-कपिकाओं में पाई जाता है और यह विसरण सीमा का कार्य करती है।
(ii) घनाकार उपकला (Cuboidal epithelium): इस ऊतक की कोशिकार घनाकार होती हैं। इनमें केन्द्रक होता है। वृक्क नलिकाओं, वृषाग, अण्डाशय की जनन कोशिकाएं घनाकार उपकला काक को बनी होती हैं। इनका मुख्य कार्य सवण और अवशोषण है।
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(iii) स्तम्भाकार उपकला (Colummar epithelium): यह लम्बी, परस्पर सटी, सब - रूपी कोशिकाओं को बनी होती है जिनकी लायी सगह आस - पास रहती है। इनके बाहा सिरों से सूक्ष्मांकुर (Microvilli) निकाले रहते हैं। कशेरुक प्राणियों के आमाशय व आन्या में इस प्रकार की उपकला पायी जाती है। इसका कार्य स्वण एवं खाद्य पदार्थों का अवशोषण करना है।
(iv) पक्ष्माभी उपकला (Ciliated epithelium): ये कोशिकाएँ बनाकार अधष स्तम्भाकर होती हैं। इनके स्तन सिमों पर छोटे - छोटे रोम (cilia) होते हैं। सिलिया की गति की सापायता से श्लेष्ण व अन्य पदार्थ आगे की ओर धकेले जाते हैं। लस नलिका, मूत्रवाहिनी, आवाहिनी का भीतरी स्तर इन्हीं कोशिकाओं का बना होता है।
(v) ग्रन्थिल उपकला (Glandular epithelium): यह स्तम्भी उपकला का परिवर्तित रूप है जिसमें कोशिकाएँ एक प्रानी के लिए
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आवश्यक पदायों के साथ के लिए रूपान्तरित हो जाती हैं। यह अन्य उपकला कोशिकाओं से बड़ी होती है। प्राणियों में पाई जाने जली सभी प्रन्थियाँ इसी ऊतक की बनी होती हैं। इन्हें जन्तुओं का स्रावी ऊतक भी कहते हैं। प्रन्थियाँ दो प्रकार की होती हैं
(a) एककोशीय ग्रन्धिों (Unicellular glands): आहारगल की श्लेष्मा उपकला तथा त्वचा पर एककोशीय ग्रन्थियाँ पायी जाती है। ये - प्रायः श्लेष्मा का सावण करती हैं।
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(b) बहुकोशीय ग्रन्धियां (Multicellular ghands): इनकी संरचना अनेक ग्रन्थिल कोशिकाओं से मिलकर होती है। ये ग्रन्थियाँ आकार में नलावार (स्वेद ग्रन्थियाँ), सरल कृषिकाकार (मेंढक को त्वचा में) तथा संयुका कृपिकाकार (स्तन की लार ग्रन्थि) होती है।

(2) संयुंक्त उपकला: एक से ज्यादा कोशिका स्तरों (बहुस्तरित) को बनी होती है और इस प्रकार लवण और अवशोषण में इसकी भूमिका सीमित है। देखिये सामने चित्र में।
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इसका मुख्य कार्य रासायनिक व यान्त्रिक प्रतियलों (Stresses) से रक्षा करना है। यह लना की शुक सतह मुख गुहा की नम सतह पर, प्रसनी, लार प्रन्धियों और आन्याशयी को वाहिनियों के भीतरी अस्तर को ढकता है।

प्रश्न 9. 
निम्न में विभेद कौजिए
(अ) सरल उपकला तथा संयुक्त उपकला ऊतक
(ब) उदय पेशी तथा रेखित पेशी 
(स) सपन नियमित एवं सघन अनियमित संबोजी ऊतक
(द) वसामय तथा रुधिर ऊतक 
(य) सामान्य तथा संयुक्त अधि।
उत्तर:
(अ) सरल उपकला तथा संचुक्त उपकला में विभेद (Differences between Simple and Compound Epithelium)

सरल उपकला (Simple Epithelium)

संयुक्त उपकला (Compound Epithelium)

1. सरल उपकला एकही स्तर का बना होता है।

जबकि संयुक्त उपकला एक से अधिक कोशिकाओं के स्तर से बना होता है।

2. यह ऊतक सदय नम सतहों पर होते हैं।

यह शरीर के उन स्थानों पर पाया जाता है जहाँ प्राय: नमी की कमी होती है।

3. इनकी ऊतक कोशिकाओं में छीजत कम होती है।

जबकि इनकी कोशिकाओं में छोजा अधिक होती है।

4. इनका कार्य स्वावण, अवशोषण द्वार पदार्थों का आचन-प्रदान करना है।

जबकि इनका कार्य रक्षात्मक अथवा सुरक्षात्मक है।

5. उदाहरण: देहगुहाओं, वाहिनियों एवं नलिकाओं का स्तर।

उदाहरण: त्वचा, योनि एवं आँखों का ऑनया।

 

(ब) हृदय पेशी तथा रेखित पेशी में विभेद (Differences between Cardiac and Strated Muscles)

हृदय पेशी (Cardiac muscles)

रेखित पेशी (Striated nauscles)

1. हृदय की मजबूत दीवारें बनाती है।

ये साधारणत: अस्थियों पर लगी रहने के कारण अस्थि पेशियां कहलाती हैं।

2. पेशी तन्तु बीच - बीच में जुड़े होते है।

लम्यो बेलनाकार (Cylindrical) होती है।

3. केवल अनुप्रस्थ धारियां दिखाई देती हैं।

हल्की व गहरी पट्टियों के कारण रेखित होती है।

4. निश्चित क्रम से सिकुड़ती है व फैलाती है।

जल्दी व इच्छानुसार गतिशील होती है।

5. स्वतन्त्र ततिका तत्र का नियंत्रण रहता है। अत: कभी भी चकती नही है।

संवेदी व प्रेरक दोनों प्रकार की विकाओं से संबंधित होती है अत: थकान का अनुभव करती हैं।

6. डिस्कों के योष काई केन्द्रक होते हैं।

सरकोलेम से ढके सारकोपज्य में कई केन्द्रक होते हैं।

 

(स) सधन नियमित एवं सघन अनियमित संयोजी ऊतक में विभेद (Differences between Dense Regular and Dense regular Connective Tissues)

सघन नियमित संयोजी ऊतक (Denso Regular Connective Tissue)

सघन अनियमित संयोजी ऊतक (Dense Irregular Connective Tissue)

1. सपन नियमित उजक में तन्तु कोरक समानान्तर तंतु के गुच्छों के बीच में कतार में उपस्थित होते हैं।

जबकि सघन अनयिमित तक में तंतु तथा तन्तुओरक होते हैं (तंतु में अधिकांश कोलेजन होता है। जो गुम्यो एवं त्रिविम (dimensional) जाल बनाते।

2. ये ऊतक लचीली लायु (Ligament) में पाया जाता है।

जबकि यह उत्तक त्वचा में पाया जाता है।


(द) वसामय तथा रुधिर अतक में विभेद (Differences between Adipose Tissue and Blood Tissue)

वसामय (Adinose Tissue)

रुधिर ऊतक (Blood Tissue)

1. यह मुख्यतया त्वचा के नीचे स्थित होता है।

यह मुख्यत्या हदय, धमनियों एवं शिराओं में पाया जाता है।

2. वसा ऊतक मध्यम वरा (Neutral fats) के महत्त्वपूर्ण खाद्य भण्डार होते हैं।

जबकि रुधिर ऊतक खाद्य पदार्थों का वितरण का कार्य करता है।

3. इसके अतिरिका ये अंगों के आयधिक दबाव, खिंचाय, थक्कों आदि से बचाते हैं।

जबकि यह ऊतक दैहिक ताप के नियन्त्रण में सहायता करता है।

4. यह ऊतक शरीर को आकृति प्रदान करता है।

इसके द्वारा कोई आकृति प्रदान नहीं की जाती है।

5. वसा ऊतक में बसा गोलिकाएं होती हैं। गोलिका के कारण केन्द्रक चपटा होता है।

रधिर में तीन प्रकार कोशिकाएं पाई जाती हैं- (i) RBC (ii) WBC (iii) प्लेटलेट्स। वयस्क मनुष्य की RBC में केन्द्रक का अभाव होता है।

6. यह मुलायम जैली के समान संयोजी ऊतक है।

जबकि यह तरल संयोजी ऊतक है।


(य) सामान्य तथा संयुका ग्रन्थि में विभेद (Differences between Simple and Compound Glands)

सामान्य प्रन्धि (Simple Glands)

संयुक्त ग्रन्धि (Compound Glands)

1. यदि एक ही अशाखिल वाहिनी स्वायी इकाई या इकाइयों से लानी पदार्थ को एकत्रित करके सम्बन्धित उपकला पर पहुंचाती है तो ग्रन्थि सामान्य होती है।

इसके विपरीत संयुक्त ग्रन्धि में प्रन्धि की वाहिनी विभिन्न कावी। इवाइयों की व्यवस्था के अनुसार शाखान्वित होकर इनसे लायो पदार्थ एकत्रित करती है।

2. उदाहरण- आंघीय ग्रन्थियाँ स्तनियों की स्वेद प्रन्थियाँ, मेढक की त्वक प्रन्थियाँ सामान्य प्रन्थि के उदाहरण हैं।

उदाहरण- यकृत, आन्याशय एवं लार ग्रन्थियाँ संयुक्त गन्धि के उदाहरण हैं।


प्रश्न 10.
निम्न श्रृंखलाओं में सुमेलित न होने वाले अंशों को इंगित कीजिए:
(अ) एरिओल ऊतक, रुधिर, तन्त्रिकाकोशिका न्यूरोन, कंडरा (टेडन)
(ब) लाल रुधिर कणिकाएँ, सफेद रुधिर कणिकाएँ, प्लेटलेट्स, स्पास्थि
(स) बहिःस्यावी, अंतःस्त्रावी, लार ग्रन्थि, मायु (लिगामेन्ट) 
(द) मैक्सिला,मैंडिबाल, लेनम, शृंगिका ( एन्टिना) 
(य) प्रोटेनेमा, मध्यवक्ष, पश्चवक्ष तथा कक्षांग (कॉमा)। 
उत्तर:
(अ) न्यूरोन (Neuron)
(ब) उपास्थि (Cartilage) 
(स) स्नायू (Ligament) 
(द) गका (Antennae) 
(य) प्रोटोनेमा (Protonema)|

प्रश्न 11. 
स्तम्भ - I एवं स्तम्भ - II को मुमेलित कीजिएस्तम्भ

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

(क) संयुजा उपकरण

(i) आहारनाल

(ख) संयत नेत्र

(ii) तिलचट्टे

(ग) पट्टीय वृक्कक

(iii) त्वचा

(घ) खुला परिसंचरण तंत्र

(iv) किमार दृष्टि

(ङ) आन्त्रक्लन

(v) केंचुआ

(च) अस्थि अणु

(vi) शिश्न खण्ड

(छ) जननेन्द्रिय

(vii) अस्थि


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ – II

(क) संयुजा उपकरण

(iii) त्वचा

(ख) संयत नेत्र

(iv) किमार दृष्टि

(ग) पट्टीय वृक्कक

(v) केंचुआ

(घ) खुला परिसंचरण तंत्र

(ii) तिलचट्टे

(ङ) आन्त्रक्लन

(i) आहारनाल

(च) अस्थि अणु

(vii) अस्थि

(छ) जननेन्द्रिय

(vi) शिश्न खण्ड

 

प्रश्न 12. 
केंचुए के परिसंचरण तन्व का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
केंचुए में रविर परिसंचरण तन्त्र वन्द प्रकार का होता है, जिसमें रधिर वाहिकाएं, केशिकाएं एवं उदय होता है। देखिये चित्र में।
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बंद रुधिर परिसंचरण तब के कारण रुधिर का (Veseels) जदय तथा रुधिर वाहिनियों तक ही सीमित रहता है। संकुचन रक्त परिसंचरण को एक दिशा में रखता है। सूश्मचिरहिकायें रक्त को आहारलाल, तन्धिका रम्नु
और शरीर भिति तक पहुंचाती हैं। रुधिर ग्रन्थियाँ चौथे, पांचवें और छठे देह खण्ड पर पाई जाती हैं। ये प्रश्चियों हीमोग्लोबिन तथा रुधिर कोशिकाओं का निर्माण करती हैं, जो घिर प्लाज्मा में भुल जाती हैं। इनकी प्रकृति भक्षकाधिक होती है।

प्रश्न 13. 
मेंडक के पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए।
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प्रश्न 14. 
निम्न के कार्य बताइए
(अ) मैडक की मूत्रवाहिनी 
(ब) मैलपिगी नलिका
(स) केंचुए की देहभित्ति।
उत्तर:
(अ) मेंडक की मूत्रवाहिनी: नर मेंढक में मूत्र नलिका में मूत्र जलन नलिका के रूप में बाहर आती है। मूत्रवाहिनी अवस्कर द्वार में खुलती है। मादा मेंढक में ज्याहिनी एवं अण्डवाहिनी अवस्कर द्वार में अलग-अलग खुलती है। एक पतली दीवार वाला मूशशय भी मलाशय के अधर भाग पर स्थित होता है, जो कि अवस्कर में खुलता है। मेंतक यूरिया का उत्सर्जन करता है इसलिए यूरिया - उत्सनर्जी प्राणी जलाता है। उत्सर्जी अपशिष्ट रक्त द्वारा सुक्क में पहुंचते हैं, जहाँ पर ये अलग कर दिये जाते हैं और उनका उत्सर्जन कर दिया जाना है। मूर बाहिनी नाइट्रोजनी अपशिष्ट मूर के साथ-साथ शुक्राणुओं को बाहर निकालने का कार्य करती है।
(ब) मैलपीगी नलिका (Malpighian lubiles): इनका प्रमुख कार्य उत्सर्जन करना है व उत्सगों पदार्थ को दह मध्यान में डाल देतो है. अत: जलीय नियमन (Osmoregulation) में भी सहायक है।

(स) केंचुए की देहभित्ति के कार्य (Functious cf bedy will of Earliwom): निम्नलिखित हैं:

  1. केंचुए की देहभित्ति पर पानी जाने वाली पूटिकल रक्षात्मक आवरण का कार्य करती है व देहभिति आंतरांगों को भी सुरक्षा प्रदान करती है।
  2. क्यूटिकल जल के वाष्पोत्रण को भी रोकती है।
  3. ग्रन्थिल ओशिकओं असाव व देहगुहीय द्रव, केंचुए को जीवापुओं (Bacteria) से सुरक्षा पहुंचाते हैं।
  4. नम देहभिाति से होकर गैसीय विनिमय होता है, अत: यह श्वसन में सहायक है।
  5. प्रन्धिल कोशिकाओं का साथ सुरंग बनाने में सहायक है।
  6. देहभिात प्रचलन (Locomotion) में सहायक है। इसमें पाये जाने वाले शूक (सीटी) व पेशीय स्तर प्रचलन में सहायक हैं। .
  7. देशभित्ति में पायी जाने वाली संवेदी कोशिकाएँ संवेदनाओं को ग्रहण करने का कार्य करती हैं।
  8. देहभित्ति शरीर का आकार बनाये रखने में सहायक है।
Bhagya
Last Updated on July 25, 2022, 9:51 a.m.
Published July 23, 2022