RBSE Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Social Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 10. Students can also read RBSE Class 10 Social Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 10 Social Science Notes to understand and remember the concepts easily. The class 10 economics chapter 2 intext questions are curated with the aim of boosting confidence among students.

RBSE Class 10 Social Science Solutions History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना

RBSE Class 10 Social Science भूमंडलीकृत विश्व का बनना InText Questions and Answers

चर्चा करें-पृष्ठ 56

प्रश्न 1. 
जब हम कहते हैं कि सोलहवीं सदी में दुनिया 'सिकुड़ने' लगी थी, तो इसका क्या मतलब है?
उत्तर:
आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कारण सोलहवीं सदी में विश्व के देश एक-दूसरे के निकट आने लगे थे। व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कारण उनके बीच घनिष्ठता बढ़ने लगी। सोलहवीं सदी में यूरोपीय जहाजों ने एशिया तक का समुद्री मार्ग ढूंढ़ लिया था और वे अमेरिका तक जा पहुँचे थे। अपनी खोज से पूर्व सदियों से अमेरिका का विश्व से कोई सम्पर्क नहीं था। परन्तु सोलहवीं सदी से उसका विभिन्न देशों से सम्पर्क स्थापित हुआ और उनके बीच आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान शुरू हो गया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सोलहवीं सदी में दुनिया सिकुड़ने लगी थी और विश्व के देश एक-दूसरे के निकट आने लगे थे। 

गतिविधि-पृष्ठ 59

प्रश्न 2. 
फ्लो चार्ट के माध्यम से दर्शाइये कि जब ब्रिटेन ने खाद्य पदार्थों के आयात का निर्णय लिया तो उसके कारण अमेरिका और आस्ट्रेलिया की ओर पलायन करने वालों की संख्या क्यों बढ़ने लगी?
उत्तर:
ब्रिटेन द्वारा खाद्य पदार्थों के आयात का निर्णय लेने पर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की ओर पलायन करने वालों की संख्या बढ़ने के कारणों को फ्लो चार्ट में निम्न प्रकार दर्शाया गया है-
RBSE Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना 1

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गतिविधि-पृष्ठ 59

प्रश्न 3. 
कल्पना कीजिए कि आप आयरलैंड से अमेरिका में आए एक खेत मजदूर हैं। इस बारे में एक पैराग्राफ लिखिए कि आपने यहां आने का फैसला क्यों किया और अब आप अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए क्या करते हैं?
उत्तर:
मैं, राबर्ट, आयरलैंड से अमेरिका आया एक खेत मजदूर हूँ।
आयरलैंड में बहुतायत से खाद्य पदार्थ आयात किये जाने लगे थे। वहां आयातित खाद्य पदार्थों की लागत आयरलैण्ड में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से काफी कम थी। वहां के किसान आयातित माल की कीमत का मुकाबला नहीं कर पाये। वहाँ विशाल भू-भागों पर खेती बंद हो गई। हजारों लोगों के साथ मैं भी बेरोजगार हो गया। इसलिए मैंने बेहतर भविष्य की चाह में अमेरिका आने का फैसला किया।

मैंने अमेरिका आकर अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए खेती का कार्य किया। मैंने खेती के लिए जमीन साफ की और उसमें खेती का कार्य शुरू किया।

चर्चा करें-पृष्ठ 64

प्रश्न 4. 
राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में भाषा और लोक परम्पराओं के महत्त्व पर चर्चा करें।
उत्तर: 
राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में भाषा और लोक परम्पराओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। प्रत्येक राष्ट्र की एक राष्ट्र भाषा होती है जो वहाँ प्रमुखता से बोली जाती है। इसके अलावा प्रत्येक राष्ट्र की कुछ विशिष्ट लोक परम्पराएँ होती हैं जो वहाँ की संस्कृति का अभिन्न अंग होती हैं। लोक परम्पराएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती हैं और लोग उन्हें अपनाते रहते हैं। अतः भाषा एवं लोक परम्पराओं से किसी भी व्यक्ति की राष्ट्रीय पहचान की जा सकती है। 

चर्चा करें-पृष्ठ 73

प्रश्न 5. 
पटसन (जूट) उगाने वालों के विलाप में पटसन की खेती से किसके मुनाफे का जिक्र आया है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
पटसन उगाने वालों के विलाप में पटसन की खेती से व्यापारी के मुनाफे का जिक्र आया है क्योंकि वे फसल का बहुत कम भाव देते थे। कवि काश्तकारों से कहता है कि तुम कर्जा लेकर खूब पटसन उगाओ। अपनी समस्त पूँजी लगाने के बाद भी तुम्हें निराशा मिलेगी। जब फसल पकेगी तो इसकी कुछ भी कीमत नहीं रहेगी। व्यापारी अपने घर पर बैठे तुम्हें इसका पाँच रुपया मन देंगे और इसका समस्त मुनाफा स्वयं हड़प लेंगे। 

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चर्चा करें-पृष्ठ 75

प्रश्न 6. 
संक्षेप में बताएँ कि दो महायुद्धों के बीच जो आर्थिक परिस्थितियाँ पैदा हुईं, उनसे अर्थशास्त्रियों और राजनेताओं ने क्या सबक सीखे?
उत्तर:
दो महायुद्धों के बीच जो आर्थिक परिस्थितियाँ उत्पन्न हुईं, उनसे अर्थशास्त्रियों तथा राजनेताओं ने निम्नलिखित दो पाठ सीखे-
(1) पहला पाठ, वृहत् उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग के बिना कायम नहीं रखा जा सकता। परन्तु व्यापक उपभोग को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक था कि आय काफी अधिक और स्थिर हो। यदि रोजगार अस्थिर होंगे, तो आय स्थिर नहीं हो सकती थी। स्थिर आय के लिए पूर्ण रोजगार भी आवश्यक था। मूल्य, उपज और रोजगार में आने वाले उतार-चढ़ावों को नियन्त्रित करने के लिए सरकार का हस्तक्षेप आवश्यक था। सरकार के हस्तक्षेप के द्वारा ही आर्थिक स्थिरता कायम रह सकती थी।

(2) दूसरा पाठ, बाह्य विश्व के साथ आर्थिक सम्बन्धों के बारे में था। पूर्ण रोजगार का लक्ष्य केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब सरकार के पास वस्तुओं, पूँजी और श्रम के आवागमन को नियन्त्रित करने की शक्ति प्राप्त हो।

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प्रश्न 1. 
सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिका महाद्वीपों के बारे में चनें।
उत्तर:
(1) एशिया महाद्वीप-रेशम मार्ग से चीनी रेशम तथा पोटरी एवं भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले विश्व के विभिन्न देशों में जाते थे। वापसी में सोना-चाँदी जैसी बहुमूल्य धातुएँ यूरोप से एशिया में पहुँचती थीं।
(2) अमेरिका महाद्वीप-आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व हमारे पास आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च, शकरकन्द आदि खाद्य-पदार्थ नहीं थे, परन्तु कोलम्बस द्वारा अमेरिका की खोज के पश्चात् ये खाद्य पदार्थ अमेरिका से यूरोप एवं एशिया के देशों में पहुंच गए।

प्रश्न 2. 
बताएँ कि पूर्व-आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद दी?
उत्तर:
16वीं सदी में अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में चेचक के कीटाणुओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ये चेचक के कीटाण स्पेन के सैनिकों एवं सैनिक अधिकारियों के साथ अमेरिका पहँचे। अमेरिकियों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग-प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी। परिणामस्वरूप चेचक की महामारी अमेरिकी लोगों के लिए अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध हुई। यह सम्पूर्ण अमेरिकी महाद्वीप में फैल गई जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोग मौत के मुंह में चले गए।

स्पनिश सैनिकों के पास चेचक से बचाव के पूरे साधन थे और उनके शरीर में रोग-प्रतिरोध की क्षमता भी विकसित हो चुकी थी परन्तु अमेरिकी लोगों में इनका अभाव था। इस कारण स्पेनिश सेनाओं द्वारा अमेरिका को अपना उपनिवेश बनाना आसान हो गया।

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प्रश्न 3. 
निम्नलिखित के प्रभावों की व्याख्या करते हुए संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें(क) कॉर्न लॉ के समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार का फैसला।
अथवा 
कॉर्न लॉ को समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार के फैसले पर टिप्पणी लिखिए। इस कानून के एक प्रभाव की चर्चा भी कीजिए।
(ख) अफ्रीका में रिडरपेस्ट का आना। 
(ग) विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौत। 
(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी का प्रभाव। 
(ङ) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानान्तरित करने का फैसला।
उत्तर:
(क) कॉर्न लॉ के समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार का फैसला- अठारहवीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटेन की सरकार ने बड़े भू-स्वामियों के दबाव में मक्का के आयात पर पाबंदी लगा दी थी। जिन कानूनों के सहार यह पाबन्दी लगाई गई थी, उन्हें 'कॉर्न लॉ' कहा जाता था। खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों से परेशान उद्योगपतियों और शहरी लोगों ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वह 'कॉर्न लॉ' को तुरन्त समाप्त करें और सरकार को इसे समाप्त करने का फैसला करना पड़ा। ब्रिटेन की सरकार द्वारा कॉर्न लॉ की समाप्ति के बाद बहुत कम कीमत पर खाद्य पदार्थों का आयात किया जाने लगा। आयातित खाद्य पदार्थों की लागत ब्रिटेन में उत्पादित खाद्य पदार्थों से भी कम थी। परिणामस्वरूप ब्रिटेन के किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई; क्योंकि वे आयातित माल के मूल्यों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। कृषि कार्य बन्द हो गया। परिणामस्वरूप हजारों किसान बेरोजगार हो गए। गाँवों से उजड़कर वे या तो शहरों या अन्य देशों की ओर पलायन करने लगे।

(ख) अफ्रीका में रिंडरपेस्ट का आना- 1880 के दशक के अन्तिम वर्षों में अफ्रीका में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी एशियाई मवेशियों से अफ्रीकी मवेशियों में फैल गई। उस समय पूर्वी अफ्रीका में एरिट्रिया पर हमला कर रहे इतालवी सैनिकों का पेट भरने के लिए एशियाई देशों से जानवर लाए जाते थे। एशियाई देशों से आए उन्हीं जानवरों के द्वारा रिंडरपेस्ट या मवेशी प्लेग बीमारी अफ्रीका में आई। यह बीमारी 'जंगल में आग' की भाँति अफ्रीकी महाद्वीप में फैलने लगी।

रिंडरपेस्ट के प्रभाव- 

  • इसने अफ्रीकी महाद्वीप के 90 प्रतिशत पशुओं को मार डाला। 
  • बड़ी संख्या में पशुओं के मारे जाने से अफ्रीकी लोगों के जीवन-निर्वाह के साधन समाप्त हो गए। 
  • इस बीमारी से अफ्रीकी लोगों की आजीविका तथा स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  • अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने तथा अफ्रीकी लोगों को श्रम बाजार में ढकेलने के लिए वहाँ के वागान मालिकों, खान मालिकों और औपनिवेशिक सरकारों ने उनके शेष बचे हुए पशुओं पर भी अधिकार कर लिया।
  • इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों को सम्पूर्ण अफ्रीका पर विजय प्राप्त करने एवं उसे अपना दास बना लेने का स्वर्णिम अवसर मिल गया था।

(ग) विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौत-प्रथम विश्वयुद्ध में 90 लाख से अधिक लोग मारे गए तथा 2 करोड़ लोग घायल हुए थे। मृतकों तथा घायलों में से अधिकतर कामकाजी आयु के पुरुष थे। इसके परिणामस्वरूप यूरोप में कामकाज के योग्य लोगों की संख्या बहुत कम हो गई जिससे परिवारों की आय भी कम हो गई।

(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। यथा-

  • औपनिवेशिक भारत कृषि वस्तुओं का निर्यातक तथा तैयार मालों का आयातक बन चुका था। 
  • महामंदी के दौरान देश का आयात घटकर आधा रह गया। 
  • भारत में कृषि उत्पादनों की कीमतों में गिरावट आई।
  • इस महामंदी से किसानों और काश्तकारों का बहुत अधिक नुकसान हुआ। परन्तु इस महामन्दी का शहरी लोगों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।

(ङ) बहराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानान्तरित करने का फैसला 1970 ई. के दशक के मध्य से विश्व में बेरोजगारी बढ़ने लगी। अतः सत्तर के दशक के अन्तिम वर्षों से बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी एशिया के ऐसे देशों में उत्पादन केन्द्रित करने लगीं जहाँ वेतन कम थे। एशियाई देशों में श्रम बहुत ही सस्ता था। चीन में वेतन तुलनात्मक रूप से कम थे। अतः विश्व बाजारों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने वहाँ जमकर निवेश करना शुरू कर दिया। इसके परिणामस्वरूप इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारी मुनाफा होने लगा और वे विश्व-बाजार पर अपना प्रभरप 98ठावएसचख्अइअ5612 लुत्व स्थापित करने लगीं।

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प्रश्न 4. 
खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दें।
उत्तर:
खाद्य उपलब्धता पर तकनीक का प्रभाव- 
(1) यातायात और परिवहन साधनों में सुधार तीव्र गति से चलने वाली रेलगाड़ियों का निर्माण किया गया तथा बोगियों का भार कम किया गया। बड़े आकार के जलपोतों का निर्माण किया गया जिससे किसी भी उत्पाद को खेतों से दूर-दूर के बाजारों में कम लागत पर तथा अधिक आसानी से पहुँचाया जा सके।

(2) मांस का निर्यात-नई तकनीक के आने पर पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गई जिसके फलस्वरूप जीवित जानवरों को भेजने के स्थान पर अब उनका मांस ही यूरोपीय देशों में भेजा जाने लगा। इससे समुद्री यात्रा में आने वाला खर्च कम हो गया तथा यूरोप में मांस सस्ता मिलने लगा। अब यूरोप के गरीब लोगों के भोजन में मांसाहार (और मक्खन व अंडे) भी शामिल हो गया। 

प्रश्न 5. 
ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है?
अथवा 
ब्रेटन वुड्स से आप क्या समझते हैं? इसकी दो जुड़वाँ सन्तानें किसे कहा गया है?
उत्तर:
ब्रेटन वुड्स समझौता- दोनों विश्व युद्धों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को सुनिश्चित करने, औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार को बनाये रखने हेतु जुलाई 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। इसे ही ब्रेटन वुड्स समझौता कहा जाता है।

ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) की स्थापना की गई। युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक का गठन किया गया। इसलिए विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को 'ब्रेटन वुड्स ट्विन' (इसकी जुड़वां सन्तानें) भी कहा जाता है। इसी आधार पर युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को प्रायः ब्रेटन वुड्स व्यवस्था भी कहा जाता है। ब्रेटन वुड्स व्यवस्था निश्चित विनिमय दरों पर आधारित थी। इसमें राष्ट्रीय मुद्राएँ एक निश्चित विनिमय दर में बंधी हुई थीं। उदाहरणार्थ, एक डालर के बदले में रुपयों की संख्या निश्चित थी। 

चर्चा करें

प्रश्न 6. 
कल्पना कीजिए कि आप कैरीबियाई क्षेत्र में काम करने वाले गिरमिटिया मजदूर हैं। इस अध्याय में दिए गए विवरणों के आधार पर अपने हालात और अपनी भावनाओं का वर्णन करते हुए अपने परिवार के नाम एक पत्र लिखें।
उत्तर:
आदरणीय पिताजी, 
सादर प्रणाम।
मुझे दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि यहाँ वैसी परिस्थितियाँ नहीं हैं जैसा कि एजेंट ने बताया था। यहाँ का जीवन और कार्य स्थितियाँ बहुत कठोर हैं। भरसक प्रयासों के बावजूद मैं उन कामों को सन्तोषजनक तरीके से नहीं कर पाया जो संजीव पास बुक्स मुझे सौंपे गए थे। यहाँ पर हमें दिन-रात कठोर परिश्रम करना पड़ता है। हमें काम बहुत भारी पड़ता है और हम दिनभर में अपना काम पूरा नहीं कर पाते हैं। काम सन्तोषजनक ढंग से पूरा न होने पर हमारा वेतन काट लिया जाता है। इसलिए हमें कई बार हमारा पूरा वेतन नहीं मिल पाता है और हमें विभिन्न प्रकार के दण्ड दिए जाते हैं। हम मजदूरों के पास कानूनी अधिकार नहीं हैं। यदि कोई मजदूर कठोर परिश्रम से बचने के लिए जंगलों में भाग जाता है, तो उसे पकड़कर कठोर दण्ड दिया जाता है। मजदूरों को अपने अनुबन्ध की अवधि में भारी कठिनाइयों एवं कष्टों का सामना करना पड़ता है। अत: एजेन्ट के आश्वासन पर मैं जो एक सुखद जीवन की आशाएँ लेकर यहाँ आया था, वे समस्त आशाएँ मिट्टी में मिल गई हैं। मैं अपने मालिक के बागान में पांच वर्ष काम करके स्वदेश लौटने का भरसक प्रयास करूँगा। 
सबको मेरा प्रणाम।

आपका पुत्र
क.ख.ग. 

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प्रश्न 7. 
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों के प्रवाह अर्थशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन प्रकार की गतियों या प्रवाहों का उल्लेख किया है, ये प्रवाह निम्नलिखित हैं-
(1) व्यापार का प्रवाह-पहला प्रवाह व्यापार का होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में व्यापार का प्रवाह मुख्य रूप से वस्तुओं के व्यापार तक ही सीमित था। इन वस्तुओं में कपड़ा, गेहूँ, कपास आदि सम्मिलित थे।
भारत से गेहूँ, समस्त प्रकार के कपड़े आदि ब्रिटेन भेजे जाते थे। नील का व्यापार भी बड़े पैमाने पर होता था।

(2) श्रम का प्रवाह-दूसरा, श्रम का प्रवाह होता है। इसमें लोग काम या रोजगार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
उदाहरणार्थ, उन्नीसवीं सदी में भारत के लाखों अनुबंधित मजदूरों को बागानों, खदानों और सड़क एवं रेलवे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए त्रिनिदाद, गुयाना, सूरीनाम, मॉरीशस, फिजी, श्रीलंका आदि देशों में ले जाया गया।

(3) पूँजी का प्रवाह तीसरा, प्रवाह पूँजी का होता है। इसमें पूँजीपति लोग अल्प अवधि अथवा दीर्घ अवधि के लिए दूर-दराज के प्रदेशों में पूँजी का निवेश करते हैं। ब्रिटेन के अनेक पूँजीपतियों ने बागानों, खानों, रेल परियोजनाओं आदि में पूँजी का निवेश किया और इसके माध्यम से अत्यधिक धन कमाया।

शिकारीपुरी श्रॉफ तथा नटूकोट्टई चेट्टियार भारत के प्रसिद्ध बैंकर तथा व्यापारी थे जो मध्य एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में निर्यातोन्मुखी खेती के लिए ऋण देते थे।

प्रश्न 8. 
महामन्दी के कारणों की व्याख्या करें। 
उत्तर:
महामन्दी के कारण- 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक महामन्दी के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(1) कृषि में अति उत्पादन कृषि के क्षेत्र में अति उत्पादन की समस्या बनी हुई थी। कृषि उत्पादों के गिरते मूल्यों के कारण आर्थिक स्थिति और भी शोचनीय हो गई थी। कृषि उत्पादों के गिरते मूल्यों के कारण किसानों की आय कम हो गई। अतः अपनी आय बढ़ाने के लिए वे किसान उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करने लगे। अतः बाजार कृषि उत्पादों से भर गए। इसके परिणामस्वरूप मूल्य और गिर गए। क्रेताओं के अभाव में कृषि उपज पड़ी-पड़ी सड़ने लगी।

(2) अमेरिकी ऋणों में कमी- 1920 के दशक के मध्य में बहुत सारे देशों ने अमेरिका से कर्जे लेकर अपनी निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा किया था। जब हालात अच्छे थे तो अमेरिका से कर्जा जुटाना बहुत आसान था लेकिन संकट का संकेत मिलते ही अमेरिकी उद्यमियों के होश उड़ गए। वे अपनी पूंजी वापस निकालने लगे। 1928 के पहले छह माह तक विदेशों में अमेरिका का कर्जा एक अरब डॉलर था। साल भर के भीतर यह कर्जा घटकर केवल चौथाई रह गया था। जो देश अमेरिकी कर्जे पर सबसे ज्यादा निर्भर थे उनके सामने गहरा संकट आ खड़ा हुआ।

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प्रश्न 9. 
जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं? जी-77 को किस आधार पर ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ सन्तानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है? व्याख्या करें।
उत्तर:
जी-77--जी-77 विकासशील देशों का संगठन है, जिसने एक नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की स्थापना पर बल दिया।

ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ सन्तानों की प्रतिक्रिया-1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) की स्थापना की गई थी। इन्हें ब्रेटन वुड्स संस्थान अथवा ब्रेटन वुड्स की जुड़वां सन्तान कहा जाता है। इनका उद्देश्य सदस्य-देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने तथा युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करना था।

जी-77 के देश भी इसी प्रकार संगठन बनाकर ऐसी आर्थिक प्रगति लागू करना चाहते थे जिसमें उन्हें अपने संस्थानों पर सही नियंत्रण मिल सके, विकास के लिए अधिक सहायता मिले, कच्चे माल की उचित कीमत मिले तथा तैयार माल को विकसित देशों में बेचने का मौका मिले। 
इस प्रकार जी-77 को ब्रेटन वुड्स की जुड़वां सन्तानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है।

admin_rbse
Last Updated on May 7, 2022, 7:29 p.m.
Published May 7, 2022