Rajasthan Board RBSE Class 8 Hindi व्याकरण रस
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रस की परिभाषा – कविता, कहानी, नाटक इत्यादि के पढ़ने, सुनने और देखने से पाठक, श्रोता और दर्शक को जो अलौकिक आनंद मिलता है, उसी को ‘रस’ कहते हैं। ‘रस’ को काव्य की आत्मा कहा गया है।
1. स्थायी भाव-काव्य के पढ़ने से पाठक के मन में कुछ भाव उठते हैं। ये भाव स्थायी रूप से मन में पाये जाते हैं। जैसे-उत्साह, शोक, ह्रास इत्यादि।
2. विभाव – जिन कारणों से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं उनको विभाव कहते हैं। विभाव दो हैं-
(क) आलंबन,
(ख) उद्दीपन,
3. अनुभाव स्थायी भावों के पैदा होने के बाद होने वाली चेष्टाये अनुभाव कहलाती हैं। जैसे-पसीना, कंपन, सदन इत्यादि।
4.संचारी या व्यभिचारी भाव – समय-समय पर अस्थायी रूप से उत्पन्न होने वाले भावों को संचारी भाव कहते हैं। एक से दूसरे स्थायी भाव में संचरण करने के कारण इनको व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। जैसे – उत्सुकता, चंचलता, चिंता, हर्ष इत्यादि।
कुछ प्रमुख रस
1. श्रृंगार रस – स्त्री-पुरुष के प्रेम का वर्णन शृंगार रस के अंतर्गत आता है। इसको स्थायी भाव रति है। इसके दो भेद हैं
(क) संयोग श्रृंगार – इसमें स्त्री-पुरुषों के मिलने का वर्णन होता है। जैसे
जानकी नाह को नेह लख्यो,
पुलको तनु बारि बिलोचन बाढ़े।
(ख) वियोग भंगार – इसमें दोनों के विरह का वर्णन किया जाता है। जैसे
हे खग-मग! हे मधुकर श्रेनी।
तुम्हँ देखी सीता मृग नैनी।।
2. हास्य रस – विचित्र वेशभूषा, हावभाव, बातचीत अथवा काम देखकर या उसका वर्णन पढ़कर जहाँ हँसी आती है, वहाँ हास्य रस होता है। इसका स्थायी भाव हास है।
उदाहरण:
प्रिया के वियोग में प्रीतम बेहाल थे
अंदर से साँस कुछ ठंडी-सी आती थी।
दूध से भरा गिलास ज्यों ही उठाते थे
साँसों के लगते ही कुल्फी जम जाती थी।
3. वीर रस – किसी वर्णन को पढ़कर सुनकर या देखकर मन में उत्पन्न उत्साह से वीररस की उत्पत्ति होती है। स्थायी भाव उत्साह है। इसके तीन भेद हैं-
- दयावीर,
- दान वीर,
- युद्धवीर
उदाहरण:
धरती जागी, आकाश जगा
वह जागा तो मेवाड़ जगा,
वह गरजा, गरजी दसों दिशा
था पवन रह गया ठगा-ठगा।
4. करुण रस – किसी की मृत्यु अथवा स्थायी वियोग का. शोकपूर्ण वर्णन पढ़ने-सुनने से करुण रस उत्पन्न होता है। स्थायी भाव है शोक।
उदाहरण:
(1) अर्ध रात्रि कपि नहिं आवा।
राम उठाय अनुज उर लावा।
(2) वन कानन जैहें साखा-मृग, हौं पुनि अनुज संघाती।
ह्न हैं कहा विभीषन की गति, रही सोच भरि छाती।।
5.शांत रस – जहाँ ईश्वर की भक्ति तथा संसार से वैराग्य का वर्णन होता है, वहाँ शांत रस होता है। इसका स्थयीभाव निर्वेद है।
उदाहरण:
मन पछितहै अवसर बीते।
दुरलभ देह पाइ हरि पदु भज, करम वचन अरु ही ते।
अब नाथहि अनुराग, जागु, जड़, त्यागु दुरासा जी ते।
बुझै न काम अगिनि तुलसी, कहुँ विषय भोग बहु घी ते।
6. वात्सल्य रस – बाल-क्रीड़ाओं और चेष्टाओं का जहाँ वर्णन होता है, वहाँ वात्सल्य रस होता है। इसको नौ रसों में नहीं गिना जाता। इसका स्थायीभाव-वत्सलता है।
उदाहरण:
मैया मेरी मैं नहि माखन खायो।
भोर भये गैययन के पाछे, मधुवन मोहि पठायो।
चार पहर वंसीबट भटकयौ. साँझ परै घर आयो।
मैं बालक बहियतुं को छोटो, छींको केहि विधि पायो।
जानि परै ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो।।
बहुविकल्पात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वीर रस का स्थायी भाव है
(क) उत्साह
(ख) शोक
(ग) हास
(घ) वत्सलता।
उत्तर:
(क) उत्साह
प्रश्न 2.
‘रसराज’ कहा जाता है-
(क) वीररस
(ख) शांत रस
(ग) शृंगार रस
(घ) करुण रस।
उत्तर:
(ग) शृंगार रस
प्रश्न 3.
“सच पूछो तो शर में ही बसती है दीप्ति विनय की” उदाहरण है
(क) शृगार रस का
(ख) वीर रस का
(ग) शांत रस का
(घ) करुण रस का।
उत्तर:
(ख) वीर रस का
अतिलघु/लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 4.
वीर रस का स्थायी भाव बताकर उसका एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वीर रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ है। उदाहरण
चढ़ चेतक पर तलवार उठा
रखता था भूतल पानी को
राणाप्रताप सिर काट काट
करता था सफल जवानी को।
प्रश्न 5.
श्रृंगार रस का स्थायी भाव क्या है? उसके दो भेद लिखिये।
उत्तर:
शृंगार रस का स्थायी भाव ‘रति’ है। शृंगार रस के दो भेद हैं-
- संयोग शृंगार
- वियोग शृंगार।
प्रश्न 6.
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो’ में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव क्या है?
उत्तर:
इन काव्य-पंक्तियों में शांत रस है। शांत रस का स्थायी भाव ‘निर्वेद’ होता है।
प्रश्न 7.
शृंगार रस के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
उदाहरण:
- संयोग शृंगार-घिर रहे थे धुंघराले बाल, अंस अवलम्बित मुख के पास।
- वियोग शृंगार-बिनु गुपाल बैरिन भई कुंजै।
तब वे लता लगति अति सीतल, अब भई बिसम ज्वाल की पुंजें।