RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 6 अभिवृत्ति एवं सामाजिक संज्ञान

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RBSE Class 12 Psychology Chapter 6 Notes अभिवृत्ति एवं सामाजिक संज्ञान

→ सामाजिक मनोविज्ञान उन सभी व्यवहारों का अध्ययन करता है तो दूसरों की वास्तविक, कल्पित अथवा अनुमानित उपस्थिति में घटित होता है।

→ सामाजिक प्रभाव के कारण लोग व्यक्ति के बारे में तथा जीवन से जुड़े विभिन्न विषयों के बारे में एक दृष्टिकोण विकसित करते हैं जो उनके अंदर एक व्यवहारात्मक प्रवृत्ति के रूप में विद्यमान रहती है। यही दृष्टिकोण अभिवृत्ति कहलाता है।

→ जब हम लोगों से मिलते हैं तब उनके व्यक्तिगत गुणों या विशेषताओं के बारे में अनुमान लगाते हैं। इसे छवि निर्माण कहा जाता है। 

→ विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में प्रदर्शित व्यवहार के कारणों का आरोपण करने की प्रक्रिया 'गुणारोपण' कहलाती है।

→ अभिवृत्ति, छवि निर्माण तथा गुणारोपण को संयुक्त रूप से सामाजिक संज्ञान कहा जाता है।

→ 'सामाजिक संज्ञान' को स्कीमा या अन्विति योजना नामक संज्ञानात्मक इकाइयों से सक्रिय बनाया जाता है।

→ संज्ञानात्मक प्रक्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से देखी नहीं जा सकती हैं, इसका बाह्य रूप से प्रदर्शित व्यवहारों के आधार पर अनुमान लगाना होता है। 

→ सामाजिक सुगमीकरण या अवरोध अर्थात् दूसरों की उपस्थिति में निष्पादन में सुधार या कमी प्रेक्षणीय व्यवहार के रूप में सामाजिक प्रभाव के उदाहरण हैं। 

 

→ समाजोन्मुख या समाजोपकारी व्यवहार अर्थात् जो संकटग्रस्त या जरूरतमंद हैं वैसे लोगों के प्रति ध्यान देना।

→ सामाजिक सुगमीकरण/अवरोध और समाजोन्मुख या समाजोपकारी व्यवहार प्रेक्षणीय व्यवहार के रूप में सामाजिक व्यवहार के दो उदाहरण हैं।

→ मनुष्यों में दूसरों से अंतःक्रिया करने एवं उनसे जुड़ने तथा अपने एवं दूसरों के व्यवहार की व्याख्या करने की आवश्यकता होती है। 

→ अभिवृत्ति मन की एक अवस्था है। यह किसी विषय के संबंध में विचारों का एक पुंज है जिसमें एक मूल्यांकनपरक विशेषता पाई जाती है तथा इससे संबद्ध एक सांवेगिक एवं क्रियात्मक घटक भी होते हैं। 

→ अभिवृत्तियों में भावात्मक, संज्ञानात्मक एवं व्यवहारात्मक घटक होते हैं और इनको कर्षण-शक्ति, चरम-सीमा, सरलता या जटिलता तथा केंद्रिकता के द्वारा समझा जा सकता है।

→ अभिवृत्ति के विचारपरक घटक को संज्ञानात्मक पक्ष, सांवेगिक घटक को भावात्मक पक्ष और क्रिया करने की प्रवृत्ति को व्यवहारपरक घटक या क्रियात्मक घटक कहा जाता है। 

→ अभिवृत्ति के तीनों घटकों को उनके अंग्रेजी नाम के प्रथम अक्षर के आधार पर अभिवृत्ति का ए. बी. सी. घटक कहा जाता

→ विश्वास-अभिवृत्ति के संज्ञानात्मक घटक को इंगित करते हैं तथा एक ऐसे आधार का निर्माण करते हैं जिन पर अभिवृत्ति टिकी है, जैसे-ईश्वर में विश्वास।

→ मूल्य-ऐसी अभिवृत्ति है जिसमें 'चाहिए' का पक्ष निहित रहता है, जैसे अचारपरक या नैतिक मूल्य। मूल्य का निर्माण तब होता है जब कोई विशिष्ट विश्वास या अभिवृत्ति व्यक्ति के जीवन के प्रति उसके दृष्टिकोण का एक अभिन्न अंग बन जाती

→ अभिवृत्ति की चार प्रमुख विशेषताएँ हैं

  • कर्षण शक्ति (सकारात्मकता या नकारात्मकता),
  • चरम सीमा,
  • सरलता या जटिलता, बहुविधता तथा
  • केन्द्रिकता।

→ कर्षण शक्ति-अभिवृत्ति की कर्षण-शक्ति हमें यह बताती है कि अभिवृत्ति विषय के प्रति कोई अभिवृत्ति सकारात्मक है अथवा नकारात्मक। चरम सीमा-एक अभिवृत्ति की चरम सीमा यह इंगित करती है कि अभिवृत्ति किस सीमा तक सकारात्मक या नकारात्मक है।

→ सरलता या जटिलता-अभिवृत्ति की इस विशेषता से तात्पर्य है कि एक व्यापक अभिवृत्ति के अंतर्गत कितनी अभिवृत्तियाँ होती हैं। जब अभिवृत्ति तंत्र में एक या बहुत थोड़ी-सी अभिवृत्तियाँ हों तो उसे 'सरल' कहा जाता है और जब वह अनेक अभिवृत्तियों से बना हो तो उसे जटिल कहा जाता है। 

→ केन्द्रिकता-अभिवृत्ति की यह विशेषता अभिवृत्ति तंत्र में किसी विशिष्ट अभिवृत्ति की भूमिका को बताता है।

→ गैर-केंद्रीय अभिवृत्ति की तुलना में अधिक केन्द्रिकता वाली कोई अभिवृत्ति, अभिवृत्ति तंत्र की अन्य अभिवृत्तियों को अधिक प्रभावित करेगी। 

→ लोग व्यवहारात्मक अधिगम प्रक्रिया, परिवार एवं विद्यालय के प्रभाव, संदर्भ समूह एवं संचार माध्यम द्वारा अभिवृत्तियाँ अथवा विचार एवं व्यवहारात्मक प्रवृत्तियाँ विकसित करते हैं। 

→ अभिवृत्ति के अधिगम को प्रेरित करने वाली दशाएँ या अभिवृत्ति निर्माण की प्रक्रिया :

  • साहचर्य के द्वारा अभिवृत्तियों का अधिगम,
  • पुरस्कृत या दंडित होने के कारण अभिवृत्तियों को सीखना,
  • प्रतिरूपण (दूसरों के प्रेक्षण) के द्वारा अभिवृत्ति का अधिगम करना,
  • समूह या सांस्कृतिक मानकों के द्वारा अभिवृत्ति का अधिगम करना,
  • सूचना के प्रभाव से अधिगम।

→ अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक

  • परिवार एवं विद्यालय का परिवेश,
  • संदर्भ समूह,
  • व्यक्तिगत अनुभव एवं
  • संचार माध्यम संबद्ध प्रभाव। 

→ “जीवन के प्रारंभिक वर्षों में अभिवृत्ति निर्माण करने में माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

→ बाद में विद्यालय का परिवेश अभिवृत्ति निर्माण के लिए एक महत्त्वपूर्ण पृष्ठभूमि बन जाता है। 

→ संदर्भ समूह एक व्यक्ति को सोचने एवं व्यवहार करने के स्वीकृत नियमों या मानकों को बताते हैं। ये समूह या संस्कृति के मानकों के माध्यम से अभिवृत्तियों के अधिगम को दर्शाते हैं। 

→ अनेक अभिवृत्तियों का निर्माण प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा होता है, जो लोगों के तथा स्वयं के जीवन के प्रति हमारी अभिवृत्ति में प्रबल परिवर्तन उत्पन्न करता है। 

→ आजकल विभिन्न संचार-माध्यमों के द्वारा प्रदत्त सूचना के विशाल भंडार के कारण सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार की अभिवृत्तियों का निर्माण होता है। 

→ अभिवृत्ति निर्माण के दौरान और इस प्रक्रिया के बाद भी विभिन्न प्रकार के प्रभावों के द्वारा अभिवृत्तियों में परिवर्तन एवं परिमार्जन किया जा सकता है। 

→ अभिवृत्ति परिवर्तन संतुलन संप्रत्यय, संज्ञानात्मक संगति एवं द्विस्तरीय संप्रत्यय के अनुसार होता है। अभिवृत्ति परिवर्तन पहले से विद्यमान अभिवृत्ति, स्रोत, संदेश एवं लक्ष्य की विशेषताओं द्वारा प्रभावित होता है।

→  फ्रिटज हाइडर के द्वारा प्रस्तावित 'संतुलन का संप्रत्यय' जिसे कभी-कभी पी-ओ-एक्स त्रिकोण के रूप में व्यक्त किया जाता है, अभिवृत्ति के तीन घटकों या पक्षों को निरूपित करता है जिसमें पी वह व्यक्ति है जिसकी अभिवृत्ति का अध्ययन किया जाता है, ओ एक दूसरा व्यक्ति है तथा एक्स वह अभिवृत्ति विषय है जिसके प्रति अभिवृत्ति का अध्ययन करना है। 

→ यदि पी-ओ-अभिवृत्ति, ओ-एक्स अभिवृत्ति तथा पी-एक्स. अभिवृत्ति के बीच एक असंतुलन की अवस्था होती है तो अभिवृत्ति में परिवर्तन होता है। 

→ 'लियॉन फेस्टिंगर' ने संज्ञानात्मक विसंवादिता या विसंगति का संप्रत्यय प्रतिपादित किया जो संज्ञानात्मक घटक पर बल देता

→ संतुलन एवं संज्ञानात्मक विसंवादिता दोनों ही संज्ञानात्मक संगति के उदाहरण हैं। संज्ञानात्मक संगति का अर्थ है कि अभिवृत्ति या अभिवृत्ति तंत्र के दो घटकों, पक्षों या तत्त्वों को एक दिशा में होना चाहिए यानि प्रत्येक तत्त्व को तार्किक रूप से एक समान होना चाहिए। 

→ भारतीय मनोवैज्ञानिक एस. एम. मोहसिन ने द्विस्तरीय संप्रत्यय प्रस्तावित किया। इनके अनुसार अभिवृत्ति में परिवर्तन दो स्तरों पर या चरणों में होता है। प्रथम स्तर में परिवर्तन का लक्ष्य स्रोत से तादात्म्य स्थापित करता है। दूसरे चरण में अभिवृत्ति विषय के प्रति अपने व्यवहार को वास्तविक रूप से परिवर्तित करते हुए स्रोत अपनी अभिवृत्ति में परिवर्तन का प्रदर्शन करता है। 

→ एक अभिवृत्ति में परिवर्तन सर्वसम या संगत हो सकता है यह उसी दिशा में परिवर्तित हो सकती है जिस दिशा में पहले से विद्यमान अभिवृत्ति है।

→ अभिवृत्ति परिवर्तन विसंगत भी हो सकता है यानि यह पहले से विद्यमान अभिवृत्ति की विपरीत दिशा में भी परिवर्तित हो सकता है।

→ स्रोत की विश्वसनीयता एवं आकर्षकता दोनों विशेषताएँ अभिवृत्ति परिवर्तन को प्रभावित करती हैं। अभिवृत्तियों में परिवर्तन तब अधिक संभव है जब सूचना एक उच्च विश्वसनीय स्रोत से आती है। 

→ संदेश वह सूचना है जिसे अभिवृत्ति में परिवर्तन करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है। अभिवृत्तियों में परिवर्तन तब होगा जब दिये गए विषय के बारे में सूचना पर्याप्त हो, न ही बहुत अधिक हो, न ही बहुत कम। 

→ संदेश में एक तार्किक अथवा सांवेगिक अपील, संदेश द्वारा उद्दीप्त अभिप्रेरक और संदेश को फैलाने का माध्यम भी अभिवृत्ति परिवर्तन को निर्धारित करते हैं। अभिवृत्ति परितर्वन की संभावना एवं विस्तार को लक्ष्य की कुछ विशेषताएँ जैसे-अनुनयना प्रबल पूर्वाग्रह, आत्म-सम्मान और बुद्धि प्रभावित करते हैं। 

→ जिस प्रकार एक व्यक्ति की अभिवृत्ति सदैव उसके व्यवहार के माध्यम से प्रदर्शित नहीं होती है इसी प्रकार से एक व्यक्ति का वास्तविक व्यवहार व्यक्ति की विशिष्ट विषय के प्रति अभिवृत्ति का विरोधी हो सकता है।

→ पूर्वाग्रह-किसी विशिष्ट समूह के प्रति अभिवृत्ति का उदाहरण है। ये प्रायः नकारात्मक होते हैं एवं अनेक स्थितियों में विशिष्ट समूह के संबंध में रूढधारणा पर आधारित होते हैं। 

→ रूढ़धारणाएँ लक्ष्य समूह के बारे में अवांछित विशेषताओं से युक्त होती हैं और ये विशिष्ट समूह के सदस्यों के बारे में एक नकारात्मक अभिवृत्ति या पूर्वाग्रह को जन्म देती हैं। 

→ पूर्वाग्रह के स्रोत-अधिगम, एक प्रबल सामाजिक अनन्यता तथा अंत:समूह अभिनति, बलि का बकरा बनाना, सत्य के सम्प्रत्यय का आधार तत्त्व और स्वतः साधक भविष्योक्ति। 

→ पूर्वाग्रह अर्थात् एक समूह के प्रति नकारात्मक अभिवृत्तियाँ प्रायः एक समाज में द्वंद्व उत्पन्न करती हैं एवं भेदभाव के रूप में अभिव्यक्त होती हैं। 

→ उन सभी मानसिक प्रक्रियाओं का समुच्चय या पुँज जो हमारे आस-पास के सामाजिक संसार को समझने में निहित है, उसे सामाजिक संज्ञान कहा जाता है। 

→ एक ऐसी मानसिक संरचना जो किसी वस्तु के बारे में सूचना के प्रक्रमण के लिए एक रूपरेखा नियमों का समूह या दिशा-निर्देश प्रदान करती है, 'स्कीमा' या 'अन्विति योजना' कहलाती है।

→ सामाजिक संज्ञान के संदर्भ में मौलिक इकाइयाँ सामाजिक स्कीमा होती हैं और सामाजिक संज्ञान सामाजिक स्कीमा से निर्देशित होती हैं। 

→ वे स्कीमा जो संवर्ग के रूप में कार्य करती हैं उन्हें 'आद्यरूप' कहा जाता है. जो किसी वस्तु को पूर्णरूपेण परिभाषित करने में सहायक सम्पूर्ण विशेषताओं या गुणों के समुच्चय या सेट होते हैं। 

→ रूढ़धारणा-रूढ़धारणा एक प्रकार का सामाजिक स्कीमा है जिसमें एक विशिष्ट समूह के प्रति अति सामान्यीकृत विश्वास होता है, जो प्रायः पूर्वाग्रहों को उत्पन्न करता है एवं उन्हें दृढ़ता प्रदान करता है। 

→ व्यक्ति को जानने या समझने की प्रक्रिया को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
(अ) छवि निर्माण और
(ब) गुणारोपण।
वह व्यक्ति जो छवि बनाता है उसे प्रत्यक्षणकर्ता कहते हैं एवं वह व्यक्ति जिसके बारे में छवि बनाई जाती है उसे लक्ष्य कहा जाता है। 

→ प्रत्यक्षणकर्ता लक्ष्य के गुणों के संबंध में सूचनाएँ एकत्र करता है या दी गई सूचना के प्रति अनुक्रिया करता है, सूचनाओं को संगठित करता है तथा लक्ष्य के बारे में निष्कर्ष निकालता है।

→ गुणारोपण में प्रत्यक्षणकर्ता व्याख्या करता है कि क्यों लक्ष्य ने किसी विशिष्ट प्रकार से व्यवहार किया। लक्ष्य के व्यवहार के लिए कारण देना गुणारोपण का मुख्य तत्त्व है।

→ छवि निर्माण की प्रक्रिया में तीन उप-प्रक्रियाएँ होती हैं

  • चयन,
  • संगठन एवं,
  • अनुमान।

→ छवि निर्माण एक व्यवस्थित तरीके से होता है एवं प्रथम प्रभाव एवं आसन्नता प्रभाव तथा परिवेश प्रभाव को प्रदर्शित करता

→ लोग आंतरिक एवं बाह्य कारणों के गुणारोपण द्वारा अपने एवं दूसरों के व्यवहार एवं अनुभवों जैसे सफलता एवं असफलता के कारणों को निर्धारित करते हैं।

→ गुणारोपण ऐसे प्रभाव जैसे-मूल गुणारोपण त्रुटि एवं कर्ताप्रेक्षक, प्रभाव प्रदर्शित करता है। 

→ दूसरों की उपस्थिति से किसी विशिष्ट कार्य के निष्पादन में सुधार होता है तो उसे सामाजिक सुकरीकरण कहते हैं।

→ भाव प्रबोधन, मूल्यांकन बोध, कार्य की प्रकृति एवं सह-क्रिया परिस्थिति के कारण दूसरों की उपस्थिति में परिचित कार्यों के निष्पादन में सुधार हो सकता है। 

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 6 अभिवृत्ति एवं सामाजिक संज्ञान

→ लोग दूसरे जरूरतमंदों की सहायता करके एवं उनके लिए सहायक बनकर उनके प्रति अनुक्रिया करते हैं। लोगों के इस व्यवहार को समाजोन्मुख या समाजोपकारी व्यवहार कहा जाता है।

→ समाजोपकारी व्यवहार अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होता है जैसे-मनुष्यों में दूसरों की सहायता करने की सहज और नैसर्गिक प्रवृत्ति, अधिगम, सांस्कृतिक कारक, सामाजिक मानक, व्यक्ति की प्रत्याशित प्रक्रिया, तदनुभूति और दायित्व का विसरण आदि।

→ समाजोपकारी व्यवहार के तीन मानक हैं-सामाजिक उत्तरदायित्व, परस्परता और न्यायसंगतता या समानता।

Prasanna
Last Updated on Sept. 23, 2022, 4:09 p.m.
Published Sept. 23, 2022