RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

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RBSE Class 12 Psychology Chapter 2 Notes आत्म एवं व्यक्तित्व

→ आत्म एवं व्यक्तित्व का तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके आधार पर हम अपने अस्तित्व को परिभाषित करते हैं। ये ऐसे तरीकों को भी इंगित करते हैं जिसमें हमारे अनुभव संगठित एवं व्यवहार में अभिव्यक्त होते हैं।

→ एक व्यक्ति का आत्म महत्त्वपूर्ण दूसरों के साथ सामाजिक अंत:क्रिया के द्वारा विकसित होता है।

→ व्यक्तित्व से तात्पर्य व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं से है जो विभिन्न स्थितियों और समयों में सापेक्ष रूप से स्थिर होते हैं और उसे अनन्य बनाते हैं।

→ व्यक्तिगत अनन्यता से तात्पर्य व्यक्ति के उन गुणों से है जो अन्य दूसरों से भिन्न करते हैं।

→ सामाजिक अनन्यता से तात्पर्य व्यक्ति के उन पक्षों से है जो उसे किसी सामाजिक अथवा सांस्कृतिक समूह से संबंद्ध करते हैं अथवा जो ऐसे समूह से व्युत्पन्न होते हैं। 

→ आत्म का तात्पर्य अपने संदर्भ में व्यक्ति के सचेतन अनुभवों, विचारों, चिंतन एवं भावनाओं की समग्रता से है। 

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व 

→ आत्म के विभिन्न रूपों का निर्माण भौतिक एवं समाज सांस्कृतिक पर्यावरणों से होने वाली हमारी अंतःक्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है। 

→ व्यक्तिगत आत्म में एक ऐसा अभिविन्यास होता है जिसमें व्यक्ति मुख्य से अपने बारे में ही संबंद्ध होने का अनुभव करता

→ सामाजिक आत्म का प्रकटीकरण दूसरों के संबंध में होता है जिसमें सहयोग, एकता, संबंधन, त्याग, समर्थन अथवा भागीदारी जैसे जीवन के पक्षों पर बल दिया जाता है। 

→ व्यक्ति के रूप में हम सदैव अपने मूल्य का मान और अपनी योग्यता के बारे में निर्णय या आकलन करते रहते हैं। व्यक्ति का अपने बारे में यह मूल्य-निर्णय ही आत्म-सम्मान कहा जाता है।

→ छः से सात वर्ष तक के बच्चों में आत्म-सम्मान चार क्षेत्रों में निर्मित हो जाता है-शैक्षिक क्षमता, सामाजिक क्षमता, शारीरिक/खेलकूद संबंधित क्षमता और शरीरिक रूप जो आयु के बढ़ने के साथ-साथ और अधिक परिष्कृत होता जाता है।

→ आत्म सक्षमता हमारे आत्म का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। आत्म-सक्षमता की प्रबल भावना लोगों को अपने जीवन की परिस्थितियों का चयन करने, उनको प्रभावित करने एवं यहाँ तक कि उनका निर्माण करने को भी प्रेरित करती हैं।

→ आत्म-सक्षमता की प्रबल भावना रखने वाले लोगों में भय का अनुभव भी कम होता है। 

→ आत्म-नियमन का तात्पर्य हमारे अपने व्यवहार को संगठित और परिवीक्षण या मॉनीटर करने की योग्यता से है।

→ जिन लोगों में बाह्य पर्यावरण की माँगों के अनुसार अपने व्यवहार को परिवर्तित करने की क्षमता होती है, वे आत्म-परिवीक्षण में उच्च होते हैं।

→ आवश्यकताओं के परितोषण को विलंबित अथवा आस्थगित करने के व्यवहार को सीखना ही आत्म-नियंत्रण कहा जाता है।

→ अपने व्यवहार का प्रेक्षण एक तकनीक है जिसके द्वारा आत्म के विभिन्न पक्षों को परिवर्तित, परिमार्जित अथवा सशक्त करने के लिए आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।

→ आत्म-प्रबलन के अंतर्गत ऐसे व्यवहार पुरस्कृत होते हैं जिसके परिणाम सुखद होते हैं।

→ स्वभाव जैविक रूप से आधारित प्रतिक्रिया करने का विशिष्ट तरीका है।

→ स्ववृत्ति किसी स्थिति विशेष में विशिष्ट तरीके से प्रतिक्रिया करने की व्यक्ति की प्रवृत्ति है।

→ चरित्र नियमित रूप से घटित होने वाले व्यवहार का समग्र प्रतिरूप है।

→ व्यवहार करने के अत्यधिक ढंग को आदत कहा जाता है।

→ प्रारूप उपागम व्यक्ति के प्रेक्षित व्यवहारपरक विशेषताओं के कुछ व्यापक स्वरूपों का परीक्षण कर मानव व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करता है।

→ विशेषक उपागम विशिष्ट मनोवैज्ञानिक गुणों पर बल देता है जिसके आधार पर व्यक्ति संगत और स्थिर रूपों में भिन्न होते हैं। 

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

→ अंत:क्रियात्मक उपागम के अनुसार स्थितिपरक विशेषताएँ हमारे व्यवहारों को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती

→ भारत में एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रंथ चरक संहिता ने लोगों को वात, पित्त एवं कफ इन तीन वर्गों में तीन ह्यूमरल तत्त्वों, जिन्हें त्रिदोष कहते हैं, के आधार पर वर्गीकृत किया है।

→ सत्व गुण के अंतर्गत स्वच्छता, सत्यवादिता, कर्तव्यनिष्टा, अनासक्ति या विलग्नता, अनुशासन आदि गुण आते हैं। 

→ रजस गुण के अंतर्गत तीव्र क्रिया, इंद्रिय-तुष्टि की इच्छा, असंतोष, दूसरों के प्रति असूया (ईर्ष्या) और भौतिकवादी मानसिकता आदि गुण आते हैं। 

→ तमस गुण के अंतर्गत क्रोध, घमंड, अवसाद, आलस्य, असहायता की भावना आदि गुण आते हैं।

→ प्रमुख विशेषक अत्यन्त सामान्यीकृत प्रवृत्तियाँ होती हैं। ये उस लक्ष्य को इंगित करती हैं जिसके चतुर्दिक व्यक्ति का पूरा जीवन व्यतीत होता है। 

→ प्रभाव में कम व्यापक किंतु फिर भी सामान्यीकृत प्रवृत्तियाँ ही केंद्रीय विशेषक के रूप में जानी जाती हैं। ये विशेषक प्रायः लोगों के शैसापत्रों में अथवा नौकरी की संस्तुतियों में किसी व्यक्ति के लिए लिखे जाते हैं। 

→ विशेषकों में किसी भी प्रकार की भिन्नता के कारण समान स्थिति में अथवा समान परिस्थिति के प्रति भिन्न प्रकार की अनुक्रिया उत्पन्न होती है।

→ कैटेल ने मूल विशेषकों का वर्णन विपरीतार्थी या विलोमी प्रवृत्तियों के रूप में किया है। उन्होंने व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए एक परीक्षण विकसित किया जिसे सोलह व्यक्तित्त्व कारक प्रश्नावली के नाम से जाना जाता है।

→ एच. जे. आइजेक ने व्यक्तित्व को दो व्यापक आयामों के रूप में प्रस्तावित किया है। इन आयामों का आधार जैविक एवं आनुवंशिक है। 

→ आइजेक व्यक्तित्व प्रश्नावली एक परीक्षण है जिसका उपयोग व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों का अध्ययन करने के लिए किया गया है। 

→ फ्रायड ने मन के आंतरिक प्रकार्यों को समझने के लिए मुक्त साहचर्य, स्वप्न विश्लेषण और त्रुटियों के विश्लेषण का उपयोग किया है।

→ मुक्त साहचर्य एक विधि है जिसमें व्यक्ति अपने मन में आने वाले सभी विचारों, भावनाओं और चिंतनों को मुक्त भाव से व्यक्त करता है। 

→ पूर्वचेतना के अंतर्गत वे मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग तभी जागरूक होते हैं जब वे उन पर सावधानीपूर्वक ध्यान केंद्रित करते हैं।

→ अचेतन के अंतर्गत ऐसी मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग जागरूक नहीं होते हैं।

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

→ फ्रायड ने एक चिकित्सा प्रक्रिया विकसित की जिसे मनोविश्लेषण के रूप में जाना जाता है।

→ मनोविश्लेषण चिकित्सा का आधारभूत लक्ष्य दमित अचेतन सामग्रियों को चेतना के स्तर पर ले आना है जिससे कि लोग और अधिक आत्म-जागरूक होकर समाकलित तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर सकें।

→ इड व्यक्ति की मूल प्रवृत्तिक ऊर्जा का स्रोत होता है। इसका संबंध व्यक्ति की आदिम आवश्यकताओं, कामेच्छाओं और आक्रामक आवेगों की तात्कालिक तुष्टि से होता है। 

→ अहं का विकास इड से होता है और यह व्यक्ति की मूल प्रवृत्तिक आवश्यकताओं की संतुष्टि वास्तविकता के धरातल पर करता है। 

→ पराहम् इड और अहं को बताता है कि किसी विशिष्ट अवसर पर इच्छा विशेष की संतुष्टि नैतिक है अथवा नहीं।

→ मूल प्रवृत्तिक जीवन शक्ति जो इड को ऊर्जा प्रदान करती है कामशक्ति या लिबिडो कहलाती है।

→ दमन एक रक्षा युक्ति है जिसमें दुश्चिंता उत्पन्न करने वाले व्यवहार और विचार चेतना के स्तर से विलुप्त कर दिए जाते हैं। जब लोग किसी भावना अथवा इच्छा का दमन करते हैं तो वे उस भावना अथवा इच्छा के प्रति बिल्कुल ही जागरूक नहीं होते हैं। 

→ प्रक्षेपण में लोग अपने विशेषकों को दूसरों पर आरोपित करते हैं।

→ अस्वीकरण में एक व्यक्ति पूरी तरह से वास्तविकता को स्वीकार करना नकार देता है। 

→ प्रतिक्रिया निर्माण में व्यक्ति अपनी वास्तविक भावनाओं और इच्छाओं के ठीक विपरीत प्रकार का व्यवहार अपनाकर अपनी दुश्चिता से रक्षा करने का प्रयास करता है।

→ युक्तिकरण में एक व्यक्ति अपनी तर्कहीन भावनाओं और व्यवहारों को तर्कयुक्त और स्वीकार्य बनाने का प्रयास करता है। 

→ फ्रायड ने व्यक्तित्व विकास का एक पंच अवस्था सिद्धांत प्रस्तावित किया जिसे मनोलैंगिक विकास के नाम से भी जाना जाता है।

→ नव-विश्लेषणवादी सिद्धांतों की विशेषता यह है कि इनमें इड की लैंगिक और आक्रामक प्रवृत्तियों की भूमिकाओं और अहं के संप्रत्यय के विस्तार को कम महत्त्व दिया गया है। इनके स्थान पर सर्जनात्मकता, क्षमता और समस्या समाधान योग्यता जैसे मानवीय गुणों पर बल दिया गया है। 

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

→ युंग ने व्यक्ति का अपना एक सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसे विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान कहते हैं। इन सिद्धांतों का आधारभूत अभिग्रह यह है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व में प्रतिस्पर्धा शक्तियों एवं संरचनाएँ कार्य करती हैं; न कि व्यक्ति और समाज की माँगों अथवा वास्तविकता के बीच कोई द्वंद्व होता है।

→ एडलर के सिद्धांत व्यष्टि या वैयक्तिक मनोविज्ञान का आधारभूत अभिग्रह यह है कि व्यक्ति का व्यवहार उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्योन्मुख होता है। 

→ एडलर के विचार से प्रत्येक व्यक्ति अपर्याप्तता और अपराध की भावनाओं से ग्रसित होता है जिसे हीनता मनोग्रंथि कहा जाता है और जो बाल्यावस्था से उत्पन्न होती है।

→ व्यवहारवादी उपागम व्यवहार की आंतरिक गतिकी को महत्त्व नहीं देता है। व्यवहारवादी परिभाष्य, प्रेक्षणीय एवं मापन योग्य प्रदत्तों में ही विश्वास करते हैं या उनको महत्त्व देते हैं।

→ सांस्कृतिक उपागम पारिस्थितिक और सांस्कृतिक पर्यावरण की विशेषताओं के संदर्भ में व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करता

→ मानवतावादी सिद्धांतकारों का मत है कि स्वस्थ व्यक्तित्व मात्र समाज के प्रति समायोजन में ही निहित नहीं होता है। यह अपने को गहरे से जानने की जिज्ञासा, बिना छद्मवेश के अपनी भावनाओं के प्रति ईमानदार होने और जहाँ-तहाँ एक जैसा बने रहने की प्रवृत्ति को भी सन्निहित करता है।

→ आत्मसिद्धि वह अवस्था होती है जिसमें लोग अपनी संपूर्ण संभाव्यताओं को विकसित कर चुके होते हैं।

→ मैस्लो ने मनुष्यों का एक आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया है जिसके अंतर्गत मानव में प्रेम, हर्ष और सर्जनात्मक कार्यों को करने की संभाव्यता होती है।

→ अभिप्रेरणाओं. जो हमारे जीवन को नियमित करती हैं, के विश्लेषण के द्वारा आत्मसिद्धि को संभव बनाया जा सकता है।

→ किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की समझ के लिए सोद्देश्य औपचारिक प्रयास को व्यक्तित्व मूल्यांकन कहा जाता है।

→ मनस्तापिता मनोविकारों से संबंधित है जो दूसरों के लिए भावनाओं में कमी, लोगों के साथ अंत:क्रिया करने का एक कठोर तरीका और सामाजिक परंपराओं की अवज्ञा करने की प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

→ असंचरित साक्षात्कारों में साक्षात्कारकर्ता अनेक प्रश्नों को किसी व्यक्ति से पूछकर उसके बारे में एक छवि विकसित करने का प्रयत्न करता है। 

→ संरचित साक्षात्कारों में अत्यन्त विशिष्ट प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं और एक निश्चित या नियत प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

Prasanna
Last Updated on Sept. 23, 2022, 4:01 p.m.
Published Sept. 23, 2022