RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न: 

प्रश्न 1. 
निम्न में से किस दशक में पर्यावरण के मसले ने जोर पकडा है? 
(अ) 1960
(ब) 1970 
(स) 1980
(द) 2000. 
उत्तर:
(अ) 1960

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प्रश्न 2. 
1992 के किस विश्वस्तरीय सम्मेलन ने पर्यावरण को विश्व राजनीति के प्रमुख मुद्दों में सम्मिलित करा दिया? 
(अ) क्योटो सम्मेलन
(ब) मांट्रियल सम्मेलन 
(स) रियो (पृथ्वी) सम्मेलन
(द) ये सभी। 
उत्तर:
(स) रियो (पृथ्वी) सम्मेलन

प्रश्न 3. 
रियो डी जेनेरियो निम्न में से किस देश का एक शहर है? 
(अ) ब्राजील
(ब) स्पेन 
(स) जापान
(द) फ्रांस।
उत्तर:
(स) जापान

प्रश्न 4. 
रियो पृथ्वी सम्मेलन में कितने देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया? 
(अ) 50
(ब) 120 
(स) 170
(द) 192. 
उत्तर:
(ब) 120 

प्रश्न 5. 
निम्न में से किस वर्ष मांट्रियल प्रोटोकॉल समझौता हुआ? 
(अ) सन् 1987
(ब) सन् 1991 
(स) सन् 1992
(द) सन् 1959. 
उत्तर:
(द) सन् 1959. 

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प्रश्न 6. 
क्योटो प्रोटोकॉल सम्मेलन निम्न में से किस देश में हुआ था? 
(अ) जापान
(ब) चीन 
(स) भारत
(द) पाकिस्तान। 
उत्तर:
(अ) जापान

प्रश्न 7. 
निम्न में से किस वर्ष भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये थे? 
(अ) सन् 1992
(ब) सन् 1998 
(स) सन् 2002
(द) सन् 2009. 
उत्तर:
(स) सन् 2002

प्रश्न 8. 
भारत ने पेरिस जलवायु समझौते का अनुमोदन कब किया? 
(अ) 1 जुलाई, 2015
(ब) 2 अक्टूबर, 2015 
(स) 2 अक्टूबर, 2016
(द) 10 दिसम्बर 2016. 
उत्तर:
(स) 2 अक्टूबर, 2016

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न:

प्रश्न 1. 
'ओजोन परत में छेद होना' से क्या आशय है?
उत्तर:
धरती के ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी होती जा रही है। इसे 'ओजोन परत में छेद होना' कहते हैं।

प्रश्न 2. 
क्लब ऑफ रोम ने सन् 1972. में कौन - सी पुस्तक प्रकाशित की? 
उत्तर:
लिमिट्स टू ग्रोथ। 

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प्रश्न 3. 
पर्यावरण से जुड़े किसी एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का नाम लिखिए। 
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)। 

प्रश्न 4. 
पृथ्वी सम्मेलन क्या है तथा यह कब हुआ?
अथवा 
पृथ्वी सम्मेलन कहाँ हुआ था?
अथवा 
पृथ्वी सम्मेलन जिस शहर में आयोजित हुआ उसका नाम लिखिए।
उत्तर:
पृथ्वी सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दे पर केन्द्रित सम्मेलन था। यह सम्मेलन सन् 1992 में रियो डी जेनेरियो (ब्राजील) में हुआ था।

प्रश्न 5. 
रियो सम्मेलन की सिफारिशों (सुझावों) को किस नाम से जाना जाता है? 
उत्तर:
एजेंडा - 21 के नाम से। 

प्रश्न 6. 
टिकाऊ विकास का तरीका क्या है? 
उत्तर:
पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये बिना होने वाले आर्थिक विकास को टिकाऊ विकास का तरीका कहा जाता है। 

प्रश्न 7. 
एजेंडा - 21 की आलोचना किस आधार पर की जाती है?
उत्तर:
एजेंडा - 21 के आलोचकों का मत है कि इसका झुकाव पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने की बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है।

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प्रश्न 8. 
साझी सम्पदा क्या है ?
अथवा 
निम्नलिखित वाक्य को संशोधित कर पुन: अपनी उत्तर - पुस्तिका में लिखिए। वे संसाधन जिन पर किसी एक का वास्तविक अधिकार न होकर सम्पूर्ण समुदाय का अधिकार होता है, साझी सम्पदा कहलाती है। 

प्रश्न 9. 
साझी सम्पदा के कोई चार उदाहरण दीजिए।
अथवा 
साझी सम्पदा के अन्तर्गत आने वाले किन्हीं चार हिस्सों अथवा क्षेत्रों को सूचीबद्ध कीजिए। 
उत्तर:

  1. संयुक्त परिवार का चूल्हा, 
  2. चरागाह, 
  3. मैदान, 
  4. नदी। 

प्रश्न 10. 
वैश्विक सम्पदा क्या है?
उत्तर:
वह सम्पदा जिस पर किसी एक सम्प्रभु राष्ट्र का अधिकार नहीं होता बल्कि सम्पूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय साझे के तौर पर उसका प्रबन्धन करता है, वैश्विक सम्पदा कहलाती है।

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प्रश्न 11. 
वैश्विक सम्पदा के कोई चार उदाहरण दीजिए। 
उत्तर:

  1. पृथ्वी का वायुमण्डल, 
  2. अंटार्कटिका, 
  3. समुद्री सतह, 
  4. बाह्य आन्तरिक्ष 

प्रश्न 12. 
वैश्विक सम्पदा की सुरक्षा के लिए किये गये किन्हीं तीन समझौतों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. अंटार्कटिका संधि (1959), 
  2. मांट्रियल न्यायाचार (1987), 
  3. अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार (1991)। 

प्रश्न 13. 
अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद होने की जानकारी किस दशक के मध्य में हुई? 
उत्तर:
सन् 1980 के दशक के मध्य में। 

प्रश्न 14. 
जलवायु के परिवर्तन से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार को किस नाम से जाना जाता है? 
उत्तर:
यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कंवेंशन ऑन क्लाइमेट, चेन्ज (UNFCCC-1992) के नाम से जाना जाता है। 

प्रश्न 15. 
क्योटो प्रोटोकॉल सम्मेलन कब व किस देश में हआ? 
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकॉल सम्मेलन सन् 1997 में जापान के क्योटो शहर में हुआ। 

प्रश्न 16. 
किन कारणों से सम्पूर्ण विश्व में साझी सम्पदा का आकार घट रहा है?
उत्तर:
निजीकरण, गहनतर कृषि, जनसंख्या वृद्धि एवं पारिस्थितिकी तंत्र में कमी आदि कारणों से सम्पूर्ण विश्व सम्पदा का आकार घट रहा है।

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प्रश्न 17. 
क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट प्राप्त किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. भारत, 
  2. चीन। 

प्रश्न 18. 
भारत और चीन को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट क्यों दी गयी? 
उत्तर:
क्योंकि औद्योगीकरण के दौर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय में इनका कोई विशेष योगदान नहीं था। 

प्रश्न 19. 
भारत में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम कब पारित हुआ? 
उत्तर:
सन् 2001 में। 

प्रश्न 20. 
पृथ्वी पर मौजूद सबसे ताकतवर उद्योगों में से किसी एक का नाम लिखिए। 
उत्तर:
खनिज उद्योग। 

प्रश्न 21. 
किन्हीं दो प्राकृतिक संसाधनों के नाम लिखिए जिनको लेकर राष्ट्रों में संघर्ष होता रहा है? 
उत्तर:

  1. खनिज तेल, 
  2. जल। 

प्रश्न 22. 
मूलवासियों की शुरुआती परिभाषा कब व किसने दी? 
उत्तर:
मूलवासियों की 

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प्रश्न 23. 
मूलवासी का अर्थ बताइए।
उत्तर:
जनता का वह भाग जो किसी वन प्रदेश अथवा अन्य भू-भाग में आदिकाल से निवास करते चले आ रहे हों, वह सम्बन्धित क्षेत्र के मूलवासी कहलाते हैं।

प्रश्न 24. 
फिलीपिन्स के कोरडिलेरा क्षेत्र में कितने लाख मूलवासी लोग रहते हैं?
उत्तर:
फिलीपिन्स के कोरडिलेरा क्षेत्र में 20 लाख मूलवासी लोग रहते हैं। 

प्रश्न 25. 
मूलवासियों के प्रमुख निवास स्थान कहाँ - कहाँ हैं? 
उत्तर:
मूलवासियों के प्रमुख निवास स्थान मध्य व दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण - पूर्व एशिया व भारत हैं। 

प्रश्न 26. 
भारत में किन लोगों को 'मूलवासी' कहा जाता है?
उत्तर:
भारत में अनुसूचित जनजाति के लोगों या आदिवासी लोगों को मूलवासी कहा जाता है। 

प्रश्न 27. 
वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल का गठन कब हुआ? 
उत्तर:
सन् 1975 में। 

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प्रश्न 28. 
संयुक्त राष्ट्र संघ ने सर्वप्रथम किस परिषद् को परामर्शदात्री परिषद् का दर्जा दिया?
उत्तर:
वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल को। 

लघुउत्तरात्मक प्रश्न (SA1):

प्रश्न 1. 
विश्व में खाद्यान्न में कमी के कारण बताइए। 
उत्तर:
विश्व में खाद्यान्न उत्पादन में कमी के निम्नलिखित कारण हैं। 

  1. विश्व में खाद्यान्न उत्पादन में कमी का एक प्रमुख कारण कृषि योग्य भूमि का न बढ़ना तथा वर्तमान कृषि योग्य भूमि की उपजाऊ शक्ति का निरन्तर कम होना है। 
  2. चरागाह धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। 
  3. जल प्रदूषण तीव्र गति से बढ़ रहा है। 
  4. जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है।

प्रश्न 2. 
प्राकृतिक वनों से हमें क्या लाभ हैं? 
उत्तर:

  1. प्राकृतिक वन जलवायु को सन्तुलित करने में सहायता प्रदान करते हैं। 
  2. प्राकृतिक वन जल चक्र को सन्तुलित बनाकर रखते हैं, जिससे वर्षा होती है। 

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प्रश्न 3. 
वैश्विक राजनीति में पर्यावरण के बारे में बढ़ती चिंता के कोई दो कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
पर्यावरणीय सम्बन्धी किन्हीं दो मुद्दों का उल्लेख कीजिए जो वैश्विक राजनीति की चिन्ता का विषय बन चुके हैं।
उत्तर:
वैश्विक राजनीति में पर्यावरण के बारे में बढ़ती चिंता के दो कारण निम्नलिखित हैं

  1. वर्तमान विश्व की उपजाऊ भूमि के एक बड़े भाग की उर्वरता कम हो रही है, जिससे खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ रही है।
  2. पृथ्वी के अपने वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी हो रही है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र व मनुष्य के स्वास्थ्य पर एक बड़ा खतरा मँडरा रहा है।

प्रश्न 4. 
ओजोन परत में छेद होने से पारिस्थितिकी तन्त्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 
उत्तर:
ओजोन परत में छेद होने से पारिस्थितिकी तन्त्र पर निम्नलिखित प्रभाव पडेंगे

  1. पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँचेंगी जिससे खतरनाक.तथा जानलेवा बीमारियाँ उत्पन्न होंगी। साथ ही वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) की दर बढ़ेगी।
  2. पराबैंगनी किरणों के पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करने से पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ेगा।

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प्रश्न 5. 
पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा में हो रही लगातार कमी से मनुष्य के लिए किस प्रकार खतरा उत्पन्न हो रहा है?
उत्तर:
पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा में निरन्तर कमी होती जा रही है। इसे ओजोन परत में छेद होना भी कहते हैं। इससे पारिस्थितिकी तन्त्र के साथ-साथ मानव के स्वास्थ्य पर एक बहुत बड़ा खतरा मँडरा रहा है। विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों की मात्रा में लगातार वृद्धि होती जा रही है।

प्रश्न 6. 
समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में किस प्रकार गिरावट आ रही है?
उत्तर:
समुद्र तटीय क्षेत्रों में मनुष्यों की सघन बसावट होने से सम्पूर्ण विश्व का समुद्र तटीय क्षेत्र प्रदूषित हो रहा है। समुद्र का तटवर्ती जल जमीनी क्रियाकलाओं से प्रदूषित हो रहा है। यदि मानव की इस प्रकृति पर अंकुश न लगा तो समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आयेगी।

प्रश्न 7. 
अरल सागर के आस-पास के हजारों लोगों को अपना घर क्यों छोड़ना पड़ा?
उत्तर:
अरल सागर के आस-पास वाले हजारों लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा क्योंकि पानी के विषाक्त होने से मत्स्य उद्योग नष्ट हो गया। जहाजरानी उद्योग एवं इससे जुड़े अनेक क्रियाकलाप समाप्त हो गये। पानी में नमक की सान्द्रता बढ़ जाने से कृषि पैदावार कम हो गयी।

प्रश्न 8. 
पृथ्वी सम्मेलन के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हुआ। इसे पृथ्वी सम्मेलन कहा जाता है। इस सम्मेलन में 170 देशों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों एवं अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में की गयी घोषणा को एजेंडा-21 के नाम से जाना जाता है। 

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प्रश्न 9. 
रियो पृथ्वी सम्मेलन के किन्हीं दो परिणामों का उल्लेख कीजिए।
अथवा 
रियो सम्मेलन के दो परिणाम बतलाइए।
उत्तर:
रियो पृथ्वी सम्मेलन के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता एवं वानिकी के सम्बन्ध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए।
  2. इस सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी कि आर्थिक विकास का तरीका ऐसा होना चाहिए कि इससे पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे। इसे 'टिकाऊ विकास' का तरीका कहा गया।

प्रश्न 10. 
सन् 1987 में प्रकाशित 'अवर कॉमन फ्यूचर रिपोर्ट में क्या चेतावनी दी गयी थी?
उत्तर:
सन् 1987 में प्रकाशित 'अवर कॉमन फ्यूचर' शीर्षक से बर्टलैण्ड रिपोर्ट छपी थी। इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी थी कि आर्थिक विकास की वर्तमान विधियाँ स्थायी नहीं रहेगी। विश्व के दक्षिणी भाग में औद्योगिक विकास की माँग बहुत प्रबल है अर्थात् औद्योगिक विकास की माँग दक्षिणी देशों में अधिक है। 

प्रश्न 11. 
साझी सम्पदा का अर्थ संक्षेप में लिखिए।
अथवा 
मानवता की संयुक्त विरासत से आपका क्या अभिप्राय है? कोई दो उदाहरण दीजिए।
अथवा 
'विश्व की साझी सम्पदा' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
'साझी सम्पदा संसाधन' से क्या अभिप्राय है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह वह संसाधन है जिस पर किसी एक का नहीं बल्कि सम्पूर्ण समुदाय का अधिकार होता है। यह संयुक्त चूल्हा, चरागाह, मैदान, कुआँ तथा नदी इत्यादि में से कुछ भी हो सकता है। इसी प्रकार विश्व के कुछ हिस्से एवं क्षेत्र किसी एक देश के सम्प्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं; अतः उनका प्रबन्धन संयुक्त रूप से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें 'वैश्विक सम्पदा' अथवा 'मानवता की संयुक्त विरासत' कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमण्डलीय, अंटार्कटिका समुद्री सतह तथा बाह्य अंतरिक्ष सम्मिलित हैं।

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प्रश्न 12. 
क्योटो प्रोटोकॉल के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सन् 1997 में जापान के क्योटो शहर में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसे क्योटो प्रोटोकॉल कहा जाता है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है। इसके अन्तर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। विकासशील देशों में ग्रीन हाउस गैसों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम होने के कारण चीन, भारत एवं
अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से अलग रखा गया है। 

प्रश्न 13. 
आपके दृष्टिकोण से क्योटो - प्रोटोकॉल से विश्व को होने वाले लाभ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-:
क्योटो - प्रोटोकॉल एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है। हमारे दृष्टिकोण से इसे विश्व को निम्नलिखित लाभ होंगे

  1. औद्योगिक देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की दर को कम करेंगे जो वैश्विक तापवृद्धि का एक बड़ा कारण है। 
  2. वैश्विक तापवृद्धि की दर में कमी होने से विश्व के तापमान में कमी आएगी जो पृथ्वी पर जीवन के लिए वरदान सिद्ध होगा।

प्रश्न 14. 
जून, 2005 में हुई जी - 8 की बैठक में भारत ने किन-किन बातों की ओर विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित किया ?
उत्तर:
जून, 2005 में हुई जी-8 की बैठक में भारत ने निम्नलिखित बातों की ओर विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित किया

  1. भारत ने ध्यान दिलाया कि विकसित देश विकासशील देशों की अपेक्षा ग्रीन हाउस गैसों का अधिक उत्सर्जन कर रहे हैं। 
  2. भारत के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने की जिम्मेदारी भी विकसित देशों की अधिक है। 

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प्रश्न 15. 
भारत में ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन मात्रा की स्थिति का संक्षिप्त विवरण दीजिए। 
उत्तर:
भारत ने ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन मात्रा विकसित देशों की अपेक्षा बहुत कम है। भारत में सन् 2000 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन प्रति व्यक्ति 0.9 टन था। एक अनुमान के अनुसार सन् 2003 तक यह मात्रा बढ़कर 1.6 टन प्रति व्यक्ति हो जायेगी। 

प्रश्न 16. 
भारत सरकार के पर्यावरण सम्बन्धी प्रयासों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा 
सरकार द्वारा प्रदूषण को रोकने तथा पर्यावरण को बचाने के लिए कोई दो उपाय सुझाइए। 
उत्तर:
भारत सरकार ने पर्यावरण सम्बन्धी निम्नलिखित प्रयास किये हैं

  1. भारत ने अपनी 'नेशनल ऑटो फ्यूल पॉलिसी' के अन्तर्गत वाहनों के लिए स्वच्छतर ईंधन अनिवार्य कर दिया है। 
  2. सन् 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित कर दिया। इसमें ऊर्जा के ज्यादा कारगर प्रयोग की शुरुआत की गयी है। 
  3. सन् 2003 के बिजली अधिनियम में नव्यकरणीय ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया। 

प्रश्न 17. 
पर्यावरण आन्दोलन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
-र्यावरण की हानि की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर किया जाने वाला आन्दोलन पर्यावरण आन्दोलन कहलाता है। आज सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरणीय आन्दोलन सबसे अधिक जीवंत, विविधतापूर्ण एवं ताकतवर सामाजिक आन्दोलन में गिना जाता है। 

प्रश्न 18. 
आप पर्यावरण आन्दोलन के स्वयंसेवक के रूप में किन कदमों को उठाना पसन्द करेंगे ?
उत्तर:
एक पर्यावरण आन्दोलन के स्वयंसेवक के रूप में हमें सामाजिक जनचेतना के साथ राजनीतिक दायरों द्वारा कार्यवाही करनी चाहिए। हमें वनों की कटाई, पृथ्वी में मौजूद खनिज लवणों व संसाधनों की रक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न 19. 
विश्व के विभिन्न भागों में खनिज उद्योग की आलोचना तथा विरोध क्यों होता है? कोई एक प्रमुख कारण दीजिए।
उत्तर:
विश्व के विभिन्न भागों में खनिज उद्योग की आलोचना तथा विरोध होता है क्योंकि खनिज उद्योग पृथ्वी के अन्दर उपस्थित संसाधनों को बाहर निकालता है, रसायनों का भरपूर उपयोग करता है, भूमि एवं जलमार्गों को प्रदूषित करता है तथा स्थानीय वनस्पतियों का विनाश करता है जिसके कारण जन-समुदायों को विस्थापित होना पड़ता है।

उदाहरण:फिलीपीन्स इसका एक अच्छा उदाहरण है, वहाँ कई समूहों तथा संगठनों ने संयुक्त रूप से आस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कम्पनी 'वेस्टर्न माइनिंग कॉरपोरेशन' के विरुद्ध अभियान चलाया था।

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प्रश्न 20. 
निर्जन वन से क्या आशय है?
उत्तर:
निर्जन वन से आशय इस प्रकार के वनों से है जिसमें मनुष्य एवं जानवर नहीं पाये जाते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध के कई देशों में निर्जन वन पाये जाते हैं। इस गोलार्द्ध के देशों में वन को निर्जन प्रान्त के रूप में देखा जाता है जहाँ पर लोग नहीं रहते हैं। इस प्रकार का दृष्टिकोण मनुष्य को प्रकृति के एक अंग के रूप में स्वीकार नहीं करता है।

प्रश्न 21. 
विश्व राजनीति के कुछ विद्वानों ने जल युद्ध शब्द का निर्माण क्यों किया है?
उत्तर:
विश्व राजनीति में जल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। विश्व के कुछ भागों में स्वच्छ जल की कमी हो रही है। साथ ही विश्व के प्रत्येक भाग में स्वच्छ जल समान मात्रा में उपलब्ध नहीं है। इस कारण सम्भावना व्यक्त की गयी है कि साझे जल संसाधन को लेकर 21वीं सदी में हिंसक संघर्ष होंगे। इसी को इंगित करते हुए विद्वानों ने 'जलयुद्ध' शब्द गढ़ा है।

प्रश्न 22. 
मूलवासियों को परिभाषित कीजिए।
अथवा 
मूलवासी किसे कहते हैं? वे किन संस्थाओं के अनुरूप आचरण करते हैं?
उत्तर:
सन् 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मूलवासियों को परिभाषित करते हुए कहा गया कि ये ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी मौजूद देश में लम्बी समयावधि से रहते चले आ रहे हैं। फिर किसी दूसरी संस्कृति अथवा जातीय मूल के लोग विश्व के अन्य दूसरे हिस्सों से उस देश में आए और इन लोगों को अपने अधीन कर लिया। किसी देश के मूलवासी अभी भी उस देश की संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से अधिक अपनी परम्परा, सांस्कृतिक रीति-रिवाज और अपने विशेष सामाजिक व आर्थिक ढर्रे पर जीवन-यापन करना पसन्द करते हैं।

प्रश्न 23. 
मूलवासियों की प्रमुख माँगें क्या हैं? 
उत्तर:
मूलवासियों की प्रमुख माँगें निम्नलिखित हैं

  1. विश्व में मूलवासियों को बराबरी का दर्जा प्राप्त हो। 
  2. मूलवासियों को अपनी स्वतन्त्र पहचान रखने वाले समुदाय के रूप में जाना जाए। 
  3. मूलवासियों के आर्थिक संसाधनों का अधिकाधिक दोहन नहीं किया जाना चाहिए।
  4. मूलवासियों को देश के विकास का लाभ मिलना चाहिए। 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA2): 

प्रश्न 1. 
वैश्विक राजनीति में पर्यावरणीय महत्त्व के किन्हीं चार मुद्दों का उल्लेख कीजिए।
अथवा 
आज के वैश्विक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले किन्हीं तीन खतरों का विश्लेषण कीजिए। 
अथवा 
वैश्विक राजनीति में किन्हीं तीन चिन्ताजनक पर्यावरणीय मुद्दों की व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:
वैश्विक राजनीति में पर्यावरणीय महत्त्व के चार मुद्दे निम्नवत् हैं
(1) विश्व में अब कृषि भूमि का विस्तार करना असम्भव है। वर्तमान में उपलब्ध भूमि के एक बड़े भाग की उर्वरता लगातार कम होती चली जा रही है। जहाँ चारागाहों के चारे समाप्त होने के कगार पर हैं वहीं मछली भण्डार भी निरन्तर कम होता जा रहा है। इसी तरह जलाशयों का जल-स्तर तेजी से घटा है और जल प्रदूषण बढ़ गया है। खाद्य उत्पादों में भी लगातार कमी होती चली जा रही है।

(2) सन् 2016 में जारी संयुक्त राष्ट्र की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों की 66.3 करोड़ जनता को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं होता तथा यहाँ की दो अरब चालीस करोड़ की आबादी साफ-सफाई की सुविधा से वंचित है। उक्त कारण से लगभग तीस लाख से अधिक बच्चे प्रतिवर्ष असमय काल के गाल में समा जाते हैं।

(3) वनों की कटाई से लोग विस्थापित हो रहे हैं। वनों की कटाई का प्रभाव जैव प्रजातियों पर भी पड़ा है और अनेक जीव-जन्तु एवं पेड़ - पौधों की प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं।

(4) पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन की मात्रा लगातार घट रही है जिसके फलस्वरूप पारिस्थितिकी तन्त्र तथा मानवीय स्वास्थ्य पर गम्भीर संकट आ गया है।

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प्रश्न 2. 
यू. एन. ई. पी. क्या है? इसके किन्हीं दो मुख्य कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यू.एन.ई.पी. संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण कार्यक्रम से सम्बद्ध (जुड़ी) एक अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसी अथवा संस्था है। इसका पूरा नाम यूनाइटेड नेशन्स एनवायरमेंट प्रोग्राम (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) है। इसके दो मुख्य कार्य निम्नवत् हैं

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम अर्थात् यूनाइटेड नेशन्स एनवायरमेंट प्रोग्राम सहित अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं पर सम्मेलन कराया और इस विषय के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया।
  2. इस संस्था का उद्देश्य पर्यावरण की समस्याओं पर अधिक कारगर तथा सुलझी हुई पहल - कदमियों की विश्व स्तर पर व्यापक रूप से शुरुआत करना था। इसके प्रयत्नों के फलस्वरूप ही पर्यावरण वैश्विक राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण मसला बन सका। 

प्रश्न 3. 
रियो सम्मेलन में चर्चा के मुख्य बिन्दुओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
अथवा 
रियो सम्मेलन के सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम की पहचान कीजिए।
अथवा 
'पृथ्वी सम्मेलन' क्या था ? यह सम्मेलन कितना लाभप्रद सिद्ध हुआ ? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हुआ। इसे पृथ्वी सम्मेलन कहा जाता है। इस सम्मेलन में 170 देशों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों एवं अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। वैश्विक राजनीति के दायरे में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों को इस सम्मेलन में एक ठोस रूप मिला। इस सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी एवं विकसित देश अर्थात् उत्तरी गोलार्द्ध तथा निर्धन और विकासशील देश अर्थात् दक्षिणी गोलार्द्ध पर्यावरण के अलग-अलग एजेंडे के समर्थक हैं। उत्तरी गोलार्द्ध के देशों की मुख्य चिन्ता

ओजोन परत में छेद एवं वैश्विक तापवृद्धि को लेकर थी। दक्षिणी देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबन्धन के आपसी रिश्तों को सुलझाने के लिए अधिक चिन्तित थे। रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता एवं वानिकी के सम्बन्ध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए। इसमें एजेंडा - 21 के रूप में विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाये गये। इस सम्मेलन में इस बात पर भी सहमति बनी कि आर्थिक वृद्धि का तरीका ऐसा होना चाहिए कि इससे पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे। इसे टिकाऊ विकास का तरीका कहा गया। 

प्रश्न 4. 
अंटार्कटिका महादेशीय इलाके के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा 
अंटार्कटिका महाद्वीप के बारे में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
अंटार्कटिका महाद्वीप 1 करोड़ 40 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। यह एक बर्फीला क्षेत्र है। विश्व के निर्जन क्षेत्र का 26 प्रतिशत भाग इसके अन्तर्गत आता है। इस महाद्वीप में स्थलीय हिम का 90 प्रतिशत भाग एवं धरती पर मौजूद स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत भाग मौजूद है। सीमित स्थलीय जीवन वाले इस महाद्वीप का समुद्री पारिस्थितिकी तन्त्र अत्यन्त उर्वर है जिसमें कुछ पादप (सूक्ष्म शैवाल, कवक और लाईकेन), समुद्री स्तनधारी जीव, मत्स्य एवं कठिन वातावरण में जीवनयापन के लिए अनुकूलित विभिन्न पक्षी सम्मिलित हैं।

इस महाद्वीप की आन्तरिक हिमानी परत ग्रीन हाउस गैस के जमाव का महत्त्वपूर्ण सूचना स्रोत है। इसके । साथ-साथ इससे लाखों वर्षों पहले के वायुमण्डलीय तापमान का पता लगाया जा सकता है। इस महाद्वीप पर किसी एक देश या संगठन का अधिकार नहीं है, यह एक साझी सम्पदा है। यद्यपि कोई भी देश या संगठन शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए यहाँ पर अनुसन्धान कर सकता है।

इस महाद्वीप को किसी भी देश के राजनीतिक एवं सैनिक हस्तक्षेप से अलग रखने के लिए कुछ नियम बनाये गये हैं जिनका पालन करना सभी देशों के लिए आवश्यक है। सन् 1959 के पश्चात् इस क्षेत्र में गतिविधियाँ वैज्ञानिक अनुसन्धान, मत्स्य आखेट एवं पर्यटन तक सीमित रही हैं, लेकिन बहुत न्यून गतिविधियों के बावजूद इस क्षेत्र के कुछ भाग अवशिष्ट पदार्थ जैसे तेल के रिसाव के दबाव में अपनी गुणवत्ता खो रहे हैं। 

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प्रश्न 5. 
पर्यावरण से सम्बन्धित उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के विचारों में क्या अन्तर है?
अथवा 
उत्तरी गोलार्द्ध का पर्यावरणीय एजेण्डा दक्षिणी गोलार्द्ध के पर्यावरणीय एजेण्डे से किस प्रकार अलग है? 
उत्तर:
इस तथ्य को हम निम्न दो बिन्दुओं द्वारा सरलता से स्पष्ट कर सकते हैं। 
(1) जहाँ उत्तरी गोलार्द्ध के देश वन क्षेत्र को बीहड़ अथवा जनहीन प्रान्त मानते हैं, वहीं दक्षिणी गोलार्द्ध के देश इसको देव स्थान, वन प्रान्त स्थान जैसे श्रद्धा उत्पन्न करने वाले नामों से पुकारते हैं। जब वनों के प्रति विकसित देशों अर्थात् उत्तरी गोलार्द्ध की धारणा ही तुच्छ कोटि की है, जबकि पर्यावरणीय एजेण्डा-21 में कहा गया है कि विश्व पर्यावरण अथवा मानवता की संयुक्त विरासत को विनाश से बचाने की उनकी अधिक जिम्मेदारी रहेगी। उन्हें अपनी धारणा के साथ-साथ कार्यप्रणाली में भी आमूलचूल बदलाव लाना होगा।

(2) दक्षिणी गोलार्द्ध का पर्यावरणीय एजेण्डा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा कम दर्शाता है जबकि उत्तरी गोलार्द्ध का एजेण्डा इन्हें अधिक दर्शाता है।

प्रश्न 6. 
क्योटो प्रोटोकॉल का क्या महत्त्व है? क्या भारत ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं?
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकॉल को पर्यावरण संरक्षण हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों के फलस्वरूप मान्यता मिली। औद्योगिक विकास से सम्पन्न देश पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए अपने उद्योगों से निकलने वाली जहरीली गैसों के अनुपात को निर्धारित सीमा तक घटाने पर सहमत हुए। ऐसे विकसित उत्तरी गोलार्द्ध के देश अपने कल-कारखानों से निकलने वाली हरित प्रभाव गैसों का अनुपात घटाने के लिए व्यक्तिगत रूप से कार्य करेंगे। इस अन्तर्राष्ट्रीय सहमति पर जापानी शहर क्योटो में सन् 1997 में

हस्ताक्षर किए गए थे। इस समझौते के दौरान यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) द्वारा निर्धारित मापदण्डों को स्वीकार कर लिया गया था। अगस्त 2002 में हमारे देश भारत ने इस न्यायाचार को हस्ताक्षरित किया। इसके अनुसार चीन सहित भारत को विकासशील देश मानते हुए हरित गैसों की मात्रा घटाने के दायित्व से मुक्त रखा गया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इन देशों के औद्योगिक विकास से अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण को उतनी हानि नहीं हुई है, जितनी कि पश्चिमी तथा अन्य औद्योगिक विकसित राष्ट्रों से हुई। 

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प्रश्न 7. 
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियन्त्रित करने हेतु भारत द्वारा किए गए किन्हीं चार प्रयासों का उल्लेख
अथवा
"भारत सरकार पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से वैश्विक प्रयासों में भाग लेती रही है।" इस कथन के समर्थन हेतु कोई चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियन्त्रित करने हेतु भारत द्वारा किए गए निम्न चार प्रयास विशेष रूप से उल्लेखनीय कीजिए।

  1. हमारे देश भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल को सन् 2002 में हस्ताक्षरित करके उसका अनुमोदन किया है।
  2. भारत ने अपनी राष्ट्रीय मोटर-कार ईंधन नीति के अन्तर्गत वाहनों के लिए स्वच्छतर ईंधन अनिवार्य कर दिया है। 
  3. सन् 2001 में पारित ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ऊर्जा के अधिक कारगर उपयोग पर विशेष जोर दिया गया है।
  4.  विद्युत अधिनियम, 2003 के अन्तर्गत प्राकृतिक गैस के आयात, अपूरणीय ऊर्जा के उपयोग तथा स्वच्छ कोयले के उपयोग पर आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाने की दिशा में कार्य करना प्रारम्भ किया है।
  5. भारत बायोडीजल से सम्बन्धित एक राष्ट्रीय मिशन चलाया जा रहा है।

उक्त उदाहरणों से भारत सरकार के पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से वैश्विक प्रयासों में भाग लेते रहने का भी पता चलता है। 

प्रश्न 8. 
पर्यावरण सम्बन्धी मसलों पर भारत के पक्ष की व्याख्या कीजिए।
अथवा 
पर्यावरण के ऐसे मसलों पर भारत के पक्ष का विश्लेषण कीजिए जिनकी चर्चा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है।
अथवा
समकालीन विश्व के समक्ष आने वाली पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में भारत की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत सदैव पर्यावरण संरक्षण का पक्षधर रहा है। भारत ने सदैव विश्व स्तर पर होने वाले समस्त पर्यावरणीय सम्मेलनों में भाग लेने पर विकासशील देशों के पर्यावरण सम्बन्धी अधिकारों के पक्ष पर अपनी आवाज उठायी है। भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल पर सन् 2002 में हस्ताक्षर किये तथा अनुमोदन किया तथा राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित कई कानूनों का निर्माण किया जिनमें नेशनल आटो फ्यूल पॉलिसी का निर्माण किया जिसके अन्तर्गत वाहनों के लिए स्वच्छतर ईंधन अनिवार्य कर दिया। सन् 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित किया।

भारत का मत है कि विकसित देश विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन एवं स्वच्छ प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने के लिए तुरन्त प्रयास करें ताकि विकासशील देश फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज की वर्तमान प्रतिबद्धताओं को पूरा कर सकें। भारत का यह भी मानना है कि दक्षेस में सम्मिलित देश पर्यावरण के प्रमुख वैश्विक मसलों पर एकसमान राय बनायें जिससे कि अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उनकी बात पर ध्यान दिया जाये। 

निबन्धात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
एजेण्डा-21 से आप क्या समझते हैं? "उत्तरदायित्व संयुक्त भूमिकाएँ अलग-अलग" का क्या अर्थ है? 
उत्तर:
एजेण्डा - 21 का अभिप्राय सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो-डी-जेनेरियो में हुआ था। इस सम्मेलन को पृथ्वी सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है। इस पृथ्वी सम्मेलन में 170 देशों के प्रतिनिधियों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन के दौरान विश्व राजनीति में पर्यावरण को एक ठोस स्वरूप मिला।

इस अवसर पर 21वीं सदी के लिए एक विशाल कार्यक्रम अर्थात् एजेण्डा-21 पारित किया गया। सभी राज्यों से निवेदन किया गया कि वे प्राकृतिक सन्तुलन को बनाए रखें, पर्यावरण के प्रदूषण को रोकें तथा पोषणीय विकास का रास्ता अपनाएँ।
एजेण्डा-21 के प्रमुख बिन्दु निम्नवत् थे।
(1) पर्यावरण एवं विकास के मध्य सम्बन्ध के मुद्दों को समझा जाए। 
(2) ऊर्जा का अधिक कुशल तरीके से प्रयोग किया जाए। 
(3) किसान भाइयों को पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी दी जाए। 
(4) प्रदूषण फैलाने वालों पर भी अर्थदण्ड लगाए जाए, तथा
(5) इस दृष्टिकोण से राष्ट्रीय योजनाएँ बनाई एवं लागू की जाएँ। 

उत्तरदायित्व संयुक्त, भूमिकाएँ अलग - अलग का अर्थ पर्यावरण एवं संरक्षण को लेकर उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के दृष्टिकोणों में पर्यान्त अन्तर है। उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मामले पर उसी रूप में विचार-विमर्श करना चाहते हैं जिस परिस्थिति में पर्यावरण वर्तमान में विद्यमान है। ये देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में प्रत्येक देश का बराबर का उत्तरदायित्व हो।

दक्षिण के विकासशील देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को अधिकांश क्षति (नुकसान) विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुंची है। यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाया है तो उन्हें इसकी क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी भी अधिक उठानी चाहिए। इसके अतिरिक्त विकासशील देश सभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और यह आवश्यक है कि उन पर वे प्रतिबन्ध न लगें जो विकसित देशों पर लगाए जाते हैं। पृथ्वी सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण हेतु भूमिकाओं से जुड़े निर्णय अथवा सुझाव

सन 1992 में सम्पन्न पृथ्वी सम्मेलन में इस तर्क को मान लिया गया और इसे संयुक्त उत्तरदायित्व लेकिन अलग - अलग भूमिका का सिद्धान्त कहा गया। इस सन्दर्भ में रियो घोषणा - पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया गया है कि "पृथ्वी के पारिस्थितिकी तन्त्र की अखण्डता तथा गुणवत्ता की बहाली, सुरक्षा तथा संरक्षण के लिए विभिन्न देश विश्व बन्धुत्व की भावना से परस्पर एक-दूसरे का सहयोग करेंगे।

पर्यावरण के विश्वव्यापी अपक्षय में विभिन्न राज्यों का योगदान अलग - अलग है। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न राज्यों के अलग - अलग उत्तरदायित्व होंगे। विकसित देशों के समाजों का वैश्विक पर्यावरण पर दबाव अधिक है तथा इन देशों के पास विपुल प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय संसाधन मौजूद हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ विकास के अन्तर्राष्ट्रीय आयाम में विकसित देश अपना विशेष उत्तरदायित्व स्वीकारते हैं।"

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प्रश्न 2. 
अंटार्कटिका महादेशीय क्षेत्र के प्रमुख लक्षण, महत्त्व एवं अंटार्कटिका पर स्वामित्व सम्बन्धी विवाद को विस्तार से बताइए।
अथवा 
अंटार्कटिका महाद्वीप की विशेषताएँ एवं पर्यावरण सुरक्षा का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अंटार्कटिका विश्व के सात प्रमुख महाद्वीपों में से एक है। अंटार्कटिका महाद्वीप के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ)
अंटार्कटिका महाद्वीप की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं।

  1. अंटार्कटिका महादेशीय क्षेत्र का विस्तार 1 करोड़ 40 लाख वर्ग करोड़ किमी. में है। 
  2. विश्व के निर्जन क्षेत्र का 26 प्रतिशत भाग इस महाद्वीप के अन्तर्गत आता है। 
  3. स्थलीय हिम का 90 प्रतिशत भाग एवं धरती के स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत भाग इस महाद्वीप में मौजूद है। 
  4. इस महादेश का 3 करोड़ 60 लाख वर्ग किमी. तक अतिरिक्त विस्तार समुद्र में है। 
  5. यह विश्व का सबसे सुदूर ठण्डा एवं झंझावाती प्रदेश है।
  6. सीमित स्थलीय जीवन वाले इस महादेश का समुद्री पारिस्थितिकी तन्त्र अत्यन्त उर्वर है, जिसमें कुछ पादप; जैसे-सूक्ष्म शैवाल, कवक और लाइकेन तथा समुद्री स्तनधारी जीव, मत्स्य एवं कठिन वातावरण में जीवनयापन के लिए अनुकूलित विभिन्न पक्षी सम्मिलित हैं।
  7. इस महाद्वीप में समुद्री आहार श्रृंखला की धुरी - क्रिल मछली भी मिलती है। इस मछली पर दूसरे जानवरों का आहार निर्भर है।

अंटार्कटिका महाद्वीप का महत्त्व-अंटार्कटिका महाद्वीप का महत्त्व निम्नलिखित है

  1. अंटार्कटिका महादीप विश्व की जलवायु को सन्तुलित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
  2. इस महाद्वीपीय प्रदेश की आन्तरिक हिमानी परत ग्रीन हाउस गैस के जमाव का महत्त्वपूर्ण सूचना स्रोत है।
  3. इस महाद्वीपीय प्रदेश में जमी बर्फ से लाखों वर्ष पूर्व के वायुमण्डलीय तापमान का पता लगाया जा सकता है।
  4. इस महाद्वीपीय क्षेत्र में समुद्री पारिस्थितिकी तन्त्र अत्यन्त उर्वर पाया जाता है।
  5.  यह क्षेत्र वैज्ञानिक अनुसन्धान, मत्स्य आखेट एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। ।

अंटार्कटिका क्षेत्र में पर्यावरण सुरक्षा: अंटार्कटिका क्षेत्र में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तन्त्र की सुरक्षा के नियम बनाये गये हैं जिनको अपनाया गया है। ये नियम कल्पनाशील एवं दूरगामी प्रभाव वाले हैं। अंटार्कटिका एवं पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण सुरक्षा के विशेष नियमों के अन्तर्गत आते हैं। सन् 1959 के पश्चात् इस क्षेत्र में गतिविधियाँ वैज्ञानिक अनुसन्धान, मत्स्य आखेट एवं पर्यटन तक ही सीमित रही हैं, लेकिन न्यून गतिविधियों के बावजूद इस क्षेत्र के कुछ भागों में अवशिष्ट पदार्थों जैसे तेल के रिसाव के दबाव में अपनी गुणवत्ता खो रहे हैं।

अंटार्कटिका पर स्वामित्व: विश्व के सबसे सुदूर ठण्डे एवं झंझावाती महादेश अंटार्कटिका पर किसका स्वामित्व है ? इसके बारे में दो दावे किये जाते हैं। कुछ देश, जैसे-ब्रिटेन, अर्जेन्टीना, चिली, नार्वे, फ्रांस, आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड ने अंटार्कटिका क्षेत्र पर अपने अधिकार का दावा किया है, जबकि अन्य अधिकांश देशों का मत है कि अंटार्कटिका प्रदेश विश्व की साझी सम्पदा है और यह किसी भी राष्ट्र के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है। 

प्रश्न 3. 
पावन वन प्रान्तर क्या है? पर्यावरणीय दृष्टि से इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
अथवा देवस्थान क्या है? भारत में पर्यावरण संरक्षण में इसके महत्त्व का विस्तार से वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
पावन वन: प्रान्तर (देवस्थान) का अर्थ अनेक पुराने समाजों में धार्मिक कारणों से प्रकृति की रक्षा करने का प्रचलन है। भारत में विद्यमान पावन वन प्रान्तर इस चलन के सुन्दर उदाहरण हैं। पावन वन प्रान्तर प्रथा में वनों के कुछ हिस्सों को काटा नहीं जाता। इन स्थानों पर देवता अथवा किसी पुण्यात्मा का वास माना जाता है। इन्हें ही पावन वन प्रान्तर या देवस्थान कहा जाता है। पावन वन प्रान्तर (देवस्थान) का देशव्यापी विस्तार - भारत में पावन वन प्रान्तर का देशव्यापी विस्तार पाया जाता है।

इनके देशव्यापी विस्तार का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि सम्पूर्ण देश की भाषाओं में इनके लिए अलग-अलग शब्दों का प्रयोग होता है। इन देवस्थानों को राजस्थान में वानी, केकड़ी व ओरान; मेघालय में लिंगदोह; केरल में काव; झारखण्ड में जहेरा थान व सरना; उत्तराखण्ड में थान या देवभूमि तथा महाराष्ट्र में देव रहतिस आदि नामों से जाना जाता है।

पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से पावन वन: प्रान्तर का महत्त्व: पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से पावन वन-प्रान्तर के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है।
(i) समुदाय आधारित संसाधन प्रबन्धन में महत्त्व-पर्यावरणीय संरक्षण से सम्बन्धित भारतीय साहित्य में पावन वन-प्रान्तर के महत्त्व को अब स्वीकार किया जा रहा है तथा इसे समुदाय आधारित संसाधन प्रबन्धन के रूप में देखा जा रहा है।

(ii) पारिस्थितिकी तन्त्र के सन्तुलन में महत्त्व: पावन वन-प्रान्तर को हम एक ऐसी व्यवस्था के रूप में देख सकते हैं कि जिसके अन्तर्गत प्राचीन समाज प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि पारिस्थितिकी तन्त्र का सन्तुलन बना रहे। कुछ शोधकर्ताओं का विश्वास है कि पावन वन - प्रान्तर (देवस्थान) की मान्यता से जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी संरक्षण में ही नहीं सांस्कृतिक वैविध्य को बनाये रखने में भी सहायता मिल सकती है।

(iii) साझी सम्पदा के संरक्षण की व्यवस्था के समान: पावन वन - प्रान्तर वन संरक्षण के विभिन्न तौर-तरीकों से सम्पन्न है और इस व्यवस्था की विशेषताएँ साझी सम्पदा के संरक्षण की व्यवस्था से मिलती-जुलती हैं।

(iv) क्षेत्र की आध्यात्मिक या सांस्कृतिक विशेषताएँ: देवस्थान के महत्त्व का परम्परागत आधार ऐसे क्षेत्र की आध्यात्मिक अथवा सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। हिन्दू समवेत रूप से प्राकृतिक वस्तुओं की पूजा करते हैं जिसमें पेड़ व वन - प्रान्तर भी सम्मिलित हैं। अनेक मन्दिरों का निर्माण, देवस्थान में हुआ है। संसाधनों की विरलता नहीं बल्कि प्रकृति के प्रति अगाध श्रद्धा ही वह आधार थी जिसने इतने युगों से वनों को बचाये रखने की प्रतिबद्धता बनाये रखी।

पावन वन - प्रान्तर की वर्तमान स्थिति-पिछले कुछ वर्षों से मनुष्यों की बसावट के विस्तार ने धीरे - धीरे ऐसे पावन वन-प्रान्तर (देवस्थान) पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया है। नवीन राष्ट्रीय वन नीतियों के लाडू होने के साथ कई स्थानों पर इन परम्परागत वनों की पहचान मन्द पड़ने लगी है।

देवस्थान के प्रबन्धन में एक कटिन समस्या यह आ रही है कि देवस्थान का कानूनी स्वामित्व तो राज्यों के पास है तथा इसका व्यावहारिक नियन्त्रण समुदायों के पास है। राज्यों व समुदायों के नातिगत मानक अलग - अलग हैं एवं देवस्थान के उपयोग के उद्देश्य में भी इनके बीच कोई तालमेल नहीं है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पावन वन-प्रान्तर (देवस्थान) का हमारे देश में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

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प्रश्न 4. 
पर्यावरण सम्बन्धी मामलों पर भारतीय पक्ष की व्याख्या कीजिए।
अथवा 
पर्यावरणीय मुद्दों पर भारतीय पक्ष की व्याख्या कीजिए। इस संदर्भ में भारत द्वारा कौन-कौन से कदम उठाए जाने के सुझाव दिए गए हैं?
अथवा 
वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों पर भारत के पक्ष का वर्णन कीजिए।
अथवा 
पर्यावरण की रक्षा के लिए ऐसे कोई चार कदम सुझाइए जिन्हें भारत सरकार द्वारा तुरन्त उठाया जाना चाहिए।
उत्तर:
पर्यावरणीय मुद्दों पर भारतीय पक्ष पर्यावरण सम्बन्धी मामलों पर भारतीय पक्ष की व्याख्या निम्न बिन्दुओं द्वारा की जा सकती है।
(1) भारतीय पर्यावरण संरक्षण का उत्तरदायित्व संयुक्त है, लेकिन भूमिकाएँ पृथक् - पृथक् होनी चाहिए- पर्यावरणीय संरक्षण को लेकर उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के दृष्टिकोण में पर्याप्त मात्रा में अन्तर है। उत्तर के विकसित देश पर्यावरणीय मुद्दे पर उसी रूप में परिचर्चा करना चाहते हैं। जिस दशा में पर्यावरण वर्तमान में विद्यमान है।

ये देश चाहते हैं कि पर्यावरणीय संरक्षण में प्रत्येक देश का उत्तरदायित्व एक समान हो। दक्षिण के देशों का अभिमत है कि विश्व में पारिस्थितिकी को क्षति अधिकांशतया विकसित देशों के औद्योगिक विकास से हुई है। यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को अधिक क्षति पहुँचायी है तो उन्हें इसकी भरपाई भी अधिक करनी चाहिए।

(2) उत्तरदायित्व को लागू करने हेतु भारतीय सुझाव: इस सन्दर्भ में निम्न दो सुझाव दिए गए
(i) अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण, प्रयोग तथा व्याख्या में विकासशील देशों की विशिष्ट आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखा जाना चाहिए।

(ii) प्रत्येक राष्ट्र की कुल राष्ट्रीय आय का कुछ प्रतिशत भाग अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधीशों द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए तथा वह धनराशि सिर्फ पर्यावरण संरक्षण पर विश्व बैंक अथवा संयुक्त राष्ट्र संघ की किसी संस्था के माध्यम से मानवीय सुरक्षा एवं संयुक्त सम्पदा संरक्षण को दृष्टिगत रखते हुए खर्च की जानी चाहिए।

(3) वन संरक्षण के प्रति भारतीय दृष्टिकोण-दक्षिणी देशों के वन आन्दोलन उत्तरी देशों के वन आन्दोलन से विशेष अर्थों में अलग है। दक्षिणी देशों में वन निर्जन नहीं हैं, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में वन जनविहीन हैं। इसी कारण उत्तरी देशों में वन भूमि को निर्जन भूमि की श्रेणी में रखा गया है। यह दृष्टिगत व्यक्ति को प्रकृति का हिस्सा नहीं मानता। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि यह दृष्टिकोण पर्यावरण को व्यक्ति से दूर की वस्तु मानता है।

(4) पृथ्वी को बचाने हेतु भारतीय सुझाव: इस सन्दर्भ में निम्न बिन्दु उल्लेखनीय हैं।
(i) पृथ्वी को बचाने हेतु विभिन्न देश सुलह एवं सहकार की नीति अपनाएँ, क्योंकि पृथ्वी का सम्बन्ध किसी एक देश विशेष से न होकर सम्पूर्ण विश्व एवं मानव जाति से है।

(ii) अभी कुछ समयावधि पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ में यह परिचर्चा हुई कि तीव्रता से औद्योगिक विकास करते हुए ब्राजील, चीन तथा भारत इत्यादि देश नियमाचार की बाध्यताओं का परिपालन करते हुए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को न्यूनतम करें। भारत इस बात के विरुद्ध है और उसकी मान्यता है कि यह तथ्य इस नियमाचार की मूल भावना के विपरीत है।

(iii) भारत पर इस प्रकार का प्रतिबनध थोपना भी अनुचित ही है। सन् 2030 तक भारत में कार्बन का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन बढ़ने के बावजूद विश्व के (सन् 2000 के) औसत अर्थात् 3.8 टन प्रति व्यक्ति के आधे से भी कम होगा। जहाँ सन् 2000 तक भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 0.9 टन था वहीं एक अनुमान के अनुसार सन् 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर 1.6 टन प्रति व्यक्ति हो जाएगा।

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प्रश्न 6. 
“वर्तमान विश्व में मौजूदा पर्यावरणीय आन्दोलनों की एक मुख्य विशेषता उनकी विविधता है।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा 
पर्यावरणीय चिन्ता के मुद्दे किस प्रकार वैश्विक राजनीति में महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं?
अथवा 
पर्यावरण आन्दोलन से क्या आशय है? विश्व में पर्यावरण आन्दोलन की विविधता की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
पर्यावरण आन्दोलन से आशय पर्यावरण की हानि की चुनौतियों से निबटने के लिए विश्व के विभिन्न भागों में सक्रिय पर्यावरण के प्रति सचेत कार्यकर्ताओं ने कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं। इन कार्यकर्ताओं में कुछ तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर और कुछ स्थानीय स्तर पर सक्रिय हैं। इन कार्यकर्ताओं ने लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत किया। पर्यावरण के प्रति लोगों में एक नयी सोच विकसित हुई, जिसने एक आन्दोलन का रूप ले लिया। इसे ही पर्यावरण आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

विश्व में पर्यावरण आन्दोलन की विविधता-वर्तमान विश्व में पर्यावरण आन्दोलन की सबसे अधिक शक्तिशाली, जीवन्त, विविधतापूर्ण सामाजिक आन्दोलनों में गणना की जाती है। इन पर्यावरणीय आन्दोलनों की विविधता की विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

(i) वन आन्दोलन: मैक्सिको, चिले (चिली), ब्राजील, मलेशिया, इण्डोनेशिया, भारत एवं अफ्रीका महाद्वीप के देशों में वन आन्दोलनों पर बहुत अधिक दबाव है। यहाँ पिछले तीन दशकों से पर्यावरण सम्बन्धी सक्रियता का दौर जारी है। इसके बावजूद तीसरी दुनिया के विभिन्न देशों में वनों की कटाई खतरनाक ढंग से जारी है। वनों का तीव्र गति से विनाश किया जा रहा है।

(ii) बाँध विरोधी आन्दोलन: विश्व में हो रहे कुछ पर्यावरणीय आन्दोलन बड़े बाँधों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं। वर्तमान विश्व में बाँध विरोधी आन्दोलनों को नदियों को बचाने के आन्दोलनों के रूप में देखने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है, क्योंकि ऐसे आन्दोलनों में नदियों और नदी घाटियों के ज्यादा टिकाऊ एवं न्यायसंगत प्रबन्धन की बात उठायी जाती है।।

सन् 1980 के दशक के प्रारम्भ में एवं मध्यवर्ती वर्षों में विश्व का प्रथम बाँध विरोधी आन्दोलन आस्ट्रेलिया में संचालित हुआ। यह आन्दोलन आस्ट्रेलिया की फ्रैंकलिन नदी एवं इसके परिवर्ती वनों को बचाने के लिए किया गया था। वर्तमान में भारत में बाँध विरोधी एवं नदी बचाओ आन्दोलन चल रहे हैं। इन आन्दोलनों में नर्मदा आन्दोलन सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

(iii) खनिज संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन के विरोध में आन्दोलन-वर्तमान विश्व में खनिज उद्योग सबसे अधिक शक्तिशाली उद्योगों में से एक है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में उदारीकरण के कारण विश्व के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए खुल चुकी हैं अर्थात् बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ मुख्य रूप से विकासशील देशे में व्यापार कर रही हैं। खनिज उद्योग के अन्तर्गत पृथ्वी के आन्तरिक भाग से खनिजों को बाहर निकालकर उन्हें परिष्कृत किया जाता है।

इस उद्योग में रसायनों का पर्याप्त मात्रा में उपयोग किया जाता है। इससे भूमि, जल और वायु प्रदूषित होते हैं और स्थानीय वनस्पतियों का विनाश होता है। कई बार स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि लोगों को वहाँ से विस्थापित होना पड़ता है। इस कारण विश्व के विभिन्न भागों में खनिज उद्योग की आलोचना एवं विरोध हुआ है। इस विरोध ने कई स्थानों पर जन आन्दोलनों का रूप ले लिया है। फिलीपीन्स में एक आस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कम्पनी 'वेस्टर्न माइनिंग कारपोरेशन' के विरुद्ध अभियान चलाया। इसी तरह का एक अभियान बांग्लादेश में प्रस्तावित कोयला खनन परियोजना के विरोध में चलाया गया। 

प्रश्न 7. 
प्राकृतिक संसाधनों की वैश्विक भू - राजनीति की विवेचना कीजिए।
अथवा 
संसाधनों से जुड़ी भू - राजनीति क्या है? विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय शक्तियों के विश्वव्यापी प्रसार का एक मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति था। प्राचीन समय से ही संसाधनों को लेकर राज्यों के मध्य संघर्ष होता रहा है। संसाधनों की वैश्विक भू-राजनीति का विवेचन अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है।
(i) व्यापारिक सम्बन्ध, युद्ध एवं शक्ति के सन्दर्भ में संसाधनों की भू - राजनीति - प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ी भू - राजनीति को पश्चिमी देशों ने अधिकांशतः व्यापारिक सम्बन्ध, युद्ध एवं शक्ति के सम्बन्ध में सोचा। पश्चिमी देशों की इस सोच के मूल में विदेश में संसाधनों की उपलब्धता एवं समुद्री नौ-वहन की क्षमता थी।

 समुद्री नौ - वहन स्वयं इमारती लकड़ियों पर आधारित था। इसलिए पानी के जहाज की शहतीरों के लिए इमारती लकड़ियों की आपूर्ति 17वीं शताब्दी के बाद के समय में प्रमुख यूरोपीय देशोंकप्राथमिकताओं में सम्मिलित रहीं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सामाजिक संसाधनों विशेषकर खनिज तेल की बाधा रहित आपूर्ति का महत्व बहुत अच्छी तरह उजागर हो गया।


शीतयुद्ध की सम्पूर्ण अवधि के दौरान उत्तरी गोलार्द्ध के विकसित देशों ने इन प्राकृतिक संसाधनों की सतत् आपूर्ति के लिए कई तरह के कदम उठाये। इनमें संसाधन दोहन के क्षेत्रों एवं समुद्री परिवहन मार्गों के आस-पास सेना की तैनाती, महत्त्वपूर्ण संसाधनों का भण्डारण, संसाधन के उत्पादक देशों में अपनी पसन्द की सरकारों की स्थापना, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं अपने हितसाधक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों को समर्थन दिया जाना प्रमुख है।

(ii) खनिज तेल पर आधारित भू - राजनीति: सोवियत संघ के विघटन एवं शीतयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् वैश्विक भू-राजनीति में खनिज तेल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन बन गया है। 20वीं शताब्दी के अधिकांश समय में विश्व की अर्थव्यवस्था खनिज तेल पर निर्भर रही। परिवहन के साधनों में प्रयुक्त होने के कारण खनिज तेल एक अनिवार्य आवश्यकता बन गया। खनिज तेल के साथ अथाह सम्पदा जुड़ी हुई है और इस कारण इस पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए विभिन्न राष्ट्रों के मध्य राजनीतिक संघर्ष होते रहते हैं। खनिज तेल का सर्वाधिक उत्पादन पश्चिमी एशिया के देशों में होता है। इन क्षेत्रों पर संयुक्त अमेरिका ने विजय स्थापित करने की कोशिशें की हैं और वह सफल भी हुआ है।

(iii) स्वच्छ जल पर आधारित भू: राजनीति - जल जीव मात्र के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। विश्व राजनीति के लिए जल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन बन गया है। विश्व के कुछ भागों में स्वच्छ जल की कमी महसूस की जा रही है। इसके अतिरिक्त विश्व के प्रत्येक भाग में स्वच्छ जल समान मात्रा में उपलब्ध नहीं है। इस कारण यह सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि साझे जल संसाधन को लेकर उपजे मतभेद 21वीं सदी में झगड़े की जड़ सिद्ध होंगे।

इसी को इंगित करने के लिए विश्व राजनीति के कुछ विद्वानों ने 'जल युद्ध' शब्द का प्रयोग किया है। कुछ देशों के मध्य स्वच्छ जल संसाधनों पर कब्जे या उनकी सुरक्षा के लिए हिंसक झड़पें भी हुई हैं; जैसे-सन् 1950 और सन् 1960 के दशक के इजराइल, सीरिया एवं जोर्डन के मध्य हुआ संघर्ष । 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधना

प्रश्न 8. 
मूलवासी क्या हैं? मूलवासियों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा 
मूलवासियों का अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन एवं इनकी प्राप्ति हेतु वैश्विक प्रयासों का वर्णन कीजिए।
अथवा 
'मूलवासियों' को परिभाषित कीजिए तथा उनके अस्तित्व के लिए किन्हीं दो खतरों को उजागर कीजिए।
उत्तर:
मूलवासी से आशय: संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी मौजूदा देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे हैं। फिर किसी अन्य संस्कृति या जातीय मूल के लोग विश्व के दूसरे हिस्से से उस देश में आये और इन लोगों को अपने अधीन बना लिया। ये मूलवासी आज भी सम्बन्धित देश की संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से अधिक अपनी परम्परा, सांस्कृतिक रीति-रिवाज एवं अपने खास सामाजिक-आर्थिक तरीके पर जीवनयापन करना पसन्द करते हैं।

मूलवासियों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष एवं आन्दोलन: भारत सहित वर्तमान विश्व में मूलवासियों की जनसंख्या लगभग 30 करोड़ है। दूसरे सामाजिक आन्दोलनों की तरह मूलवासी भी अपने संघर्ष, एजेंडा और अधिकारों की आवाज उठाते रहे हैं, जिनका विवरण निम्नानुसार है

(i) विश्व समुदाय में बराबरी का दर्जा पाने के लिए आन्दोलन: मूलवासियों को एक लम्बे समय से सभ्य समाज में दोयम दर्जे का माना जाता था। उन्हें बराबरी का दर्जा प्राप्त नहीं था। वर्तमान विश्व में शेष जन समुदाय के अपने प्रति निम्न स्तर के व्यवहार को देखकर उन्होंने विश्व समुदाय में बराबरी का दर्जा पाने के लिए अपनी आवाज बुलन्द की है।

(ii) स्वतन्त्र पहचान की माँग: मूलवासियों के निवास स्थान मध्य एवं दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया एवं भारत में हैं, जहाँ इन्हें आदिवासी या जनजाति कहा जाता है। आस्ट्रेलिया या न्यूजीलैण्ड सहित ओसियाना क्षेत्र के बहुत से द्वीपीय देशों में हजारों वर्षों से पॉलिनेशिया, मैलानेशिया एवं माइक्रोनेशिया वंश के मूलवासी रहते चले आ रहे हैं। इन मूलवासियों की अपने देश की सरकारों से माँग है कि उन्हें मूलवासी कौम के रूप में अपनी स्वतन्त्र पहचान रखने वाला समुदाय माना जाये।

(iii) मूलवास स्थान पर अपने अधिकार की माँग: मूलवासी अपने मूलवास स्थान पर अपना अधिकार चाहते हैं। अपने मूलवास स्थान पर अपने अधिकार की माँग हेतु सम्पूर्ण विश्व के मूलवासी यह कहते हैं कि हम यहाँ अनन्त काल से निवास करते चले आ रहे हैं।

(iv) राजनीतिक स्वतन्त्रता की माँग:  भौगोलिक रूप से चाहे मूलवासी अलग - अलग स्थानों पर निवास कर रहे हैं, लेकिन भूमि और उस पर आधारित जीवन प्रणालियों के बारे में इनकी विश्व दृष्टि एकसमान है। भूमि की हानि का इनके लिए अर्थ है-आर्थिक संसाधनों के एक आधार की हानि एवं यह मूलवासियों के जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा है। उस राजनीतिक स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है जो जीवनयापन के साधन ही उपलब्ध न कराये। अत: मूलवासी अपने निवास स्थान पर उपलब्ध संसाधनों पर अपना अधिकार मानते हुए जीवनयापन के साधन उपलब्ध कराने की माँग कर रहे हैं।

मूलवासियों के अधिकारों के लिए वैश्विक प्रयास: मूलवासियों के अधिकारों के लिए वैश्विक स्तर पर निम्नलिखित प्रयास हुए हैं। 
(i) सन् 1970 के दशक में विश्व के विभिन्न भागों में मूलवासियों के नेताओं के मध्य सम्पर्क बढ़ा है। इससे इनके साझे अनुभवों एवं सरोकारों को एक आधार मिला है। 

(ii) सन् 1995 में मूलवासियों से सम्बन्धित 'वर्ल्ड काउन्सिल ऑफ इंडिजिनस पीपल' का गठन हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सर्वप्रथम इस परिषद् को परामर्शदात्री परिषद् का दर्जा प्रदान किया। इसके अतिरिक्त आदिवासियों के सरोकारों से सम्बद्ध 10 अन्य स्वयंसेवी संगठनों को भी यह दर्जा प्रदान किया गया है।

मानचित्र पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न 1. 
विश्व के दिए गए राजनीतिक रेखा-मानचित्र में पाँचों देशों को A, B, C, D तथा E द्वारा दर्शाया गया है। नीचे दी गई जानकारी की सहायता से उन्हें पहचानिए तथा उनके सही नाम, प्रयोग की गई जानकारी की क्रम संख्या तथा सम्बन्धित अक्षर सहित, निम्नलिखित तालिका के अनुसार 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन 1

प्रयोग की गई जानकारी की क्रम संख्या

संबंधित अक्षर

देश का नाम

1.

2.

3.

4.

5.

 

 

1. वह देश जहाँ जून 1992 में पृथ्वी सम्मेलन हुआ था।
2. ग्रीन हाउस गैसों का प्रमुख उत्सर्जनकर्ता देश।
3. बाँध-विरोधी, नदी बचाओ आन्दोलनों के लिए जाना जाने वाला देश।
4. क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से मुक्त रखा गया देश।
5. विश्व में खनिज तेल का दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा उत्पादक देश।

उत्तर:

प्रयोग की गई जानकारी की क्रम संख्या

संबंधित अक्षर

देश का नाम

1. वह देश जहाँ 1992 में पृथ्वी सम्मेलन हुआ

2. ग्रीन हाउस गैसों का प्रमुख उत्सर्जनकर्ता देश

3. बाँध विरोधी, नदी बचाओ आंदोलन के लिए जाना जाने वाला देश

4. क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से मुक्त रखा गया देश

5. विश्व में खनिज तेल का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा उत्पादक देश

   D

    C

    B

    E

    A

ब्राजील

अमेरिका

आस्ट्रेलिया

भारत

इराक

 

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये इस अध्याय से सम्बन्धित प्रश्न:

प्रश्न 1. 
क्योटो प्रोटोकॉल कब लागू हुआ था?
(अ) 1997
(ब) 2000 
(स) 2005
(द) 2006. 
उत्तर:
(द) 2006. 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधना

प्रश्न 2. 
किस अन्तर्राष्ट्रीय समझौते ने राज्यों को पहली बार' ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की कटौती पर विधिक रूप से बाह्य लक्ष्य दिए?
(अ) कोपेनहेगन, 2009
(ब) क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 
(स) डरबन कॉन्फ्रेन्स, 2011
(द) रियो डी जेनेरियो, 1992. 
उत्तर:
(ब) क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 

प्रश्न 3. 
किस/किन देश/देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल का अनुपालन करते हुए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने को विधिक रूप से अनिवार्य किए जाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है?
(अ) भारत
(ब) चीन 
(स) भारत और चीन दोनों
(द) स्वीडन। 
उत्तर:
(अ) भारत

प्रश्न 4. 
निम्नलिखित में से किसके द्वारा जलवायु उपशमन कार्यसूची के सम्बन्ध में 'साझा परन्तु विभेदकारी' उत्तरदायित्व का सिद्धान्त उभरकर आया?
(अ) क्योटो प्रोटोकॉल 
(ब) रियो पृथ्वी शिखर वार्ता 
(स) रियो + 20
(द) पेरिस जलवायु सम्मेलन। 
उत्तर:
(द) पेरिस जलवायु सम्मेलन। 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधना


प्रश्न 5. 
निम्नलिखित में से कौन-सी 'एजेन्डा - 21' की सही परिभाषा है।
(अ) यह मानवाधिकारों की रक्षा हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्ययोजना है। 
(ब) यह नाभिकीय निरस्त्रीकरण पर 21 अध्यायों की पुस्तक है।
(स) यह 21वीं सदी में विश्व पर्यावरण संरक्षण हेतु एक कार्य योजना है।
(द) यह दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन की आगामी बैठक में अध्यक्ष के चुनाव हेतु एजेन्डा है। 
उत्तर:
(स) यह 21वीं सदी में विश्व पर्यावरण संरक्षण हेतु एक कार्य योजना है।

प्रश्न 6. 
निम्नलिखित में से कौन-सा गैस समूह 'ग्रीन हाउस प्रभाव' में योगदान देता है? 
(अ) अमोनिया तथा ओजोन
(ब) कार्बन मोनोक्साइड तथा सल्फर डाइआक्साइड 
(स) कार्बन टेट्राफ्लोराइड तथा नाइट्रस ऑक्साइड 
(द) कार्बन डाइ ऑक्साइड तथा मीथेन। 
उत्तर:
(अ) अमोनिया तथा ओजोन

प्रश्न 7. 
जलवायु परिवर्तन का कारण है।
(अ) ग्रीन हाउस गैसें
(ब) ओजोन परत का क्षरण 
(स) प्रदूषण
(द) ये सभी। 
उत्तर:
(द) ये सभी। 

प्रश्न 8. 
अतिहानिकारक अल्ट्रावॉयलेट किरणें कौन - सी हैं?
(अ) UVA
(ब)) UVC 
(स) UVB
(द) UVD. 
उत्तर:
(ब)) UVC 

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प्रश्न 9. 
विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है?
(अ) 1 दिसम्बर को
(ब) 5 जून को 
(स) 14 नवम्बर को
(द) 15 अगस्त को। 
उत्तर:
(ब) 5 जून को 

प्रश्न 10. 
लाइकेन सबसे अच्छे सूचक हैं।
(अ) वायु प्रदूषण के
(ब) जल प्रदूषण के 
(स) मृदा प्रदूषण के
(द) ध्वनि प्रदूषण के। 
उत्तर:
(द) ध्वनि प्रदूषण के। 

प्रश्न 11. 
निम्नांकित में से कौन एक सर्वाधिक भंगुर पारिस्थितिक तन्त्र है जो वैश्विक तापन द्वारा सबसे पहले प्रभावित होगा?
(अ) आर्कटिक एवं ग्रीनलैण्ड हिम चादर
(ब) अमेजन वर्षा वन 
(स) टैगा
(द) भारतीय मानसून 
उत्तर:
(अ) आर्कटिक एवं ग्रीनलैण्ड हिम चादर

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधना

प्रश्न 12. 
भूमिगत जल को दूषित करने वाले अजैविक प्रदूषक हैं।
(अ) बैक्टीरिया
(ब) शैवाल 
(स) आर्सेनिक
(द) विषाणु। 
उत्तर:
(स) आर्सेनिक


प्रश्न 13. 
निम्न में से कौन प्रवाल-विरंजन का सबसे बड़ा प्रभावी कारण है।
(अ) सागरीय प्रदूषण
(ब) सागरों की लवणता में वृद्धि 
(स) सागरीय जल के सामान्य तापमान में वृद्धि
(द) रोगों एवं महामारियों का फैलना। 
उत्तर:
(स) सागरीय जल के सामान्य तापमान में वृद्धि

प्रश्न 14. 
यदि पृथ्वी पर पायी जाने वाली वनस्पतियाँ समाप्त हो जाएँ तो किस गैस की कमी होगी? 
(अ) कार्बन डाइ ऑक्साइड
(ब) नाइट्रोजन 
(स) सल्फर डाइ ऑक्साइड
(द) ऑक्सीजन। 
उत्तर:
(द) ऑक्सीजन। 

प्रश्न 15. 
मांट्रियल प्रोटोकॉल निम्न में से किसके रक्षण से सम्बन्धित है?
(अ) हरित गृह गैसें
(ब) अम्लीय वर्षा 
(स) ओजोन परत
(द) संकटग्रस्त प्रजाति। 
उत्तर:
(स) ओजोन परत

Prasanna
Last Updated on Jan. 16, 2024, 9:21 a.m.
Published Jan. 15, 2024