RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

Rajasthan Board RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

वस्तुनिष्ठ प्रश्न: 
 
प्रश्न 1. 
सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है।
(अ) खतरे से आजादी
(ब) गठबन्धन 
(स) निःशस्त्रीकरण
(द) आत्मसमर्पण। 
उत्तर:
(अ) खतरे से आजादी

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा 

प्रश्न 2. 
अमेरिकी वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर आतंकी हमला हुआ था।
(अ) 11 सितम्बर, 2001 को
(ब) 11 सितम्बर, 2002 को 
(स) 11 सितम्बर, 2003 को
(द) 9 नवम्बर, 2001 को। 
उत्तर:
(अ) 11 सितम्बर, 2001 को

प्रश्न 3. 
केमिकल वीपन्स कन्वेन्शन (CWC) सन्धि हस्ताक्षरित की गयी थी।
(अ) 155 देशों द्वारा
(ब) 181 देशों द्वारा 
(स) 192 देशों द्वारा
(द) 200 देशों द्वारा। 
उत्तर:
(स) 192 देशों द्वारा

प्रश्न  4. 
वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) से सर्वाधिक नुकसान निम्नांकित में किस देश को उठाना पड़ेगा? 
(अ) बांग्लादेश
(ब) थाईलैण्ड 
(स) मालदीव
(द) भूटान। 
उत्तर:
(द) भूटान। 

प्रश्न  5. 
निम्न में से खतरे का नया स्त्रोत है। 
(अ) आतंकवाद
(ब) निर्धनता 
(स) शरणार्थी समस्या
(द) ये सभी।' 
उत्तर:
(ब) निर्धनता 

प्रश्न  6. 
निम्न में से 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में किस देश में मैड-काऊ महामारी फैली? 
(अ) ब्रिटेन 
(ब) आस्ट्रेलिया 
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका 
(द) जापान। 
उत्तर:
(अ) ब्रिटेन 

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प्रश्न 7. 
भारत के किस प्रधानमन्त्री ने एशियाई एकता, अनौपनिवेशीकरण और निशस्त्रीकरण के प्रयासों की हिमायत की? 
(अ) जवाहरलाल नेहरू
(ब) लाल बहादुर शास्त्री 
(स) चौ. चरण सिंह
(द) इंदिरा गांधी। 
उत्तर:
(अ) जवाहरलाल नेहरू

प्रश्न 8. 
विश्व के 160 देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये थे।
(अ) सन् 1997 में
(ब) सन् 2000 में 
(स) सन् 2003 में
(द) सन् 2010 में।' 
उत्तर:
(अ) सन् 1997 में

अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न: 

प्रश्न 1. 
सुरक्षा की विभिन्न धारणाओं को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है? नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. सुरक्षा की पारम्परिक धारणा
  2. सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा। 

प्रश्न 2. 
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा में किसी देश के लिए सबसे अधिक खतरनाक किस खतरे को माना जाता है? 
उत्तर:
सैन्य खतरे को।

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प्रश्न 3. 
सुरक्षा की पारम्पारिक धारणा के दो रूप कौन - कौन से हैं?
अथवा 
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा के अनुसार किसी देश की सुरक्षा के सामने दो खतरों को उजागर कीजिए।
उत्तर:

  1. बाह्य सुरक्षा, 
  2. आन्तरिक सुरक्षा। 

प्रश्न 4. 
बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में कौन - कौन से विकल्प होते हैं? 
उत्तर:

  1. आत्मसमर्पण करना, 
  2. आक्रमणकारी राष्ट्र की बातें मानना, 
  3. आक्रमणकारी राष्ट्र को युद्ध में हराना। 

प्रश्न 5. 
बाह्य सुरक्षा की किन्हीं दो पारम्परिक नीतियों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. आत्मसमर्पण करना, 
  2. शक्ति सन्तुलन। 

प्रश्न 6. 
अपरोध से क्या आशय है?
उत्तर:
अपरोध से आशय युद्ध की आशंका को रोकने से है। 

प्रश्न 7. 
किन्हीं दो शक्तियों के नाम बताइए जो सैनिक शक्ति का आधार हैं? 
उत्तर:

  1. आर्थिक शक्ति, 
  2. तकनीकी शक्ति। 

प्रश्न 8. 
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा सैन्य खतरों से सम्बन्धित न होकर मानवीय अस्तित्व को चोट पहुँचाने वाले व्यापक खतरों व आशंकाओं से है। 

प्रश्न 9. 
निशस्त्रीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निशस्त्रीकरण से अभिप्राय विश्व शान्ति के लिए कुछ खास किस्म के हथियारों पर रोक लगाने से है। 

प्रश्न 10. 
केमिकल वीपन्स कन्वेन्शन (CWC) सन्धि पर कितने देशों ने हस्ताक्षर किये थे?
उत्तर:
181 देशों ने। 

प्रश्न 11. 
एंटी बैलेस्टिक मिसाइल सन्धि (ए. बी. एम.) कब हुई? 
उत्तर:
सन् 1972 में। 

प्रश्न 12. 
एन.पी.टी. का पूरा नाम क्या है? यह सन्धि किस वर्ष में हुई? 
उत्तर:
एन.पी.टी. का पूरा नाम 'न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी' है। यह संधि सन् 1968 में हुई थी। 

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प्रश्न 13. 
सुरक्षा की परम्परागत व अपरम्परागत धारणा में एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
सुरक्षा की परम्परागत धारणा का सम्बन्ध मुख्य रूप से बाहरी खतरों से होता है, जबकि अपरम्परागत धारणा में केवल बाहरी खतरे ही नहीं बल्कि अन्य खतरनाक खतरों व घटनाओं को भी सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 14.
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा को 'मानवता की सुरक्षा' अथवा 'विश्व-रक्षा' किस कारण कहा जाता है?
उत्तर:
सुरक्षा की जरूरत सिर्फ राज्य, व्यक्तियों और समुदायों को ही नहीं है बल्कि समूची मानवता को है। इसी कारण सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा को 'मानवता की सुरक्षा' अथवा 'विश्व रक्षा' कहा जाता है।

प्रश्न 15. 
किन्हीं चार विश्वव्यापी खतरों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. वैश्विक तापवृद्धि, 
  2. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, 
  3. एड्स, 
  4. बर्ड फ्लू, 
  5. कोरोना। 

प्रश्न 16. 
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के दो पक्ष कौन-कौन से हैं? 
उत्तर:

  1. मानवता की सुरक्षा, 
  2. विश्व सुरक्षा। 

प्रश्न 17. 
आतंकवाद का क्या अभिप्राय है?
अथवा 
आतंकवाद का आशय बतलाइए।
उत्तर:
आतंकवाद का अभिप्राय राजनीतिक हिंसा से है जिसका निशाना निर्दोष नागरिक होते हैं ताकि समाज में दहशत पैदा की जा सके।

प्रश्न 18. 
वर्तमान विश्व में कौन-कौन सी नई महामारियाँ उभरी हैं? 
उत्तर:

  1. एबोला वायरस, 
  2. हैन्टा वायरस, 
  3. हेपेटाइटिस-सी, 
  4. कोराना आदि। 

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प्रश्न 19. 
भारत की सुरक्षा नीति के प्रमुख घटक कौन - कौन से हैं?
उत्तर:

  1. सैन्य क्षमता को मजबूत करना, 
  2. अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों एवं संस्थाओं को मजबूत करना, 
  3. देश की आन्तरिक सुरक्षा-समस्याओं से निपटारा, 
  4. आर्थिक विकास की रणनीति। 

प्रश्न 20. 
भारत ने पहला परमाणु परीक्षण कब किया?
उत्तर:
भारत ने सन् 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। 

प्रश्न 21. 
भारत ने 'क्योटो प्रोटोकॉल' पर हस्ताक्षर कब किए?
उत्तर:
भारत ने सन् 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल' पर हस्ताक्षर किए। 

प्रश्न 22. 
मानव अधिकार की पहली कोटि कौन - सी है?
उत्तर:
राजनीतिक अधिकारों की। 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA1): 

प्रश्न 1. 
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा से क्या अभिप्राय है?
अथवा 
बाहरी सुरक्षा की पारम्परिक धारणा से क्या आशय है?
उत्तर:
बाहरी सुरक्षा की पारम्परिक धारणा से आशय राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा से है। इसमें सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सर्वाधिक घातक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है, जो सैन्य हमले की धमकी देकर सम्प्रभुता, स्वतंत्रता तथा क्षेत्रीय अखण्डता को प्रभावित करता है। सैन्य कार्यवाही से जनसाधारण का जीवन भी प्रभावित होता है।

प्रश्न 2. 
बुनियादी रूप से किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में सुरक्षा के कितने विकल्प होते हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
बुनियादी रूप से किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में सुरक्षा के तीन विकल्प होते हैं।

  1. आत्म - समर्पण करना एवं दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना,
  2. युद्ध से होने वाले विनाश को इस हद तक बढ़ाने का संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला करने से रुक जाए। 
  3. यदि युद्ध हो भी जाए तो अपनी रक्षा करना या हमलावर को पराजित कर देना। 

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प्रश्न 3. 
शक्ति सन्तुलन को कैसे बनाए रखा जा सकता है? 
उत्तर:
परम्परागत सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण शक्ति सन्तुलन है। शक्ति सन्तुलन को बनाए रखने के लिए सैन्य शक्ति को बढ़ाना अति आवश्यक है लेकिन आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी विकास भी महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि सैन्य शक्ति का यही आधार है। प्रत्येक सरकार दूसरे देशों से अपने शक्ति सन्तुलन को लेकर अत्यन्त संवेदनशील रहती है।

प्रश्न 4. 
बाहरी सुरक्षा हेतु गठबन्धन बनाने से क्या आशय है?
उत्तर:
गठबन्धन पारम्परिक सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है। एक गठबंधन में कई देश सम्मिलित होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं। अधिकांश गठबंधनों को लिखित नियमों एवं उपनियमों द्वारा एक औपचारिक रूप दिया जाता है। प्रत्येक देश गठबंधन प्रायः अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए करता है। गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं एवं राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं।

प्रश्न 5. 
"राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं।" एक उदाहरण देकर कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं और राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने सन् 1980 के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ के विरुद्ध इस्लामी उग्रवादियों को समर्थन दिया, लेकिन ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में अलकायदा नामक समूह के आतंकवादियों ने जब 11 सितम्बर 2001 के दिन उस पर ही हमला कर दिया तो उसने इस्लामी उग्रवादियों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।

प्रश्न 6. 
एशिया व अफ्रीका के नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों एवं यूरोप के देशों द्वारा सामना की जा रही सुरक्षा चुनौतियों में कोई दो अन्तर बताइए।
अथवा
एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के समक्ष खड़ी सुरक्षा की चुनौतियाँ यूरोपीय देशों के मुकाबले किन-किन मायनों में विशिष्ट थीं?
उत्तर:

  1. एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों को आन्तरिक एवं बाहरी दोनों प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि यूरोप के देशों को केवल बाहरी खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
  2.  एशिया और अफ्रीका के नव स्वतन्त्र देशों को गरीबी व बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है जबकि यूरोप के देशों को संस्कृति एवं सभ्यता के पतन का सामना करना पड़ रहा है।

प्रश्न 7. 
जैविक हथियार सन्धि (BWC) 1972 द्वारा क्या निर्णय लिया गया ?
उत्तर:
1972 की जैविक हथियार सन्धि (बायोलॉजिकल वीपन्स कन्वेंशन - BWC) द्वारा जैविक हथियारों का निर्माण करना तथा उन्हें रखना प्रतिबन्धित कर दिया गया। यह सन्धि लगभग 155 से अधिक देशों द्वारा हस्ताक्षरित की गई थी। इसको हस्ताक्षरित करने वालों में विश्व की सभी महाशक्तियाँ भी सम्मिलित थीं। 

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प्रश्न 8. 
सुरक्षा के पारम्परिक तरीके के रूप में अस्त्र नियन्त्रण को स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
पारम्परिक सुरक्षा के उपाय के रूप में अस्त्र नियन्त्रण' के महत्त्व को उजागर कीजिए। 
उत्तर:
सुरक्षा के पारम्परिक तरीके के रूप में अस्त्र नियन्त्रण के अन्तर्गत हथियारों के सम्बन्धों में कुछ नियम व कानूनों का पालन करना पड़ता है। उदाहरण के रूप में; सन् 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल सन्धि (ABM) ने संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों के रक्षा कवच के रूप में उपयोग करने से रोका। ऐसे प्रक्षेपास्त्रों से हमले की शुरुआत की जा सकती थी।

प्रश्न 9. 
आपकी दृष्टि में सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा क्या है? 
उत्तर:
सरक्षा की ऐसी धारणा जिसके अन्तर्गत सैन्य खतरों के साथ-साथ मानवीय अस्तित्व पर प्रहार करने वाले व्यापक खतरों एवं आशंकाओं को सम्मिलित किया जाता है; सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा कहलाती है। सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के दो पक्ष हैं - मानवता की सुरक्षा तथा विश्व सुरक्षा। 

प्रश्न 10. 
मानवीय सुरक्षा का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानवीय सुरक्षा का अभिप्राय है कि देश की सरकार को अपने नागरिकों की सुरक्षा अपने राज्य अथवा भू-भाग की सुरक्षा से बढ़कर मानना है। मानवता की सुरक्षा तथा राज्य की सुरक्षा परस्पर पूरक हैं। सुरक्षित राज्य का अभिप्राय सुरक्षित जनता नहीं होता है। देश के नागरिकों को विदेशी हमलों से बचाना सुरक्षा की गारण्टी नहीं है। इतिहास साक्षी है कि पिछले 100 वर्षों में जितने लोग विदेशी सैनिकों के हाथों मारे गये हैं उनसे कहीं अधिक संख्या में लोग स्वयं अपनी ही सरकारों के हाथों हताहत हुए हैं।

प्रश्न 11. 
आपकी दृष्टि में मानवता की सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में आप कौन-कौन सी सुरक्षा को शामिल करेंगे?
उत्तर:
मैं मानवता की सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में आर्थिक सुरक्षा तथा मानवीय गरिमा की सुरक्षा को शामिल करूँगा। इसका मुख्य कारण मानवता की रक्षा के व्यापकतम नजरिए में 'अभाव से मुक्ति' तथा 'भय से मुक्ति' पर जोर दिया जाना है। 

प्रश्न 12. 
आप वर्तमान में विश्व की सुरक्षा को किससे खतरा मानते हैं? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मैं वर्तमान में विश्व सुरक्षा को युद्ध, वैश्विक तापवृद्धि, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, निर्धनता, एड्स, बर्ड फ्लू तथा कोरोना जैसी महामारियों, शरणार्थी समस्या, प्रदूषण, मानवाधिकारों का उल्लंघन आदि से खतरा मानता हूँ। .

  1. वैश्विक तापवृद्धि: विश्व के तापमान में लगातार हो रही वृद्धि सम्पूर्ण मानव जाति हेतु एक गम्भीर खतरा है।
  2. आतंकवाद: आतंकवादी जानबूझकर निर्दोष लोगों को अपना शिकार बनाते हैं तथा सम्बन्धित देश में आतंक का खतरा उत्पन्न करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक से अधिक देशों में व्याप्त है।

प्रश्न 13. 
मानवाधिकारों को कितनी कोटियों में रखा गया है? संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
मानवाधिकार को तीन कोटियों में रखा गया है, जो निम्नलिखित हैं और सामाजिक अधिकारों की है। तृतीय कोटि में उपनिवेशीकृत जनता अथवा जातीय और मूलवासी अल्पसंख्यकों के अधिकार सम्मिलित है।

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प्रश्न 14.
'आन्तरिक रूप से विस्थापित जन' से क्या तात्पर्य है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
आन्तरिक रूप से विस्थापित जन उन्हें कहा जाता है जो अकेले राजनीतिक उत्पीड़न, जातीय हिंसा आदि किसी कारण से अपने मूल निवास से तो विस्थापित हो चुके हों परन्तु उन्होंने उसी देश में किसी भाग पर शरणार्थी के रूप में रहना प्रारम्भ कर दिया है। उदाहरण के रूप में; 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में हिंसा से बचने के लिए कश्मीर घाटी छोड़ने वाले कश्मीरी पंडित आन्तरिक रूप से विस्थापित जन माने जाते हैं।

प्रश्न 15. 
आप्रवासी तथा शरणार्थी में अन्तर बताइए।
उत्तर:
आप्रवासी - जो व्यक्ति अपनी मर्जी या इच्छा से स्वदेश छोड़ते हैं उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार आप्रवासी कहा जाता है।
शरणार्थी - वे व्यक्ति जो युद्ध, प्राकृतिक आपदा पर राजनीतिक उत्पीड़न अथवा किसी अन्य संघर्ष के कारण स्वदेश या अपना निवास क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं उन्हें शरणार्थी कहा जाता है। 

प्रश्न 16. 
आप भारत की सुरक्षा नीति के लिए दो घटक बताइए।
उत्तर:
सुरक्षा नीति के दो घटक निम्न हैं:

  1. सैन्य क्षमता को मजबूत करना। 
  2. अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को मजबूत करना।

प्रश्न 17. 
भारत ने अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों एवं संस्थाओं को किस प्रकार मजबूत किया?
उत्तर:
भारत में अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए एशियाई एकता अनौपनिवेशीकरण एवं निःशस्त्रीकरण के प्रयासों की हिमायत की। भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों में संयुक्त राष्ट्र संघ को अन्तिम पंच मानने पर जोर दिया। भारत ने परमाणु हथियारों के अप्रसार के सम्बन्ध में एक सार्वभौम व बिना भेदभाव वाली नीति चलाने पर बल दिया तथा गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को बढ़ावा दिया। 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (SA2):

प्रश्न 1. 
परम्परागत सुरक्षा के किन्हीं चार तत्वों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
परम्परागत सुरक्षा के चार तत्व निम्नवत् हैं। 

  1.  परम्परागत खतरे: सुरक्षा की पारम्परिक अवधारणा में सैन्य खतरों को किसी भी देश के लिए सर्वाधिक घातक माना जाता है। इसका स्रोत कोई दूसरा अन्य देश होता है जो सैनिक हमले की धमकी देकर किसी देश की सम्प्रभुता, स्वतन्त्रता तथा क्षेत्रीय अखण्डता को प्रभावित करता है।
  2. युद्ध: युद्ध से साधारण लोगों के जीवन पर भी खतरा मँडराता है। किसी युद्ध में सिर्फ सैनिक ही घायल अथवा मारे नहीं जाते, बल्कि जनसामान्य को भी इससे भारी नुकसान पहुँचता है।
  3. शक्ति सन्तुलन: परम्परागत सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्व शक्ति सन्तुलन है। कोई भी देश अपने पड़ोसी देशों की शक्ति का सही-सही आकलन करके भविष्य की नीति तैयार करता है। प्रत्येक सरकार दूसरे देशों से अपने शक्ति सन्तुलन को लेकर अत्यधिक संवेदनशील रहती है।
  4. गठबन्धन करना: परम्परागत सुरक्षा नीति का एक तत्व गठबन्धन करना भी है। इसमें विभिन्न देश सम्मिलित होते हैं। तथा सैनिक हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए मिलजुल कर कदम उठाते हैं।

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प्रश्न 2. 
एशिया तथा अफ्रीका के नव - स्वतन्त्र देशों के समक्ष सुरक्षा की चुनौतियाँ यूरोप की चुनौतियों की तुलना में कैसे भिन्न थीं?
उत्तर:
एशिया तथा अफ्रीका के नव स्वतन्त्र देशों के सामने सुरक्षा की चुनौतियाँ, यूरोप की चुनौतियों की अपेक्षाकृत निम्न प्रकार भिन्न थीं

  1.  एशिया तथा अफ्रीका के नव - स्वतन्त्र देशों का संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, जबकि यूरोप के दो देशों को निषेधाधिकार (वीटो) का अधिकार हासिल है। इस तरह से ये देश अधिक सुरक्षित हैं।
  2. एशिया तथा अफ्रीका के देशों में औद्योगीकरण बाल अवस्था में है, जबकि यूरोपीय देशों में उद्योगों का चरम विकास हो चुका है। वे कच्चे माल तथा अन्य उपयोगी सामग्री के लिए एशिया तथा अफ्रीका के देशों का शोषण करने को तैयार रहते हैं।
  3. एशिया तथा अफ्रीका के देशों को अपने पड़ोसी देशों के हमलों का भय तथा देश के भीतर भी सैनिक संघर्ष और साम्प्रदायिक हिंसा बढ़ने का खतरा है। इसके विपरीत यूरोपीय देशों में ऐसा नहीं है।
  4. एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में प्रतिव्यक्ति निम्न आय है तथा जनसंख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी होती चली जा रही है जबकि यूरोपीय देशों की स्थिति इसके ठीक विपरीत है।

प्रश्न 3. 
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा में विश्वास बहाली के उपायों की चर्चा कीजिए। 
उत्तर:
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा में विश्वास बहाली के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं।

  1. विश्वास बहाली से दोनों देशों के मध्य हिंसा को कम किया जा सकता है।
  2. विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव एवं प्रतिद्वन्द्विता वाले देशों के बीच सूचनाओं एवं विचारों का सीमित आदान - प्रदान किया जाता है।
  3. दोनों देश एक - दूसरे को अपनी सैनिक सामग्री एवं सैन्य योजनाओं की जानकारी प्रदान करते हैं। ऐसा करके दोनों देश अपने प्रतिद्वन्द्वी को इस बात का विश्वास दिलाते हैं वे अपनी तरफ से हमले की कोई योजना नहीं बना रहे हैं।
  4. इस प्रक्रिया से दोनों देशों के मध्य गलतफहमी से बचा जा सकता है। 

प्रश्न 4. 
युद्ध के अतिरिक्त मानव सुरक्षा के किन्हीं अन्य चार खतरों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
अथवा 
गैर - पारम्परिक सुरक्षा को खतरे के किन्हीं चार नए स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
युद्ध के अतिरिक्त मानव सुरक्षा के अन्य खतरे निम्नवत् हैं।
(i) वैश्विक ताप वृद्धि: वर्तमान विश्व में वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) सम्पूर्ण मानव जाति हेतु एक गम्भीर खतरा है।

(ii) शरणार्थी समस्या: दक्षिणी महाद्वीपों के विभिन्न देशों में सशस्त्र संघर्ष तथा युद्ध की वजह से लाखों लोग शरणार्थी बने और सुरक्षित ठिकानों की तलाश में विभिन्न देशों में आसरा लिया।

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद: आतंकवादी जान - बूझकर निर्दोष लोगों को अपना शिकार बनाते हैं तथा सम्बन्धित देश में आतंक का खतरा उत्पन्न करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक से अधिक देशों में व्याप्त है तथा उसके खूनी निशाने पर विश्व के अनेक देशों के नागरिक हैं। विमान अपहरण अथवा भीड़ - भरे स्थानों; जैसे - रेलगाड़ी, बस स्टैण्ड, होटल, माल्स, बाजार अथवा ऐसे ही अन्य स्थानों पर विस्फोटक पदार्थ लगाना इत्यादि आतंकवाद के चिर - परिचित उदाहरण हैं।

(iv) प्रदूषण अथवा पर्यावरण क्षरण: पर्यावरण में हो रही भारी तथा तीव्र हानि से सम्पूर्ण विश्व की सुरक्षा के समक्ष एक गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है। वनों की बेतहाशा कटाई ने पर्यावरण एवं प्राकृतिक सन्तुलन को अपार क्षति पहुँचाई है। जल, वायु, मृदा तथा ध्वनि प्रदूषण की वजह से मानव के सामान्य जीवन तथा शान्त वातावरण हेतु गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है।

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प्रश्न 5. 
आतंकवादी असैनिक स्थानों को अपना लक्ष्य क्यों चुनते हैं? 
उत्तर:
आतंकवादी निम्न कारणों की वजह से असैनिक स्थानों को अपना लक्ष्य बनाते हैं।
(i) आतंकवाद अपरम्परागत श्रेणी के अन्तर्गत आता है। आतंकवाद का तात्पर्य राजनीतिक कत्लेआम है, जो जानबूझकर बिना किसी पर दयाभाव रखे नागरिकों को अपना शिकार बनाता है। एक से अधिक देशों में व्याप्त अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के निशाने पर कई देशों के निर्दोष नागरिक हैं।

(ii) किसी राजनीतिक सन्दर्भ अथवा स्थिति के मन मुताबिक न होने पर आतंकवादी समूह उसे बल प्रयोग से या शक्ति प्रयुक्त किये जाने की धमकी देकर परिवर्तित करना चाहते हैं। जनसाधारण को डराकर आतंकित करने हेतु निर्दोष लोगों को निशाना बनाया जाता है। आतंकवाद नागरिकों के असन्तोष का प्रयोग राष्ट्रीय सरकारों अथवा संघर्षों में सम्मिलित अन्य पक्ष के विरुद्ध करता है।

(iii) आतंकवादियों का मुख्य उद्देश्य ही आतंक फैलाना है, अत: वे असैनिक स्थानों अर्थात् जनसाधारण को अपनी दहशतगर्दी का निशाना बनाते हैं। इससे जहाँ एक तरफ वे आतंक कायम करके लोगों तथा विश्व का ध्यान अपनी तरफ खींचने में सफल होते हैं तो वहीं दूसरी ओर उन्हें प्रतिरोध का सामना भी नहीं करना पड़ता। नागरिक सरलतापूर्वक उनके शिकार बन जाते हैं।

प्रश्न 6. 
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते आतंकवाद के पीछे क्या कारण हैं? 
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहे आतंकवाद के पीछे निम्नलिखित कारण हैं।

  1. तकनीक तथा सूचना प्रौद्योगिकी में तेजी से हुई प्रगति ने आतंकवादियों के दुस्साहस में अभिवृद्धि की है। यह एक प्रमुख कारण है जिसकी वजह से आतंकवाद आज सम्पूर्ण विश्व में अपने पैर जमा चुका है।
  2. तस्करी, जमाखोरी, वायुयानों के अपहरण तथा पानी के जहाजों को बन्धक बनाने जैसी घटनाओं के पीछे विश्व अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण है। आतंकवादियों द्वारा किसी भी देश की मुद्रा का अन्तरण करना सरल हो गया है।
  3. अत्याधुनिक हथियारों को नवीन प्रौद्योगिकी द्वारा निर्मित करके उन्हें बेचने की प्रतिस्पर्धा शीतयुद्ध दौर की शैली है। व्यापक स्तर पर उन्माद जाग्रत करके आतंकवाद की खूनी होली खेलने के हथियारों को बनाने वाली कम्पनियाँ सरकार तथा व्यापारी समान रूप से उत्तरदायी हैं।
  4. यातायात के सुगम साधनों तथा स्वतः चलित यानों ने भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को प्रोत्साहन दिया है। 

प्रश्न 7. 
मानवाधिकारों के हनन की स्थिति में क्या संयुक्त राष्ट्र संघ को हस्तक्षेप करना चाहिए? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मानवाधिकारों के हनन की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ को हस्तक्षेप करना चाहिए या नहीं। इस सम्बन्ध में बहस हो रही है।
(i) कुछ देशों का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणा पत्र अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को अधिकार देता है कि यह मानवाधिकारों की रक्षा के लिए हथियार उठाये अर्थात् संयुक्त राष्ट्र संघ को इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करना चाहिए।

(ii) कुछ देशों का तर्क है कि यह सम्भव है कि शक्तिशाली देशों के हितों से यह निर्धारित होता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार उल्लंघन के किस मामले में कार्यवाही करेगा और किस में नहीं  इससे शक्तिशाली देशों को मानवाधिकारों के बहाने उसके अन्दरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने का सरल रास्ता मिल जायेगा।

प्रश्न 8. 
वैश्विक निर्धनता खतरे का मुख्य स्त्रोत क्यों मानी जा रही है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
वैश्विक निर्धनता खतरे का मुख्य स्रोत मानी जा रही है क्योंकि एक अनुमान के अनुसार विश्व के सबसे निर्धन देशों में जनसंख्या आगामी 50 वर्षों में तीन गुना तक बढ़ जायेगी, जबकि इसी अवधि के दौरान अनेक धनवान देशों में जनसंख्या की वृद्धि दर घटेगी। प्रति व्यक्ति उच्च आय एवं जनसंख्या की कम वृद्धि के कारण धनिक देशों के सामाजिक समूहों को धनी बनने में सहायता मिलेगी, जबकि प्रति व्यक्ति निम्न आय और तीव्र जनसंख्या वृद्धि एक साथ मिलकर निर्धन देशों के सामाजिक समूहों को और अधिक निर्धन बनायेगी। इससे वैश्विक निर्धनता में वृद्धि होगी जो खतरे के एक नये और महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में हमारे समक्ष आयेगी।

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प्रश्न 9. 
सहयोगमूलक सुरक्षा में भी बल प्रयोग की अनुमति कब दी जा सकती है? 
उत्तर:
सहयोगमूलक सुरक्षा में भी अन्तिम उपाय के रूप में बल प्रयोग किया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय उन सरकारों से निपटने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दे सकता है जो अपनी ही जनता पर अत्याचार कर रही हो अथवा निर्धनता, महामारी एवं प्रलयंकारी घटनाओं की मार झेल रही जनता के दुःख-दर्द की उपेक्षा कर रही हो। ऐसी स्थिति में किसी एक देश द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय एवं स्वयंसेवी संगठनों आदि की इच्छा के विरुद्ध बल प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए बल्कि सामूहिक स्वीकृति से तथा सामूहिक रूप से सम्बन्धित घटना के लिए जिम्मेदार देश पर बल प्रयोग किया जाना चाहिए।

प्रश्न 10. 
भारत की सुरक्षा रणनीति के विभिन्न घटकों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत एशिया महाद्वीप का एक महत्त्वपूर्ण देश है। भारत को पारम्परिक एवं अपारम्परिक दोनों प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ रहा है। ये खतरे सीमा के अन्दर से भी उभरे एवं बाहर से भी उभरे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए भारत ने सुरक्षा दृष्टि से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। भारत ने अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत बनाया है। दक्षिण एशिया में भारत के चारों ओर परमाणु हथियार सम्पन्न देश होने के कारण भारत ने भी परमाणु हथियारों का निर्माण किया है।

भारत ने सुरक्षा की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं कानूनों को और अधिक प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया है। हमारे पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने एशियाई एकता, अनौपनिवेशीकरण एवं निःशस्त्रीकरण के प्रयासों का समर्थन किया। भारत ने हथियारों के अप्रसार के सम्बन्ध में एक सार्वभौम एवं भेदभाव रहित नीति की वकालत की है।

इसके अतिरिक्त भारत ने वैश्विक तापवृद्धि को रोकने के लिए क्योटो प्रोटोकॉल पर भी हस्ताक्षर किये हैं तथा गुटनिरपेक्षता के रूप में विश्व शान्ति का तीसरा विकल्प भी रखा। भारत ने अपनी आन्तरिक सुरक्षा समस्याओं से निबटने की पर्याप्त तैयारी कर रखी है। अशिक्षा, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, निर्धनता आदि को दूर करने का भरपूर प्रयास किया है।

निवन्यात्मक प्रश्न: 

प्रश्न 1. 
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा 
आन्तरिक तथा बाह्य सुरक्षा की पारम्परिक धारणा से क्या अभिप्राय है? व्याख्या कीजिए। 
अथवा 
बाह्य सुरक्षा की पारम्परिक धारणा से क्या अभिप्राय है? इस प्रकार की सुरक्षा के किन्हीं दो तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा-सुरक्षा की पारम्परिक धारणा को दो भागों में बाँटा जा सकता है:
(1) बाहरी सुरक्षा की पारम्परिक धारणा, 
(2) आन्तरिक सुरक्षा की पारम्परिक धारणा।

1. बाहरी सुरक्षा की पारम्परिक धारणा-बाहरी सुरक्षा की पारम्परिक धारणा का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है
(i) सैन्य खतरा: सुरक्षा की पारम्परिक धारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर सम्प्रभुता, स्वतन्त्रता तथा क्षेत्रीय अखण्डता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा उत्पन्न करता है। सैन्य कार्यवाही से आम जनता को भी जन - धन की व्यापक हानि उठानी पड़ती है। प्रायः निहत्थी जनता को युद्ध में निशाना बनाया जाता है तथा उनका व उनकी सरकार का हौसला तोड़ने की कोशिश की जाती है।

(ii) युद्ध से बचने के उपाय: बुनियादी तौर पर सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं।
(अ) आत्म समर्पण: आत्म समर्पण करना एवं दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना।
(ब) अपरोध नीति: सुरक्षा नीति का सम्बन्ध समर्पण करने से नहीं है बल्कि इसका सम्बन्ध युद्ध की आशंका को रोकने से है जिसे अपरोध कहते हैं। इसके अन्तर्गत एक पक्ष द्वारा युद्ध से होने वाले विनाश को इस सीमा तक बढ़ाने के संकेत दिये जाते हैं ताकि दूसरा सहम कर हमला करने से रुक जाए।
(स) रक्षा नीति: रक्षा नीति का सम्बन्ध युद्ध को सीमित रखाने अथवा उसे समाप्त करने से होता है।

(iii) शक्ति सन्तुलन: परम्परागत सुरक्षा नीति का एक अन्य रूप शक्ति सन्तुलन है। प्रत्येक देश की सरकार दूसरे देश में अपने शक्ति सन्तुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है। कोई सरकार दूसरे देशों से शक्ति सन्तुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने के लिए भरसक प्रयास करती है। शक्ति सन्तुलन बनाये रखने की यह कोशिश अधिकतर अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने की होती है, लेकिन आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी की ताकत भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सैन्य शक्ति का यही आधार है।

(iv) गठबन्धन निर्माण की नीति: पारम्परिक सुरक्षा नीति का चौथा तत्व है - गठबन्धन का निर्माण करना। गठबन्धन में कई देश सम्मिलित होते हैं तथा सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं। अधिकांश गठबन्धनों को लिखित सन्धि के माध्यम से एक औपचारिक रूप मिलता है। गठबन्धन राष्ट्रीय हितों पर आधारित हैं तथा राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबन्धन भी बदल जाते हैं। सुरक्षा की परम्परागत धारणाओं में विश्व राजनीति में प्रत्येक देश को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं उठानी पड़ती है।

2. आन्तरिक सुरक्षा की पारम्परिक धारणा: सुरक्षा की पारम्परिक धारणा का दूसरा रूप आन्तरिक सुरक्षा का है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सुरक्षा के इस पहलू पर अधिक जोर नहीं दिया गया क्योंकि दुनिया के अधिकांश ताकतवर देश अपनी अन्दरूनी सुरक्षा के प्रति कमोवेश आश्वस्त थे। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् ऐसे हालात और सन्दर्भ सामने आये कि आन्तरिक सुरक्षा पहले की तुलना में कहीं कम महत्व की वस्तु बन गयी। शीतयुद्ध के दौर में दोनों गुटों अमेरिकी गुट व सोवियत गुट के आमने-सामने होने से इन दोनों गुटों को अपने ऊपर एक - दूसरे से सैन्य हमले का भय था। 

इसके अतिरिक्त कुछ यूरोपीय देशों को अपने उपनिवेशों में उपनिवेशीकृत जनता से खून-खराबे की चिन्ता सता रही थी। लेकिन 1940 के दशक के उत्तरार्द्ध से उपनिवेशों ने स्वतन्त्र होना प्रारम्भ कर दिया। एशिया और अफ्रीका के नव स्वतन्त्र हुए

देशों के समक्ष दोनों प्रकार की सुरक्षा की चुनौतियाँ थीं।

  1. एक तो इन्हें अपनी पड़ोसी देशों से सैन्य हमले की आशंका थी। 
  2.  इन्हें आन्तरिक सैन्य संघर्ष की भी चिन्ता करनी थी। इन देशों को सीमा पार के पड़ोसी देशों से खतरा था तथा साथ ही भीतर से भी खतरे की आशंका थी।

अनेक नव स्वतन्त्र देश संयुक्त राज्य अमेरिका या सोवियत संघ अथवा औपनिवेशिक ताकतों से कहीं अधिक अपने पड़ोसी देशों से आशंकित थे। इनके मध्य सीमा रेखा और भू-क्षेत्र अथवा जनसंख्या पर नियन्त्रण को लेकर झगड़े हुए।

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प्रश्न 2. 
सुरक्षा के पारम्परिक तरीकों का विस्तार से वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
सुरक्षा के पारम्परिक तरीकों का विवरण अग्रलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।
1. न्याय युद्ध की परम्परा का विस्तार: सुरक्षा की पारम्परिक अवधारणा 'न्याय युद्ध' की यूरोपीय परम्परा का ही विस्तार है। इसकी प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं।

  1. किसी देश को युद्ध उचित कारणों अर्थात् आत्मरक्षा अथवा दूसरों के जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए। 
  2. किसी युद्ध में युद्ध साधनों का सीमित प्रयोग होना चाहिए। 
  3. युद्धरत सेना को चाहिए कि वह संघर्ष-विमुख शत्रु, निहत्थे व्यक्ति अथवा आत्म-समर्पण करने वाले शत्रु को न मारे।
  4. सेना को उतनी ही शक्ति का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए आवश्यक हो और उसे एक सीमा तक ही हिंसा का सहारा लेना चाहिए।
  5. बल प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब शेष उपाय असफल हो गए हों। 

2. निःशस्त्रीकरण: देशों के मध्य सहयोग में सुरक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण तरीका है - नि:शस्त्रीकरण। निःशस्त्रीकरण की माँग होती है कि समस्त राज्य चाहे उनका आकार, शक्ति एवं प्रभाव कुछ भी हो, कुछ विशेष किस्म के हथियारों का त्याग करें। उदाहरण के लिए; सन् 1972 की जैविक हथियार सन्धि (BWC) में जैविक हथियारों एवं 1992 की रासायनिक हथियार सन्धि (CWC) में रासायनिक हथियारों का निर्माण करना एवं रखना प्रतिबन्धित कर दिया गया है।

3. अस्त्र - नियन्त्रण - अस्त्र नियन्त्रण के अन्तर्गत परमाणु हथियारों को विकसित करने अथवा उनको प्राप्त करने के सम्बन्ध में कुछ नियम-कानूनों का पालन करना पड़ता है। सन् 1972 की एंटी मिसाइल सन्धि (ABM) ने संयुक्त राज्य अमेरिका एवं तत्कालीन सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में प्रयोग करने से रोक दिया।

4.विश्वास बहाली के उपाय: सुरक्षा की पारम्परिक धारणा में यह बात स्वीकार की गयी है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के मध्य हिंसाचार कम किया जा सकता है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव एवं प्रतिद्वन्द्विता वाले देश सूचनाओं एवं विचारों के नियमित आदान-प्रदान का फैसला करते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सुरक्षा पारम्परिक तरीके के मुख्य रूप से सैन्य बल के प्रयोग अथवा सैन्य बल के प्रयोग की आशंका से सम्बद्ध है। सुरक्षा की पारम्परिक धारणा में माना जाता है कि सैन्य बल से सुरक्षा को खतरा पहुँचता है एवं सैन्य बल से ही सुरक्षा को कायम रखा जा सकता है। 

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प्रश्न 3. 
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा 
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के अन्तर्गत मानवता की सुरक्षा तथा वैश्विक सुरक्षा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा-सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा सिर्फ सैन्य खतरों से ही संबद्ध नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय अस्तित्व पर हमला करने वाले व्यापक खतरों एवं आशंकाओं को सम्मिलित किया जाता है। सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा में सुरक्षा का दायरा व्यापक है। इसमें सिर्फ राज्य ही नहीं बल्कि व्यक्तियों, समुदायों तथा समस्त मानवता की सुरक्षा पर बल दिया जाता है। इस प्रकार सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के दो पक्ष हैं:
1. मानवता की सुरक्षा, 
2. विश्व सुरक्षा।

1. मानवता की सुरक्षा-मानवता की सुरक्षा की धारणा को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है।
(i) व्यक्तियों की रक्षा पर बल: मानवता की सुरक्षा की धारणा व्यक्तियों की रक्षा पर बल देती है। मानवता की रक्षा का विचार जनता की सुरक्षा को राज्यों से बढ़कर मानता है। मानवता की सुरक्षा और राज्य की सुरक्षा परस्पर पूरक होनी चाहिए लेकिन सुरक्षित रूप का आशय हमेशा सुरक्षित जनता नहीं होता।

सुरक्षित राज्य नागरिकों को विदेशी हमलों से तो बचाता है, लेकिन यही पर्याप्त नहीं है क्योंकि पिछले 100 वर्षों में जितने व्यक्ति विदेशी सेना के हाथों मारे गये हैं, उससे कहीं अधिक लोग स्वयं अपनी ही सरकारों के हाथों मारे गये हैं। इससे स्पष्ट होता है कि मानवता की सुरक्षा का विचार राज्यों की सुरक्षा के विचार से व्यापक है।

(ii) मानवता की सुरक्षा के विचार का प्राथमिक लक्ष्य: मानवता की सुरक्षा के सभी समर्थकों की सहमति है कि मानवता की सुरक्षा के विचार का प्राथमिक लक्ष्य व्यक्तियों की रक्षा है, लेकिन इस बात पर मतभेद है कि ऐसे कौन-से खतरे हैं जिनसे व्यक्तियों की रक्षा की जाए। इस सन्दर्भ में दिये गये विचारों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(क) मानवता की सुरक्षा का संकीर्ण अर्थ: मानवता की सुरक्षा का संकीर्ण अर्थ लेने वाले समर्थकों का जोर व्यक्तियों को हिंसक खतरों अर्थात् खून-खराबे से बचाने पर है।
(ख) मानवता की सुरक्षा का व्यापक अर्थ: मानवता की सुरक्षा का व्यापक अर्थ लेने वाले समर्थकों का तर्क है कि खतरों की सूची में अकाल, महामारी एवं आपदाओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए क्योंकि युद्ध, संहार एवं आतंकवाद साथ मिलकर जितने लोगों को मारते हैं, उससे कहीं अधिक लोग अकाल, महामारी एवं प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ जाते हैं।
(ग) मानवता की सुरक्षा का व्यापक अर्थ: मानवता की सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में युद्ध, जनसंहार, आतंकवाद, अकाल महामारी व प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा के साथ - साथ आर्थिक सुरक्षा एवं मानवीय गरिमा की सुरक्षा को भी सम्मिलित किया जा सकता है। इस प्रकार मानवता की सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में अभाव से मुक्ति एवं भय से मुक्ति पर बल दिया जाता है।

2. विश्व सुरक्षा - सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा का दूसरा पक्ष है: विश्व सुरक्षा। विश्वसुरक्षा खतरे; जैसे - वैश्विक तापवृद्धि, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, एड्स, बर्ड फ्लू जैसी महामारियों के मद्देनजर - सन् 1990 के दशक में विश्व सुरक्षा की धारणा का विकास हुआ। कोई भी देश इन समस्याओं का समाधान अकेले नहीं कर सकता। चूँकि इन समस्याओं की प्रकृति वैश्विक है इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। 

प्रश्न 4. 
मानवीय सुरक्षा से सम्बन्धित मुद्दों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा 
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा में खतरों के प्रमुख नये स्त्रोतों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा 
सुरक्षा के खतरे के किन्हीं तीन नए स्रोतों का वर्णन कीजिए।
अथवा 
ऐसे किन्हीं तीन चुनौतीपूर्ण वैश्विक मुद्दों का वर्णन कीजिए जिन्हें देश द्वारा सामूहिक रूप से कार्य किए बिना हल नहीं किया जा सकता।
अथवा
मानव सुरक्षा तथा वैश्विक सुरक्षा के विभिन्न आयामों का वर्णन कीजिए।
अथवा 
ऐसे किन्हीं तीन अन्तर्राष्ट्रीय चुनौतीपूर्ण मसलों का वर्णन कीजिए जिनसे निपटा जा सकता है जब सभी देश साथ मिलकर कार्य करें।
उत्तर:
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के सन्दर्भ में खतरों की बदलती प्रकृति पर जोर दिया जाता है। ऐसे खतरों के प्रमुख नये स्रोत निम्नलिखित हैं जिन्हें मानवीय सुरक्षा से सम्बन्धित मुद्दे भी कह सकते हैं।
(i) अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद: आतंकवाद से आशय राजनीतिक खून - खराबे से है जो जान-बूझकर और बिना किसी दयाभाव ङ्केके नागरिकों को अपना निशाना बनाता है। जब आतंकवाद एक से अधिक देशों में व्याप्त हो जाता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद कहते हैं। इसके निशाने पर कई देशों के नागरिक होते हैं। आतंकवाद के चिरपरिचित उदाहरण हैं-विमान अपहरण, भीड़ भरी जगहों पर बम लगाना। आतंकवाद की अधिकांश घटनाएँ मध्यपूर्व, यूरोप, लेटिन अमेरिका एवं दक्षिण एशिया में हुई हैं।

(ii) मानवाधिकारों का हनन: सन् 1990 के दशक की कुछ घटनाओं-रवांडा में जनसंहार, कुवैत पर इराक का हमला एवं पूर्वी तिमूर में इंडोनेशियाई सेना के रक्तपात के कारण बहस चल पड़ी है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को मानवाधिकारों के हनन की स्थिति में हस्तक्षेप करना चाहिए या नहीं। यह अभी तक विवाद का विषय बना हुआ है क्योंकि कुछ देशों का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ताकतवर देशों के हितों के हिसाब से ही यह निर्धारित करेगा कि किस मामले में मानवाधिकार के विरोध में कार्यवाही की जाए और किस मामले में नहीं की जाए।

(ii) वैश्विक निर्धनता: वैश्विक निर्धनता खतरे का एक प्रमुख स्रोत है। अनुमान है कि आगामी 50 वर्षों के विश्व के सबसे निर्धन देशों में जनसंख्या तीन गुना बढ़ेगी, जबकि इसी अवधि में अनेक धनी देशों की जनसंख्या घटेगी। प्रति व्यक्ति निम्न आय एवं जनसंख्या की तीव्र वृद्धि एक साथ मिलकर निर्धन देशों को और अधिक गरीब बनाती है।

(iv) आर्थिक असमानता: विश्व स्तर पर आर्थिक असमानता उत्तरी गोलार्द्ध के देशों को दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से अलग करती है। दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में आर्थिक असमानता में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। अफ्रीका के सहारा मरुस्थल के दक्षिणावर्ती

(v) आप्रवासी, शरणार्थी एवं आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों की समस्याएँ: दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में मौजूद निर्धनता के कारण अधिकांश लोग अच्छे जीवन की तलाश में उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में प्रवास कर रहे हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक मतभेद उठ खड़ा हुआ है। अनेक लोगों को युद्ध, प्राकृतिक आपदा अथवा राजनीतिक उत्पीड़न के कारण अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर होना पड़ा है। ऐसे लोग यदि राष्ट्रीय सीमा के भीतर ही हैं तो उन्हें आन्तरिक रूप से विस्थापित जन कहा जाता है और यदि दूसरे देशों में हैं तो उन्हें शरणार्थी कहा जाता है। इन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

(vi) महामारियाँ: एचआईवी - एड्स, बर्ड - फ्लू एवं सार्स जैसी महामारियाँ आप्रवास, व्यवसाय, पर्यटन एवं सैन्य अभियोजनों के माध्यम से बड़ी तीव्र गति से विश्व के विभिन्न देशों में फैली हैं। इन बीमारियों के फैलाव को रोकने में किसी एक देश की असफलता का प्रभाव दूसरे देशों में होने वाले संक्रमण पर पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार सन् 2003 तक विश्व में 4 करोड़ से अधिक लोग एच. आई. वी. से संक्रमित थे। इसके अतिरिक्त आज ऐसी अनेक खतरनाक बीमारियाँ हैं जिनके बारे में कुछ अधिक जानकारी भी नहीं है। इनमें एबोला वायरस, हैन्टावायरस, कोरोना और हेपेटाइटिस - सी आदि हैं।

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प्रश्न 5. 
“सुरक्षा पर मँडराते अनेक अपारम्परिक खतरों से निपटने के लिए सैन्य संघर्ष की नहीं बल्कि आपसी सहयोग की जरूरत है।" कथन की व्याख्या कीजिए। अथवा सहयोगमूलक सुरक्षा पर विस्तार से एक लेख लिखिए।
अथवा 
राष्ट्रों के समक्ष सम्भावित समकालीन खतरों से निपटने के लिए सहयोगमूलक सुरक्षा की आवश्यकता की व्याख्या कीजिए तथा इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए उपाय सुझाइए।
उत्तर:
सुरक्षा पर मँडराते अनेक अपारम्परिक खतरों; जैसे - आतंकवाद, वैश्विक तापवृद्धि, महामारियाँ, वैश्विक निर्धनता, असमानता, शरणार्थी समस्या एवं मानवाधिकारों के हनन आदि से निपटने के लिए सैन्य संघर्ष की नहीं बल्कि आपसी सहयोग की जरूरत है। आतंकवाद से लड़ने अथवा मानवाधिकारों को बहाल करने में भले ही सेना की कोई भूमिका होती हो, लेकिन निर्धनता समाप्त करने, आप्रवासियों और शरणार्थियों की आवाजाही के प्रावधान करने, महामारियों के नियन्त्रण में तथा खनिज तेल की आपूर्ति बढ़ाने में सेना के प्रयोग से मामला और ज्यादा बिगड़ जाता है। इस प्रकार के खतरों से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की रणनीतियाँ बनाया जाना आवश्यक है।

अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की रणनीतियाँ: अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की प्रमुख रणनीतियाँ निम्नलिखित हैं।
(i) विभिन्न देशों के मध्य सहयोग: विभिन्न प्रकार के अपारम्परिक खतरों; जैसे-अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, मानवाधिकारों का हनन, महामारियाँ, निर्धनता आदि से निपटने के लिए विभिन्न देश द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, मध्यदेशीय एवं वैश्विक स्तर पर आपस में सहयोग करने की रणनीति बना सकते हैं। यह सहयोग इस बात पर निर्भर करेगा कि खतरे की प्रकृति क्या है और विभिन्न देश इससे निपटने के लिए कितने इच्छुक एवं सक्षम हैं।

(ii) संस्थागत सहयोग: सहयोगमूलक सुरक्षा में विभिन्न देशों के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर की अनेक संस्थाएँ, जैसे-अन्तर्राष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि, स्वयंसेवी संगठन रेडक्रॉस, एमनेस्टी इण्टरनेशनल, निजी संगठन, दानदाता संस्थाएँ, चर्च व धार्मिक संगठन, मजदूर संगठन, सामाजिक व विकास संगठन आदि सम्मिलित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त व्यावसायिक संगठन निगम तथा विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ इसके अन्तर्गत सम्मिलित की जा सकती हैं।

(iii) बल प्रयोग: सहयोगमूलक सुरक्षा में भी अन्तिम उपाय के रूप में बल प्रयोग किया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय उन सरकारों से निपटने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दे सकता है जो अपनी ही जनता का कत्लेआम कर रही हैं अथवा निर्धनता, बेरोजगारी, महामारी व प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रही जनता के दुःख-दर्द की उपेक्षा कर रही हैं। ऐसी स्थिति में सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा का यह जोर होगा कि बल प्रयोग सामूहिक स्वीकृति से एवं सामूहिक रूप से किया जाए न कि कोई एक देश अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय एवं स्वयंसेवी संगठनों सहित अन्य की मर्जी पर ध्यान दिये बिना बल प्रयोग का रास्ता अपनाये। समझौते के समस्त प्रयासों के विफल हो जाने पर अन्तिम उपाय के रूप में ही बल प्रयोग किया जाना चाहिए। 

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प्रश्न 6. 
भारत की सुरक्षा रणनीति' के विभिन्न घटकों का विस्तार से उल्लेख कीजिए। 
अथवा 
रणनीति के किन्हीं तीन बड़े घटकों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
भारतीय सुरक्षा रणनीति के घटक विश्व में भारत एक ऐसा देश है जो पारम्परिक तथा गैर-पारम्परिक दोनों तरह के खतरों का सामना कर रहा है। ये खतरे सीमा के अन्दर तथा बाहर दोनों तरफ से हैं। भारत की सुरक्षा राजनीति के चार बड़े घटक हैं तथा अलग-अलग समय में इन्हीं घटकों के आस-पास सुरक्षा की रणनीति बनाई गयी है। संक्षेप में, भारत की सुरक्षा रणनीति के इन चारों घटकों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) सैन्य क्षमता: पड़ोसी देशों के आक्रमण से बचने हेतु भारत को अपनी सैनिक क्षमता को और अधिक सुदृढ़ करना होगा। भारत पर पाकिस्तान ने सन् 1947 - 48, 1965, 1971 में तथा चीन ने 1962 में आक्रमण किया था। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के चारों तरफ परमाणु शक्ति-सम्पन्न देश हैं। भारत ने सन् 1974 तथा 1998 में परमाणु परीक्षण किये थे।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय नियमों तथा संस्थाओं को मजबूत करना: हमारे देश ने अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय नियमों तथा संस्थाओं को शक्तिशाली करने में अपना अपार सहयोग प्रदान किया है। प्रथम भारतीय प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा एशियाई एकता, अनौपनिवेशीकरण तथा निशस्त्रीकरण के प्रयासों का भरपूर समर्थन किया। भारत ने जहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ को अन्तिम मंच मानने पर बल दिया वहीं नवीन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की भी पुरजोर माँग उठायी। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि हमने दो गुटों की खेमेबाजी से अलग रहते हुए गुटनिरपेक्षता के रूप में विश्व के समक्ष तीसरे विकल्प को खोला।

(3) देश की आन्तरिक सुरक्षा तथा समस्याएँ: भारतीय सुरक्षा रणनीति का तीसरा महत्त्वपूर्ण घटक देश की आन्तरिक सुरक्षा समस्याओं से कारगर तरीके से निपटने की तैयारी है। नागालैण्ड, मिजोरम, पंजाब तथा कश्मीर आदि भारतीय संघ की इकाइयों में अलगाववादी संगठन सक्रिय रहे हैं। इस बात को दृष्टिगत रखते हुए हमारे देश ने राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने का भरसक प्रयास किया है। भारत ने राजनीतिक तथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था का पालन किया है। देश में सभी समुदायों के लोगों तथा जनसमूहों को अपनी शिकायतें रखने का भरपूर अवसर दिया जाता है। 

(4) गरीबी तथा अभाव से छुटकारा: हमारे देश भारत में ऐसी व्यवस्थाएँ करने का प्रयास किया है जिससे बहुसंख्यक नागरिकों को गरीबी तथा अभाव से छुटकारा मिल सके और नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता समाप्त हो सके। वैश्वीकरण तथा उदारीकरण के युग में भी अर्थव्यवस्था का इस तरह से निर्देशन जरूरी है कि गरीबी, बेरोजगारी तथा असमानता की समस्याओं को शीघ्र हल किया जा सके।
अन्त में, संक्षेप में कहा जा सकता है कि भारत की सुरक्षा नीति व्यापक स्तर पर सुरक्षा की नवीन तथा प्राचीन चुनौतियों को दृष्टिगत रखते हुए निर्मित की जा रही है।

स्रोत पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित अवतरण को ध्यान से पढ़िए और अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
मानवता की सुरक्षा के सभी पैरोकार मानते हैं कि इसका प्राथमिक लक्ष्य व्यक्तियों की संरक्षा है। बहरहाल, इस बात पर मतभेद हैं कि ठीक - ठाक ऐसे कौन से खतरे हैं जिनसे लोगों को बचाया जाना चाहिए। मानवता की सुरक्षा का संकीर्ग अर्थ लेने वाले पैरोकारों का जोर लोगों को हिंसक खतरों यानी खून-खराबे से बचाने पर होता है। 
(i) 'मानवता की सुरक्षा' की मुख्य चिन्ता कौन-से प्रकार की सुरक्षा है? 
(ii) मानवता की सुरक्षा के व्यापक अर्थ में, आप क्या शामिल करना चाहेंगे ? स्पष्ट कीजिए।
(iii) ऐसे चार खतरों की पहचान कीजिए जिनसे लोगों को बचाना चाहिए। 
उत्तर:
(i) मानवता की सुरक्षा' की मुख्य चिन्ता व्यक्तियों की संरक्षा (सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा) से है।

(ii) मानवता की सुरक्षा के व्यापक अर्थ में हम अकाल, महामारी और आपदाओं से सुरक्षा के साथ ही आर्थिक सुरक्षा तथा मानवीय गरिमा की सुरक्षा को भी शामिल करना चाहेंगे।

(iii) लोगों को इन चार खतरों से बचाना चाहिए

  1. वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग), 
  2. अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, 
  3. वैश्विक निर्धनता तथा 
  4. एचआईवी - एड्स, बर्ड फ्लू, कोरोना व सार्स जैसी महामारियाँ।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये इस अध्याय से सम्बन्धित प्रश्न:

प्रश्न 1. 
नीचे दो कथन दिए गए हैं, एक अभिकथन (A) के रूप में चिह्नित है और दूसरा कारण (R) के रूप में चिह्नित है। नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर चुनिए
अभिकथन (A) : सुरक्षा विवादित अवधारणा है। कारण (R): सुरक्षा अपनी अनुभूति में बहुआयामी है। कूट: 
(अ) (A) और (R) दोनों सही हैं और (R), (A) की सही व्याख्या है। 
(ब) (A) और (R) दोनों सही हैं लेकिन (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है। 
(स) (A) सही है, लेकिन (R) गलत है।
(द) (A) गलत है, लेकिन (R) सही है। 
उत्तर:
(अ) (A) और (R) दोनों सही हैं और (R), (A) की सही व्याख्या है। 

RBSE Class 12 Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

प्रश्न 2. 
निम्नलिखित में से कौन - सा कथन गलत है ?
(अ) सामूहिक सुरक्षा यथापूर्व स्थिति की रक्षा का लक्ष्य करती है। 
(ब) सामूहिक सुरक्षा सांस्थानिक रूपरेखा में कार्य करती है। 
(स) गल्फ संकट 1990-91 का विसरण सामूहिक सुरक्षा का सफल प्रयोग है।
(द) सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन की नीति सामान्य परिस्थितियों में संगत करती है। 
उत्तर:
(द) सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन की नीति सामान्य परिस्थितियों में संगत करती है। 

प्रश्न 3. 
शस्त्र नियन्त्रण के बारे में निम्नलिखित कथनों पर ध्यान कीजिए
(1) इसका अर्थ सुरक्षा द्विविधा निर्मित करने से हैं। 
(2) सिद्धान्ततः यह रक्षात्मक कूटनीति है। 
(3) यह शास्त्र दृष्टिकोण के बगैर की शान्ति की बात करता है। 
(4) यह पक्षों के बीच पारस्परिक सुरक्षा और अति - स्थायित्व का लक्ष्य करता है। नीचे दिए गए कूट में से सही कथनों का चयन कीजिए
(अ) (2), (3) और (4) 
(ब) (2) और (4) 
(स) (2) और (3) 
(द) (1), (3) और (4) 
उत्तर:
(ब) (2) और (4) 

प्रश्न 4. 
निम्न में से कौन-सा न्याय युद्ध का एक मापदण्ड नहीं है?
(अ) सम्प्रभु राजकुमार द्वारा अधिकृत होना
(ब) आनुपातिक होना 
(स) न्यायसंगत उद्देश्य के लिए किया जाना
(द) अघोषित होना। 
उत्तर:
(द) अघोषित होना। 

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प्रश्न 5. 
निम्नलिखित में से कौन शक्ति सन्तुलन की तकनीक नहीं है?
(अ) हथियारों को जमा करना
(ब) राज्य क्षेत्र का अभिग्रहण 
(स) अनुनय की विधियाँ
(द) बफर राज्यों का निर्माण। 
उत्तर:
(द) बफर राज्यों का निर्माण। 

प्रश्न 6. 
निम्नलिखित में से क्या राष्ट्रीय शक्ति के उपयोग की तकनीक नहीं है ?
(अ) कूटनीति
(ब) आर्थिक शासनकला 
(स) सैन्य शक्ति का उपयोग
(द) विश्व संगठन में शामिल होना।
उत्तर:
(ब) आर्थिक शासनकला 

प्रश्न 7. 
निम्नलिखित में से किसे शक्ति का प्रतीक माना जा सकता है ?
(अ) भोजन
(ब) परमाणु हथियार 
(स) औद्योगिक क्षमता
(द) सैन्य तैयारी। 
उत्तर:
(स) औद्योगिक क्षमता

प्रश्न 8. 
निम्नलिखित में से कौन - सा राष्ट्रीय शक्ति का एक रूप नहीं है?
(अ) सामाजिक शक्ति
(ब) सैनिक शक्ति 
(स) मनोवैज्ञानिक शक्ति
(द) आर्थिक शक्ति। 
उत्तर:
(अ) सामाजिक शक्ति

प्रश्न 9. 
भारत - चीन युद्ध हुआ
(अ) 1961 में
(ब) 1962 में 
(स) 1948 में
(द) 1949 में। 
उत्तर:
(ब) 1962 में 

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प्रश्न 10. 
शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त का लक्ष्य क्या है?
(अ) युद्ध
(ब) यथा पूर्व स्थिति 
(स) असन्तुलन
(द) सन्तुलन। 
उत्तर:
(ब) यथा पूर्व स्थिति 

Prasanna
Last Updated on Jan. 16, 2024, 9:21 a.m.
Published Jan. 15, 2024