RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

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RBSE Class 12 Physics Chapter 14 Notes अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

→ अर्द्धचालक-वे पदार्थ जिनकी चालकता सुचालक एवं कुचालक के मध्य होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं। बैण्ड सिद्धान्त के अनुसार वर्जित बैण्ड की ऊर्जा 2eV से कम होती है। इनकी प्रतिरोधकता 10-1 Ω m से 104 Ω m तक होती है। अर्द्धचालक की चालकता गर्म करने पर या अशुद्धि मिलाने पर बढ़ जाती है।

→ अपद्रव्यी अर्द्धचालक

  • n-प्रकार का-जब अर्द्धचालक में कोई पंचसंयोजी अशुद्धि जैसे-आर्सेनिक, एण्टिमनी आदि मिलाई जाती है तो n-प्रकार का अर्द्धचालक बनता है। इस प्रकार के अर्द्धचालक में बहुसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं।
  • p-प्रकार का-जब अर्द्धचालक में कोई त्रि-संयोजी (trivalent) - अशुद्धि जैसे-ऐलुमिनियम, बोरॉन आदि मिलाई जाती है तो p-प्रकार का अर्द्धचालक बनता है। इसमें बहुसंख्यक आवेश वाहक होल (holes) होते n-प्रकार के अर्द्ध चालक में ne >> nh, जबकि p-प्रकार के अर्द्धचालक में nh >> ne होता है। एवं सभी दशाओं में nenh = ni2

→ p- सन्धि-जब p- व n-प्रकार के अर्द्धचालक क्रिस्टलों को इस प्रकार मिलाते हैं कि सन्धि तल पर दोनों के परमाणु एक-दूसरे के सम्पर्क में आ जायें तो ऐसा होने पर सन्धि तल के दोनों ओर एक ऐसी परत बन जाती है जिसमें आवेश वाहकों का घनत्व शेष भागों की अपेक्षा कम होता है। इस परत को 'अवक्षय परत' कहते हैं और इस परत के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर को 'सम्पर्क विभव' कहते हैं।

RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ 

→ अर्द्धचालक डायोड-p-n सन्धि को अग्र अभिनत करने पर सन्धि तल सुचालक की भाँति कार्य करता है और उत्क्रम अभिनत करने पर कुचालक की भाँति व्यवहार करता है। यह व्यवहार डायोड वाल्व की तरह है। इस प्रकार p-n सन्धि को ही अर्द्धचालक डायोड कहते हैं।

→ डेसीमल तथा बाइनरी अंकन पद्धति

  • डेसीमल पद्धति में दस अंक 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 व 9 होते हैं, इसलिए इस पद्धति को डेसीमल पद्धति कहते हैं और इस पद्धति में आधार 10 होता है।
  • बाइनरी पद्धति में किसी संख्या को व्यक्त करने के लिए केवल दो अंक 0 व 1 की आवश्यकता होती है, इसलिए इस पद्धति में आधार 2 होता है।
  • बाइनरी संख्या का प्रत्येक अंक 'बिट' (bit) कहलाता है। बाइनरी संख्या में दायीं ओर से पहला अंक (L.S.B.) (Least Significant Bit) तथा अन्तिम अंक M.S.B. (Most Significant Bit) कहलाता है।
  • डेसीमल संख्या को उसके तुल्य बाइनरी संख्या में तथा बाइनरी संख्या को उसके तुल्य डेसीमल संख्या में बदला जा सकता है।

→ डिजिटल परिपथ-कोई डिजिटल परिपथ बाइनरी ढंग से कार्य करता है अर्थात् केवल दो अवस्थाओं में कार्य करता है। इन दो अवस्थाओं को बाइनरी पद्धति के दो अंकों 0 तथा 1 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

→ तापीय साम्य में अर्द्धचालकों में इलेक्ट्रॉन तथा होलों की सान्द्रता
nenh = ni2

→ अर्द्धचालकों में विद्युत धारा
I = Ae(nhvh + neve)

→ अर्द्धचालक की प्रतिरोधकता
ρ = \frac{\mathrm{E}}{e\left(n_h v_h+n_e v_e\right)}

→ अर्द्धचालक की विशिष्ट चालकता (σ)
σ = e(nhh + neμe)

→ आवेशवाहकों की गतिशीलता
μ = \frac{v}{E}

→ डायोड का गतिक प्रतिरोध
rd = \frac{\Delta \mathrm{V}}{\Delta i}Ω

→ विभव प्राचीर VB = \frac{k \mathrm{~T}}{e}loge \left(\frac{\mathrm{N}_{\mathrm{A}} \mathrm{N}_{\mathrm{D}}}{n_i^2}\right)

→ बोल्ट्जमैन डायोड समीकरण
I = I0[eeV/nkT - 1]

RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

→ डायोड के लिए
V = Vd + R
V. =Vi - I
R = \frac{\mathrm{V}_i-\mathrm{V}_z}{\mathrm{R}}

→ जेनर डायोड के लिए
Vz = VL - RI

→ संधिरोधिका (Junction-periphery):
p-n संधि के दोनों तरफ का वह भाग जिसमें गतिहीन आयन रहते हैं। इनके कारण उत्पन्न हुए विभवान्तर को निरोधी विभव कहते हैं।

→ जानु वोल्टता (Knee voltage):
बैटरी का वह विभव जिस पर अग्र धारा में तेजी से वृद्धि प्रारम्भ होती है, जानु वोल्टता कहलाती है।

→ उर्मिका गुणांक (Ripple factor):
किसी दिष्टकारी (rectifier) की निर्गत वोल्टता नियत न होकर असमान रूप से परिवर्तित होती है। दिष्ट धारा के साथ कुछ प्रत्यावर्ती धारा भी मिलती है। इन प्रत्यावर्ती धारा के अवांछित अवयवों को उर्मिका कहते हैं। उर्मिका गुणांक को प्रत्यावर्ती घटक के वर्ग माध्य मूल मान तथा निर्गत दिष्ट वोल्टता के अनुपात से ज्ञात करते हैं।

→ फोटोलिथोग्राफी (Photolithorgraphy):
सिलिकान चिप के विभिन्न भागों के पृथक्करण के लिए कुचालक SiO2 निर्माण हेतु ऑक्सीकरण किया जाता है। इसके पश्चात् SiO2 परत में अशुद्धियों के विसरण के लिए छिद्र बनाए जाते हैं। इस प्रक्रिया को फोटोलिथोग्राफी कहते हैं।

→ क्रिस्टल जालक (Crystal lattice):
आकाश में बिन्दुओं की एक नियमित आवर्ती व्यवस्था जिसमें प्रत्येक बिन्दु से यदि आधारक सम्बद्ध कर दिया जाए तो क्रिस्टलीय संरचना जो प्राप्त होती है वह जालक कहलाती है।

→ आधारक (Basis):
क्रिस्टल संरचना में प्रत्येक जालक बिन्दु से जुड़ा हुआ परमाणु या अणु क्रिस्टल संरचना का आधारक कहलाता है।

→ द्रव क्रिस्टल (liquid crystal):
कुछ कार्बनिक क्रिस्टलीय ठोस गर्म करने पर निश्चित ताप परास में द्रव जैसी अवस्था प्राप्त कर लेते हैं। परन्तु इनके अणु एक निश्चित दिशा में अभिविन्यस्त रहते हैं जिससे उनमें विषम दैशिक गुण बना रहता है ऐसे पदार्थों को द्रव क्रिस्टल कहते हैं।

RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

→ फर्मी ऊर्जा (Fermi energy):
OK पर किसी धातु के मुक्त इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम सम्भव गतिज ऊर्जा को फर्मी ऊर्जा कहते हैं।

→ निर्वात नलिका (Vacuum tube):
वे नलिकाएँ जिनमें इलेक्ट्रॉन (तापायन) निर्वात में गमन करते हैं निर्वात नलिकाएँ कहलाती हैं। प्रत्येक निर्वात नलिका में कम-से-कम दो इलेक्ट्रोड होते हैं। इनमें प्रयुक्त इलेक्ट्रोडों की संख्या के आधार पर इन्हें डायोड, ट्रायोड, टेट्रोड, पेन्टोड इत्यादि नाम से जाना जाता है।

→ फिल्टर परिपथ (Filter circuit):
फिल्टर परिपथ दिष्टकारी से निर्गत वोल्टेज सिगनल में से प्रत्यावर्ती उच्चवाचन घटकों (ripples) को पृथक कर देता है।

Prasanna
Last Updated on Nov. 22, 2023, 5:22 p.m.
Published Nov. 21, 2023