RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 14 संग्रहालयों में वस्त्र संरक्षण

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RBSE Class 12 Home Science Chapter 14 Notes संग्रहालयों में वस्त्र संरक्षण

→ भारत में संग्रहालय का उद्भव तथा अर्थ
भारत में संग्रहालय की प्रथा का उद्भव पश्चिम से हुआ जिसका लक्ष्य पुराकाल की वस्तुओं का संग्रह करना था। भारतीय संस्कृति में खंडित वस्तुओं के संग्रहालय स्थापित करने की कोई प्रथा न थी।
संग्रहालय शब्दं यूनानी विचारधारा से लिया गया है जिसका अर्थ है-कला मंदिर अर्थात् सीखने और अध्ययन का एक पवित्र स्थान। 19वीं शताब्दी के बाद भारत की कला और संस्कृति का ज्ञान लोगों तक पहुंचाने के लिए संग्रहालयों की स्थापना हुई। 

→ संग्रहालय का महत्व

  • संग्रहालय विभिन्न पुरानी और नयी संस्कृतियों/परम्पराओं की कला वस्तुएँ, मिट्टी के बर्तन, कपड़े और विभिन्न प्रकार के पदार्थ इकट्ठा करते हैं, जो अक्सर कीमती और दुर्लभ होते हैं।
  • संग्रहालय की वस्तुओं में से कुछ गैलरी अथवा अस्थायी प्रदर्शनियों में प्रदर्शित की जाती हैं, जबकि अन्य भंडार में रखी जाती हैं।
  • ये अच्छी शोध की गई जानकारी के प्रकाशनों को तैयार करते हैं तथा विद्वानों को अध्ययन हेतु वस्तुएँ उपलब्ध कराते हैं।
  • संग्रहालय में स्थायी प्रदर्शनी रहती है तथा ये जनसाधारण की शिक्षा और मनोरंजन के लिए खुले रहते हैं।
  • संग्रहालयों में संचय किए गए वस्त्र अपनी ऐतिहासिक अभिरुचि, अपने सौंदर्य बोध और अपने सांस्कृतिक महत्व के कारण मूल्यवान होते हैं। 

RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 14 संग्रहालयों में वस्त्र संरक्षण 

→ संग्रहालय के उद्देश्य
संग्रहालय निम्नलिखित अनेक उद्देश्यों के लिए संग्रहित की गई वस्तुएँ रखते हैं

  • शिक्षा,
  • ऐतिहासिक प्रमाणों के अभिलेख,
  • वस्तुओं के प्रकार्यों का प्रदर्शन
  • प्रदर्शनी अथवा प्रदर्शन
  • संरक्षण।

→ मूलभूत संकल्पनाएँ
(1) संरक्षण-संरक्षण मुख्य रूप से किसी वस्तु के जीवन काल को दीर्घ बनाने पर लक्षित एक संक्रिया है और यह उसके अल्पकालिक अथवा दीर्घकालिक प्राकृतिक या आकस्मिक ह्रास को रोकने में परिणत होती है।

संरक्षण के प्रकार-सरंक्षण दो प्रकार का होता है। यथा

  • निरोधक संरक्षण-निरोधक संरक्षण से आशय है-संग्रहालय में संरक्षित की गई वस्तुओं की देखभाल के लिए एक सुरक्षित पर्यावरण सृजित करना तथा उसे बनाए रखना, संग्रहों की नियमित रूप से सावधानीपूर्वक जांच करना तथा ह्रास को रोकना।
  • उपचारी/सुधारक हस्तक्षेपीय संरक्षण-उपचारी/हस्तक्षेपीय संरक्षण का तात्पर्य संरक्षणकर्ता के ऐसे किसी भी कार्य से है, जिसमें संरक्षणकर्ता और सांस्कृतिक सामग्री के बीच परस्पर सम्पर्क रहे।
  • सरल शब्दों में इसका अर्थ है-वस्तु में पहले से उपस्थित दोषों के उपचार हेतु कार्य करना, आगे होने वाली क्षति से बचाना तथा इसे अच्छी स्थिति में बनाए रखना व पुनः स्थापित करना।

(2) वस्त्र संरक्षण-वस्त्र संरक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा वस्त्रों की देखभाल और रखरखाव किया जाता है ताकि भविष्य में होने वाली क्षति से उन्हें सुरक्षित रखा जा सके।

(3) संरक्षक-जो व्यक्ति संग्रहालयों की शिल्पकृतियों और वस्तुओं को सुरक्षित रखता है, वह संरक्षक कहलाता है।

→ वस्त्र-विकृति के कारक 
वस्त्रों के क्षतिग्रस्त होने के कारकों को मोटे रूप से दो भागों में बाँटा जाता है-(अ) प्राकृतिक कारक और (ब) मानव निर्मित कारक।
(अ) प्राकृतिक कारक-कार्बनिक प्रकृति के होने के कारण वस्त्र

  • प्रकाश
  • ताप
  • आर्द्रता
  • नाशक जीवों तथा
  • प्रदूषकों द्वारा क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। यथा

(1) प्रकाश:
प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है जो वस्त्रों का रंग फीका कर सकता है और वस्त्रों के रेशों का रासायनिक और भौतिक ह्रास कर सकता है।
प्रकाश के कारण क्षति धीरे-धीरे होती है। रंगों का धूमिल पड़ना, प्रकाश से होने वाली क्षति के आसानी से पाए जाने वाले लक्षण हैं । इसमें पहले वस्तु अपना लचीलापन खोती है, फिर कमजोर पड़ती है, भंगुर हो जाती है और अंत में फट जाती है। इस प्रक्रिया में वस्त्रों का पीला या भूरा पड़ जाना उनकी खराब अवस्था का सूचक है।
प्रकाश से क्षति को रोकना

  • वस्तु पर पड़ने वाले प्रकाश की तीव्रता को न्यूनतम करके,
  • उन्हें कम से कम प्रकाश में रखने तथा
  • प्रकाश से प्रकाश रासायनिकी सक्रिय विकिरण को हटाकर वस्त्रों को प्रकाश से होने वाली क्षति से रोका जाता है।

(2) नमी और ऊष्मा

  • उच्च और निम्न आर्द्रता में बदलाव, वस्त्रों के निरन्तर फूलने और सिकुड़ने का कारण बनता है।
  • नमी, सूक्ष्म जीवों की वृद्धि का आधार होती है जो वस्त्र को संदूषित करती है। दूसरी तरफ नमी की मात्रा | की कमी से वस्त्र भंगुर, भुरभुरे हो जाते हैं।

नमी और ऊष्मा से क्षति को रोकना

  • वायु की आर्द्रता और ताप को नियंत्रित रखें।
  • हिमांक से नीचे का ताप न आने दें।
  • वस्त्रों को शुष्क और गरम ऊपरी मंजिलों और तहखानों में भंडारित न करें।
  • भंडारण बक्सों तथा आलमारियों में ज्यादा सामान न भर कर उनमें हवा आने दें।,
  • संग्रहालयों में आर्द्रता स्तरों का रिकार्ड रखें।

(3) नाशक जीव-नाशक जीव वस्त्रों के लिए अन्य प्रमुख खतरा हैं। इनमें अधिकतर पाए जाने वाले मोथ (शलभ) कार्पेट बीटल, सिलवर फिश और चूहे होते हैं। इन कीटों का खतरा, उष्णकटिबंधीय जलवायु में शीतोष्ण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक होता है।

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→ नाशक जीवों से होने वाली क्षति की रोकथाम

  • संग्रहालय का वातावरण ठंडा और शुष्क रखें।
  • स्थानों को अंदर-बाहर से साफ-सुथरा और कचरा मुक्त रखें।
  • भंडार और प्रदर्शन के क्षेत्रों को अलग-अलग रखें।
  • कीटों के आक्रमण वाले सभी शीत, गर्म और अंधेरे वाले स्थलों की नियमित जाँच करें।

(4) पर्यावरणीय कारक (फफूंदी, धूल आदि)
(i) फफूंदी-फफूंदी हल्के गरम, नम वातावरण में लगती है, जहाँ वायु का आवागमन कम होता है। यदि वस्त्रों पर रोएंदार वृद्धि या बिखरे हुए धब्बे हों या हवा में एक फफूंदीदार गंध हो तो यह उसका सूचक है कि यह क्षति फफूंदी के कारण हुई है।
फफूंदी से होने वाली क्षति को रोकना

  • आपेक्षिक आर्द्रता को 65 प्रतिशत से कम और ताप को 18°C से कम रखिये।
  • वायु का परिचालन सुनिश्चित करें।
  • फफूंदी लगे वस्त्रों को दूसरी वस्तुओं के पास न रखें।

(ii) धूल-धूल वायु में उपस्थित महीन कणकीय प्रदूषक है, जिसमें अनेक पदार्थ मिले होते हैं। जब वस्त्रों में जमी धूल समय के साथ रेशों में चली जाती है तो इसे हटाना असंभव सा हो जाता है तथा धूल में पोषण मिलने से नाशक कीट उसमें आश्रय ले लेता है।
धूल से होने वाली क्षति से रोकथाम

  • धूलरोधी डिजाइन की गुणवत्ता वाली मंजूषाओं का उपयोग करें।
  • खुले में प्रदर्शन न करें और खुले में प्रदर्शित सभी वस्त्रों को हल्के वैक्यूम क्लीनर से साफ करें।
  • मंजूषाओं या बक्सों से बाहर के वस्त्रों को धूल बचाने वाली शीटों में लपेटकर या ढककर रखें। लपेटने वाली शीटें ऐसी होनी चाहिए, जिनसे हवा आर-पार जा सके।
  • वस्त्रों को धूल भरी सतहों के सम्पर्क में न आने दें। 

(ब) मानव जनित कारक-मनुष्यों द्वारा वस्त्रों को क्षति पहुँचाने वाले अनेक कारक हैं। यथा

  • वस्त्रों को गलत तरीके से उपयोग में लेना; 
  • वस्त्रों की उपेक्षा करना; 
  • वस्त्रों का खराब भंडारण;
  • दुर्घटनाएँ। - वस्त्रों को सावधानीपूर्वक हस्तरण, उनको पैक करने तथा भंडारित करने के उपयुक्त तरीके अपनाकर उनकी क्षति से बचा जा सकता है।

→ वस्त्रों का भंडारण
प्रतिकूल भंडारण परिस्थितियाँ संग्रह की गई सभी वस्तुओं को प्रभावित करती हैं, लेकिन एक अच्छा भंडारण पर्यावरण भौतिक क्षति को रोकता है और रासायनिक विकृति को धीमा करता है। इससे वस्त्रों का जीवनकाल बहुत बढ़ जाता है।
वस्त्रों की धरोहर सामग्री को साइज और आवश्यकता के अनुसार भंडारित किया जाता है, जैसे-लिपटा हुआ भंडारण, बाक्स भंडारण आदि।

→ वस्त्रों के प्रदर्शन के लिए आदर्श स्थितियाँ

  • वस्त्रों को प्रदूषकों, धूल, कीटों और धुएँ से बचाना चाहिए।
  • वस्त्र जब ऐसे कमरे में प्रदर्शित किए जाते हैं, जिसमें अग्निकोष्ठ हो या जहाँ धूम्रपान की अनुमाति हो, तो वस्त्रों को धुएँ से बचाव वाले-सील किए गए फ्रेम या सील किए जा सकने वाले बक्सों में रखना चाहिए।

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→ जीविका (करियर) के लिए तैयारी 
संरक्षणकर्ता बनने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता कला बोध की है। व्यक्ति को कला के प्रति लगाव होना चाहिए। उसमें कला की जटिलताओं का मूल्यांकन करने एवं समझने का रुझान होना चाहिए। इसके साथ ही साथ

  • उसमें आधारभूत विज्ञान विषयों का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
  • उसमें भारतीय के साथ विश्वस्तरीय वस्त्र निर्माण के इतिहास, तकनीकों, प्रक्रियाओं और संरक्षण की विधियों का ज्ञान होना चाहिए।
  • उसमें कला संरक्षण की उन्नत प्रौद्योगिकियों का ज्ञान होना चाहिए।
  • उसमें कला का ज्ञान तथा सौंदर्यमूलक मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए।
  • उसमें हस्त-दक्षता, प्रबल संप्रेषण कौशल और अकेले अथवा टीम के पर्यावरण में कार्य करने की योग्यता होनी चाहिए।
  • वह कम्प्यूटर तथा कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर पद्धतियों का उपयोग जानता हो।
  • उसमें समस्या समाधान और विश्लेषणात्मक कौशल हो।
  • विभिन्न संस्थान कला संरक्षण विषयों में कम अवधि के, डिग्री वाले पाठ्यक्रम उपलब्ध कराते हैं। बहुत से संग्रहालय और कलादीर्घाएँ व्यवसायियों को सेवाकालीन प्रशिक्षण देते हैं, वहाँ विद्यार्थियों को वृत्ति भी दी जाती है।

→ कार्यक्षेत्र
कोई भी व्यक्ति कला संरक्षण क्षेत्र में डिग्री या कम अवधि के डिप्लोमा ग्रहण कर लेता है तो उसके पास राजकीय नौकरी या निजी संग्रहालयों या कला दीर्घाओं में कार्य करने के विकल्प होते हैं।
संरक्षण का पाठ्यक्रम पूरा करने के पश्चात् बहुत से अवसर मिलते हैं

  • संरक्षण सहायक
  • संग्रहालयाध्यक्ष ।
Prasanna
Last Updated on July 15, 2022, 2:43 p.m.
Published July 15, 2022