RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1. 
क्लासिकी प्रबन्ध सिद्धान्त आधारित है-
(अ) श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण पर 
(ब) मानव एवं मशीन के बीच पारस्परिक सम्बन्ध पर 
(स) लोगों के प्रबन्धन पर
(द) उपर्युक्त सभी पर। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी पर।

प्रश्न 2. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता हैं-
(अ) एफ.डब्ल्यू. टेलर 
(ब) हेनरी फेयोल
(स) फ्रेंक गिलबर्थ 
(द) पीटर एफ. ड्रकर। 
उत्तर:
(अ) एफ.डब्ल्यू. टेलर

प्रश्न 3. 
हेनरी फेयोल द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक का नाम है-
(अ) प्रिन्सिपल ऑफ साईन्टिफिक मैनेजमेन्ट 
(ब) जनरल एण्ड इंडस्ट्रीयल मैनेजमेंट 
(स) ऑरगेनाइजेशनल बिहेवियर
(द) शाप मैनेजमेन्ट। 
उत्तर:
(ब) जनरल एण्ड इंडस्ट्रीयल मैनेजमेंट

प्रश्न 4. 
प्रबन्ध के सिद्धान्त हैं-
(अ) सार्वभौमिक 
(ब) सार्वभौमिक नहीं
(स) परिस्थितियों पर आधारित
(द) परिस्थितियों पर आधारित नहीं। 
उत्तर:
(अ) सार्वभौमिक 

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प्रश्न 5. 
प्रबन्ध के सामान्य सिद्धान्तों के जन्मदाता हैं-
(अ) फ्लेमिंग 
(ब) वैवनार्ड
(स) पीटर एफ. ड्रकर 
(द) हेनरी फेयोल। 
उत्तर:
(द) हेनरी फेयोल।

प्रश्न 6. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों का विकास हुआ है-
(अ) प्रबन्धकों के अवलोकन से 
(ब) परीक्षण के आधार पर 
(स) व्यक्तिगत अनुभव से
(द) उपर्युक्त सभी से। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी से।

प्रश्न 7. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति है-
(अ) सामान्य मार्गदर्शन का कार्य करना 
(ब) सर्वप्रयुक्त 
(स) व्यवहार एवं शोध द्वारा निर्मित
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 8. 
'साइंटीफिक मैनेजमेन्ट' शब्द की रचना की-
(अ) टेलर ने 
(ब) गैन्ट ने
(स) गिलबर्थ ने 
(द) हेनरी फेयोल ने। 
उत्तर:
(अ) टेलर ने

प्रश्न 9. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्त हैं-
(अ) विज्ञान पद्धति न कि अंगूठा टेक नियम 
(ब) सहयोग न कि व्यक्तिवाद 
(स) सहयोग न कि टकराव
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10. 
निम्न में से कौनसा कथन 'कार्य-विभाजन के सिद्धांत' का सर्वश्रेष्ठ वर्णन करता है-
(अ) कार्य को छोटे-छोटे भागों में बाँटना चाहिए। 
(ब) श्रम का विभाजन करना चाहिए। 
(स) संसाधनों को कार्यों में विभाजित करना चाहिए। 
(द) इससे विशिष्टीकरण होता है।
उत्तर:
(अ) कार्य को छोटे-छोटे भागों में बाँटना चाहिए।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
प्रबन्ध सिद्धान्तों की कोई एक प्रकृति बताइये।
अथवा 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति से सम्बन्धित किन्हीं दो बिन्दुओं को लिखिए। 
उत्तर:

  • प्रबन्ध के सिद्धान्त सभी प्रकार के संगठनों में प्रयुक्त किये जा सकते हैं। 
  • प्रबन्ध के सिद्धान्त कार्य के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं।

प्रश्न 2. 
हेनरी फेयोल एवं एफ. डब्ल्यू. टेलर द्वारा प्रबन्ध के योगदान में 'व्यक्तित्व' के आधार पर क्या अन्तर है?
अथवा 
प्रबन्ध सिद्धान्तों के प्रतिपादन में व्यक्तित्व के आधार पर हेनरी फेयोल और एफ. डब्ल्यू. टेलर में क्या अन्तर है?
उत्तर:
हेनरी फेयोल जहाँ क्रियान्वयक थे वहीं एफ. डब्ल्यू. टेलर को वैज्ञानिक माना जाता है।

प्रश्न 3. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध में 'गति अध्ययन' कैसे किया जाता है?
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध में 'गति अध्ययन' किसी विशेष प्रकार के कार्य को करने के लिए विभिन्न मुद्राओं की गति में लगने वाले समय का अध्ययन करके किया जाता है।

प्रश्न 4. 
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित 'अनुशासन के सिद्धान्त' को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हेनरी फेयोल के अनुसार अनुशासन के लिए प्रत्येक स्तर पर अच्छा पर्यावेक्ष, स्पष्ट एवं संतोषजनक समझौते तथा दंड का न्यायोचित विधान होना चाहिए।

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प्रश्न 5. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध में 'थकान अध्ययन' कैसे किया जाता है?
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध में थकान अध्ययन किसी कार्य को पूरा करने के लिए आराम के अंतराल की अवधि एवं बारंबारता का निर्धारण करता है।

प्रश्न 6. 
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित 'पहल क्षमता' के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फेयोल के 'पहल क्षमता' सिद्धान्त के अनुसार कर्मचारियों को सुधार के लिए अपनी योजनाओं के विकास एवं उनको लागू करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए।

प्रश्न 7. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्त के रूप में 'सहयोग, न कि व्यक्तिवाद' को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिवाद के स्थान पर श्रम एवं प्रबन्ध में पूर्ण रूप से सहयोग होना चाहिए। दोनों को ही यह समझना चाहिए कि दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता है। यह सहयोग, न कि टकराव के सिद्धान्त का विस्तार है।

प्रश्न 8. 
एफ. डब्ल्यू. टेलर के शब्दों में वैज्ञानिक प्रबन्ध' की परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
"वैज्ञानिक प्रबन्ध यह जानने की कला है कि आप श्रमिकों से क्या कराना चाहते हैं और फिर यह देखना कि वे उसको सर्वोत्तम ढंग से एवं कम से कम लागत पर करें।"

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प्रश्न 9. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त निर्णय लेने एवं व्यवहार के लिए व्यापक एवं सामान्य मार्गदर्शक होते हैं। ये कारण एवं परिणाम में सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं।

प्रश्न 10. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध के किसी एक सिद्धान्त का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
'सहयोग, न कि टकराव'। यह सिद्धान्त बतलाता है कि प्रबन्ध एवं श्रमिकों के बीच पूरी तरह से सहयोग होना चाहिए। दोनों को समझना चाहिए कि दोनों का ही महत्त्व है।

प्रश्न 11. 
एफ. डब्ल्यू. टेलर द्वारा प्रतिपादित मानसिक क्रान्ति (Mental Revolution) का अर्थ बतलाइये।
उत्तर:
मानसिक क्रान्ति का अर्थ है प्रबन्धक एवं श्रमिक दोनों की सोच में बदलाव आना चाहिए। प्रबन्धकों को चाहिए कि वे कर्मचारियों के हितों को सदैव ध्यान में रखें तथा श्रमिकों व कर्मचारियों को चाहिये कि वे कम्पनी की भलाई के लिए परिश्रम करें व परिवर्तन को अपनायें।

प्रश्न 12. 
"प्रबन्धकीय सिद्धान्त प्रबन्धकीय कार्यकुशलता में वृद्धि करते हैं।" कैसे?
उत्तर:
प्रबन्धक प्रबन्ध के सिद्धान्तों के आधार पर संगठन की विभिन्न समस्याओं को ठीक ढंग से समझ लेते हैं और उनका उचित समाधान तलाश लेते हैं। 

प्रश्न 13. 
यह क्यों कहा जाता है कि प्रबन्ध के सिद्धान्त सर्वप्रयुक्त होते हैं ?
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त सभी व्यावसायिक एवं गैर-व्यावसायिक संगठनों, छोटे एवं बड़े, सार्वजनिक तथा निजी, विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र में उपयोग में लाये जाते हैं, किन्तु सम्पूर्ण परिस्थितियों को ध्यान में रख कर।

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प्रश्न 14. 
'प्रबन्ध के सिद्धान्त' क्यों महत्त्वपूर्ण होते हैं ? किसी एक कारण का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त प्रबन्धकों के निर्णय लेने एवं उनको लागू करने में मार्गदर्शन करते हैं। वे इन करने में लगा सकते हैं।

प्रश्न 15. 
कोई एक कारण बतलाइये कि प्रबन्ध के सिद्धान्त सभी समस्याओं के लिए एक तैयार समाधान क्यों नहीं करते हैं?
उत्तर:
क्योंकि प्रबन्ध का सिद्धान्त मानव से होता है जो गतिशील होता है, जिसमें कुछ भी अन्तिम नहीं कहा जा सकता है। सिद्धान्तों का उपयोग प्रबन्धक के अनुभव, कुशलता व निर्णय शक्ति पर निर्भर करता है।

प्रश्न 16. 
गति अध्ययन (Motion Study) के उद्देश्य का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:

  • अनावश्यक चेष्टाओं को समाप्त करना।
  • थकान को कम करना एवं शक्ति व समय की बचत करना। 
  • विभिन्न मुद्राओं की गति, जो किसी विशेष प्रकार का कार्य करने के लिए की जाती है, का अध्ययन करना।

प्रश्न 17. 
कोई एक कारण दीजिये कि प्रबन्ध के सिद्धान्त सुदृढ़ निर्देशन (बेलोच) क्यों नहीं हैं ?
अथवा 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों को लोचपूर्ण क्यों कहा जाता है ?
अथवा 
बताइये कि प्रबन्ध के सिद्धान्त किस प्रकार लचीले होते हैं?
उत्तर:
प्रबंध के सिद्धांत बेलोच नहीं होते हैं क्योंकि इनका संबंध मानवीय व्यवहार से है जिनको परिस्थिति की माँग के अनुसार उपयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 18. 
पहल-क्षमता का सिद्धान्त (Principle of Initiative) क्या संकेत देता है ?
उत्तर:
कर्मचारियों को कार्य सम्बन्धी योजना पर सोचने, प्रस्तावित करने एवं उसको कार्यरूप देने की स्वतन्त्रता दी जाये ताकि उनकी न केवल कार्यक्षमता में वृद्धि हो अपितु उनका उत्साह भी बना रहे।

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प्रश्न 19. 
सोपान श्रृंखला के सिद्धान्त में फेयोल ने 'समतल सम्पर्क' की अवधारणा क्यों प्रस्तावित की?
उत्तर:
सोपान श्रृंखला में एक लम्बी प्रक्रिया बनती है। यदि कुछ महत्त्वपूर्ण सूचना भेजनी हो तो इसमें देरी हो जाती है। इसलिए अनावश्यक एवं आपात स्थिति में श्रृंखला को छोटा कर समतल सम्पर्क के द्वारा सम्पर्क साधने की अवधारणा फेयोल ने प्रस्तावित की है।

प्रश्न 20. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
उत्तर:
प्रबन्ध के क्षेत्र में ज्ञान का व्यवस्थित अध्ययन करने और उसे व्यवहार में अपनाने में कुछ मार्गदर्शक बातों को ध्यान में रखा जाता है जो अनुभव एवं शोध के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। जब ये बातें समय, अनुभव एवं निरीक्षण की कसौटी पर खरी उतरती हैं तो वे सिद्धान्त के रूप में स्वीकार कर ली जाती हैं।

प्रश्न 21.
कार्य पद्धति अध्ययन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
कार्य पद्धति अध्ययन का मुख्य उद्देश्य कार्य को करने की सर्वश्रेष्ठ पद्धति को ढूँढ़ना है। यह प्रक्रिया उत्पादन लागत को न्यूनतम रखती है एवं ग्राहक को अधिकतम गुणवत्ता एवं संतुष्टि प्रदान करती है।

प्रश्न 22. 
मोहन, जो एक प्रबन्धक है, अपने अधीनस्थों को व्यवस्थित होने हेतु समय दिये बिना यह आशा करता है कि अधीनस्थ नये वातावरण एवं कार्य की दशायें अपनाएँ। प्रबन्ध के किस सिद्धान्त की अवहेलना हो रही है तथा क्यों?
उत्तर:
यहाँ प्रबन्ध के 'व्यवस्था सिद्धान्त' की अवहेलना हुई है। इसका कारण यह है कि अधीनस्थों को नये वातावरण एवं कार्य की दशाओं, वस्तुओं, औजारों, यन्त्रों को सुव्यवस्थित करने के लिए समय दिया जाना आवश्यक है, किन्तु ऐसा नहीं किया जाता है।

प्रश्न 23. 
हीरा और हरीश की शैक्षणिक योग्यताएँ एक जैसी हैं और वे कम्पनी में टाइपिस्ट के रूप में कार्य कर रहे हैं। एक जैसे कार्य घण्टों के लिए हीरा को प्रतिमाह 3000 रुपये तथा हरीश को प्रतिमाह 4000 रुपये वेतन के रूप में मिल रहे हैं। इस स्थिति में प्रबन्ध के किस सिद्धान्त का उल्लंघन किया गया है ? उस सिद्धान्त के नाम बताते हुए उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यहाँ 'समता के सिद्धान्त' की अवहेलना हुई है। समता का सिद्धान्त यह बतलाता है कि कर्मचारियों के साथ जितना सम्भव हो सके निष्पक्ष एवं समान व्यवहार किया जाना चाहिए। एक जैसी स्थिति में उन्हें समान वेतन भी दिया जाना चाहिए।

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प्रश्न 24. 
प्रबन्ध के सिद्धान्त सम्बन्धी विकसित विचारधाराओं के नाम गिनाइये।
उत्तर:

  • प्रारम्भिक स्वरूप, 
  • प्राचीन प्रबन्ध के सिद्धान्त, 
  • नवीन प्रतिष्ठित सिद्धान्त मानवीय सम्बन्ध मार्ग, 
  • व्यावहारिक विज्ञान मार्ग-संगठनात्मक मानववाद, 
  • प्रबन्धकीय विज्ञान/परिचालनात्मक अनुसन्धान, 
  • आधुनिक प्रबन्ध।

प्रश्न 25. 
क्लासिकी प्रबन्ध सिद्धान्त किस पर आधारित है?
उत्तर:
क्लासिकी प्रबन्ध सिद्धान्त श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण, मानव एवं मशीन के बीच पारस्परिक सम्बन्ध, लोगों के प्रबन्ध पर आधारित है।

प्रश्न 26. 
नवक्लासिकी सिद्धान्त की मुख्य मान्यता क्या है?
उत्तर:
कर्मचारी मात्र नियम, अधिकार श्रृंखला एवं आर्थिक प्रलोभन के कारण ही विवेक से कार्य नहीं करते बल्कि वे सामाजिक आवश्यकताओं, प्रेरणाओं एवं दृष्टिकोण से भी निर्देशित होते हैं।

प्रश्न 27. 
प्रबन्ध विज्ञान/परिचालनात्मक अनुसन्धान
उत्तर:
यह प्रबन्धकों को निर्णय लेने में सहायतार्थ परिमाण सम्बन्धी तकनीक के उपयोग, प्रचालन एवं अनुसन्धान पर जोर देता है।

प्रश्न 28. 
आधुनिक प्रबन्ध क्या है?
उत्तर:
यह आधुनिक संगठनों को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है तथा संगठनात्मक एवं मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए आकस्मिक घटना के रूप में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करता है।

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प्रश्न 29. 
सिद्धान्तों से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
सिद्धान्त वे आधारभूत सत्य हैं जिन्हें किन्हीं प्रयोगों, अनुभवों अथवा अभ्यास के व्यावहारिक विश्लेषण द्वारा प्रतिपादित किया जाता है।

प्रश्न 30. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के महत्त्व को दो बिन्दुओं में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • प्रबन्धकों को वास्तविकता का उपयोगी सूक्ष्म ज्ञान प्रदान करना। 
  • उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग एवं प्रभावी प्रशासन में योगदान देना।

प्रश्न 31. 
टेलर ने वैज्ञानिक प्रबन्ध में किन बातों पर जोर दिया था? (कोई चार)
उत्तर:

  • वास्तविक विज्ञान का विकास। 
  • कर्मचारी का वैज्ञानिक पद्धति से चयन। 
  • कर्मचारी की वैज्ञानिक रीति से शिक्षा एवं
  • प्रबन्ध एवं कर्मचारियों के बीच नजदीकी एवं मित्रतापूर्ण सहयोग।

प्रश्न 32. 
टेलर ने प्रबन्धक एवं श्रमिक दोनों की सोच में बदलाव लाने को क्या नाम दिया था?
उत्तर:
टेलर ने प्रबन्धक एवं श्रमिक दोनों की सोच में बदलाव लाने को 'मानसिक क्रान्ति' का नाम दिया।

प्रश्न 33. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के प्रतिपादन में किम दो विद्वानों का विशेष योगदान रहा है?
उत्तर:

  • एफ. डब्ल्यू. टेलर 
  • हेनरी फेयोल।

प्रश्न 34. 
'जनरल एण्ड इण्डस्ट्रियल मैनेजमेंट' पुस्तक के लेखक कौन थे?
उत्तर:
'जनरल एण्ड इण्डस्ट्रियल मैनेजमेंट'' पुस्तक के लेखक हेनरी फेयोल हैं।

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प्रश्न 35. 
'आदेश की एकता' से क्या आशय है?
उत्तर:
'आदेश की एकता' से आशय यह है कि एक कर्मचारी को केवल एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त होने चाहिए। 

प्रश्न 36. 
'निर्देश की एकता' से आप क्या समझते हैं ?
अथवा 
निर्देशन की एकता किसे कहते हैं ?
उत्तर:
'निर्देश की एकता' से आशय यह है कि समान उद्देश्य वाली क्रियाओं के निष्पादन के लिए एक ही अधिकारी हो तथा उससे एक जैसे ही निर्देश प्राप्त होने चाहिए।

प्रश्न 37. 
केन्द्रीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
जब निर्णय लेने का अधिकार यदि उच्च प्रबन्धक के पास केन्द्रित है तो यह केन्द्रीकरण कहलाता

प्रश्न 38. 
'फेयोल पुल' किसे कहते हैं ? 
उत्तर:
जब संगठन के दो विभागों के पदाधिकारियों के बीच सोपान श्रृंखला से हटकर प्रत्यक्ष रूप से सम्प्रेषण होता है तो इसे 'फेयोल पुल' कहते हैं।

प्रश्न 39. 
टेलर ने क्रियात्मक फोरमैनशिप के अन्तर्गत उत्पादन अधिकारी के अधीन गतिनायक, टोलीनायक, मरम्मतनायक एवं निरीक्षक कार्य करने वाले कर्मचारी बतलाये हैं। इन कर्मचारियों का प्रमुख उत्तरदायित्व क्या है?
उत्तर:

  • कार्य-समय ठीक से तैयार करना। 
  • मशीन व उपकरणों को कार्य के योग्य रखना। 
  • कार्य की गुणवत्ता की जाँच करना। 

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प्रश्न 40. 
प्रमापीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रमापीकरण से तात्पर्य प्रत्येक व्यावसायिक क्रिया के लिए मानक निर्धारण की प्रक्रिया से है।

प्रश्न 41. 
ऐसी किन्हीं दो बड़ी कम्पनियों के नाम बतलाइये जिन्होंने प्रमापीकरण एवं सरलीकरण का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया है।
उत्तर:

  • नोकिया, 
  • माइक्रोसॉफ्ट।

प्रश्न 42. 
टेलर की कार्य-पद्धति अध्ययन प्रक्रिया का किस कम्पनी ने सफलतापूर्वक उपयोग किया है ?
उत्तर:
टेलर ने कार्य-पद्धति अध्ययन के माध्यम से कई क्रियाओं को एक साथ जोड़ने की अवधारणा का निर्माण किया और फोर्ड कम्पनी ने इस अवधारणा का सफलतापूर्वक उपयोग किया है।

प्रश्न 43. 
टेलर ने एक श्रमिक की विभिन्न मुद्राओं की गति की पहचान के लिए किसका प्रयोग मुख्य रूप से किया?
उत्तर:
टेलर ने श्रमिकों की विभिन्न मुद्राओं की गति की पहचान करने के लिए 'स्टॉप वाच' का प्रयोग किया था।

प्रश्न 44. 
वर्तमान युग में वैज्ञानिक प्रबन्ध के क्रम में कई नई तकनीकों का विकास किया गया है, किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • युद्ध-सामग्री की अधिकतम तैनाती के लिए परिचालन अनुसन्धान का विकास किया गया।
  • क्रमिक संयोजन की खोज की।

प्रश्न 45. 
हेनरी फेयोल ने प्रबन्ध के कौन-कौनसे कार्य बतलाये हैं? 
उत्तर:
हेनरी फेयोल ने प्रबन्ध के चार कार्य बतलाये-नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण।

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प्रश्न 46. 
फेयोल ने एक औद्योगिक इकाई की क्रियाओं को किस प्रकार वर्गीकृत किया है ? नाम लिखिए।
उत्तर:
औद्योगिक इकाई की क्रियाएँ-तकनीकी क्रियाएँ, वाणिज्यिक क्रियाएँ, वित्तीय क्रियाएँ, सुरक्षात्मक क्रियाएँ, लेखाकर्म सम्बन्धी तथा प्रबन्धन सम्बन्धी क्रियाएँ।

प्रश्न 47. 
अनुशासन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अनुशासन से अभिप्राय संगठन के कार्य करने के लिए आवश्यक नियम एवं नौकरी की शर्तों के पालन करने से है।

प्रश्न 48. 
व्यवस्था का सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर:
व्यवस्था का सिद्धान्त यह कहता है कि प्रत्येक चीज (प्रत्येक व्यक्ति) के लिए एक स्थान तथा प्रत्येक चीज (प्रत्येक व्यक्ति) अपने स्थान पर होनी चाहिए।

प्रश्न 49. 
फेयोल के समता के सिद्धान्त को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
प्रबन्ध का समता का सिद्धान्त यह कहता है कि संगठन में कर्मचारियों के साथ जितना हो सके निष्पक्ष एवं समानता का व्यवहार करना चाहिए। प्रबन्धकों के श्रमिकों के प्रति व्यवहार में यह सिद्धान्त दयाभाव एवं न्याय पर जोर देता है।

प्रश्न 50. 
"जो व्यक्ति जिस कार्य को करने के योग्य है, उसे वही कार्य सौंपा जाना चाहिए।" उक्त कथन किस सिद्धान्त को प्रकट करता है?
उत्तर:
कार्य-विभाजन का सिद्धान्त।

प्रश्न 51. 
"प्रबन्ध के सिद्धान्त प्रबन्धकीय कार्यकुशलता में वृद्धि करते हैं।" कैसे?
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के आधार पर प्रबन्धक सहज ही विभिन्न समस्याओं को ठीक ढंग से समझ कर उनका उचित समाधान ढूँढ लेते हैं। 

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लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
क्रियात्मक फोरमैनशिप को चित्र द्वारा समझाइये।
उत्तर:
क्रियात्मक फोरमैनशिप-
RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त 1

प्रश्न 2.
समयावधि में विनिर्माण प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
यह प्रक्रिया में संचित माल तथा इससे जुड़ी लागत को कम कर निवेश पर प्रति प्राप्ति में सुधार हेतु माल संचय प्रबंधन की व्यूह-रचना है। इस प्रणाली का क्रियान्वयन दृष्टव्य इशारों अथवा 'केनबेन' द्वारा किया जाता है जो हमें यह बताता है कि उत्पादन प्रक्रिया के किसी स्तर पर हमें पुनः पूर्ति की आवश्यकता है अथवा नहीं।

प्रश्न 3. 
प्रबन्ध के सिद्धान्त की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त की अवधारणाप्रबन्ध के सिद्धान्त निर्णय लेने एवं व्यवहार के लिए व्यापक एवं सामान्य मार्गदर्शक होते हैं । ये शुद्ध विज्ञान के सिद्धान्तों के समान बेलोच नहीं होते हैं, क्योंकि इनका सम्बन्ध मानवीय व्यवहार से है। इसलिए इन सिद्धान्तों को परिस्थिति की माँग के अनुसार उपयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 4. 
प्रबन्ध के सिद्धान्त सर्वप्रयुक्त होते हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त सर्वप्रयुक्त होते हैंप्रबन्ध के सिद्धान्त सभी प्रकार के संगठनों यथा व्यावसायिक एवं गैर-व्यावसायिक, छोटे एवं बड़े, सार्वजनिक तथा निजी, विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के हों, प्रयुक्त किये जा सकते हैं। अधिक उत्पादकता के लिए कार्य को छोटे-छोटे भागों में बाँटा जाता है एवं प्रत्येक कर्मचारी को अपने कार्य में दक्षता के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। लेकिन ये सिद्धान्त किस सीमा तक प्रयुक्त हो सकते हैं यह संगठन की प्रकृति, व्यावसायिक कार्यों, परिचालन के पैमाने आदि बातों पर निर्भर करते हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

प्रश्न 5. 
प्रबन्ध के सिद्धान्त की प्रकृति को स्पष्ट करने वाले दो बिन्दुओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त की प्रकृति
1. सामान्य मार्गदर्शन का कार्य करना-प्रबन्ध के सिद्धान्त कार्य के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं लेकिन ये सभी प्रबन्धकीय समस्याओं का तैयार शतप्रतिशत समाधान नहीं होते हैं। क्योंकि वास्तविक परिस्थितियाँ जटिल एवं गतिशील होती हैं तथा ये कई तत्वों का परिणाम होती हैं। लेकिन प्रबन्ध के सिद्धान्तों के महत्त्व को कम करके नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि छोटे से छोटा दिशा-निर्देश भी किसी समस्या के समाधान में सहायक हो सकता है। 

2. व्यवहार एवं शोध द्वारा निर्मित-प्रबन्ध के सिद्धान्तों का निर्माण अनुभव एवं बुद्धि चातुर्य एवं शोध के द्वारा होता है। उदाहरणार्थ, सभी का अनुभव है कि किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनुशासन अनिवार्य है। यह सिद्धान्त प्रबन्ध के सिद्धान्तों का एक अंग है। दूसरी तरफ कारखाने में श्रमिकों की थकान की समस्या के समाधान के लिए भारी दबाव को कम करने के लिए भौतिक परिस्थितियों में सुधार के प्रभाव की जाँच हेतु परीक्षण किया जा सकता है।

प्रश्न 6. 
सिक्स सिग्मा से क्या आशय है?
उत्तर:
यह डाटा से प्रेरित मार्ग है जो किसी भी क्षेत्र में कार्यरत संगठन को गुणवत्ता की भिन्नताओं में कमी लाकर अकुशलता में कमी लाते हैं तथा समय एवं धन की बचत करने में सहायता करता है इसका ग्राहक मूल दृष्टिकोण है जिसमें और अधिक कुशल प्रक्रिया अथवा वर्तमान प्रक्रिया को और श्रेष्ठ बनाने के लिए आंकड़ों पर निर्भर करना पड़ता है। निर्धारित मानदंडों के अनुसार प्रति दस लाख अवसरों में से तीन या चार से अधिक दोष नहीं होने चाहिए। इसे किसी भी प्रक्रिया में प्रयोग में लाया जा सकता है, पर आवश्यकतानुसार संगठनात्मक आलंबन/समर्थन प्राप्ति की भी आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 7. 
वैज्ञानिक प्रबंध में 'धीमा विनिर्माण' को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
यह प्रबंध का दर्शन है। जिसमें किसी भी प्रकार की विनिर्माण प्रक्रिया अथवा किसी भी प्रकार के व्यवसाय में उत्पादन आधिक्य की सात हानियों में कमी लाने पर ध्यान दिया जाता है। ये हानियाँ हैं-इंतजार का समय, परिवहन, प्रक्रियण, गति, संचित माल एवं रद्दी। रद्दी/बर्बादी को यदि समाप्त कर दिया जाए तो गुणवत्ता में सुधार होगा, उत्पादन के समय में कमी आएगी तथा लागत में भी कमी आएगी।

प्रश्न 8. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध की किन्हीं दो तकनीकों को समझाइये।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध की तकनीकें
1. क्रियात्मक फोरमैनशिप-टेलर ने संस्था में उत्पादन क्रियाओं को योजनाओं, डिजाइनों तथा अनुसूचियों के अनुरूप नियन्त्रित करने के लिए क्रियात्मक फोरमैनशिप की अवधारणा को प्रस्तुत किया। टेलर ने सुझाव दिया कि कारखाना अध्यक्षों को नियोजन एवं क्रियान्वयन के भार से मुक्त रहना चाहिए। उन्होंने नियोजन एवं उसके क्रियान्वयन को अलग-अलग रखने की वकालत की और इस अवधारणा को कारखाने के निम्नतम स्तर तक बढ़ा दिया।

2. कार्य का प्रमापीकरण एवं सरलीकरणटेलर ने कार्य के प्रमापीकरण पर अत्यधिक जोर दिया। प्रमापीकरण से अभिप्राय प्रत्येक व्यावसायिक क्रिया के लिए मानक निर्धारण प्रक्रिया से है। प्रमापीकरण प्रक्रिया, कच्चा माल, समय, उत्पाद, मशीनरी एवं कार्य-पद्धति अथवा कार्य-शर्तों का हो सकता है।

टेलर ने कार्य के सरलीकरण पर भी जोर दिया। सरलीकरण में उत्पादन की अनावश्यक अनेकताओं को समाप्त किया जाता है। इससे श्रम, मशीन एवं उपकरणों की लागत की बचत होती है।

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प्रश्न 9. 
टेलर ने क्रियात्मक फोरमैनशिप तकनीक में नियोजन अधिकारी के अधीन कौन-कौनसे कर्मचारी बतलाये हैं ? इनके द्वारा कौन-कौनसे कार्य किये जाते हैं ?
उत्तर:
टेलर ने क्रियात्मक फोरमैनशिप तकनीक में नियोजन अधिकारी के अधीन निम्न कर्मचारी बतलाये हैं-

  • निर्देशन कार्ड क्लर्क 
  • कार्यक्रम क्लर्क 
  • समय एवं लागत क्लर्क 
  • कार्यशाला अनुशासक

यह चार क्रमशः कर्मचारी, कर्मचारियों के लिए निर्देश तैयार करेंगे, उत्पादन का कार्यक्रम तैयार करेंगे, समय एवं लागत सूची तैयार करेंगे एवं अनुशासन सुनिश्चित करेंगे।

प्रश्न 10. 
टेलर ने उत्पादन अधिकारी के अधीन कौन-कौनसे कर्मचारी बतलाये हैं एवं इनके द्वारा कौन-कौनसे कार्य किये जाते हैं?
उत्तर:
टेलर ने क्रियात्मक फोरमैनशिप तकनीक में उत्पादन अधिकारी के अधीन निम्न कर्मचारी बतलाये हैं-

  • गतिनायक 
  • टोलीनायक 
  • मरम्मत नायक एवं 
  • निरीक्षक

ये क्रमशः कार्य समय ठीक से तैयार करने, श्रमिकों द्वारा मशीन उपकरणों को कार्य के योग्य रखने एवं कार्य की गुणवत्ता की जाँच करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।

प्रश्न 11. 
गति अध्ययन एवं समय अध्ययन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (कोई चार)
उत्तर:
गति अध्ययन एवं समय अध्ययन में अन्तर गति अध्ययन-इसमें विभिन्न मुद्राओं की गति, जो किसी विशेष प्रकार के कार्य को करने के लिए की जाती है, जैसा कि उठाना, रखना, बैठना या फिर स्थान बदलना आदि का अध्ययन किया जाता है। कार्य को पूरा करने में समय कम लगता है एवं उत्पादकता बढ़ती है। विभिन्न मुद्राओं की पहचान करने के लिए स्टॉपवाच, विभिन्न चिन्हों एवं रंगों का प्रयोग किया जाता है।

समय अध्ययन-जबकि समय अध्ययन परिभाषित कार्य को पूरा करने के लिए मानक समय का निर्धारण करता है। प्रत्येक घटक के लिए समय मापन विधियों का प्रयोग किया जाता है। इसका उद्देश्य कर्मियों की संख्या का निर्धारण, उपयुक्त प्रेरक योजनाओं को तैयार करना एवं श्रम लागत का निर्धारण करना है। इसमें मजदूरी का निर्धारण किया जाता है।

प्रश्न 12. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध से नियोक्ताओं को प्राप्त होने वाले कोई चार लाभ बतलाइये।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध से नियोक्ताओं को प्राप्त होने वाले लाभ

  • अधिकतम उत्पादन-वैज्ञानिक प्रबन्ध में श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास किये जाते हैं। श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि करके माल का उत्पादन अधिकतम सीमा तक किया जा सकता है।
  • विशिष्टीकरण के लाभ-वैज्ञानिक प्रबन्धक के अन्तर्गत कार्य के प्रत्येक भाग को उस कार्य के विशेषज्ञ व्यक्ति को सौंपा जाता है तो कम समय में अधिक व अच्छा काम होता है जो कि विशिष्टीकरण का एक बहुत बड़ा लाभ है।
  • न्यूनतम उत्पादन लागत-वैज्ञानिक प्रबन्ध में माल के अपव्यय को कम करने, मशीनों व साधनों के अधिकतम उपयोग पर अधिक ध्यान देने, साथ ही उत्पादन लागत को न्यूनतम करने का प्रयास किया जाता है। इससे उत्पादन लागत में भारी कमी आती है।
  • अधिक आय-वैज्ञानिक प्रबन्ध के कारण अच्छी किस्म के अच्छे व सस्ते माल के उत्पादन के कारण विक्रय में वृद्धि होती है। अधिक विक्रय के कारण नियोक्ता को अधिक आय होती है।

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प्रश्न 13. 
टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन के कोई चार व्यवसाय संबंधी सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन के व्यवसाय संबंधी सिद्धांत-

  • प्रत्येक देश की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों का आदर करें एवं स्थानीय समुदायों के बीच निगमत क्रियाओं के माध्यम से आर्थिक एवं सामाजिक विकास में योगदान दें।
  • स्वच्छ एवं सुरक्षित उत्पाद उपलब्ध कराएँ तथा प्रत्येक जगह जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करें।
  • नवीन प्रबंध के माध्यम से विश्व समुदाय के साथ विकास एवं एकता को अपनाएँ।
  • प्रत्येक देश की भाषा एवं कानून की भावना का आदर करना खुली एवं उचित निगमत क्रियाओं को करें जिससे कि पूरे विश्व में एक अच्छा निगम नागरिक बन सकें।

प्रश्न 14. 
"प्रबंध के सिद्धांतों का प्रयोग अनिश्चित होता है।" संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
प्रबंध के सिद्धांतों का प्रयोग अनिश्चित होता है क्योंकि यह सिद्धांत समय विशेष की मौजूदा परिस्थितियों पर निर्भर करता है। आवश्यकतानुसार सिद्धांतों के प्रयोग में परिवर्तन लाया जा सकता है। इसमें कर्मचारियों का योगदान, नियोक्ता की भुगतान क्षमता तथा जिस व्यवसाय का हम अध्ययन कर रहे हैं, उसमें प्रचलित मजदूरी दर सम्मिलित है। 

प्रश्न 15. 
विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली-टेलर ने विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली का अत्यधिक समर्थन किया था। उनका कहना था कि श्रमिकों के लिए मानक अवधि एवं अन्य मानदण्ड का निर्धारण किया जाना चाहिए। टेलर के अनुसार कुशल कर्मचारियों को पारितोषिक मिलना चाहिए। इसलिए उसने प्रमापित कार्यों को पूरा करने के लिए भिन्न तथा प्रमापित से कम कार्य करने पर भिन्न मजदूरी दर प्रारम्भ की। यह निर्धारित किया गया कि मानक उत्पादन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 10 इकाई है एवं जो इस मानक को प्राप्त कर लेंगे अथवा इससे अधिक कार्य करेंगे उनको 50 रुपये प्रति इकाई से मजदूरी मिलेगी जबकि इससे नीचे के कार्य करने पर 40 रुपये प्रति इकाई मजदूरी प्राप्त होगी। इस प्रकार एक कुशल कर्मचारी को 11 × 5 = 550 रुपये प्रतिदिन भुगतान मिलेगा जबकि अकुशल कर्मचारी को 9 × 40 = 360 रुपये प्रतिदिन मिलेगा। टेलर का मानना था कि 190 रुपये का. अन्तर कर्मचारी के लिए कार्य को और अधिक अच्छे तरीके से कार्य करने के लिए पर्याप्त अभिप्रेरक है।

प्रश्न 16. 
प्रमापीकरण के सिद्धान्त को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
प्रमापीकरण का सिद्धान्त-प्रबन्ध का यह सिद्धान्त यह बतलाता है कि प्रत्येक कार्य के लिए कुछ प्रमाप निश्चित कर लिये जाने चाहिए। ये प्रमाप कार्यप्रणाली, सामग्री, उपकरण, उत्पादन की मात्रा आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। प्रमापीकरण करने से प्रमापित कार्य या उत्पादन होता है। इससे न केवल वस्तुओं की लागत में ही कमी आती है वरन् वस्तुओं की किस्म में भी सुधार होता है। इससे संस्था की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में सुधार होता है। वर्तमान समय में प्रमापीकरण को उत्पादन एवं विपणन की एक तकनीक के रूप में भी अपनाया जाने लगा है।

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प्रश्न 17. 
"जापानी कंपनियों में पितवत शैली का प्रबंध होता है।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जापानी कंपनियों में प्रबंधक एवं श्रमिकों के बीच कुछ भी छुपा नहीं होता। श्रमिक यदि हड़ताल करते हैं तो वह प्रबंध की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए सामान्य घंटों से भी अधिक कार्य करते हैं। टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध इस दृढ़ विश्वास पर आधारित है कि दोनों का हित समान है और जापानियों की कार्य संस्कृति इस स्थिति का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसलिए हम कह सकते हैं कि जापानी कंपनियों में पितृवत् शैली का प्रबंध होता है।

प्रश्न 18. 
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के सिद्धान्तों को बतलाइये।
उत्तर:
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के सिद्धान्त-

  • कार्य विभाजन का सिद्धान्त, 
  • अधिकार एवं उत्तरदायित्व का सिद्धान्त, 
  • अनुशासन, 
  • आदेश की एकता का सिद्धान्त, 
  • निर्देश की एकता का सिद्धान्त, 
  • सामूहिक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों के समर्पण का सिद्धान्त 
  • कर्मचारियों को प्रतिफल या पारि श्रमिक का सिद्धान्त, 
  • केन्द्रीकरण एवं विकेन्द्रीकरण का सिद्धान्त, 
  • सोपान श्रृंखला का सिद्धान्त, 
  • व्यवस्था का सिद्धान्त, 
  • समता का सिद्धान्त, 
  • कर्मचारियों की उपयुक्तता का सिद्धान्त, 
  • पहल-क्षमता या पहलपन का सिद्धान्त, 
  • सहयोग की भावना का सिद्धान्त।

प्रश्न 19. 
हेनरी फेयोल के कार्य-विभाजन सिद्धान्त को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
कार्य विभाजन का सिद्धान्त-फेयोल का कहना था कि कार्य को उसकी प्रकृति के अनुसार छोटे-छोटे भागों में विभाजित करना चाहिए तथा कार्य के प्रत्येक भाग को विशिष्ट ज्ञान या योग्यता रखने वाले व्यक्ति को सौंपना चाहिए। इससे कार्य का निष्पादन कम लागत पर कम समय में किया जाना सम्भव होता है। कार्य विभाजन सिद्धान्त का यह भी मानना है कि एक व्यक्ति सभी प्रकार के कार्यों को करने में दक्ष नहीं होता है। अतः जो व्यक्ति जिस कार्य को करने में योग्य हो, उसको वही कार्य सौंपा जाना चाहिए। एक व्यक्ति एक ही प्रकार का कार्य जब लगातार करता रहता है तो उसको उस कार्य में दक्षता प्राप्त हो जाती है। इसी प्रकार कार्य-विभाजन किये जाने से कार्य के प्रति अनेक व्यक्तियों की सामूहिक जिम्मेदारी उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 20. 
अनुशासन के सिद्धान्त को समझाइये।
उत्तर:
अनुशासन का सिद्धान्त-अनुशासन से अभिप्राय संगठन के कार्य करने के लिए आवश्यक नियम एवं नौकरी की शर्तों के पालन करने से है। अनुशासन वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति या समूह को निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नीतियों, नियमों एवं पद्धतियों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है। अनुशासन से कर्मचारियों में आज्ञाकारिता, व्यवहार, आदर की भावना का विकास होता है। फेयोल के अनुसार, "अनुशासन बनाये रखने के लिए प्रबन्ध के सभी स्तरों पर योग्य एवं अनुभवी प्रबन्धक होने चाहिए और उनको पूर्ण निरपेक्षता से कार्य करना चाहिए।" फेयोल के अनुसार, अनुशासन स्थापित करने के लिए निम्न प्रयास किये जाने चाहिए-(1) संगठन के सभी स्तरों पर योग्य एवं अच्छे पर्यवेक्षक नियुक्त किये जायें, (2) संगठन एवं कर्मचारियों के बीच निष्पक्ष समझौता होना चाहिए, (3) दोषी कर्मचारियों को सजा देने में निष्पक्षता होनी चाहिए।

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प्रश्न 21. 
प्रबन्धकीय सिद्धांतों के रूप में आदेश की एकता एवं निर्देश की एकता के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए। आदेश की एकता एवं निर्देश की एकता के सिद्धान्त में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आदेश की एकता एवं निर्देश की एकता के सिद्धान्त में अन्तर-
1. अर्थ-आदेश की एकता के सिद्धान्त द्वारा इस बात पर जोर दिया जाता है कि किसी भी अधीनस्थ को एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त करने चाहिए एवं उसी के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए, जबकि निर्देश की एकता के सिद्धान्त द्वारा इस बात पर जोर दिया जाता है कि समान उद्देश्य वाली क्रियाओं के लिए एक अध्यक्ष एवं एक योजना अधिकारी होना चाहिए।

2. लक्ष्य-आदेश की एकता का सिद्धान्त दोहरी अधीन स्थिति को रोकता है, जबकि निर्देश की एकता का सिद्धान्त क्रियाओं के एक-दूसरे पर आच्छादन को रोकता है।

3. प्रभाव-आदेश की एकता का. सिद्धान्त कर्मचारी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करता है क्योंकि इसमें एक अधिकारी ही अपने अधीनस्थ को आदेश देता है; जबकि निर्देश की एकता के सिद्धान्त द्वारा पूरे संगठन को प्रभावित किया जाता है क्योंकि इसमें एक योजना एक ही अधिकारी के पास रहती है।

प्रश्न 22. 
एफ. डब्ल्यू. टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध के प्रमुख तत्त्वों को बतलाइये।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध के प्रमुख तत्त्व 
"समय अध्ययन 
क्रियात्मक अथवा विशिष्ट पर्यवेक्षण 
उपकरणों का मानकीकरण 
कार्यपद्धतियों का मानकीकरण 
पृथक् नियोजन कार्य 
अपवाद द्वारा प्रबन्ध का सिद्धान्त
स्लाइड रूल्स एवं इसी प्रकार के अन्य समय बचाने वाले साधनों का प्रयोग
कार्य का आवंटन एवं सफल निष्पादन के लिए बड़ी बोनस राशि 
'विभेदात्मक दर' का प्रयोग
उत्पाद एवं कार्यप्रणालियों की नेमोनिक प्रणाली 
कार्यक्रम प्रणाली 
आधुनिक लागत प्रणाली आदि"

प्रश्न 23. 
प्रबन्ध के सिद्धान्त में एफ. डब्ल्यू. टेलर तथा हेनरी फेयोल के योगदान को संक्षेप में समझाइये। 
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्त में एफ. डब्ल्यू. टेलर तथा हेनरी फेयोल का योगदान 
1. सम्बन्ध-टेलर का मुख्य सम्बन्ध कार्यों, कर्मचारियों तथा पर्यवेक्षकों से था, जबकि फेयोल का कार्य मुख्य रूप से प्रशासकों तथा प्रबन्धकों की कुशलता से अधिक सम्बन्धित था।

2. आरम्भिक बिन्दु-टेलर निम्नतम स्तर के कर्मचारियों की कार्यकुशलता को बढ़ाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्तों के उपयोग पर जोर दिया था, जबकि फेयोल ने उच्च स्तर से निम्न स्तर की ओर बढ़ते हुए निर्देश की एकता, आदेश की एकता तथा समन्वय पर जोर दिया।

3. केन्द्र-बिन्दु-टेलर कर्मचारियों की उत्पादकता को बढ़ाना चाहते थे और सभी प्रकार के अपव्ययों को समाप्त करना चाहते थे, जबकि फेयोल श्रेष्ठ प्रबन्ध के लिए सिद्धान्तों को विकसित करना चाहते थे। 

4. महत्त्व-टेलर ने कार्य, उपकरणों एवं सामग्री के प्रमापीकरण को अधिक महत्त्व दिया। उसके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त अधिकांशतः कारखाना स्तर पर उपयोग में लाये गये, जबकि फेयोल ने प्रबन्ध के सामान्य सिद्धान्तों तथा प्रबन्धकों के कार्यों को अधिक महत्त्व दिया। 

प्रश्न 24. 
हेनरी फेयोल की सोपान श्रृंखला को स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के निम्न सिद्धान्तों को समझाइये
(i) सोपान श्रृंखला का सिद्धान्त 
(ii) आदेश की एकता का सिद्धान्त। 
उत्तर:
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त-
(i) सोपान श्रृंखला का सिद्धान्त-किसी भी संगठन में उच्चतम पद से निम्नतम पद तक की औपचारिक अधिकार रेखा को 'सोपान श्रृंखला' कहते हैं। फेयोल का मत था कि संगठनों में अधिकार एवं सम्प्रेषण की श्रृंखला होनी चाहिए जो ऊपर से नीचे तक हो तथा उसी के अनुसार प्रबन्धक एवं अधीनस्थ होने चाहिए। उदाहरणार्थ, निम्न चित्र में ए एक अध्यक्ष है जिसके अधीन दो अधिकार श्रृंखलाएँ हैं। एक में 'B', 'C', 'D', 'E' तथा 'F' तथा दूसरे में 'L', 'M', 'N', 'O' तथा 'P' हैं। सामान्य परिस्थितियों में सर्वोच्च प्रबन्धक 'A' को कोई सन्देश F तक पहुँचाना है तो उसे क्रमश: B, C, D तथा E के माध्यम से पहुँचाना चाहिए। A को सीधे ही F को सन्देश नहीं देने चाहिए और न ही F को सीधे ही B या A को सन्देश देने चाहिए। इसी प्रकार पहले विभाग का D दूसरे विभाग के N से सन्देशों का आदान-प्रदान करना चाहता है तो उसे भी क्रमशः C, B, A, L तथा M से होते हुए सन्देशों का आदान-प्रदान करना होगा। किन्तु असामान्य परिस्थितियों में D तथा N के बीच प्रत्यक्ष रूप से सन्देशों का आदानप्रदान हो सकता है। जैसा कि चित्र में बिन्दु रेखा से दिखाया गया है। प्रत्यक्ष रूप से सन्देशों का आदान-प्रदान करने के लिए अनौपचारिक सम्प्रेषण व्यवस्था विकसित करनी चाहिए।
RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त 2

(ii) आदेश की एकता का सिद्धान्त-फेयोल के अनुसार "एक कर्मचारी को केवल एक ही पर्यवेक्षक (अधिकारी) से आदेश प्राप्त होने चाहिए। जब एक कर्मचारी को एक से अधिक अधिकारियों से निर्देश प्राप्त होते हैं तो भ्रम एवं विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि कोई भी व्यक्ति एक ही समय में दो अधिकारियों की सेवा नहीं कर सकता है। इसलिए यह सिद्धान्त यह कहता है कि एक कर्मचारी को एक समय में एक ही अधिकारी से आदेश-निर्देश प्राप्त होने चाहिए। इसके अतिरिक्त, एक व्यक्ति एक समय में एक ही अधिकारी के प्रति जवाबदेय या उत्तरदायी होना चाहिए। यदि इस सिद्धान्त का उल्लंघन होता है तो अधिकार प्रभावहीन हो जाता है, आदेश में व्यवधान पड़ जाता है एवं संगठन के स्थायित्व को खतरा हो जाता है। 

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प्रश्न 25. 
हेनरी फेयोल के 'आदेश की एकता' एवं 'निर्देश की एकता' के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हेनरी फेयोल के प्रबन्ध के सिद्धान्त-
(i) आदेश की एकता का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त को पूर्व प्रश्न के उत्तर में पढ़ें।

(ii) निर्देश की एकता का सिद्धान्त-हेनरी फेयोल का कहना है कि सभी समान प्रकार के उद्देश्यों वाले कार्यों का एक ही प्रमुख (Head) अधिकारी होना चाहिए तथा उन सब समान कार्यों की एक ही योजना बनायी जानी चाहिए। दूसरे शब्दों में, समान कार्यों तथा उद्देश्यों के लिए एक अधिकारी एवं एक ही योजना' (one head, one plan) होनी चाहिए। इससे कार्यों में एकरूपता बनी रहती है। सभी कर्मचारियों के कार्यों में समन्वय स्थापित करना आसान हो जाता है। उदाहरण के लिए, एक कम्पनी मोटर-साइकिल एवं कार का उत्पादन कर रही है। इसके लिए, उसे दो अलग-अलग विभाग बनाकर प्रत्येक विभाग की अपनी प्रभारी योजना एवं संसाधन सौंपे जाने चाहिए। किसी भी तरह से दो विभागों के कार्य एक-दूसरे पर आधारित नहीं होने चाहिए।

प्रश्न 26. 
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के 'सहयोग की भावना' सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
'सहयोग की भावना' का सिद्धान्त-हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धान्त 'संगठन ही शक्ति है' पर बल देता है। यह सिद्धान्त यह कहता है कि प्रबन्ध की सफलता के लिए प्रबन्धकों को अपने कर्मचारियों में समूह या सहयोग की भावना तथा एकता की भावना का विकास करना चाहिए। इस सम्बन्ध में फेयोल ने कहा है कि प्रबन्धकों को कर्मचारियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क बनाये रखना चाहिए। प्रबन्धकों को जब भी समय मिले कर्मचारियों के साथ सन्देशों का आदान-प्रदान मौखिक रूप से ही करना चाहिए। उन्हें औपचारिक रूप से लिखित सन्देशों का आदान-प्रदान बहुत ही कम करना चाहिए। आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए प्रबन्धकों को कर्मचारियों की समस्याओं का तत्काल समाधान करना चाहिए तथा आपसी भ्रान्तियों को भी दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 27. 
टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध की किन्हीं दो तकनीकों को समझाइये।
उत्तर:
टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध की तकनीकें-
1. कार्यात्मक फोरमैनशिप तकनीक-टेलर द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक प्रबन्ध की यह तकनीक पूर्ण रूप से विशिष्टीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है। कारखाना प्रणाली में फोरमैनशिप वह पद्धति है जिसके प्रत्यक्ष सम्पर्क में श्रमिक प्रतिदिन आते हैं। फोरमैन ही निम्न स्तर पर प्रबन्धक और उच्च श्रेणी का श्रमिक होता है। यह वह केन्द्र-बिन्दु होता है जिसके चारों तरफ पूरा उत्पादन, नियोजन, क्रियान्वयन एवं नियंत्रण घूमता है। टेलर ने फोरमैन की भूमिका के निष्पादन के सुधार पर जोर दिया। टेलर ने आठ व्यक्तियों के माध्यम से क्रियात्मक फोरमैनशिप का सुझाव दिया। कारखाना प्रबन्धक के अधीन नियोजन अधिकारी तथा उत्पादन अधिकारी रखे। नियोजन अधिकारी के अधीन चार कर्मचारी रखने का सुझाव दिया-निर्देशन कार्ड क्लर्क, कार्यक्रम लिपिक, समय एवं लागत लिपिक एवं कार्यशाला अनुशासक। ये चार विशेषज्ञ क्रमशः कर्मचारियों के लिए निर्देश तैयार करेंगे, उत्पादन का कार्यक्रम तैयार करेंगे, समय एवं लागत सूची तैयार करेंगे एवं अनुशासन सुनिश्चित करेंगे।

उत्पादन अधिकारी के अधीन गतिनायक, टोलीनायक, मरम्मत नायक एवं निरीक्षक नायक विशेषज्ञ रखने का सुझाव दिया। ये क्रमशः कार्य समय ठीक से तैयार करने, श्रमिक द्वारा मशीन, उपकरणों को कार्य के योग्य रखने एवं कार्य की गुणवत्ता की जाँच करने के लिए उत्तरदायी होंगें।

टेलर का सुझाव था कि प्रत्येक श्रमिक को इन आठों फोरमैनों अर्थात् विशेषज्ञों से आदेश लेने होंगे।

2. कार्य का सरलीकरण एवं प्रमापीकरणटेलर ने वैज्ञानिक प्रबन्ध की यह भी एक प्रमुख तकनीक बतलायी है। उनके अनुसार अंगूठा टेक नियम के स्थान पर उत्पादन पद्धतियों के विश्लेषण के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अपनाना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ प्रणाली को प्रमाप के विकास के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है तथा उसमें और अधिक सुधार किया जा सकता है। प्रमापीकरण प्रक्रिया, कच्चा माल, समय, उत्पादन, मशीनरी, कार्यपद्धति या कार्य की शर्तों का हो सकता है। ये ऐसे मानक मापदण्ड होते हैं, जिनका उत्पादन के दौरान पालन करना होता है।

टेलर ने अपने वैज्ञानिक प्रबन्ध में कार्य के सरलीकरण पर भी जोर दिया था। उनके अनुसार सरलीकरण का अर्थ व्यर्थ किस्मों, आकार एवं आयामों को समाप्त करना होता है। अर्थात् उसमें उत्पादन की अनावश्यक अनेकताओं या बाधाओं को समाप्त किया जाता है। कार्य के सरलीकरण किये जाने से श्रम, मशीन एवं उपकरणों की लागत की बचत होती है। इससे माल को स्टॉक में कम रखने, उपकरणों के अधिकतम व सम्पूर्ण उपयोग एवं आवर्त में वृद्धि सम्भव होती है।

प्रश्न 28. 
फेयोल के 'समता' एवं 'व्यवस्था के सिद्धान्तों को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
(1) समता का सिद्धान्त-फेयोल के द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धान्त के अनुसार जहाँ तक सम्भव हो कर्मचारियों के साथ समानता एवं निष्पक्षता का व्यवहार करना चाहिए। श्रमिकों के प्रतिप्रबन्धकों के व्यवहार में यह सिद्धान्त दयाभाव एवं न्याय पर जोर देता है। फयोल ने यदा-कदा बल प्रयोग को अनियमित नहीं माना, उनका कहना था कि सुस्त व्यक्तियों के साथ सख्ती से व्यवहार करना चाहिए जिससे कि प्रत्येक कर्मचारी के पास यह सन्देश पहुँचे कि प्रबन्ध की दृष्टि में प्रत्येक व्यक्ति बराबर है। किसी भी व्यक्ति के साथ लिंग, भाषा, जाति, धर्म, विश्वास अथवा राष्ट्रीयता के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। आज व्यवहार में यह देखने को मिलता है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में विभिन्न राष्ट्रीयता के लोग भेदभाव रहित वातावरण में साथ-साथ कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, कर्मचारियों को चिकित्सा अवकाश प्रदान करने का नियम उनकी पद-स्थिति या लिंग को ध्यान में रखते हुए समान होना चाहिए।

(2) व्यवस्था का सिद्धान्त-फेयोल द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था के सिद्धान्त की मान्यता यह है कि अधिकतम कार्यकुशलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति एवं सामान उचित समय पर एवं उचित स्थान पर होने चाहिए। यह सिद्धान्त यह कहता है कि "प्रत्येक चीज (प्रत्येक व्यक्ति) के लिए एक स्थान तथा प्रत्येक चीज अपने स्थान पर होनी चाहिए। यदि प्रत्येक व्यक्ति एवं चीज के लिए जो स्थान निश्चित है वह उसी स्थान पर है तो व्यवसाय में कोई व्यवधान पैदा नहीं होगा।" इससे उत्पादकता एवं क्षमता में वृद्धि होगी। उदाहरण के लिए, यदि एक श्रमिक को किसी औजार की जरूरत है तो उसे यह पता होना चाहिए कि वह किस स्थान और किस कमरे में मिलेगा और यदि उसे पर्यवेक्षक से मार्गदर्शन की आवश्यकता है तो उसे पर्यवेक्षक का निश्चित कमरा भी ज्ञात होना चाहिए अन्यथा उनकी खोज में समय एवं श्रम व्यर्थ होगा।

इस प्रकार फेयोल ने किसी भी संगठन में दो प्रकार की व्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित किया-प्रथम, सामग्री व्यवस्था में प्रत्येक वस्तु के लिए निश्चित स्थान तथा प्रत्येक वस्तु निश्चित स्थान पर होनी चाहिए। द्वितीय, मनुष्य व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति का स्थान निश्चित होना चाहिए एवं प्रत्येक व्यक्ति को अपने निश्चित स्थान पर होना चाहिए। इससे वस्तुओं की खोज में अनावश्यक समय नहीं लगेगा तथा संगठन में कार्य समय पर पूरा हो सकेगा।

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प्रश्न 29. 
हेनरी फेयोल के प्रबन्ध के निम्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए-
(i) केन्द्रीकरण 
(ii) कर्मचारियों को प्रतिफल।
उत्तर:
(i) केन्द्रीकरण का सिद्धान्त-फेयोल ने सत्ता या अधिकार के सन्दर्भ में केन्द्रीकरण सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। जब संस्था में निर्णय लेने के सभी अधिकार उच्च प्रबन्धकों के हाथों में केन्द्रित रहते हैं तब संस्था में केन्द्रीकरण की स्थिति होती है। फेयोल ने इस सिद्धान्त के अन्तर्गत यह कहा है कि संस्था में न तो अधिकारों का अधिक केन्द्रीकरण होना चाहिए और न ही अधिक विकेन्द्रीकरण। प्रत्येक प्रबन्धक को अधिकारों के केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीकरण में सन्तुलन स्थापित करना चाहिए। किन्तु, इनमें सन्तुलन भी संस्था की परिस्थितियों तथा कार्य की प्रकृति को ध्यान में रखकर ही स्थापित किया जा सकता है। सामान्यतः बड़े संगठनों में छोटे संगठनों की तुलना में अधिक विकेन्द्रीकरण होता है। उदाहरण के लिए, हमारे देश में पंचायतों को गांवों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा प्रदत्त निधि के सम्बन्ध में निर्णय लेने एवं उनको व्यय करने के अधिक अधिकार दिये गये हैं। यह राष्ट्रीय स्तर पर विकेन्द्रीकरण है।  

(ii) कर्मचारियों को प्रतिफल-फेयोल द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धांत यह बतलाता है कि कुल प्रतिफल एवं क्षतिपूर्ति कर्मचारी एवं संगठन दोनों के लिए ही संतोषजनक होना चाहिए। कर्मचारियों को इतनी मजदूरी अवश्य मिलनी चाहिए कि कम-से-कम जीवन स्तर तर्कसंगत हो सके एवं कंपनी की भुगतान क्षमता की सीमाओं में होनी चाहिए। प्रतिफल न्यायोचित होना चाहिए जिससे अनुकूल वातावरण बनेगा और कर्मचारी एवं प्रबंध के बीच संबंध भी सुमधुर रहेंगे। कंपनी का कार्य भी सुचारु रूप से चलेगा।

प्रश्न 30. 
प्रबन्ध के निम्न सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिये-
(i) कार्य विभाजन 
(ii) अनुशासन।
उत्तर:
(i) कार्य विभाजन का सिद्धान्त-फेयोल ने जिसे कार्य विभाजन का सिद्धान्त नाम दिया है, टेलर ने उसे विशिष्टीकरण का सिद्धान्त नाम दिया है। दोनों का सार एकसमान है। यह सिद्धान्त यह कहता है कि सम्पूर्ण कार्य को अनेक भागों में विभाजित करना चाहिए तथा कार्य के प्रत्येक भाग को एक विशिष्ट ज्ञान या योग्यता वाले व्यक्ति को सौंपा जाना चाहिए। इस सिद्धान्त का आधार यह है कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक कार्य में दक्ष नहीं होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को वही कार्य सौंपा जाना चाहिए जिसमें वह विशेष योग्यता एवं अनुभव रखता है। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति के पास सीमित समय होता है। अत: वह सभी कार्यों को अकेले एक साथ कर भी नहीं सकता है। इसलिए कार्य का विभाजन अनिवार्य हो जाता है। फेयोल के अनुसार कार्य विभाजन का सिद्धान्त सभी क्रियाओं में चाहे वे प्रबन्धकीय हों या तकनीकी, समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। फेयोल ने यह भी लिखा है कि "कार्य विभाजन का उद्देश्य एक बार के परिश्रम से अधिक उत्पादन एवं श्रेष्ठ कार्य करना है। विशिष्टीकरण मानवीय शक्ति के उपयोग करने का कुशलतम तरीका है।"

(ii) अनुशासन का सिद्धान्त-अनुशासन से अभिप्राय संगठन के कार्य करने के लिए आवश्यक नियम एवं नौकरी की शर्तों का पालन किये जाने से है। यह वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति या समूह को निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नियमों एवं पद्धतियों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है। अनुशासन से कर्मचारियों में आज्ञाकारिता, व्यवहार, आदर की भावना का विकास होता है। फेयोल के अनुसार अनुशासन बनाये रखने के लिए प्रबन्ध के सभी स्तरों पर योग्य एवं अनुभवी प्रबन्धक होने चाहिए और उनको पूर्ण निरपेक्षता से कार्य करना चाहिए। इस प्रकार फेयोल का मानना है कि अनुशासन के लिए प्रत्येक स्तर पर अच्छे पर्यवेक्षक, स्पष्ट एवं सन्तोषजनक समझौते एवं दण्ड के न्यायोचित विधान की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 31. 
प्रबन्ध के निम्न सिद्धान्तों को समझाइये-
(i) अनुशासन एवं 
(ii) समन्वय, न कि मतभेद।
उत्तर:
(i) अनुशासन का सिद्धान्त-अनुशासन के सिद्धान्त के सम्बन्ध में पूर्व प्रश्न के उत्तर में पढ़ें।

(ii) समन्वय, न कि मतभेद-टेलर द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धान्त को 'सहयोग, न कि टकराव' के नाम से भी जाना जाता है। उत्पादन की कारखाना प्रणाली में प्रबन्धक, मालिक एवं श्रमिकों के बीच की कड़ी होते हैं। सामान्यतया संस्था में वर्गभेद प्रबन्धक एवं श्रमिकों के बीच की सदैव सम्भावना बनी रहती है। टेलर ने पाया कि इस मतभेद या टकराव से श्रमिक, प्रबन्धक अथवा कारखाना मालिक किसी को भी लाभ नहीं होता है। अतः उसने प्रबन्ध एवं श्रमिकों के बीच पूरी तरह से समन्वय (सहयोग) पर जोर दिया। उनके अनुसार दोनों को ही यह समझना चाहिए कि संस्था में दोनों का ही अपना-अपना महत्त्व है। इस स्थिति को पाने के लिए टेलर ने दोनों पक्षों में सम्पूर्ण मानसिक क्रान्ति का आह्वान किया। इसका अर्थ था कि प्रबन्धक एवं श्रमिक दोनों की सोच में बदलाव आना चाहिए। ऐसा होने पर श्रमिक संगठन भी हड़ताल आदि करने की नहीं सोचेंगे। यदि कम्पनी को लाभ होता है तो प्रबन्धकों को चाहिए कि वे इसे कर्मचारियों में बाँटें । कर्मचारियों को भी चाहिए कि कम्पनी की भलाई के लिए वे परिश्रम करें एवं परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार करें। टेलर के मतानुसार वैज्ञानिक प्रबन्ध इस दृढ़ विश्वास पर आधारित है कि दोनों के हित समान हैं, कर्मचारियों की समृद्धि के बिना प्रबन्धकों की समृद्धि और इसके विपरीत प्रबन्धकों की समद्धि के बिना श्रमिकों व कर्मचारियों की समृद्धि भी अधिक समय तक नहीं रह सकती। जापानियों की कार्य-संस्कृति इस स्थिति का उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है।

प्रश्न 32. 
वैज्ञानिक प्रबन्धक की तकनीकों के रूप में, 'विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली' एवं 'क्रियात्मक फोरमैनशिप' को समझाइये।
उत्तर:
(1) विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली-टेलर ने विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली का समर्थन किया। उसने कुशल एवं अकुशल श्रमिक में अन्तर किया। टेलर के अनुसार कार्य अध्ययन के आधार पर मानक अवधि एवं अन्य मानदंडों का निर्धारण किया जाना चाहिए। इन्हीं प्रमापों के आधार पर श्रमिकों को कुशल एवं अकुशल वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। टेलर का मानना था कि कुशल कर्मचारियों को पारितोषिक मिलना चाहिए। इसीलिए उसने प्रमापित कार्यों को पूरा करने के लिए भिन्न तथा प्रभावित कार्य से कम कार्य करने पर भिन्न मजदूरी की दर की शुरुआत की। उदाहरणार्थ, यह निर्धारित किया. गया कि मानक उत्पादन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 10 इकाई है एवं जो इस मानक को प्राप्त कर लेंगे या इससे अधिक कार्य करेंगे | उनको 50 रु. प्रति इकाई की दर से मजदूरी मिलेगी जबकि इससे नीचे कार्य करने पर 40 रुपये प्रति इकाई से मजदूरी प्राप्त होगी। इस प्रकार एक कुशल कर्मचारी को 11×50=550 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान प्राप्त होगा जबकि एक अकुशल कर्मचारी या श्रमिक को 9×40=360 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान प्राप्त होगा।

टेलर के अनुसार 190 रुपये का यह अन्तर एक अकुशल कर्मचारी के लिए कार्य को और अधिक श्रेष्ठ ढंग से करने के लिए पर्याप्त अभिप्रेरक है। अपने स्वयं के अनुभव से टेलर ने यह उदाहरण दिया कि बैथलेहम स्टील कम्पनी में वैज्ञानिक प्रबन्ध की तकनीकों का उपयोग करते हुए एक श्रमिक ने प्रतिदिन बॉक्स-कार में कच्चे लोहे के लदान में 12.5 टन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से बढ़ाकर 47 टन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तक वृद्धि कर दी। जिससे आय में 1.15 डॉलर से 1.85 डॉलर वृद्धि (60 प्रतिशत वृद्धि) हुई।

टेलर का मानना था कि विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली इस धारणा पर आधारित होनी चाहिए कि कार्यकुशलता प्रबन्धक एवं श्रमिक दोनों का संयुक्त परिणाम होती है। इसलिए उन्हें आधिक्य में विवाद नहीं करना चाहिए, बल्कि उत्पादन को सीमित रखने के स्थान पर उसमें वृद्धि करने के लिए पारस्परिक सहयोग करना चाहिए।

(2) क्रियात्मक फोरमैनशिप-क्रियात्मक फोरमैनशिप के सम्बन्ध में पाठ्यपुस्तक की निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 3 के उत्तर में पढ़ें।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

प्रश्न 33. 
कोई दो कारण देते हुए समझाइये कि प्रबन्ध के सिद्धान्तों की समुचित समझदारी क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की समुचित समझदारी की आवश्यकता-
1. प्रबन्धकों को वास्तविकता का उपयोगी सूक्ष्म ज्ञान प्रदान करना-प्रबन्ध के सिद्धान्तों की समुचित समझदारी, प्रबन्धकों को वास्तविक दुनिया की स्थिति में उपयोगी पैठ कराती है। इन सिद्धान्तों के अपनाने से उनकी प्रबन्धकीय स्थिति एवं परिस्थितियों के सम्बन्ध में ज्ञान, योग्यता एवं समझ में वृद्धि होगी। इससे प्रबन्धक अपनी पिछली गलतियों व भूलों से कुछ-नकुछ अवश्य सीखेगा तथा बार-बार उत्पन्न होने वाली समस्याओं का शीघ्र हल निकालकर समय की बचत करेगा। इस प्रकार प्रबन्ध के सिद्धान्त, प्रबन्ध क्षमता में वृद्धि करते हैं। उदाहरणार्थ, एक प्रबन्धक दिन-प्रतिदिन के निर्णय अधीनस्थों के लिये छोड़ सकता है तथा स्वयं विशिष्ट कार्यों को करेगा जिसके लिए उसकी अपनी विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी। इसके लिए वह अधिकार प्रत्यायोजन के सिद्धान्त का पालन करेगा।

2. संसाधनों का अधिकतम उपयोग एवं प्रभावी प्रशासन-सामान्यतः प्रत्येक संस्था में उसे उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक संसाधन सीमित ही होते हैं। संस्था को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इन संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना अनिवार्य होता है। यहाँ अधिकतम उपयोग से अभिप्राय है कि संसाधनों को इस प्रकार से उपयोग में लाया जाये कि उनसे कम से कम लागत पर अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। प्रबन्ध के सिद्धान्तों की सहायता से प्रबन्धक अपने निर्णयों एवं कार्यों में कारण एवं परिणाम के सम्बन्ध का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। इससे गलतियों से शिक्षा ग्रहण करने की नीति में होने वाली क्षति से बचा जा सकता है। सिद्धान्तों की समुचित जानकारी से प्रबन्धक सामूहिक प्रयासों को सही दिशा में मार्गदर्शन दे सकते हैं और किसी भी समस्या का प्रभावी समाधान ढूंढ़ सकते हैं। इन सिद्धान्तों की सहायता से परिवर्तनशील वातावरण एवं परिस्थितियों में उत्पन्न होने वाली समस्याओं को हल करने में सहायता मिलती है। प्रबन्ध के सिद्धान्त, प्रबन्ध में स्वेच्छाचार की सीमा निर्धारित करते हैं जिससे कि प्रबन्धकों के निर्णय व्यक्तिगत पसंद एवं पक्षपात से मुक्त रहें। उदाहरण के लिए, विभिन्न विभागों के लिए वार्षिक बजट के निर्धारण में प्रबन्धकों का निर्णय उनकी व्यक्तिगत पसन्द पर निर्भर रहने के स्थान पर संगठन के उद्देश्यों के प्रति योगदान के सिद्धान्त पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 34. 
प्रबन्ध के निम्नलिखित सिद्धान्त को समझाइये-
विज्ञान, न कि रूढ़िवादिता।
उत्तर:
विज्ञान, न कि रूढ़िवादिता-टेलर ने विज्ञान, न कि रूढ़िवादिता अर्थात् वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग, न कि अनुभवाश्रित विधियों का सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। टेलर के इस वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक कार्य वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण विधियों के आधार पर किया जाना चाहिए और अंगूठा टेक नियम या रूढ़िवादिता या अनुभवाश्रित विधियों का बहिष्कार किया जाना चाहिए। टेलर के मतानुसार समस्या को परिभाषित करना, वैकल्पिक समाधानों का विकास करना, परिणामों का पूर्वानुमान लगाना, प्रगति को मापना एवं परिणाम निकालना आदि पर वैज्ञानिक पद्धति आधारित है। टेलर का विश्वास था कि अधिकतम कार्यक्षमता में वृद्धि की केवल एक ही सर्वोत्तम विधि थी। इस पद्धति या विधि को अध्ययन एवं विश्लेषण के द्वारा विकसित किया जा सकता है। इस प्रकार से विकसित पद्धति को पूरे संगठन में 'अंगूठा टेक नियम' के स्थान पर लागू करना चाहिए। टेलर के अनुसार लोहे की छड़ों को डिब्बाबंद गाड़ियों में लादने की छोटी-सी उत्पादन क्रिया को भी वैज्ञानिक ढंग से नियोजित किया जा सकता है एवं उसका प्रबन्धन किया जा सकता है। इससे मानवीय शक्ति, समय तथा माल की बर्बादी में बचत होगी। जितनी अधिक व्यवस्थित प्रक्रिया होगी उतनी ही अधिक बचत होगी।

प्रश्न 35. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता एफ. डब्ल्यू. टेलर की जीवनी पर प्रकाश डालिए। 
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता
एफ.डब्ल्यू. टेलर की जीवनी 
फ्रेडरिक विंसलो टेलर का जन्म 20 मार्च, 1856 को हुआ। वे अमरीका के मैकेनिकल इंजीनियर थे। उन्होंने औद्योगिक कार्यक्षमता में सुधार करना चाहा। सन् 1874 में वह एक शिक्षार्थी मैकेनिक थे। टेलर कार्यक्षमता आन्दोलन के विद्वान नेताओं में से एक थे। उन्होंने उत्पादन की कारखाना प्रणाली के स्वरूप में परिवर्तन को बहुत अधिक प्रभावित किया। टेलर का योगदान उत्पादन की कारखाना प्रणाली को पूर्णता दिलाने में मुख्य रूप से रहा है। टेलर का मानना था कि यदि कार्य का वैज्ञानिक रीति से विश्लेषण किया जाये तो इसको करने का सर्वोत्तम ढंग हँढा जा सकता है। टेलर को इसके समय एवं गति अध्ययन के लिए याद किया जाता है। टेलर ने किसी भी कार्य को उसके घटकों में विभाजित कर प्रत्येक को सेकण्ड तक की समय अवधि में मापा।

टेलर का यह विश्वास था कि समकालीन प्रबन्ध अभी अपनी शैशव अवस्था में ही था तथा उसका एक शास्त्र के रूप में अध्ययन किया जाना चाहिए। टेलर का कहना था कि कर्मचारियों को प्रबन्ध में सहयोग करना चाहिए। वे श्रम संगठनों को अनुपयुक्त समझते थे। उनका मानना था कि संगठनों में सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्रशिक्षित एवं योग्य प्रबन्धक तथा सहयोगी एवं नूतन विचार वाले कार्यदल के बीच साझेदारी से प्राप्त होंगे। दोनों पक्षों को एक-दूसरे की आवश्यकता है। एक-दूसरे के अभाव में श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त नहीं हो सकते हैं।

सन् 1911 में 'दि प्रिंसिपल्स ऑफ साइंटीफिक मैनेजमेंट' शीर्षक से प्रकाशित लेख में उन्होंने 'वैज्ञानिक प्रबन्ध' शब्द की रचना की। उन्हें 'अमरीकन सोसाइटी ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स' का प्रधान चुना गया। इस पद पर वह सन् 1906 से 1907 तक रहे। वह 1900 (डार्ट माउथ कॉलेज) में स्थापित एक स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर रहे। 1884 में अपनी नेतृत्व क्षमताओं के कारण मिडवैल स्टील कम्पनी में कार्यकारी अधिकारी बने। उन्होंने 1898 में बैथलेहम आयरन कम्पनी में प्रवेश किया जो बाद में बेथलेहम स्टील कम्पनी बनी। मूल रूप से उन्हें कार्यानुसार मजदूरी पद्धति लागू करने के लिए रखा गया था। शीघ्र ही उन्हें कम्पनी के बड़े अधिकार सौंपे गये। अपने नये संसाधनों के मिलने पर उन्होंने अपने कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि की तथा बैथलेहम को अनुसंधान कार्य का प्रदर्शन स्थल बना दिया। दुर्भाग्यवश इस कम्पनी को उच्च शक्तिशाली लोगों को बेच दिया गया और टेलर की छुट्टी कर दी गई। सन् 1915 में उनकी निमोनिया के कारण मृत्यु हो गई।

प्रश्न 36. 
क्लासिकी प्रबंध सिद्धांत को संक्षेप में समझाइये। 
उत्तर:
क्लासिकी प्रबंध सिद्धांत-इस चरण की विशेषता विवेकशील आर्थिक विचार, वैज्ञानिक प्रबंध, प्रशासनिक सिद्धांत, अफसरशाही संगठन हैं। विवेकशील आर्थिक विचार की धारणा थी कि लोग मूलतः आर्थिक लाभों से प्रोत्साहित होते हैं। एल.डब्ल्यू. टेलर एवं अन्य का वैज्ञानिक प्रबंध उत्पादन आदि के लिए एक सर्वोत्तम ढंग पर जोर देता है। हेनरी फेयोल के समान व्यक्तित्व वाले प्रशासनिक सिद्धांतवेत्ताओं ने पद एवं व्यक्तियों को एक सक्षम संगठन में परिवर्तित करने के लिए सर्वोत्तम मार्ग ढूँढ़ा। अफसरशाही संगठन के सिद्धांतवेत्ता, जिनमें अग्रणी मैक्स वेबर थे, ने अधिकारों के गलत प्रयोग, जिससे प्रभावशीलता समाप्त होती थी, के कारण प्रबंधकीय अनियमितताओं को समाप्त करने के मार्ग की खोज की। यह औद्योगिक क्रांति एवं उत्पादन की कारखाना प्रणाली का युग था। संगठनबद्ध उत्पादन को शासित करने वाले सिद्धांतों का अनुसरण किए बिना बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं था। यह सिद्धांत श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण, मानव एवं मशीन के बीच पारस्परिक संबंध, लोगों का प्रबंधन आदि पर आधारित थे।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

प्रश्न 37. 
हेनरी फेयोल की जीवनी पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हेनरी फेयोल की जीवनी
हेनरी फेयोल का जन्म सन् 1841 में फ्रांस में हुआ था। इन्हें 'सामान्य प्रबन्ध का जनक' माना जाता है। फेयोल पेशे से खनन इंजीनियरिंग में प्रबन्ध विषय के सिद्धान्तकार माने जाते हैं। प्रबन्ध की क्लासिकल विचारधारा के विकास में फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रशासनिक सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण कड़ी का कार्य करते हैं। जहाँ टेलर ने कारखाने में कार्यशाला स्तर पर श्रेष्ठतम कार्य पद्धति की रचना करने, दिन का उचित कार्य निश्चित करने, विभेदात्मक मजदूरी प्रणाली एवं क्रियात्मक फोरमैनशिप के रूप में कार्य करने में क्रान्ति लाने में सफल रहा, वहीं फेयोल ने यह समझाया कि प्रबन्धक का क्या कार्य है एवं इसे पूरा करने के लिए किन सिद्धान्तों का पालन किया जायेगा?

हेनरी फेयोल (1841-1925) फ्रांसीसी प्रबन्ध सिद्धान्तकार था जिसके श्रम वैज्ञानिक संगठन से सम्बन्धित सिद्धान्तों का 20वीं सदी के प्रारम्भ में व्यापक प्रभाव था। वे सन् 1860 में सैंट ऐटेने की खनन अकादमी से खनन इंजीनियरिंग में स्नातक हुए।

फेयोल ने खनन कम्पनी 'कम्पेने डी कमैन्टरी फोरचम्बीन डीकैणे विल्ले' में कार्य प्रारम्भ किया तथा अन्त में 1888 से 1918 तक प्रबन्ध निदेशक के पद पर रहे। उनके सिद्धान्त उत्पादन संगठन के प्रतियोगी उद्यम जो जिसे उत्पादन लागत को नियंत्रण में रखना होता है, के सन्दर्भ में प्रयुक्त किये जाते हैं। अधिकांश रूप से अपने स्वयं के अनुभव के आधार पर उन्होंने प्रशासन की अवधारणा को विकसित किया। उनके द्वारा प्रतिपादित 14 सिद्धान्तों पर 1917 में प्रकाशित पुस्तक 'एडमिनिस्ट्रेशन इंडस्ट्रेली एट जनरैली' में चर्चा की गई थी। सन् 1949 में यह अंग्रेजी में जनरल एण्ड इण्डस्ट्रीयल मैनेजमेन्ट के शीर्षक से प्रकाशित हुई। फेयोल के योगदान के कारण ही उन्हें 'सामान्य प्रबन्ध का जनक' कहा जाता है।

प्रश्न 38. 
प्रत्येक व्यक्ति का उसकी अधिकाधिक क्षमता एवं समृद्धि के लिए विकास सिद्धांत को समझाइये।
उत्तर:
औद्योगिक कार्य क्षमता अधिकांश रूप से कर्मचारियों की योग्यताओं पर निर्भर करती है। वैज्ञानिक प्रबंध भी कर्मचारियों के विकास को मान्यता देता है। कर्मचारियों का प्रशिक्षण वैज्ञानिक तरीके से कार्य करने के परिणामस्वरूप जो श्रेष्ठतम पद्धति विकसित की गई उसको सीखने के लिए आवश्यक था। टेलर का विचार था कि कार्यकुशलता की नींव कर्मचारी चयन प्रक्रिया में ही पड़ जाती है। प्रत्येक व्यक्ति का चयन वैज्ञानिक रीति से होना चाहिए। जो कार्य उसे सौंपा जाता है वह उसकी शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक योग्यताओं के अनुरूप होना चाहिए। कार्यकुशल कर्मचारी दोनों की अधिकतम कार्यकुशलता एवं समृद्धि सुनिश्चित होगी। 

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति
प्रबन्ध के सिद्धान्तों की प्रकृति को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. सर्वप्रयुक्त-प्रबन्ध के सिद्धान्त सभी प्रकार के व्यावसायिक एवं गैर-व्यावसायिक संगठनों में, छोटे एवं बड़े, सार्वजनिक तथा निजी, विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के संगठनों में प्रयुक्त किये जा सकते हैं। लेकिन ये किस सीमा तक प्रयुक्त हो सकते हैं, यह संगठन की प्रकृति, व्यावसायिक कार्यों, परिचालन के पैमाने आदि बातों पर निर्भर करेगा।

2. सामान्य मार्गदर्शन-प्रबन्ध के सिद्धान्त कार्य के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं। लेकिन ये सभी प्रबन्धकीय समस्याओं का तैयार शत-प्रतिशत समाधान नहीं होते हैं। इसका कारण यह है कि वास्तविक परिस्थितियाँ बड़ी जटिल एवं गतिशील होती हैं, लेकिन सिद्धान्तों के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता है। क्योंकि ये समस्याओं के समाधान में सहायक होते हैं।

3. व्यवहार एवं शोध द्वारा निर्मित-प्रबन्ध के सिद्धान्तों का सभी प्रबन्धकों के अनुभव एवं बुद्धि चातुर्य एवं शोध के द्वारा ही निर्माण होता है। उदाहरणार्थ, सभी प्रबन्धकों का यह अनुभव है कि किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संगठन में अनुशासन अनिवार्य है।

4. लोचशीलता-प्रबन्ध के सिद्धान्त लचीले होते हैं। परिस्थितियों की माँग के अनुसार प्रबन्धक इनमें सुधार कर लागू कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए प्रबन्धक स्वतन्त्र रह सकते हैं।

5. मुख्यतः व्यावहारिक प्रकृति-प्रबन्ध के सिद्धान्त मुख्यतः व्यावहारिक प्रकृति के होते हैं। ये सिद्धान्त संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध को भली-भाँति समझने में सहायक होते हैं।

6. कारण एवं परिणाम का सम्बन्ध-प्रबन्ध के सिद्धान्त, कारण एवं परिणाम के बीच सम्बन्ध स्थापित करते हैं जिससे कि उन्हें बड़ी संख्या में समान परिस्थितियों में उपयोग किया जा सके। सिद्धान्त हमें यह बतलाते हैं कि यदि किसी एक सिद्धान्त को एक परिस्थिति विशेष में उपयोग किया गया है तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं ? प्रबन्ध के सिद्धान्त कम निश्चित होते हैं क्योंकि ये मुख्यतः मानवीय व्यवहार में प्रयुक्त होते हैं। वास्तविक जीवन में परिस्थितियाँ अलग होती हैं, इसलिए कारण एवं परिणाम के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना कठिन होता है। फिर भी प्रबन्ध के सिद्धान्त कुछ सीमा तक इन सम्बन्धों को स्थापित करने में प्रबन्धकों की सहायता करते हैं।

7. अनिश्चितता-प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रयोग अनिश्चित होता है अथवा समय विशेष की मौजूदा परिस्थितियों पर निर्भर करता है। आवश्यकतानुसार सिद्धान्तों के प्रयोग में परिवर्तन लाया जा सकता है।

प्रश्न 2. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों का महत्त्व
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से समझाया जा सकता है- 
1. प्रबन्धकों को वास्तविकता का उपयोगी सूक्ष्म ज्ञान प्रदान करना-प्रबन्ध के सिद्धान्तों का महत्त्व इस रूप में है कि ये प्रबन्धकों को वास्तविक दुनिया की स्थिति में उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। इन सिद्धान्तों को अपनाने से उनकी प्रबन्धकीय स्थिति एवं परिस्थितियों के सम्बन्ध में ज्ञान, योग्यता एवं समझ में वृद्धि होती है। इनकी सहायता से प्रबन्धक अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हैं और बार-बार उत्पन्न होने वाली समस्याओं को शीघ्रता से हटाकर समय की बचत कर सकते हैं।

2. संसाधनों का अधिकतम उपयोग एवं प्रभावी प्रशासन-प्रबन्ध के सिद्धान्तों की सहायता से प्रबन्धक अपने निर्णयों एवं कार्यों में कारण एवं परिणाम. के सम्बन्ध का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। इससे गलतियों से शिक्षा ग्रहण करने की नीति में होने वाली क्षति से बचा जा सकता है। इससे उत्पादन के विभिन्न संसाधनों का कम-से-कम लागत पर अधिकतम उपयोग सम्भव होता है। प्रबन्ध के सिद्धान्त, प्रबन्ध में स्वेच्छाचार की सीमा निर्धारित करते हैं जिससे कि प्रबन्धकों द्वारा लिये जाने वाले निर्णय व्यक्तिगत पसन्द एवं पक्षपात से मुक्त रहें। इस प्रकार इन सिद्धान्तों की सहायता से प्रबन्धकों द्वारा प्रशासन को प्रभावी बनाया जा सकता है।

3. वैज्ञानिक निर्णय-प्रबन्ध के सिद्धान्त विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायक होते हैं। क्योंकि ये तर्क पर जोर देते हैं, न कि आँख बन्द कर विश्वास करने पर। प्रबन्ध के जिन निर्णयों को सिद्धान्तों के आधार पर लिया जाता है वे व्यक्तिगत द्वेष भावना तथा पक्षपात से मुक्त होते हैं।

4. बदलते पर्यावरण की आवश्यकताओं को पूरा करना-सिद्धान्त यद्यपि सामान्य दिशा-निर्देश प्रदान करने वाली प्रकृति के होते हैं फिर भी इनमें परिवर्तन होता रहता है, जिससे वे प्रबन्धकों की पर्यावरण पर बदलती आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होते हैं। इन्हें गतिशील व्यावसायिक पर्यावरण के अनुरूप ढाला जा सकता है।

5. सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करनाप्रबन्ध के सिद्धान्तों के आधार पर प्रबन्धक भौतिक एवं मानवीय संसाधनों में समन्वय स्थापित करके उनका कुशलतापूर्वक उपयोग कर सकता है। इससे समाज के लोगों को अधिक सन्तुष्टि एवं अच्छा जीवन-स्तर उपलब्ध होता है। ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है और कर्मचारियों को अधिक वेतन एवं सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। प्रबन्धक समाज के प्रति अपने दायित्वों की अनदेखी नहीं कर सकता है।

6. प्रबन्ध प्रशिक्षण, शिक्षा एवं अनुसन्धानप्रबन्ध के सिद्धान्त प्रबन्ध विषय के ज्ञान का मूलाधार हैं। इनका उपयोग प्रबन्ध के प्रशिक्षण, शिक्षा एवं अनुसन्धान के आधार के रूप में किया जाता है। प्रबन्ध के सिद्धान्त प्रबन्ध को एक शास्त्र के रूप में विकसित करने का प्रारम्भिक आधार तैयार करते हैं। सिद्धान्त प्रबन्ध में विशिष्टता लाते हैं एवं प्रबन्ध की नई तकनीकों के विकास में सहायक होते हैं। परिचालन अनुसन्धान, लागत लेखांकन, समय पर केनबेन' एवं 'केजन' जैसी तकनीकों का विकास इन सिद्धान्तों और अधिक अनुसन्धान के कारण हुआ है। इस प्रकार प्रबन्ध के सिद्धान्तों का उपयोग करके प्रबन्धक प्रबन्धकीय ज्ञान के विकास के लिए शोध कार्य में सुधार कर सकते हैं।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

प्रश्न 3. 
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के विकास की गति को समझाइये।
उत्तर:
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के विकास की गति
प्रबन्ध के सिद्धान्तों के विकास की गति को हम निम्न चरणों में विभक्त कर समझा सकते हैं-
1. प्रारम्भिक स्वरूप-सर्वप्रथम प्रबन्ध के सिद्धान्तों सम्बन्धी विचारों को 3000-4000 ई. पू. में दर्ज किया गया। मिस्र के शासक क्योपास को 2900 ई. पू. में एक पिरामिड के निर्माण के लिए 1 लाख आदमियों ने 20 वर्ष तक कार्य किया। पिरामिडों के निर्माण के लिए पत्थर की शिलाओं को हजारों किलोमीटर दूर से लाया जाता था। किंवदंती यह है कि इन पिरामिडों के आस-पास के गाँवों में हथोड़े तक की आवाज नहीं सुनायी देती थी। ऐसे यादगार कार्य को बिना सफल प्रबन्ध सिद्धान्तों का अनुसरण किये पूरा करना सम्भव नहीं था।

2. क्लासिकी प्रबन्ध सिद्धान्त-क्लासिकी प्रबन्ध सिद्धान्त चरण की मुख्य विशेषता विवेकशील आर्थिक विचार, वैज्ञानिक प्रबन्ध, प्रशासनिक सिद्धान्त, अफसरशाही संगठन है। विवेकशील आर्थिक विचार की धारणा थी कि लोग मूलतः आर्थिक लाभों से प्रोत्साहित होते हैं। टेलर एवं अन्य प्रबन्धशास्त्रियों का वैज्ञानिक प्रबन्ध उत्पादन आदि के लिए कार्य करने के एक सर्वोत्तम ढंग पर जोर देता है। हेनरी फेयोल के समान व्यक्तित्व वाले प्रशासनिक सिद्धान्तवेत्ताओं ने पद एवं व्यक्तियों को एक सक्षम संगठन में परिवर्तित करने के लिए सर्वोत्तम मार्ग ढूँढ़ा। अफसरशाही संगठन के सिद्धान्तवेत्ता, जिनमें अग्रणी मैक्स वेबर थे, ने अधिकारों के गलत प्रयोग, जिससे प्रभावशीलता समाप्त होती थी, के कारण प्रबन्धकीय अनियमितताओं को समाप्त करने के मार्ग की खोज की। यह औद्योगिक क्रान्ति एवं उत्पादन की कारखाना प्रणाली का युग था। संगठनबद्ध उत्पादन को शासित करने वाले सिद्धान्तों का अनुसरण किये बिना बड़े पैमाने पर उत्पादन सम्भव नहीं था। ये सिद्धान्त श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण, मानव एवं मशीन के बीच पारस्परिक सम्बन्ध, लोगों का प्रबन्धन आदि पर आधारित थे।

3. नवक्लासिकी सिद्धान्त-मानवीय सम्बन्ध मार्ग-नवक्लासिकी सिद्धान्त विचारधारा 1920 से 1950 के बीच विकसित हुई। इस विचारधारा का मानना था कि कर्मचारी मात्र नियम, अधिकार, श्रृंखला एवं आर्थिक प्रलोभन के कारण ही विवेक से कार्य नहीं करते बल्कि वे सामाजिक आवश्यकताओं, प्रेरणाओं एवं दृष्टिकोण से भी निर्देशित होते हैं। जी.ई.सी. आदि पर 'हॉथोर्न' अध्ययन किया गया। मानवीय तत्त्व पर ध्यान देना इस विचारधारा का एक विशिष्ट पहलू था।

4. व्यावहारिक विज्ञान मार्ग-संगठनात्मक मानवतावाद-क्रिस आर्गरिस, डगलस मैक्ग्रेगर, अब्राहम मैसलो एवं फ्रेडरिक हर्जबर्ग आदि प्रबन्धशास्त्रियों ने संगठनात्मक मानवतावाद के मार्ग को विकसित करने के लिए मनोविज्ञानशास्त्र, समाजशास्त्र एवं मानवशास्त्र के ज्ञान का उपयोग किया। संगठनात्मक मानवतावाद का दर्शन है जिसमें व्यक्तियों को कार्यस्थल परं एवं घर पर अपनी सभी योग्यताओं एवं रचनात्मक कौशल का उपयोग करना होता है।

5. प्रबन्ध विज्ञान/परिचालनात्मक अनुसन्धानयह प्रबन्धकों को निर्णय लेने में सहायतार्थ परिणाम सम्बन्धी तकनीक के उपयोग प्रचालन एवं अनुसन्धान में जोर देता है।

6. आधुनिक प्रबन्ध-आधुनिक प्रबन्ध आधुनिक संगठनों को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है तथा संगठनात्मक एवं मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए आकस्मिक घटना के रूप में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करता है।

प्रश्न 4. 
वैज्ञानिक प्रबन्ध में टेलर के योगदान पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबन्ध में टेलर का योगदान
फ्रेडरिक विंसलो टेलर का जन्म अमेरिका में 20 मार्च, 1856 को हुआ था। पेशे से वे एक मैकेनिकल इंजीनियर थे। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री 1883 में स्टोवन्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से प्राप्त की थी। टेलर अपने जीवनकाल में निम्नलिखित पदों पर रहे-

  • 1874 शिक्षार्थी मैकेनिस्ट।
  • 1884 में मिडविले स्टील कम्पनी में कार्यकारी अधिकारी।
  • 1896 में बैथलेहम आयरन कम्पनी, जो बाद में बैथलेहम स्टील कम्पनी बन गई, में कार्यरत। 
  • 1900 में स्थापित एक स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर। 
  • 1906 से 1907 तक अमरीकन सोसायटी ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स के प्रधान।

लेखन कार्य-टेलर का प्रमुख लेखन कार्य निम्नलिखित रहा-
(1) दि अमरीकन मैग्जीन में 'दि प्रिंसीपल्स ऑफ साइंटीफिक मैनेजमेंट', लेख शृंखला प्रकाशित (मार्च से मई, 1911 के मध्य), बाद में पुस्तक के रूप में प्रकाशित।

(2) 1906 में 'कान्क्रीट प्लेन एण्ड रीइंफोर्स'

  • 1893 में नोट्स ऑन बैल्टिंग 
  • जून, 1895 में 'ए पीस रेट सिस्टम'
  • दिसम्बर, 1906 में 'ऑन द आर्ट ऑफ कटिंग मैटल्स' 
  • 1915 में दि मेकिंग ऑफ ए पुटिंग ग्रीन लेखमाला प्रकाशित
  • मार्च, 1918 में 'दि अमरीकन मैगजीन में प्रकाशित नोट फोर जीनियस बट फोर दि एवरेजमैन'।

टेलर ने अपनी पुस्तक 'दि प्रिंसीपल्स ऑफ साइंटिफिक मैनेजमेंट' में स्पष्ट किया है कि वैज्ञानिक प्रबन्ध के अनुसार अंगूठा टेक नियम के अन्तर्गत विकसित कार्यपद्धति में विभिन्न सुधारों में से प्रत्येक की ध्यानपूर्वक जाँच की आवश्यकता है। दूसरे प्रत्येक कार्यपद्धतियों की सहायता से प्राप्त गति से समय एवं गति अध्ययन के पश्चात् उनमें से कइयों के अच्छे बिन्दुओं को एक मानक कार्यपद्धति में एकीकृत कर लिया जायेगा जिससे कि श्रमिक पहले की अपेक्षा अधिक तेजी से एवं अधिक सरलता से कार्य कर सकेगा। यह कार्यपद्धति पहले से प्रयुक्त विभिन्न कार्यपद्धतियों के स्थान पर मानक कार्यपद्धति के रूप में अपनायी जाती है तथा यह सभी कर्मचारियों के लिए तब तक मानक बनी रहती है जब तक कि गति एवं समय अध्ययन द्वारा कोई अन्य इससे भी श्रेष्ठ पद्धति इसका स्थान न ले ले। 

वैज्ञानिक प्रबन्ध के मुख्य तत्त्व-
"समय अध्ययन 
क्रियात्मक अथवा विशिष्ट पर्यवेक्षण 
उपकरणों का मानकीकरण 
कार्यपद्धतियों का मानकीकरण
पृथक् नियोजन कार्य
अपवाद द्वारा प्रबन्ध का सिद्धान्त
'स्लाइड रूल्स' एवं इसी प्रकार के अन्य समय बचाने वाले साधनों का प्रयोग
कार्य का आवंटन एवं सफल निष्पादन के लिए बड़ी बोनस राशि
'विभेदात्मक दर' का प्रयोग 
उत्पाद एवं कार्यप्रणालियों की नेमोनिक प्रणाली 
कार्यक्रम प्रणाली 
आधुनिक लागत प्रणाली आदि"

टेलर उपर्युक्त तत्त्वों को 'प्रबन्ध के तंत्र के मात्र तत्व' अथवा 'विस्तृत विवरण' कहते थे। वह इन्हें प्रबन्ध के चार सिद्धान्तों के विस्तार के रूप में देखते थे-

  • वास्तविक विज्ञान का विकास 
  • कर्मचारी का वैज्ञानिक पद्धति से चयन
  • कर्मचारी का वैज्ञानिक रीति से शिक्षा एवं विकास
  • प्रबन्ध एवं कर्मचारियों के बीच नजदीकी एवं मित्रतापूर्ण सहयोग।

वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्त-टेलर ने वैज्ञानिक प्रबन्ध के जो सिद्धान्त प्रतिपादित किये थे वे इस प्रकार हैं-विज्ञान पद्धति, न कि अंगूठा टेक नियम; सहयोग, न कि टकराव; सहयोग, न कि व्यक्तिवाद; प्रत्येक व्यक्ति का उसकी अधिकाधिक क्षमता एवं समृद्धि के लिए विकास।

वैज्ञानिक प्रबन्ध की तकनीकें-टेलर ने वैज्ञानिक प्रबन्ध की तकनीकें इस प्रकार बतलायी हैं-कार्यात्मक फोरमैनशिप; कार्य का प्रमापीकरण एवं सरलीकरण; कार्यपद्धति अध्ययन; गति, समय एवं थकान अध्ययन तथा विभेदात्मक पारिश्रमिक प्रणाली।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

प्रश्न 5. 
टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन के व्यवसाय संबंधी सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन के व्यवसाय संबंधी सिद्धांत-टोयोटा अपने कार्य परिचालन को दिशानिर्देश देने वाले कुछ भली-भाँति परिभाषित व्यवसाय संबंधी सिद्धांतों का पालन करती है। ये सिद्धांत हैं-

  • प्रत्येक देश की भाषा एवं कानून की भावना का आदर करना खुली एवं उचित निगमत क्रियाओं को करें जिससे कि पूरे विश्व में एक अच्छा निगमत नागरिक बन सकें।
  • प्रत्येक देश की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों का आदर करें एवं स्थानीय समुदायों के बीच निगमत क्रियाओं के माध्यम से आर्थिक एवं सामाजिक विकास में योगदान दें। 
  • स्वच्छ एवं सुरक्षित उत्पाद उपलब्ध कराएँ तथा प्रत्येक जगह जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करें।
  • उन्नत तकनीक का निर्माण एवं विकास करें एवं उच्च स्तरीय उत्पाद एवं सेवाएँ उपलब्ध कराएँ जो पूरे विश्व में ग्राहकों की आवश्यकता की पूर्ति कर सकें।
  • ऐसी निगमत संस्कृति का पालन जो प्रबंध एवं श्रम के बीच पारस्परिक विश्वास एवं सम्मान की रक्षा
  • करते हुए व्यक्तिगत सृजनात्मकता एवं मिलजुल कर कार्य करने के मूल्यों में वृद्धि कर सकें।
  • नवीन प्रबंध के माध्यम से विश्व समुदाय के साथ विकास एवं एकता को अपनाएँ। 
  • स्थायी, दीर्घ अवधि विकास एवं पारस्परिक लाभ को पाने के लिए अनुसंधान एवं सृजनात्मक के क्षेत्र में व्यावसायिक साझेदारी के साथ मिलकर कार्य करें एवं नए साझे के लिए तैयार रहें।

यह सिद्धांत कंपनी को अपने 2010 के वैश्विक स्वप्न को दिशा प्रदान करेंगे। यह वैश्विक स्वप्न भविष्य में निरंतर नयापन, पर्यावरण, मित्र तकनीकी, समाज के -विभिन्न वर्गों का आदर करना एवं उनके साथ काम करना तथा समाज के साथ पारस्परिक विचार विमर्श करने की अपेक्षा रखता है।

प्रश्न 6. 
वैज्ञानिक प्रबंध के निम्नलिखित शब्दों को समझाइये
(क) समयावधि में विनिर्माण 
(ख) धीमा विनिर्माण 
(ग) केज़न 
(घ) सिक्स सिगमा।
उत्तर:
(क) समयावधि में विनिर्माण-यह प्रक्रिया में संचित माल तथा इससे जुड़ी लागत को कम कर निवेश पर प्रति प्राप्ति में सुधार हेतु माल संचय प्रबंधन की व्यूह-रचना है। इस प्रणाली का क्रियान्वयन दृष्टव्य इशारों अथवा 'केनबेन' द्वारा किया जाता है जो हमें यह बताता है कि उत्पादन प्रक्रिया के किसी स्तर पर हमें पुनः पूर्ति की आवश्यकता है अथवा नहीं।

(ख) धीमा विनिर्माण-यह प्रबंध का दर्शन है। जिसमें किसी भी प्रकार की विनिर्माण प्रक्रिया अथवा किसी भी प्रकार के व्यवसाय में उत्पादन आधिक्य की सात हानियों में कमी लाने पर ध्यान दिया जाता है। ये हानियाँ हैं - इंतजार का समय, परिवहन, प्रक्रियण, गति, संचित माल एवं रद्दी। रद्दी/बर्बादी को यदि समाप्त कर दिया जाए तो गुणवत्ता में सुधार होगा, उत्पादन के समय में कमी आएगी तथा लागत में भी कमी आएगी।

(ग) केजन-यह एक जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है श्रेष्ठतर के लिए परिवर्तन अथवा सुधार। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् जापानियों के द्वारा अपनाया गया। अमरीका के विशेषज्ञ जैसे कि एफ. डब्ल्यू. टेलर के सिद्धांतों का उपयोग के माध्यम से उत्पादकता में सुधार का मार्ग है। केज़न के उद्देश्यों में अपव्यय शामिल हैं (जिसका अर्थ है वे क्रियाएँ जो वस्तु एवं सेवाओं की लागत तो बढ़ाती हैं लेकिन मूल्य में वृद्धि नहीं करती) को कम करना, समय पर सुपुर्दगी, उत्पादन भार राशि एवं प्रकारों का एक समान करना, प्रमाणीकृत कार्य, ठीक आकार के उपकरण एवं अन्य। जापानी इस शब्द का और भी अधिक गहराई से अर्थ लगाते हैं, 'एक ओर ले जाकर अधिक उपयुक्त स्थिति में रखना'। जिसे अलग से देखा जाता है यह है प्रक्रिया, प्रणाली, उत्पाद अथवा सेवा। यह एक से प्रतिदिन की क्रिया है कार्य स्थल का मानवीकरण करती है, शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के कठोर परिश्रम को समाप्त करती है, लोगों को सिखाती है कि किस प्रकार से वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग कर तेजी से अनुसंधान कार्य किया जा सकता है तथा कैसे व्यावसायिक प्रक्रिया में अपव्यय के संबंध में जाना जा सकता है तथा उसे समाप्त किया जा सकता है।

(घ) सिक्स सिगमा-यह डाटा से प्रेरित मार्ग है जो किसी भी क्षेत्र में कार्यरत संगठन को गुणवत्ता की भिन्नताओं में कमी लाकर अकुशलता में कमी लाते हैं तथा समय एवं धन की बचत करने में सहायता करता है। इसका ग्राहक मूल दृष्टिकोण है जिसमें और अधिक कुशल प्रक्रिया अथवा वर्तमान प्रक्रिया को और श्रेष्ठ बनाने के लिए आँकड़ों पर निर्भर करना पड़ता है। निर्धारित मानदंडों के अनुसार प्रति दस लाख अवसरों में से तीन या चार से अधिक दोष नहीं होने चाहिए। इसे किसी भी प्रक्रिया में प्रयोग में लाया जा सकता है, पर आवश्यकतानुसार संगठनात्मक आलंबन/समर्थन प्राप्ति की भी आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 7. 
प्रबन्ध जगत् में हेनरी फेयोल के योगदान का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
प्रबन्ध जगत् में हेनरी फेयोल का योगदान 
हेनरी फेयोल (1841-1925) फ्रांसीसी प्रबंध सिद्धांतकार थे। इनके श्रम वैज्ञानिक संगठन से संबंधित सिद्धांतों का 20वीं सदी के प्रारंभ में व्यापक प्रभाव था। सन् 1949 में उनकी पुस्तक 'इण्डस्ट्रीयल एण्ड जनरल मैनेजमेंट' का अंग्रेजी संस्करण प्रकाशित हुआ। इसके बाद तो प्रबन्ध जगत् के लोग उन्हें 'सामान्य प्रबन्ध का जन्मदाता' के नाम से सम्बोधित करने लगे हैं।

फेयोल ने अपनी पुस्तक में प्रबन्ध की सम्पूर्ण विचारधारा का उल्लेख किया है। उन्होंने सम्पूर्ण संगठन के सभी स्तरों के सन्दर्भ में प्रबन्ध के कार्यों का विश्लेषण किया है।

1. औद्योगिक इकाई की क्रियाओं का वर्गीकरण-फेयोल ने अपनी पुस्तक में औद्योगिक इकाई की सभी क्रियाओं को निम्न प्रकार से बाँटा है-

  • तकनीकी अर्थात् उत्पादन सम्बन्धी क्रियाएँ।
  • वाणिज्यिक अर्थात् क्रय-विक्रय विनिमय सम्बन्धी क्रियाएँ।
  • वित्तीय अर्थात् पूँजी साधनों की खोज तथा उनके समुचित उपयोग सम्बन्धी क्रियाएँ।
  • सुरक्षा अर्थात् सम्पत्तियों एवं कर्मचारियों की सुरक्षा सम्बन्धी क्रियाएँ।
  • लेखांकन अर्थात् विभिन्न वित्तीय एवं लागत लेखे तथा समंक तैयार करने सम्बन्धी क्रियाएँ।
  • प्रबन्धकीय अर्थात् नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण करना।

2. प्रबन्ध के कार्य या तत्व-हेनरी फेयोल पहला व्यक्ति था जिसने प्रबन्धकीय क्रियाओं को ही प्रबन्धकों के कार्य के रूप में निर्धारित किया था। उनके अनुसार नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण प्रबन्ध के कार्य हैं जो प्रत्येक प्रबन्धक को निरन्तर करने पड़ते हैं। 

3. प्रबन्धकीय गुण-फेयोल ने यह सुझाव दिया कि एक प्रबन्धक में शारीरिक, नैतिक, शैक्षणिक, ज्ञान एवं अनुभव जैसे गुण होने चाहिए। उनका यह मानना था कि प्रबन्धकीय कार्यों की सफलता के लिए केवल सिद्धान्तों की जानकारी होना आवश्यक नहीं है वरन् प्रत्येक प्रबन्धक में इन गुणों का होना भी आवश्यक है।

4. प्रबन्ध के सिद्धान्त-फेयोल ने प्रबन्धकीय कार्यों को रोकने के लिए 14 मार्गदर्शक सिद्धान्तों का उल्लेख किया। वे इन सिद्धान्तों को प्रबन्ध के सम्पूर्ण सिद्धान्तों की सूची तो नहीं मानते थे किन्तु वे इन्हें प्रबन्ध के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त अवश्य मानते थे। उनके प्रबन्ध के 14 सिद्धान्त इस प्रकार हैं-(1) कार्य विभाजन का सिद्धान्त (2) अधिकार एवं उत्तरदायित्व का सिद्धान्त (3) अनुशासन का सिद्धान्त (4) आदेश की एकता का सिद्धान्त (5) निर्देश की एकता का सिद्धान्त (6) सामूहिक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों का समर्पण का सिद्धान्त (7) कर्मचारियों के प्रतिफल का सिद्धान्त (8) केन्द्रीकरण एवं विकेन्द्रीकरण का सिद्धान्त (9) सोपान श्रृंखला का सिद्धान्त (10) व्यवस्था का सिद्धान्त (11) समता का सिद्धान्त (12) कर्मचारियों की उपयुक्तता का सिद्धान्त (13) पहल-क्षमता का सिद्धान्त (14) सहयोग की भावना का सिद्धान्त।

फेयोल का कहना था कि प्रबन्ध के सिद्धान्तों को लोचहीन नियमों की भाँति नहीं समझना चाहिए। उनका सुझाव था कि प्रबन्ध के सिद्धान्तों को लोचशील एवं व्यावहारिक मानना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार उन्हें अपनाना चाहिए।

5. प्रबन्ध की सार्वभौमिकता-फेयोल ने प्रबन्ध की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि यह सार्वभौमिक है। उनका मानना था कि सभी प्रबन्धक समान प्रकार के आधारभूत कार्य करते हैं और इन कार्यों को करने के लिए कुछ सामान्य सिद्धान्तों को अपनाया जाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 2 प्रबन्ध के सिद्धान्त

प्रश्न 8. 
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के सिद्धान्तों को समझाइये। 
उत्तर:
हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के सिद्धान्त 
फेयोल ने प्रबन्धकीय कार्यों को करने के लिए निम्नलिखित 14 मार्गदर्शक सिद्धान्तों का उल्लेख किया है-
1. कार्य-विभाजन का सिद्धान्त-फेयोल के मतानुसार कार्य विभाजन के सिद्धान्त का प्रयोग प्रबन्धकीय तथा तकनीकी सभी प्रकार के कार्यों के लिए किया जाना चाहिए। इस सिद्धान्त की मान्यता है कि कार्य को उसकी प्रकृति के अनुसार छोटे-छोटे भागों में विभाजित करना चाहिए तथा कार्य के प्रत्येक भाग को विशिष्ट ज्ञान या योग्यता रखने वाले व्यक्तियों को सौंपना चाहिए। इससे कार्य का निष्पादन कम लागत पर कम समय में किया जाना संभव होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति के पास समय भी सीमित होता है। अतः सभी कार्य वह अकेले ही नहीं कर सकता है। इसलिए भी कार्य का विभाजन अनिवार्य हो जाता है।

2. अधिकार एवं उत्तरदायित्व का सिद्धान्तअधिकार का अर्थ है उन शक्तियों का योग जिससे सौंपे गये कार्य को करना सम्भव बनाया जा सके और उत्तरदायित्व का अर्थ है कार्य के उस भाग के लिएं जो एक व्यक्ति को सम्पन्न करना है, उच्च प्रबन्ध के समक्ष जवाबदेह होगा। फेयोल ने अधिकार को 'औपचारिक अधिकार' (जो उसने प्रबन्ध की औपचारिक पदस्थिति से प्राप्त हुए हैं) तथा व्यक्तिगत अधिकार (बुद्धिमत्ता, अनुभव, नैतिकता, भूतकाल की सेवाएँ आदि) के संयोजन के रूप में माना है। उनके अनुसार अधिकार और दायित्व के बीच समानता का होना आवश्यक है। संगठन को प्रबन्धकीय शक्ति के दुरुपयोग से बचाव की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके साथ-साथ प्रबन्धक के पास उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए आवश्यक अधिकार होने चाहिए।

3. अनुशासन का सिद्धान्त-अनुशासन से अभिप्राय संगठन के कार्य करने के लिए आवश्यक नियम एवं नौकरी की शर्तों का पालन करने से है। यह वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति या समूह को निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नियमों एवं पद्धतियों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है। फेयोल के अनुसार अनुशासन बनाये रखने के लिए प्रबन्ध के सभी स्तरों पर योग्य एवं अनुभवी प्रबन्धक होने चाहिए और उनको पूर्ण निरपेक्षता से कार्य करना चाहिए।

4. आदेश की एकता का सिद्धान्त-फेयोल के अनुसार प्रत्येक कर्मचारी का केवल एक ही अधिकारी होना चाहिए और केवल उसी से आदेश मिलने चाहिए। यदि किसी कर्मचारी को एक समय में एक से अधिक अधिकारी से आदेश प्राप्त होंगे तो कर्मचारी भ्रमित हो जायेगा और वह यह भी निश्चित नहीं कर पायेगा कि पहले किसका कार्य किया जाये? अतः भ्रम से बचने के लिए दोहरी अधीनस्थता समाप्त होनी चाहिए।

5. निर्देश की एकता का सिद्धान्त-फेयोल के अनुसार, निर्देश की एकता के सिद्धान्त के अनुसार कार्य की प्रत्येक क्रिया के लिए जिसके एक समान उद्देश्य हैं एक अध्यक्ष और एक ही योजना होनी चाहिए। इस सिद्धान्त का प्रयोग यदि उचित ढंग से किया जाये तो कार्य में एकता आती है और समन्वय में सहायता मिलती है।

6. सामूहिक हितों के लिए व्यक्तिगत हितों का समर्पण-फेयोल के अनुसार संगठन के हितों को कर्मचारी विशेष के हितों की तुलना में प्राथमिकता देनी चाहिए। यह तभी सम्भव है जब प्रबन्धक अपने व्यवहार द्वारा इसका एक उदाहरण स्थापित करें।

7. कर्मचारियों के प्रतिफल का सिद्धान्तफेयोल के अनुसार, पारिश्रमिक एवं मजदूरी भुगतान की विधियाँ न्यायोचित होनी चाहिए जिससे नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनों को अधिकतम सन्तुष्टि मिले। किसी के प्रति अन्याय कर्मचारियों के मनोबल को कम कर देगा और कर्मचारी अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं कर पायेंगे। प्रतिफल न्यायोचित होगा तो इससे संगठन में अनुकूल वातावरण बनेगा और कर्मचारी तथा प्रबन्ध के बीच सम्बन्ध सुधरेंगे।

8. केन्द्रीकरण एवं विकेन्द्रीकरण का सिद्धान्त-संस्था में यदि निर्णय लेने का अधिकार केन्द्रित है तो इसे 'केन्द्रीकरण' कहेंगे जबकि अधिकार यदि एक से अधिक व्यक्तियों को सौंप दिये जाते हैं तो इसे 'विकेन्द्रीकरण' कहेंगे। फेयोल के शब्दों में, अधीनस्थों का विकेन्द्रीकरण के माध्यम से अन्तिम अधिकारों का अपने पास रखने में सन्तुलन बनाये रखने की आवश्यकता है। व्यक्तिगत स्थितियाँ केन्द्रीकरण की सीमा निर्धारित करती हैं और तभी समस्त क्रियाओं का सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हो पाता है।

9. सोपान श्रृंखला-फेयोल के अनुसार, सोपानिक श्रृंखला उच्च अधिकारियों से लेकर निम्न स्तर के अधिकारियों तथा अधिकारों की रेखा तथा अधिकारियों की एक श्रृंखला है। उनके अनुसार यदि कोई अधीनस्थ अपनी आधिकारिक रेखा की अवहेलना बिना किसी कारण से करता है तो यह गलत है लेकिन वह इस बात की अनुमति देते हैं कि यदि इस सत्ता श्रृंखला का कठोरता से पालन करने के कारण कोई हानि होती है तो श्रृंखला को छोटा किया जा सकता है। फेयोल ने दो या दो से अधिक सम्बन्धित अधिकारियों के बीच शीघ्र सम्पर्क स्थापित करने को 'समतल सम्पर्क' का नाम दिया। निर्धारित अधिकारों की रेखा का उल्लंघन करके ये अधिकारी एक-दूसरे के साथ बैठकर अपनी विभिन्न समस्याओं का शीघ्र ही निवारण कर सकते हैं।

10. व्यवस्था का सिद्धान्त-फेयोल के अनुसार, प्रत्येक वस्तु (या व्यक्ति) अपने स्थान पर होनी चाहिए। यह सिद्धान्त वास्तव में किसी संगठन में व्यक्तियों और वस्तुओं की व्यवस्था का सिद्धान्त है। यदि प्रत्येक चीज के लिए कोई स्थान निश्चित है और वह चीज उसी स्थान पर है तो कारखाने की क्रियाओं में कोई व्यवधान पैदा नहीं होगा। इससे उत्पादकता एवं क्षमता दोनों में वृद्धि होगी। 

11. समता का सिद्धान्त-फेयोल के शब्दों में, "सभी कर्मचारियों के साथ निष्पक्षता एवं समता का व्यवहार किया जाना चाहिए। यह सिद्धान्त प्रबन्धकों के श्रमिकों के प्रति व्यवहार में दयाभाव एवं न्याय पर जोर देता है। समता का यह अर्थ नहीं है कि संगठन में कठोरता का पूर्ण रूप से अभाव हो। कभी-कभी समता को बनाये रखने के लिए संगठन में कठोरता को अपनाना अति आवश्यक होता है लेकिन फेयोल के अनुसार केवल अच्छे व्यवहार, उचित निर्णय तथा पर्याप्त अनुभव वाला प्रबन्धक ही समता के सिद्धान्त को प्रयोग में ला सकता है।"

12. कर्मचारियों की उपयुक्तता का सिद्धान्तफेयोल के अनुसार, "संगठन की कार्यकुशलता को बनाये रखने के लिए कर्मचारियों की आवर्त को न्यूनतम किया जा सकता है।" कर्मचारियों का चयन एवं नियुक्ति उचित एवं कठोर प्रक्रिया के द्वारा की जानी चाहिए। लेकिन चयन होने के पश्चात् उन्हें न्यूनतम निर्धारित अवधि के लिए पद पर बनाये रखना चाहिए। उनका कार्यकाल स्थिर होना चाहिए। उन्हें परिणाम दिखाने के लिए उपयुक्त समय दिया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में किसी भी प्रकार की तदर्थता कर्मचारियों में अस्थिरता तथा असुरक्षा पैदा करेगी। वह संगठन को छोड़ना चाहेगा। इसीलिए कर्मचारी के कार्यकाल की स्थिरता व्यवसाय के लिए श्रेष्ठकर रहती है।

13. पहल-क्षमता का सिद्धान्त-फेयोल का मानना है कि, "कर्मचारियों को सुधार के लिए अपनी योजनाओं के विकास एवं उनको लागू करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। पहल-क्षमता का अर्थ हैस्वयं अभिप्रेरणा की दिशा में पहला कदम उठाना। इसमें योजना पर विचार कर फिर उसको क्रियान्वित किया जाता है। प्रत्येक प्रबन्धक को चाहिए कि वह अपने अधीनस्थों को पहल करने के अवसर प्रदान करे लेकिन पहल करने का अर्थ निर्धारित नियमों के विरुद्ध जाना अधिकारों और अनुशासन का उल्लंघन करना नहीं है।

14. सहयोग की भावना का सिद्धान्त-फेयोल के अनुसार, "प्रबन्ध को कर्मचारियों में एकता एवं पारस्परिक सहयोग की भावना को बढ़ावा देना चाहिए।" बड़े संगठनों में प्रबन्ध के सामूहिक कार्य को बढ़ावा देना चाहिए। क्योंकि ऐसा नहीं होने पर उद्देश्यों को प्राप्त करना कठिन हो जायेगा। इससे समन्वय की भी हानि होगी। सहयोग की भावना के पोषण के लिए प्रबन्धक को कर्मचारियों से पूरी बातचीत में 'मैं' के स्थान पर, 'हम' का प्रयोग करना चाहिए। इससे समूह के सदस्यों में पारस्परिक विश्वास एवं अपनेपन की भावना पैदा होगी।

admin_rbse
Last Updated on June 21, 2022, 5:54 p.m.
Published June 20, 2022