RBSE Class 11 Psychology Notes Chapter 4 मानव विकास

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RBSE Class 11 Psychology Chapter 4 Notes मानव विकास

→ प्रसवपूर्व अवस्था का विकास माता के कुपोषण, माता के मादक द्रव्य के सेवन तथा माता को होने वाली कुछ बीमारियों से प्रभावित हो सकता है। पेशीय विकास शिरःपदाधिमुख तथा समीप-दूराभिमुख प्रवृत्तियों का अनुसरण करता है। प्रारंभिक पेशीय विकास परिपक्वता तथा अधिगम दोनों पर ही निर्भर करता है।

→ बच्चे के लालन-पालन में सांस्कृतिक भिन्नताएँ, बच्चे तथा उनके देख-रेख करने वालों के बीच की आसक्ति के स्वरूप को प्रभावित कर सकती हैं। मनोवैज्ञानिक पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत के अनुसार बच्चे में वस्तु-स्थायित्व की पहचान का क्रमशः विकसित होना संवेदी प्रेरक अवस्था की मुख्य विशेषता है। पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था के चिंतन में कुछ कमियाँ, जैसे-केंद्रीकरण, अप्रतिक्रमणीयता एवं अहंकेंद्रवाद पाई जाती हैं।

→ मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बच्चे वस्तुओं के मानसिक निरूपण पर संक्रियाओं को निष्पादित करने की योग्यता विकसित कर लेते हैं जो उन्हें संरक्षण के नियम को समझने में सक्षम बनाती है।

→ औपचारिक संक्रिया की अवस्था अधिक अमूर्त, व्यवस्थित होती है एवं तार्किक विचारों को विकसित करती है।

→ कोल्हबर्ग के अनुसार नैतिक तर्कना में प्रगति तीन चरणों, जो आयु संबद्ध होते हैं, में होती है और संज्ञानात्मक विकास के द्वारा निर्धारित होती है। 

RBSE Class 11 Psychology Notes Chapter 4 मानव विकास 

→ यौवनारंभ की अवस्था में संवृद्धि की तीव्रता एक महत्त्वपूर्ण घटना है जिसमें प्रजनन संबंधी परिपक्वता तथा गौण लैंगिक लक्षण अंतर्निहित हैं। एरिक्सन के अनुसार पहचान निर्माण की ओर अग्रसर होना किशोरों की एक मुख्य चुनौती है।

→ प्रौढ़ावस्था में व्यक्तित्व में स्थायित्व एवं परिवर्तन दोनों ही पाए जाते हैं। प्रौढ़ों के विकास की अनेक प्रमुख घटनाओं में पारिवारिक संबंधों में परिवर्तन सन्निहित है जिसमें विवाह, मातृपितृत्व तथा बच्चों के घर से बाहर जाने के प्रति समायोजन सम्मिलित है।

→ प्रौढ़ावस्था में आयु संबद्ध शारीरिक परिवर्तनों में रंग-रूप, स्मृति तथा संज्ञानात्मक आयामों में परिवर्तन सम्मिलित हैं।

Prasanna
Last Updated on Sept. 23, 2022, 2:28 p.m.
Published Sept. 23, 2022