RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 12 ऊष्मागतिकी

These comprehensive RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 12 ऊष्मागतिकी will give a brief overview of all the concepts.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Physics in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Physics Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Physics Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 11 Physics Chapter 12 Notes ऊष्मागतिकी

→ तापीय साम्य तापीय साम्य में, दो निकायों के ताप समान होते हैं । ऊष्मागतिकी का शून्य कोटि का नियम भी इसकी ओर ही संकेत करता

→ ऊष्मागतिकी का शून्यांकी नियम-इस नियम के अनुसार यदि कोई ऊष्मागतिक निकाय A व B पृथक्-पृथक् किसी अन्य परीक्षण निकाय C के साथ तापीय साम्यावस्था में हो तो निकाय A तथा C एवं निकाय B व C भी आपस में तापीय साम्यावस्था में होंगे। शून्यांकी नियम ताप को परिभाषित करता है।

→ निकाय की आन्तरिक ऊर्जा उसके आण्विक घटकों की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जाओं के योग के बराबर होती है। इसमें केवल गतिज ऊर्जा की हानि ही होती है । ऊष्मा और कार्य किसी निकाय में ऊर्जा स्थानांतरण के दो रूप हैं । तापान्तर के कारण किसी निकाय में ऊर्जा का स्थानान्तरण ऊष्मा के रूप में होता है।

→ ऊष्मा और कार्य में संबंध उचित परिस्थितियों में किसी तंत्र (निकाय) पर किया गया सम्पूर्ण कार्य W ऊष्मा Q में परिवर्तित हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में उत्पन्न ऊष्मा किये गये कार्य के समानुपाती होती है। अर्थात्
W = JQ
आनुपातिकता स्थिरांक J को ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक कहते हैं एवं इसका मान 4.184 जूल प्रति कैलोरी है।

→ ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम- ΔQ = ΔW + dU जहाँ ΔQ किसी निकाय द्वारा ली गई ऊष्मा, ΔW उसके द्वारा किया गया कार्य व dU । उसकी आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि है। ΔQ व ΔW पथ पर निर्भर करते हैं, जबकि dU पथ पर निर्भर नहीं करती।

RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 12 ऊष्मागतिकी 

→ ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के दोष
(i) क्रिया की दिशा का ज्ञान नहीं होता है।

(ii) ऊर्जा रूपान्तरण की दक्षता का ज्ञान नहीं होता है। पदार्थ की विशिष्ट ऊष्माधारिता को हम निम्नलिखित सूत्र द्वारा परिभाषित करते हैं
s = \(\frac{1}{m} \frac{\Delta Q}{\Delta T}\)
यहाँ m पदार्थ का द्रव्यमान है तथा ΔQ वह ऊष्मा है जिसके द्वारा पदार्थ के ताप में ΔT की वृद्धि हो जाती है। पदार्थ की मोलीय विशिष्ट ऊष्माधारिता निम्नांकित सूत्र से परिभाषित की जाती है
C = \(\frac{1}{n} \frac{\Delta \mathrm{Q}}{\Delta \mathrm{T}}\)
n पदार्थ के मोल की संख्या को व्यक्त करता है। किसी ठोस के लिए ऊर्जा के सम विभाजन के नियम से
C = 3R
जो सामान्यतया साधारण तापों पर किए जाने वाले प्रयोगों से प्राप्त परिणामों से मेल खाता है।
कैलोरी ऊष्मा का पुराना मात्रक है। 1 कैलोरी ऊष्मा की वह मात्रा है जो 1 g जल के ताप में 14.5°C से 15.5°C तक वृद्धि कर देती है। 1 cal = 4.186J

→ किसी आदर्श गैस के लिये स्थिर आयतन तथा स्थिर दाब पर मोलीय विशिष्ट ऊष्माधारितायें निम्न संबंध के नियम का पालन करती हैं। इस सम्बन्ध को मेयर का संबंध भी कहते हैं।
Cp - Cv =R
यहाँ पर Cp व Cv गैस की विशिष्ट ऊष्मा हैं। R गैस का सार्वत्रिक नियतांक है।

→ अवस्था एवं अवस्था समीकरण किसी निकाय की अवस्था ऊष्मागतिक निर्देशांक (P. V. T) से प्रदर्शित की जाती है। अवस्था समीकरण इन निर्देशांकों में सम्बन्ध को व्यक्त करती है। जैसे आदर्श गैस समीकरण PV=nRT विभिन्न अवस्था चरों के मध्य एक संबंध को व्यक्त करता

→ कोई स्थैतिक कल्प प्रक्रम अत्यंत धीमी गति से सम्पन्न होने वाला प्रक्रम है जिसमें निकाय परिवेश के साथ पूरे समय तापीय व यांत्रिक साम्य में रहता है। स्थैतिक कल्प प्रक्रम में परिवेश के दाब व ताप तथा निकाय के दाब व ताप में अनंत सूक्ष्म अंतर हो सकता है।

→ किसी आदर्श गैस के ताप T पर आयतन V, से V, तक होने वाले किसी समतापीय प्रसार में अवशोषित ऊष्मा Q का मान गैस द्वारा किये गये कार्य W के बराबर होता है। [क्योंकि इस स्थिति में आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन शून्य होता है।] अर्थात् प्रत्येक का मान होगा
Q = W = nRT loge (V2/V1)
या W = 2.303nRT loge (V2/V1)
इसमें अवस्था समीकरण PV = नियतांक होता है।

→ समआयतनिक प्रक्रम नियत आयतन पर किये जाने वाले प्रक्रम होते हैं। इसके लिये W = ∫PdV =0 तथा प्रथम नियम से एक मोल गैस के लिये ΔQ = dU = CvdT होता है।

→ समदाबीय प्रक्रम नियत दाब पर किये जाने वाले प्रक्रम होते हैं। पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के समय दाब नियत रहता है। इस विधि में गैस द्वारा किया जाने वाला कार्य
ΔW =P(V2 - V1) = nR(T2 - T1)
चूँकि ताप परिवर्तित होता है। अतः आंतरिक ऊर्जा भी परिवर्तित होती है।

→ रुद्धोष्म प्रक्रम-ये वे क्रियायें होती हैं जिनमें निकाय ऊर्जा का आदान-प्रदान नहीं कर सकता है।
AQ =0
कार्य W = \(\frac{n \mathrm{R}}{\gamma-1}\) (T2 - T1)
गैस द्वारा किया गया कार्य W = ∫PdV गैस द्वारा किया गया कार्य पथ पर निर्भर करता है। गैस द्वारा किया गया कार्य P - V सूचक आरेख व आयतन अक्ष के बीच के क्षेत्रफल के बराबर होता है।

→ किसी निकाय की आंतरिक ऊर्जा उसके अणुओं की कुल ऊर्जाओं का योग होती है, किसी दिये गये पदार्थ की मात्रा के लिये आंतरिक ऊर्जा ताप बढ़ाने पर बढ़ती है। अवस्था परिवर्तन पर उसी ताप पर दो अवस्थाओं की आंतरिक ऊर्जा भिन्न-भिन्न होती है।

→ किसी गैस के लिये उसका आयतन V, दाब P व ताप T अवस्था कारक कहलाते हैं व इनमें संबंध अवस्था समीकरण कहलाता है। किन्हीं दो अवस्था कारकों के मध्य आरेख सूचक आरेख कहलाता है। P - V सूचक आरेख सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे निकाय द्वारा किये गये कार्य की गणना की जा सकती है।

→ यदि कोई भी क्रिया ठीक उसी पथ पर विपरीत दिशा में लाई जा सके तो वह उत्क्रमणीय क्रिया कहलाती है अन्यथा वह अनुत्क्रमणीय होती है।

RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 12 ऊष्मागतिकी

→ दाब P, आयतन V, ताप T तथा ऊष्मा Q में से किसी गैसीय प्रक्रम में किसी एक चर को स्थिर रखते हुये क्रमशः निम्न गैसीय प्रक्रम हो सकते हैं-समदाबी, समआयतनी, समतापी तथा रुद्धोष्म।

→ ऊष्मा इंजन-ऊष्मा इंजन एक ऐसी युक्ति है जिसमें निकाय एक चक्रीय प्रक्रम में चलता है जिसके परिणामस्वरूप ऊष्मा कार्य में परिवर्तित होती है। यदि एक चक्र में स्रोत से अवशोषित ऊष्मा Q1, अभिगम को मुक्त की गई ऊष्मा Q2, तथा W निर्गत कार्य है, तो इंजन की दक्षता
η = \(\frac{\mathrm{W}}{\mathrm{Q}_1}=\left(\frac{\mathrm{Q}_1-\mathrm{Q}_2}{\mathrm{Q}_1}\right)=1-\frac{\mathrm{Q}_2}{\mathrm{Q}_1}\)

→ प्रशीतक या ऊष्मा पंप में निकाय ठंडे ऊष्माशय से Q2 ऊष्मा ग्रहण करता है तथा Q1 मात्रा गरम ऊष्मा भंडार को मुक्त करता है। इस प्रक्रिया में निकाय पर W कार्य सम्पन्न होता है। प्रशीतक का निष्पादन गुणांक निम्न प्रकार से परिभाषित होता है
α = \(\frac{\mathrm{Q}_2}{\mathrm{~W}}=\frac{\mathrm{Q}_2}{\mathrm{Q}_1-\mathrm{Q}_2}\)

→ कार्नो इंजन की दक्षता
RBSE Class 11 Physics Notes Chapter 12 ऊष्मागतिकी 1

→ किसी ऊष्मीय इंजन की दक्षता, कार्नो इंजन से अधिक नहीं हो सकती।

→ ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम-इस नियम की परिभाषा के दो मुख्य कथन हैं । एक केल्विन तथा प्लांक का, दूसरा क्लासियस का कथन ।

→ केल्विन प्लांक का कथन किसी भी इंजन से कार्य की सतत प्राप्ति, केवल एक ऊष्मा स्रोत से ही ऊष्मा लेकर सम्भव नहीं है। अर्थात् कार्य की सतत प्राप्ति के लिये सिंक का होना जरूरी है।

→ क्लासियस की परिभाषा क्लासियस ने द्वितीय नियम की परिभाषा रेफ्रिजरेटर के सिद्धान्त पर दी है- "किसी भी स्वतः क्रियाशील मशीन के लिये जिसे किसी अन्य बाह्य स्रोत की सहायता प्राप्त न हो, निम्न ताप वाली वस्तु से ऊष्मा लेकर अपेक्षाकृत गरम वस्तु को प्रदान करना असम्भव है।"
"ऊष्मा अपने आप निम्न ताप की वस्तु से उच्च ताप की वस्तु की ओर प्रवाहित नहीं हो सकती।"

→ कोई प्रक्रम उत्क्रमणीय होता है यदि उसे इस प्रकार उत्क्रमित किया जाये कि निकाय व परिवेश दोनों अपनी प्रारम्भिक अवस्थाओं में वापस पहुँच जायें और परिवेश में कहीं भी कोई परिवर्तन न हो। जैसे प्रकृति के नैसर्गिक प्रक्रम अनुत्क्रमणीय होते हैं। आदर्शीकृत उत्क्रमणीय प्रक्रम स्थैतिककल्प प्रक्रम होता है जिसमें कोई भी क्षयकारी घटक, जैसे- घर्षण, श्यानता आदि विद्यमान नहीं रहते।

→ किन्हीं दो तापों T1 (स्रोत) तथा T2 (अभिगम) के मध्य कार्य करने वाला का! इंजन उत्क्रमणीय इंजन है। दो रुद्धोष्म प्रक्रमों से संयुक्त दो .. समतापी प्रक्रम कार्नो चक्र का निर्माण करते हैं। कार्नो इंजन की दक्षता निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जाती है
η = 1 - \(\frac{\mathrm{T}_2}{\mathrm{~T}_1}\) (कार्नो इंजन)
या η = \(\frac{\mathrm{T}_1-\mathrm{T}_2}{\mathrm{~T}_1}\)
किन्हीं दो तापों के मध्य कार्य करने वाले इंजन की दक्षता का! इंजन की दक्षता से अधिक नहीं हो सकती।

→ यदि Q > 0, निकाय को ऊष्मा दी गई।
यदि Q < 0, निकाय से ऊष्मा निकाली गई। यदि W > 0, निकाय द्वारा कार्य किया गया।
यदि W < 0, निकाय पर कार्य किया गया।

Prasanna
Last Updated on Oct. 21, 2022, 9:27 a.m.
Published Oct. 19, 2022