RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 5 कपड़े - हमारे आस-पास

Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 5 कपड़े - हमारे आस-पास Important Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 5 कपड़े - हमारे आस-पास

I. बहुचयनात्मक प्रश्न

1. निम्न में से क्या सही है?
(अ) कपड़े हमारे चारों ओर हैं। 
(ब) कपड़े हमारे जीवन का महत्वपूर्ण भाग हैं। 
(स) कपड़े आराम और ऊष्मा प्रदान करते हैं।
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी 

2. कपड़े की विशेषता होती है
(अ) विभिन्न रंग
(ब) सजावट शैलियाँ 
(स) बुनावट
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

3. किस वस्तु को वस्त्र उत्पाद कहा जाता है? 
(अ) रेशे को
(ब) सूत को 
(स) कपड़े को
(द) उपर्युक्त सभी को 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी को 

4. कपड़े को संसाधित करने से अभिप्राय है
(अ) सफाई
(ब) चमकाना 
(स) रंग करना
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी 

5. रेशे का सबसे अनिवार्य गुण है
(अ) भारी मात्रा में उपलब्ध होना
(ब) किफायती होना 
(स) उसका कताई योग्य होना
(द) ये सभी 
उत्तर:
(स) उसका कताई योग्य होना

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6. वस्त्र रेशों को प्राकृतिक और मानवनिर्मित में वर्गीकृत किये जाने का आधार है
(अ) रेशों का उद्भव
(ब) रेशों का रसायन 
(स) रेशों की जाति
(द) सामान्य ट्रेडनाम 
उत्तर:
(अ) रेशों का उद्भव

7. रसायन प्रकार के आधार पर रेशों को वर्गीकृत किया जाता है. 
(अ) सेल्युलोसिक एवं प्रोटीन में
(ब) मानव निर्मित एवं प्राकृतिक में 
(स) जंतु-रोम एवं जंतु-स्राव में
(द) टेरीन.और डेकरान में 
उत्तर:
(अ) सेल्युलोसिक एवं प्रोटीन में

8. निम्न में से जंतु रोम रेशा कौनसा है? 
(अ) कॉटन
(ब) ऊन (स) रेशम
(द) जूट 
(ब) ऊन (स) रेशम
उत्तर:
(ब) ऊन (स) रेशम

9. निम्न में जंतु स्राव रेशा है
(अ) हेम्प
(ब) लेक्स
(स) रेशम
(द) फर 
उत्तर:
(स) रेशम

10. निम्न में खनिज रेशा कौनसा है? 
(अ) फाइबर ग्लास
(ब) ल्यूरेक्स 
(स) स्पैंडेक्स
(द) दोनों (अ) व (ब) 
उत्तर:
(द) दोनों (अ) व (ब) 

II. रिक्त स्थान वाले प्रश्न

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. अगर आप सूत को खोलने का प्रयास करते हैं तो आप छोटे और स्पष्ट पतले धागे जैसी ...... पाते हैं।
2. सबसे पहला विनिर्मित रेशा रेयान, वाणिज्यिक रूप से सन् ........... में निर्मित किया गया। 
3. गैर तंतुमय सामग्री को तंतुमय प्रकार में बदलकर सबसे पहले ............ होने वाले रेशों को बनाया गया।
4. रेशों को हमारे आस-पास उपलब्ध कपड़ों में परिवर्तित करने के लिए उन्हें .............. की आवश्यकता होती है।
5. प्राकृतिक स्टेपल रेशे से सूत को संसाधित करने को ............. कहते हैं। 
6. बहुत सारे .............. को मिलाकर तथा उन्हें .............. एक सूत बनाया जा सकता है।
उत्तर:
1. संरचनाएँ, 
2. 1895,
3. विनिर्मित, 
4. बटने, 
5. कताई, 
6. तंतुओं, गूंथकर।

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III. सत्य/असत्य वाले प्रश्न

निम्नलिखित कथनों में से सत्य/असत्य की पहचान कीजिए

1. सभी विनिर्मित रेशों को पहले तंतु के रूप में तैयार किया जाता है। 
2. सूत वह उत्पाद है जिसे कपड़ों को जोड़ने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
3. बुनाई वस्त्र कला का सबसे पुराना रूप है, जिसका उपयोग आरंभ में चटाइयाँ और टोकरियाँ बनाने के लिए किया जाता था।
4. औद्योगिक स्तर पर प्रयुक्त होने वाली निटिंग मशीनें बुनाई वाले करषों से काफी अलग होती हैं।
5. गूंथे गए कपड़ों की सतह समानांतर रूप में चौकोर होती है और इन्हें दो या चार सूत को गूंथकर बनाया जाता है।
6. परिष्करण वह विधि है जिससे कपड़े का रूप-रंग, इसकी बुनावट अथवा विशिष्ट उपयोग के लिए उसका प्रयोग बदल सकता है।
उत्तर:
1. सत्य, 
2. असत्य, 
3. सत्य, 
4. असत्य, 
5. असत्य, 
6. सत्य। 

IV. मिलान करने वाले प्रश्न

निम्नलिखित समूहों का मिलान कीजिए

समूह 'अ'

समूह 'ब'

1. कपास

(क) प्राकृतिक रूप में रबड़

2. लिनेन

(ख) रेशम के समान रेशा

3. ऊन

(ग) लैक्स का पौधा

4. रेशम

(घ) कीट नाव

5. रेयान

(ङ) पौधे का बीजफल

6. इलैस्टोमरी रेशा

(च) जंतु रोम

उत्तर:

समूह 'अ'

समूह 'ब'

1. कपास

(ङ) पौधे का बीजफल  

2. लिनेन

(ग) लैक्स का पौधा  

3. ऊन

(च) जंतु रोम

4. रेशम

(घ) कीट नाव

5. रेयान

(ख) रेशम के समान रेशा

6. इलैस्टोमरी रेशा

(क) प्राकृतिक रूप में रबड़

V. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
कपड़े पहनने का सबसे मुख्य लाभ बताइए। 
उत्तर:
कपड़े आराम और ऊष्मा प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 2. 
अगर किसी कपड़े की बुनावट को खोलें तो क्या प्राप्त होता है? 
उत्तर:
हाथ में कोई विशेष कपड़ा लेकर अगर उसे खोलते हैं तो हम धागे जैसी संरचनाएँ निकाल सकते हैं। 

प्रश्न 3. 
वस्त्र की मूल इकाई को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अगर वस्त्रों की बुनावट में प्रयुक्त सूत को खोलने का प्रयास करते हैं तो हमें छोटी और स्पष्ट पतले धागे जैसी संरचनाएँ प्राप्त होती हैं, इन्हें रेशा कहते हैं। जो कि वस्त्र की मूल इकाई है।

प्रश्न 4. 
परिष्करण का अर्थ प्रकट करें।
उत्तर:
परिष्करण का अर्थ-एक बार तैयार हो जाने पर आगे कपड़े को कई बार संसाधित किया जाता है, संसाधित करने से कपड़े की बनावट में सुधार आ जाता है। संसाधित करने के चरणों में सफाई, चमकाना व रंग करना शामिल हैं। संसाधित किए जाने की प्रक्रिया को परिष्करण (फिनिशिंग) कहा जाता है।

प्रश्न 5. 
सूत (रुई) के उपयोग बताइए।
उत्तर:
सर्जिकल कॉटन, तकियों, रजाइयों में भरने के लिए, मैट्रेस और कुशन के लिए सूत का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 6. 
'स्पिन्सटर' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पहले सामान्यतया युवा अविवाहित लड़कियाँ बेहतरीन सूत की कताई करती थीं क्योंकि उनकी उँगलियाँ दक्ष होती थीं। इसी संदर्भ में अविवाहित महिलाओं के लिए 'स्पिन्सटर' शब्द का उद्भव हुआ।

प्रश्न 7. 
किस तरह के कपड़े तेजी से बनाए जा सकते हैं? उनका उपयोग भी बताएँ।
उत्तर:
बुने हुए कपड़े तेजी से बनाए जा सकते हैं क्योंकि उनमें फंदे होते हैं। उनमें अधिक सुनम्यता होती है और ये चुस्त वस्तुओं जैसे-बनियान, अंडरवियर, जुराबों इत्यादि के लिए उपयुक्त होते हैं।

प्रश्न 8. 
बेडिंग कहाँ प्रयुक्त होती है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सूत को गूंथकर कपड़ों का रूप देना ब्रेडिंग कहलाती है। जूते के फीतों, रस्सियों, तारों के लिए रोधन और झालर जैसी वस्तुओं में वेणी (ब्रेड) दिखाई देती है।

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प्रश्न 9. 
कार्यों के आधार पर परिष्करण के प्रकार इंगित करें। 
उत्तर:
कार्यों के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण परिष्करण इस प्रकार हैं

  • रूप-रंग में परिवर्तन करना,
  • बुनावट में परिवर्तन करना,
  • प्रयोग में परिवर्तन करना। 

प्रश्न 10. 
रंग चढ़ाने का कार्य किन स्तरों पर हो सकता है? सूचीबद्ध करें। 
उत्तर:
रंग चढ़ाने का कार्य निम्नलिखित स्तरों पर हो सकता है. 

  • रेशे के स्तर पर, 
  • सूत स्तर पर, 
  • कपड़े के स्तर पर।

VI. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
कपड़े का परिचय दीजिए।
उत्तर:
कपड़े हमारे चारों ओर हैं तथा हमारे जीवन का महत्वपूर्ण भाग हैं। कपड़े आराम और ऊष्मा प्रदान करते हैं, इनमें विभिन्न रंग, सजावट शैलियाँ और बुनावट होती हैं। हमारे चादर, तकिए के लिहाफ, तौलिए, स्कूलड्रेस, स्कूल बैग आदि सभी कपड़े के बने होते हैं। इसी प्रकार यदि हम अपना घर देखें, लगभग सभी स्थानों पर कपड़े पाएँगे, पर्दे से लेकर किचन के डस्टर तक और पोंछे से लेकर दरी तक। कपड़े, वजन और मोटाई में विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा उनके चयन का संबंध उनके उपयोग के अनुसार होता है।

प्रश्न 2. 
कपड़े की प्रारंभिक संरचना से लेकर उसके परिष्करण तक क्रमबद्ध कीजिए।
उत्तर:
अगर हाथ में कोई विशेष कपड़ा लेकर खोलते हैं तो आप अधिकांश में धागे जैसी संरचनाएँ निकाल सकते हैं। ये एक-दूसरे के समकोण पर अंतर्ग्रथित अथवा आपस में गुंथे हुए होते हैं। इनकी गाँठ बंधी हुई होती है। इन्हें सूत कहा जाता है। अगर आप सूत को खोलने का प्रयास करते हैं तो आप छोटे और स्पष्ट पतले धागे जैसी संरचनाएँ पाते हैं। ये रेशे होते हैं। ये रेशे सभी वस्त्रों की मूल इकाई होते हैं। रेशे, सूत और कपड़ा इन सभी वस्तुओं को वस्त्र उत्पाद अथवा वस्त्र कहा जाता है। एक बार तैयार होने के बाद आगे कई बार कपड़े को संसाधित किया जाता है। संसाधित के अंतर्गत कपड़े की सफाई, चमकाना व रंग करना होता है, जो कि कपड़े को अधिक चमकीला और टिकाऊ बना देता है। इसे परिष्करण (फिनिशिंग) कहा जाता है। 

प्रश्न 3. 
रेशे के गुणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रेशे के गुण-रेशे के गुणों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है

  1. रेशे को भारी मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए और वह किफायती होना चाहिए।
  2. रेशे का सबसे अनिवार्य गुण है-उसका कताई योग्य होना। 
  3. रेशे की लंबाई, मजबूती, नम्यता और ऊपरी बनावट बेहतर होनी चाहिए।
  4. उपभोक्ता के संतोष की दृष्टि से रंग, चमक, भार, आर्द्रता, डाई का अवशोषण व लोच जैसे गुण इसमें वांछनीय होते हैं।
  5. कपड़े की देखभाल और अनुरक्षण को प्रभावित करने वाले कारक, जैसे-अपघर्षण, प्रतिरोधक क्षमता, रसायन, साबुन, डिटर्जेंट, ताप आदि का प्रभाव और जैविक जीवों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता इत्यादि भी रेशे के महत्वपूर्ण गुण हैं।

प्रश्न 4. 
रेशों का वर्गीकरण किन-किन आधारों पर किया जा सकता है? प्राकृतिक रेशे के कितने प्रकार होते हैं? सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
वस्त्र रेशों का वर्गीकरण उनके उद्भव के आधार पर, सामान्य रसायन प्रकार के आधार पर, जातिगत प्रकार के आधार पर और सामान्य ट्रेड नाम के आधार पर किया जा सकता है। साथ ही इसे 'कम लंबाई वाला' व 'अधिक लंबाई वाला' आदि की कोटि में भी बाँटा जा सकता है।

प्राकृतिक रेशे चार निम्न प्रकार के होते हैं

1. सेलुलोसिक रेशे

  1. सीड हेयर्स-कॉटन, कापोक 
  2. बास्ट रेशा-लैक्स (लिनेन), हेम्प, जूट 
  3. लीफ रेशा-अनानास, अगेव (सीसल) 
  4. नट हस्क रेशा-कॉपर (नारियल)

2. प्रोटीन रेशे

  1. जंतु रोम-ऊन, विशिष्ट बाल (बकरी, ऊँट), फर रेशा
  2. जंतु स्राव-रेशम 

3. खनिज रेशे-एस्बेस्टस 
4. प्राकृतिक रबड़।

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प्रश्न 5. 
विनिर्मित रेशे की संकल्पना एवं उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सबसे पहले विनिर्मित रेशा 'रेयान', वाणिज्यिक रूप से सन् 1895 में निर्मित किया गया जबकि अन्य अधिकांश रेशे 20वीं सदी के उत्पाद हैं। रेशम जैसा कोई रेशा बनाने की मानवीय इच्छा से संभवतः रेशा बनाने की संकल्पना उत्पन्न हुई होगी। शायद यह उन्होंने सोचा हो कि रेशम का कीड़ा जो शहतूत के पत्ते खाता है, उन्हें पचाता है और अपनी तंतु-ग्रंथियों (दो छिद्र) से तरल पदार्थ उगलता है जो ठोस होने पर रेशम का तंतु (फिलामेंट, कोकून) बन जाता है। इस प्रकार सेल्युलोज पदार्थ के पाचन से रेशम जैसा कुछ निर्मित करना संभव है। अतः काफी लंबे समय तक रेयान को कृत्रिम रेशम अथवा केवल कलात्मक (आर्ट) रेशम कहा जाता था।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि गैर-तंतुमय सामग्री को तंतुमय प्रकार में बदलकर सबसे पहले विनिर्मित होने वाले रेशों को बनाया गया। ये मुख्यत: सेलुलोसिक पदार्थ, जैसे-कपास, अपशिष्ट अथवा लकड़ी की लुगदी से बनाए गए थे।

प्रश्न 6. 
विनिर्मित रेशे की निर्माण प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रेशे को पूरी तरह रसायनों के उपयोग से संश्लेषित किया जाता है। कच्चा माल चाहे कुछ भी हो, इसे. तंतुमय रूप देने की प्रक्रिया समान है, जो कि निम्नलिखित है

1. ठोस कच्चे माल को विशिष्ट श्यानता के तरल में परिवर्तित किया जाता है। ऐसा रासायनिक क्रिया, विलयन, ताप, अनुप्रयोग अथवा मिश्रण के कारण हो सकता है। इसे चक्रण घोल (स्पिनिंग सोल्यूशन) कहा जाता है।

2. इस तैयार घोल को स्पिनरेट-बहुत छोटे छिद्रों वाली सीरीज वाले एक छोटे थिम्बिल आकार के चंचु से ऐसे स्थान में डाला जाता है, जिसमें वह ठोस हो जाता है, अथवा पतले तंतुओं के रूप में जम जाता है।

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3. जब ये तंतु ठोस हो जाते हैं, तब इन्हें एकत्र किया जाता है और अधिक सूक्ष्मता तथा अभिविन्यास के लिए ताना जाता है अथवा इनको ताने और/अथवा बहुल विशेषताओं में सुधार के लिए पुनः संसाधित किया जाता है।

प्रश्न 7. 
विनिर्मित रेशों के कौन-कौन से प्रकार हैं? सूचीबद्ध कीजिए। 
उत्तर:
विनिर्मित रेशों के प्रकार निम्नलिखित है

(क) पुनर्योजित सेलुलोसिक रेशा-रेयान-क्यूप्रैमोनियम, विस्कोस, अति आर्द्र मॉड्यूल्स। 
(ख) आशोधित सेलुलोसिक एसीटेट-सैकेंडरी एसीटेट, ट्राईएसीटेट। 
(ग) प्रोटीन रेशे-अजलॉन। 
(घ) गैर-सेलुलोसिक (सिंथेटिक) रेशे 

  • नायलॉन 
  • पोलीएस्टर-टेरीलीन, टेरीन 
  • एक्रीलिक-ऑर्लान, कैशमीलॉन 
  • मोडेक्रीलिक 
  • स्पैंडेक्स 
  • रबड़ 

(ङ) खनिज रेशे 

  1. ग्लास-फाइबर ग्लास 
  2. मैटेलिक-ल्यूरेक्स 

प्रश्न 8. 
सूत किसे कहते हैं? सूत को संसाधित करने के चरणों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
सूत-रेशों को हमारे आस-पास उपलब्ध कपड़ों में परिवर्तित करने के लिए उन्हें बटने की आवश्यकता होती है। कुछेक वस्त्रों को छोड़कर अधिकांश स्थितियों में रेशे को संसाधित किया जाता है, जो कि सूत कहलाता है। अन्य शब्दों में, सूत को वस्त्र रेशे फिलामेंट अथवा ऐसी सामग्री की लंबी-लंबी बटों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कपड़ा तैयार करने के लिए हर प्रकार के धागों की बुनाई के लिए उपयुक्त हैं।

सूत को संसाधित करने के चरण निम्न प्रकार से हैं

  1. सफाई 
  2. पूनी बनाना 
  3. तनुकरण, तानना और बटना
  4. कताई। 

प्रश्न 9. 
कताई प्रक्रिया पर चित्रात्मक प्रकाश डालिए।
उत्तर:
यह रेशों को संसाधित करने की अंतिम प्रक्रिया है। इसमें तंतु को सूत के रूप में अंतिम आकार दिया जाता है।

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कताई प्रक्रिया के अंतर्गत सभी विनिर्मित रेशों को पहले तंतु के रूप में तैयार किया जाता है। तत्पश्चात् एक अथवा बहुत सारे तंतुओं को मिलाकर तथा उन्हें गूंथकर एक सूत बनाया जा सकता है। तंतु को स्टेपल लंबाई के रेशों में काटना भी संभव है। तत्पश्चात् इनकी कताई की जाती है, जैसा कि प्राकृतिक रेशों में किया जाता है। इसे काता हुआ सूत (स्पन सूत) कहा जाता है। जब मिश्रित कपड़ा एवं सम्मिश्रण की आवश्यकता होती है, तब स्टेपल लंबाई के रेशों की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 10. 
निम्न को परिभाषित कीजिएसूत संख्या, सूत की बटें, सूत और धागा।
उत्तर:

सूत संख्या-धागे की रीलों के लेबल पर कुछ संख्याएँ अंकित होती हैं, जैसे-20, 30 या 40 इत्यादि। इनमें अधिक संख्या वाली रील का धागा कम संख्या वाली रील के धागे से अधिक मजबूत होता है। इस प्रकार, रेशे के भार और इससे बनाए गए सूत की लंबाई के बीच निश्चित संबंध होता है। इसे सूत संख्या कहा जाता है, जो कि सूत की बेहतरी का सूचक है।

सूत की बटें-जब रेशों को सूत में बदला जाता है तो रेशों को साथ जोड़ने के लिए बटें बनाई जाती हैं। इन्हें ट्विस्ट प्रति इंच (टी.पी.आई.) या बटे प्रति इंच कहा जाता है। ढीले बटे हुए सूत मुलायम और अधिक चमकीले होते हैं जबकि कसकर बटे गए सूत में लकीरें होती हैं, जैसे-जीन्स की डेनिम सामग्री।

सूत और धागा-सूत और धागा मूलतः समान होते हैं। सूत शब्द अक्सर कपड़े के विनिर्माण में उपयोग किया जाता है जबकि धागा वह उत्पाद है जिसे कपड़ों को जोड़ने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

VII. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
'कपड़ा उत्पादन' का अर्थ प्रकट करें। इसकी विभिन्न प्रक्रियाएँ कौनसी हैं? विवरण दीजिए।
उत्तर:

कपड़ा उत्पादन का अर्थ-यह एक मानव निर्मित वस्तु है जिसे प्राकृतिक या कृत्रिम तंतुओं के जालों का निर्माण करके तैयार किया जाता है। इन विभिन्न प्रकार के तंतुओं को सूत या धागा कहते हैं। धागों का निर्माण कपास, रेशम, ऊन या अन्य रेशों को करघे की सहायता से ऐंठकर किया जाता है। अधिकांश कपड़े जो आप देखते हैं, सूत से बने होते हैं। फिर भी, कुछ कपड़े सीधे रेशों से ही बनाए जा सकते हैं। सीधे रेशों से बनाए जा सकने वाले कपड़े मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-फेल्ट्स (नमदा) और बिना बुने अथवा ब्रॉन्डेड फाइबर वाले कपड़े। अधिकांश कपड़ों के निर्माण में मध्यम सूत चरण आवश्यक होता है। कपड़ा बनाने की विधियाँ बुनाई तथा कुछ हद तक गुँथाई (बेडिंग) और गाँठ लगाना (नॉटिंग) है।

कपड़ा उत्पादन की प्रक्रियायें-कपड़ा उत्पादन की विभिन्न प्रक्रियाओं का विवरण निम्नलिखित है

(नोट-कपड़ा उत्पादन की प्रक्रियाओं के विवरण हेतु समीक्षात्मक प्रश्न संख्या 4 देखें)। 

प्रश्न 2. 
वस्त्र परिष्करण के बारे में आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
खाजार में उपलब्ध सभी वस्त्रों का एक या अधिकाधिक बार परिष्करण किया जाता है और सिर्फ सफेद वस्त्रों को छोड़कर हरेक में किसी-न-किसी रूप में रंगों का प्रयोग किया जाता है।

परिष्करण वह विधि है जिससे वस्त्रों का रूप-रंग, उसकी बुनावट अथवा विशिष्ट उपयोग हेतु उसका प्रयोग बदल सकता है। जो परिष्करण अति आवश्यक माने जाते हैं उन्हें 'नियमित' कहा जाता है। परिष्करण टिकाऊ भी होते हैं, अतः धोने अथवा ड्राइक्लीन करने पर खराब नहीं होते हैं, जैसे-डाई करना। जबकि कुछ परिष्करण का नवीकरण करना पड़ता है, जिन्हें वस्त्र धोने पर हट जाने पर दोबारा लगाना पड़ता है, जैसे-मांड लगाना (स्टार्च करना) अथवा नील चढ़ाना। कार्यों के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण परिष्करण इस प्रकार हैं

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रूप-रंग में परिवर्तन-वस्त्रों की सफाई करना (रगड़ना व ब्लीचिंग करना), उन्हें सीधा करना और चिकना बनाना (कैलेंडर परिष्कृत करना और टेंटरिंग)।

बुनावट में परिवर्तन-वस्त्रों में स्टार्च करना अथवा सरेस लगाना, विशेष कैलेंडर परिष्कृत करना।

प्रयोग में परिवर्तन-वस्वों को धोना और पहनना, स्थाई प्रेस करना, जल विकर्षक अथवा जल रोधक करना, शलभ अभेद्य बनाना, अग्निमंदक अथवा अग्निरोधक बनाना, सिकुड़न मुक्त (सैनकोराइजेशन) करना।

रंगों से परिष्करण करना-वस्त्रों के चयन में, चाहे उसे परिधान के लिए उपयोग किया जाना हो अथवा घर के अन्य कार्यों हेतु, रंग एक महत्वपूर्ण घटक होता है। जो पदार्थ वस्त्रों को इस तरह रंगते हैं कि आसानी से रंग नहीं निकलता, उन्हें डाई कहते हैं। डाई करने का तरीका वस्त्रों के रेशे और डाई की रासायनिक प्रकृति तथा वांछित प्रभाव पर निर्भर करता है। रंग चढ़ाने का कार्य निम्न स्तरों पर किया जा सकता है

  1. रेशे के स्तर पर-विभिन्न रंगों के सूत अथवा डिजाइन वाले नमदा (फेल्ट के लिए)। 
  2. सूत स्तर पर-बुने हुए चेक, धारीदार अथवा अन्य बुने हुए पैटनों के लिए।
  3. कपड़े के स्तर पर-पक्की रंग डाई के लिए सर्वाधिक सामान्य विधि, जैसे-डिजाइन रंजन के बाटिक तथा टाइ एंड डाई और प्रिंटिंग।

छपाई (प्रिंटिंग) करना-यह डाई एवं रंग करने की सबसे उन्नत अथवा विशिष्ट विधि है। इसमें रंगों का स्थानीकृत अनुप्रयोग होता है, जो कि डिजाइन तक ही सीमित होता है। प्रिंटिंग में विशेष उपकरणों का प्रयोग होता है, जिससे रंग केवल विशिष्ट क्षेत्रों तक ही पहुँचता है। इसलिए इस विधि द्वारा कपड़े पर कई रंगों का उपयोग किया जा सकता है। ब्लॉक, स्टेंसिल अथवा स्क्रीन जैसे हाथ के उपकरणों द्वारा प्रिंटिंग की जा सकती है जबकि औद्योगिक स्तर पर रोलर प्रिंटिंग अथवा ऑटोमैटिक स्क्रीन प्रिंटिंग की जाती है।

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प्रश्न 3. 
विभिन्न रेशों का परिचय एवं विवरण दीजिए।
उत्तर:
अगर किसी विशेष कपड़े को लेकर उसे खोलते हैं तो उसमें से धागे जैसी संरचनाएँ निकलती हैं। ये एक-दूसरे के समकोण पर अंतर्ग्रथित अथवा आपस में गुंथी हुई होती हैं। इनकी जाले के समान गाँठे बंधी हुई होती हैं। यह सूत होता है, अगर इस सूत को भी खोला जाए तो अति महीन धागा संरचनाएँ प्राप्त होती हैं। ये रेशे होते हैं।
रेशा किसी प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थों के बने पतले तंतु को कहा जाता है। ये कपास, रेशम, जीवों के रोम, कागज, पेड़ों की छाल, पोलीएस्टर और अन्य सामग्रियों के बने हो सकते हैं। आमतौर पर महीन तंतु को ही रेशा कहा जाता है।

विभिन्न प्राकृतिक एवं मानव निर्मित रेशे निम्नलिखित हैं

1. कपास:
कपास को सर्वप्रथम भारत में उगाया गया एवं अब भी यह भारत में ही सर्वाधिक उत्पादित किया जाता है। कपास के रेशे इसके पौधों के बीजफल से प्राप्त किए जाते हैं। बीज पकने और फली फटने के पश्चात् ओटाई प्रक्रिया द्वारा रेशों से बीज अलग किया जाता है और इन्हें कताई के लिए भेजा जाता है।

कपास का रेशा 1 सेमी. से 5 सेमी. तक ही होता है जो कि सबसे छोटा रेशा होता है। इस कारण इससे निर्मित सूत अथवा कपड़ा चमकहीन और छूने में खुरदरा होता है। इसमें नमी सोखने की क्षमता अधिक होती है और यह सरलता से सूख भी जाता है इसलिए यह गर्मियों में उपयोग हेतु अनुकूल होता है।

2. लिनेन:
यह एक बास्ट रेशा है जो कि लैक्स के पौधे के तने से प्राप्त होता है। रेशा प्राप्ति हेतु तनों को लंबे समय तक पानी में भिगोया जाता है, ताकि नरम भाग गल जाए। अपगलन के पश्चात् लकड़ी वाले भाग को पृथक् करके लिनेन के रेशों को एकत्र किया जाता है, फिर उन्हें कताई हेतु भेजा जाता है।

लिनेन का रेशा कपास से लंबा एवं सूक्ष्म होता है, इसलिए इससे बना सूत मजबूत और अधिक चमकीला होता है। लिनेन के कई गुणधर्म कपास जैसे ही होते हैं, यह भी नमी को तत्काल सोख लेता है, इसलिए आरामदायक होता है।

3. ऊन:
यह मुख्यतः भेड़ के बालों से प्राप्त होती है, साथ ही इसे बकरी, खरगोश, ऊँट जैसे अन्य पशुओं से भी प्राप्त किया जा सकता है। इन रेशों को विशिष्ट बाल के रेशे भी कहा जाता है। पशुओं से बाल उतारने की प्रक्रिया को कतरना (शीयरिंग) कहते हैं। छंटाई के पश्चात् बालों से धूल, ग्रीस, शुष्क स्वेदन हटाने के लिए उन्हें अभिमार्जित किया जाता है। तत्पश्चात् कार्बनीकरण किया जाता है जिससे इसमें फंसी पत्तियाँ और डंठल इत्यादि हटाए जाते हैं। फिर रेशों को कताई के लिए दे दिया जाता है।

ऊन एक प्राकृतिक प्रोटीन रेशा है और वह भेड़ की प्रजाति और पशु के शरीर के अंग के अनुसार खुरदरा या नरम होता है। प्राकृतिक सिकुड़न के कारण इसमें लोच और लंबाई वाले गुण होते हैं। इसमें लचीलापन और सुनम्यता होती है। इसमें सतही-शल्क होते हैं जो कि जल विकर्षक होते हैं। इन्हीं क्षमताओं के कारण ऊन आई और ठंडे पर्यावरण हेतु अनुकूल होती है।

4. रेशम:
रेशम एक प्राकृतिक तंतु रेशा है, जो रेशम के कीड़े के स्राव से निर्मित होता है। रेशम निर्मित कपड़ा सूक्ष्म, बेहतरीन और चमकीला होता है। परन्तु यदि रेशम वन्य अथवा प्राकृतिक दशाओं में निर्मित हो तो खुरदरा, मजबूत और कम लंबाई का होता है, जैसे-टसर रेशम । रेशम की खेती को रेशम कीट पालन कहा जाता है। तंतु रेशा होने के कारण रेशम की कताई नहीं की जाती लेकिन इसे कोकून से रील में सावधानीपूर्वक लपेटा जाता है।

रेशम का स्वाभाविक रंग श्वेताभ से लेकर क्रीम तक होता है। जबकि जंगली रेशम भूरे रंग का होता है। रेशम के तंतु बहुत लंबे, सूक्ष्म और चिकने होते हैं। इनकी घुति अथवा चमक अपेक्षाकृत अधिक होती है। इनमें प्राकृतिक गोंद होता है, जो रेशम को विशद बनावट प्रदान करता है।

5. रेयान:
यह विनिर्मित सेलुलोसिक रेशा है। सेलुलोसिक इसलिए कि यह लकड़ी की लुगदी से बनता है और विनिर्मित इसलिए कि यह लुगदी रसायनों से संसाधित की जाती है और इसको रेशों के रूप में पुनः निर्मित किया जाता है।

विनिर्मित होने के कारण इसके आकार एवं आकृति को नियंत्रित किया जा सकता है। यह स्वच्छ तथा चमकीला होता है एवं इसके गुणधर्म कपास जैसे होते हैं लेकिन यह कम मजबूत और कम टिकाऊ होता है। इस रेशे का मुख्य लाभ यह है कि इसे अपशिष्ट सामग्री से पुनः संसाधित किया जा सकता है।

6. नायलॉन:
नायलॉन, पूर्णतः रसायनों से विनिर्मित प्रथम वास्तविक कृत्रिम रेशा है। इसका उपयोग सर्वप्रथम टूथब्रश के शूक के रूप में किया गया। यह रेशा बाद में आने वाले अन्य कृत्रिम रेशों का प्रेरणास्रोत बना।

नायलॉन काफी मजबूत और अपघर्षण रोधी होता है इसलिए इसका उपयोग ब्रश, कार्पेट इत्यादि में किया जाता है। नायलॉन अत्यधिक लचीला रेशा भी है, अतः इसका उपयोग बहुत महीन वस्त्रों के निर्माण में किया जाता है। होजरी और लैंजरी धड़ल्ले से इसे उपयोग करते हैं।

7. पोलीएस्टर:
यह एक अन्य किस्म का कृत्रिम रेशा है। इसे टेरीलीन अथवा टेरीन भी कहा जाता है। इस रेशे का व्यास एक समान होता है। सतह नरम होती है और यह देखने में सीधा होता है। इसको उपयोग की आवश्यकतानुसार कितना भी लंबा, मजबूत और व्यास वाला बनाया जा सकता है। इसमें आर्द्रता ग्रहण करने की क्षमता कम होती है, जबकि इसकी सबसे बेहतर खासियत यह है कि इसमें सलवटें नहीं पड़ती।

8. एक्रीलिक:
यह कृत्रिम रेशा ऊन से काफी मिलता-जुलता है। इसे सामान्यतया कैशमिलॉन कहा जाता है। इसे लहरदार और चमकीला बनाया जा सकता है। इसके रेशों में उच्च दीर्घरूपता और बेहतर सुनम्यता होती है। एक्रीलिक को ऊन का विकल्प मानते हैं।

9. इलैस्टोमरी रेशे:
उपर्युक्त रेशों के अतिरिक्त कुछ कम प्रचलित रेशे भी हैं। इनमें इलास्टिक, रबड़ आदि शामिल हैं जिनका विभिन्न रूपों में उत्पादन किया जाता है। रबड़ प्राकृतिक रूप में प्राप्त होता है और इसका कृत्रिम समरूप स्पैंडेक्स अथवा लाइक्रा है। सामान्यतया इन रेशों का उपयोग कम सुनम्यता वाले अन्य किसी भी रेशे के साथ । मिलाकर किया जाता है।

Raju
Last Updated on Aug. 19, 2022, 10:54 a.m.
Published Aug. 16, 2022