RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 2 स्वयं को समझना

Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 2 स्वयं को समझना Important Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 2 स्वयं को समझना

I. बहुचयनात्मक प्रश्न

1. 'मैं' होने की अनुभूति किससे अलग है? 
(अ) आप
(ब) वे 
(स) अन्य
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

2. स्वयं की संकल्पना से जुड़ी हुई अन्य संकल्पना निम्न है
(अ) पहचान
(ब) व्यक्तित्व 
(स) दोनों (अ) व (ब)
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) दोनों (अ) व (ब)

3. वेबस्टर के तीसरे नए अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोश में कितनी प्रविष्टियाँ हैं जो 'स्वयं' से शुरू होती हैं? 
(अ) 250
(ब) 500 
(स) 750
(द) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(ब) 500 

4. हमारी स्व-संकल्पना में हमारी कौनसी विशेषता शामिल होती है? 
(अ) हमारी अनुभूतियाँ
(ब) हमारे विचार 
(स) हमारी सक्षमता
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

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5. जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता जाता है, उसके 'स्वयं' का भी
(अ) निर्माण होता जाता है
(ब) विकास होता जाता है 
(स) उपर्युक्त दोनों
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) उपर्युक्त दोनों

6. 'स्वयं' का विकास किस अवस्था में होता है? 
(अ) शैशवकाल में
(ब) बाल्यावस्था में 
(स) किशोरावस्था में
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

7. किस आयु तक शिशु को स्वयं की छवि की पहचान होने लगती है? 
(अ) 14 महीने
(ब) 18 महीने 
(स) 24 महीने
(द) 10 महीने
उत्तर:
(ब) 18 महीने 

8. कितनी आयु का होने तक बच्चे प्रायः धाराप्रवाह बोलने लगते हैं? 
(अ) 1 वर्ष
(ब) 2 वर्ष 
(स) 3 वर्ष
(द) 11 वर्ष
उत्तर:
(स) 3 वर्ष

9. किस अवस्था के बच्चे 'लम्बा' अथवा 'बड़ा' जैसे बाह्य संदर्भो में स्वयं का विवरण देने पर अधिक बल नहीं देते हैं? 
(अ) शैशवकाल के
(ब) प्रारम्भिक बाल्यावस्था के 
(स) मध्य बाल्यावस्था के
(द) किशोरावस्था के
उत्तर:
(द) किशोरावस्था के

10. अधिकांश लड़कियों में यौवनावस्था की अवधि होती है
(अ) 11 से 13 वर्ष के मध्य
(ब) 13 से 15 वर्ष के मध्य 
(स) 15 से 17 वर्ष के मध्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) 11 से 13 वर्ष के मध्य

11. अधिकांश लड़कों में यौवनावस्था की अवधि होती है
(अ) 11 से 13 वर्ष के मध्य
(ब) 13 से 15 वर्ष के मध्य 
(स) 15 से 17 वर्ष के मध्य
(द) 17 से 19 वर्ष के मध्य
उत्तर:
(ब) 13 से 15 वर्ष के मध्य 

II. रिक्त स्थान वाले प्रश्न

निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों से कीजिए

क. 

1. ............ के दौरान हम अपने बारे में सबसे अधिक सोचना शुरू कर देते हैं।
2. यह विचार कि हम 'स्वयं' हम हैं, यह 'स्वयं' की धारणा की ही ............. है। 
3. स्व-संकल्पना तथा .............. पहचान के तत्व हैं। 
4. स्वयं के मामले में हम ............. पहचान और ............. पहचान के बारे में बात कर सकते हैं। 
5. 'स्वयं' प्रकृति में .............. होता है।
उत्तर:
1. किशोरावस्था, 
2. अभिव्यक्ति, 
3. स्वाभिमान, 
4. व्यक्तिगत, सामाजिक, 
5. बहुआयामी। 

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ख. 

1. 'स्वयं' की भावना .......... के दौरान क्रमिक रूप से उत्पन्न होती है।
2. .......... बाल्यावस्था के दौरान बच्चे प्रायः धाराप्रवाह बोलने लगते हैं। 
3. मध्य बाल्यावस्था की अवधि में बच्चे का ......... अधिक जटिल हो जाता है। 
4. किशोरावस्था पहचान के विकास हेतु .......... अवस्था है। 
5. .......... के दौरान स्वयं का विवरण संक्षिप्त एवं केवल विचार रूप में ही होता है। 
उत्तर:
1. शैशवकाल, 
2. प्रारम्भिक, 
3. स्वयं-मूल्यांकन, 
4. महत्वपूर्ण, 
5. किशोरावस्था।

ग. 

1. प्रत्येक व्यक्ति के चारों ओर ........... का एक जाल है।
2. आपके आस-पास के लोगों से बातचीत के परिणामस्वरूप और आपके कार्यों के माध्यम से ........... का विकास होता है।
3. ......... का निर्माण एक निरन्तर गतिशील प्रक्रिया है। 
4. यौवनारम्भ के आरंभ होने पर शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तन ......... हैं। 
5. एक पारम्परिक भारतीय समाज में यौवनारम्भ के साथ ही .......... पर कई प्रतिबन्ध लग जाते हैं।
उत्तर:
1. सम्बन्धों, 
2. स्व-बोध, 
3. 'स्वयं' 
4. सार्वभौमिक, 
5. लड़कियों। 

III. सत्य/असत्य वाले प्रश्न

निम्न कथनों में से सत्य/असत्य कथन की पहचान कीजिए

1. हमारे माता-पिता, भाई-बहन, अन्य सम्बन्धियों, मित्रों तथा हमारे बीच अनेक बातें सामान्य हैं।
2. वेबस्टर के तीसरे नए अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोश में 1000 प्रविष्टियाँ हैं जो 'स्वयं' से शुरू होती हैं। 
3. स्व-संकल्पना का एक महत्वपूर्ण पक्ष स्वाभिमान है। 
4. सामाजिक पहचान का अर्थ एक व्यक्ति के वे पत्र हैं जो उसे समूह से जोड़ते हैं। 
5. एक गुजराती होना आपकी सामाजिक पहचान का कोई आयाम नहीं है।
उत्तर:
1. सत्य, 
2. असत्य, 
3. सत्य, 
4. सत्य, 
5. असत्य

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ख. 

1. जन्म के समय हमें अपने विशिष्ट अस्तित्व की पूर्ण जानकारी होती है।
2. दूसरे वर्ष की दूसरी छ:माही में, शिशु व्यक्तिगत सर्वनामों-'मैं', 'मुझे' और 'मेरा' का उपयोग करने लगता है।
3. मध्य बाल्यावस्था के दौरान बच्चा अपनी आन्तरिक विशेषताओं के संदर्भ में अपना विवरण देता है। 
4. 'स्वयं' की पहचान के विकास हेतु किशोरावस्था को एक नाजुक समय के रूप में देखा जाता है।
5. किशोरावस्था के समय स्वयं के विकास पर ध्यान केन्द्रित नहीं हो पाता है।
उत्तर:
1. असत्य, 
2. सत्य, 
3. सत्य, 
4. सत्य, 
5. असत्य। 

ग. 

1. हम आत्मत्व अथवा पहचान की भावना के साथ पैदा नहीं होते।
2. 'निर्माण' से तात्पर्य है कि 'स्वयं' का बोध जन्म से आप में होता है। 
3. लड़कियों में बढ़ोतरी मासिक धर्म से एकदम पहले अधिक तेजी से होती है। 
4. सभी संस्कृतियों में किशोरों से पूर्णतः आत्मनिर्भर होने की अपेक्षा की जाती है।
5. किशोर विकास के दौरान भावात्मक परिवर्तनों का अनुभव नहीं कर पाते हैं। 
उत्तर:
1. सत्य, 
2. असत्य, 
3. सत्य, 
4. असत्य, 
5. असत्य। 

IV. मिलान करने वाले प्रश्न

स्तम्भ 'क' का स्तम्भ 'ख' से मिलान कीजिए

समूह 'क'

समूह 'ख' 

(i) स्वयं

(अ) सामाजिक पहचान का एक आयाम 

(ii) स्व-संकल्पना

(ब) अन्य से भिन्न 

(iii) व्यक्तिगत पहचान

(स) स्वाभिमान 

(iv) सामाजिक पहचान

(द) पहचान और व्यक्तित्व 

(v) एक गुजराती होना

(य) समूह से सम्बन्ध

उत्तर:

समूह 'क'

समूह 'ख' 

(i) स्वयं

(द) पहचान और व्यक्तित्व   

(ii) स्व-संकल्पना

(स) स्वाभिमान 

(iii) व्यक्तिगत पहचान

(ब) अन्य से भिन्न 

(iv) सामाजिक पहचान

(य) समूह से सम्बन्ध

(v) एक गुजराती होना

(अ) सामाजिक पहचान का एक आयाम 

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2. 

समूह 'क'

समूह 'ख'

(i) शैशवकाल

(अ) विकास की प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा है

(ii) प्रारम्भिक बाल्यावस्था

(ब) एक नाजुक समय के रूप में देखा जाता है

(iii) मध्य बाल्यावस्था

(स) अपने विशिष्ट अस्तित्व की जानकारी नहीं होती

(iv) किशोरावस्था

(द) स्वयं-मूल्यांकन अधिक जटिल हो जाता है 

(v) किशोर का पहचान बनाना

(य) बच्चे प्रायः धाराप्रवाह बोलने लगते हैं

उत्तर:

समूह 'क'

समूह 'ख'

(i) शैशवकाल

(स) अपने विशिष्ट अस्तित्व की जानकारी नहीं होती

(ii) प्रारम्भिक बाल्यावस्था

(य) बच्चे प्रायः धाराप्रवाह बोलने लगते हैं  

(iii) मध्य बाल्यावस्था

(द) स्वयं-मूल्यांकन अधिक जटिल हो जाता है 

(iv) किशोरावस्था

(ब) एक नाजुक समय के रूप में देखा जाता है

(v) किशोर का पहचान बनाना

(अ) विकास की प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा है

3.

समूह 'क'

समूह 'ख'

(i) शारीरिक परिवर्तन

(अ) प्रजनन अंगों का विकास होना

(ii) जैविक परिवर्तन

(ब) अमूर्त रूप से सोचने लगना

(iii) भावात्मक परिवर्तन

(स) पहचान विकास होना

(iv) संज्ञानात्मक परिवर्तन

(द) शारीरिक रूप को लेकर चिंतामग्न होना

(v) किशोरावस्था

(य) शरीर की ऊंचाई व भार बढ़ना

उत्तर:

समूह 'क'

समूह 'ख'

(i) शारीरिक परिवर्तन

(य) शरीर की ऊंचाई व भार बढ़ना

(ii) जैविक परिवर्तन

(अ) प्रजनन अंगों का विकास होना

(iii) भावात्मक परिवर्तन

(द) शारीरिक रूप को लेकर चिंतामग्न होना

(iv) संज्ञानात्मक परिवर्तन

(ब) अमूर्त रूप से सोचने लगना

(v) किशोरावस्था

(स) पहचान विकास होना

V. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
स्वयं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
'स्वयं' शब्द अपने आप को केंद्रित या चिह्नित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह 'मैं' होने की अनुभूति है जो 'आप', 'वे' और 'अन्य' से अलग है। इसका अभिप्राय यह अनुभव करना है कि हम कौन हैं और कौनसी बातें हमें अन्य लोगों से भिन्न बनाती हैं।

प्रश्न 2. 
स्वयं की संकल्पना से जुड़ी हुई अन्य संकल्पनाएँ कौनसी हैं? उत्तर-स्वयं की संकल्पना से जुड़ी हुई दो अन्य संकल्पनाएँ हैं-पहचान और व्यक्तित्व। प्रश्न 3. किस अवस्था में हम 'स्वयं' को अपेक्षाकृत अधिक परिभाषित करने की कोशिश करते हैं?
उत्तर:
किशोरावस्था में किसी अन्य अवस्था की तुलना में हम 'स्वयं' को परिभाषित करने की अधिक कोशिश करते हैं।

प्रश्न 4. 
स्वाभिमान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्व-संकल्पना का एक महत्वपूर्ण पक्ष स्वाभिमान है। उन मानकों, जिन्हें हमने स्वयं अपने लिए तय किया है, के अनुसार हम स्वयं के बारे में क्या सोचते हैं, हमारा 'स्वाभिमान' कहलाता है। काफी सीमा तक यह समाज से प्रभावित होता है।

प्रश्न 5. 
जन्म के समय हमें अपने विशिष्ट अस्तित्व की जानकारी नहीं होती। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जन्म के समय शिशु यह महसूस नहीं कर पाता कि वह बाहर के संसार से अलग और भिन्न हैउसे अपने बारे में कोई जानकारी अथवा समझ और पहचान नहीं होगी।

प्रश्न 6. 
'स्वयं की भावना कब उत्पन्न होती है?
उत्तर:
'स्वयं' की भावना शैशवकाल के दौरान क्रमिक रूप से उत्पन्न होती है और लगभग 18 महीने की आयु तक स्वयं की छवि की पहचान होने लगती है।

प्रश्न 7. 
कौनसी अवस्था पहचान के विकास हेतु महत्वपूर्ण होती है?
उत्तर:
किशोरावस्था पहचान के विकास हेतु महत्वपूर्ण अवस्था है क्योंकि इस समय स्वयं के विकास पर ध्यान अधिक केंद्रित रहता है।

प्रश्न 8. 
किशोरावस्था में किशोर से क्या अपेक्षा की जाती है?
उत्तर:
किशोर से अपेक्षा की जाती है कि वह बड़ों की तरह व्यवहार करे तथा परिवार, कार्य अथवा विवाह सम्बन्धित उत्तरादायित्वों को निभाना आरंभ करे।

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प्रश्न 9. 
किशोर में पहचान के संकट की भावना कब पैदा होती है?
उत्तर:
पहचान के संकट की भावना अथवा भूमिका सम्बन्धी 'उलझन' तब पैदा होती है जब किशोर यह महसूस करता है कि पहले की तुलना में अब जिन कार्यों को करने की और जिस तरह का व्यवहार करने की उससे अपेक्षा की जाती है, उनमें बहुत अन्तर है।

प्रश्न 10. 
'स्वयं' का विकास कैसे होता है?
उत्तर:
आप अपने अनुभवों से अपने बारे में जो सीखते हैं तथा अन्य लोग आपको आपके बारे में क्या बताते हैं. उसके परिणामस्वरूप 'स्वयं' का विकास होता है।

प्रश्न 11. 
स्वयं के निर्माण से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वयं के निर्माण से तात्पर्य है कि 'स्वयं' का बोध जन्म से आप में नहीं होता लेकिन आप इसको सृजित करते हैं और जैसे-जैसे आपका विकास होता है इसका भी विकास होता जाता है।

प्रश्न 12. 
पहचान के निर्माण पर पड़ने वाले प्रभाव कौनसे हैं?
उत्तर:
पहचान के निर्माण पर पड़ने वाले प्रभावों को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है

  • जैविक और शारीरिक परिवर्तन
  • पारिवारिक और मित्रवत् सम्बन्धों में सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ
  • भावात्मक परिवर्तन
  • संज्ञानात्मक परिवर्तन

प्रश्न 13.
किशोरावस्था के दौरान लड़कियों के जैविक और शारीरिक परिवर्तन सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
यौवनावस्था के दौरान लड़कियों में होने वाले परिवर्तन, जो विकास के सामान्य क्रम को दर्शाते हैं, की सूची निम्नवत् है

  • स्तनों के आकार में आरम्भिक वृद्धि 
  • बगलों और जांघों में बालों का आना 
  • अधिकतम आयु की वृद्धि 
  • मासिक धर्म 

प्रश्न 14. 
यौवनावस्था के दौरान लड़कों में कौनसे जैविक और शारीरिक परिवर्तन स्पष्ट होते हैं?
उत्तर:
यौवनावस्था के दौरान लड़कों में निम्नलिखित जैविक एवं शारीरिक परिवर्तन स्पष्ट होते हैं-अंडकोष (वृषण) का विकास होना, बगलों और जांघों में बालों का आना, आवाज में आरम्भिक परिवर्तन, वीर्य का पहली बार स्खलन, अधिकतम वृद्धि की आयु, आवाज में स्पष्ट परिवर्तन व दादी के बालों का आना। 

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VI. लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
मुझे 'मैं' कौन बनाता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमारे माता-पिता, भाई-बहन, अन्य सम्बन्धियों, मित्रों तथा हमारे स्वयं के बीच अनेक बातें सामान्य हैं परंतु फिर भी हम में से प्रत्येक व्यक्ति अलग है, जो अन्य सभी से भिन्न है। अनोखेपन की यही अनुभूति हमें अपने होने का अहसास कराती है-'मैं' होने की अनुभूति, जो 'आप', 'वे' और 'अन्य' से अलग है। स्वयं की यह अनुभूति कि हम कौन हैं और कौन-सी बातें हमें अन्य लोगों से भिन्न बनाती है, मुझे 'मैं' बनाती है।

प्रश्न 2. 
स्वयं क्या है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब हम किसी ऐसी क्रिया की बात करते हैं जो हमारे द्वारा 'स्वयं' की जाती है अर्थात् जिस क्रिया का हम 'स्वयं' एक भाग होते हैं तो यह क्रिया 'स्वयं' द्वारा की गई कहलाती है। इस प्रकार 'स्वयं' की अनुभूति का अर्थ है-यह अनुभव करना कि हम कौन हैं और कौनसी बातें हमें अन्य लोगों से भिन्न बनाती हैं?

व्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप में 'स्वयं' के विभिन्न आयाम हैं। व्यक्तिगत 'स्वयं' के वे पक्ष हैं जिनसे केवल आप जुड़े हैं जबकि सामाजिक 'स्वयं' का अर्थ उन पक्षों से है जहाँ आप अन्य व्यक्तियों के साथ जुड़े हुए हैं।

निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि 'स्वयं' शब्द का अर्थ उनके अनुभवों, विचारों, सोच तथा अनुभूतियों का सम्पूर्ण रूप है जो स्वयं के विषय में है। यह एक विशिष्ट ढंग है, जिससे हम 'स्वयं' को परिभाषित करते हैं। यह विचार कि हम 'स्वयं' हम हैं, यह स्वंय की धारणा की ही अभिव्यक्ति है।

प्रश्न 3. 
स्व-संकल्पना व स्वाभिमान का परिचय दीजिए।
उत्तर:
स्व-संकल्पना तथा स्वाभिमान पहचान के तत्व हैं। स्व-संकल्पना एक व्यक्ति का विवरण है। यह "मैं कौन हूँ"? प्रश्न का उत्तर देता है। हमारी 'स्व-संकल्पना' में हमारी विशेषताएँ, अनुभूतियाँ और विचार तथा हम क्या करने में सक्षम हैं, शामिल होते हैं।

स्व-संकल्पना का एक महत्वपूर्ण पक्ष स्वाभिमान है। जो कि अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का अभिमान होता है। उन मानकों, जिन्हें हमने स्वयं अपने लिए तय किया है, के अनुसार हम स्वयं के बारे में क्या सोचते हैं, हमारा स्वाभिमान कहलाता है। यह एक व्यक्ति का स्व-मूल्यांकन होता है तथा काफी सीमा तक यह समाज से प्रभावित होता है।

प्रश्न 4. 
पहचान के विकास हेतु किशोरावस्था महत्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर:
किशोरावस्था पहचान के विकास हेतु महत्वपूर्ण अवस्था है; क्योंकि 

  • इस समय किशोर का स्वयं के विकास पर ध्यान अधिक केंद्रित रहता है। 
  • यह काल सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों के विकास का समय होता है। 
  • इस दौरान भावों के विकास के साथ-साथ किशोर की कल्पना का भी विकास होता है। 
  • उसमें सभी प्रकार के सौंदर्य की रुचि उत्पन्न होती है और किशोर इसी समय नए-नए और ऊँचे-ऊँचे आदर्शों को अपनाता है। किशोर भविष्य में जो कुछ होता है, उसकी पूरी रूपरेखा उसकी किशोरावस्था में ही बन जाती है। 
  • इसके साथ ही, किशोरावस्था काम भावना के विकास की भी अवस्था है। उसके कारण ही किशोर स्वयं में नवशक्ति का अनुभव करता है। वह सौंदर्य का उपासक एवं महानता का पुजारी बनता है और उसे वीरतापूर्ण कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 5. 
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एरिक एच. एरिक्सन के विकास संबंधी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक एरिक एच. एरिक्सन के अनुसार शैशवावस्था से वृद्धावस्था तक, हमारे विकास के प्रत्येक स्तर पर हमें कुछ सफलता प्राप्त करनी होती है जिनसे हम विकास के अगले चरण पर पहुंचते हैं। उदाहरण के लिए, पश्च शैशवकाल तथा प्रारम्भिक बाल्यावस्था (2-4 वर्ष की आयु के बीच) का कार्य आंतों व मूत्राशय की क्रियाओं पर नियंत्रण पाना है। अन्यथा बच्चे के लिए अधिकांश सामाजिक और सामुदायिक कार्यकलापों में भाग लेना असम्भव हो जाएगा।

एरिक्सन के अनुसार पहचान की भावना का विकास करना अर्थात् किशोरावस्था के दौरान स्वयं को संतोषजनक रूप में दर्शाना एक मुख्य कार्य है।

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प्रश्न 6. 
किशोरावस्था में स्वत्व के विकास में क्या बाधाएँ होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लगभग सभी संस्कृतियों में किशोरावस्था दुविधाओं और असहमतियों से भरी होती है। यथा

1. किशोर स्वयं परस्पर: विरोधी भावनाओं का अनुभव करता है।

उदाहरण के लिए माता-पिता अक्सर किशोर को बड़ों की तरह व्यवहार करने के लिए कहते हैं, लेकिन उनके अन्य क्रियाकलाप उसे यह दर्शाते हैं कि वह अभी बड़ा नहीं हुआ है। 

2. उसके चारों ओर संपर्क में आने वाले लोग भी उसे परस्पर विरोधी संदेश देते हैं और सामाजिक अपेक्षाएँ रखते हैं।

उदाहरण के लिए, माता-पिता अक्सर किशोर को सामाजिक परिस्थितियों में बातचीत करने में 'बड़ों की तरह में वही व्यक्ति नहीं हैं, जो एक वर्ष पहले थे। फिर भी आप जितना भी पीछे को याद करें आपके अंदर वह व्यक्ति होने की एक त्रुटिहीन अनुभूति निहित है, हममें से अधिकांश व्यक्ति अपने पूरे जीवन में निरंतरता और एकरूपता का भाव बनाए रख सकते हैं। चाहे उनके जीवन में दशकों से कितने भी बदलाव और निरन्तरता में विघ्न आए हों।

स्वयं की पहचान प्रकृति में बहुआयामी है-दूसरे शब्दों में, हमारे अन्दर पहचान की एक अनुभूति होती है, एक ऐसी अनुभूति जिसे हम पूरे जीवन साथ लेकर चलते हैं। यह ठीक वैसे ही होती है जैसे स्वयं के मामले में हम व्यक्तिगत पहचान और सामाजिक पहचान के बारे में बात कर सकते हैं। व्यक्तिगत पहचान एक व्यक्ति की उन विशेषताओं को संदर्भित करती है जो उसे अन्य से भिन्न बनाती है। जबकि सामाजिक पहचान का अर्थ एक व्यक्ति के वे पक्ष हैं जो उसे समूह से जोड़ते हैं जैसे व्यावसायिक, सामाजिक या सांस्कृतिक।

इस प्रकार, जब आप स्वयं को एक भारतीय के रूप में सोचते हैं तो आपने स्वयं को एक देश में रहने वाले लोगों के समूह के साथ जोड़ा है, जबकि जब आप अपने आप को एक गुजराती या मित्रों के रूप में बताते हैं, तब आप कहते हैं कि आप उस राज्य में रहने वाले लोगों की कुछ विशेषताएँ रखते हैं और यही विशेषताएँ आपको भारत के अन्य राज्यों में रहने वाले लोगों से भिन्न बनाती हैं। अतः एक गुजराती होना आपकी सामाजिक पहचान का एक आयाम है, ठीक उसी तरह जैसे कि एक हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या एक शिक्षक, किसान या वकील होना होता है। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि 'स्वयं' की पहचान प्रकृति में बहुआयामी होती है।

प्रश्न 2. 
'स्वयं' के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता है, उसके 'स्वयं' का भी निर्माण तथा विकास होता जाता है। 'स्वयं' के विकास के चरण निम्नलिखित हैं

1. शैशवकाल के दौरान स्वयं का विकास: जन्म के समय हमें अपने विशिष्ट अस्तित्व की जानकारी नहीं होती। अर्थात् शिशु यह महसूस नहीं कर पाता कि वह बाहर के संसार से अलग और भिन्न है, उसे अपने बारे में कोई जानकारी अथवा समझ और पहचान नहीं होती। 'स्वयं' की भावना शैशवकाल के दौरान क्रमिक रूप से उत्पन्न होती है और लगभग 18 महीने की आयु तक स्वयं की छवि की पहचान होने लगती है। दूसरे वर्ष की दूसरी छमाही में शिशु व्यक्तिगत सर्वनामों-'मैं' और 'मेरा' का उपयोग करने लगता है। वह किसी व्यक्ति अथवा वस्तु पर अधिकार जताने जैसे "मेरा खिलौना" अथवा "मेरी माँ", अपने बारे में अथवा जो कार्य वह कर रहा है उसे बताने अथवा अपने अनुभवों को बताने जैसे "मैं खाना खा रहा हूँ", इत्यादि के लिए इनका उपयोग करता है। इस समय तक शिशु स्वयं को तस्वीर में भी पहचानना शुरू कर देता है।

2. प्रारम्भिक बाल्यावस्था के दौरान स्वयं का विकास: इस समय तक बच्चा 3 वर्ष का हो जाता है और वह धाराप्रवाह बोल सकता है। 

  1. अब वे 'स्वयं' को अन्य लोगों से अलग बताने के लिए 'स्वयं' का अथवा अपनी वस्तुओं के बाह्य वितरण का उपयोग करते हैं। 
  2. वे विवरणात्मक शब्दों जैसे 'लंबा' अथवा 'बड़ा' का उपयोग कर सकते हैं। वे जो कार्य कर सकते हैं उसके अनुसार 'स्वयं' का विवरण देते हैं। उदाहरण के लिए, खेल सम्बन्धी कार्यकलाप के बारे में वह कहेगा कि-"मैं साइकिल चला सकता हूँ।" 
  3. उनका स्वयं विवरण निश्चित होता है अर्थात् वे स्वयं को उन वस्तुओं के अनुसार परिभाषित करते हैं जो उन्हें दिखाई पड़ता है, जैसे-"मेरे पास टेलीविजन है।" 
  4. इसके अतिरिक्त, वे अक्सर स्वयं का आकलन वास्तविकता से अधिक करते हैं। जैसे, एक बच्चा यह कह सकता है कि"मुझे कभी डर नहीं लगता।" वे अलग-अलग समय में अच्छे व बुरे, मतलबी व आकर्षक भी हो सकते हैं।

3. मध्य बाल्यावस्था के दौरान स्वयं का विकास: इस अवधि में बच्चे के स्वयं का विकास अधिक जटिल हो जाता है। 

  1. अब बच्चा अपनी आन्तरिक विशेषताओं के संदर्भ में अपना विवरण देता है। अतः बच्चा कह सकता है, "मैं मित्र बनाने में अच्छा हूँ।"
  2. बच्चे के विवरण में सामाजिक विवरण और पहचान शामिल होती है-जैसे "मैं स्कूल के संगीत समूह में हूँ।" 
  3. बच्चे सामाजिक तुलना करने लगते हैं, वे स्वयं को वास्तविक रूप की बजाय अन्य लोगों से तुलनात्मक रूप से भिन्न बताते हैं। जैसे "मैं किरण से तेज दौड़ सकती हूँ।" 
  4. वे अपनी वास्तविक क्षमताओं, जो उनके पास हैं और जो उनके पास होनी चाहिए अथवा जो वे समझते हैं कि अधिक महत्वपूर्ण हैं, में अंतर कर सकते हैं। 
  5. इस उम्र के बच्चे का स्वयं का विवरण अधिक वास्तविक हो जाता है।

4. किशोरावस्था के दौरान स्वयं का विकास: किशोरावस्था में स्वयं की समझ अत्यधिक जटिल हो जाती है। यथा-

  1. किशोरावस्था के दौरान स्वयं का विवरण संक्षिप्त एवं केवल विचार रूप में ही होता है। अतः वे स्वयं का विवरण शांत, संवेदनशील, शांत दिमाग, बहादुर, भावुक अथवा सच्चा होने के रूप में दे सकते हैं। 
  2. किशोरावस्था के दौरान स्वयं में कई विरोधाभास होते हैं। अत: किशोर स्वयं के बारे में इस प्रकार बता सकता है कि "मैं शांत हूँ लेकिन सरलता से विचलित हो जाता हूँ।" 
  3. किशोर भिन्न-भिन्न परिस्थितियों का अनुभव करते हैं और उन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, स्वयं के बारे में उनकी समझ स्थिति और समय के अनुसार बदलती रहती है। 
  4. अब किशोर का आदर्श स्वयं अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। उदाहरण के लिए एक लड़की जो वास्तव में बहुत छोटी है, वह लंबा होने की इच्छा रख सकती है। 
  5. किशोर, बच्चों की अपेक्षा स्वयं के बारे में अधिक सचेत होते हैं और अपने में ही मग्न रहते हैं।

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प्रश्न 3. 
हमारे पहचान के निर्माण पर पड़ने वाले प्रभावों का विवरण सहित वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
हम आत्मत्व अथवा पहचान की भावना के साथ पैदा नहीं होते। जबकि हम अपने अनुभवों से स्वयं के बारे में जो सीखते हैं तथा अन्य लोग हमें हमारे बारे में क्या बताते हैं. उसके परिणामस्वरूप 'स्वयं' का विकास होता है। इस प्रकार बहुत से लोग हमारे 'स्वयं' के विकास में सहायक होते हैं और 'स्वयं' का निर्माण एक निरन्तर गतिशील प्रक्रिया है। अर्थात् जैसे-जैसे आपका विकास होता है इसका भी विकास होता जाता है।

हम पहचान के निर्माण पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्गीकरण निम्नलिखित रूप से कर सकते हैं

1. जैविक और शारीरिक परिवर्तन:
किशोरावस्था के दौरान शरीर में कुछ सार्वभौमिक शारीरिक और जैविक परिवर्तन होते हैं। इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप यौन परिपक्वता आती है। यौन परिपक्वता की आयु को यौवनारम्भ कहा जाता है। अक्सर मासिक धर्म (पहला) को लड़कियों में यौन परिपक्वता का बिंदु माना जाता है। लड़कों के लिए यौवनारम्भ को चिह्नित करने वाली कोई विशिष्ट प्रक्रिया नहीं है। यद्यपि इसके लिए अक्सर जिस मानदंड का उपयोग किया जाता है वह है शुक्राणु का उत्पादन । लड़कों व लड़कियों की लंबाई में एक वर्ष में होने वाली अधिकतम बढ़ोतरी को यौवनारम्भ का एक उपयोगी मानदंड माना गया है। वह अवधि जिसमें शारीरिक और जैविक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप यौवनारम्भ होता है, उसे यौवनावस्था कहा जाता है। अधिकांश लड़कियों में यह अवधि 11 से 13 वर्ष और लड़कों में 13 से 15 वर्ष के बीच होती है।

2. पारिवारिक और मित्रवत् सम्बन्धों में सामाजिक, सांस्कृतिक संदर्भ:
पहचान निर्माण की प्रक्रिया पर शारीरिक और सामाजिक परिवर्तनों का प्रभाव सांस्कृतिक, सामाजिक तथा पारिवारिक संदों में भिन्न-भिन्न होता है। यथा

  • अधिकांश पश्चिमी संस्कृतियों में किशोरों से पूर्णतः आत्मनिर्भर होने की अपेक्षा की जाती है, कई मामलों में तो उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे परिवार से अलग जाकर अपना घर बसाएँ। जबकि भारतीय संदर्भ में, अधिकांश किशोर अपने माता-पिता पर काफी हद तक निर्भर होते हैं और परिवार हमेशा उन पर नियंत्रण बनाए रखते हैं। अतः उपर्युक्त दोनों सांस्कृतिक परिवेशों में किशोर के 'स्वयं' का विकास पूर्णतः भिन्न होगा।
  • ये सांस्कृतिक प्रभाव भी प्रत्येक परिवार और प्रत्येक व्यक्ति के साथ भिन्न हो जाते हैं। जैसे कि, किशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक परिवर्तनों के प्रति समाज के विभिन्न वर्गों की अलग-अलग अनुक्रिया हो सकती है। एक पारम्परिक भारतीय समाज में यौवनारम्भ के साथ ही लड़कियों पर कई प्रतिबंध लग जाते हैं जबकि लड़के पहले की तरह स्वतंत्र होते हैं। पारम्परिक समुदाय की लड़की के 'स्वयं' और 'पहचान' के घटक शहरी क्षेत्रों में रहने वाली लड़कियों से एकदम अलग होंगे।
  • किशोरों के पहचान निर्माण को उन पारिवारिक सम्बन्धों से प्रोत्साहन मिलता है जहाँ स्वयं की राय बनाने हेतु उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है और जहाँ परिवार के सदस्यों में सुरक्षित सम्बन्ध होते हैं। इसके कारण किशोर को अपने बढ़ते हुए सामाजिक दायरे को जानने के लिए एक सुरक्षित आधार मिलता है। यह भी पाया गया है कि सुदृढ़ और स्नेहमय पालन-पोषण से पहचान का स्वस्थ विकास होता है तथा बच्चों में स्वतंत्रता एवं आत्मनिर्भरता आती है।

3. भावात्मक परिवर्तन:
किशोर विकास के दौरान कई भावात्मक परिवर्तनों का अनुभव करता है, जिनमें से कई परिवर्तन किशोर में हो रहे जैविक और शारीरिक परिवर्तनों के कारण होते हैं। किशोर अपने शारीरिक रूप को लेकर अधिक चिंतामग्न रहते हैं। फिर भी शारीरिक परिवर्तनों के प्रति सभी किशोर अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। जैसे, एक लड़का जिसके चेहरे पर उसकी उम्र के अन्य लड़कों की तुलना में पर्याप्त बाल नहीं हैं, उसे यह अजीब सा लग सकता है। तथापि चेहरे पर बाल न होना किसी अन्य लड़के को परेशान न करे, ऐसा भी हो सकता है।

शारीरिक विकास के प्रति गर्व अथवा सहज भाव रखने से किशोरों के स्व-बोध पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दूसरी ओर, यदि किशोर इस बात से कि वह कैसा दिखाई देता है, आवश्यकता से अधिक असंतुष्ट है तो वह अपने व्यक्तित्व के अन्य पहलुओं, जैसे कार्य, पढ़ाई आदि पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है। यह उसकी स्वयं के प्रति धारणा अथवा स्वाभिमान को कम करती है। अपने प्रति नकारात्मक धारणा रखने से व्यक्ति असुरक्षित महसूस करता है और उसमें शरीर के प्रति नकारात्मक भावनाएँ उत्पन्न होती हैं।

किशोरों की मन:स्थिति भी बदलती रहती है। उदाहरणतः कभी परिवार के सदस्यों और मित्रों के साथ रहने की इच्छा रखना और कभी बिल्कुल अकेले रहना। कभी उसे अचानक बेहद तेज क्रोध भी आ सकता है। इस तरह के परिवर्तन किशोर में विभिन्न स्तरों पर स्वयं में हो रहे बदलावों के कारण होते हैं।

4. संज्ञानात्मक परिवर्तन:
बाल्यावस्था के आरंभिक वर्षों में बच्चे का विकास एक ऐसे व्यक्ति जिसे अलग पहचान के बारे में पता नहीं होता अथवा जिसमें व्यक्तिगत भावना नहीं होती, से ऐसे व्यक्ति में होता है जो 'स्वयं' की निश्चित और सही संदर्भो में व्याख्या कर सकता है। मध्य बाल्यावस्था में भी स्वयं-विवरण सही-सही होता है, अंतर यह होता है कि इस अवस्था में यह विवरण तुलनात्मक भी होता है।

किशोरावस्था के दौरान एक जर्बदस्त परिवर्तन यह होता है कि किशोर अमूर्त रूप से सोचने लगता है अर्थात् वे वर्तमान से तथा जो वह देखते और अनुभव करते हैं। उससे अधिक आगे भी सोच सकते हैं। अत: किशोरावस्था, पहचान विकास का महत्वपूर्ण चरण है। इस दौरान कई परिवर्तन होते हैं और अनेक अवसर आते हैं।

Raju
Last Updated on Aug. 19, 2022, 10:51 a.m.
Published Aug. 12, 2022