RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

Rajasthan Board RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
दि सिविलाइजेशन ऑफ दि रेनेसाँ इन इटली' नामक पुस्तक के लेखक हैं
(क) बर्कहार्ट 
(ख) कोन्टारिकी 
(ग) गैलिलियो
(घ) जूलियस सीजर।
उत्तर:
(क) बर्कहार्ट 

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ  

प्रश्न 2. 
यूरोप में सर्वप्रथम विश्वविद्यालय किस देश के शहरों में स्थापित हुए
(क) फ्रांस 
(ख) जर्मनी
(ग) रूस
(घ) इटली। 
उत्तर:
(घ) इटली। 

प्रश्न 3. 
अरबी भाषा में किस विद्वान को 'अफलातून' कहा जाता है
(क) इब्नसिना 
(ख) प्लेटो
(ग) अरस्तु
(घ) टॉलेमी 
उत्तर:
(ख) प्लेटो

प्रश्न 4. 
निम्न में से किस चित्रकार ने 'मोनालिसा' नामक विश्वविख्यात चित्र बनाया था
(क) लियोनार्डो दा विंची
(ख) ड्यूरर 
(ग) बुआनारोती
(घ) ब्रूनेलेशी। 
उत्तर:
(क) लियोनार्डो दा विंची

प्रश्न 5. 
निम्न में से छापेखाने के आविष्कारक थे
(क) विंची 
(ख) गुटेनबर्ग 
(ग) गैलिलियो
(घ) राइट। 
उत्तर:
(ख) गुटेनबर्ग 

प्रश्न 6. 
निम्न में से 'ऑनप्लेज़र' नामक पुस्तक के रचयिता थे
(क) लोरेन्जो वल्ला 
(ख) मैकियावेली 
(ग) गुटेनबर्ग
(घ) फ्लोरेंस। 
उत्तर:
(क) लोरेन्जो वल्ला 

प्रश्न 7. 
निकोलो मैकियावेली द्वारा लिखित ग्रन्थ था
(क) ऑन प्लेज़र 
(ख) दि प्रिंस
(ग) कोर्टियर
(घ) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(ख) दि प्रिंस

प्रश्न 8. 
निम्न में से किस मानवतावादी का कथन है कि “चर्च एक लालची और साधारण लोगों से बात-बात पर लूट-खसोट करने वाली संस्था बन गई।"
(क) इरेस्मस ने 
(ख) मैकियावेली ने 
(ग) मार्टिन लूथर ने 
(घ) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(क) इरेस्मस ने 

प्रश्न 9. 
किस यूरोपीय विद्वान ने प्रोटेस्टेंट सुधारवाद आन्दोलन प्रारम्भ किया था
(क) मार्टिन लूथर 
(ख) इरेस्मस
(ग) टॉमस मोर 
(घ) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(क) मार्टिन लूथर 

प्रश्न 10. 
निम्न में से किस वैज्ञानिक ने सूर्य केन्द्रित सौरमंडलीय सिद्धान्त दिया था
(क) न्यूटन 
(ख) कोपरनिकस 
(ग) राइटबंधु
(घ) जेम्स कुक। 
उत्तर:
(ख) कोपरनिकस 

अति लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 
14वीं से 17वीं शताब्दी के दौरान यूरोप के अनेक देशों में क्या परिवर्तन हो रहा था ? 
उत्तर:
यूरोप के अनेक देशों में नगरों की संख्या बढ़ने से एक विशेष प्रकार की नगरीय संस्कृति विकसित हो रही थी। 

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 2. 
यूरोप के कौन-कौन से नगर कला और विद्या के प्रमुख केन्द्र बन गए थे ? 
उत्तर:

  1. फ्लोरेंस
  2. वेनिस 
  3. रोम। 

प्रश्न 3. 
यूरोप में प्राचीन दुनिया का प्रतीक कौन-कौन सी सभ्यताएँ थीं ? 
उत्तर:
यूनानी व रोमन सभ्यताएँ। 

प्रश्न 4. 
नवीन भौगोलिक ज्ञान ने किस प्राचीन विचार को उलट दिया? 
उत्तर:
नवीन भौगोलिक ज्ञान ने इस प्राचीन विचार को उलट दिया कि भूमध्यसागर विश्व का केन्द्र है। 

प्रश्न 5. 
'रेनेसाँ' का शाब्दिक अर्थ क्या है ? 
उत्तर:
पुनर्जन्म। 

प्रश्न 6. 
रेनेसाँ को हिन्दी भाषा में किस नाम से जाना जाता है ? 
उत्तर:
पुनर्जागरण। 

प्रश्न 7. 
जैकब बर्कहार्ट ने किस पुस्तक की रचना की ? 
उत्तर:
जैकब बर्कहार्ट ने 1860 ई. में 'दि सिविलाइजेशन ऑफ दि रेनेसाँ इन इटली' नामक पुस्तक की रचना की। 

प्रश्न 8. 
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन का इटली पर क्या प्रभाव पड़ा ? 
उत्तर:
इटली के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक केन्द्रों का विनाश हो गया। 

प्रश्न 9. 
इटली के बंदरगाह किस प्रकार पुनर्जीवित हुए? 
उत्तर:
बाइजेंटाइन साम्राज्य और इस्लामी देशों के मध्य व्यापार बढ़ने से इटली के बंदरगाह पुनर्जीवित हो गये।

प्रश्न 10. 
इटली में स्वतंत्र नगर-राज्यों का उदय किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
पश्चिमी यूरोपीय देशों के व्यापार की उन्नति में इटली के नगरों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। अब वे अपने आप को स्वतंत्र नगर-राज्यों का समूह मानते थे।

प्रश्न 11. 
यूरोप के दो सर्वाधिक जीवंत शहर कौन-कौन से थे ? 
उत्तर:

  1. वेनिस 
  2. जिनेवा।। 

प्रश्न 12.
दि कॉमनवेल्थ एण्ड गवर्नमेंट ऑफ वेनिस' नामक पुस्तक के लेखक कौन थे? 
उत्तर:
कार्डिनल गेसपारो कोन्तारिनी। 

प्रश्न 13. 
यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय किस देश के शहरों में स्थापित हुए ? 
उत्तर:
इटली के शहरों में। 

प्रश्न 14. 
फ्लोरेंस में विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई? 
उत्तर:
1349 ई. में। 

प्रश्न 15. 
ग्यारहवीं शताब्दी में पादुआ तथा बोलोनिया नामक विश्वविद्यालय किस विषय के अध्ययन केन्द्र थे? 
उत्तर:
विधिशास्त्र के। 

प्रश्न 16. 
पादुआ व बोलोनिया नगरों में वकीलों व नोटरी की बहुत अधिक आवश्यकता होती थी, क्यों? 
उत्तर:
क्योंकि वकील व नोटरी व्यापार के नियमों को लिखते, उनकी व्याख्या करते एवं समझौता करते थे। 

प्रश्न 17. 
पादुआ व बोलोनिया नगरों में कानून के अध्ययन में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर:
इन नगरों में कानून के अध्ययन में यह परिवर्तन आया कि अब कानून का अध्ययन रोमन संस्कृति के सन्दर्भ में किया जाने लगा।

प्रश्न 18. 
कानून को रोमन संस्कृति के सन्दर्भ में पढ़े जाने के विचार का किसने प्रतिनिधित्व किया ? 
उत्तर:
फ्राचेस्को पेट्रार्क नामक विद्वान ने। 

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प्रश्न 19. 
मानवतावाद क्या है ? 
उत्तर:
मानवतावाद एक जीवन-दर्शन है जिसमें मनुष्य और उसके लौकिक जीवन को विशेष महत्व दिया जाता है। 

प्रश्न 20. 
15वीं शताब्दी के प्रारम्भ में किन लोगों को मानवतावादी कहा जाता था ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी के प्रारम्भ में उन शिक्षकों को मानवतावादी कहा जाता था, जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास एवं नीतिशास्त्र जैसे विषय पढ़ाते थे।

प्रश्न 21. 
यूरोप के किन्हीं दो मानवतावादी विचारकों का नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. मिरांदोला 
  2. कसान्द्रा फेदेले। 

प्रश्न 22. 
फ्लोरेंस नगर की प्रसिद्धि किन दो लोगों के कारण मानी जाती थी ? 
उत्तर:

  1. दाँते अलिगहियरी 
  2. जोटो। 

प्रश्न 23. 
रेनेसाँ' शब्द का प्रयोग प्रायः किस मनुष्य के लिए किया जाता है ?
उत्तर:
रेनेसाँ शब्द का प्रयोग प्रायः उस मनुष्य के लिए किया जाता है, जिसकी अनेक रुचियाँ हों एवं वह अनेक कलाओं में दक्ष हो।

प्रश्न 24. 
मानवतावादियों ने आधुनिक शब्द का प्रयोग किस काल के लिए किया है ? 
उत्तर:
मानवतावादियों ने आधुनिक शब्द का प्रयोग 15वीं शताब्दी में प्रारम्भ होने वाले काल के लिए किया है। 

प्रश्न 25. 
मानवतावादियों के अनुसार 5वीं से 9वीं शताब्दी तक के काल को किस नाम से जाना जाता है ? 
उत्तर:
अंधकार युग। 

प्रश्न 26. 
टॉलेमी ने किस पुस्तक की रचना की? अथवा टॉलेमी द्वारा खगोलशास्त्र पर रचित ग्रन्थ का नाम बताइए? 
उत्तर:
अलमजेस्ट। 

प्रश्न 27. 
इब्न रूश्द कौन था ?
उत्तर:
इब्न रूश्द एक अरबी दार्शनिक था, जिसने दार्शनिक ज्ञान एवं धार्मिक विश्वासों के मध्य चल रहे तनावों के समापन का प्रयास किया।

प्रश्न 28. 
मानवतावादी विचारों के प्रसार में किन-किन तत्वों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ? 
उत्तर:

  1. मानवतावादी विषयों ने
  2. कला, वास्तुकला व ग्रन्थों ने। 

प्रश्न 29. 
दोनातल्लो कौन था ?
उत्तर:
दोनातल्लो इटली का एक मूर्तिकार था, जिसने 1416 ई. में सजीव जैसी दिखने वाली मूर्तियाँ बनाकर नयी परम्परा स्थापित की।

प्रश्न 30. 
यूरोप के कलाकारों को अपनी कलाकृतियों की रचना में वैज्ञानिकों के कार्यों से किस प्रकार सहायता प्राप्त हुई?
उत्तर:
नर-कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकार आयुर्विज्ञान महाविद्यालयों की प्रयोगशालाओं में गए। 

प्रश्न 31. 
आन्ड्रीयस वेसेलियस कौन थे ? उनका क्या योगदान है ?
उत्तर:
आन्ड्रीयस वेसेलियस पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे। ये पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीरफाड़ की।

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प्रश्न 32. 
लियोनार्डो दा विंची कौन थे ? 
उत्तर:
लियोनार्डो दा विंची इटली के एक प्रसिद्ध चित्रकार थे। इनके द्वारा निर्मित चित्र 'मोनालिसा' विश्व प्रसिद्ध है। 

प्रश्न 33. 
लियोनार्डो दा विंची द्वारा बनाये गये किन्हीं दो चित्रों का नाम लिखिए। उत्तर:

  1. मोनालिसा
  2. द लास्ट सपर। 

प्रश्न 34. 
यथार्थवाद से क्या आशय है ?
उत्तर:
शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी एवं सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप दिया जिसे बाद में यथार्थवाद कहा गया।

प्रश्न 35. 
शास्त्रीय शैली क्या थी ?
उत्तर:
पुरातत्वविदों ने रोम के अवशेषों का उत्खनन कर वास्तुकला की एक नयी शैली को प्रोत्साहित किया, जो वास्तव में रोम साम्राज्यकालीन शैली का पुनरुद्धार थी। इसे ही शास्त्रीय शैली कहा गया।

प्रश्न 36. 
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती कौन था ?
उत्तर:
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती एक कुशल चित्रकार, मूर्तिकार व वास्तुकार था, जिसने 'दि पाइटा' नामक मूर्ति बनायी और सेंट पीटर गिरजाघर के गुम्बद का डिजाइन बनाया।

प्रश्न 37. 
फ्लोरेंस के भव्य गुम्बद का प्रतिरूप किसने बनाया ? उत्तर-फिलिप्पो ब्रूनेलेशी नामक वास्तुकार ने। 

प्रश्न 38. 
यूरोप में कब व किसने छापेखाने का आविष्कार किया ? 
उत्तर:
1455 ई. में जर्मन मूल के जोहानेस गुटेनबर्ग ने सर्वप्रथम छापेखाने का आविष्कार किया। 

प्रश्न 39. 
15वीं शताब्दी में यूरोप में नवीन विचारों का प्रसार तीव्र गति से क्यों हुआ ?
उत्तर:
छापेखाने के आविष्कार के पश्चात् यूरोपवासियों को छपी पुस्तकें बड़ी संख्या में उपलब्ध होने लगी तथा उनका क्रय-विक्रय होने लगा। इन पुस्तकों ने यूरोप में नवीन विचारों को गति प्रदान की।

प्रश्न 40. 
15वीं शताब्दी के अन्त से इटली की मानवतावादी संस्कृति का आल्पस पर्वत के पार तीव्रगति से फैलने का क्या कारण था ?
उत्तर:
यूरोपीय देशों में छपी हुई पुस्तकों का विशाल मात्रा में उपलब्ध होना। 

प्रश्न 41. 
मानवतावादी संस्कृति की कोई एक विशेषता बताइए। 
उत्तर:
मानव जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर होना। 

प्रश्न 42. 
फ्रेनचेस्को बरवारो कौन थे ? 
उत्तर:
फ्रेनचेस्को बरवारो वेनिस के एक मानवतावादी लेखक थे। 

प्रश्न 43. 
लोरेन्ज़ो वल्ला कौन थे ? 
उत्तर:
लोरेन्ज़ो वल्ला एक प्रसिद्ध मानवतावादी लेखक थे।

प्रश्न 44. 
लोरेन्ज़ो वल्ला के मानवतावादी संस्कृति के बारे में क्या विचार थे ?
उत्तर:
लोरेन्ज़ो वल्ला ने अपनी पुस्तक 'ऑनप्लेज़र' में भोग-विलास पर लगाई गई ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की।

प्रश्न 45. 
मैकियावेली कौन था ? 
उत्तर:
मैकियावेली इटली का एक प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक था। इन्होंने 'दि प्रिंस' नामक पुस्तक की रचना की। 

प्रश्न 46. 
मैकियावेली ने अपनी पुस्तक 'दि प्रिंस' में मानव स्वभाव के बारे में क्या विचार प्रकट किए ?
उत्तर:
मैकियावेली के अनुसार कुछ लोग दयालु, दानी एवं साहसी होते हैं, जबकि कुछ कंजूस, निर्दयी एवं कायर होते हैं। उसके अनुसार सभी मनुष्य बुरे हैं।

प्रश्न 47. 
वैयक्तिकता व नागरिकता के नये विचारों से किसे दूर रखा गया ? 
उत्तर:
महिलाओं को। 

प्रश्न 48. 
कसान्द्रा फेदेले कौन थी ?
उत्तर:
वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले एक विदुषी महिला थी, जिसने महिलाओं की शिक्षा प्राप्ति का समर्थन किया।

प्रश्न 49. 
वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले में महिलाओं की शिक्षा के सन्दर्भ में क्या विचार प्रकट किये ?
उत्तर:
वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले के अनुसार प्रत्येक महिला को समस्त प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए तथा उसे ग्रहण करना चाहिए।

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प्रश्न 50. 
वेनिस की कसान्द्रा फेदेले ने किस तत्कालीन विचारधारा को चुनौती दी थी ?
उत्तर:
वेनिस की कसान्द्रा फेदेले ने इस विचारधारा को चुनौती दी थी कि एक मानवतावादी विद्वान के गुण एक महिला के पास नहीं हो सकते।

प्रश्न 51. 
फेदेले की रचनाओं से कौन-सी बात हमारे समक्ष आती है ?
उत्तर:
फेदेले की रचनाओं में यह बात हमारे समक्ष आती है कि इस काल में सभी लोग शिक्षा को बहुत अधिक महत्व देते थे।

प्रश्न 52. 
मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते कौन थी ?
उत्तर:
मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते एक प्रतिभाशाली महिला थी जिसने अपने वेनिस निवासी पति की अनुपस्थिति में मंटुआ राज्य पर शासन किया।

प्रश्न 53. 
बाल्थासार कास्टिल्योनी द्वारा लिखित पुस्तक का नाम बताइए। 
उत्तर:
दि कोर्टियर।। 

प्रश्न 54. 
16वीं शताब्दी के दो मानववादी विद्वानों के नाम बताइए। जिन्होंने कैथोलिक चर्च की कटु आलोचना की? 
उत्तर:

  1. टॉमस मोर (इंग्लैण्ड)
  2. इरेस्मस (हॉलैण्ड)। 

प्रश्न 55. 
टॉमस मोर तथा इरेस्मस का चर्च के विषय में क्या विचार थे?
उत्तर:
टॉमस मोर तथा इरेस्मस का यह मानना था कि चर्च एक लालची और साधारण लोगों से बात-बात पर लूट-खसोट करने वाली संस्था बन गयी है।

प्रश्न 56.
पाप-स्वीकारोक्ति क्या था ?
उत्तर:
पाप स्वीकारोक्ति एक दस्तावेज था, जो पादरियों द्वारा लोगों से धन ऐंठने का सबसे सरल तरीका था। यह दस्तावेज चर्च द्वारा जारी किया जाता था।

प्रश्न 57. 
मार्टिन लूथर कौन था?
उत्तर:
मार्टिन लूथर जर्मनी का एक महान धर्म सुधारक था। 1517 ई. में उसने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध प्रोटेस्टेंट सुधार आन्दोलन शुरू किया।

प्रश्न 58. 
नाइन्टी फाइब थिसेज़ की रचना किसने की? 
उत्तर:
मार्टिन लूथर ने। 

प्रश्न 59. 
जर्मनी में कैथोलिक चर्च के विरुद्ध कब व किसने अभियान शुरू किया था ? 
उत्तर:
1517 ई. में जर्मन युवा भिक्षु मार्टिन लूथर ने।

प्रश्न 60. 
प्रोटेस्टेंट आन्दोलन के कोई दो प्रमुख उद्देश्य बताइए। 
उत्तर:

  1. कैथोलिक धर्म में व्याप्त आडम्बरों को दूर करना 
  2. चर्च की बुराइयों को समाप्त करना। 

प्रश्न 61. 
मार्टिन लूथर ने क्या आह्वान किया था? 
उत्तर:
जर्मन शासकों को समकालीन किसानों के विद्रोह का दमन करना चाहिए। 

प्रश्न 62. 
एनाबेपटिस्ट सम्प्रदाय के धर्म सुधारकों की क्या विचारधारा थी ?
उत्तर:
एनाबेपटिस्ट सम्प्रदाय के धर्म सुधारक अधिक उग्र सुधारक थे, जिन्होंने प्रत्येक प्रकार के सामाजिक उत्पीड़न का विरोध किया।

प्रश्न 63. 
1506 ई. में अंग्रेजी भाषा में बाइबिल का अनुवाद किसने किया ?
उत्तर:
विलियम टिंडेल ने। 

प्रश्न 64. 
इग्नेशियस लोयोला कौन था ? 
उत्तर:
इग्नेशियस लोयोला स्पेन का निवासी था, जो कैथोलिक चर्च का प्रबल समर्थक था। 

प्रश्न 65. 
सोसाइटी ऑफ जीसस' की कब व किसने स्थापना की ? 
उत्तर:
1540 ई. में इग्नेशियस लोयोला ने। 

प्रश्न 66. 
जेसुइट कौन थे ? 
उत्तर:
स्पेन में प्रोटेस्टेंट लोगों से संघर्ष करने वाले इग्नेशियस लोयोला के अनुयायी जेसुइट कहलाते थे। 

प्रश्न 67. 
जेसुइट का मुख्य उद्देश्य क्या था ? 
उत्तर:

  1. निर्धनों की सेवा करना
  2. अन्य संस्कृतियों के बारे में अपने ज्ञान को अधिक व्यापक बनाना। 

प्रश्न 68. न्यू टेस्टामेंट क्या है ?
उत्तर:
न्यू टेस्टामेंट बाइबिल का वह खण्ड है, जिसमें ईसा मसीह का जीवन-चरित्र, धर्मोपदेश एवं प्रारम्भिक अनुयायियों का उल्लेख है।

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प्रश्न 69. 
पृथ्वी का पहला बेलनाकार मानचित्र कब व किसने बनाया ? 
उत्तर:
1569 ई. गेरहार्डस मरकेटर ने। 

प्रश्न 70. 
ईसाइयों की क्या धारणा थी ? 
उत्तर;
मनुष्य पापी है। 

प्रश्न 71. 
ईसाइयों की पृथ्वी के बारे में क्या धारणा थी ? 
उत्तर:
ईसाइयों का विश्वास था कि पृथ्वी पापों से भरी हुई है एवं पापों की अधिकता के कारण वह अस्थिर है। 

प्रश्न 72. 
खगोलशास्त्री जोहानेस कैप्लर ने किस पुस्तक की रचना की ? 
उत्तर:
कॉस्मोग्राफिकल मिस्ट्री की। 

प्रश्न 73. कोपरनिकस ने क्या घोषणा की ? 
अथवा 
कोपरनिकस का सूर्य-केंद्रित सौरमंडलीय सिद्धांत क्या था? 
उत्तर:
पृथ्वी सहित समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार मार्ग पर परिक्रमा करते हैं। 

प्रश्न 74. 
गैलिलियो ने अपने किस ग्रन्थ में गतिशील विश्व के सिद्धान्तों की पुष्टि की ? 
उत्तर:
'दि मोशन' में। 

प्रश्न 75. 
आइज़क न्यूटन ने किस सिद्धांत की खोज की? 
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की। 

प्रश्न 76. 
आइज़क न्यूटन ने कब व किस ग्रन्थ की रचना की? 
उत्तर:
1687 ई. में प्रिंसिपिया मैथेमेटिका की। 

प्रश्न 77. 
वैज्ञानिक संस्कृति के प्रसार में किन-किन संस्थाओं ने अपना योगदान दिया ? 
उत्तर:

  1. पेरिस अकादमी, 
  2. रॉयल सोसाइटी, लंदन। 

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA) 

प्रश्न 1. 
14वीं शताब्दी से यूरोपीय इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोत क्या हैं? 
उत्तर:
14वीं शताब्दी से यूरोपीय इतिहास की जानकारी के मुख्य स्रोत यूरोप तथा अमेरिका के अभिलेखागारों और संग्रहालयों आदि में रखे हुए दस्तावेज, मुद्रित पुस्तकें, मूर्तियाँ, वस्त्र आदि हैं। कई चित्र व भवन भी हमें इस समय के इतिहास की जानकारी देते हैं।

प्रश्न 2. 
रेनेसाँ शब्द का क्या अर्थ है? बताइए।
उत्तर:
रेनेसाँ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है-पुनर्जन्म। हिन्दी भाषा में इसको पुनर्जागरण के लिए प्रयोग किया जाता है। यह शब्द तत्कालीन समाज में पनप रही मानवतावादी संस्कृति एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 3. 
इतिहासकार जैकब बर्कहार्ट ने 14वीं से 17वीं शताब्दी तक इटली के नगरों में पनप रही मानवतावादी संस्कृति के बारे में क्या लिखा है ? .
उत्तर:
स्विट्जरलैण्ड के ब्रेसले विश्वविद्यालय के इतिहासकार जैकब बर्कहार्ट ने अपनी पुस्तक 'दि सिविलाइजेशन ऑफ दि रेनेसाँ इन इटली' में लिखा है कि इटली के नगरों में पनप रही मानवतावादी संस्कृति इस नए विश्वास पर आधारित थी कि व्यक्ति अपने बारे में स्वयं निर्णय ले तथा अपनी दक्षता को आगे विस्तार देने में स्वयं समर्थ है। ऐसा व्यक्ति आधुनिक था, जबकि मध्यकालीन मानव पर चर्च का नियंत्रण स्थापित था।

प्रश्न 4. 
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् इटली की क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् इटली के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक केन्द्रों का भी विनाश हो गया। वहाँ कोई भी एकीकृत सरकार नहीं थी तथा रोम का पोप, जो यद्यपि उस समय वहाँ सार्वभौम था परन्तु यूरोपीय राजनीति में उसकी स्थिति अधिक सुदृढ़ नहीं रही थी। इटली एक कमजोर देश था और अनेक टुकड़ों में बँटा हुआ था जो कि स्वतंत्र नगर राज्यों के समूह के रूप में थे।

प्रश्न 5. 
रेशम मार्ग क्या था ? बताइए।
उत्तर:
ये इस प्रकार के मार्ग थे जो न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को परस्पर जोड़ने का कार्य करते थे, बल्कि एशिया को यूरोप व उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे। ऐसे मार्ग ईसा पूर्व के समय में ही अस्तित्व में आ चुके थे। जब मंगोलों ने सैन्य अभियानों के पश्चात् व्यापारिक सम्बन्ध परिपक्व किए तब चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्ध रेशम मार्ग के द्वारा ही अपने चरम पर पहुंचे थे। 

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प्रश्न 6. 
इटली के प्रमुख नगर कौन-कौन से थे ? वहाँ का नगरीय शासन किस प्रकार संचालित होता था ?
उत्तर:
इटली के प्रमुख नगर वेनिस, फ्लोरेंस व जिनेवा थे। इटली के टुकड़ों में विभक्त होने के पश्चात् ये नगर-राज्य कहलाए। अब ये अपने आपको किसी शक्तिशाली साम्राज्य का अंग नहीं मानते थे, बल्कि स्वतंत्र नगर-राज्यों का एक समूह मानते थे। वेनिस व फ़्लोरेंस नगर गणराज्य थे और कई अन्य दरबारी-नगर थे जिनका शासन राजकुमार चलाते थे। अब वहाँ चर्च व सामन्त वर्ग शक्तिशाली नहीं थे। नगरों के व्यापारी व महाजन इनके शासन में सक्रिय रूप से भाग लेते थे।

प्रश्न 7. 
इटली के नगर-राज्यों में नागरिकता की भावना किस प्रकार जाग्रत हुई?
उत्तर:
इटली के विभाजन के पश्चात यहाँ नगर-राज्यों का उदय हुआ। यहाँ पर धर्माधिकारी और सामंत वर्ग राजनैतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे। नगरों के धनी व्यापारी और महाजन नगर के शासन में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। जिससे यहाँ (इटली के नगर-राज्यों में) नागरिकता की भावना पनपने लगी थी।

प्रश्न 8. 
ग्यारहवीं शताब्दी में इटली में विश्वविद्यालयों के अध्ययन का मुख्य विषय क्या था और क्यों ?
उत्तर:
ग्यारहवीं शताब्दी में इटली में पादुआ व बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन के प्रमुख केन्द्र थे क्योंकि इन नगरों के प्रमुख क्रियाकलाप व्यापार एवं वाणिज्य सम्बन्धी थे। यहाँ व्यापार के नियमों को लिखने, उनकी व्याख्या करने एवं समझौते तैयार करने के लिए वकीलों एवं नोटरी की बहुत आवश्यकता पड़ती थी। इनके सहयोग के अभाव में बड़े स्तर पर व्यापार करना असम्भव था। इन समस्त कारणों से कानून का अध्ययन वहाँ एक प्रिय विषय बन गया।

प्रश्न 9. 
फ्रांचेस्को पेट्रार्क ने किस बात पर जोर दिया?
उत्तर:
फ्रांचेस्को पेट्रार्क यूरोपीय पुराकाल को एक विशिष्ट सभ्यता समझता था। जिसको प्राचीन यूनानियों और रोमनों के वास्तविक शब्दों के माध्यम से ही अच्छी तरह समझा जा सकता है। अतः उसने इस बात पर जोर दिया कि इन प्राचीन लेखकों की रचनाओं का बहुत अच्छी तरह से अध्ययन किया जाना चाहिए।

प्रश्न 10. 
मानवतावादी विद्वानों ने मध्यकाल को किन-किन युगों में विभाजित किया है ?
उत्तर:
मानवतावादी विद्वानों के अनुसार 5वीं से 14वीं शताब्दी तक के काल को यूरोप में मध्यकाल के नाम से जाना जाता है, जो तीन युगों में विभक्त किया जा सकता है

  1. अंधकार युग-5वीं से 9वीं शताब्दी
  2. आरम्भिक मध्य युग 9वीं से 11वीं शताब्दी
  3. उत्तर मध्य युग-11वीं से 14वीं शताब्दी।

प्रश्न 11. 
मानवतावादियों ने पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भ को आधुनिक युग का नाम क्यों दिया?
उत्तर:
मानवतावादियों ने पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भ को मध्यकाल से अलग करने के लिए 'आधुनिक युग' का नाम दिया। उनका यह तर्क था कि 'मध्ययुग' में चर्च के लोगों की सोच को बुरी तरह जकड़ रखा था इसलिए यूनान और रोमवासियों का समस्त ज्ञान उनके मन-मस्तिष्क से निकल चुका था। परन्तु पन्द्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में यह ज्ञान फिर से जीवित हो उठा।

प्रश्न 12. 
यथार्थवाद क्या है ? बताइए।
उत्तर:
12वीं व 13वीं शताब्दी के दौरान लोगों के मन-मस्तिष्क को आकार देने के साधन केवल औपचारिक शिक्षा ही नहीं थी बल्कि कला, वास्तुकला और साहित्य ने मानवतावादी विचारों के प्रसार में प्रभावी भूमिका निभायी। जीवन के अनेक क्षेत्रों यथा-शरीर क्रिया विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी एवं सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला, चित्रकला व वास्तुकला को एक नया रूप प्रदान किया जिसे बाद में 'यथार्थवाद' का नाम दिया गया। यथार्थवाद की यह परम्परा 19वीं शताब्दी तक चलती रही।

प्रश्न 13. 
लियोनार्डो दा विंची कौन था ? वह क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
लियोनार्डो दा विंची इटली का एक महान यथार्थवादी चित्रकार था। इसके प्रसिद्ध चित्रों में मोनालिसा व द लास्ट सपर प्रमुख हैं। इनकी अभिरुचि वनस्पति विज्ञान, शरीर विज्ञान, गणित शास्त्र तथा कला में थी। इस बहुगुण सम्पन्न दार्शनिक चित्रकार ने वर्षों तक आकाश में पक्षियों के उड़ने का परीक्षण किया। आकाश में उड़ने के अपने स्वप्न को साकार करने के लिए इन्होंने एक उड़न-मशीन का प्रतिरूप बनाया।

प्रश्न 14. 
सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में होने वाली उन्नत तकनीक के विकास के लिए यूरोपवासी क्यों एवं किसके ऋणी थे ?
उत्तर:
सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में क्रांतिकारी मुद्रण तकनीक का विकास हुआ। इसके लिए यूरोपवासी, चीनी व मंगोल लोगों के ऋणी थे। इसका मुख्य कारण यह था कि यूरोप के व्यापारी व राजनयिक मंगोल शासकों के राजदरबार में अपनी उपस्थिति के दौरान इस तकनीक से परिचित हुए थे।

प्रश्न 15. 
जोहानेस गुटेनबर्ग कौन था? उनका योगदान बताइए।
उत्तर:
जोहानेस गुटेनबर्ग जर्मनी के निवासी थे। इन्होंने सन् 1455 में छापेखाने का आविष्कार किया था। इन्होंने अपने छापेखाने में बाइबिल की 150 प्रतियाँ छापी। छापेखाने के आविष्कार के पश्चात् अनेक विद्वानों की पुस्तकें छपी, जिससे नये-नये विचारों का प्रसार हुआ। इससे प्राचीन यूनानी व रोमन साहित्य के प्रचार-प्रसार में भी सहायता प्राप्त हुई।

प्रश्न 16. 
पन्द्रहवीं शताब्दी में यूरोप में विचारों का प्रसार तीव्र गति से क्यों होने लगा ?
उत्तर:
पन्द्रहवीं शताब्दी में छापेखाने के आविष्कार के पश्चात् यूरोप में बड़ी संख्या में पुस्तकें छपने लगी तथा उनका क्रय-विक्रय भी होने लगा। अतः अब विद्यार्थियों को केवल शिक्षकों के व्याख्यानों के नोट्स पर ही निर्भर नहीं रहना पड़ता था बल्कि वे बाजार से भी पुस्तकें खरीद सकते थे। इससे यूरोप में विचारों के तीव्र प्रसार में सहायता प्राप्त हुई।

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प्रश्न 17. 
मानवतावादी संस्कृति का इटली के जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
मानवतावादी संस्कृति का इटली के जन-जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। इटली के निवासी भौतिक सम्पत्ति, शक्ति एवं गौरव की ओर आकृष्ट हुए तथा धर्म का मानव जीवन पर नियंत्रण कमजोर होने लगा। मानव के आदर्श जीवन पर बल दिया जाने लगा।

प्रश्न 18. 
मानवतावादी युग में व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति के बारे में बताइए।
उत्तर:
मानवतावादी युग में व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति कुछ अच्छी थी। वे व्यापार एवं दुकानें चलाने में अपने पति को सहयोग प्रदान करती थीं। जब उनके पति लम्बे समय के लिए व्यापार करने कहीं दूर क्षेत्रों में जाते थे तो वे उनका कारोबार सम्भालती थीं। किसी व्यापारी की अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाती थी तो उसकी पत्नी परिवार का . बोझ सम्भालती थी।

प्रश्न 19. 
मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते क्यों प्रसिद्ध थीं ?
उत्तर:
मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते इटली की एक प्रतिभाशाली महिला थी, जो इटली में निवास करती थी। इसका पात मंटुआ राज्य का शासक था। उसका राजदरबार अपनी बौद्धिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध था। पति की अनुपस्थिति में इस्त ने अपने इस राज्य का शासन बड़ी कुशलतापूर्वक सँभाला था।

प्रश्न 20. 
कॉन्स्टैनटाइन के अनुदान से क्या आशय है ? मानवतावादियों का इसके बारे में क्या विचार था ?
उत्तर:
कॉन्स्टैनटाइन प्रथम ईसाई रोमन सम्राट था। कॉन्स्टैनटाइन का अनुदान एक दस्तावेज था। मानवतावादियों के अनुसार, न्यायिक एवं वित्तीय शक्तियों पर पादरियों का दावा इस दस्तावेज से उत्पन्न होता है। मानवतावादियों का विचार था कि कॉन्स्टेनटाइन का यह दस्तावेज असली नहीं बल्कि परिवर्तीकाल में जालसाजी से तैयार किया गया था।

प्रश्न 21. 
प्रोटेस्टेंट सुधार आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1517 ई. में जर्मनी के एक युवा भिक्षु मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध एक अभियान प्रारम्भ किया था। इसके लिए उन्होंने यह तर्क दिया था कि मनुष्य को ईश्वर से सम्पर्क स्थापित करने के लिए किसी पादरी की आवश्यकता नहीं है। उनके इस आन्दोलन को प्रोटेस्टेंट सुधार आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 22. 
यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन के कोई दो प्रभाव बताइए।
उत्तर:
1. धर्म सुधार आन्दोलन से ईसाई धर्म दो भागों में बँट गया-
(अ) रोमन कैथोलिक
(ब) प्रोटेस्टेंट। नये विचारों वाले लोगों को प्रोटेस्टेंट कहा जाने लगा।
2. जर्मनी व स्विट्ज़रलैण्ड सहित कई यूरोपीय देशों ने रोम के पोप व कैथोलिक धर्म से अपने सम्बन्ध समाप्त कर दिए तथा अपने-अपने स्वतंत्र चर्चों की स्थापना की।

प्रश्न 23. 
कॉपरनिकसीय क्रान्ति से पूर्व ईसाइयों की पृथ्वी के बारे में क्या धारणा थी?
उत्तर:
ईसाइयों की यह धारणा थी कि मनुष्य पापी है। उनका विश्वास था पृथ्वी पापों से भरी हुई है और पापों की अधिकता के कारण वह स्थिर है जिसके चारों ओर खगोलीय ग्रह घूम रहे हैं।

प्रश्न 24. 
गैलिलियो कौन था? उसने किस सिद्धांत का प्रतिपादन किया?
उत्तर:
गैलिलियो इटली का प्रसिद्ध खगोलशास्त्री एवं वैज्ञानिक था। उसने अपने ग्रन्थ 'दि मोशन' में गतिशील विश्व के सिद्धांतों की पुष्टि की थी।

प्रश्न 25. 
क्या 14वीं शताब्दी में यूरोप में पुनर्जागरण हुआ था ? बताइए।
उत्तर:
हाँ, 14वीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक यूरोप में सांस्कृतिक व बौद्धिक क्षेत्र में जो आश्चर्यजनक प्रगति हुई उसे पुनर्जागरण नाम दिया गया। पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ है-'फिर से जागना' परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इसे मानव समाज की बौद्धिक चेतना एवं तर्कशक्ति का पुनर्जन्म कहना अधिक उचित प्रतीत होता है। 

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA)

प्रश्न 1. 
"14वीं से 17वीं शताब्दी के अन्त तक यूरोप के अनेक देशों में एक विशेष प्रकार की नगरीय संस्कृति विकसित हो रही थी।" कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के अन्त तक यूरोप के अनेक देशों में नगरों की संख्या बढ़ रही थी, एक विशेष प्रकार की 'नगरीय संस्कृति' विकसित हो रही थी। नगर के लोग अब यह सोचने लगे थे कि नगरों को राजाओं और चर्च से बहुत स्वतन्त्रता मिल चुकी है तथा वे गाँव के लोगों से अधिक 'सभ्य' हैं। फ्लोरेंस, वेनिस और रोम कला और विद्या के प्रमुख केन्द्र बन गये। अभिजात वर्ग के लोग कलाकारों और लेखकों के आश्रयदाता थे।

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इसी समय 1455 ई. में मुद्रण का आविष्कार हुआ जिससे दूर-दराज के नगरों या देशों में रह रहे लोगों को छपी पुस्तकें उपलब्ध होने लगीं। यूरोप में इतिहास की समझ विकसित होने लगी और लोग अपने 'आधुनिक विश्व' की तुलना यूनानी और रोमन 'प्राचीन दुनिया' से करने लगे थे। चर्च के पृथ्वी के केन्द्र सम्बन्धी विश्वासों को कोपरनिकस जैसे वैज्ञानिकों ने गलत सिद्ध कर दिया था। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार अपना धर्म चुनने की आजादी मिल गयी।

प्रश्न 2. 
14वीं शताब्दी से यूरोपीय इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोतों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
14वीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की जानकारी प्रचुर दस्तावेजों, मुद्रित पुस्तकों, चित्रों, मूर्तियों, भवनों तथा वस्त्रों से प्राप्त होती है, जो यूरोप और अमेरिका के अभिलेखागारों, संग्रहालयों एवं कला-चित्रशालाओं में उपलब् स्विट्ज़रलैण्ड के ब्रेसले विश्वविद्यालय के इतिहासकार जैकब बर्कहार्ट ने उस काल में हुए सांस्कृतिक परिवर्तन प्रकाश डाला है। रेनेसाँ इन सांस्कृतिक परिवर्तनों का सूचक है। 1860 ई. में जैकब बर्कहार्ट ने 'दि सिविलाइजेशन " पर दि रेनेसाँ इन इटली' नामक पुस्तक की रचना की। इसमें उन्होंने अपने पाठकों का ध्यान साहित्य, वास्तुकला आक चित्रकला की ओर आकर्षित किया और यह बताया कि चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक इटली के नग , किस प्रकार एक 'मानवतावादी' संस्कृति पनप रही थी।

प्रश्न 3. 
जैकब बर्कहार्ट कौन थे ? उन्होंने अपने ग्रन्थ में क्या विचार प्रकट किए ?
उत्तर:
जैकब बर्कहार्ट स्विट्जरलैण्ड के ब्रेसले विश्वविद्यलय के इतिहासकार थे तथा जर्मन इतिहासकार लियोपो वॉन रांके (1795-1886 ई.) के शिष्य थे। वे अपने गुरु के इस कथन "एक इतिहास राज्यों एवं राजनीति का अध्ययन करता है" से सहमत नहीं थे। उनके अनुसार इतिहास लेखन में राजनीति ही सब कुछ नहीं है। इतिहास का सम्बन्ध ? संस्कृति और राजनीति दोनों से होता है। उन्होंने अपनी कृति 'दि सिविलाइजेशन ऑफ दि रेनेसाँ इन इटली' से पाठकों का ध्यान साहित्य, वास्तुकला और चित्रकला की ओर आकर्षित किया तथा यह बताया कि चौदहवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक इटली के नगरों में मानवतावादी संस्कृति का विकास हो चुका था। उनका मत था कि यह संस्कृति इस विश्वास पर आधारित थी कि व्यक्ति अपने बारे में खुद निर्णय लेने और अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ है।

प्रश्न 4. 
रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् किन-किन परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहयोग प्रदान किया ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के पतन के बाद इटली के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र नष्ट हो गए। इस समय कोई भी एकीकृत सरकार नहीं थी। रोम का पोप अपने राज्य में अवश्य सार्वभौम था, परन्तु सम्पूर्ण यूरोप की राजनीति में वह इतना मजबूत नहीं था। एक लम्बे समय से पश्चिमी यूरोप के क्षेत्र सामंती सम्बन्धों के कारण नया रूप ले रहे थे एवं लातीनी चर्च के नेतृत्व में उनका एकीकरण हो रहा था। इसी समय पूर्वी यूरोप में भी बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासन में परिवर्तन आ रहा था तथा पश्चिम में इस्लाम एक साँझी सभ्यता का निर्माण कर रहा था। इटली कमजोर देश था, यह अनेक टुकड़ों में बँटा हुआ था। इन्हीं परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहायता पहुँचाई।

प्रश्न 5. 
इटली के नगरों का पुनरुत्थान किस प्रकार हुआ ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् इटली के नगरों का भी विनाश हो गया। लेकिन बाइजेंटाइन साम्राज्य एवं इस्लामी देशों के मध्य व्यापार में वृद्धि होने से तटवर्ती बंदरगाहों के साथ-साथ इटली के नगरों का भी विकास पुनः प्रारम्भ हो गया। बारहवीं शताब्दी में जब मंगोलों ने चीन के साथ रेशम मार्ग से व्यापार प्रारम्भ किया तो पश्चिमी देशों के व्यापार में भी उन्नति हुई। इस व्यापारिक उन्नति में इटली के नगरों का भी महत्वपूर्ण योगदान था। ये नगर स्वयं को स्वतंत्र नगर-राज्यों का एक समूह मानते थे। इन नगरों का संचालन राजकुमारों द्वारा किया जाता था। फ्लोरेंस, वेनिस, जिनेवा आदि इटली के प्रमुख नगर थे। यहाँ धर्माधिकारी वर्ग व सामंत वर्ग राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे। नगर की शासन व्यवस्था में धनी व्यापारी व महाजन सक्रिय रूप से भाग लेते थे। इस तरह इटली के नगरों का पुनरुत्थान हुआ।

प्रश्न 6. 
कोन्तारिनी कौन थे ? उन्होंने वेनिस की लोकतांत्रिक सरकार के बारे में क्या विचार प्रकट किए ?
उत्तर:
कोन्तारिनी का पूरा नाम कार्डिनल गेसपारो कोन्तारिनी था। इसका जन्म 1483 ई. में हुआ था। ये इटली के एक प्रमुख लेखक थे। इन्होंने 1534 ई. में 'दि कॉमनवेल्थ एण्ड गवर्नमेंट ऑफ वेनिस' नामक एक ग्रन्थ लिखा जिसमें उन्होंने वेनिस की लोकतांत्रिक सरकार के बारे में निम्नलिखित विचार प्रकट किए-हमारे वेनिस नगर के संयुक्त मण्डल (कॉमनवेल्थ) की संस्था के बारे में जानकारी करने पर आपको यह ज्ञात होगा कि नगर का सम्पूर्ण प्राधिकार एक संघीय परिषद के नियंत्रण में है, जो 25 वर्ष से अधिक आयु वाले सम्भ्रान्त वर्ग के पुरुषों द्वारा संचालित है।

हमारे पूर्वजों ने सामान्य जनता को संयुक्त मण्डल के शासन की बागडोर वाले नागरिक वर्ग में इसलिए सम्मिलित नहीं किया क्योंकि उन नगरों में अनेक प्रकार की गड़बड़ियाँ व जन उपद्रव होते रहते थे। इन सरकारों पर जनसामान्य का प्रभाव रहता था। कुछ लोगों का यह मानना था कि यदि संयुक्त मंडल का शासन संचालन अधिक कुशलतापूर्वक करना है तो योग्यता व सम्पन्नता को आधार बनाया जाना चाहिए। दूसरी ओर सच्चरित्र नागरिक प्रायः निर्धन हो जाते हैं। इसलिए हमारे बुद्धिमान व विवेकपूर्ण पूर्वजों ने यह विचार प्रकट किया कि धन सम्पन्नता को आधार न मानकर कुलीन वंशीय लोगों को प्राथमिकता दी जाए। निर्धन वर्ग के लोगों को छोड़कर सभी नागरिकों का प्रतिनिधित्व शासन में होना चाहिए।

प्रश्न 7. 
फ़्लोरेंस नगर पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
फ्लोरेंस नगर-फ्लोरेंस इटली का एक प्रमुख नगर था। यह नगर रोम के राजकवि फ्रांचेस्को पेट्रार्क का निवास स्थान था। 1349 ई. में यहाँ एक विश्वविद्यालय स्थापित किया गया था। इस नगर ने तेरहवीं शताब्दी के अन्त तक शिक्षा तथा व्यापार के क्षेत्र में कोई विशेष उन्नति नहीं की थी लेकिन पन्द्रहवीं शताब्दी में सब कुछ बदल गया, इस नगर की प्रसिद्धि में दो लोगों का बहुत अधिक योगदान रहा जिनमें दाँते अलिगहियरी तथा जोटो प्रमुख थे। दाँते अलिगहियरी किसी धार्मिक सम्प्रदाय से सम्बन्धित नहीं थे। लेकिन उन्होंने धार्मिक विषयों पर बहुत अधिक लिखा। जोटो एक चित्रकार थे जिन्होंने जीते-जागते रूपचित्र बनाये। इसके पश्चात् धीरे-धीरे फ्लोरेंस इटली के सबसे बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाने लगा तथा यह कलात्मक कृतियों के सृजन का केन्द्र बन गया।

प्रश्न 8. 
मानवतावाद को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
मानवतावाद-मानवतावाद का तात्पर्य उन्नत ज्ञान से लिया जाता है। यह प्राचीन यूनानी और रोमन सभ्यता और संस्कृति का पक्षपाती है। पेट्रार्क को 'मानवतावाद का पिता' कहा जाता है। यह संस्कृति इस विश्वास पर आधारित थी कि व्यक्ति अपने बारे में खुद निर्णय लेने और अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ है। माइकल ऐंजेलो, मैकियावेली, दाँत, बरबारो आदि पुनर्जागरण काल के अन्य प्रमुख मानवतावादी थे। इन्होंने मध्ययुगीन यूरोपीय व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाई और धार्मिक विषयों के स्थान पर विज्ञान, सौन्दर्यशास्त्र, इतिहास, भूगोल जैसे विषयों के अध्ययन-अध्यापन पर बल दिया। ये लोग मानव स्वतन्त्रता और राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रीय निष्ठा के पक्षपाती थे। मानवतावाद का तात्पर्य यह भी था कि व्यक्ति विशेष सत्ता और धन-दौलत को छोड़कर अन्य कई माध्यमों से अपने जीवन को एक नया रूप दे सकता है।

प्रश्न 9. 
मानवतावादी समर्थकों ने किस प्रकार मध्य युग एवं आधुनिक युग में अन्तर स्थापित किया ? बताइए।
उत्तर:
मानवतावादी समर्थक यह समझते थे कि वे अंधकार की कई शताब्दियों के पश्चात् मानव सभ्यताओं को एक नया जीवन प्रदान कर रहे हैं। उनका यह मत था कि रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् अंधकार युग प्रारम्भ हो गया था जो पाँचवीं से नौवीं शताब्दी तक चला। मानवतावादी समर्थकों की तरह ही बाद के विद्वानों ने भी बिना कोई प्रश्न किए यह मान लिया था कि यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के पश्चात् नये युग का जन्म हुआ। मध्यकाल शब्द का प्रयोग रोम साम्राज्य के पतन के पश्चात् एक हजार वर्ष की समयावधि के लिए किया गया। उनका यह तर्क था कि मध्य युग में गिरजाघरों (चर्च) ने लोगों की सोच को अत्यन्त सीमित कर दिया था। इसलिए रोम व यूनान के निवासियों का समस्त ज्ञान समाप्त हो चुका था। मानवतावादी समर्थकों ने आधुनिक शब्द का प्रयोग पन्द्रहवीं शताब्दी से आरम्भ होने वाले काल के लिए किया।

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प्रश्न 10. 
विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबों के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबों के योगदान:
चौदहवीं शताब्दी में अरब के विद्वानों ने प्लेटो व अरस्तू के ग्रन्थों का अनुवाद किया जिनको अनेक यूरोपीय विद्वानों ने पढ़ा। अरब के विद्वानों ने प्राचीन पांडुलिपियों का परिरक्षण भी किया। एक ओर यूरोप के विद्वान यूनानी ग्रन्थों के अरबी अनुवादों का अध्ययन कर रहे थे तो दूसरी ओर यूनानी विद्वान अरबी व फ़ारसी विद्वानों की रचनाओं को अन्य यूरोपीय लोगों के बीच प्रसार के लिए अनुवाद कर रहे थे। ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान, रसायन शास्त्र खगोल एवं गणित से सम्बन्धित थे। 

टालेमी ने खगोलशास्त्र पर यूनानी भाषा में 'अलमजेस्ट' नामक ग्रन्थ लिखा जिसका बाद में अरबी भाषा में अनुवाद किया गया। यह यूनानी व अरबी भाषा के निकट सम्बन्धों को दर्शाता है। यूरोपीय जगत में अरबी विद्वान 'ज्ञानी' के रूप में प्रसिद्ध थे। प्रमुख ज्ञानी मुस्लिम विद्वानों में इब्नसिना, हकीम व अल राजी आदि थे। स्पेन के अरबी दार्शनिक इब्न रुश्द ने दार्शनिक ज्ञान और धार्मिक विश्वास के मध्य दावों को दूर करने का प्रयास किया। उनकी पद्धति को बाद में ईसाई विद्वानों ने भी अपनाया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा था।

प्रश्न 11. 
इटली में मूर्तिकला के विकास को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
इटली में मूर्तिकला का विकास-चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक इटली में मूर्तिकला का विकास चरमोत्कर्ष पर था। 1416 ई. में प्रसिद्ध मूर्तिकार दोनातल्लो ने सजीव मूर्तियाँ बनाकर एक परम्परा स्थापित की। इस काल में कुछ ऐसे भी लोग थे जो कुशल चित्रकार, मूर्तिकार एवं वास्तुकार सभी गुणों से सम्पन्न थे। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण माइकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती हैं, जिन्होंने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत में लेपचित्र एवं 'दि पाइटा' नामक प्रतिमा बनायी। इस काल में कलाकारों द्वारा हूबहू मूल आकृति जैसी मूर्तियों का निर्माण किया जाता था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इटली में मूर्तिकला का पर्याप्त विकास हुआ। 


प्रश्न 12. 
14वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य इटली में वास्तुकला के क्षेत्र में हुई प्रगति को बताइए।
उत्तर:
इटली में वास्तुकला के क्षेत्र में हुई प्रगति-14वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य इटली में वास्तुकला के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई। पुरातत्वविदों द्वारा रोम के अवशेषों का उत्खनन करने से यह जानकारी प्राप्त होती है कि यहाँ वास्तुकला की एक नयी शैली प्रचलन में आयी जिसे शास्त्रीय शैली कहा गया था। यह शैली वास्तव में रोमन साम्राज्य के समय की शैली का पुनरुद्धार थी। धनी व्यापारियों तथा अभिजात वर्ग के लोगों ने उन वास्तुकारों को अपने भवन बनवाने के लिए नियुक्त किया जो शास्त्रीय वास्तुकला से परिचित थे। चित्रकारों तथा शिल्पकारों ने भवनों को लेखाचित्रों, मूर्तियों एवं उभरे चित्रों से भी सुसज्जित किया। पन्द्रहवीं शताब्दी में इटली का रोम नगर भव्य इमारतों से सुसज्जित हो उठा था। माइकल एंजेलो बुआनारोत्ती इस काल का एक प्रमुख चित्रकार, मूर्तिकार व वास्तुकार था। उसने सेंट पीटर गिरजाघर के गुम्बद का डिजाइन तैयार किया। फिलिप्पो ब्रूनेलेशी नामक वास्तुकार ने फ्लोरेंस के भव्य गुम्बद का प्रारूप तैयार किया था।

प्रश्न 13. 
मानवतावादी संस्कृति के प्रसार में मुद्रित पुस्तकों के योगदान को बताइए।
उत्तर:
मानवतावादी संस्कृति के प्रसार में मुद्रित पुस्तकों का योगदान-मानवतावादी संस्कृति के प्रसार में मुद्रित पुस्तकों ने बहुत अधिक महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1455 ई. में जर्मनी के जोहानेस गुटेनबर्ग ने सर्वप्रथम छापेखाने का आविष्कार किया। इस छापेखाने में बाइबिल की 150 प्रतियाँ छापी गयीं। छापेखाने के आविष्कार के पश्चात् मुद्रित पुस्तकों का क्रय-विक्रय प्रारम्भ होने से ये पुस्तकें लोगों को उपलब्ध होने लगीं। मुद्रित पुस्तकों के कारण लोगों में नए विचारों व मतों का तीव्र गति से प्रसार होने लगा। लोगों को नई-नई जानकारियाँ प्राप्त होने लगीं। छपी हुई पुस्तकों के उपलब्ध होने से पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त से इटली की मानवतावादी संस्कृति का यूरोपीय देशों में तीव्र गति से प्रसार हुआ।

प्रश्न 14. 
मानवतावादी संस्कृति के अन्तर्गत मनुष्य की एक नयी संकल्पना को बताइए।
उत्तर:
मानवतावादी संस्कृति के अन्तर्गत मनुष्य की एक नयी संकल्पना-मानवतावादी संस्कृति ने मनुष्य की एक नयी संकल्पना प्रस्तुत की। मानवतावादियों ने मानव सभ्यता को एक नया जीवन प्रदान किया। इस संस्कृति के परिणामस्वरूप मानव जीवन पर स्थापित धर्म के नियंत्रण में कमी आयी। धार्मिकं नियन्त्रण से मुक्त होकर इटली के निवासी अपने नगरीय जीवन को सुखी व समृद्ध बनाना चाहते थे। वे भौतिक सम्पदा, शक्ति व गौरव से बहुत अधिक आकृष्ट हुए। वेनिस (इटली) के मानवतावादी विचारक फ्रांचेस्को बरबारो ने अपने एक ग्रन्थ में लिखा कि सम्पत्ति अधिग्रहण करना एक विशेष गुण है।

वहीं लोरेन्जो वल्ला ने माना कि इतिहास का अध्ययन मानव को पूर्णतया जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा प्रदान करता है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'ऑनप्लेज़र' में भोग विलास पर लगाई गई ईसाई धर्म की रोक की बहुत अधिक आलोचना की। मानवतावादी संस्कृति के अन्तर्गत लोग शिष्टाचार का भी पूर्ण ध्यान रखते थे। उनका मानना था कि व्यक्ति को विनम्रता से बोलना चाहिए, ठीक प्रकार से कपड़े पहनने चाहिए एवं सभ्य व्यवहार करना चाहिए। इस प्रकार मानवतावादी संस्कृति ने मनुष्य की एक नई संकल्पना प्रस्तुत की जो आदर्शवाद पर आधारित थी।

प्रश्न 15. 
पुनर्जागरण काल में यूरोप के अभिजात्य व संपन्न वर्ग की महिलाओं की सामाजिक स्थिति के बारे में संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में यूरोप के अभिजात्य व संपन्न वर्ग की महिलाओं की सामाजिक स्थिति-पुनर्जागरण काल में यूरोप के अभिजात्य व संपन्न वर्ग की महिलाओं की सामाजिक स्थिति ठीक नहीं थी। सार्वजनिक जीवन में अभिजात्य व संपन्न वर्ग के परिवार के पुरुषों का प्रभुत्व था और घर परिवार के मामले में भी पुरुष ही निर्णय लेते थे। महिलाओं को कोई अधिकार नहीं था। उस समय लड़कियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। 

विवाह में प्राप्त महिलाओं के दहेज को पति अपने पारिवारिक कारोबारों में लगा देते थे फिर भी महिलाओं को यह अधिकार नहीं था कि वे अपने पति बदलती हुई सांस्कृतिक परम्पराएँ (243) को कारोबार चलाने के बारे में कोई राय दें। अगर कोई महिला अपने साथ पर्याप्त दहेज लेकर नहीं आती थी तो उसे ईसाई मठों में भिक्षुणी (नन) का जीवन बिताने के लिए भेज दिया जाता था। सामान्यतया सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी बहुत सीमित थी और उन्हें घर-परिवार चलाने वाले के रूप में देखा जाता था। समाज में नागरिकता के नये विचारों से महिलाओं को दूर रखा जाता था।

प्रश्न 16. 
पुनर्जागरण काल में यूरोप में व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में यूरोप में व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति-पुनर्जागरण काल में यूरोप में व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति ठीक-ठाक थी। दुकानदारों की स्त्रियाँ दुकानों को चलाने में प्रायः उनका सहयोग करती थीं। व्यापारी एवं साहूकार परिवारों की पत्नियाँ, परिवार के कारोबार को उस स्थिति में सँभालती थीं जब उनके पति लम्बे समय के लिए दूर-दराज के स्थानों को व्यापार के लिए चले जाते थे। व्यापारी परिवारों में यदि पति की मृत्यु अल्प आयु में हो जाती थी तो उनकी पत्नी सार्वजनिक जीवन में भी बड़ी भूमिका निभाती थी।

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 17. 
यूरोपीय महिलाओं को मानवतावाद ने किस प्रकार प्रभावित किया? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
यूरोपीय महिलाओं पर मानवतावाद का प्रभाव-यूरोपीय महिलाओं को मानवतावाद ने बहुत अधिक प्रभावित किया। चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य की कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से बहुत अधिक रचनात्मक थीं तथा मानवतावादी शिक्षा की भूमिका के बारे में संवेदनशील थीं। उदाहरण के रूप में; वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले एक सुशिक्षित मानवतावादी महिला थीं। उन्होंने लिखा कि "यद्यपि महिलाओं को शिक्षा न तो पुरस्कार देती है तथा न ही किसी सम्मान का आश्वासन, फिर भी प्रत्येक महिला को समस्त प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखकर उसे ग्रहण करना चाहिए।" इस काल की एक अन्य प्रतिभाशाली महिला मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते ने इटली के मंटुआ राज्य पर अपने पति की अनुपस्थिति में शासन किया। इस काल में महिलाएँ मानवतावाद से प्रभावित होकर आर्थिक स्वायत्तता, सम्पत्ति व शिक्षा प्राप्त करना चाहती थीं।

प्रश्न 18. 
यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन प्रारम्भ होने के पीछे कौन-कौन से कारण थे ? बताइए।
उत्तर:
यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन प्रारम्भ होने के कारण-यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन प्रारम्भ होने के पीछे निम्नलिखित कारण थे

  1. मानवतावादी विचारकों ने ईसाइयों को अपने पुराने धर्मग्रन्थों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन करने का आह्वान किया।
  2. उन्होंने यूरोपीय समाज में व्याप्त कुरीतियों, अनावश्यक कर्मकांडों का त्याग करने पर बल दिया। 
  3. मानव के बारे उनका दृष्टिकोण बिल्कुल नवीन था क्योंकि वे उसे एक बिवेकपूर्ण कर्ता समझते थे।
  4. मानवतावादियों का विश्वास था कि ईश्वर ने मनुष्य को स्वतंत्र बनाया है तथा उसे स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत करने का भी आदेश दिया है।
  5. कई ईसाई मानवतावादी विचारक जैसे टॉमस मोर (इंग्लैण्ड) व इरेस्मस (हॉलैण्ड) का मानना था कि गिरजाघर (चर्च) एक लालची व जनसामान्य से लूट-खसोट करने वाली संस्था बनकर रह गई है।
  6. ईसाई पादरी पाप-स्वीकारोक्ति नामक दस्तावेज का सहारा लेकर जनसामान्य से धन ऐंठ रहे थे जिसका मानवतावादी विचारकों ने विरोध किया।
  7. यूरोप के लगभग प्रत्येक भाग में कृषकों ने गिरजाघरों (चर्ची) द्वारा लगाए गए करों का पुरजोर विरोध किया। 
  8. शासकीय कार्यों में चर्चों के बढ़ते हस्तक्षेप से यूरोपीय शासक भी नाराज थे। 

प्रश्न 19. 
मार्टिन लूथर कौन था? उनके द्वारा कैथोलिक चर्चों के विरुद्ध छेड़े गए अभियान के बारे में बताइए।
उत्तर:
मार्टिन लूथर एक जर्मन युवा भिक्षु थे। इनका जन्म 1483 ई. में हुआ था। इन्होंने 1517 ई. में 'नाइंटी फाइव थिसेज़' नामक ग्रन्थ की रचना की। 1522 ई. में इन्होंने बाइबिल का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। मार्टिन लूथर ने ईसाई पादरियों द्वारा ‘पाप स्वीकारोक्ति' नामक दस्तावेज के माध्यम से लोगों से धन ऐंठने की आलोचना की तथा कैथोलिक चर्च के विरुद्ध आंदोलन प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि मनुष्य को ईश्वर से सम्पर्क साधने के लिए पादरी की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अपने अनुयायियों को यह आदेश दिया कि वे ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखें क्योंकि केवल उनका विश्वास ही उन्हें एक सम्यक जीवन की ओर ले जा सकता है तथा उन्हें स्वर्ग में प्रवेश दिला सकता है। उन्होंने अपने आन्दोलन को प्रोटेस्टेंट सुधारवाद नाम दिया।

प्रश्न 20. 
कोपरनिकसीय क्रांति क्या थी ? संक्षेप में बताइए। 
उत्तर:
कोपरनिकसीय क्रांति;
चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के दौरान ईसाइयों का यह विश्वास था कि मनुष्य एक पापी प्राणी है। पृथ्वी पापों से भरी हुई है तथा पापों की अधिकता के कारण वह स्थिर है। पृथ्वी ब्रह्माण्ड के मध्य में स्थित है जिसके चारों ओर खगोलीय ग्रह घूम रहे हैं। पोलैण्ड के वैज्ञानिक निकोलस कोपरनिकस ने घोषणा की कि पृथ्वी सहित समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं तथा सूर्य स्थिर अवस्था में है। कोपरनिकस एक निष्ठावान ईसाई एवं वैज्ञानिक था। उनकी पुस्तक 'दि रिवल्यूशनिबस' (परिभ्रमण) जो उनकी मृत्यु के पश्चात् प्रकाशित हुई। इस पुस्तक के प्रकाशित होने के पश्चात् सूर्य केन्द्रित सौर मण्डलीय सिद्धान्त लोकप्रिय हुआ। इसे ही कोपरनिकसीय क्रांति कहा जाता है।

प्रश्न 21. 
14वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
यूरोप में विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति:
14वीं से 17वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में ईसाइयों का यह विश्वास था कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड के मध्य में स्थित है जिसके चारों ओर खगोलीय ग्रह घूम रहे हैं। ईसाइयों की विचारधारा के विपरीत कोपरनिकस नामक वैज्ञानिक ने यह घोषणा की कि पृथ्वी सहित समस्त ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। जर्मन खगोलशास्त्री जोहानेस कैप्लर ने अपने ग्रन्थ कॉस्मोग्राफिकल मिस्ट्री (खगोलीय रहस्य) में कोपरनिकस के सूर्यकेन्द्रित सौरमंडलीय सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि समस्त ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार रूप में नहीं बल्कि दीर्घ वृत्ताकार मार्ग पर परिक्रमा करते हैं। वहीं इटली के वैज्ञानिक गैलिलियो गैलिली ने अपने ग्रन्थ 'दि मोशन' में गतिशील विश्व के सिद्धान्तों की पुष्टि की। इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक आइज़क न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इन वैज्ञानिकों ने बताया कि ज्ञान विश्वास से हटकर अवलोकन एवं प्रयोगों पर आधारित है। जैसे-जैसे इन वैज्ञानिकों ने ज्ञान की खोज का रास्ता दिखाया वैसे-वैसे भौतिकी, रसायन शास्त्र, जीवविज्ञान के क्षेत्र में अनेक प्रयोग व अन्वेषण कार्य बहुत तीव्र गति से सम्पन्न हुए।

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प्रश्न 22. 
यूरोप में पुनर्जागरण के उद्भव के क्या कारण थे ? बताइए।
उत्तर:
यूरोप में पुनर्जागरण के उद्भव के प्रमुख कारण-यूरोप में पुनर्जागरण के उद्भव के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे -

  1. तुर्कों द्वारा 1453 ई. में रोम की राजधानी कुस्तुनतुनिया पर अधिकार स्थापित कर लिया गया था। इस कारण यूनानी विद्वान और कलाकार इटली चले गए। इससे यूनानी साहित्य, कला, दर्शन का प्रचार-प्रसार बढ़ा और पुनर्जागरण की शुरुआत हुई।
  2. धर्मयुद्ध यूरोपीय लोगों को एशिया के सम्पर्क में लाए, साथ ही मुस्लिम संस्कृति के भी सम्पर्क में लाए। इससे यूरोपीय लोगों का सोचने का दृष्टिकोण विस्तृत हो गया। 
  3. सामन्तवाद के पतन से कलाकारों और विचारकों को सामन्तों से मुक्ति मिल गई तथा वे स्वतन्त्र रूप से चिन्तन करने लगे। दूसरी तरफ सामंतवाद के पतन से नए स्वतन्त्र नगर राज्यों का उदय हुआ। अतः नगर कला और साहित्य के केन्द्र बन गए।
  4. नाविकों व विद्वानों में नयी-नयी खोजों की इतनी जागरूकता थी कि इससे उत्साहित होकर वास्कोडिगामा ने भारत का मार्ग तथा कोलम्बस ने अमेरिका की खोज करके यूरोपीय संस्कृति का अमेरिकी और भारतीय संस्कृति के साथ मेल करा दिया।
  5. कुछ महान वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्माण्ड की खोज तथा कलाकारों के चित्रों से नये वैज्ञानिक आविष्कारों का होना आदि के कारण भी पुनर्जागरण का उद्भव हुआ।

प्रश्न 23. 
पुनर्जागरण के कारण यूरोपियन दृष्टिकोण में क्या परिवर्तन आया ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
पुनर्जागरण के कारण यूरोपियन दृष्टिकोण में आए परिवर्तन-पुनर्जागरण के कारण यूरोपियन दृष्टिकोण में निम्नलिखित परिवर्तन आया - 

  1. पुनर्जागरण से यूरोपीय लोगों में मानवतावाद का प्रचार हुआ। इसके फलस्वरूप विद्वानों, दार्शनिकों, कलाकारों और साहित्यकारों की रचनाओं का मुख्य विषय 'मानव' ही बन गया।
  2. लोगों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ और स्थान-स्थान पर विद्यालय और विश्वविद्यालय खुल गए। आम लोगों में विद्या-अध्ययन की रुचि बढ़ी।
  3. लोगों ने परम्परावादी और रूढ़िवादी दृष्टिकोण को त्यागकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपना लिया। प्रयोग, अन्वेषण एवं यथार्थवाद मानव जीवन के मापदण्ड बन गए।
  4. पुनर्जागरण के फलस्वरूप यूरोप में स्वतन्त्र नगर-राज्यों का उदय होने लगा। ऐसे राज्य किसी विदेशी राजनीतिक और धार्मिक हस्तक्षेप से मुक्त तथा पूर्णतः स्वतंत्र इकाई के रूप में उभरने लगे। वेनिस, फ़्लोरेंस तथा जिनेवा इसके उदाहरण हैं। इनमें राजकुमार शासन करते थे तथा ये गणराज्य थे।
  5. इस काल में धर्म सुधार आन्दोलन के फलस्वरूप ईसाई जनता दो प्रमुख शाखाओं प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक में विभाजित हो गई।  

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 
मानवतावाद क्या है ? यूरोप में मानवतावाद के उदय एवं विकास में इटली के विश्वविद्यालयों की भूमिका को बताइए।
उत्तर:
मानवतावाद से आशय:
लातिनी शब्द ह्यूमेनिटास जिससे ह्यूमेनिटिज़ शब्द बना है, से ह्यूमेनिज्म शब्द अर्थात् मानवतावाद की उत्पत्ति हुई है। यह वह जीवन दर्शन है जिसमें मनुष्य और उसके लौकिक जीवन को विशेष महत्व दिया जाता है। पन्द्रहवीं शताब्दी में मानवतावाद शब्द उन शिक्षकों के लिए प्रयुक्त होता था, जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, इतिहास, नीतिशास्त्र व कविता आदि विषय पढ़ाते थे। यूरोप में मानवतावाद के उदय एवं विकास में इटली के विश्वविद्यालयों का योगदान-यूरोप में मानवतावाद के उदय एवं विकास में इटली के विश्वविद्यालयों के योगदान का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है -

(i) इटली के नगरों में विश्वविद्यालयों की स्थापना:
यूरोप में विश्वविद्यालय सर्वप्रथम इटली के नगरों में स्थापित हुए। ग्यारहवीं शताब्दी में पादुआ व बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केन्द्र बने हुए थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि इन नगरों के मुख्य क्रियाकलाप व्यापार व वाणिज्य से सम्बन्ध रखते थे। व्यापारिक गतिविधियों के संचालन में वकीलों और नोटरी की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। ये लोग व्यापार विनियमों का लेखन व इनकी व्याख्या करने के साथ-साथ समझौते भी तैयार करते थे। इनके अभाव में व्यापार करना सम्भव नहीं था, इसलिए विश्वविद्यालयों में कानून का अध्ययन एक उपयोगी एवं लोकप्रिय विषय के रूप में स्थापित हुआ।

(ii) कानून के अध्ययन में परिवर्तन:
इटली के नगरों में व्यापार एवं वाणिज्य का विस्तार होने से कानून के अध्ययन में भी परिवर्तन आया। कानून का अध्ययन एक लोकप्रिय विषय बन गया था। अब कानून के अध्ययन में यह परिवर्तन आया कि उसका अध्ययन रोमन संस्कृति के सन्दर्भ में किया जाने लगा। फ्रांचेस्को पेट्रार्क को इस परिवर्तन का जनक माना जाता था। पेट्रार्क के अनुसार पुराकाल एक विशिष्ट सभ्यता थी जिसे प्राचीन यूनानियों व रोमनों के वास्तविक शब्दों के माध्यम से ही ठीक प्रकार से समझा जा सकता था। उन्होंने प्राचीन यूनानी व रोमन साहित्यकारों की रचनाओं का अध्ययन करने पर बल दिया।

(iii) नवीन शिक्षा कार्यक्रम:
विश्वविद्यालयों में नये-नये शिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा था। विश्वविद्यालयों के नवीन शिक्षा कार्यक्रम में यह बात सम्मिलित थी कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। यह असीमित है तथा अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। यह सब हम केवल धार्मिक शिक्षण से नहीं सीख सकते। इस नयी संस्कृति को उन्नीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने मानवतावाद का नाम दिया। कई शताब्दियों पहले रोम के वकील एवं निबंधकार सिसरो ने इसे संस्कृति के अर्थ में लिया था। इस प्रकार मानवतावाद को मानवतावादी संस्कृति कहा गया।

(iv) फ्लोरेंस विश्वविद्यालय में मानवतावाद:
इटली के फ्लोरेंस नगर में नवस्थापित विश्वविद्यालयों में भी मानवतावाद सम्बन्धी विचारों का प्रसार हुआ। फ़्लोरेंस की प्रसिद्धि में दाँते अलिगहियरी व जोटो का प्रमुख योगदान रहा। विश्वविद्यालय के कारण यह नगर बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाने लगा। निष्कर्ष-निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यूरोप में मानवतावाद के उदय एवं विकास में इटली के विश्वविद्यालयों ने बहुत अधिक योगदान दिया जिसके फलस्वरूप इस विचारधारा का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ।

प्रश्न 2. 
यथार्थवाद क्या है ? चित्रकारों ने इतालवी कला को यथार्थवादी रूप कैसे प्रदान किया ?
उत्तर:
यथार्थवाद से आशय:
यूरोप में बारहवीं व तेरहवीं शताब्दी के दौरान लोगों के मन-मस्तिष्क को आकार देने का साधन केवल औपचारिक शिक्षा ही नहीं थी बल्कि चित्रकला, वास्तुकला एवं साहित्य ने भी मानवतावादी विचारों को फैलाने में प्रभावी भूमिका निभाई। जीवन के अनेक क्षेत्रों; जैसे-शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी और सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इटली की कला को एक नया रूप दिया, जिसे 'यथार्थवाद' कहकर पुकारा गया। चित्रकारों द्वारा इतालवी कला को यथार्थवादी रूप प्रदान करना-इटली के चित्रकारों ने इतालवी कला को यथार्थवादी रूप प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया। कलाकारों की मूल आकृति जैसी सटीक मूर्तियाँ बनाने की चाह को वैज्ञानिकों के कार्यों ने और अधिक प्रेरित किया। 

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इटली में चित्रकारों के लिए नमूने के तौर पर प्राचीन चित्र उपलब्ध नहीं होने के बावजूद उन्होंने मूर्तिकारों की तरह यथार्थ चित्र बनाने का प्रयास किया। चित्रकार रेखागणित के ज्ञान से अपने परिदृश्य को ठीक प्रकार से समझकर चित्र बना सकते थे। प्रकाश के बदलते गुणों से वे अपने चित्रों को त्रिआयामी रूप दे सकते थे।

चित्रकारों ने लेपचित्र (पेंटिंग) बनाए। लेपचित्र के लिए तेल को एक माध्यम के रूप में प्रयोग ने चित्रों को पूर्व की तुलना में अधिक रंगीन एवं चटख बनाया। उनके अनेक चित्रों में दिखाए गए वस्त्रों के डिजाइन एवं रंग संयोजन में चीनी और फारसी चित्रकला का प्रभाव दिखाई देता है जो उन्हें मंगोलों से प्राप्त हुई थी। इस प्रकार शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी एवं सौन्दर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप प्रदान किया जिसे बाद में यथार्थवाद नाम दिया गया। यथार्थवाद की यह परम्परा उन्नीसवीं शताब्दी तक चलती रही।

प्रश्न 3. 
शास्त्रीय शैली क्या थी ? इटली की वास्तुकला की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शास्त्रीय शैली से आशय-कई पुरातत्वविदों द्वारा रोम के अवशेषों का उत्खनन किया गया। इसने वास्तुकला की एक नयी शैली को प्रोत्साहित किया। जो वास्तव में रोमन साम्राज्य के काल की शैली का पुनरुद्धार थी। इसे 'शास्त्रीय शैली' के नाम से जाना गया।

इटली की वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ-इटली की वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं -

  1. इटली के रोम नगर में शास्त्रीय शैली से भवनों का निर्माण होता था।
  2. धनिक व्यापारी वर्ग एवं अभिजात वर्ग के लोगों ने उन वास्तुविदों को अपने भवन निर्माण हेतु नियुक्त किया जो शास्त्रीय वास्तुकला से परिचित थे। 
  3. चित्रकारों, मूर्तिकारों व शिल्पकारों ने भवनों को चित्रों, मूर्तियों, लेपचित्रों, उभरे चित्रों अथवा खुदे हुए चित्रों से भी सुसज्जित कर दिया।
  4. माइकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती ने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत पर लेपचित्र 'दि पाइटा' नामक प्रतिमा तथा सेंट पीटर चर्च के गुम्बद का डिजाइन बनाया।
  5. फिलिप्पो ब्रूनेलेशी नामक वास्तुकार ने फ्लोरेंस के भव्य गुम्बद का परिरूप प्रस्तुत किया था।
  6. इस काल में एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन आया, अब कलाकार की पहचान उसके नाम से होने लगी न कि पूर्व की तरह उसके संघ या श्रेणी (गिल्ड) के नाम से।

प्रश्न 4. 
रेनेसाँ क्या है ? पुनर्जागरण काल में यूरोप में महिलाओं की स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
रेनेसाँ से आशय:
रेनेसाँ फ्रैंच भाषा का शब्द है। इसका हिन्दी रूपान्तरण पुनर्जागरण है। वैसे रेनेसाँ का शाब्दिक अर्थ पुनर्जन्म या फिर से जीवित हो जाना है। व्यापक अर्थ में पुनर्जागरण का आशय उन समस्त परिवर्तनों से है जो मध्य युग से आधुनिक युग तक हुए थे। वास्तव में यह बहुमुखी विकास का काल था। जिसके कारण मनुष्य की चिंतन शक्ति, प्रयोग बुद्धि तथा दृष्टिकोण में क्रांतिकारी परिवर्तन आ गए।

पुनर्जागरण ने मध्ययुगीन आडम्बरों, अंधविश्वासों एवं प्रथाओं को समाप्त कर दिया, उनके स्थान पर व्यक्तिवाद, भौतिकवाद, स्वतंत्रता की भावना, उन्नत आर्थिक व्यवस्था एवं राष्ट्रवाद को स्थापित किया। व्यापक अर्थ में पुनर्जागरण शब्द का प्रयोग उन समस्त बौद्धिक परिवर्तनों के लिए किया जाता है जो मध्य युग के अन्त में एवं आधुनिक युग के प्रारम्भ में दृष्टिगोचर हो रहे थे। सीमित अर्थ में इसका अभिप्राय उन विशेष सांस्कृतिक परिवर्तनों से है जो 14वीं से 17वीं शताब्दी के अन्त तक यूरोप में हुए थे। पुनर्जागरण काल में यूरोप में महिलाओं की स्थिति-पुनर्जागरणकाल में यूरोप में महिलाओं की स्थिति का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है -

(i) अभिजात व सम्पन्न परिवारों में महिलाओं की स्थिति:
पुनर्जागरण काल में यूरोप में सभी महिलाओं की स्थिति एक समान नहीं थी। समाज में नागरिकता के नए विचारों से महिलाओं को दूर रखा जाता था। सार्वजनिक जीवन में अभिजात एवं सम्पन्न परिवारों के पुरुषों का ही प्रभुत्व था। घर-परिवार के मामलों में भी पुरुष ही समस्त निर्णय लेते थे। उस काल में केवल लड़कों को ही शिक्षा दी जाती थी ताकि वे अपने पारिवारिक व्यवसाय की जिम्मेदारियों का उचित निर्वहन कर सकें।

एक ओर पुरुष महिलाओं से विवाह में प्राप्त दहेज को अपने रोजगार में लगाते थे वहीं दूसरीओर महिलाओं को उनके व्यवसाय में राय देने का भी अधिकार नहीं था। प्रायः व्यावसायिक मैत्री को मजबूत करने के लिए दो परिवारों में परस्पर विवाह सम्पन्न होते थे। यदि विवाह में कम दहेज मिलता था तो वधू को ईसाई मठों में भिक्षुणी का जीवन बिताने हेतु भेज दिया जाता था। इस प्रकार सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी बहुत ही सीमित थी। इनकी भूमिका घर-परिवार के संचालन तक ही सीमित थी।

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(ii) व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति:
व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति कुछ अच्छी थी। दुकानदारों की पत्नियाँ दुकानों के संचालन में प्रायः अपने पति को सहयोग प्रदान करती थीं। व्यापारी एवं साहूकार परिवारों की महिलाएँ परिवार के व्यवसाय को उस समय सम्भालती थीं, जब उनके पति लम्बे समय के लिए व्यापार करने दूरस्थ प्रदेशों में चले जाते थे। अभिजात परिवारों के विपरीत इन परिवारों में यदि पति की कम आयु में मृत्यु हो जाती थी तो उसकी पत्नी सार्वजनिक जीवन में भी बड़ी भूमिका निभाती थी। इस प्रकार उनकी सार्वजनिक स्थिति अभिजात परिवारों की महिलाओं से कुछ अच्छी थी।

(iii) बौद्धिक रूप से रचनात्मक महिलाओं की स्थिति:
पुनर्जागरण काल में कुछ महिलाएँ बौद्धिक क्षमता की बहुत उच्च स्थिति रखती थीं तथा रचनात्मक व मानवतावादी शिक्षा की भूमिका के बारे में संवेदनशील थीं। वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले ने लिखा कि यद्यपि महिला को शिक्षा न तो पुरस्कार देती है और न ही किसी सम्मान का आश्वासन, फिर भी प्रत्येक महिला को समस्त प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए।

फेदेले उस काल की उन गिनी-चुनी महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने तत्कालीन इस विचारधारा को चुनौती दी थी कि एक मानवतावादी विद्वान के गुण एक महिला में नहीं हो सकते। वे यूनानी व लातिनी भाषा की एक महान विद्वान थीं। इन्हें पादुआ विश्वविद्यालय में व्याख्यान देने के लिए भी आमंत्रित किया गया था। इसी प्रकार मंटुआ राज्य की एक महिला, मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते ने अपने पति की अनुपस्थिति में मंटुआ राज्य पर शासन किया। उसका दरबार अपनी बौद्धिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध था।

निष्कर्ष:
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यूरोपीय समाज में महिलाओं को कोई विशेष सम्मान प्राप्त नहीं था। फिर भी उनकी रचनाओं से ज्ञात होता है कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अपनी पहचान बनाने के लिए अधिक आर्थिक स्वायत्तता, सम्पत्ति और शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए थी। 

प्रश्न 5. 
यूरोप में ईसाई धर्म के अन्तर्गत वाद-विवाद कैसे उत्पन्न हुआ? विस्तारपूर्वक समझाइए।
अथवा 
धर्म सुधार आन्दोलन क्या थे? यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन के प्रारम्भ होने के कारणों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्म सुधार आन्दोलन से आशय-यूरोप में मध्यकाल में धार्मिक क्षेत्र में अनेक बुराइयाँ; जैसे-पाखण्ड, आडम्बर व अन्धविश्वास फैले हुए थे। समय के साथ-साथ ये बुराइयाँ बढ़ती गयीं। इस कारण जनता में चर्च के प्रति असन्तोष उत्पन्न हो गया। पुनर्जागरण से प्रभावित लोगों ने सोलहवीं शताब्दी में पोप के धार्मिक प्रभुत्व को समाप्त करने, चर्च की कुरीतियों को दूर करने, धार्मिक पाखण्डों व अन्धविश्वासों को समाप्त करने के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया। जिसे धर्म सुधार आन्दोलन के नाम से जाना गया। यूरोप में ईसाई धर्म के अन्तर्गत वाद-विवाद उत्पन्न होने के कारण (यूरोप में धर्मसुधार आन्दोलन के प्रारम्भ होने के कारण)

(i) मानवतावाद का प्रभाव:
पन्द्रहवीं व सोलहवीं शताब्दी में उत्तरी यूरोप के विश्वविद्यालयों के कई विद्वान मानवतावादी विचारों के प्रति आकृष्ट हुए। उत्तरी यूरोपीय देशों में मानवतावाद ने कैथोलिक चर्च के अनेक अनुयायियों को अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने ईसाइयों को अपने प्राचीन धर्म-ग्रन्थों में बताए गए तरीकों से धर्म के पालन पर तथा कैथोलिक चर्च में व्याप्त कुरीतियों एवं कर्मकाण्डों की आलोचना कर उन्हें त्यागने पर बल दिया।

(ii) पुनर्जागरण का प्रभाव;
पुनर्जागरण ने यूरोप के अन्धकार युग को समाप्त करके नए आदर्शों को जन्म दिया। उसने तार्किक प्रगति को बढ़ावा दिया तथा यह स्पष्ट किया कि कोई बात इसलिए सही नहीं है कि वह चर्च का आदेश है बल्कि इसलिए सही है कि वह तर्क और विचार की कसौटी पर खरी उतरती है। इस प्रवृत्ति से लोगों ने अपने प्राचीन धार्मिक विश्वासों में परिवर्तन करने का निश्चय किया।

(iii) मानव के सम्बन्ध में नवीन दृष्टिकोण का विकास:
मानव के सम्बन्ध में मानवतावादियों ने एक नवीन दृष्टिकोण का विकास किया। वे मानव को एक मुक्त तथा विवेकपूर्ण प्राणी मानते थे। वे एक दूरवर्ती ईश्वर में विश्वास करते थे। उनकी मान्यता थी कि मनुष्य को ईश्वर ने बनाया है तथा उसे अपना जीवन मुक्त रूप से संचालित करने की भी पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की है। वे यह भी मानते थे कि मनुष्य को अपनी प्रसन्नता इसी वर्तमान विश्व में तलाश करनी चाहिए।

(iv) पोप और राजाओं के मध्य तनाव:
पन्द्रहवीं व सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रीय-राज्यों की स्थापना हुई तथा उनमें निरंकुश राजतन्त्र की स्थापना हो चुकी थी। दूसरी ओर रोमन चर्च का प्रधान पोप नहीं चाहता था कि राष्ट्रीय राज्यों में राजा की सर्वोच्च सत्ता हो। पोप अपने को सर्वशक्तिमान मानकर इन सभी राज्यों पर नियंत्रण किए हुए था। पोप के राज्यों के आन्तरिक व वैदेशिक मामलों में बढ़ते हस्तक्षेप से यूरोप के राजा नाराज थे।

(v) चर्च द्वारा जनता का शोषण:
चर्च जनता से अनेक प्रकार के कर वसूल करता था। टॉमस मोर (इंग्लैण्ड) व इरेस्मस (हॉलैण्ड) आदि मानवतावादियों का मानना था कि चर्च एक लालची व भ्रष्ट संस्था बन गयी है। यह साधारण जनता से बात-बात पर लूट-खसोट करता रहता है। यूरोपीय किसानों ने भी चर्च द्वारा लगाए गए अनेक प्रकार के करों का तीव्र विरोध किया।

(vi) चर्च की अपार सम्पत्ति:
मध्यकाल में चर्च एक धनी संस्था बन चुका था। उसके पास अपार सम्पत्ति थी। चर्च राज्य को कोई 'कर' नहीं देता था। राज्य को राजकीय व्ययों की पूर्ति हेतु धन की आवश्यकता पड़ती थी तो चर्च राज्य को कोई सहयोग नहीं देता था। फलस्वरूप उन्होंने धर्म सुधार आन्दोलन को समर्थन दिया।

(vii) पोप और पादरियों का नैतिक पतन:
मध्यकाल में पोप और पादरियों का नैतिक पतन हो चुका था, जिससे चर्च में अनेक बुराइयों व कुरीतियों का प्रचलन हो गया। पोप जिसे पृथ्वी पर ईश्वर का दूत समझा जाता था, ने उच्च आदर्शों को भुलाकर विलासिता व अनैतिक जीवन बिताना प्रारम्भ कर दिया। 

(viii) पाप स्वीकारोक्ति दस्तावेज का विक्रय:
पोप पादरियों ने सामान्य जनता से धन ऐंठने के लिए पाप स्वीकारोक्ति नामक दस्तावेज जो पाप से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता था, को भी बेचना प्रारम्भ कर दिया। इसके अतिरिक्त पादरियों ने धन लेकर स्वर्ग का टिकट देना भी प्रारम्भ कर दिया था। अतः चर्च लूट-खसोट व धनोपार्जन का साधन बन गया। बुद्धिजीवी एवं मानवतावादी लोगों ने इसका घोर विरोध किया। 

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(ix) प्रोटेस्टेंट सुधारवाद का प्रभाव:
1517 में एक जर्मन युवा भिक्षु मार्टिन लूथर ने चर्च की इन समस्त बुराइयों को देखते हुए कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने दलील पेश की कि मनुष्य को ईश्वर से संपर्क साधने के लिये पादरी की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि वे ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखें। यह विश्वास ही उन्हें सभ्य जीवन की ओर ले जा सकता है और उन्हें स्वर्ग में प्रवेश दिला सकता है। उनके इस प्रोटेस्टेंट सुधारवाद आंदोलन के कारण जर्मनी और स्विट्ज़रलैण्ड के चर्च ने पोप तथा कैथोलिक चर्च से अपने संबंध समाप्त कर लिए।

प्रश्न 6. 
चौदहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के दौरान यूरोप में विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
अथवा 
पुनर्जागरण काल में विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यूरोप में पुनर्जागरण काल में विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति-पुनर्जागरण काल में साहित्य, कला, विज्ञान, वास्तुकला, भौगोलिक खोजों आदि सहित विभिन्न क्षेत्रों में बहुत प्रगति हुई। 

इसे निम्न प्रकार से वर्णित किया जा सकता है -
(i) कला का विकास:
चौदहवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक जिस प्रकार साहित्यकारों ने साहित्य के विकास में अपनी रुचि प्रकट की थी, उसी प्रकार विभिन्न कलाकारों एवं शिल्पियों ने प्राचीन कलाओं से प्रेरणा प्राप्त करके उसे नये रूप में प्रस्तुत करने की ओर ध्यान दिया। पुनर्जागरण के समय की कला कोई आकस्मिक अभिव्यक्ति न होकर कला का शनैः-शनैः विकसित स्वरूप था। संगीत और चित्रकला के विकास के साथ-साथ इस युग में स्थापत्य कला व मूर्ति कला के क्षेत्र में भी अद्भुत उन्नति हुई।

(ii) स्थापत्य कला:
मध्य युग की स्थापत्य कला से भिन्न इस युग के आरम्भ में यूरोप के कलाकार नवीन आदर्शों एवं प्रेरणा के लिए प्राचीन यूनानी और रोमन स्थापत्य कला शैली की ओर आकर्षित हुए। फ़्लोरेंस में मेडिसी गिरजाघर तत्कालीन स्थापत्य कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें प्राचीन और आधुनिक कला शैली का अत्यन्त सुन्दर मिश्रित रूप देखने को मिलता है। इस कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण रोम में 16वीं शताब्दी में देखने को मिलता है। प्रमुख कलाकारों में राफेल, माइकल ऐंजेलो, फिलिप्पो ब्रूनेलेशी और पलाडियों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। फ्लोरेन्स और रोम के साथ-साथ वेनिस, फ्रांस, नीदरलैण्ड, जर्मनी और स्पेन में भी स्थापत्य कला की पर्याप्त उन्नति हुई किन्तु इंग्लैण्ड में इसका प्रयोग 17वीं शताब्दी में हुआ।

(iii) मूर्तिकला:
मध्यकाल में जनसाधारण का ध्यान मूर्तिकला की ओर अधिक नहीं था किन्तु पुनर्जागरण के कारण लोगों का झुकाव अब मूर्तिकला की ओर होने लगा था। इसमें फ्लोरेंस के मेडिसी परिवार के संरक्षण और प्रोत्साहन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मूर्तिकला के कलाकारों ने अपनी कृतियों के निर्माण में यूनानी और रोमन शैलियों से प्रेरणा ली। मूर्तिकला का पथ-प्रदर्शक लिओन अल्बर्टी था। उसके बाद के कलाकारों ने उससे प्रेरित होकर शिल्पकला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इन कलाकारों में ल्यूकाडेला, रूबिया, दोनातल्लो, माइकल ऐंजेलो आदि प्रमुख थे। इनमें माइकल ऐंजेलो सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रिय था। उसके द्वारा निर्मित मूर्तियों में आदर्श और यथार्थ का अद्भुत सम्मिश्रण है। रोम में स्थित मोसेज और फ्लोरेन्स में निर्मित मेडिसी के गिरजाघरों की मूर्तियाँ इस महान कलाकार की सुन्दरतम कृतियाँ हैं। उसने अपनी लगन और मेहनत से मूर्तिकला को उन्नति के शिखर पर पहुँचा दिया था।

(iv) चित्रकला का विकास:
अन्य कलाओं की भाँति चित्रकला का विकास भी इटली में ही प्रारम्भ हुआ। पुनर्जागरण की चित्रकला में यथार्थ और धार्मिक परम्पराओं का सुन्दर सम्मिश्रण देखने को मिलता है। चित्रकला के विकास में सबसे अधिक प्रोत्साहन चर्च की ओर से प्रदान किया गया। पन्द्रहवीं से सोलहवीं शताब्दी में चित्रकला के विकास में इटली के अनेक महान चित्रकारों ने अद्वितीय योगदान किया। इनमें लियोनार्डो दा विंची, माइकल ऐंजेलो, राफेल तथा टीटान के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इटली के श्रेष्ठतम चित्रकार राफेल ने पोप के प्रासादों और चर्च में उत्कृष्ट चित्र बनाकर अपनी चित्रकला की श्रेष्ठता को प्रदर्शित किया। लियोनार्डो दा विंची की मोनालिसा और द लास्ट सपर उसके सर्वोत्कृष्ट चित्र माने जाते हैं।

(v) साहित्यिक विकास:
पन्द्रहवीं शताब्दी में इटली के विद्वानों द्वारा प्राचीन लातिनी व यूनानी इतिहास के प्रति अत्यधिक रुचि प्रदर्शित करने के कारण इतालवी भाषा का विकास हुआ। 1455 ई. में जर्मन मूल के जोहानेस गुटेनबर्ग द्वारा किए गए छापेखाने के आविष्कार से स्थानीय भाषाओं में भी साहित्य का सृजन होना प्रारम्भ हो गया। दाँते अलिगहियरी नामक विद्वान ने धार्मिक विषयों पर विस्तार से लेखन किया। इंग्लैण्ड के टॉमस मोर व हालैण्ड के इरेस्मस ने चर्च पर कई आलोचनात्मक लेख लिखे। जर्मन साहित्य में मार्टिन लूथर ने पर्याप्त योगदान दिया। इस प्रकार पुनर्जागरण काल में बहुत अधिक साहित्यिक प्रगति हुई।

मानचित्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 
दिए गए रेखा मानचित्र में इटली के राज्यों को दर्शाइए
उत्तर:
RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ - 1

प्रश्न 2. 
दिए गए विश्व के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित को दर्शाइए -
(i) स्विट्ज़रलैण्ड 
(ii) इटली 
(iii) जर्मनी 
(iv) इंग्लैण्ड। 
उत्तर:
RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ - 2


विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
प्रसिद्ध चित्र मोनालिसा किसने चित्रित किया है ?
(क) माइकल ऐंजेलो 
(ख) जोशुआ रेनोल्डस 
(ग) रेम्ब्राँ
(घ) लियोनार्डो दा विंची। 
उत्तर:
(घ) लियोनार्डो दा विंची। 

RBSE Class 11 History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 2. 
प्राचीन रोमनवासियों का सबसे अधिक योगदान किस क्षेत्र में है ? 
(क) कानून 
(ख) साहित्य 
(ग) धर्म
(घ) चित्रकारी। 
उत्तर:
(क) कानून 

प्रश्न 3. 
1300 से 1550 ई. के मध्य पुनर्जागरण कहाँ प्रारम्भ हुआ ? 
(क) इंग्लैण्ड 
(ख) इटली
(ग) हालैण्ड 
(घ) जर्मनी। 
उत्तर:
(ख) इटली

प्रश्न 4. 
जोहानेस गुटेनबर्ग किस तकनीक से जुड़े माने जाते हैं
(क) तेल निकालने की विधि
(ख) छापाखाना 
(ग) बीज बोने की
(घ) सड़क बनाने की। 
उत्तर:
(ख) छापाखाना 

प्रश्न 5. 
मुख्य घटना जिसने यूरोप में पुनर्जागरण को जन्म दिया था ?
(क) प्रिंटिंग प्रेस
(ख) शिक्षा और ज्ञान 
(ग) अधिकार
(घ) ऑटोमन तुर्क का कांस्टेंटीनोपल पर विजय 
उत्तर:
(घ) ऑटोमन तुर्क का कांस्टेंटीनोपल पर विजय 

प्रश्न 6. 
मोनालिसा और द लास्ट सपर किसकी कलाकृतियाँ हैं ?
(क) माइकल ऐंजेलो 
(ख) लियानार्डो दा विंची 
(ग) बेकन
(घ) रॉफेल। 
उत्तर:
(ख) लियानार्डो दा विंची 

प्रश्न 7. 
रोमन साम्राज्य के प्रथम पादरी थे ?
(क) सेंटपाल 
(ख) सेंटपीटर 
(ग) मैथ्यू
(घ) लियो महान। 
उत्तर:
(ख) सेंटपीटर 

प्रश्न 8. 
पुनर्जागरण किस वर्ष प्रारम्भ हुआ ?
(क) 800 ई. 
(ख) 1215 ई. 
(ग) 1453 ई. 
(घ) 1066 ई.
उत्तर:
(ग) 1453 ई. 

प्रश्न 9. 
यूरोप में धार्मिक आन्दोलन के पुनर्जागरण काल में विकसित होने का निम्न में से कौन-सा कारण था ?
(क) यह धर्म से सम्बन्धित था 
(ख) यह आन्दोलन राष्ट्रीय राजतंत्र से प्रेरित था। 
(ग) जनता का धर्म के क्षेत्र में आध्यात्मिकता की ओर अधिक झुकाव था
(घ) चर्च के ऊपर प्रतिबन्ध लगाना एवं भ्रष्टाचार को समाप्त करना था। 
उत्तर:
(ख) यह आन्दोलन राष्ट्रीय राजतंत्र से प्रेरित था। 

प्रश्न 10. 
मार्टिन लूथर का पोप के विरुद्ध होने का तत्कालीन कारण था - 
(क) मठों में आई बुराइयाँ
(ख) पोप का विलासितापूर्ण जीवन 
(ग) पापमोचन पत्रों की बिक्री
(घ) पादरी वर्ग का राजनीति में हस्तक्षेप। 
उत्तर:
(ग) पापमोचन पत्रों की बिक्री

प्रश्न 11. 
मार्टिन लूथर ने पोप का विरोध किया क्योंकि
(क) पोप विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करता था 
(ख) पोप का तानाशाह बनना 
(ग) जर्मनी में पोप एक विदेशी था
(घ) पोप द्वारा पापमोचन पत्रों की बिक्री करना। 
उत्तर:
(घ) पोप द्वारा पापमोचन पत्रों की बिक्री करना। 

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प्रश्न 12. 
लियोनार्डो दा विंची किस युग का प्रतिनिधित्व करता है? (एस. एस. सी. सेक्शन ऑफीसर परीक्षा)
(क) साम्यवाद 
(ख) पुनर्जागरण 
(ग) औद्योगिक क्रांति 
(घ) सुधार। 
उत्तर:
(ख) पुनर्जागरण 

प्रश्न 13. 
पुनर्जागरण में ग्रीको-रोमन प्राचीन अध्ययन में किसे महत्व दिया गया?
(क) सुखवाद 
(ख) व्यक्तिवाद 
(ग) रोमांसवाद 
(घ) मानववाद। 
उत्तर:
(घ) मानववाद। 

प्रश्न 14. 
मानववाद का जनक किसे समझा जाता है ?
(क) दाँते 
(ख) पेट्रार्क
(ग) मैकियावेली 
(घ) इरेस्मस।
उत्तर:
(ख) पेट्रार्क

प्रश्न 15. 
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का प्रतिपादक कौन था ?
(क) गेलिलियो 
(ख) हार्वे
(ग) न्यूटन
(घ) कोपरनिकस।
उत्तर:
(ग) न्यूटन

प्रश्न 16. 
'द प्रिंस' नामक पुस्तक का लेखक कौन था ?
(क) पेट्रार्क 
(ख) मैकियावेली 
(ग) शेक्सपियर 
(घ) दाँते। 
उत्तर:
(ख) मैकियावेली 


प्रश्न 17. 
विश्व की सूर्य केन्द्रित संकल्पना का प्रतिपादन प्रथम बार किया गया था ?
(क) टॉलेमी द्वारा 
(ख) कोपरनिकस द्वारा 
(ग) न्यूटन द्वारा 
(घ) कैपिनी द्वारा। 
उत्तर:
(ख) कोपरनिकस द्वारा 

प्रश्न 18. 
मानचित्र कला पर सर्वप्रथम ग्रन्थ लिखा गया था ?
(क) अरस्तू द्वारा 
(ख) टॉलेमी द्वारा 
(ग) मर्केटर द्वारा 
(घ) एरेक्टोस्थनीज द्वारा। 
उत्तर:
(ख) टॉलेमी द्वारा 

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प्रश्न 19. 
मार्टिन लूथर यूरोप के प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार के मुख्य व्यक्ति थे। उनका विश्वास था कि शांति प्राप्त हो सकती स्कूल व्याख्याता (इतिहास) परीक्षा) 
(क) व्रत और प्रार्थना द्वारा
(ख) यातना द्वारा 
(ग) ईश्वर के अनुग्रह एवं दया में विश्वास द्वारा 
(घ) विश्वास और शुभ इच्छाओं द्वारा। 
उत्तर:
(ग) ईश्वर के अनुग्रह एवं दया में विश्वास द्वारा 

प्रश्न 20. 
कौन सा देश 16वीं शताब्दी में एक राष्ट्र राज्य के रूप में विकसित नहीं हो सका ?
(क) फ्रांस 
(ख) इटली 
(ग) स्पेन
(घ) इंग्लैण्ड। 
उत्तर:
(ख) इटली 

Prasanna
Last Updated on Sept. 23, 2022, 9:59 a.m.
Published July 29, 2022