RBSE Class 11 English The Guide - Introduction

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 English The Guide - Introduction Questions and Answers.

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RBSE Class 11 English Solutions The Guide - Introduction

लेखक के बारे में

आर. के. नारायण समकालीन भारतीय अंग्रेजी लेखकों में एक विशिष्ट लेखक हैं । इनका जन्म 1906 में मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था और इनकी शिक्षा मैसूर के कॉलेजिएट हाई स्कूल में हुई थी जहाँ पर इनके पिताजी प्रधानाध्यापक थे, फिर यह महाराजा कॉलेज मैसूर चले गए। (उनका पूरा नाम रासीपुरम कृष्णास्वामी अय्यर नारायण स्वामी है। इन्होंने ग्राहम ग्रीन के सुझाव पर इसे छोटा कर आर.के. नारायण कर दिया था।) उन्होंने बहुत ही कम समय के लिए शिक्षक का कार्य किया, फिर वे पत्रकार बने, इससे पहले जब उन्होंने अपने प्रथम उपन्यास 'स्वामी एण्ड हिज फ्रेन्ड्स' (1934 में) प्रकाशित किया, उस उपन्यास में उन्होंने अपनी कल्पना से 'मालगुड़ी' नामक एक छोटे कस्बे की रचना की, जिसको वे अपने आगे आने वाले कई उपन्यासों में नक्शे द्वारा बताकर प्रसिद्ध करने वाले थे। उसके कुछ और उपन्यास हैं- 
The Bachelor of Arts (1937), The English Teacher (1945), Mr. Sampath (1949), The Financial Expert (1952), The Guide (1958), The Vendor of Sweets (1967), The Painter of Signs (1977) and The World of Nagraj (1990).

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उसके कथा-साहित्य के संसार के लोग जो पात्रों में पत्रकार, चित्रकार, प्रोफेसर्स, वित्त विशेषज्ञ, वकील, स्वप्नदृष्टा--का चित्रण एक अच्छे व्यंग्य के साथ किया गया है जो कि प्रथाओं के साथ पश्चिमी दृष्टिकोण को शामिल करने के लिए संघर्ष करते हैं, यह पश्चिमी दृष्टिकोण ब्रिटिश लोगों से प्राप्त किया है। ग्राहम ग्रीन, जिन्होंने उसका प्रथम उपन्यास के प्रकाशन हेतु सिफारिश की थी, उसकी दुःख-सुखान्तिकाओं, विषादों और बारम्बार निराशाजनक उसके पात्रों की इच्छाओं की तुलना एन्टन चेखोव के पात्रों से की जाती थी और उसने टिप्पणी की थी कि नारायण के विशेष सुखान्त उपहार सामाजिक रिवाजों के मजबूत ढाँचे में फले-फूले हैं। नारायण के अन्य प्रकाशनों में उनकी लघुकथाओं का एक संकलन भी शामिल है

An Astrologer's Day and Other Stories (1947), Lawley Road (1956), A Horse and Two Goats (1970), Malgudi Days (1982), एक संस्मरण 'My Days' (1975) और भारतीय महाकाव्यों और कथाओं का अनुवाद । उन्हें प्रतिष्ठित 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार उनके उपन्यास 'The Guide' के लिए 1960 में दिया गया था। उन्हें 1964 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया और उन्हें लीड्स विश्वविद्यालय से मानद D.Litt. की उपाधि प्राप्त हुई। उसी प्रकार उन्हें क्रमशः 1967 और 1973 में दिल्ली विश्वविद्यालय से इसी उपाधि से सम्मानित किया गया।

प्रसिद्ध 'ब्रिटिश काउन्सिल' ने उन्हें उनकी सीरीज “Writers and Their Work" में शामिल करके सम्मानित किया था। उनकी बहुत-सी कहानियाँ बी.बी.सी. से भी प्रसारित की जा चुकी हैं। 1965 में उनके उपन्यास The Guide पर आधारित एक बॉलीवुड फिल्म को भी बनाकर दिखाया गया। 1968 में उनका उपन्यास एक नाटक के रूप में लिया गया और इसे कई भाषाओं में अनुवादित किया गया। साहित्य जगत में एक बहुत बड़ा रिक्त स्थान बनाते हुए वह 2001 में मृत्यु को प्राप्त हुए।

विषय-वस्तु (Theme) 

आर.के. नारायण की महान कृति 'The Guide' एक विचारोत्तेजक उपन्यास है जो कि मानवीय सम्बन्धों की गूढ़ता और जटिलता को एक सरल तरीके से व्याख्या करता है। यह भारत के एक आवरण की खोज करता है-इसकी रूढ़ियों, प्रथाओं, संस्कृति, सामाजिक-आर्थिक दशाओं, अशिक्षा, अन्धविश्वास और धार्मिक विश्वास के साथ और आधुनिक और रूढ़िगत मूल्यों के संघर्ष को प्रस्तुत करता है। यह शादी और पारिवारिक बन्धनों जैसी संस्थाओं पर प्रकाश डालता है और यह तथ्य कि एक औरत को पितृसत्तात्मक परिवार में निश्चित तय भूमिकाएँ प्रदान की जाती हैं और यदि वह परिभाषित सीमाओं को पार करने का प्रयास करती है एवं और अधिक स्वतन्त्रता की इच्छा करती है, वह परिवार के सदस्यों का गुस्सा उत्पन्न करती है । यह व्यक्ति के जीवन में भाग्य की भूमिका पर भी प्रकाश डालती है।

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कथानक तकनीक (Narrative Technique) 

The Guide का अधिकांश भाग मालगुड़ी में आधारित है, यह दक्षिण भारत में स्थित एक काल्पनिक कस्बा है और इसका एक भाग मंगल नामक ग्राम में है। लेखक ने चलचित्र आधारित तकनीक का प्रयोग किया है जिसमें कहानी पिछली पृष्ठभूमि से आती है, उसके योजना निर्माण में कहानी का आगे चलना और विभिन्न अंशों को आकर्षक ढंग से संग्रथित कृति बनाई गई है।

उपन्यास की अपारम्परिक योजना समय और स्थान में स्वतन्त्र रूप से घूमती है; यह अध्यायों के अन्दर और इनके बीच चलती रहती है। यह भूतकाल से वर्तमान में और पुनः वापस भूतकाल में बदलती रहती है और यह मालगुड़ी से मेम्पी पर्वतों तक अनियमित परन्तु तार्किक एवं अच्छे स्वरूप में रहती है। लेखक द्वारा राजू की उपस्थिति को कहा गया है जबकि राजू के स्वयं द्वारा मालगुड़ी में उसके भूतकाल को कहा गया है। दोहरे वक्तव्य की यह तकनीक, भूतकाल और वर्तमान की सन्निकटता जीवन के व्यंग्य पर प्रकाश डालती है, आदमी का अप्रिय और कठिन परिस्थिति में रहना जो कि महान जन्मा नहीं है परन्तु महानता उस पर जबरदस्ती लादी गई है। दो स्थान, दो समय एवं दो कहानी कहने वाले उत्कंठा की रचना करती है, यह पाठक में उत्सुकता बढ़ाती है और पठन को बहुत ही रुचिकर बनाती है।

उपन्यास की मुख्य घटनाएँ
(Main Events in the Novel) 

'The Guide' उपन्यास राजू के इर्द-गिर्द घूमता है। स्टेशन पर भोजन बेचने वाले से धीरे-धीरे एक नायक में उसका परिवर्तन, फिर एक सैलानी दिग्दर्शक, एक भावुक प्रेमी, एक नृत्यांगना का व्यवस्थापक, एक धोखा देकर पैसे प्राप्त करने वाला धोखेबाज, एक कैदी और अन्ततः एक संत और एक शहीद बनना। उपन्यास राजू के अभी-अभी जेल से छूटने पर प्रारम्भ होता है, ग्रेनाइट पत्थर की एक पटिया पर एक उजाड़ मन्दिर के नजदीक, सरयू नदी के तट पर बैठा है। दूसरी ओर मंगल नामक एक ग्राम है जहाँ पर ग्रामवासी अशिक्षित और अंधविश्वासी हैं।

एक ग्रामवासी जिसका नाम वेलान है वह राजू को गलती से एक संत समझ लेता है और उससे अपनी बहिन की शादी की समस्या को हल करने के लिए कहता है। राजू की वाक्पटुता, बुद्धि एवं जादुई व्यक्तित्व से समस्या का हल निकाल लिया जाता है, इस कारण से वेलान उसका सच्चा शिष्य बन जाता है और वह भोले-भाले गाँव वालों को भी विश्वास दिलाता है कि वह एक पवित्र व्यक्ति है । जैसे-जैसे समय बीतता है, सभी ग्रामवासी उसे सन्त की भाँति सम्मान देते हैं और उसे भोजन और उपहार देते हैं।

समयानुसार कथानक पीछे की ओर घूमता है, राजू स्मृतियों में खो जाता है और अपने भूतकाल के जीवन के बारे में सोचता है उसके बचपन के अनुभव, उसकी स्कूल की शिक्षा और जीवन । वह अपने पिता को याद करता है, वे मालगुड़ी गाँव में एक बहुत ही छोटी दुकान के मालिक थे और जब रेलवे स्टेशन को वहाँ पर स्थापित किया गया, उसने स्टेशन पर एक नई बनी दुकान की व्यवस्था कर ली थी। बाद में, उसे यह दुकान चलाने का विशेषाधिकार मिल गया था। यहाँ, उसकी अन्तःक्रिया असंख्य लोगों के साथ हुई जो कि विभिन्न पृष्ठभूमियों से आते थे।

तब कहानी वर्तमान की ओर घूमती है और लेखक कहता है कि धार्मिक लोगों का एक बड़ा समूह मंगल ग्राम से स्वामी राजू की पूजा और दर्शन हेतु आता है । वह ग्रामवासियों को सलाह देता है कि वे अपने बच्चों को मन्दिर के हॉल में लगने वाली कक्षाओं में भेजें । वह गाँव वालों से सफाई, भगवान के बारे में दार्शनिक बातें करता है और महान भारतीय महाकाव्यों के बारे में बताता है और वह उन्हें दवाइयां भी देता है। न केवल बच्चे बल्कि बड़े भी उसकी सूक्ति भरी बातों से मंत्रमुग्ध हो गए थे, जो कि ज्ञान से भरी हुई थी। प्रारम्भ में राजू अपने संतपने का  आनन्द लेता है परन्तु समय के अनुसार वह अपने कृत्रिम जीवन से ऊब जाता है और अपने सामान्य जीवन के लिए तड़पता है।

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पुनः पाठक को राजू के भूतकाल के जीवन की एक झलक मिलती है - किस प्रकार से वह एक बहुत सफल और अतिअनुभवी सैलानी दिग्दर्शक बन गया था। वह वे सभी चीजें उपलब्ध करवा देता था जो कि सैलानियों को चाहिए थीं। उनकी उत्सुकता को वह अपनी प्रेरणादायी, अतिशयोक्तिपूर्ण बातों से शान्त करता था एवं उनकी यात्रा को अर्थपूर्ण बना देता था। उसने यह खोजा था कि सैलानियों की रुचियाँ अलग-अलग होती हैं, उनकी आर्थिक स्थिति भी भिन्न-भिन्न होती थी, अतः वह उनकी दृश्यावलोकन यात्राओं की व्यवस्था भी उसी के अनुसार करता था। एक दिग्दर्शक के रूप में, वह रोजी और उसके पति से मिला था, जिसका नाम उसने मार्को रखा था, जैसे कि वह हमेशा यात्री के रूप में ही रहने वाला लगता था। 

जब राजू ने आकर्षक रोजी की पहली झलक पायी थी, तो उसके प्रति आकर्षण की उसमें एक गहरी भावना आई थी। मार्को, एक शांत, सुदूर का सांस्कृतिक इतिहासकार एवं खोजकर्ता जो कि अपने अकादमिक कार्यों में इतना खोया रहता था कि उसके पास रोजी के लिए समय बचा ही नहीं था। राजू को पति और पत्नी के मध्य अजनबीपन का भी पता चला और उसने रोजी को वह दिया जो कि उसके पति ने देने से इन्कार कर दिया था - यह था समय, ध्यान और प्रशंसा । जब रोजी किंग कोबरा का नृत्य देखना चाहती थी, राजू उत्सुकता से उसे सपेरों के क्षेत्र में ले गया था। 

जैसे कोबरा बांसुरी के संगीत पर नाचता था, रोजी का शरीर भी उसकी धुन के साथ हिलने लगा था और राजू ने यह महसूस कर लिया था कि वह एक महान नर्तकी है। वे अपनी व्यक्तिगत भावनाएँ भी एक-दूसरे के साथ बाँटने लगे थे। रोजी ने उसे बताया कि वह जन्मजात, गहरी भावना वाली नृत्यांगना है, क्योंकि वह देवदासियों के परिवार से थी और उसने मार्को से शादी केवल अपनी सामाजिक परिस्थिति और आर्थिक सुरक्षा हेतु की थी। राजू और रोजी में एक अंतरंग सम्बन्ध विकसित हो गए थे और वे एक-दूसरे के साथ बहुत ही रोमांचक तरीके से मिले हुए थे।

कथानक पुनः वर्तमान की ओर घूमता है, उस गाँव मंगल में जहाँ राजू को एक वास्तविक स्वामी माना जाता है। यद्यपि वह एक स्वामी को प्राप्त विशेषाधिकारों का सुख अधिक समय तक नहीं ले सकता है। गाँव में सूखा पड़ जाता है, इसके परिणामस्वरूप वहाँ अकाल और भोजन की कमी पड़ जाती है; और ग्रामवासी स्वामी राजू को भोजन नहीं देते हैं । असाधारण रूप से कीमत बढ़ने के कारण, एक ग्रामीण और दुकानदार में खतरनाक झगड़ा हो जाता है। शीघ्र ही वहाँ मतानुसार दो समूह बन जाते हैं और वेलान को चोट लगती है। वेलान का आधा पागल भाई स्वामीजी के पास जाता है और उनको सारी घटना कहता है। राजू बदले में उसके माध्यम से एक संदेश पहँचाता है कि वह तब तक खाना नहीं खायेगा जब तक दोनों पक्ष एक-दूसरे से अच्छे सम्बन्ध नहीं बना लेते हैं । 

उपन्यास में घटना नाटकीय मोड़ लेती है, जब एक 'बेवकूफ' की मूर्खता अन्ततः राजू की शहादत की ओर ले जाती है। वेलान का भाई बिना विचारे विश्वसनीय ग्रामीणों को संदेश गलत तरीके से पहुँचाता है और कहता है कि स्वामी राजू तब तक भोजन नहीं करेंगे जब तक कि 'बरसात नहीं हो जाती है' यह कहने के बजाय कि 'वे झगड़ा रोक दें।' यह खबर कि पवित्र हृदय वाला, परोपकारी सन्त व्रत करेगा गाँव वालों के कारण यह खबर सुदूर गाँव के कोने तक फैल जाती है । यद्यपि राजू इस तथ्य को भूल जाता है कि उसे भोले ग्रामीणों के रक्षक के रूप में कार्य करने की उम्मीद की गई है। 

अब राजू के लिए समय बदल गया है, वह निराशा की स्थिति में है, उसका मन अजीब विचारों से प्रताड़ित हो रहा है; वह यह अनुभव करता है कि वह एक भूल-भुलैया में फँस गया है जिसमें से बचकर निकल भागने का कोई मार्ग नहीं है। राजू यह दृढ़ निश्चय कर लेता है कि वह वेलान के सम्मुख यह अपराध बोध कर लेगा कि वह 'वह संत नहीं है, परन्तु हर किसी की भाँति एक साधारण मानव है' और वह उससे उसकी पिछली जिन्दगी की कहानी सुनने के लिए कहता है । यद्यपि, वेलान कहानी के आगे बढ़ने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है।

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कथानक पुनः भूतकाल की ओर घूमता है। राजू उस समय को याद करता है जब वह रोजी के विचारों में खोया रहता था-वह अपनी यादों में इस बात का भरपूर आनन्द लेता था कि किस प्रकार से उसने रोजी के साथ अपने हसीन पल गुजारे थे और उसने यह उम्मीद की कि वह भविष्य में उसके साथ क्या करेगा। वह अपने बाहरी स्वरूप और वस्त्रों के प्रति बहुत अधिक सचेत हो गया था और उसने उसे प्रभावित करने की हर नीति का प्रयास

किया। उसने रोजी को यह विश्वास दिला दिया था कि मार्को के तीव्र विरोधाभास में वह उसके जन्मजात गुण के बारे में बहुत भावुक था और वह उसे एक प्रसिद्ध नृत्यांगना बनाना चाहता था। रोजी ने अपने पति की राय नृत्य के बारे में लेने का निश्चय किया, परन्तु उसका जवाब नकारात्मक था, जैसाकि वह दृढ़ता से यह विश्वास करता था कि. अच्छी पत्नियाँ नृत्य करने के लिए बेताब नहीं रहती हैं । उसने नृत्य को उच्चवर्गीय परिवार के सम्मान से निम्न माना था, अतः उसने उसे बताया कि उसके पास नृत्य के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं है । 

रोजी, असजगता से जोर देकर कहती है कि जब उसने होटल में राजू के सामने नृत्य प्रदर्शन किया, उसने उसके गुण की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। इस पर मार्को को सन्देह हो गया और उसने सोचा कि उसकी पत्नी ने उसके विश्वास को छला था। रोजी के साथ जिरह का दौर प्रारम्भ हुआ और अन्त में उसने सैलानी दिग्दर्शक राजू के साथ अपने मैत्रीपुर्ण सम्बन्ध को स्वीकार कर लिया। मार्को अपनी पत्नी की बेवफाई को सहन नहीं कर सका था इसलिए पत्नी के बिना प्रस्थान करने का निश्चय कर लिया। रोजी राजू के स्थान पर रहने के लिए चली गई, जहाँ पर उसने अपने नृत्याभ्यास के समय अपने आपको सफल बनाने का प्रयास किया है। राजू लगातार उसे प्रेरित कर उसका हौसला बढ़ाता रहा । 

प्रारम्भ में राजू की माँ रोजी के प्रति स्नेहमयी और ध्यान रखने वाली थी, परन्तु वह अधिक लम्बे समय तक उसके नृत्य को सहन नहीं कर सकी थी, वह चिड़चिड़ी हो गई, वह उसको 'सर्प बालिका' या 'दानव' कहकर पुकारने लगी और उसने अपने बेटे को सावधान किया कि वह उससे दूरी बनाए रखे। यद्यपि राजू ने उसकी इस सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया था और वह एक सैलानी दिग्दर्शक से चतुर प्रेमी में बदल गया था। वह अपना अधिकांश समय रोजी के साथ व्यतीत करता था, अपने व्यवसाय या दिग्दर्शक के रूप में उसने अपने जीवन की परवाह नहीं की। उसने दुकान को नष्ट कर दिया, उसने जबरदस्त आर्थिक नुकसान का सामना किया, बहुत ऋण में दब गया और कानूनी पचड़ों में फँस गया। राजू की माँ और उसके मामा यह सोचते थे कि उसकी बरबादी का कारण रोजी थी, इसलिए उन्होंने उसे परेशान किया। यद्यपि राजू रोजी के साथ रहा और राजू की माँ अपने भाई के घर पर रहने के लिए चली गई।

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राजू और रोजी अब अकेले थे, दोनों राजू और रोजी ने साथ रहकर आनन्द लिया। रोजी ने जनता के समक्ष अपने नृत्य प्रदर्शन का निश्चय किया। उसका नाम रोजी से बदलकर नलिनी कर दिया गया क्योंकि रोजी एक विदेशी नाम प्रतीत होता था। उसे अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन करने का मौका अल्बर्ट मिशन कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में मिला जो बहुत ही आकर्षक साबित हुआ। धीरे-धीरे वह सफलता के क्षितिज पर पहुँच गयी थी, उसकी स्वयं की पहचान थी और राजू उसके मंच का व्यवस्थापक बन गया था। राजू उसके प्रत्येक प्रदर्शन के लिए भारी पैसों की वसूली करता था, उसके बैंक का पैसा बढ़ता जा रहा था और इस प्रकार से राजू उसकी प्रतिभा से धन कमाने में सफल रहा। वे एक बड़े, आलीशान मकान में चले गए और एक विलासितापूर्ण जीवन जीने लगे थे। जैसे-जैसे समय गुजरता गया, रोजी अपने मशीनी, एकाकी और भौतिक जीवन से ऊब गई थी; कई बार, वह अपने पति को याद करती और यह महसूस करती थी कि उसकी कला उसके लिए बहुत भारी हो रही थी।

उसी दौरान, मार्को ने अपनी प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति राजू को भेजी जिसमें उसने उसका आभार प्रदर्शित किया था। राजू ने यह पुस्तक रोजी से छिपा ली थी यह सोचते हुए कि यह पुस्तक उसमें मार्को के लिए सुषुप्त भावनाओं को रोजी के दिल में जगा देगी। फिर भी, जब रोजी ने इस पुस्तक की परिचर्चा Weekly में पढ़ी वह प्रसन्न हो गई और उसने राजू को इस बारे में बताया और बाद में, जब उसे राजू से इस पुस्तक के छिपाए जाने के बारे में पता चला, वह बहुत अधिक नाराज हुई । तब एक पंजीकृत पत्र रोजी के लिए आया जिसमें यह बताया गया था कि एक प्रार्थना-पत्र पर दस्तखत करने के बाद, रोजी को गहनों का एक बक्सा मिलेगा, जो कि मार्को के द्वारा बैंक में जमा कराया गया था। 

राजू रोजी के लिए बहुत आसक्त था, उसे डर था कि जितनी जल्दी रोजी मार्को की उदारता के बारे में जानेगी, उतनी जल्दी ही वह मानसिक रूप से अपने पति के निकट चली जाएगी। इस प्रकार उसने एक बार फिर से एक गम्भीर गलती कर दी, उसने रोजी के जाली हस्ताक्षर कर दिये। मार्को को इस जालसाजी का पता चल गया। उसने पुलिस को इस मामले की सूचना दे दी। राजू को गिरफ्तार किया गया और उसे दो साल की कैद हो जाती है । यद्यपि, राजू के इस धोखे से रोजी उससे तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करती थी, फिर भी वह जेल में उससे मिलने गई, रोई, उसे सांत्वना दी और उसकी हर सम्भव सहायता की थी। राजू जेल में बहुत ही सहयोगी और अनुशासित था और उसे एक 'आदर्श कैदी' समझा जाता था क्योंकि उसका सकारात्मक

दृष्टिकोण और अच्छा व्यवहार था। उसने अपने जेल के जीवन का भरपूर आनन्द लिया और जब उसे रिहा किया गया तो उसे अवसाद महसूस हुआ। पुनः घटनाचक्र वर्तमान की ओर घूमता है। राजू यह सोचता है कि उसके भूतकाल के जीवन के बारे में उसका ईमानदारीपूर्ण अपराध बोध सुनकर, वेलान उसका अपमान करेगा, परन्तु उसे बहुत आश्चर्य तब हुआ जब वेलान ने उसे अभी भी स्वामी कहकर सम्बोधित करता है।

राजू अनिच्छा से व्रत का पालन करता है और संत का बाहरी आवरण बनाए रखता है। जैसे ही स्वामी राजू के व्रत की खबर तेजी से फैल चुकी होती है, असंख्य लोग उसके दर्शनों के लिए आने लगते हैं। वहीं भोजन बनाते हैं और अपने आपको आनन्दित करते हैं । धुआँ और भोजन के दृश्य राजू को और भूखा बना देते हैं और उसकी खाने की इच्छा बढ़ जाती है। अपने व्रत के पहले दो दिन राजू चुपके से कुछ खाने की व्यवस्था कर चुका होता है, उसने थोड़ा-सा भोजन पहले से बचाकर रखा हुआ था, परन्तु उसके बाद उसे भूखों मरना पड़ता है। 

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वह महसूस करता है कि अब कोई विकल्प नहीं है, उसे पता था कि उसे इस अग्नि परीक्षा से गुजरना ही पड़ेगा। तब उसका अपने आपको प्रकट करने का क्षण आता है, जब वह गाँव वालों के लिए कुछ करने का फैसला करता है; वह सोचता है कि यदि उसका व्रत बरसात ला सकता है, वह अवश्य ही व्रत करेगा। अतः वह अपने मन से भोजन के सभी विचारों को भगा देता है । वह सोचता है कि यदि वह भोजन नहीं करके "पेड़ों को खिलने में और घास को बढ़ने में सहायता करता है, क्यों नहीं इसे पूरे तरीके से किया जाए?" अपनी नवीन ताकत और शक्ति से, वह पानी में जाकर खड़ा हो जाता है और भगवान से बरसात को नीचे भेजने और गाँव वालों को बचाने की प्रार्थना करता है । वह महसूस करता है कि वह बदल गया है, वह अपने स्वयं के सत्य को महसूस करता है और दूसरों की रक्षा हेतु अपने जीवन का बलिदान करने को तैयार हो जाता है।

निरन्तर उसका स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है और सरकार भी चिन्तित हो जाती है। यह एक बड़ी राष्ट्रीय घटना बन जाती है और प्रेस के द्वारा भी इसे लगातार बताया जा रहा होता है, जैसे "पवित्र आदमी का सूखे को समाप्त करने का प्रायश्चित्त।" एक अमरीकी फिल्म निर्माता भी उसका साक्षात्कार लेने के लिए आता है। अपने उपवास के ग्यारहवें दिन, वह बहुत कमजोर दिखता है, दुर्बल और पतला हो जाता है, उसका जीवन खतरे में पड़ जाता है और उसे ग्लुकोज लेने का सुझाव दिया जाता है, परन्तु वह मना कर देता है।

स्वामी राजू की इच्छा होती है कि उसे नदी पर ले जाया जाए जहाँ पर वह घुटनों तक के पानी में दो लोगों के सहारे से खड़ा हो जाता है। वह अपनी आँखें बन्द कर लेता है, पर्वत की ओर मुड़ जाता है, अपनी प्रार्थनाएँ बुदबुदाता है और थोड़े समय बाद अपनी आँखें खोल कर कहता है, "पहाड़ों में बरसात हो रही है। मैं महसूस कर सकता हूँ कि यह मेरे पैरों के नीचे आ रही है, मेरी टाँगों तक............" और तब बेहोश होकर गिर जाता है। इस उपन्यास का अन्त अस्पष्ट है। क्या यह एक मरते हुए आदमी का भ्रम था या वास्तव में बरसात थी? क्या राजू अपनी चेतना में वापस आएगा या वह मर चुका है? लेखक इसे स्पष्ट नहीं करता है और इस तरह की कोई सारगर्भित गवाही भी नहीं है जिससे कि संतुष्टिपूर्वक इन प्रश्नों का जवाब मिल जाए।

Characters In The Guide (गाइड में पात्र)

Raju (राजू) 

राजू, उपन्यास का नायक दोहरा व्यक्तित्व रखता हुआ प्रतीत होता है। उसका चरित्र उपन्यास के अलग-अलग भागों में खोजा जा सकता है...-एक सैलानी दिग्दर्शक के रूप में, वह झूठ बोलता है और सैलानियों को ठगता है केवल अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए वह ऐसा करता है। जब उसे किसी स्थान के बारे में ज्ञान नहीं होता है तब भी वह इसके बारे में अस्पष्ट वाक्य कहता है और कभी भी "नहीं" कहता है । यद्यपि वह इसे उनकी यात्रा को अर्थपूर्ण और आनन्ददायक बनाने के लिए कहता है।

अपनी बुद्धि, वाक्पटुता, ज्ञान और सहज समझ द्वारा वह सैलानियों को प्रभावित करता है और अपने ज्ञान से वह उनकी जरूरतों को समझ जाता है। रोजी के साथ अपने सम्बन्धों में, वह नैतिक रूप से भ्रष्ट, स्व-केन्द्रित, काबिज मनोवृत्ति वाला, ईर्ष्यालु है और वह उसे भावना एवं धन दोनों से शोषित करता है, परन्तु उसी समय, वह उसे वह देता है जो वह अपने पति से प्राप्त नहीं कर सकती थी। जबकि उसका पति हमेशा उसे नजर-अन्दाज करता है और उसका अपमान करता है और जब वह उसका परित्याग कर देता है, राजू बहुत प्रेममय, ध्यान रखने वाला और उसे समझने, उसका अन्तर्निहित नृत्य का गुण पहचानने वाला बनता है, उसे प्रेरित करता है कि वह एक प्रसिद्ध नृत्यांगना बने और उसके जीवन में एक नया अर्थ जोड़ता है। यद्यपि, यह सम्बन्ध उसका सम्पूर्ण जीवन एवं भविष्य बिगाड़ देता है।

एक तरफ, मार्को के गाइड के रूप में, राजू बहुत ही सहयोगी, मिलनसार है और उसकी हर कदम पर सहायता करता है परन्तु दूसरी ओर वह हर नीति का प्रयास कर उसकी पत्नी को फुसलाता है। जब राजू रोजी के जाली हस्ताक्षर करता है, उसे कैद में रखा जाता है और अपराधी घोषित किया जाता है। यद्यपि, इस अपराधी का व्यवहार जेल में 'आदर्श' है; वह सभी की सहायता करता है, उनको व्यस्त एवं उच्च भावना का बनाए रखता है।

वह अपनी माँ के बहुत निकट और गहराई से जुड़ा है। वह रोता और सुबकता है जब वह उसे छोड़ती है, परन्तु जब रोजी और उसकी माँ के बीच एक को चुनने का समय आता है, वह रोजी का चयन करता है। जब उस पर संत की भूमिका थोपी जाती है, वह एक पाखण्डी से बढ़कर निर्दोष, भोले-भाले गाँव वालों की ईमानदारी और सादगी का शोषण करता है। वह अपनी भूमिका में सुधार करता जाता है और पूर्णता के साथ अपनी भूमिका अदा करता है; प्रभावपूर्ण, सूक्ति युक्त वाक्य बोलता है, निःशुल्क भोजन एवं सम्मान पाता है और नीतिगत तरीके से झगड़े की स्थिति से निपटता है जिससे कि पुलिस से बचा जा सके।

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परन्तु उसी समय वह एक परोपकारी की भाँति गाँव वालों के भले के लिए कार्य करता है। गाँव वालों की सामूहिक अन्ध भक्ति उसे बदल देती है; वह भूल जाता है कि वह एक अभिनेता है जो कि अपनी भूमिका अदा कर रहा है। यह भूमिका वास्तविकता बन जाती है, जब वह एक शहीद बनने के लिए तैयार हो जाता है केवल ग्रामीणों की वजह से।

राजू में एक विशिष्ट क्षमता है कि वह हर प्रकार की स्थिति में अपने आपको अनुकूल बना लेता है । वह प्रसन्नचित्त, स्व-निर्मित, बहिर्मुखी है, जीवन से प्रेम करता है और हर क्षण जीवित रहता है जब वह क्षण आता है। उसके चरित्र का दोहरापन बहुत जटिल प्रतीत होता है परन्तु वह सम्पूर्ण उपन्यास में पाठक की रुचि बनाए रखता है।

Rosie  (रोजी) 

रोजी, एक बहुत सुन्दर एवं आकर्षक महिला, देवदासी के परिवार से है, वह अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर है, मार्को से शादी करती है एवं अपने आपको भाग्यशाली मानती है क्योंकि उसका पति समाज के उच्च वर्ग से सम्बन्ध रखता है।

मार्को की पत्नी के रूप में वह बहुत समर्पित, स्नेहमयी एवं ध्यान रखने वाली है, परन्तु बहुत ही जल्दी उसे पता चलता है कि उनकी रुचियाँ ध्रुव की भाँति अलग-अलग हैं । वह एक अलग प्रकार का जीवन अपने स्वयं के लिए चुनती है, परन्तु भावना से वह अपने पति से जुड़ी है, भले ही वह उसे त्याग देता है। बाद में, वह अपराधी महसूस करती है कि उसने अपने पति के विश्वास को धोखा दिया है।

राजू के साथ रहकर भी, वह निरन्तर मार्को के बारे में सोचती है, उसकी तस्वीर Weekly नामक पत्रिका से काटती है और अपने शीशे पर उसे चिपका देती है। जब वह मालगुड़ी छोड़ती है तो वह अपने सारे सामान को बेच देती है सिवाय मार्को की पुस्तक के जो उसके लिए "सबसे अधिक कीमती" वस्तु है, वह उसे अपने साथ लेकर जाती है।

नृत्य के प्रति रोजी की तीव्र इच्छा इतनी बलवती हो जाती है कि वह राजू के प्रवाह में बहती चली जाती है इस तथ्य के प्रति उदासीन रहते हुए कि वह उसका शोषण कर रहा है। उसकी स्वयं की दृढ़ता और राजू की प्रेरणा उसे एक बहुत सफल नृत्यांगना बना देती है और वह इसके लिए राजू की आभारी है। यद्यपि वह राजू से उसकी जालसाजी की वजह से घृणा करती है, फिर भी वह अपना सारा भविष्य, पैसा उसकी कानूनी लड़ाई पर व्यय करने हेतु दृढ़ प्रतिज्ञ है ।

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वह नृत्य को त्याग चुकी है, परन्तु सिर्फ राजू के लिए पैसे इकट्ठे करने हेतु, वह पुनः नृत्य को अपनाती है। वह उस समय टूट जाती है जब वह राजू से मिलने जेल जाती है। इससे यह प्रदर्शित होता है कि वह एक श्रेष्ठ मानव प्राणी है। इस तथ्य के बावजूद भी कि रोजी ने व्यभिचार किया है पाठक उसे दृढ़ निश्चय हेतु पसन्द करते हैं जहाँ वह अपना उद्देश्य प्राप्त करना चाहती है, भौतिक जीवन-मूल्यों के प्रति वह अभिन्न है, और उसकी शक्ति, स्नेह, गहन और सहयोगी प्रवृत्ति के लिए उसे पसन्द किया जाता है। 

Marco (मार्को) 

मार्को, रोजी का धनी पति एक विद्वान और शोधकर्ता है, पूर्ण रूप से कला व संस्कृति के अध्ययन के प्रति समर्पित है । वह मृत और विघटित वस्तुओं' के साथ इतना मिला हुआ है कि उसके पास उसकी 'जीवित' पत्नी के लिए खाली अतिरिक्त समय नहीं है, जो कि "कला की सच्ची प्रतिमूर्ति" है।

वह पितृसत्तात्मक परिवार के लिए एक विशिष्ट व्यक्ति प्रतीत होता है जो कि रोजी को घर का ध्यान रखने वाली पत्नी के रूप में चाहता है, जो कि परिवार की जरूरतों और जीवित चीजों के प्रति आवश्यकताओं को एक छाया की भाँति पूर्ण कर सके, जिसमें उसकी स्वयं की कोई पहचान नहीं है । उसका रूढ़िवादी मन है, वह नृत्य को एक महान कला' नहीं मानता है परन्तु इसे 'गली के एरोबेटिक्स (खेल)' की तरह समान मानता है। वह सोचता है कि एक औरत जो 'अच्छे परिवार' की है उसे नृत्यांगना नहीं होना चाहिए। उसमें प्रेम, समझ और समझौतावादी प्रकृति जैसे गुणों की, जो कि एक सफल साहचर्य जीवन हेतु अनिवार्य हैं, उनकी कमी रही है।

उसी समय, वह महसूस करता है कि एक अच्छे सम्बन्ध में अतिमहत्त्वपूर्ण वस्तु "विश्वास" है। जब रोजी इस तथ्य को स्वीकारती है कि उसके राजू के साथ व्यभिचारपूर्ण सम्बन्ध हैं और गम्भीरता से क्षमा माँगती है, वह उसे त्याग देता है, क्योंकि उसने उसके विश्वास को धोखा दिया था। वह बहुत ईमानदार और सच्चा भी है। वह राजू को अपनी नवीन प्रकाशित पुस्तक में आभार के साथ उल्लेख करता है, इस तथ्य के बावजूद भी कि राजू ने उसे धोखा दिया है। वह रोजी का गहना भी वापस करता है।

यद्यपि वह राजू की जालसाजी के बारे में पुलिस को सूचित करता है क्योंकि वह उसे उसकी पत्नी को बहलाफुसलाकर ले जाने पर सबक सिखाना चाहता है। कोई यह भी कह सकता है कि मार्को अन्तर्मुखी, स्व-केन्द्रित, थोड़ा रूढ़िवादी, सनकी, सख्त है परन्तु एक नैतिक रूप से उचित व्यक्ति भी है।

Velan (वेलान)

वेलान विश्वसनीय, भोला, साधारण, ईमानदार, साफ दिल वाला और अशिक्षित ग्रामीण है। वह पहला व्यक्ति है जिसका सामना राजू से होता है जब वह एक प्राचीन मन्दिर के बाहर बैठा हुआ होता है। राजू का बाहरी आवरण और उसका बोलने का तरीका वेलान को यह महसूस कराता है कि वह साधारण से ऊपर है, एक संत इसलिए वह उसे अपने सारे रहस्य बता देता है । जब उसे अपनी समस्या का तार्किक एवं दार्शनिक जवाब मिलता है, वह राजू का सच्चा शिष्य बन जाता है और ग्रामीणों को उस पर विश्वास करवा देता है । वेलान की अंध भक्ति डिगती नहीं है उस समय भी जब राजू उसे अपने भूतकाल के जीवन के बारे में सत्य बता देता है।

उसके चेहरे पर गम्भीर भाव आ जाते हैं, परन्तु वह उसे निरन्तर पवित्र मानता रहता है । वह अन्य ग्रामीणों के साथ, अंधविश्वासी है कि इन पवित्र हृदय संत का उपवास बारिश ला सकता है। वह स्वयं उसके साथ एक प्रतीकात्मक उपवास रखता है। जैसे ही स्वामीजी का स्वास्थ्य गिरता है, वह अत्यधिक जुड़ाव महसूस करता है। यह वेलान की अंध भक्ति ही है जो राजू में परिवर्तन लाती है, जो बहुत ही गम्भीरता के साथ भोले-भाले ग्रामीणों के लिए अपना बलिदान करने का फैसला करता है। जैसे ही उपन्यास राजू के साथ वेलान की बातचीत से प्रारम्भ होता है, यह इसी प्रकार से स्वामी राजू के अन्तिम शब्दों के साथ समाप्त होता है, "वेलान, पहाड़ियों पर बरसात हो रही है........।"

Raju's Mother (राजू की माँ) 

राजू की माँ भारतीय पितृसत्तात्मक परिवार की एक विशिष्ट माँ है, वह पूर्णतः अपने परिवार के प्रति समर्पित है और अपनी जिम्मेदारियों को बहुत सावधानी से पूर्ण करती है। वह बहुत स्नेहमयी है। अपने बेटे राजू को सजाधजाकर एक बच्चे की भाँति तैयार करती है और उसे भारतीय महाकाव्यों से कहानियाँ कहती है। वह अपने पति के साथ सहयोग करती है और कभी-कभी शिकायत, ताड़ना देने वाली पत्नी की तरह व्यवहार करती है। वह बहुत धार्मिक महिला है। प्रार्थना करती है और भगवान के समक्ष ध्यान लगाकर बैठती है।

जब रोजी उसके साथ रहने के लिए आती है, प्रारम्भ में वह दयालु और अच्छी मेजबान है । यद्यपि, बाद में, जैसेकि वह राजू के सम्बन्धों से सहमत नहीं थी, वह उससे रूखेपन से बात करती है और उसे घर से बाहर निकालने की हर कोशिश करती है। जब वह राजू को छोड़ने का निश्चय कर लेती है वह बहुत दुःखी होती है और उसकी आवाज में एक असाधारण सोच है जब वह उसे उसके स्वास्थ्य के बारे में सावधान रहने को कहती है। वह बहुत परेशान होती है जब राजू को जेल होती है। वह दयालु है, सोचने-समझने वाली महिला है। दूसरों की तकलीफ में सहायक बनती है परन्तु गलत बातों को सहन नहीं कर सकती है।

Raju’S Maternal Uncle

(राजू के मामा) राजू के मामा आकाश से आई विपत्ति की भाँति उपन्यास में आते हैं। वह शारीरिक रूप से मजबूत हैं, बड़ी जमीन के मालिक हैं और राजू के पारिवारिक मामलों में एक दयालु सलाहकार और निदेशक हैं। वह बड़े ही सख्त हैं, सख्त अनुशासनप्रिय; राजू उससे प्रायः डरा करता था यहाँ तक कि बचपन में भी डरता था। वह राजू की माँ के द्वारा राजू को फटकारने के लिए बुलाया जाता है एवं रोजी से छुटकारा पाने के लिए सहायता के लिए बुलाया जाता है। वह, स्वयं भी, राजू-रोजी के सम्बन्धों को घृणित तिरस्कारित मानता है।

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वह राजू को चेतावनी देता है कि वह रोजी को उनके घर से भगा दे और उसे धमकी देता है कि इसके गम्भीर परिणाम होंगे। वह बहुत ही कड़ी भाषा और गालियाँ प्रयोग करता है। जब वह अपने प्रयासों में सफल नहीं होता है, वह अपनी बहिन से कहता है कि वह उसके साथ उसके गाँव चले। वह कहता है कि जब तक वह जिन्दा है, वह अपनी बहिन को नीचा नहीं देखने देगा। वह अपने आपको बहुत जिम्मेदार, परवाह करने वाला और प्रेममय भाई साबित करता है।
 

Bhagya
Last Updated on Aug. 23, 2022, 5:54 p.m.
Published Aug. 23, 2022