RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 1 स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था

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RBSE Class 11 Economics Chapter 1 Notes स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था

→ परिचय:
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान संरचना अत्यन्त प्राचीन है। भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व दो सौ वर्षों तक ब्रिटिश शासन के अधीन रहा। ब्रिटिश शासन का मुख्य उद्देश्य इंग्लैण्ड के औद्योगीकरण हेतु भारतीय अर्थव्यवस्था को एक कच्चा माल प्रदायक बनाए रखना था। ब्रिटिश शासन की अधिकांश नीति शोषणकारी रही।

→ औपनिवेशिक शासन के अन्तर्गत निम्न:
स्तरीय आर्थिक विकास-ब्रिटिश शासन से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान किन्तु सम्पन्न थी तथा भारत में कई उद्योग काफी सम्पन्न अवस्था में थे। औपनिवेशक शासकों की नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल स्वरूप बदल डाला एवं इन नीतियों के माध्यम से उन्होंने भारतीयों का शोषण किया। 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर काफी कम रह गई।

→ कृषि क्षेत्रक:
ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान ही बनी रही। ब्रिटिश शासनकाल में कृषि अत्यन्त पिछड़ गई, कृषि उत्पादकता में कमी आई, जमींदारों द्वारा शोषण किया गया तथा भारी मात्रा में लगान वसूल किया गया। कृषि में निम्न उत्पादकता के कई कारण थे, जैसे दोषपूर्ण जमींदारी व्यवस्था, प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, उर्वरकों का नगण्य प्रयोग आदि। ब्रिटिश काल में देश के कुछ क्षेत्रों में कृषि का व्यवसायीकरण भी हुआ, जिससे नकदी फसलों की उत्पादकता में वृद्धि हुई। लेकिन कुल मिलाकर भारतीय कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में थी।

→ औद्योगिक क्षेत्रक:
औपनिवेशिक व्यवस्था के अन्तर्गत परम्परागत उद्योगों एवं शिल्पकलाओं का पतन हुआ। भारत मुख्य रूप से कच्चे माल का निर्यातक एवं निर्मित माल का आयातक बन गया जिसका भारतीय उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अवश्य कुछ आधुनिक उद्योगों का धीमी गति से विकास हुआ। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में लोहा एवं इस्पात उद्योग तथा दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् सीमेन्ट, कागज आदि के कुछ कारखाने स्थापित हुए।

RBSE Class 11 Economics Notes Chapter 1 स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था 

→ विदेशी व्यापार:
ब्रिटिश शासन काल के दौरान अंग्रेजों की दोषपूर्ण नीतियों के कारण विदेशी व्यापार की संरचना, स्वरूप एवं आकार पर विपरीत प्रभाव पड़ा। इस समय भारत कच्चे माल को निर्यात करता था तथा निर्मित माल को आयात करता था। भारत का अधिकांश व्यापार इंग्लैण्ड के साथ ही होता था।

→ जनांकिकीय परिस्थिति:
भारत की जनसंख्या के विस्तृत ब्यौरे सर्वप्रथम 1981 की जनगणना के तहत एकत्रित किए गए। 1921 के पश्चात् देश की जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हुई। उस समय साक्षरता दर अत्यन्त कम थी एवं सकल मृत्यु दर व शिशु-मृत्यु दर काफी ऊँची थी। अधिकांश लोगों को जन स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं थीं। देश में निर्धनता व्याप्त थी।

→ व्यावसायिक संरचना:
औपनिवेशिक काल में 70-75 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में, विनिर्माण क्षेत्र में 10 प्रतिशत एवं सेवा क्षेत्र में 15-20 प्रतिशत जनसंख्या लगी हुई थी। उस समय देश में बड़ी मात्रा में क्षेत्रीय विषमता | व्याप्त थी।

→ आधारित संरचना:
औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों के हितों की पूर्ति हेतु रेल, पत्तनों, जल परिवहन एवं डाकतार का विकास हुआ लेकिन सड़क मार्ग का अभाव बना रहा। 1850 के पश्चात् देश में रेलों का विकास प्रारम्भ हुआ।
अतः भारत पर अंग्रेजों के 200 वर्षों के शासन का प्रभाव लगभग सभी आर्थिक क्षेत्रों पर पड़ा तथा स्वतन्त्रता की | पूर्व संध्या पर देश के सम्मुख अनेक चुनौतियाँ मौजूद थीं।

Prasanna
Last Updated on July 4, 2022, 11:51 a.m.
Published July 4, 2022