RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 3 उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण: एक समीक्षा

Rajasthan Board RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 3 उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण: एक समीक्षा Important Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 3 उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण: एक समीक्षा

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

प्रश्न 1. 
भारत में नवीन आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया कब प्रारम्भ।
(अ) वर्ष 1980 से 
(ब) वर्ष 1985 से
(स) वर्ष 1991 से 
(द) वर्ष 2001 से 
उत्तर:
(स) वर्ष 1991 से 

RBSE Class 11 Economics Important Questions Chapter 3 उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण: एक समीक्षा 

प्रश्न 2. 
भारत में वर्ष 1981 में निम्न में से कौनसा संकट उत्पन्न हुआ? 
(अ) विदेशी ऋणों सम्बन्धी संकट 
(ब) विदेशी मुद्रा कोष में कमी 
(स) आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में तेजी
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 3. 
भारत में सरकार का व्यय, आय से अधिक होने पर वित्त व्यवस्था का स्रोत है।
(अ) सरकारी बैंकों से उधार लेना
(ब) जनसाधारण से उधार लेना 
(स) अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से उधार लेना
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 4. 
किस संस्था को 'विश्व बैंक' के नाम से जाना जाता है?
(अ) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष 
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक 
(स) विश्व व्यापार संगठन
(द) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम - संघ 
उत्तर:
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक 

प्रश्न 5. 
भारत सरकार द्वारा वर्ष 1991 में विश्व बैंक तथा - अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेने पर, भारत सरकार पर क्या शर्ते लगाई? 
(अ) सरकार उदारीकरण करेगी 
(ब) निजी क्षेत्र पर लगे प्रतिबन्धों को हटाएगी 
(स) सरकार सरकारी हस्तक्षेप कम करेगी
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 6. 
भारत सरकार द्वारा उदारीकरण के अन्तर्गत मुख्य रूप से किस क्षेत्र में सुधार किए गए?
(अ) औद्योगिक क्षेत्रक 
(ब) वित्तीय क्षेत्रक 
(स) व्यापार तथा निवेश क्षेत्रक 
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 7.
भारत में नवीन सुधार प्रक्रिया के अन्तर्गत व्यापार नीतियों के सुधार का लक्ष्य था।
(अ) आयात और निर्यात पर परिमाणात्मक प्रतिबन्धों की समाप्ति 
(ब) प्रशुल्क दरों में कटौती 
(स) आयातों के लिए लाइसेन्स प्रक्रिया की समाप्ति
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 8. 
विश्व व्यापार संगठन (WTO) का गठन हुआ।
(अ) 1985 में 
(ब) 1990 में 
(स) 1995 में 
(द) 2000 में।
उत्तर:
(स) 1995 में 

रिक्त स्थान वाले प्रश्ननीचे दिए गए वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करें: 

प्रश्न 1. 
अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक को सामान्यत ............. के नाम से जाना जाता है।
उत्तर:
विश्व बैंक

प्रश्न 2. 
भारत में वित्तीय क्षेत्रक का नियमन ........... का दायित्व है।
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक

प्रश्न 3. 
सरकार की कराधान और सार्वजनिक व्यय नीतियों को सामूहिक रूप से ............. कहा जाता है।
उत्तर:
राजकोषीय नीति 

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प्रश्न 4. 
भारत में वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2016 कानून ............ में लागू हुआ।
उत्तर:
जुलाई 2017

प्रश्न 5. 
किसी सार्वजनिक क्षेत्रक के उद्यमों द्वारा जनसामान्य को इक्विटी की बिक्री के माध्यम से निजीकरण को ............. कहा जाता है।
उत्तर:
विनिवेश

प्रश्न 6. 
विश्व व्यापार संगठन का गठन .............. में किया गया। 
उत्तर:
1995 

सत्य / असत्य वाले प्रश्ननीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए:

प्रश्न 1. 
अर्थव्यवस्था के खुलने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा विदेशी विनिमय रिजर्व में तेजी से वृद्धि हुई है। 
उत्तर:
सत्य 

प्रश्न 2. 
स्टील ऑथोरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड भारत की एक महारत्न कम्पनी है।
उत्तर:
सत्य 

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प्रश्न 3. 
बाह्य प्रायण में कम्पनियाँ किसी बाहरी स्रोत या संस्था में नियमित सेवाएँ प्राप्त करती हैं।
उत्तर:
सत्य 

प्रश्न 4. 
व्यापार और सीमा शुल्क महासंधि के स्थान पर 1991 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई थी। 
उत्तर:
असत्य 

प्रश्न 5. 
भारत में 2007 - 12 में सकल घरेलू उत्पात की वृद्धि दर 5.6 प्रतिशत रही। 
उत्तर:
असत्य 

प्रश्न 6. 
भारत में सेवा क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान निरन्तर बढ़ रहा है। 
उत्तर:
सत्य 
 
मिलान करने वाले प्रश्ननिम्न को सुमेलित कीजिए:

प्रश्न 1. 

1. 1990-91 में भारत का विनिमय रिजर्व

(अ) कोटा

2. 2014-15 में भारत का विनिमय रिजर्व

(ब) प्रत्यक्ष कर

3. बैंक दर का सम्बन्ध

(स) 6 बिलियन डॉलर

4. सार्वजनिक व्यय का सम्बन्थ

(द) 321 बिलियन डॉलर

5. अप्रशुल्क अवरोधक

(य) मौद्रिक नीति से

6. सम्पत्ति कर

(र) राजकोषीय नीति से

उत्तर:

1. 1990-91 में भारत का विनिमय रिजर्व

(स) 6 बिलियन डॉलर

2. 2014-15 में भारत का विनिमय रिजर्व

(द) 321 बिलियन डॉलर

3. बैंक दर का सम्बन्ध

(य) मौद्रिक नीति से

4. सार्वजनिक व्यय का सम्बन्थ

(र) राजकोषीय नीति से

5. अप्रशुल्क अवरोधक

(अ) कोटा

6. सम्पत्ति कर

(ब) प्रत्यक्ष कर


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
1991 के आर्थिक संकट के समय भारत को किन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा ऋण मिला था? नाम लिखें।
उत्तर:
उस समय अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक) तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण मिला।

प्रश्न 2. 
विश्व बैंक का नाम लिखिए। 
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक।

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प्रश्न 3. 
नवीन आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत विशष रूप से किन क्षेत्रों में सुधार किया गया?
उत्तर:
नवीन आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत औद्योगिक क्षेत्रक, वित्तीय क्षेत्रक, कर सुधार, विदेशी विनिमय बाजार, व्यापार तथा निवेश क्षेत्रक में सुधार किया गया।

प्रश्न 4. 
नवीन आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया कब प्रारम्भ
उत्तर:
नवीन आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया वर्ष 1991 से प्रारम्भ हुई।

प्रश्न 5. 
वर्ष 1991 में भारत सरकार के सम्मुख उपस्थित कोई दो संकट बताइए।
उत्तर:

  1. विदेशी ऋणों से सम्बन्धी संकट
  2. विदेश मुद्रा कोष का अभाव।

प्रश्न 6. 
विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा ऋण देते समय भारत सरकार के सम्मुख रखी किन्हीं दो शर्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सरकार उदारीकरण करेगी। 
  2. निजी क्षेत्र पर लगे प्रतिबन्ध में कमी करना। 

प्रश्न 7. 
आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत व्यापारिक नीतियों में सुधार के कोई दो लक्ष्य बताइए।
उत्तर:

  1. आयात और निर्यात पर परिमाणात्मक प्रतिबन्धों की समाप्ति।
  2. प्रशुल्क दरों में कटौती।

प्रश्न 8. 
भारत में नवीन आर्थिक नीति अपनाने की क्या आवश्यकता पड़ी?
उत्तर:
वर्ष 1991 में भारत में भीषण आर्थिक एवं वित्तीय संकट पैदा हो गया था अत: उसे दूर करने के लिए नवीन आर्थिक नीति अपनाई गई।

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प्रश्न 9. 
नवीन आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत औद्योगिक क्षत्र में आर्थिक सुधार हेतु उठाए गए कोई दो कदम बताइए।
उत्तर:

  1. उद्योगों को लाइसेन्स से छूट प्रदान की गई।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र हेतु आरक्षित उद्योगों की संख्या कम की गई। 

प्रश्न 10. 
आर्थिक सुधारों एवं उदारीकरण की नीति की कोई दो उपलब्धियाँ बताइए। 
उत्तर:

  1. इससे आर्थिक विकास दर में वृद्धि हुई
  2. आर्थिक सुधारों के परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 11. 
निजीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
सार्वजनिक उपक्रमों की सम्पत्ति तथा प्रबन्ध को निजी हाथों में सौंपना निजीकरण कहलाता है।

प्रश्न 12. 
निजीकरण के पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए। 
उत्तर:

  1. राजकीय उपक्रमों की कुशलता में वृद्धि करना। 
  2. सार्वजनिक उपक्रमों की लाभदायकता में वृद्धि करना।

प्रश्न 13. 
बाह्य प्रापण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कम्पनियों द्वारा किसी बाह्य स्रोत या संस्था से नियमित सेवाएँ प्राप्त करना बाह्य प्रापण कहलाता है।

प्रश्न 14. 
भारत में किस प्रक्रिया के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण किया गया?
उत्तर:
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का विनिवेश की प्रक्रिया के माध्यम से निजीकरण किया जा रहा है।

प्रश्न 15. 
वैश्वीकरण का अर्थ बताइए। 
उत्तर:
प्रत्येक देश का अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूँजी एवं बौद्धिक सम्पदा का अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान ही वैश्वीकरण कहलाता है।

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प्रश्न 16. 
भारत में वैश्वीकरण की नीति के कोई दो सकारात्मक प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. भारत के निर्यातों में वृद्धि हुई है। 
  2. भारत की विदेशी ऋणों पर निर्भरता में कमी आई

प्रश्न 17. 
विनिवेश नीति का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार द्वारा अपनी पूंजी को वित्तीय संस्थाओं एवं जनता के लिए निर्गमित करना।

प्रश्न 18. 
भारत की किन्हीं दो महारत्न कम्पनियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. स्टील ऑथोरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड (SAIL)
  2. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (IOC)

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प्रश्न 19. 
विश्व व्यापार संगठन (WTO) का गठन किस वर्ष किया गया?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन (WTO) का गठन वर्ष 1995 में किया गया।

प्रश्न 20. 
व्यापार और सीमा शुल्क महासन्धि (GATT) के स्थान पर किस संगठन की स्थापना की गई?
उत्तर:
व्यापार और सीमा शुल्क महासन्धि (GATT) के स्थान पर विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई।

प्रश्न 21. 
व्यापार और सीमा शुल्क महासन्धि (GATT) की रचना किस वर्ष की गई?
उत्तर:
व्यापार और सीमा शुल्क महासन्धि की रचना वर्ष 1948 में की गई।

प्रश्न 22. 
द्विपक्षीय व्यापार का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
दो देशों के मध्य होने वाले व्यापार को द्विपक्षीय व्यापार कहा जाता है।

प्रश्न 23. 
आर्थिक सुधार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आर्थिक सुधार से अभिप्राय उन सभी उपायों से है जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था को अधिक कुशल, प्रतिस्पर्धी एवं विकसित बनाना है।

प्रश्न 24. 
घाटे के बजट का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
घाटे के बजट में सरकार के व्यय, सरकार की आय से अधिक होते हैं।

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प्रश्न 25. 
वर्ष 1991 के सुधारों के अन्तर्गत लाइसेन्स की अनिवार्यता की श्रेणी में कितने उद्योगों को रखा गया?
उत्तर:
वर्ष 1991 में छ: प्रकार के उद्योगों को लाइसेन्स लेना अनिवार्य किया गया।

प्रश्न 26. 
भारत सरकार द्वारा आयातों के नियन्त्रण हेतु , लगाए जाने वाले किसी एक अप्रशुल्क अवरोधक का नाम न बताइए।
उत्तर:
कोटा।

प्रश्न 27. 
भारत सरकार द्वारा नवीन आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत किन नीतियों को अपनाया?
उत्तर:

  1. उदारीकरण 
  2. निजीकरण 
  3. वैश्वीकरण।

प्रश्न 28. 
प्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं? कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर वे कर हैं जो व्यक्तियों की आय और व्यावसायिक उद्यमों के लाभ पर लगाए जाते हैं, जैसेआयकर। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
भारत में आर्थिक सुधारों के औचित्य की व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:
भारत में आर्थिक सुधारों का दौर जुलाई, 1991 से प्रारम्भ हुआ। इसके लिए अनेक कारण जिम्मेदार थे। इससे पूर्व भारत में नियोजित विकास में अनेक दोष उत्पन्न हो गए थे। 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे वित्तीय संकट में फंस गई थी तथा उस समय विदेशी मुद्रा कोष न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया था। विदेशों में भारत की साख घट गई थी। अतः देश में आर्थिक सुधारों की नीति अपनाई गई।

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प्रश्न 2. 
भारत के नव - आर्थिक सुधारों से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
भारत में वर्ष 1991 में सरकार ने अर्थव्यवस्था को सरकारी तन्त्र के कठोर नियन्त्रणों से निकाल कर बाजारोन्मुख एवं प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए आर्थिक सुधारों तथा आर्थिक उदारीकरण की अनेक नीतियाँ प्रारम्भ की जिनें नवीन आर्थिक सुधारों की संज्ञा दी गई। सरकार ने इन सुधारों के तहत निजीकरण एवं उदारीकरण की नीति को अपनाया तथा वैश्वीकरण की नीति के तहत भारतीय अर्थव्यवस्था के द्वार विदेशी निवेशकों हेतु खोल दिए।

प्रश्न 3. 
वैश्वीकरण, निजीकरण तथा उदारीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैश्वीकरण - वैश्वीकरण का तात्पर्य देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने से है। 
निजीकरण - किसी सार्वजनिक उपक्रम की सम्पत्तियाँ तथा प्रबन्ध को निजी व्यवसायी अथवा उपक्रम को हस्तान्तरित करना निजीकरण कहलाता है।

उदारीकरण - उदारीकरण का अर्थ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर लगे हुए नियन्त्रणों को उदार बनाने की प्रक्रिया से है।

प्रश्न 4. 
नवीन आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत औद्योगिक क्षेत्र में किए गए कोई पाँच आर्थिक सुधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. देश में 6 उद्योगों को छोड़कर सभी उद्योगों को लाइसेन्स से छूट प्रदान कर दी गई।
  2. सार्वजनिक उपक्रमों का कार्यक्षेत्र अत्यन्त सीमित कर दिया गया।
  3. सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश की नीति को अपनाया गया।
  4. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा देने का प्रयास - किया गया।
  5. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निवेश सीमा में बढ़ोतरी की गई।

प्रश्न 5. 
निजीकरण तथा इसके भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभावों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
निजीकरण के फलस्वरूप देश में उत्पादकता एवं कार्यकुशलता में वृद्धि हुई है। निजीकरण से सार्वजनिक उपक्रमों को राजनैतिक प्रभावों एवं प्रतिबद्धताओं से मुक्ति मिली है तथा अधिक कार्यकुशलता से कार्य करने के कारण उत्पादन लागत में भी कमी आई है। परन्तु इन सब सकारात्मक प्रभावों के उपरान्त भी निजीकरण के कारण आर्थिक असमानताओं एवं केन्द्रीयकरण की प्रवृत्तियों में वृद्धि हुई है।

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प्रश्न 6. 
वैश्वीकरण के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण से भारतीय अर्थव्यवस्था पर अनेक सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। इससे भारतीय व्यापार पर लगे प्रतिबन्धों की समाप्ति हुई जिससे विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई। वैश्वीकरण से भारत में पूंजी के स्वतन्त्र आवागमन के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण हुआ। वैश्वीकरण से भारत में नई तकनीकी का आसानी से आयात हुआ जिससे उत्पादकता में वृद्धि हुई तथा उत्पादन लागत में कमी आई है। इससे देश के निर्यातों में वृद्धि हुई एवं उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार हुआ।

प्रश्न 7. 
निजीकरण का क्या अर्थ है? इसके तीन उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
निजीकरण - किसी सार्वजनिक उपक्रम की सम्पत्तियाँ तथा प्रबन्ध को निजी व्यवसायी अथवा उपक्रम को हस्तान्तरित करना निजीकरण कहलाता है।
उद्देश्य:

  1. सार्वजनिक उपक्रमों की कार्यकुशलता एवं उत्पादकता में वृद्धि करना।
  2. अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में वृद्धि करना।
  3. देश के औद्योगिक विकास को तीव्र करना।

प्रश्न 8. 
भारत के संदर्भ में वैश्वीकरण के दो सकारात्मक तथा दो नकारात्मक प्रभाव लिखिए। 
उत्तर:
वैश्वीकरण के दो सकारात्मक प्रभाव:

  1. वैश्वीकरण के फलस्वरूप भारत के विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई है।
  2. वैश्वीकरण देश के औद्योगिक विकास में सहायक रहा है। 

वैश्वीकरण के दो नकारात्मक प्रभाव:

  1. वैश्वीकरण से विदेशी आयातित वस्तुओं के कारण हमारे उद्योगों के सम्मुख प्रतिस्पर्धा बढ़ी है।
  2. वैश्वीकरण का भारत में कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

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प्रश्न 9. 
निजीकरण के औचित्य के पक्ष में कोई छः तर्क लिखिए।
उत्तर:

  1. निजीकरण से राजकीय उपक्रमों की अकुशलता में कमी आई है।
  2. निजीकरण से सरकारी आय में वृद्धि हुई है।
  3. निजीकरण से राजकीय उपक्रमों की कार्यकुशलता एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है। 
  4. निजीकरण से उद्योगों की प्रतिस्पर्सात्मक क्षमता में वृद्धि हुई है।
  5. निजीकरण से देश के औद्योगिक विकास में तीव्रता आई है। 
  6. निजीकरण से उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार हुआ

प्रश्न 10. 
वैश्वीकरण के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले कोई छः सकारात्मक प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. वैश्वीकरण से देश में विदेशी मुद्रा भण्डारों में वृद्धि हुई है।
  2. वैश्वीकरण से भारत के निर्यातों में वृद्धि हुई है। 
  3. वैश्वीकरण से देश के विदेशी व्यापार में वृद्धि
  4. वैश्वीकरण के फलस्वरूप विदेशी ऋणों पर निर्भरता में कमी आई है।
  5. वैश्वीकरण देश के औद्योगिक विकास में सहायक रहा है।
  6. वैश्वीकरण से देश के प्रौद्योगिकी के स्तर में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।

प्रश्न 11. 
वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत वित्तीय क्षेत्रक में क्या सुधार किए गए?
उत्तर:
वित्तीय क्षेत्रक में सुधार - नई आर्थिक सुधार नीति के अन्तर्गत वित्तीय क्षेत्र में सुधार करने हेतु अनेक कदम उठाए गए। भारत में वित्तीय क्षेत्र में निजी एवं विदेशी बैंकों को स्थापना की अनुमति प्रदान की गई। बैंकों में विदेशी पूँजी निवेश की सीमा में वृद्धि की गई। इसके साथ ही विभिन्न विदेशी वित्तीय संस्थाओं, व्यापारिक बैंकों, म्युचुअल फण्ड तथा पेंशन कोष आदि हेतु भारतीय अर्थव्यवस्था को खोल दिया गया।

प्रश्न 12. 
उदारीकरण की प्रक्रिया के दौरान व्यापार एवं निवेश नीति में क्या सुधार किए गए?
उत्तर:
व्यापार एवं निवेश नीति में सुधार - इस नीति में अर्थव्यवस्था में औद्योगिक उत्पादों और विदेशी निवेश तथा प्रौद्योगिकी की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की क्षमता को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापार एवं निवेश व्यवस्थाओं का उदारीकरण प्रारम्भ किया गया। साथ ही देश में आयात एवं निर्यातों पर लगाए अप्रशुल्क प्रतिबन्धों को समाप्त किया गया एवं प्रशुल्क दरों में कटौती की गई। आयात लाइसेन्स व्यवस्था को समाप्त किया गया तथा निर्यात शुल्क को भी समाप्त किया गया।

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प्रश्न 13. 
भारत में आर्थिक सुधारों से पूर्व औद्योगिक क्षेत्रक की नियमन प्रणालियों को किस प्रकार से लागू किया गया था?
उत्तर:
भारत में नियमन प्रणालियों को निम्न प्रकार से लागू किया गया था

  1. सुधारों से पूर्व औद्योगिक नियमन हेतु औद्योगिक लाइसेन्स की व्यवस्था को अपनाया गया था।
  2. अनेक उद्योगों में निजी क्षेत्र के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाए गए थे।
  3. लघु उद्योगों हेतु वस्तुओं को आरक्षित कर रखा था तथा कीमत एवं वितरण पर भी अनेक नियन्त्रण थे।

प्रश्न 14. 
भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत औद्योगिक क्षेत्रक में किए गए किन्हीं तीन सुधारों, का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. भारत में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत 6 उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों को लाइसेन्स की अनिवार्यता से मुक्त कर दिया गया।
  2. इस प्रक्रिया के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र को अत्यन्त सीमित कर दिया गया, शेष सभी क्षेत्र निजी क्षेत्र हेतु खोल दिए गए।
  3. लघु उद्योगों हेतु वस्तुओं को आरक्षित श्रेणी से बाहर कर दिया गया।

प्रश्न 15. 
"आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रत्यक्ष करों में कमी की गई।" इसके पीछे क्या कारण?
उत्तर:
आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रत्यक्ष मो| करों में कमी की गई क्योंकि उच्च कर की दरों पर करयशवंचन अर्थात् कर की चोरी होती थी जिस कारण सरकार की जी करों से प्राप्त आय कम हो जाती थी। इसके अतिरिक्त करों की दर कम करने से लोगों को बचत की प्रेरणा मिलती है तथा लोग स्वेच्छा से अपनी आय का विवरण दे देते हैं। बचतों में वृद्धि होने पर अर्थव्यवस्था में निवेश में भी वृद्धि होती है। अत: आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रत्यक्ष करों में कमी की गई।

प्रश्न 16. 
आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत विदेशी विनिमय के क्षेत्र में क्या सुधार किए गए?
उत्तर:
भारत में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत विदेशी विनिमय के क्षेत्र में अनेक सुधार किए गए। सबसे पहले तो भुगतान सन्तुलन की समस्या दूर करने हेतु भारतीय रुपये का अवमूल्यन किया गया। इससे विदेशी मुद्रा के आगमन में वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त विदेशी विनिमय बाजार में रुपये के मूल्य के निर्धारण को भी सरकारी नियन्त्रण से मुक्त करने की पहल की गई।

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प्रश्न 17. 
विश्व व्यापार संगठन (WTO) पर संक्षिप्त - टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वर्ष 1995 में पूर्व में प्रचलित व्यापार और सीमा शुल्क महासन्धि (GATT) के स्थान पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना की गई। इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य सभी देशों को विश्व व्यापार में समान अवसर प्रदान करना था। साथ ही ऐसी नियम आधारित व्यवस्था की स्थापना करना था जिससे विश्व व्यापार की रुकावटें दूर हो सकें। इस संगठन का एक उद्देश्य साधनों का इष्टतम उपयोग करना एवं पर्यावरण संरक्षण भी है।

प्रश्न 18. 
"विश्व व्यापार संगठन में भारत की सदस्यता का कोई औचित्य नहीं है।" इस कथन के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
कुछ विद्वानों का मानना है विश्व व्यापार संगठन का अधिकांश लाभ केवल विकसित राष्ट्रों को ही प्राप्त हुआ। साथ ही विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में दी जाने वाली कृषि सहायिकी का भी विरोध किया गया। इसके अलावा विकसित देशों ने अपने बाजारों को किसी न किसी बहाने से अन्य देशों हेतु बन्द ही कर रखा है जिससे विकासशील देशों को कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं हुआ है। अत: विश्व व्यापार संगठन में भारत की सदस्यता का कोई औचित्य नहीं है।

प्रश्न 19. 
नवीन आर्थिक सुधारों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले कोई चार प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. इन सुधारों के फलस्वरूप देश में विकास दर में वृद्धि हुई तथा उत्पादन में भी वृद्धि हुई। 
  2. इन आर्थिक सुधारों का कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
  3. नवीन आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप घरेलू उद्योगों की समृद्धि दर में कमी आई।
  4. नवीन आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप जन-कल्याण कार्यों पर व्यय की जाने वाली राशि में कमी आई है।

प्रश्न 20. 
उदारीकरण का अर्थ बताते हुये इसके अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु क्या-क्या कदम उठाये गये?
उत्तर:
उदारीकरण - उदारीकरण का अर्थ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर लगे हुए नियन्त्रणों को उदार बनाने की प्रक्रिया से है। 

भारत में उदारीकरण के तहत निम्न सुधार किए:

  1. औद्योगिक क्षेत्रक का विनियमीकरण किया गया। 
  2. वित्तीय क्षेत्रक में सुधार किए गए। 
  3. कर व्यवस्था में सुधार किए गए। 
  4. सार्वजनिक क्षेत्रक को सीमित किया गया।
  5. करों में कमी की गई एवं कर प्रणाली को सरल बनाया गया।
  6. विदेशी विनिमय में सुधार के प्रयास किए गए।
  7. प्रशुल्क दरों में कमी की गई एवं परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को समाप्त किया गया।

प्रश्न 21. 
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक देश का अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूँजी एवं बौद्धिक सम्पदा का अप्रतिबन्धित आदान - प्रदान ही वैश्वीकरण कहलाता है। अन्य शब्दों में किसी वस्तु, सेवा, विचार, पद्धति अथवा सिद्धान्त को विश्वव्यापी बनाना ही उस वस्तु, सेवा, विचार, पद्धति अथवा सिद्धान्त का वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण में आवश्यक है कि आदानप्रदान के मार्ग में किसी देश द्वारा अवरोध उत्पन्न नहीं किया

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प्रश्न 22. 
औद्योगिक क्षेत्रक के विनियमीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
औद्योगिक क्षेत्रक का विनियमीकरण-इसके अन्तर्गत औद्योगिक लाइसेन्सिग नीति का सरलीकरण किया गया। इस विनियमीकरण की प्रक्रिया में कई प्रतिबन्धित उद्योगों को निजी क्षेत्र हेतु खोल दिया गया। अधिकांश उद्योगों हेतु लाइसेन्स की अनिर्वायता समाप्त कर दी गई। सार्वजनिक क्षेत्रक को बहुत सीमित कर दिया गया, सार्वजनिक क्षेत्र हेतु कछ उद्योगों को छोडकर शेष सभी उद्योगों को निजी क्षेत्र हेतु खोल दिया गया। लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित अनेक वस्तुएँ अनारक्षित श्रेणी में आ गईं।

प्रश्न 23. 
भारत में नवीन आर्थिक सुधारों का उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत में नवीन आर्थिक सुधारों का औद्योगिक क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा तथा औद्योगिक विकास की दर में उतार - चढ़ाव की स्थिति रही। औद्योगिक विकास की दर में कमी का मुख्य कारण उद्योगों की मांग में होने वाली कमी थी। उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के कारण आयातों पर से प्रतिबन्ध समाप्त कर दिए गए जिससे हमारे उत्पाद, सस्ते आयातों का मुकाबला नहीं कर पाए एवं उनकी मांग में गिरावट आई।

प्रश्न 24.
प्रशुल्क क्या है तथा प्रशुल्क क्यों लगाए जाते हैं?
उत्तर:
प्रशुल्क वह कर है जो आयातित वस्तुओं पर लगाए जाते हैं। प्रशुल्क दरों में परिवर्तन कर आयातित वस्तुओं की मात्रा को नियन्त्रित किया जाता है। प्रशुल्क लगाने का मुख्य उद्देश्य आयातित वस्तुओं की मात्रा को सीमित करके आन्तरिक उद्योगों को संरक्षण प्रदान किया जाता है। प्रशुल्क द्वारा आन्तरिक उद्योगों को विदेशी वस्तुओं की प्रतिस्पर्धा से बचाया जाता है।

प्रश्न 25. 
आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अन्तर्गत विदेशी बैंकों हेतु अपनाई गई नीति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नवीन आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अन्तर्गत भारत द्वारा विदेशी बैंकों को भी प्रोत्साहित किया गया है। कुछ निश्चित शर्तों को पूरा करने वाले बैंक अब रिजर्व बैंक की अनुमति के बिना भी नई शाखायें खोल सकते हैं तथा पुरानी शाखाओं को अधिक युक्तिसंगत बना सकते हैं। यद्यपि बैंकों को अब देश - विदेश से और अधिक संसाधन जुटाने की भी अनुमति है किन्तु खाता धारकों और देश के हितों की रक्षा के उद्देश्य से कुछ नियन्त्रक शक्तियाँ अभी भी रिजर्व बैंक के पास हैं। विदेशी निवेश संस्थाओं तथा व्यापारी बैंक, म्युचुअल फंड तथा पेंशन कोष आदि को भी अब भारतीय वित्तीय बाजारों में निवेश की अनुमति मिल गई है। 

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प्रश्न 26. 
भारत में कर सुधारा के अन्तर्गत अपनाई गई प्रत्यक्ष कर नीति को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
देश में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत कर नीति में भी अनेक सुधार किए गए हैं। वर्ष 1991 के पश्चात् भारत में व्यक्तिगत आय पर लगाए गए करों की दरों में निरन्तर कमी की गई है। इसके पीछे मुख्य धारणा यह थी कि उच्च कर दरों के कारण ही कर की चोरी होती है। अब यह भी स्वीकार किया जाने लगा है कि यदि करों की दरें नीची हों तो बचतों को भी बढ़ावा मिलता है तथा लोग स्वेच्छा से कर प्रदान कर देते हैं।

प्रश्न 27. 
भारत में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत कर व्यवस्था में किए गये किन्हीं चार सुधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. भारत में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत प्रत्यक्ष करों की दरों में निरन्तर कमी की गई है ताकि कर चोरी को रोका जा सके।
  2. निगम कर की दर को धीरे-धीरे कम किया गया है।
  3. अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में भी अनेक सुधार किए गए हैं।
  4. कर प्रणाली में भी सुधार किए गए हैं अब कर प्रणाली को बहुत सरल बना दिया गया है।

प्रश्न 28. 
भारत में वर्ष 1991 के पश्चात् रुपये का अवमूल्यन क्यों किया गया?
उत्तर:
भारत में वर्ष 1991 में भारत को विदेशी ऋणों के मामले में संकट का सामना करना पड़ा तथा उस समय हमारा विदेश मुद्रा रिजर्व भी नाममात्र का ही था तथा भारत के सम्मुख विदेशी ऋणों के भुगतान की सबसे बड़ी समस्या थी। अतः 1997 में भुगतान संतुलन की समस्या के तात्कालिक निदान के लिए अन्य देशों की मुद्रा की तुलना में रुपये का अवमूल्यन किया गया। इससे देश में विदेशी मुद्रा के आगमन में वृद्धि हुई।

प्रश्न 29. 
भारत सरकार ने 1991 में आर्थिक संकटों से उबरने हेतु क्या उपाय किए?
उत्तर:
भारत सरकार ने 1991 में आर्थिक संकटों से उबरने हेतु नई आर्थिक नीति की घोषणा की जिसमें उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति अपनायी। सार्वजनिक क्षेत्रों को सीमित किया, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया, लाइसेन्सिंग प्रणाली को लगभग समाप्त कर दिया, करों में कटौती की गई तथा कर प्रणाली को सरल बनाया गया, रुपये का अवमूल्यन किया गया। इसके साथ ही सरकार ने प्रशुल्क दरों में कटौती की तथा परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को समाप्त किया। सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश की नीति अपनायी।

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प्रश्न 30. 
भारत में वर्ष 1991 के पश्चात् व्यापार - नीति में किए गए किन्हीं चार सुधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. हानिकारक और पर्यावरण संवेदी उद्योगों के उत्पादों को छोड़कर, अन्य सभी वस्तुओं पर से आयात लाइसेन्स व्यवस्था समाप्त कर दी गई।
  2. अप्रेल, 2001 से कृषि पदार्थों तथा औद्योगिक उपभोक्ता पदार्थों के आयात भी मात्रात्मक प्रतिबन्धों से मुक्त कर दिए गए।
  3. भारतीय वस्तुओं का अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में स्पर्धा शक्ति बढ़ाने के लिए उन्हें निर्यात शुल्क से मुक्त कर दिया गया है।
  4. विभिन्न प्रशुल्कों की दरों में कटौती की गई है।

प्रश्न 31. 
भारत में विनिवेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
किसी सार्वजनिक क्षेत्रक के उद्यम द्वारा जन सामान्य को इक्विटी की बिक्री के माध्यम से निजीकरण को विनिवेश कहा जाता है। सरकार के अनुसार इस प्रकार की बिक्री का मुख्य ध्येय वित्तीय अनुशासन बढ़ाना और आधुनिकीकरण में सहायता देना है। यह भी अपेक्षा की गई कि निजी पूंजी और प्रबन्धन क्षमताओं का उपयोग इन सार्वजनिक उद्यमों के निष्पादन को सुधारने में प्रभावोत्पादक सिद्ध होगा। सरकार को यह भी आशा थी कि निजीकरण से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतर्वाह को भी बढ़ावा मिलेगा।

प्रश्न 32. 
आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा विदेशी विनिमय रिजर्व पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा विदेशी विनिमय रिजर्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है तथा इनमें तेजी से वृद्धि हुई है। भारत में विदेशी निवेश (प्रत्यक्ष तथा संस्थागत विदेशी निवेश) वर्ष 1990 - 91 के 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ऊपर उठकर 2016 - 17 में 36 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुँच गया है। भारत में विनिमय रिजर्व का आकार भी 1990 - 91 में 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2014 - 15 में 321 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है।

प्रश्न 33. 
आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप कृषि पर पड़ने वाले किन्हीं तीन नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. आर्थिक सुधार अवधि में कृषि क्षेत्रक में सार्वजनिक व्यय विशेषकर आधारिक संरचना अर्थात् सिंचाई, बिजली, सड़क निर्माण, बाजार सम्पकों और शोध प्रसार आदि पर व्यय में काफी कमी आई है।
  2. आर्थिक सुधारों की अवधि में उर्वरक सहायिकी की समाप्ति ने भी उत्पादन लागतों को बढ़ा दिया है, जससे छोटे एवं सीमान्त कृषकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
  3. कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क में कटौती, न्यूनतम समर्थन मूल्यों की समाप्ति तथा इन पदार्थों के आयातों पर से परिमाणात्मक प्रतिबन्ध हटाने से कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा एवं हमारे कृषकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।

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प्रश्न 34. 
वर्ष 1991 में किए आर्थिक सुधारों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1991 के सुधारों के भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पड़े। इन सुधारों से देश में आर्थिक विकास की दर बढ़ी, विदेशी मुद्रा कोष में वृद्धि हुई, औद्योगिक विकास को बल मिला, सेवा क्षेत्र में तीव्र वृद्धि हुई, विदेशी निवेश में वृद्धि हुई, देश के निर्यातों में वृद्धि हुई। किन्तु इन सुधारों से कृषि क्षेत्र के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, घरेलू उद्योगों के सम्मुख प्रतिस्पर्धा में वृद्धि हुई, जन कल्याण कार्यों पर किए जाने वाले व्यय में कमी आई, रोजगार के अवसरों में विशेष वृद्धि नहीं हुई। औद्योगिक संवृद्धि दरों में शिथिलता आई।

प्रश्न 35. 
भारत में विनिवेश के विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत सरकार ने कई सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश किया। इस प्रक्रिया के आलोचकों का कहना है कि सार्वजनिक उपक्रमों की परिसम्पत्तियों को औने - पौने दामों में निजी व्यापारियों को बेचा जा रहा है। दूसरे शब्दों में, इस प्रक्रिया से सरकार को बहुत घाटा उठाना पड़ रहा है। साथ ही, विनिवेश से प्राप्त राशि का उपक्रमों के विकास के लिए प्रयोग नहीं किया गया, न ही इसे सामाजिक आधारिक संरचनाओं के निर्माण पर खर्च किया गया। भारत में विनिवेश से प्राप्त राशि सरकार के बजट के राजस्व घाटे को कम करने में लग गई।

प्रश्न 36. 
विश्व व्यापार संगठन के ध्येय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन का ध्येय ऐसी नियम आधारित व्यवस्था की स्थापना है, जिसमें कोई देश मनमाने ढंग से व्यापार के मार्ग में बाधाएँ खड़ी न कर पाए। साथ ही, इसका ध्येय सेवाओं के सृजन तथा व्यापार को प्रोत्साहन देना भी है, ताकि विश्व के संसाधनों का इष्टतम स्तर पर प्रयोग हो और पर्यावरण का भी संरक्षण हो सके। विश्व व्यापार संगठन की संधियों में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ाने हेतु इससे वस्तुओं के साथ-साथ सेवाओं के विनिमय को भी स्थान दिया गया है। 

निबन्धात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1. 
भारत में आर्थिक सुधारों की पृष्ठभूमि को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक सुधारों की पृष्ठभूमि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में बेरोजगारी, निर्धनता एवं जनसंख्या विस्फोट की व्यापक समस्या थी जिस कारण देश के विकास हेतु सरकार को अपनी आय से अधिक व्यय करना पड़ता था। अत: सरकार द्वारा जनसाधारण, सरकारी बैंकों एवं अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा उधार लिया गया। 1980 के दशक के अन्त तक सरकार का खर्च अत्यधिक बढ़ गया तथा सरकार के सामने वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया।

आयातों में अत्यधिक वृद्धि हो गई थी। विदेशी मुद्रा कोष लगभग समाप्त हो गया। इस स्थिति में भारत सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक अर्थात् विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद मांगी। इन संस्थाओं ने भारत को कुछ शर्तों के आधार पर ऋण प्रदान किया। भारत सरकार ने इन शर्तों के आधार पर नई आर्थिक नीति की घोषणा की जिसके अन्तर्गत उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई।

इस नीति में सरकार ने दो प्रकार के उपाय अपनाए - पहला स्थायित्वकारी उपाय तथा दूसरा संरचनात्मक सुधार के उपाय। स्थायित्वकारी उपायों में अल्पकालीन उपायों को शामिल किया गया, जैसे भुगतान सन्तुलन ठीक करना, मुद्रास्फीति को नियन्त्रण करना आदि संरचनात्मक सुधारों में दीर्घकालीन उपायों को शामिल किया गया जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था की कुशलता में सुधार करना, विभिन्न क्षेत्रों के मध्य असमानता दूर करना आदि थे।

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प्रश्न 2. 
भारत में आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया में उदारीकरण के अन्तर्गत किए सुधारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया में उदारीकरण के अन्तर्गत निम्न सुधार किए गए:

(i) औद्योगिक क्षेत्रक का विनियमीकरण: 
औद्योगिक क्षत्रेक म सुधारा के अन्तगर्त आद्यागेकि लाइसासँग प्रणाला का सरलीकरण किया गया तथा अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेन्स की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया। कई प्रतिबन्धित उद्योगों को निजी क्षेत्र हेतु खोल दिया गया। सार्वजनिक क्षेत्रक के कार्यक्षेत्र को बहुत सीमित कर दिया गया, शेष निजी क्षेत्र हेतु खोल दिए गए। लघु उद्योगों हेतु आरक्षित वस्तुएँ अनारक्षित श्रेणी में आ गई। अनेक उद्योगों को बाजार द्वारा निर्धारित कीमतों की अनुमति मिल गई।

(ii) वित्तीय क्षेत्रक सुधार:
नई आर्थिक सुधार नीति के अन्तर्गत वित्तीय क्षेत्र में सुधार हेतु अनेक कदम उठाए गए। भारतीय रिजर्व बैंक की नियन्त्रक की भूमिका हटाकर उसे एक सहायक की भूमिका तक सीमित किया गया। भारत में निजी एवं विदेशी बैंकों को अनुमति प्रदान की गई। बैंकों में विदेशी पूँजी निवेश सीमा में वृद्धि की गई। विभिन्न विदेशी निवेश संस्थाओं, व्यापारिक बैंकों, म्युचुअल फण्ड तथा पेंशन कोष आदि  हेतु भारतीय अर्थव्यवस्था को खोल दिया गया।

(iii) कर व्यवस्था में सुधार:
उदारीकरण के फलस्वरूप कर व्यवस्था में भी अनेक सुधार किए गए। आयकर की दरों में वर्ष 1991 के पश्चात् निरन्तर कमी की गई, साथ ही निगम कर की दरों में भी कमी की गई है। इन आर्थिक सुधारों में अप्रत्यक्ष करों में भी सुधार हेतु प्रयास किया गया। इन सुधारों के अन्तर्गत कर प्रक्रियाओं को भी सरल बनाया गया।

(iv) विदेशी विनिमय सुधार:
इस क्षेत्र में सुधारों के अन्तर्गत सर्वप्रथम भुगतान सन्तुलन की समस्या दूर करने हेतु भारतीय रुपये का अवमूल्यन किया गया। इन सुधारों के अन्तर्गत विदेशी विनिमय बाजार में रुपये के मूल्य निर्धारण को भी सरकारी नियन्त्रण से मुक्त कराने की पहल की गई।

(v) व्यापार और निवेश नीति में सुधार:
इस नीति में अर्थव्यवस्था में औद्योगिक उत्पादों और विदेशी निवेश तथा प्रौद्योगिकी की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की क्षमता को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापार और निवेश व्यवस्थाओं का उदारीकरण, प्रारम्भ किया गया। आन्तरिक उद्योगों को संरक्षण देने हेतु आयात एवं निर्यात पर लगे परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को समाप्त किया गया, साथ ही प्रशुल्क दरों में भी कटौती की गई। आयात लाइसेन्स व्यवस्था को समाप्त किया गया, साथ ही निर्यात - शुल्क को भी हटाया गया।

प्रश्न 3. 
नवीन आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक सुधारों के प्रभावों की समीक्षा वर्ष 1991 के नवीन आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अन्तर्गत अनेक प्रकार के सुधार कार्यक्रम अपनाए गए। इन कार्यक्रमों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभाव पड़ा। आर्थिक सुधारों के प्रभावों को अग्र बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

(i) संवृद्धि और रोजगार:
आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था की समृद्धि दर में वृद्धि हुई है। भारत में सकल घरेलू उत्पाद की दर वर्ष 1981 से - 1991 के मध्य 5.6 प्रतिशत थी वह वर्ष 2007 से 2012 की अवधि में बढ़कर 8.2 प्रतिशत हो गई। अतः स्पष्ट है कि सुधार अवधि में कुल मिलाकर संवृद्धि दर में सुधार हुआ है। इस वृद्धि दर के उपरान्त भी देश में रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित नहीं हुए।

(ii) कृषि में सुधार:
आर्थिक सुधारों का कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि सुधार प्रक्रिया के दौरान कृषि आधारिक संरचना पर व्यय बहुत कम किया गया। साथ ही उर्वरक सहायिकी भी समाप्त कर दी गई अतः कृषि की विकास दर में निरन्तर गिरावट आती गई। आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क में कटौती करने तथा कृषि पदार्थों के आयातों पर परिमाणात्मक प्रतिबन्ध हटाने से भारतीय किसानों को विदेशी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा, जिसका उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

(iii) उद्योगों में सुधार:
आर्थिक सुधारों का औद्योगिक क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा तथा औद्योगिक विकास की दर में उतार - चढ़ाव की स्थिति रही तथा कई वर्षों में औद्योगिक विकास की दर काफी कम रही। औद्योगिक विकास की दर में कमी का मुख्य कारण उद्योगों की मांग में होने वाली कमी थी। उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के कारण आयातों पर से प्रतिबन्ध समाप्त कर दिए गए जिससे हमारे उत्पाद, सस्ते आयातों का मुकाबला नहीं कर पाए एवं उनकी मांग में गिरावट आई। निवेश में कमी के कारण आधारिक संरचना का भी पर्याप्त विकास नहीं हो पाया।

(iv) विनिवेश:
आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश की नीति का अनुसरण किया गया तथा |सरकार ने विनिवेश के जरिये करोड़ रुपये एकत्रित किए परन्तु इस राशि का सही सदुपयोग नहीं किया गया तथा सार्वजनिक उपक्रमों का अंश निजी क्षेत्र को सस्ते में बेचा गया। सरकार को विनिवेश प्रक्रिया से बहुत घाटा उठाना पड़ रहा है। भारत सरकार ने विनिवेश से प्राप्त राशि को न तो सार्वजनिक उपक्रमों के विकास में लगाया और न ही सामाजिक आधारिक संरचनाओं के निर्माण में खर्च किया. बल्कि यह राशि सरकार के बजट के राजस्व घाटे को कम करने में ही लग गई।

(v) सुधार एवं राजकोषीय नीति:
आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप देश में सामाजिक कल्याण एवं विकास कार्यों पर व्यय की जाने वाली राशि में निरन्तर कमी हुई है। सरकार कर-वंचना पर भी प्रभावी रोक नहीं लगा सकी। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने हेतु कई कर रियायतें दी गई जिससे सरकार का राजस्व नहीं बढ़ पाया।

(vi) अन्य प्रभाव:
भारत में आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई अन्य प्रभाव भी पड़े, जैसे - विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि, मुद्रास्फीति में कमी, निर्यातों में वृद्धि, विदेशी व्यापार में वृद्धि, विदेशी निवेश में वृद्धि इत्यादि।

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प्रश्न 4. 
आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया में भारत में औद्योगिक क्षेत्रक के विनियमीकरण पर लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत को वर्ष 1991 में विदेशी ऋण संकट का सामना करना पड़ा तथा भारत की आर्थिक स्थिति भी काफी विकट थी अत: भारत में वर्ष 1991 से आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। इस प्रक्रिया में देश में अनेक आर्थिक सुधार किए गए। इन्हीं आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत देश के औद्योगिक क्षेत्र का विनियमीकरण किया गया। आर्थिक सुधारों की अवधि से पूर्व भारत में नियमन प्रणालियों को अनेक प्रकार से लागू किया गया था, जिनमें मुख्य प्रणालियाँ निम्न प्रकार थी:

  1. वर्ष 1991 से पूर्व औद्योगिक लाइसेन्स की कठोर व्यवस्था थी जिसमें उद्यमी को एक फर्म स्थापित करने, बंद करने या उत्पादन की मात्रा का निर्धारण करने के लिए किसी न किसी सरकारी अधिकारी की अनुमति प्राप्त करनी होती थी।
  2. आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से पूर्व अनेक उद्योगों में निजी उद्यमियों का प्रवेश निषिद्ध था।
  3. कुछ वस्तुओं का उत्पादन केवल लघु उद्योगों में| ही किया जाता था।
  4. सभी निजी उद्यमियों को कुछ औद्योगिक उत्पादों की कीमतों के निर्धारण तथा वितरण के बारे में भी अनेक नियन्त्रणों का पालन करना पड़ता था। 

भारत में वर्ष 1991 में आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया प्रारम्भ की तथा इसके अन्तर्गत औद्योगिक क्षेत्रक का विनियमीकरण किया गया। वर्ष 1991 के बाद से आरम्भ हुई सुधार नीतियों के अन्तर्गत अनेक प्रतिबन्धों को समाप्त कर दिया गया। एल्कोहल, सिगरेट, जोखिम भरे रसायनों, औद्योगिक विस्फोटकों, इलेक्ट्रोनिकी, विमानन तथा औषधि भेषज, इन छ: उत्पादन श्रेणियों को छोड़ अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेन्सिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्रक के लिए सुरक्षित उद्योर्गों में भी केवल प्रतिरक्षा उपकरण, परमाणु ऊर्जा उत्पादन और रेल परिवहन ही बचे हैं। लघु उद्योगों हेतु आरक्षित वस्तुएँ भी अब अनारक्षित श्रेणी में आ गई हैं। अनेक उद्योगों में अब बाजार को कीमतों के निर्धारण की अनुमति मिल गई है, जिसमें कीमतें बाजार की मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती हैं।

प्रश्न 5. 
वर्ष 1991 के पश्चात् भारत में कर व्यवस्था में हुए सुधारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में वर्ष 1991 से आर्थिक सुधारों का दौर प्रारंभ हुआ जिसके अन्तर्गत देश की कर प्रणाली में भी अनेक सुधार किए गए। इनके अन्तर्गत सरकार की कराधान तथा सार्वजनिक व्यय नीतियों में परिवर्तन किया गया अर्थात् सरकार द्वारा राजकोषीय नीति में परिवर्तन किया गया।

कर, राजकोषीय नीति का मुख्य अंग होष्ता है। कर मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किए जा सकते हैंप्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर। अर्थिक सुधारों के अन्तर्गत देश में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों कर प्रणालियों में परिवर्तन किया गया। वर्ष 1991 के बाद से ख्यक्तिगत आयकर की दरों में निरन्तर कमी की गई है। इसके पीछे मुख्य धारणा यह थी कि उच्च कर दरों के कारण ही कर की चोरी होती है। यह भी माना जाने लगा है कि करों की दरें कम हों तो बचतों को बढ़ावा मिलता है तथा लोग अपनी स्वेष्छा से सरकार को कर प्रदान क्रं देते हैं।

आर्थिक सुधारों से पूर्व भारत में निगम कर की दर बहुत अधिक थी जिसे सुधार प्रक्रिया के अन्तर्गत धीरे-धीरे कम किया गया। इसके अतिरिक्त अप्रत्यक्ष करों में भी सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए गये कर, ताकि सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए एक साझे राष्ट्रीय स्तर के बाजार की रचना की जा सकेत। अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को एकीकृत एवं सरल बनाने के लिए? भारतीय संसद द्वारा वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम 2016 (जी.एस.टी. 2016) कानून को पारित किया गया जो जुलाई 2017 से लागू हो गया है। इसके अतिरिक्त सरकार ने कर प्रणाली को अस्यन्त सरल बना दिया। करदाताओं के द्वारा नियम पालन को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है। साथ ही कर की दरों में भी कमी की गई है।

प्रश्न 6.
भारत में अपनाए गए आर्थिक सुधारों का उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत में वर्ष 1991 से अर्चिक सुधारों की प्रक्रिया प्रारंभ हुई तथा अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर इन सुधारों का प्रतिकूल अथवा अनुकूल प्रभाव पड़। इन सुध्रारों के फलस्वरूप भारत में औच्योगिक संवृद्धि की दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा तथा औद्योगिक संवृद्धि दर में कमी आई। इसका मुख्य कारण औद्योगिक उत्पाद्रों की मांग में कमी आना था। औद्योगिक उत्पादों की मांग में कमी होतु कई कारण जिम्मेदार थे जैसेसस्ते आयात, आधास्कि संरचना में अपर्याप्त निवेश आदि।

आर्थिक सुधारों के फ़लस्वरूप हमें वैश्वीकरण की नीति को अपनाना पड़ा। वैश्वीकरण की व्यवस्था में हमें अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित देशों की वस्तुओं और पूँजी प्रवाहों को प्राप्त करने के लिए खोलना पड़ा, इससे हमारे उद्योगों को षिदेशों से आयातित वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी। विदेशों से प्राप्त वस्तु सस्ती थी अत्र: हमारी वस्तुओं के स्थान पर विदेशी वस्तुओं की मांग में चुद्धि हो गई जिसके परिणामस्वरूप हमारे उद्योगों पर विपरीत क्रभाव पड़ा।

Prasanna
Last Updated on Aug. 22, 2022, 5:40 p.m.
Published July 13, 2022