RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 8 इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के कुछ कलात्मक पहलू

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RBSE Class 11 Drawing Chapter 8 Notes इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के कुछ कलात्मक पहलू

→ सातवीं से आठवीं शताब्दी में इस्लाम धर्म स्पेन और भारत में फैला। भारत में इस्लाम विशेष रूप से मुस्लिम सौदागरों, व्यापारियों, धर्मगुरुओं और विजेताओं के साथ आया।

→ भारत में मुसलमानों द्वारा बड़े पैमाने पर भवन निर्माण का कार्य ईसा की 13वीं सदी के प्रारंभ में उत्तर भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ हुआ।

→ 12वीं सदी तक भारत भव्य परिवेश में विशाल भवन बनाने की प्रक्रिया से पूरी तरह परिचित हो चुका था। उस समय यहाँ भवन निर्माण और अलंकरण की अनेक विधियां प्रचलित थीं। लेकिन ये विधियां ऊपर के ढांचे के बोझ को सहने-उठाने के लिये पूरी तरह सक्षम नहीं थीं।

→ अब गुम्बदों का बोझ उठाने के लिए ढोलदार चापों (मेहराबों) की जरूरत पड़ी।

→ मुस्लिम शासकों ने स्थानीय सामग्रियों, संस्कृतियों और परम्पराओं को अपने साथ लाई गई तकनीकों के साथ अपना लिया। इस प्रकार वास्तुकला के क्षेत्र में अनेक संरचनात्मक तकनीकों, शैलियों, रूपों और साज-सज्जाओं का मिश्रण तैयार हो गया। इसके फलस्वरूप इसे इण्डो-इस्लामिक, इंडो-सारसेनिक वास्तुकला कहा जाता

RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 8 इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के कुछ कलात्मक पहलू 

→ हिन्दू यह मानते हैं कि परमेश्वर नाना रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। अतः वे हर प्रकार की सतहों पर प्रतिमाओं और चित्रों को सराहते हैं।

→ मुस्लिम यह सोचते हैं कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उनके पैगम्बर हैं। उन्हें किसी भी सजीव रूप की, किसी भी सतह पर प्रतिकृति बनाना मना है। इसलिए उन्होंने प्लास्टर या पत्थर पर बेल-बूटे का
काम, ज्यामितीय प्रतिरूप और सुलेखन की कलाओं का विकास किया।

→ संरचनाओं का रूपाकार

  • भारत में मुस्लिम आगमन के समय यहाँ धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों प्रकार की वास्तुकला विद्यमान थी।
  • मुस्लिम शासकों द्वारा तथा सम्पन्न लोगों द्वारा अनेक प्रकार के भवन, जैसे-मस्जिदें और जामा मस्जिद, मकबरे, दरगाहें, मीनारें, हमाम, सुनियोजित बाग-बगीचे, मदरसे, सरायें आदि बनवाये गए।
  • इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला पर सीरियाई, फारसी और तुर्की प्रभाव था, लेकिन भारतीय वास्तुकलात्मक एवं अलंकारिक शैलियों ने भी इसको अत्यधिक प्रभावित किया। 
  • सामग्रियों की उपलब्धता, संसाधनों और कौशलों की परिसीमा तथा संरक्षकों की सौंदर्यानुभूति ने भी इसे प्रभावित किया।
  • धर्म और धार्मिकता को महत्वपूर्ण मानते हुए भी यहाँ के लोगों ने दूसरों के वास्तुकलात्मक तत्वों को उदारतापूर्वक अपनाया।

→ शैलियों के प्रकार
इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला को कई शैलियों में बांटा गया है

  • शाही शैली
  • प्रान्तीय शैली
  • मुगल शैली और
  • दक्कनी शैली। 

→ उदारतापूर्वक ग्रहण और प्रभाव

  • बंगाल और जौनपुर का अलग और गुजरात की वास्तुकला का एक अलग क्षेत्रीय स्वरूप था।
  • सरखेज के शेख अहमद खट्ट की दरगाह ने रूप और साज-सज्जा में मुगल मकबरों को बहुत प्रभावित किया। 

→ अन्य सज्जात्मक रूप

  • इन रूपों में कटाव, उत्कीर्णन या गचकारी के जरिए प्लास्टर पर डिजाइन कला शामिल है। इन डिजाइनों को सादा छोड़ दिया जाता था या उनमें रंग भरे जाते थे।
  • नमूने पत्थर पर पेंट किए जाते थे या पत्थर पर उकेरे जाते थे। इन नमूनों में तरह-तरह के फूल शामिल थे।
  • दीवारों को भी सरू, चिनार या अन्य वृक्षों तथा फूलदानों से सजाया जाता था।
  • 14वीं और 15वीं शताब्दी में दीवारों और गुंबदों की सतहों पर टाइलें लगाई जाती थीं।
  • दीवारों के हाशिया के लिए चारखाना तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था।
  • अन्य किस्म की सजावटों में अरबस्क शामिल है।
  • जालियों का प्रयोग भी बहुतायत से होता था।
  • चापें, मेहराबें सादी और सिमटी हुई थीं। सोलहवीं सदी में ये बहुत से बेल-बूटों से बनाई जाने लगीं।
  • केन्द्रीय गुंबद की चोटी पर एक उलटे कमल पुष्प का नमूना और एक धातु या पत्थर का कलश होता था।

RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 8 इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के कुछ कलात्मक पहलू

→ भवन निर्माण की सामग्री-भवन निर्माण की सामग्री के अन्तर्गत रोड़ी, कंकर, चूना, पत्थर के चौके, बहुरंगी टाइलें तथा ईंटों का प्रयोग किया जाता था।

→ किला/दुर्ग

  • ऊँची-मोटी प्राचीरों, फसीलों व बुओं के साथ विशाल दुर्ग, किले बनाना मध्यकालीन भारतीय राजाओं तथा राजघरानों की विशेषता थी, क्योंकि ऐसे अभेद्य किलों को अक्सर राजा की शक्ति का प्रतीक माना जाता था।
  • इस तरह के कई दुर्भेद्य, विशाल और जटिल दुर्ग चित्तौड़, ग्वालियर, देवगिरि/दौलताबाद और गोलकुण्डा में पाए जाते हैं।
  • दुर्गों के निर्माण के लिए पहाड़ों की प्रभावशाली ऊंचाइयों का उपयोग सुरक्षा (सामरिक), खाली स्थानों तथा आम लोगों व आक्रमणकारियों के मन में भय पैदा करने आदि अनेक दृष्टियों से लाभप्रद समझा जाता था।
  • दौलताबाद के किले में शत्रु को धोखे में डालने के लिए अनेक सामरिक व्यवस्थाएं की गई थीं तथा ग्वालियर के किले पर चढ़ना असंभव था। चित्तौड़गढ़ को एशिया का सबसे बड़ा किला माना जाता है। इन किलों में स्थित राजमहलों ने अनेक शैलियों के आलंकारिक प्रभावों को बड़ी उदारता के साथ अपने आपमें संजो रखा है। 

→ मीनारें

  • स्तंभ या गुम्बद का एक अन्य रूप मीनार थी, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वत्र पायी जाती है।
  • मध्यकाल की सबसे प्रसिद्ध और आकर्षक मीनारें थीं-दिल्ली में कुतुबमीनार और दौलताबाद के किले में चांद मीनार।
  • इन मीनारों का दैनिक उपयोग नमाज के लिए अजान लगाना था। इसकी असाधारण आकाशीय ऊँचाई शासन की शक्ति का प्रतीक भी थी। 

→ मकबरे

  • शासकों और शाही परिवार के लोगों की कब्रों पर विशाल मकबरे बनाना मध्यकालीन भारत का एक लोकप्रिय रिवाज था।
  • ऐसे मकबरों के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण हैं-दिल्ली स्थित गयासुद्दीन तुगलक, हुमायूं, अब्दुर्रहीम खानखाना और आगरा स्थित अकबर व इतमादुद्दौला के मकबरे। मकबरा यह सोचकर बनाया जाता था कि कयामत के दिन इनाम के तौर पर सदा के लिए जन्नत भेज दिया जाएगा। इसी स्वर्ग प्राप्ति की कल्पना को लेकर मकबरों का निर्माण किया जाने लगा। इनका एक अन्य उद्देश्य दफनाए गए व्यक्ति की शान-ओ-शौकत और ताकत का प्रदर्शन करना भी रहा होगा।

→ सरायें

  • मध्यकालीन भारत की एक अत्यन्त दिलचस्प परम्परा सराय बनाने की थी जो भारतीय उपमहाद्वीप में शहरों के आस-पास यत्र-तत्र बनाई जाती थीं।
  • इनका प्रयोजन भारतीय और विदेशी यात्रियों, तीर्थयात्रियों, सौदागरों, व्यापारियों आदि को कुछ समय के लिए ठहरने की व्यवस्था करना था।
  • ये सराएं आम लोगों के लिए होती थीं। इन सरायों में आम लोगों के स्तर पर सांस्कृतिक विचारों, प्रभावों, समन्वयवादी प्रवृत्तियों, सामयिक रीति-रिवाजों आदि का आदान-प्रदान करना होता था। 

RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 8 इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के कुछ कलात्मक पहलू

→ लोगों के लिए इमारतें

  • समाज के सामान्य वर्गों द्वारा और उनके लिए भी सार्वजनिक और निजी तौर पर भवन आदि बनाए गए जिनमें अनेक शैलियों, तकनीकों और सजावटों का मेल पाया जाता है।
  • इन इमारतों में मंदिर, मस्जिदें, खानकाह और दरगाह, स्मृति-द्वार, भवनों के मंडप, बाग-बगीचे, बाजार आदि शामिल हैं। जामा मस्जिद- मध्यकालीन भारत में स्थान-स्थान पर बड़ी-बड़ी मस्जिदें बनाई गईं, जहाँ नमाज आदि के लिए विशाल आंगन थे। यहाँ हर शुक्रवार को दोपहर बाद नमाज पढ़ने के लिए नमाजियों की भीड़ होती थी।
  • शुक्रवार को नमाज के समय शासक के नाम से एक खुतबा को पढ़ा जाता था और आम प्रजा के लिए बनाए गए उसके कानूनों को पढ़कर सुनाया जाता था।
  • मध्यकाल में एक शहर में एक ही जामा मस्जिद होती थी जो दोनों सम्प्रदायों के लोगों के लिए जीवन का केन्द्र- बिन्दु थी। यहाँ धार्मिक, राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ वाणिज्यिक और सांस्कृतिक आदानप्रदान भी बहुत होता था।
Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 3:07 p.m.
Published Aug. 4, 2022