RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन

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RBSE Class 11 Biology Chapter 7 Notes प्राणियों में संरचनात्मक संगठन

→ ऊतक (Tissue):
समान संरचना, समान उत्पत्ति एवं समान कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं। प्राणियों में ऊतक चार प्रकार का होता है

  • उपकला ऊतक (Epithelial tissue)
  • संयोजी ऊतक (Connective tissue)
  • पेशीय ऊतक (Muscular tissue)
  • तन्त्रिका ऊतक (Nervous tissue) 

→ उपकला ऊतक (Epithelial tissue):
शरीर या किसी अंग की मध्य अथवा आन्तरिक सतह या गुहा या नलिकाओं को आस्तरित करने का कार्य करते हैं तथा अवशोषण, स्रावण, परिवहन, उत्सर्जन, सुरक्षा एवं संवेदना ग्रहण का कार्य करते हैं।

→ संयोजी ऊतक (Connective tissue) का निर्माण मध्य जनन स्तर (mesoderm) से होता है। ये अंगों को जोड़ने, आलम्बन प्रदान करने एवं ऊतकों के मध्य स्थान को भरने का कार्य करते हैं। पेशीय 

→ ऊतक (Muscular tissue): जन्तुओं में गति एवं गमन के लिए उत्तरदायी हैं। पेशीय ऊतक (या पेशियाँ) तीन प्रकार के होते हैं

  • रेखित पेशियाँ,
  • अरेखित पेशियाँ,
  • हृदय पेशियाँ। 

→ विशिष्टकृत संयोजी ऊतक (Specialized connective tissue):
उपास्थि (cartilage), अस्थि (bones) तथा रक्त (blood) विशिष्टकृत संयोजी ऊतक हैं। उपास्थि एवं अस्थि दोनों एक प्रकार के संरचनात्मक पदार्थ होते हैं। 

RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन 

→ तरल संयोजी ऊतक (Fluid connective tissue):
रक्त तरल संयोजी ऊतक है। इसका रंग लाल होता है। यह क्षारीय व अपारदर्शी होता है। रक्त के दो भाग होते हैं

  • प्लाज्मा,
  • रक्त कोशिकाएँ। तन्त्रिका 

→ तन्त्र (Nervous tissue):
यह ऊतक शरीर के अन्दर तन्त्रिका आवेगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने का कार्य करते हैं। तन्त्रिका ऊतक तन्त्रिका कोशिकाओं (neuron) से मिलकर बना होता है। तन्त्रिका कोशिका के तीन भाग होते हैं

  • सोमा,
  • द्रुमिकाएँ,
  • तन्त्रिकाक्ष। 

→ केंचुआ (Earth worm):
नम मिट्टी में बिल बनाकर रहता है इसलिए इसे मिट्टी कृमि या अर्थवर्म (earthworm) कहते हैं। यह रात्रिचर (nocturnal) प्राणी है। इसका शरीर लम्बा, पतला, नलाकार होता है। इसमें वास्तविक खण्डीभवन (metameric segments) पाये जाते हैं। समान आकार के 100 से 120 खण्ड पाये जाते हैं। इसके प्रथम खण्ड को परितुण्ड व अन्तिम खण्ड को पाइजिडियम कहते हैं। 

→ पर्याणिका (Clitellum):
यह खण्ड संख्या 14, 15 व 16 में पायी जाती है। इसकी उपस्थिति के कारण तीन भागों में विभक्त होता है

  • पूर्व पर्याणिका,
  • पर्याणिका,
  • पश्च पर्याणिका। पर्याणिका जनन काल में कोकून का निर्माण करती है। 

→ शूक (Setae):
प्रथम, अन्तिम व पर्याणिका (14, 15 व 16) को छोड़कर सभी में शूक पाये जाते हैं। शक गमन में सहायक हैं। इनकी आकृति S के आकार की होती है। 

→ आहारनाल (Alimentary canal):
केंचुए की आहारनाल पूर्ण सीधी, शरीर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली रहती है। इसमें निम्न भाग होते हैं—मुख, मुख गुहिका, ग्रसनी, ग्रासिका, पेषणी, आमाशय, आन्त्र एवं गुदा। 

→ रक्त परिवहन तन्त्र (Blood circulatory system):
बंद प्रकार का होता है। इसमें रुधिर वाहिनियाँ एवं हृदय सम्मिलित हैं। रुधिर का रंग हीमोग्लोबिन के कारण लाल होता है। हीमोग्लोबिन प्लाज्मा में घुला होता है। रुधिर, भोजन O2 CO2, व यूरिया को शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचता है। हृदय चार जोड़ी नलिकाकार पाये जाते हैं। ये स्पंदनशील व कपाट युक्त होते हैं। हृदय दो प्रकार के होते हैं

  • पार्श्व हृदय,
  • पार्श्व ग्रसिका हृदय।।

→ उत्सर्जन (Excretion) हेतु केंचुए में नेफ्रीडिया (nephridia) पाये जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं

  • अध्यावरणीय नेफ्रीडिया,
  • ग्रसनी नेफ्रीडिया,
  • पटीय नेफ्रीडिया। उत्सर्जन के आधार पर केंचुआ यूरियोटेलिक प्राणी है। 

RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन

→ जनन तन्त्र (Reproductive system):
केंचुआ एक द्विलिंगी या उभयलिंगी जन्तु है। पुंपूर्वता के कारण पर-निषेचन (crossfertilization) होता है। इसे दो भागों में विभेदित किया गया है

  • नर जनन तन्त्र,
  • मादा जनन तन्त्र। 

(i) नर जननं तन्त्र (Male reproductive system):
केचुए का नर जनन तन्त्र निम्न संरचनाओं से मिलकर बना होता है

  • वृषण,
  • वृषण कोष,
  • शुक्राशय,
  • शुक्रवाहिनियाँ,
  • प्रोस्टेट ग्रन्थियाँ,
  • सहायक ग्रन्थियाँ ।

(ii) मादा जनन तन्त्र (Female reproductive system):
निम्न संरचनाओं से मिलकर बना होता है

  • अण्डाशय,
  • अण्डवाहिनियाँ,
  • शुक्रग्राहिका

मैथुन क्रिया बिल में रहते हुए रात्रि में होती है। पर्याणिका की ग्रन्थियाँ स्रावित होकर कोकून का निर्माण करती हैं। निषेचन कोकून में होता है। एक कोकून में एक ही केंचुए का परिवर्धन होता है। अण्डे से एक पूर्ण विकसित केंचुआ बनने में 2 से 2½ माह का समय लगता है। 

→ कॉकरोच (पेरिप्लेनेटा अमेरिकाना) एक विश्वव्यापी, सर्वभक्षी, रात्रिचर, नम, अंधेरे व गर्म स्थानों में पाया जाता है। यह एकलिंगी है। इसका रंग लाल, भूरा, चमकीला होता है। इसका शरीर तीन खण्डों में विभक्त होता है-सिर, वक्ष एवं उदर। सिर छः, वक्ष तीन व उदर दस खण्डों का बना होता है। 

→ सिर (Head):
त्रिभुजाकार व नाशपाती के समान होता है। सिर कॉकरोच के शेष भाग से 90° का कोण बनाता है व मुख नीचे की ओर झुका रहता है। अतः इसे हाइपोग्नेथस अवस्था कहते हैं। सिर पर युग्मित संयुक्त नेत्र, एन्टिना व सरल नेत्र पाये जाते हैं । संयुक्त नेत्र की इकाई को ओमेटिडिया कहते हैं। 

→ मुखांग (Mouth parts):
कॉकरोच के मुखांग मुख को चारों ओर से घेरे रहते हैं। कॉकरोच में काटने व चबाने (bitting and chewing) वाले मुखांग होते हैं। कॉकरोच के मुखांग निम्न हैं

  • लेब्रम,
  • मेन्डीबल,
  • मैक्सीला,
  • लेबियम,
  • हाइपोफेरिंक्स। 

→ वक्ष (Thorax):
यह तीन खण्डों से निर्मित होता है-अग्र वक्ष, मध्य वक्ष एवं पश्च वक्ष । वक्ष पर तीन जोड़ी सन्धि युक्त उपांग पाये जाते हैं । टाँग में पाँच खण्ड पाये जाते हैं

  • कॉक्सा,
  • ट्रोकेन्टर,
  • फीमर,
  • टिबिया,
  • टारसस। 

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→ पंख (Wings):
कॉकरोच में दो जोड़ी पंख पाये जाते हैं। जो मध्य व पश्च वक्ष में पाये जाते हैं। पंख का पहला जोड़ा मोटा, कठोर, अपारदर्शी व चर्मिल होता है। इसे एलाइटा (elytra) या टेगमीना (tegmina) कहते हैं। पंख की दूसरी जोड़ी कोमल, महीन व पारदर्शी होती है। 

→ श्वास रन्ध्र (Spiracles):
कॉकरोच में 10 जोड़ी श्वास रन्ध्र पाये जाते हैं। दो जोड़ी वक्ष में व 8 जोड़ी उदर में पाये जाते हैं । श्वसन श्वास नलिकाओं का जाल (trachea) होता है। श्वास नलिकाएँ श्वास रन्ध्र द्वारा बाहर खुलती हैं।

→ आहारनाल (Alimentary canal):
यह एक लम्बी नलिकाकार रचना है। इसके एक सिरे पर मुख व दूसरे सिरे पर गुदा पाया जाता है। आहारनाल के तीन भाग होते हैं.

  • अग्रान्त्र,
  • मध्यान्त्र,
  • पश्चान्त्र । 

अग्रान्त्र में निम्न भाग पाये जाते हैं

  • मुख,
  • ग्रसिका,
  • अन्नपुट,
  • पेषणी। 

→ पश्चान्त्र (Hind gut):
इसमें तीन भाग पाये जाते हैं

  • इलियम अथवा क्षुद्रान्त्र,
  • कोलन (colon),
  • मलाशय (rectum)। मलाशय में मलाशयी अंकुर पाये जाते हैं जो मल से पानी का अवशोषण करते हैं। 

→ परिसंचरण तन्त्र (Circulatory system):
खुले प्रकार (open type) का होता है। श्वसन वर्णक हीमोग्लोबिन का अभाव होता है। हृदय स्पंदनशील होता है। यह एक मिनट में 49 बार धड़कता है। यह 13 छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त होता है। प्रत्येक खण्ड/वेश्म कीप रूपी होता है। 

→ उत्सर्जन (Excretion) के लिए मैल्पिघियन नलिकाएँ होती हैं। इस कार्य में निम्नलिखित संरचनाएँ भी सहायक होती हैं

  • वसा काय,
  • यूरिकोस ग्रन्थियाँ,
  • क्यूटिकल,
  • नेफ्रोसाइट्स। उत्सर्जन के आधार पर कॉकरोच यूरिकोटेलिक प्राणी है। 

→ नर जनन तन्त्र (Male reproductive system):
नर कॉकरोच में जननांग एक जोड़ी वृषण, शुक्रवाहिकाएँ, स्खलन वाहिनी, छत्रारूपी ग्रन्थि तथा फैलिक ग्रन्थि होते हैं। इसके अतिरिक्त नर में गोनोपोफाइसिस नामक बाह्य जननांग भी होते हैं।

→ मादा जनन तन्त्र (Female reproductive system):
मादा कॉकरोच के जननांग में एक जोड़ी अण्डाशय, अण्ड वाहिनी, योनि, शुक्रवाहिका तथा कोलेटीरियल ग्रन्थियाँ होती हैं। इसके अतिरिक्त मादा में बाह्य जननांग गोनोपोफाइसिस उपस्थित होते हैं।

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→ निषेचन (Fertilization) आन्तरिक होता है। मादा 9-10 अण्डकवच उत्पन्न करती है जिसमें परिवर्धित भ्रूण पाया जाता है। एक अण्ड कवच के फटने से 14-16 नवजात शिशु बाहर आते हैं जिन्हें निम्फ (nymph) कहते हैं।

→ मेढ़क ( रानाटिग्रीना):
भारत में पाया जाने वाला सामान्य मेढ़क है। इसका शरीर त्वचा से ढका होता है। त्वचा पर श्लेष्मा ग्रन्थियां पाई जाती हैं जो अत्यधिक संवहनीय होती हैं जो श्वसन में सहायता करती हैं। 

→ मेढ़क का शरीर-दो भागों में विभक्त होता है

  • सिर,
  • धड़। मेढ़क में एक पेशीय जिह्वा उपस्थित रहती है जो किनारे से कटी हुई और द्विपालित होती है। यह शिकार को पकड़ने में मदद करती है।

→ आहार नाल—आहार नाल पूर्ण विकसित होती है। यह ग्रसिका, आमाशय, आन्त्र एवं मलाशय की बनी होती है, जो अवस्कर द्वारा बाहर की ओर खुलती है। मुख्य पाचन ग्रन्थियां यकृत व अग्न्याशय हैं। श्वसन क्रिया-मेढ़क में तीन प्रकार से होती है-

  • त्वचा,
  • मुख ग्रसनी गुहिका,
  • फेफड़ों के द्वारा। 

→ रुधिर परिसंचरण-बंद और एकल प्रकार का होता है।
ऑक्सीजनित तथा अनॉक्सीजनित रक्त हृदय में मिश्रित हो जाता है। रक्त परिसंचरण तन्त्र निम्न से मिलकर बना होता है

  • हृदय,
  • रक्त वाहिनियाँ,
  • रुधिर। 

→ जननतंत्र: जननतंत्र के मूल अंग वृक्क एवं मूत्र जनन नलिकाएँ हैं, जो अवस्कर में खुलती हैं। नर जननांग एक जोड़ी वृषण तथा मादा जननांग एक जोड़ी अण्डाशय होते हैं। एक मादा एक बार में 2500 से 3000 अण्डे देती है। निषेचन और परिवर्धन बाह्य होता है। अण्डों से टेडपोल निकलता है, जो मेढ़क में कायांतरित हो जाता है।

→ पेशीय संकुचन के समय रासायनिक ऊर्जा (chemical energy) का यान्त्रिक ऊर्जा (mechanical energy) में परिवर्तन होता है।

→ मनुष्य में 639 पेशियाँ पायी जाती हैं। इनमें से 634 पेशियाँ युग्मित (paired) एवं 5 पेशियाँ अयुग्मित (unpaired) होती हैं।

→ मनुष्य में सबसे अधिक (180) पेशियाँ पीठ (back) में तथा सबसे कम (15) उदर (belly) में पायी जाती हैं।

→ मनुष्य में लगभग 400 पेशियाँ रेखित (striated) प्रकार की होती हैं। 

→ अरेखित एवं हृदय पेशियों में लैक्टिक अम्ल का निर्माण नहीं होता है।

→ पेशियों व अस्थियों के जोड़ को टेंडन (Tendon) कहते हैं एवं दो अस्थियों को जोड़ने वाली संरचना को लिगामेन्ट (ligament) कहते हैं।

→ केंचुए के गमन में सीटी, पेशियाँ एवं देहगुहीय द्रव का जल स्थैतिक दाब (hydraulic pressure) सहायक होता है।

→ काँच आदि चिकनी या खड़ी सतहों पर भी केंचुए चढ़ सकते हैं। इसमें सीटी का कोई उपयोग नहीं होता है बल्कि केवल चिपचिपे श्लेष्म एवं चूषक मुख प्रकोष्ठ (buccal chamber) का उपयोग होता है।

→ केंचुए की त्वचा के सूखने पर श्वासावरोध (asphyxiation) के कारण इसकी मृत्यु हो जाती है।

→ यदि केंचुए में प्रोस्टोमियम को काटकर हटा दें तो इसमें प्रकाश ज्ञान की क्षमता कम हो जाती है।

→ केंचुआ O2, की अनुपस्थिति में 6-30 घण्टे तक जीवित रह सकता है। इस समय अनॉक्सी श्वसन पाया जाता है।

→ पट्टीय वृक्कक व ग्रसनी वृक्कक जल संरक्षण हेतु अनुकूलित है। केंचुए के वृक्कक मनुष्य के वृक्क के समान होते हैं।

RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 7 प्राणियों में संरचनात्मक संगठन

→ प्राचीन काल में केंचुओं का प्रयोग औषधियों के रूप में किया जाता था। इससे तैयार औषधियाँ-बवासीर, गठिया, पायरिया, पीलिया, पित्ताशय की पथरी, प्रसव बाद की कमजोरी एवं नपुंसकता के लिए प्रयोग किया जाता है।

→ कीटों के मुखांग अनुकूलनीय विकिरण (adaptive radiation) के उदाहरण हैं। कॉकरोच में पेप्सीन एन्जाइम नहीं पाया जाता

→ दिनचर कीटों में एपोजिशन व रात्रिचर कीटों में सुपरपोजिशन प्रतिबिम्ब का निर्माण होता है। यदि कॉकरोच के आइरिस वर्णक आच्छद को हटा दें तो इसमें केवल सुपरपोजिशन प्रतिबिम्ब ही बनेगा। 

→ कॉकरोच में केनीबेलीज्म (canibalism) या स्वजाति भक्षण पाया जाता है।

→ भारत की सबसे प्रसिद्ध मेंढक की जाति राना टिग्रीना (Rana tigrina) है। इसके अतिरिक्त उड़ने वाला मेंढक (रेकोफोरस मैक्सिमस), पेड़ का मेंढक (हाइला आर्बोरिया) आदि हैं। 

→ मेंढक का टेडपोल शाकाहारी तथा वयस्क प्रावस्था में मांसाहारी जीव हैं। टेडपोल अवस्था में मेंढक आन्तरिक व बाह्य गिल्स द्वारा श्वसन करता है।

→ अनुमस्तिष्क शरीर का सन्तुलन बनाये रखता है। मेड्यूला ऑब्लांगेटा सभी प्रतिवर्ती क्रियाओं तथा अनैच्छिक क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है।

Prasanna
Last Updated on July 26, 2022, 12:41 p.m.
Published July 26, 2022