RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन

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RBSE Class 11 Biology Chapter 19 Notes उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन

→ उत्सर्जन: प्रत्येक प्राणी के शरीर में कोशिकीय उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों (Waste Products) का निर्माण होता है, जैसे—CO2, जल, अमोनिया, यूरिक अम्ल, यूरिया आदि। इन्हीं हानिकारक व अनावश्यक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना अत्यन्त आवश्यक होता है। इनमें से CO2, का बहिष्कार उच्छ्वसन के द्वारा फेफड़ों से बाहर निकाला जाता है लेकिन शेष नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों का बहिष्कार उत्सर्जी अंगों के द्वारा मूत्र के रूप में कर दिया जाता है । उत्सर्जी अंगों द्वारा अपशिष्ट पदार्थों के बहिष्कार की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।

→ परासरण नियमन सजीवों द्वारा अपने शरीर में जल एवं लवणों की मात्रा का नियमन परासरण कहलाता है।

→ प्राणियों को नाइट्रोजनी उत्पादों के आधार पर तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है

  • अमोनोटेलिक - अमोनिया का उत्सर्जन करते हैं।
  • यूरियोटेलिक - यूरिया का उत्सर्जन करते हैं। मनुष्य यूरियोटेलिक प्राणी है। 
  • यूरिकोटेलिक - यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करते हैं। 

→ उत्सर्जन अंग-उत्सर्जन से सम्बन्धित अंग उत्सर्जन अंग कहलाते हैं। मनुष्य में निम्न उत्सर्जन अंग पाये जाते हैं
(A) वृक्क
(B) मूत्र वाहिनियाँ
(C) मूत्राशय
(D) मूत्र मार्ग।

→ अन्य उत्सर्जी अंग

  • त्वचा,
  • फेफड़े,
  • यकृत। 

→ मनुष्य में एक जोड़ी मेटानेफ्रिक प्रकार के वृक्क होते हैं जो उदरगुहा में मेरुदण्ड के दायें तथा बायें स्थित होते हैं । बायां वृक्क - कुछ पीछे की ओर स्थित होता है । वृक्क सिर्फ अधर सतह से ही

→ पेरीटोनियम द्वारा ढके रहते हैं, इसलिये इन्हें रेट्रोपेरीटोनिएल (Retroperitoneal) कहते हैं। प्रत्येक वृक्क के हायलम भाग से एक नलिका रूपी मूत्रवाहिनी निकलकर पीछे बढ़कर मूत्राशय में खुलती है । मूत्राशय का पिछला सिरा संकरे मूत्र मार्ग में खुलता है।

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→ वृक्क के क्षैतिज अनुलम्ब काट में दो भाग पाये जाते हैं

  • बाहरी भाग वल्कुट (Cortex)
  • भीतरी भाग मध्यांश (Medulla)।

(i) वल्कुट (Cortex):
मैल्पीघीकाय के कारण कणिकामय दिखाई देता है। इस भाग की ओर मध्यांश के उभार पाये जाते हैं जिन्हें पिरमिड्स (Pyramids) कहते हैं। पिरैमिड्स के बीच वल्कुट के उभार धंसे रहते हैं, इन्हें बर्टिनी के वृक्क स्तम्भ (Renal Columns of Bertani) कहते हैं। इस भाग में मैल्पीघीकाय, समीपस्थ व दूरस्थ कुण्डलित नलिकायें पाई जाती हैं। मनुष्य के वृक्क में 8-12 पिरैमिड होते हैं। 

(ii) मध्यांश (Medulla):
यह वृक्क का मध्य भाग है । मेड्यूला के कार्टेक्स की ओर पाये जाने वाले उभार पिरमिडस कहलाते हैं। इस भाग में नेफ्रोन्स के हेनले का लूप व संग्रह नलिकायें पाई जाती है।

→ नेफ्रोन अथवा वृक्क नलिका–वृक्क की संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई को नेफ्रोन अथवा वृक्क नलिका कहते हैं । वृक्क नलिका को दो भागों में विभेदित किया गया है
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  • मैल्पीघीकाय - बोमन सम्पुट व ग्लोमेरुलस को सम्मिलित रूप से मैल्पीघीकाय कहते हैं।
  • स्त्रावी नलिका - नेफ्रोन के मैल्पीघीकाय के अलावा शेष भाग को स्रावी नलिका कहते हैं। समीपस्थ कुण्डलित भाग, हेनले का लूप एवं दूरस्थ कुण्डलित भाग मिलकर स्रावी नलिका का निर्माण करते हैं।

→ आर्निथीन चक्र—यकृत में CO2 तथा NH के मध्य होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं के एक चक्रिक प्रक्रिया के अन्तर्गत यूरिया का निर्माण होता है । इस चक्रिक प्रक्रिया को आर्निथीन चक्र कहते हैं । इस चक्र की खोज क्रेब हेंसेलिट द्वारा की गई। अतः इसे क्रेब्स हेंसेलिट चक्र भी कहते हैं।

→ उत्सर्जन क्रिया-विधि–रुधिर से उत्सर्जी पदार्थों का पृथक्करण तीन चरणों में पूरा होता है
(a) गुच्छीय निस्यंदन
(b) पुनः अवशोषण
(c) स्त्रावण ।

→ मूत्र का निर्माण–परानिस्यन्दन, पुनरावशोषण व स्रावण प्रक्रियाओं के फलस्वरूप होता है। इसमें उत्सर्जी पदार्थ यूरिया व यूरिक अम्ल आदि उपस्थित होते हैं।

→ मूत्र का निष्कासन—मूत्र को मूत्र वाहिनियों द्वारा मूत्राशय में लाकर अस्थायी रूप से संग्रहित किया जाता है तथा समय-समय पर मूत्र मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है । मूत्र त्यागने
की क्रिया को मूत्रण (मिक्चुरेशन) कहते हैं।

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→ मूत्र यूरोक्रोम (Urochrome) वर्णक की उपस्थिति के कारण हल्के पीले रंग का होता है। मूत्र निर्माण का नियमन-मूत्र निर्माण में निम्न हारमोन नियन्त्रण करते हैं
(a) एल्डोस्टिरॉन एवं मिनरेलोकार्टीकोएड
(b) एन्टीडाइयूरेटिक हारमोन (ADH)
(c) पैराथार्मोन
(d) थाइराक्सीन।

→ प्रतिधारा गुणक प्रणाली—जल, लवण, नाइट्रोजन व नियमन वृक्कों द्वारा होता है अत:

  • द्रव सन्तुलन का नियमन
  • विद्युत अपघट्य की सान्द्रता का नियमन दो वे महत्त्वपूर्ण कार्य हैं जिनका वृक्कों द्वारा निर्वाह होता है। पुनः अवशोषण के आधार पर पदार्थों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है

(a) उच्च देहली पदार्थ - ऐसे पदार्थ जिनका ग्लोमेरुलर छनित्र से शत-प्रतिशत अवशोषण हो जाता है, उन्हें उच्च देहली पदार्थ कहते हैं। उदाहरण-ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, विटामिन सी आदि।
(b) निम्न देहली पदार्थ-ऐसे पदार्थ जिनका ग्लोमेरुलर छनित्र से अवशोषण अल्प मात्रा में होता है, उन्हें निम्न देहली पदार्थ कहते हैं। उदाहरण - जल, खनिज लवण आदि।
(c) अदेहली पदार्थ - ऐसे पदार्थ जिनका बिल्कुल अवशोषण नहीं होता है, अदेहली पदार्थ कहलाते हैं। जैसे—यूरिया यूरिक अम्ल, क्रियेटिनिन सल्फेट आदि । ऐसे पदार्थ जिनके अवशोषण की मात्रा परिवर्तित होती रहती है, उन्हें परिवर्तनशील देहली पदार्थ कहते हैं। जैसे—जल।

→ मूत्र का संघटन—मूत्र का रंग हल्का पीला जो युरोक्रोम वर्णक के कारण होता है। इसमें विशिष्ट व तीखी एरोमेटिक गन्ध (यूरीनोड गंध) आती है। स्वस्थ व्यक्ति में प्रतिदिन 1-1.5 लीटर मूत्र का निर्माण होता है। मूत्र का pH-6.00 होता है। औसतन 25-30 ग्राम यूरिया का उत्सर्जन होता है।

→ उत्सर्जन सम्बन्धी रोग कई कारणों से मनुष्य में उत्सर्जन क्रिया सम्बन्धी अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे कुछ प्रमुख रोग निम्न हैं

  • वृक्क शोथ
  • ग्लाइकोसूरिया
  • वृक्क पथरी
  • सिस्टाइटिस
  • गाँउट
  • यूरेमिया ।
  • डायबिटिज.इन्सिपिडस
  • कीटोन यूरिया।

→ रुधिर अपोहन (Haemodialysis):
वृक्कों के समुचित रूप से कार्य न करने अथवा उनके कार्य करना बन्द कर देने पर रुधिर में यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है। इस अवस्था को यूरेमिया (Uremia) कहते हैं। ऐसे रोगियों के रुधिर से यूरिया को निकालने के लिए कृत्रिम वृक्कीय युक्ति की आवश्यकता पड़ती है, इसे रुधिर अपोहन कहा जाता है।

→ वृक्क प्रत्यारोपण (Kidney Transplantation): किसी रोगी मनुष्य में वृक्क में उत्पन्न कार्यहीनता को दूर करने के अन्य सभी उपचार असफल होने पर वृक्क परिवर्तन करने की प्रक्रिया अपनायी जाती है, इसे वृक्क प्रत्यारोपण कहते हैं। प्रत्यारोपण में मुख्यतया निकट सम्बन्धी दाता के क्रियाशील वृक्क का उपयोग किया जाता है, जिससे प्राप्तकर्ता का प्रतिरक्षा तन्त्र उसे अस्वीकार नहीं करे।

→ मछलियों में वृक्क के अतिरिक्त, गिल्स भी उत्सर्जन में सहायता करते हैं। कशेरुकियों में वृक्क एवं प्रोटोजोआ में संकुचनशील रिक्तिका के द्वारा अतिरिक्त जल का उत्सर्जन होता है। सर्पो, मगरमच्छ, पक्षी, (शुतुरमुर्ग के अलावा) प्रोटोथिरियन स्तनधारियों में मूत्राशय (Urinary bladder) अनुपस्थित होता

→ अमोनिया (NH3) सबसे अधिक विषैला नाइट्रोजन अपशिष्ट पदार्थ होता है।

→ बच्चे, गर्भवती महिलाएँ तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं के मूत्र में क्रिएटीन (Creatine) भी पाया जाता है।

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→ वैसोप्रेसिन (Vassopressin-ADH) हार्मोन निस्यन्द से जल के पुनः अवशोषण को बढ़ा देता है। इसकी कमी से डायबिटिज इन्सीपिडस रोग हो जाता है।

→ एल्डोस्टीरॉन (Aldosterone) Na के पुनः अवशोषण को बढ़ाता है। इस हार्मोन की कमी से 'एडिसन का रोग' हो जाता है।

→ चाय, कॉफी, बीयर तथा विभिन्न प्रकार की मदिरा मूत्र की मात्रा को बढ़ा देती है।

→ ग्लाइकोसूरिया अवस्था में मूत्र चींटियों को आकर्षित करता है।

→ लाल रक्ताणुओं (RBC's) के निर्माण को नियंत्रित करने वाले इरिथ्रोजेनिन हार्मोन का स्रावण वृक्कों से होता है।

→ मरुस्थल में पाये जाने वाले जन्तुओं की नेफ्रोन (nephron) हेनले लूप (Henle's loop) काफी बड़ा होता है, जिससे ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट से अत्यधिक पानी का अवशोषण हो सके।

→ कुछ मछलियों में वृक्क नलिकाएँ मैल्पीघी कोष रहित होती हैं। जैसे-वृक्क को अकेशिका गुच्छीय (aglomerular) वृक्क कहा जाता है। उदाहरण-अस्थिल मछलियाँ।

→ रात्रि में अधिक पेशाब (Urine) आने की दशा को नॉक्टूरिया (Nocturea) कहा जाता है।

→ बच्चों में मूत्रण (micturition) की क्रिया एक पूर्णतया अनैच्छिक (involutary) क्रिया है, लेकिन वयस्क में यह क्रिया इच्छाशक्ति के अनुरूप (voluntary) हो जाती है।

→ ताजा मूत्र में दुर्गन्ध यूरीनॉइड (uninoid) के कारण होती है।

→ पीलिया रोग में मूत्र द्वारा पित्त वर्णकों (bile pigments) का निष्कासन होता है।

→ थाइरॉक्सिन हार्मोन मूत्र में से जल के अवशोषण को कम करता है।

→ खरगोश, एकिडना मार्क्सपियलस तथा कीटाहारी रोडेन्टस आदि के वृक्कों में सिर्फ एक ही पिरैमिड पाया जाता है। मनुष्य में इनकी संख्या 8 से 12 होती है।

Prasanna
Last Updated on July 26, 2022, 4:57 p.m.
Published July 26, 2022