RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 8 विनिमय विपत्र

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RBSE Class 11 Accountancy Chapter 8 Notes विनिमय विपत्र

→ आधुनिक व्यावसायिक युग में अधिकांश व्यापारिक लेन-देन उधार ही होते हैं। व्यापारी जो माल उधार खरीदता है उसका भुगतान भविष्य में करता है और जो माल उधार बेचता है उसका भुगतान भविष्य में प्राप्त करता है । भावी भुगतान की समस्या का समाधान साख-पत्रों की सहायता से किया जाना सुविधाजनक होता है। भारतीय विनिमय साध्य विलेख के अन्तर्गत विनिमय विपत्र (Bill of Exchange), प्रतिज्ञा पत्र (Promissory Note), हुण्डी (Hundi) और चेक (Cheque) मुख्य हैं।

→ विनिमय विपत्र की परिभाषा (Definition of Bill of Exchange) भारतीय परक्राम्य विलेख अधिनियम (Indian Negotiable Instruments Act) के अनुसार विनिमय विपत्र की निम्नलिखित परिभाषा दी जा सकती है—“विनिमय विपत्र एक शर्त-रहित लिखित आज्ञा-पत्र है जिसमें लिखने वाला किसी व्यक्ति को यह आज्ञा देता है कि वह एक निश्चित राशि या तो स्वयं उसे या उसकी आज्ञानुसार किसी अन्य व्यक्ति को या उस विनिमय विपत्र के धारक को माँगने पर या एक निश्चित अवधि की समाप्ति पर दे।"

RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 8 विनिमय विपत्र 

→ विनिमय विपत्र की विशेषताएँ (Characteristics of Bill of Exchange)

  • विनिमय विपत्र लिखित होता है, मौखिक नहीं।
  • यह शर्त-रहित होता है।
  • इसमें एक निश्चित धन-राशि के भुगतान का आदेश होता है।
  • इसमें भुगतान एक निश्चित तारीख को होता है।
  • इसमें बिल लिखने वाले के हस्ताक्षर होते हैं।
  • इसमें बिल की राशि लेखक या उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति को दी जाती है।
  • बिल स्वीकार करने वाले को भुगतान की आज्ञा दी जाती है।
  • बिल पर भारतीय मुद्रांक अधिनियम के अनुसार आवश्यक स्टाम्प लगाये जाते हैं। 

→ विनिमय विपत्र के पक्षकार (Parties of Bill of Exchange): विनिमय-पत्र में निम्नलिखित तीन पक्षकार होते

  • आहर्ता या बिलकर्ता या लेनदार: यह वह व्यक्ति है, जो किसी दूसरे व्यक्ति से रकम पाने का अधिकारी है और देनदार पर बिल लिखता है। विनिमय-पत्र पर लिखने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर होते हैं।
  • आहारीं या स्वीकारकर्ता: यह वह व्यक्ति होता है जिस पर बिल लिखा जाता है अर्थात् जिसे एक निश्चित राशि, एक निश्चित अवधि के उपरान्त एक निश्चित व्यक्ति को देने का आदेश होता है।
  • पाने वाला-जिस व्यक्ति को विनिमय-पत्र का भुगतान मिलता है, वह व्यक्ति विनिमय पत्र का पाने वाला कहलाता है।

→ प्रतिज्ञा-पत्र (Promissory Note): भारतीय परक्राम्य विलेख अधिनियम, 1881 में प्रतिज्ञा-पत्र की निम्नलिखित | परिभाषा दी गई है "प्रतिज्ञा-पत्र एक लिखित हस्ताक्षर सहित विपत्र है (बैंक या करेंसी नोट को छोड़कर) जिसका लिखने वाला बिना शर्त के एक निश्चित धन-राशि किसी व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को अथवा उस विपत्र के धारक को देने की प्रतिज्ञा करता है।" किन्तु रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के अधिनियम के अनुसार प्रतिज्ञा-पत्र धारक के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति के नाम से प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

→ प्रतिज्ञा-पत्र की विशेषताएँ (Characteristics of Promissory Note)

  • प्रतिज्ञा-पत्र लिखित विलेख होता है।
  • प्रतिज्ञा-पत्र में लिखने वाले के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
  • यह प्रतिज्ञा रकम भुगतान की होती है।
  • यह प्रतिज्ञा शर्त-रहित होनी चाहिए।
  • इसमें मुद्रांक का होना आवश्यक है।
  • भुगतान प्रचलित मुद्रा में होना आवश्यक है।
  • प्राप्तकर्ता भी निश्चित व्यक्ति होना चाहिए। 

→ प्रतिज्ञा-पत्र के पक्षकार (Parties of Promissory Note)-प्रतिज्ञा-पत्र के दो पक्षकार होते हैं

  • लिखने वाला/लेखक-यह वह व्यक्ति होता है, जो निश्चित राशि निश्चित समय में भुगतान करने के लिए प्रतिज्ञा पत्र लिखकर देता है । वह व्यक्ति साधारणतया ऋणी कहलाता है।
  • पाने वाला यह वह व्यक्ति होता है जिसको प्रतिज्ञा पत्र की राशि का भुगतान किया जाता है। सामान्यतः यह व्यक्ति ऋणदाता होता है।

RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 8 विनिमय विपत्र

विनिमय विपत्र तथा प्रतिज्ञा पत्र में अन्तर

अन्तर का आधार

 विनिमय विपत्र

 प्रतिज्ञा पत्र

1. प्रकृति

 यह भुगतान के लिए आदेश है।

 यह भुगतान करने की प्रतिज्ञा या वचन है।

2. पक्षकार

 इसके तीन पक्षकार होते हैं(i) लेखक, (ii) स्वीकारकर्ता, (iii) प्राप्तकर्ता।

 इसके दो पक्षकार होते हैं (i) लेखक (ii) प्राप्तकर्ता।

3. लेखक

 इसका लेखक लेनदार होता है।

 इसका लेखक देनदार होता है।

4. प्रमाणन

 अनादरण पर इसका प्रमाणन कराना आवश्यक है।

इसका प्रमाणन आवश्यक नहीं है।

5. स्वीकृति

 इसकी स्वीकृति आवश्यक है।

 इसकी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है।

6. दायित्व

 यदि बिल लेखक के पास नहीं हो तो, अनादरण की दशा में लेखक का दायित्व उत्पन्न होता है।

 इसमें प्रारम्भ से ही लेखक का दायित्व रहता है।

7. प्राप्तकर्ता

 इसमें लेखक स्वयं भी प्राप्तकर्ता हो सकता है।

 इसमें लेखक स्वयं प्राप्तकर्ता नहीं हो सकता।

→ विनिमय विपत्र के लाभ (Advantages of Bill of Exchange) :

  • व्यापार की बिक्री वृद्धि में सहायक।
  • विपत्र के प्रयोग से मुद्रा भेजने का व्यय तथा जोखिम से मुक्ति मिल जाती है।
  • विपत्र का भुगतान निश्चित तिथि पर न होने पर न्यायालय द्वारा बिल की राशि खर्चे सहित सरलता से प्राप्त की जा सकती है।
  • विदेशी बिलों द्वारा बड़े-बड़े विदेशी भुगतान आसानी से किये जा सकते हैं।
  • अनुग्रह विपत्रों द्वारा व्यापारी परस्पर आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
  • विनिमय बिल द्वारा ऋण का भुगतान सरल हो जाता है तथा ऋण का प्रमाणन भी हो जाता है।
  • अनुग्रह विपत्रों द्वारा व्यापारी परस्पर आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
  • विपत्र को बैंक से भुनाकर समय से पूर्व भुगतान प्राप्त किया जा सकता है।
  • तकादे से छुटकारा।

→ विनिमय विपत्र की परिपक्वता (Maturity) या देय तिथि (Due Date): देय तिथि से आशय उस दिन से है जब विनिमय विपत्र या प्रतिज्ञा पत्र का भुगतान देय होता है। अनुग्रह दिवस (Days of Grace)-ऐसे विपत्र जो एक निश्चित अवधि के बाद देय होते हैं उनकी देय तिथि निर्धारित करते समय उनकी अवधि में 3 दिन और जोड़ दिये जाते हैं । ये 3 दिन ही रियायती दिन या अनुग्रह दिन कहलाते हैं।

→ विपत्र का भुनाना (Discounting of Bill): यदि बिल के धारक को देय तिथि से पहले धन की आवश्यकता होती | है तो वह देय तिथि से पूर्व विपत्र को बैंक से भुना सकता है। बैंक इस बिल में से बट्टे की राशि काट कर शेष राशि बिल के धारक को दे देता है। इस कटौती को बट्टा (Discount) कहते हैं।

→ विनिमय विपत्र का बेचान (Endorsement of Bill of Exchange): जब कोई व्यक्ति अपना धन पाने का अधिकार किसी दूसरे व्यक्ति को देता है तो उसे बेचान करना कहते हैं। बेचान करने में बेचान करने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए। जो व्यक्ति हस्ताक्षर करता है उसे पृष्ठांकक (Endorser) कहते हैं। जिस व्यक्ति को पृष्ठांकन किया जाता है उसे पृष्ठांकिती कहते हैं । एक बिल का बेचान एक से अधिक बार किया जा सकता है।

→ बिल को बैंक में वसूली के लिए भेजना: बिल का लेखक बिल का भुगतान प्राप्त करने के लिए अपने प्राप्य बिल को बैंक में वसूली के लिए भेज सकता है। बैंक इस सेवा के बदले अपने ग्राहक से कमीशन वसूलता है।

→ लेखांकन व्यवहार: लेखांकन की दृष्टि से बिल को दो भागों में बाँटा जाता है, एक-प्राप्य बिल (Bills Receivable or B/R) तथा दूसरा—देय बिल (Bills Payable or B/P)। बिल लेखक अथवा भुगतान प्राप्तकर्ता के लिए प्राप्य बिल होता है तथा वही बिल स्वीकारकर्ता के लिए देय बिल कहलाता है। प्रतिज्ञा-पत्र की स्थिति में लेखक के लिए देय नोट तथा स्वीकारकर्ता के लिए प्राप्य नोट होता है। प्राप्य बिल सम्पत्ति है तथा देय बिल दायित्व है। बिल खातों को वस्तुगत खाते मानते हुए जर्नल के सामान्य नियमों के अनुसार दोहरा लेखा पद्धति पर लेखा किया जाता है। लेखक बिल प्राप्ति पर प्राप्य बिल खाते को नाम (Dr.) तथा स्वीकारकर्ता देय बिल खाते को जमा (Cr.) करेगा। 

आहर्ता/लेखक (Drawer) की पुस्तक में प्रविष्टियाँ: विभिन्न स्थितियों में निम्न प्रकार प्रविष्टियाँ की जाती हैं
RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 8 विनिमय विपत्र 1

RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 8 विनिमय विपत्र

→ स्वीकारकर्ता/प्रतिज्ञाकर्ता (Drawee) की पुस्तक में प्रविष्टियाँ-उक्त अवस्थाओं में स्वीकारकर्ता की पुस्तक में निम्न प्रविष्टियाँ की जायेंगी। विपत्र को अपने पास रखने, भुनाने अथवा बेचान करने का स्वीकारकर्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 8 विनिमय विपत्र 2

→ विनिमय बिल का अनादरण (Dishonour of a Bill of Exchange)
जब बिल का स्वीकारकर्ता बिल की राशि का भुगतान बिल के परिपक्वता तिथि को नहीं करता है तो इसे विपत्र का अनादरण कहते हैं। विपत्र के अनादरण होने पर उसके धारक को विपत्र के सभी पक्षों को अनादरण की सूचना देनी होती है। यदि सूचना नहीं भेजी जाती है तो सूचना न पाने वाला व्यक्ति अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

→ बिल के लेखक की पुस्तकों में लेखा-बिल के अनादरण होने पर बिल लिखने वाले व्यक्ति (Drawer) की बहियों में विभिन्न परिस्थितियों में निम्नलिखित लेखे किये जाते हैं
RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 8 विनिमय विपत्र 3
→ निकराई व्यय (Noting Charge): जब बिल का भुगतान प्राप्त नहीं होता तब यह प्रमाणित करने के लिए कि बिल का भुगतान प्राप्त नहीं हो सका है तो बिल के लेखक को कुछ विशेष कार्यवाही करनी पड़ती है। यह कार्यवाही नोटरी पब्लिक (Notary Public) की उपस्थिति में की जाती है। अधिकारी द्वारा यह प्रमाण-पत्र किया जाता है कि बिल मेरी उपस्थिति में भुगतान के लिए पेश किया गया था लेकिन बिल स्वीकार करने वाले ने भुगतान करने से इन्कार कर दिया। इस अधिकारी को दिया गया शुल्क निकराई व्यय कहलाता है। नियमानुसार इसका भी पुस्तकों में लेखा किया जाता है। 

→ विपत्र का नवीनीकरण (Renewal of Bill)
बिल का स्वीकारक (Acceptor) यदि बिल की देय तिथि पर अपने स्वीकार किए गये बिलों का भुगतान नहीं कर पाता लेकिन यदि वह जानता है कि कुछ समय बाद उसके पास रुपये का प्रबन्ध हो सकता है तो ऐसी स्थिति में यह उचित | होता है कि वह लेखक से मिलकर उस बिल को रद्द करवा दे और एक नया बिल स्वीकार कर ले तो इस प्रक्रिया को बिल का नवीनीकरण कहेंगे। इसके साथ कुछ ब्याज की रकम देनी पड़ती है। यह ब्याज की राशि नकद भी दी जा सकती है या बिल की राशि में जोडी जा सकती है।

→ बिल का देय तिथि से पूर्व भुगतान यदि विनिमय विपत्र के स्वीकर्ता (Acceptor) के पास देय तिथि से पहले धन-राशि आ जाती है तो वह विपत्र का भुगतान देय तिथि से पूर्व कर सकता है। यह तब ही सम्भव है जब बिल को लिखने वाला इसके लिए सहमत हो जाये। ऐसी स्थिति में लेखक को कुछ रकम कम प्राप्त होती है जो लेखक के लिए हानि तथा स्वीकार करने वाले को कुछ कम रकम देने के कारण लाभ होता है।

→ प्राप्य बिल तथा देय बिल पुस्तकें (बहियाँ) (Bills Receivable and Bills Payable Books): जब बिल सम्बन्धी व्यवहारों की संख्या अधिक होती है तो लेखांकन की सुविधा की दृष्टि से ऐसे व्यवहारों को दर्ज करने के लिए दो सहायक पुस्तकें रखी जाती हैं। इनमें एक प्राप्य बिल पुस्तक तथा दूसरी देय बिल पुस्तक होती है। इन पुस्तकों को रखने के मोटे तौर पर दो लाभ होते हैं

  • बिलों के सम्बन्ध में समस्त सूचनाएँ तत्काल इनमें मिल जाती है तथा
  • लेखांकन में समय की बचत होती है। बिल बहियाँ रखने पर बिल प्राप्ति एवं स्वीकृति सम्बन्धी व्यवहारों की जर्नल प्रविष्टियाँ नहीं करनी पड़ती हैं। 

1. प्राप्य बिल बही (Bills Receivable Book): इसमें प्राप्य बिलों का लेखा किया जाता है। इसका प्रारूप निम्नलिखित है
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2. देय बिल बही (Bills Payable Book): इसमें व्यापारी द्वारा स्वीकार किये गये बिलों का लेखा किया जाता है। इसका प्रारूप निम्नलिखित है
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RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 8 विनिमय विपत्र

→ प्राप्य बिल बही से खाताबही में खतौनी: प्राप्य बिल बही से प्राप्य बिल खाते तथा बिल देने वाले व्यक्तियों के खातों में खतौनी की जाती है। इस बही के योग से प्राप्य बिल खाते (B/Ra/c) का नाम (Dr.) किया जाता है तथा प्राप्य बिल खाते के नाम (Dr.) पक्ष पर विवरण के खाने में "To Sundries as per B/R Book" लिखा जाता है। इसी प्रकार जिनसे बिल प्राप्त हुए हैं उन सभी व्यक्तियों के खातों में जमा (Cr.) पक्ष पर ("By B/Ra/c") लिखकर रकम के खाने में सम्बन्धित राशि लिख दी जाती है।

→ देय बिल बही से खाताबही में खतौनी: देय बिल बही से देय बिल खाते तथा बिलों के लेखकों के खातों में खतौनी की जाती है। इस बही के योग से देय बिल खाते (B/Pa/c) को जमा (Cr.) किया जाता है तथा देय बिल खाते के जमा (Cr.) पक्ष पर विवरण के खाने में ("By Sundries as per B/P Book") लिखा जाता है। इसी प्रकार बिलों के लेखकों के व्यक्तिगत खातों में नाम (Dr.) पक्ष पर ("To B/P a/c") लिखकर रकम के खाने में सम्बन्धित राशि लिख दी जाती है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 30, 2022, 3:28 p.m.
Published Aug. 30, 2022