RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 6 तलपट एवं अशुद्धियों का शोधन

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RBSE Class 11 Accountancy Chapter 6 Notes तलपट एवं अशुद्धियों का शोधन

→ व्यापारी अपने सभी लेन-देनों को सहायक बहियों से खाताबही में लिखने के उपरान्त यह जानना चाहता है कि उसने सहायक बहियों से जो खतौनी तैयार की है उसमें कोई अशुद्धि तो नहीं रह गई है। इस अशुद्धि का पता लगाने के लिए एक विवरण तैयार किया जाता है, जिसे तलपट कहा जाता है।

→ तलपट की परिभाषा (Definition of Trial Balance): तलपट खाता बही के सभी खातों के नाम और जमा के योग अथवा शेषों को दर्शाने वाला विवरण है।

→ नॉर्थकॉट के अनुसार, "डेबिट तथा क्रेडिट पक्षों का योग मिल रहा है अथवा नहीं, यह प्रदर्शित करने के उद्देश्य से खातों के शेषों की तालिका तैयार करने को ही तलपट कहा जाता है।"

→ कार्टर ने लिखा है, "तलपट खाताबही के खातों से प्राप्त डेबिट तथा क्रेडिट दोनों प्रकार के लेखों की एक सूची है।"

→ निष्कर्ष—दोहरे लेखा प्रणाली के आधार पर प्रत्येक लेन-देन के दो पक्ष होते हैं—एक डेबिट पक्ष और दूसरा क्रेडिट पक्ष। इस कारण तलपट खातों की इन्हीं डेबिट और क्रेडिट रकमों की एक सूची है और इस आधार पर तलपट के डेबिट खाने का योग क्रेडिट खाने के योग के बराबर आना चाहिए। जब दोनों पक्षों का योग बराबर आता है तो खाताबही की गणित सम्बन्धी शुद्धता साधारणतया मान ली जाती है।

RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 6 तलपट एवं अशुद्धियों का शोधन 

→ तलपट बनाने के उद्देश्य-तलपट बनाने के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं

  • खाताबही की गणितीय शुद्धता की जाँच
  • दोहरा लेखा सिद्धान्त के पालन की जाँच
  • अन्तिम खातों को बनाने में सुविधा
  • खाताबही का संक्षिप्त विवरण
  • अशुद्धियों का पता लगाने में सहायक।

तलपट बनाने की विधियाँ तलपट बनाने की निम्नलिखित तीन प्रमुख विधियाँ हैं
(i) खातों के योग द्वारा अथवा योग विधि (Totals Method): इस विधि के अनुसार खाताबही में खोले गये प्रत्येक खाते के डेबिट (Dr.) तथा क्रेडिट (Cr.) पक्ष का योग अलग-अलग लगाया जाता है और तलपट में खाते का नाम लिखकर उसके डेबिट (Dr.) पक्ष का योग तलपट के डेबिट राशि के खाने में तथा क्रेडिट पक्ष का योग तलपट के क्रेडिट राशि के खाने में लिख दिया जाता है। इसके बाद तलपट के दोनों खानों का जोड़ किया जाता है जो कि समान होना चाहिए।

(ii) खातों के शेष द्वारा अथवा शेष विधि (Balances Method): इस विधि के अनुसार खाताबही के प्रत्येक खाते का शेष निकाल लिया जाता है। जिस खाते का जो शेष है, उसको तलपट के उसी खाने में अर्थात् किसी खाते का डेबिट शेष होने पर उस खाते को तलपट के डेबिट खाने में शेष राशि से लिख दिया जाता है। इसी प्रकार किसी खाते का क्रेडिट शेष होने पर उस खाते को तलपट के क्रेडिट खाने में शेष राशि से लिख दिया जाता है। यदि किसी खाते का डेबिट तथा क्रेडिट पक्ष की रकमों का जोड़ समान आता है तो उस खाते को तलपट में नहीं लिखा जाता है।

(iii) शेष एवं योग विधि (Balances and Totals Method): इस विधि में उपरोक्त दोनों विधियों को मिला दिया जाता है। इस विधि के अनुसार राशि (Amount) लिखने के लिए चार खाने बनाये जाते हैं, जिसमें से पहले दो खाने योग विधि के होते हैं तथा शेष दो खाने शेष विधि के होते हैं। यह विधि व्यापार में प्रचलित नहीं

तलपट के मिलान का महत्त्व (Importance of Matching the Trial Balance): तलपट का योग मिलने से खाताबही की केवल गणितीय शुद्धता का ही पता लगाया जा सकता है परन्तु यह खातों की पूर्ण सत्यता का कोई अकाट्य प्रमाण नहीं है। कुछ अशुद्धियाँ इस प्रकार की होती हैं जिनका तलपट के जोड़ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस कारण तलपट के मिल जाने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि खाताबही पूर्ण रूप से सत्य है।

→ अशुद्धियों के प्रकार-अशुद्धियाँ मुख्यतया दो प्रकार की होती है
(A) अशुद्धियाँ जो तलपट को प्रभावित नहीं करती हैं।
(B) अशुद्धियाँ जो तलपट को प्रभावित करती हैं।

(A) तलपट को प्रभावित नहीं करने वाली अशुद्धियाँ (Errors not Affecting Trial Balance): तलपट का डेबिट (Dr.) तथा क्रेडिट (Cr.) का योग मिल जाता है तो यह माना जाता है कि प्रत्येक डेबिट के लिए क्रेडिट किया गया है तथा लेखों में कोई गणितीय अशुद्धि नहीं है। यह मान्यता सामान्य रूप से सही है, किन्तु इस मान्यता को अन्तिम प्रमाण नहीं माना जा सकता है, क्योंकि तलपट का जोड मिल जाने के बाद भी निम्नलिखित अशुद्धियाँ रह जाती हैं जो तलपट के मिलान को प्रभावित नहीं करती हैं
1. भूल-चूक की अशुद्धि (Errors of Omission): जब किसी व्यवहार का लेखा प्रारम्भिक लेखों की पुस्तकों में लिखने से रह जाता है या जर्नल में तो लेखा कर लिया जाता है, परन्तु उस लेन-देन की खाताबही के दोनों पक्षों में खतौनी करने से रह जाती है तो उसे भूल (चूक या लोप) की अशुद्धि कहते हैं। यह अशुद्धि दो प्रकार की होती है
(A) पूर्ण लोप अशुद्धि
(B) आंशिक लोप अशुद्धि।

2. हिसाब की अशुद्धियाँ (Errors of Commission): प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में गलत राशि से या गलत खाते में प्रविष्टि कर देना अथवा खाताबही में गलत खाने में सही राशि की सही पक्ष में प्रविष्टि कर देना हिसाब की अशुद्धियाँ या लेखा सम्बन्धी अशुद्धि कहलाती है। इसका तलपट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

3. सैद्धान्तिक अशुद्धियाँ (Errors of Principle): जब किसी व्यवहार का लेखा करते समय लेखांकन के सिद्धान्तों की अवहेलना की जाती है तो ऐसी अशुद्धि को सैद्धान्तिक अशुद्धियाँ कहते हैं। इसका तलपट के मिलान | पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

4. क्षतिपूरक अशुद्धियाँ (Compensatory Errors): जब एक अशुद्धि के प्रभाव को एक या एक से अधिक अशुद्धियाँ मिलकर समाप्त कर देती हैं तो उसे क्षतिपूरक अशुद्धि कहते हैं। इसका तलपट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(B) तलपट को प्रभावित करने वाली अशुद्धियाँ (Errors Affecting Trial Balance): ऐसी अशुद्धि जिनके कारण तलपट का जोड़ बराबर नहीं मिलता है। तलपट के मिलान को प्रभावित करने वाली अशुद्धियाँ कहलाती हैं। ये मुख्यतया एकपक्षीय होती हैं। ये अशुद्धि निम्न प्रकार की हो सकती हैं-
1. प्रारम्भिक लेखों में अशुद्धि

  • सहायक पुस्तक के योग में गलती हो जाना।
  • योग को आगे ले जाने में गलती हो जाना।
  • शेष निकालने में गलती हो जाना।
  • किसी मद का दोहरा लेखा पूर्ण न हो पाना।

2. खाताबही सम्बन्धी अशुद्धि (Errors Relating to Ledger)

  • किसी खाते में खतौनी न होना।
  • खतौनी गलत पक्ष में हो जाना।
  • खातों के योग एवं शेष निकालने में गलती होना।
  • गलत पक्ष में खतौनी कर देना।
  • खातों में प्रारम्भिक योग का लिखने से रह जाना या गलत राशि से लिख दिया जाना।
  • अगले पृष्ठ पर योग गलत राशि से लिखा जाना।

RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 6 तलपट एवं अशुद्धियों का शोधन

3. तलपट सम्बन्धी अशुद्धि (Errors Relating to Trial Balance)

  • किसी खाते का तलपट में लिखने से रह जाना।
  • किसी खाते का योग एवं शेष गलत पक्ष में लिखा जाना।
  • तलपट का जोड़ गलत लग जाना।
  • किसी खाते का योग एवं शेष तलपट में गलत राशि से लिखना या अंक परिवर्तन हो जाना।

→ अशुद्धियों का पता लगाना (Locating the Errors): यदि किसी कारणवश तलपट का मिलान नहीं हो पाता है तो लेखाकार को तलपट में अशुद्धि का पता लगाने के लिए निम्नलिखित प्रयास करने चाहिए।

  • सबसे पहले तलपट के डेबिट तथा क्रेडिट पक्ष के योग को दोबारा जाँचना चाहिए।
  • यह देखना चाहिए कि तलपट के अन्तर की राशि के बराबर राशि का कोई खाता तलपट में लिखने से रह तो नहीं गया।
  • तलपट के अन्तर की राशि में 9 का भाग देकर देखना चाहिए कि यदि अन्तर की राशि में 9 का पूरा भाग चला जाता है तो अंक परिवर्तन की गलती हो सकती है जैसे : 286 के स्थान पर 826 लिखा जाना।
  • यह देखना चाहिए कि रोकड़ बही से रोकड़ व बैंक शेष तलपट में सम्मिलित कर लिये गये हैं।
  • तलपट के अन्तर की राशि में 2 का भाग लगाकर देखना चाहिए कि कोई खाते को गलत पक्ष में तो नहीं लिख दिया गया।
  • खाताबही की सहायता से यह देखना चाहिए कि कोई खाता तलपट में लिखने से रह तो नहीं गया है।
  • यह देखना चाहिए कि जर्नल या सहायक बहियों से प्रत्येक खाते की खतौनी सही राशि से सही पक्ष में की गई है।
  • सभी सहायक बहियों के योगों को पुनः लगाकर देखना चाहिए कि वे सही हैं।
  • उपरोक्त सभी प्रयत्नों के बाद भी यदि अशुद्धियों का पता नहीं चल पा रहा है तो सहायक पुस्तकों से पुनः जाँच प्रारम्भ की जानी चाहिए।

→ अशुद्धियों का संशोधन; जो अशुद्धियाँ केवल एक खाते को प्रभावित करती हैं उनका शोधन विवरणात्मक टिप्पणी देकर या फिर रोजनामचा में प्रविष्टि कर किया जाता है। जिन अशुद्धियों से दो या अधिक खाते प्रभावित होते हैं उनका शोधन रोजनामचा प्रविष्टि के द्वारा किया जाता है।

→ भूल-चूक खाता या उचन्ती खाता: यदि उपरोक्त विधियों को अपनाने पर भी तलपट के अन्तर की अशुद्धि का पता नहीं चल पाता है और अन्तिम खाते बनाने आवश्यक होते हों तो तलपट में विद्यमान अन्तर को भूल चूक खाता या उचन्ती खाते (Suspense Account) में डाल दिया जाता है। यदि तलपट का डेबिट शेष क्रेडिट पक्ष से अधिक होता है तो उचन्ती खाते को क्रेडिट पक्ष में लिख दिया जाता है। इस स्थिति में उचन्ती खाते का क्रेडिट शेष होता है तथा इसके विपरीत स्थिति में उचन्ती खाते का डेबिट शेष होता है।

→ उचन्ती खाते का निपटान: जब सभी अशुद्धियों को ढूँढ़ लिया जाता है एवं उनका शोधन कर लिया जाता है तो उचन्ती खाता बन्द हो जाता है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 30, 2022, 2:54 p.m.
Published Aug. 30, 2022