RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 10 वित्तीय विवरण-2

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RBSE Class 11 Accountancy Chapter 10 Notes वित्तीय विवरण-2

→ लेखांकन का मुख्य उद्देश्य व्यापार से सम्बन्धित समस्त सूचनाओं को एकत्रित करके उन्हें इस प्रकार प्रस्तुत करना है कि व्यापारी को अपने व्यापार से सम्बन्धित लाभ-हानि तथा आर्थिक स्थिति की सही-सही जानकारी प्राप्त हो सके।
व्यापार में व्यवहारों का लेखांकन यदि उपार्जन आधार पर किया जाता है तो जिस लेखा वर्ष से सम्बन्धित आय लेखों में लेखांकित होती है उससे सम्बन्धित व्यय भी लेखांकित हो जाने चाहिए और जिस लेखा वर्ष से सम्बन्धित व्यय लेखों में लिखे गये हैं उनसे सम्बन्धित आय भी लेखांकित हो जानी चाहिए। 

→ समायोजन (Adjustments):
किसी लेखा वर्ष की लेखांकित आय से सम्बन्धित व्ययों एवं हानियों तथा लेखांकित व्ययों एवं हानियों से सम्बन्धित आयों का पूर्णतः लेखांकन न होने पर, उन्हें ज्ञात करके, उनका लेखांकन करना ही 'समायोजन' है। 

→ समायोजन प्रविष्टियाँ (Adjustment Entries) :
लेखांकन की अवधारणाओं एवं परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए अन्तिम खाते बनाने से पूर्व ज्ञात समायोजनों के लिए जो प्रविष्टियाँ की जाती हैं उन्हें 'समायोजन प्रविष्टियाँ' कहते हैं । समायोजन प्रविष्टियाँ करने के पीछे मूल उद्देश्य यह होता है कि लेखा वर्ष से सम्बन्धित समस्त आयों एवं लाभों को लेखांकित कर दिया गया है चाहे वे प्राप्त हुए हों या नहीं तथा लेखा वर्ष से सम्बन्धित समस्त व्ययों एवं हानियों को लेखांकित कर दिया गया है चाहे उनका भुगतान हुआ है या नहीं।

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→ प्रमुख समायोजन (Main Adjustments) :

  • वर्ष के अन्त का रहतिया (Stock at the end of the year)
  • बकाया तथा उपार्जित व्यय (Outstanding and Accrued Expenses)
  • पूर्वदत्त व्यय (Prepaid Expenses)
  • उपार्जित आय तथा बकाया आय (Accrued Income and Outstanding Income)
  • अनुपार्जित आय (Unearned Income)
  • मूल्य ह्रास (Depreciation)
  • डूबत ऋण (Bad Debts)
  • संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान (Provision for Doubtful Debts)
  • देनदारों पर बट्टे के लिए प्रावधान (Provision for Discount on Debtors)
  • प्रबन्धक कमीशन (Manager's Commission)
  • पूँजी पर ब्याज (Interest on Capital) 

→ अन्य समायोजन (Other Adjustments):

  • लेनदारों पर बट्टे के लिए आयोजन (Provision for Discount on Creditors)
  • आहरण पर ब्याज (Interest on Drawings)
  • पारस्परिक ऋण (Common Debts)
  • माल से सम्बन्धित समायोजन (Adjustments Related to Goods) :
    • विक्रय या वापसी की शर्त पर ग्राहकों को माल भेजना (Goods sent to Customers on Sale or Return Basis)
    • माल की आग, चोरी या प्राकृतिक प्रकोप से हानि (Loss of Goods by Fire, Theft or Attack by Nature)
    • माल के विक्रय के अतिरिक्त अन्य उपयोग (Uses of Goods other than Sale of Goods)
  • मरम्मत एवं नवीनीकरण के लिए आयोजन (Provision for Repairs and Renewals)।

1. वर्ष के अन्त में रहतिया (Stock at the end of the year):
वर्ष के अन्त में रहतिया निम्न तीन रूपों में हो सकता है

  • कच्चा माल (Raw Material) 
  • अर्द्ध-निर्मित माल (Semi-Finished Goods)
  • निर्मित माल (Finished Goods)।

इनका लेखांकन निम्न दो प्रकार से किया जाता है-
(i) अन्तिम खाते बनाने से पूर्व-इस स्थिति में निम्न समायोजन प्रविष्टि की जाती है
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इस स्थिति में अन्तिम खाते बनाते समय अन्तिम रहतिया का नाम शेष चिट्ठे के सम्पत्ति पक्ष में दिखाया जाता है। 

(ii) अन्तिम खाते बनाते समय-इस स्थिति में निम्न समायोजन प्रविष्टि की जाती है
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इस स्थिति में अन्तिम खाते बनाते समय रहतिया को निर्माण या व्यापार खाते के जमा पक्ष में तथा चिट्टे के सम्पत्ति पक्ष में दिखाया जाता है।

2. बकाया/अदत्त तथा उपार्जित व्यय (Outstanding and Accrued Expenses):
ऐसे व्यय जिनका सम्बन्ध वर्तमान लेखा अवधि से होता है लेकिन इनका भुगतानं इस लेखा अवधि में नहीं किया गया है तो ऐसे व्यय अदत्त तथा उपार्जित व्यय कहलाते हैं। 
इसके लिए निम्न समायोजन प्रविष्टि की जाती है
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3. पूर्वदत्त व्यय (Prepaid Expenses) :
ऐसे व्यय जिनका सम्बन्ध आगामी लेखा अवधि से है परन्तु उनका भुगतान चालू लेखा अवधि में कर दिया जाता है तो ऐसे व्ययों के भुगतानों को पूर्वदत्त व्यय कहते हैं।
पूर्वदत्त व्ययों के लेखांकन के लिए निम्न समायोजन प्रविष्टि की जाती है
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4. उपार्जित आय तथा बकाया आय (Accrued Income and Outstanding Income) :
ऐसी आय जो वर्तमान लेखा अवधि से सम्बन्धित है परन्तु न तो प्राप्त होनी देय हुई है और न प्राप्त हुई है उसे उपार्जित आय कहते हैं । बकाया आय वह आय होती है जो वर्तमान लेखा अवधि से सम्बन्धित है और प्राप्त होनी देय हो गई हैं परन्तु प्राप्त नहीं हुई है।
इसके लिए अग्र समायोजन प्रविष्टि की जाती है
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5. अग्रिम प्राप्त आय/अनुपार्जित आय (Income Received in Advance/Unearned Income):
ऐसी आय जो आने वाली या भावी लेखा अवधि से सम्बन्धित है और चालू लेखा अवधि में ही प्राप्त हो जाती है तो यह चालू लेखा अवधि की आय न होने से चालू लेखा अवधि के लिए अनुपार्जित आय या आय की अग्रिम प्राप्ति कहलाती है। 
इसके लिए निम्न समायोजन प्रविष्टि की जाती है
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6. मूल्य ह्रास (Depreciation):
स्थायी सम्पत्तियाँ व्यापार में प्रयोग करने के लिए खरीदी जाती हैं जो व्यवसाय के लाभार्जन में सहायक होती हैं और इन सम्पत्तियों के उपयोग करने से उनके जीवनकाल एवं मूल्य दोनों में कमी होना स्वाभाविक है। इसके अलावा समय बीतने (व्यतीत होने) के साथ-साथ नई-नई तकनीकों का भी विकास होता है। इसलिए जैसे-जैसे सम्पत्ति का प्रयोग किया जाता है, समय बीतने व नई-नई तकनीकों के विकास के कारण इसके मूल्य में कमी होना स्वाभाविक होता है । इस कमी की राशि को ही मूल्य ह्रास कहते हैं। यह व्यापारी के लिए हानि है। ह्रास के लेखांकन के लिए निम्न प्रविष्टि की जाती है
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7. डूबत ऋण (Bad Debts) :
अतिरिक्त डूबत ऋण होने पर निम्न प्रविष्टि की जाती है
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8. संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान (Provision for Doubtful Debts):
लेखांकन प्रविष्टियाँ :
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9. देनदारों पर बट्टे के लिए प्रावधान (Provision for Discount on Debtors):
लेखांकन प्रविष्टियाँ :
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10. प्रबन्धक कमीशन (Manager's Commission) : 
इसके लिए निम्न लेखा प्रविष्टि की जाती है
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शुद्ध लाभ या कमीशन वसूल करने के बाद लाभ पर निश्चित दर से कमीशन देना है तो कमीशन की गणना निम्न प्रकार की जायेगी
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यदि भाषा से यह स्पष्ट हो कि कमीशन लाभ पर ही देना है न कि शुद्ध लाभ पर तो लाभ की राशि ज्ञात कर उस पर निर्धारित दर से कमीशन दे दिया जायेगा और शेष राशि शुद्ध लाभ होती है। इस दशा में कमीशन की गणना निम्न प्रकार से होगी
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11. पूँजी पर ब्याज (Interest on Capital) : इसके लिए निम्न लेखा प्रविष्टि की जाती है
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12. लेनदारों पर बट्टे के लिए आयोजन (Provision for Discount on Creditors) :
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13. आहरण पर ब्याज (Interest on Drawings): इसके लिए निम्न लेखा प्रविष्टि की जाती है
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14. पारस्परिक ऋण (Common Debts):
वर्ष के अन्त में व्यापारी द्वारा एक ही व्यक्ति अथवा फर्म के न्यून (कम) शेष वाले खाते को अधिक शेष वाले | खाते में हस्तान्तरित करने के लिए निम्न समायोजन प्रविष्टि की जाती है
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इस प्रविष्टि का प्रभाव यह होता है कि चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष में उपर्युक्त प्रविष्टि की राशि के बराबर देनदार कम दिखाये जायेंगे और चिठे के दायित्व पक्ष में भी इतनी ही राशि लेनदारों में से कम करके दिखायी जायेगी। 

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15. माल से सम्बन्धित समायोजन (Adjustments Related to Goods):
(i) विक्रय या वापसी की शर्त पर माल ग्राहकों को भेजना
यदि विक्रय और वापसी पर भेजा माल स्मरणार्थ बही में लेखांकित हो और ग्राहक द्वारा विक्रय के रूप में उसकी स्वीकृति प्राप्त हो जाये
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यदि माल भेजते समय इसकी प्रविष्टि विक्रय के अनुसार ही की हो अर्थात् स्मरणार्थ बही में न लिखी गई हो तो ग्राहक द्वारा स्वीकृति प्राप्त होने पर अन्य कोई प्रविष्टि करने की आवश्यकता नहीं है। इसके विपरीत यदि इस दशा में ग्राहक की स्वीकृति न मिले और लेखा अवधि समाप्त हो रही हो तो निम्न प्रविष्टि द्वारा पूर्व में विक्रय मानकर की गई प्रविष्टि का प्रभाव समाप्त करना पड़ेगा
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(ii) माल की आग, चोरी या प्राकृतिक प्रकोप से हानि
यदि व्यापार में माल चोरी हो जाये, प्राकृतिक प्रकोप से खराब या नष्ट हो जाये या व्यापार में आग लग जाने से माल आग से जल जाये तो इस प्रकार की हानियाँ असामान्य हानि की श्रेणी में आती हैं। हानि होने पर निम्न प्रविष्टि की जाती है
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यदि यह माल बीमा कम्पनी से बीमित हो तो बीमा कम्पनी जितनी राशि का दावा स्वीकार कर लेती है उसके लिए निम्न लेखा प्रविष्टि की जाती है
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यदि उपर्युक्त कारणों से माल के स्थान पर सम्पत्ति नष्ट हो जाये तो निम्न प्रविष्टि की जायेगी
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(iii) माल के विक्रय के अतिरिक्त अन्य उपयोग
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16. मरम्मत एवं नवीनीकरण के लिए आयोजन (Provision for Repairs and Renewals): 
इस समायोजन के लिए निम्न लेखा प्रविष्टि की जाती है
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समायोजन सहित अन्तिम खाते बनाते समय निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं

  • तलपट बिना समायोजन के दिया हो अर्थात् तलपट के नीचे समायोजन दिये हों एवं अन्तिम खाते तैयार करने हों।
  • तलपट न दिया हो और केवल खातों के शेष दिये हों और कुछ समायोजन सूचनाओं के रूप में दिये हों।
  • कुछ समायोजन तलपट में हो चुके हों और कुछ समायोजनों के बारे में सूचनाएँ दी हों, जिनका समायोजन करते हुए अन्तिम खाते बनाने हों।
  • यदि समायोजित तलपट दिया हो और अन्तिम खाते तैयार करने हों। उपर्युक्त विभिन्न परिस्थितियों में अन्तिम खाते बनाने की प्रक्रिया निम्न प्रकार अपनायी जा सकती है
    • यदि प्रश्न में तलपट बिना समायोजन का दिया हो और समायोजन से सम्बन्धित सूचनाएँ दी गई हों तो उन सूचनाओं को समायोजित करते हुए अन्तिम खाते बनाये जाते हैं।
    • जब प्रश्न में विभिन्न खातों के शेष दिये हों और समायोजनों के बारे में सूचनाएँ दी गई हों तो सर्वप्रथम तलपट बनाया जाना चाहिए। यदि तलपट के दोनों पक्षों का मिलान नहीं होता है तो अन्तर की राशि जिस पक्ष में कम है उतनी राशि से उचन्ती खाते को डेबिट या क्रेडिट कर दिया जायेगा। तत्पश्चात् समायोजन सम्बन्धी सूचनाओं को ध्यान में रखते हुए अन्तिम खाते बनाये जाते हैं।
    • यदि प्रश्न में कुछ समायोजन तलपट में हो चुके होते हैं तो उन समायोजनों के बाद के शेषों को वैसे ही अन्तिम खाते में लिख दिया जाता है तथा जिन समायोजनों की सूचनाएँ दी होती हैं उनका समायोजन करके अन्तिम खाते बनाये जाते हैं।
    • यदि प्रश्न में समायोजित तलपट दिया हो तो उसकी सहायता से अन्तिम खाते बना लिये जाते हैं, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में और कोई समायोजन करने की आवश्यकता ही नहीं होती है।
Prasanna
Last Updated on Aug. 30, 2022, 3:45 p.m.
Published Aug. 30, 2022